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Saturday, August 1, 2020

01 अगस्त आज ही के दिन महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन की शुरुआत की थी। क्या थे कारण!

01 अगस्त 1920 को महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन की शुरुआत की। आंदोलन के दौरान विद्यार्थियों ने सरकारी स्कूलों और कॉलेजों में जाना छोड़ दिया। वकीलों ने अदालत में जाने से मना कर दिया। कई कस्बों और नगरों में श्रमिक हड़ताल पर चले गए। अंग्रेज हुक्मरानों की बढ़ती ज्यादतियों का विरोध करने के लिए यह आंदोलन की शुरुआत की। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 1921 में 396 हड़तालें हुई जिनमें छह लाख श्रमिक शामिल थे और इससे 70 लाख कार्य दिवसों का नुकसान हुआ। 
शहरों से लेकर गांव देहात में इस आंदोलन का असर दिखाई देने लगा और सन 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के बाद असहयोग आंदोलन से पहली बार अंग्रेजी राज की नींव हिल गई। 5 फ़रवरी 1922 में किसानों के एक समूह ने संयुक्त प्रांत के गोरखपुर जिले के चौरी-चौरा पुरवा में एक पुलिस स्टेशन पर आक्रमण कर उसमें आग लगा दी।इस अग्निकांड में कई पुलिस वालों की जान चली गई। हिंसा की इस कार्यवाही से गाँधी जी को यह आंदोलन तत्काल वापस लेना पड़ा।
उन्होंने जोर दिया कि, ‘किसी भी तरह की उत्तेजना को निहत्थे और एक तरह से भीड़ की दया पर निर्भर व्यक्तियों की घृणित हत्या के आधार पर उचित नहीं ठहराया जा सकता है’। 12 फ़रवरी 1922 को बारदोली में हुई कांग्रेस की बैठक में असहयोग आन्दोलन को समाप्त करने के निर्णय के बारे में गांधी जी ने यंग इण्डिया में लिखा था कि, "आन्दोलन को हिंसक होने से बचाने के लिए मैं हर एक अपमान, हर एक यातनापूर्ण बहिष्कार, यहाँ तक की मौत भी सहने को तैयार हूँ।" अब गांधी जी ने रचनात्मक कार्यों पर ज़ोर दिया।
असहयोग आंदोलन (1920-21)के प्रमुख कारण थे
  • सभी वयस्कों को काँग्रेस का सदस्य बनाना
  • तीन सौ सदस्यों की अखिल भारतीय काँग्रेस समिति का गठन
  • भाषायी आधार पर प्रांतीय काँग्रेस समितियों का पुनर्गठन
  • स्वदेशी मुख्यतः हाथ की कताई-बुनाई को प्रोत्साहन
  • यथासंभव हिन्दी का प्रयोग आदि

इस्लाम धर्म में बकरीद (Eid-ul-Adha) का त्योहार जिसका मतलब है कुर्बानी की ईद, क्यों मनाई जाती है।

रमजान के पवित्र महीने की समाप्ति के लगभग 70 दिनों बाद इसे मनाया जाता है। बकरीद (Eid-ul-Adha)। जिसका मतलब है कुर्बानी की ईद। इस्लाम धर्म में विश्वास रखने वाले लोगों का एक प्रमुख त्यौहार है। रमजान के पवित्र महीने की समाप्ति के लगभग 70 दिनों बाद इसे मनाया जाता है। कहा जाता है अल्लाह ने हजरत इब्राहिम से सपने में उनकी सबसे प्रिय चीज की कुर्बानी मांगी थी। हजरत इब्राहिम अपने बेटे से बहुत प्यार करते थे, लिहाजा उन्होंने अपने बेटे की कुर्बानी देने का फैसला किया। अल्लाह के हुक्म की फरमानी करते हुए हजरत इब्राहिम ने अपने बेटे की कुर्बानी दे दिया। 

कहते हैं तभी से बकरीद का त्योहार मनाया जाने लगा। लेकिन मुस्लिम समाज कभी अपने बच्चों का बलि नहीं दे सकता। इसलिए वह निर्दोष असहाय जानवरों का बली देता है। बकरीद का त्यौहार हिजरी के आखिरी महीने जुल हिज्ज में मनाया जाता है। पूरी दुनिया के मुसलमान इस महीने में मक्का सऊदी अरब में एकत्रित होकर हज मनाते है। ईद उल अजहा भी इसी दिन मनाई जाती है। वास्तव में यह हज की एक अंशीय अदायगी और मुसलमानों के भाव का दिन है। दुनिया भर के मुसलमानों का एक समूह मक्का में हज करता है बाकी मुसलमानों के अंतरराष्ट्रीय भाव का दिन बन जाता है।


इन जानवरों की दी जाती है कुर्बानी 
बकरीद के दिन मुस्लिम बकरा, भेड़, ऊंट जैसे निर्दोष किसी जानवर की कुर्बानी देते हैं। इसमें उस पशु की कुर्बानी नहीं दी जा सकती है जिसके शरीर का कोई हिस्सा टूटा हुआ हो, भैंगापन हो या जानवर बीमार हो बकरीद के दिन कुर्बानी के गोश्त को तीन हिस्सों में बांटा जाता है। एक खुद के लिए, दूसरा सगे-संबंधियों के लिए और तीसरे हिस्से को गरीब लोगों में बांटे जाता है।

Tuesday, July 28, 2020

फ्रांस से चला भारत का तूफान एयर-टू-एयर रिफ्यूलिंग करते दिखा "राफेल"

भारत को मिलने वाले राफेल फाइटर जेट्स ने सोमवार को भारत के लिए उड़ान भरी थी और बुधवार को सभी पांचों विमान हरियाणा के अंबाला एयरफोर्स स्टेशन पहुंचेंगे। वही भारत आते समय विमानों में एयर-टू-एयर रिफ्यूलिंग के तहत, हवा में ही ईंधन भरा गया। बता दें, राफेल एयरक्राफ्ट फ्रांस से भारत तक करीब 7 हजार किलोमीटर की दूरी तय कर अा रहा हैं।

इस दौरान इसमे एयर-टू-एयर ईंधन भरा गया। इन पांचों राफेल फाइटर प्लेन को 7 भारतीय पायलट उड़ाकर अंबाला एयरबेस ला रहे हैं। भारत ने सितंबर 2016 में फ्रांस के साथ लगभग 58,000 करोड़ रुपये की लागत से 36 राफेल लड़ाकू विमानों की खरीद के लिए अंतर-सरकारी समझौते पर हस्ताक्षर किए थे।यह विमान कई शक्तिशाली हथियारों को ले जाने में सक्षम है। इसमें यूरोपीय मिसाइल निर्माता एमबीडीए का मेटॉर मिसाइल शामिल है।

राफेल फाइटर जेट की विशेषताएं-

मीडियम मल्टी-रोल कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (MMRCA) होने के नाते, राफेल जेट अपनी गति, हथियार धारण क्षमता और हमले की क्षमता के लिए जाना जाता है। राफेल दो एसएनईसीएमए एम 88 इंजन द्वारा संचालित है। जो इसे 1,912 किमी प्रति घंटे की उच्च गति और 3,700 किमी से अधिक की सीमा प्राप्त करने में मदद करता है। इसमें मार्टिन-बेकर मार्क 16F ‘जीरो-जीरो’ इजेक्शन सीट भी है जो शून्य गति और ऊंचाई पर परिचालन करने में सक्षम है। 

हमला करने की क्षमता

2223 किमी की शीर्ष गति होने के कारण, यह लेजर-निर्देशित बमों से सुसज्जित है जिसका वजन 900 किलोग्राम है। इसकी आंतरिक तोप से प्रति मिनट 2500 राउंड फायर किए जा सकते हैं। इसके अलावा, दृश्य सीमा मिसाइल, हैमर एयर-टू-ग्राउंड मिसाइल, उल्का और स्कैल्प मिसाइलों से परे MICA की उपस्थिति, भारतीय वायु सेना को भारतीय वायु अंतरिक्ष पार किये बिना 600 किमी दूर दुश्मन के ठिकानों पर हमला करने की क्षमता देती है। साथ ही राफेल जेट को 60-70 किमी की रेंज वाले HAMMER मिसाइल से लैस किया जाएगा। यह भारत को पूर्वी लद्दाख जैसे पहाड़ी स्थानों सहित अन्य सभी इलाकों में बंकरों, कठोर आश्रयों और अन्य ठिकानों को नष्ट करने की क्षमता देता है। 

4.5 जनरेशन विमान एईएसए रडार, स्पैक्ट्रा इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर सिस्टम और आईआरएसटी सिस्टम से लैस, राफेल को 4.5 जनरेशन विमान के रूप में वर्गीकृत किया गया है। यह अमूल्य है क्योंकि भारतीय वायुसेना के पास वर्तमान में केवल तीसरी और चौथी पीढ़ी के फाइटर जेट हैं। वर्तमान में, भारत के पास सुखोई सु -30 एमकेआई, मिग 29, मिराज -2000 और स्वदेश निर्मित तेजस जैसे फाइटर जेट हैं। हालांकि, इसका सबसे बड़ा फायदा परमाणु हथियार पहुंचाने की इसकी क्षमता है।


22.6 किग्रा शुद्ध चादी के ईट से रखी जाएगी राममंदिर कि निव।

उत्तर प्रदेश के अयोध्या में पांच अगस्त को राम मंदिर निर्माण के लिए 'भूमि पूजन' समारोह होने वाला है। जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत कई लोग शमिल होने वाले हैं। भूमि पूजन में उपयोग होने वाले ईट कि तस्वीर भी सामने अा गई है जो शुद्ध चादि कि 22.6 किग्रा है। इस ईट पे तिलक और स्वस्त्विक का चिन्ह भी बना हुआ है।

 ट्रस्ट के सदस्यों के अनुसार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के राम मंदिर की आधारशिला रखने के लिए अयोध्या पहुंचेगे। वही 'भूमि पूजन' समारोह के लिए जिन लोगों को आमंत्रित किया जा रहा हैं उनमें BJP नेता लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (RSS) के प्रमुख मोहन भागवत शामिल हैं। बता दें, दूरदर्शन द्वारा इस समारोह का सीधा प्रसारण किया जायेगा। मंदिर के ट्रस्टी अपनी सारी तैयारियां युद्ध स्तर पर कर दिया है। भूमि पूजन में उपयोग किया जाने वाला जल भी निकाल चुका है जल्द ही भूमि पूजन के लिए जल भी अयोध्या पहुंच जाएगा।

मंदिर का स्वरूप
राम मंदिर के मॉडल में प्रस्तावित बदलाव किया गया है। पहले आयताकार था, अब कुर्सीफार्म शेप का मॉडल होगा। पहले 2 मंडप थे, लेकिन अब बदल कर 5 मंडप होगा। गर्भगृह के ऊपर के मुख्य गुम्बद के अलावा 3 मंडप गर्भगृह के बाद होंगे, उसके बाद एक और मंदिर के प्रवेश के पास एक छोटा मंडप होगा। पहले आकार 313×149 फुट था, अब 344×235 फुट होगा। शिखर की चोटी की ऊंचाई पहले 138 फुट प्रस्तावित थी, जो अब बढ़कर 161 फुट होगी। पत्थर की मात्रा पहले 243,000 घन फुट आंकी गई थी, जो अब बढ़कर 375,000 घन फुट होगा। क्षेत्रफल में भी बदलाव होगा।

Monday, July 27, 2020

जल्द अा रहा है भारत के पास 5 राफेल लड़ाकू विमान।

 राफेल या डसॉल्ट राफेल फ्रांसीसी उच्चारण में शाब्दिक अर्थ है "हवा का गहरा" और "अधिक आग की भावना में" एक फ्रेंच दोहरे इंजन वाला, कैनर्ड डेल्टा विंग, मल्टीरोल डेसॉल्ट एविएशन द्वारा डिजाइन और निर्मित लड़ाकू विमान है। हथियार की एक विस्तृत श्रृंखला के साथ सुसज्जित, राफेल का उद्देश्य वायु वर्चस्व, हस्तक्षेप, हवाई पुनर्मिलन, जमीन समर्थन, गहराई से मार, विरोधी जहाज हड़ताल और परमाणु प्रतिरोध मिशन करने का है। राफेल को डेसॉल्ट द्वारा "ओमनीरोले" विमान के रूप में जाना जाता है।
राफेल में तीन तरह की मिसाइलें लगेंगी. हवा से हवा में मार करने वाली मीटियोर मिसाइल. हवा से जमीन में मार करने वाल स्कैल्प मिसाइल. तीसरी है हैमर मिसाइल. इन मिसाइलों से लैस होने के बाद राफेल काल बनकर दुश्मनों पर टू टेगा। राफेल में लगी मीटियोर मिसाइल 150 किलोमीटर और स्कैल्फ मिसाइल 300 किलोमीटर तक मार कर सकती है, जबकि, HAMMER यानी Highly Agile Modular Munition Extended Range एक ऐसी मिसाइल है, जिनका इस्तेमाल कम दूरी के लिए किया जाता है. ये मिसाइल आसमान से जमीन पर वार करने के लिए कारगर साबित हो सकती हैं.

अधिकतम स्पीड 2,130 किमी/घंटा और 3700 किमी. तक मारक क्षमता

24,500 किलो उठाकर ले जाने में सक्षम और 60 घंटे अतिरिक्त उड़ान की गारंटी

यह दो इंजन वाला लड़ाकू विमान है, जो भारतीय वायुसेना की पहली पसंद है. हर तरह के मिशन में भेजा जा सकता।

स्कैल्प मिसाइल की रेंज 300 किमी, हथियारों के स्टोरेज के लिए 6 महीने की गारंटी

अत्याधुनिक हथियारों से लैस होगा राफेल, प्लेन के साथ मेटेअर मिसाइल भी है


Friday, July 24, 2020

साकेत गोखले ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस को दी अर्जी। अर्जी हुआ खारिज।

कई दसको से चला आ रहा रामजन्म भूमि विवाद तो आखिर कार सुप्रीम कोर्ट के पाच जजों की बेंच कि सुनवाई के बाद श्री रामचन्द्र जी को अपना जन्मस्थान मिला। लेकिन कांग्रेस पार्टी को वह पसंद नहीं आया आखिर कार कांग्रेस ने अपना धर्म विरोधी एजेंडे को आगे किया और राहुल गांधी के करीबी साकेत गोखले ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस को अर्जी दी है कि  राम मंदिर निर्माण हेतु 5 अगस्त को प्रस्तावित भूमि पूजन पर रोक लगाई जाए। कांग्रेस की इस तरह की राजनीति कई दसको से चला आ रहा है जिसमें वह कभी प्रधानमंत्री को गाली देने की बात हो, सेना के सॉर्य पे सवाल उठाने की बात हो या प्रभु श्री रामचन्द्र कि आस्तित्व कि बात हो। कांग्रेस हर धर्म विरोधी एजेंडे में आगे रहकर देश की अस्मिता को धूमिल करती अा रही है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राहुल गांधी समर्थित , श्रीमान साकेत गोखले जी की भूमि पूजन रोकने की याचिका 
को खारिज कर दी है और मशवरा भी दिया है राज्य सरकार अपने काम जानती है आप समय खराब न करें।
साकेत गोखले के समर्थन में आए राहुल गांधी और उनके करीबीयो को खुलकर समर्थन करते देखा जा सकता है।

Thursday, July 23, 2020

"मैं आज़ाद था, आज़ाद हूँ, आज़ाद रहूँगा" चंद्रशेखर आजाद !

चन्द्रशेखर आजाद का जन्म भाबरा गाँव (अब चन्द्रशेखर आजादनगर) (वर्तमान अलीराजपुर जिला) में 23 जुलाई सन्  1906 को हुआ था। उनके पूर्वज बदरका (वर्तमान उन्नाव जिला) बैसवारा से थे। आजाद के पितापण्डित सीताराम तिवारी संवत् 1856 में अकाल के समय अपने पैतृक निवास बदरका को छोड़कर पहले कुछ दिनों [मध्य प्रदेश] अलीराजपुर रियासत में नौकरी करते रहे फिर जाकर भाबरा [गाँव] में बस गये। यहीं बालक चन्द्रशेखर का बचपन बीता। उनकी माँ का नाम जगरानी देवी था। आजाद का प्रारम्भिक जीवन आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र में स्थित भाबरा गाँव में बीता अतएव बचपन में आजाद ने भील बालकों के साथ खूब धनुष बाण चलाये। इस प्रकार उन्होंने निशानेबाजी बचपन में ही सीख ली थी। बालक चन्द्रशेखर आज़ाद का मन अब देश को आज़ाद कराने के अहिंसात्मक उपायों से हटकर सशस्त्र क्रान्ति की ओर मुड़ गया। उस समय बनारस क्रान्तिकारियों का गढ़ था। वह मन्मथनाथ गुप्त और प्रणवेश चटर्जी के सम्पर्क में आये और क्रान्तिकारी दल के सदस्य बन गये। क्रान्तिकारियों का वह दल "हिन्दुस्तान प्रजातन्त्र संघ" के नाम से जाना जाता था।
क्रांतिकारी गतिविधियां
1919 में हुए अमृतसर के जलियांवाला बाग नरसंहार ने देश के नवयुवकों को उद्वेलित कर दिया। चन्द्रशेखर उस समय पढाई कर रहे थे। जब गांधीजी ने सन् 1921 में असहयोग आन्दोलनका फरमान जारी किया तो वह आग ज्वालामुखी बनकर फट पड़ी और तमाम अन्य छात्रों की भाँति चन्द्रशेखर भी सडकों पर उतर आये। अपने विद्यालय के छात्रों के जत्थे के साथ इस आन्दोलन में भाग लेने पर वे पहली बार गिरफ़्तार हुए और उन्हें 15 बेतों की सज़ा मिली। इस घटना का उल्लेख पं० जवाहरलाल नेहरू ने कायदा तोड़ने वाले एक छोटे से लड़के की कहानी के रूप में किया है।
चंद्रशेखर आजाद ने एक निर्धारित समय के लिए झांसी को अपना गढ़ बना लिया। झांसी से पंद्रह किलोमीटर दूर ओरछा के जंगलों में वह अपने साथियों के साथ निशानेबाजी किया करते थे। अचूक निशानेबाज होने के कारण चंद्रशेखर आजाद दूसरे क्रांतिकारियों को प्रशिक्षण देने के साथ-साथ पंडित हरिशंकर ब्रह्मचारी के छ्द्म नाम से बच्चों के अध्यापन का कार्य भी करते थे। वह धिमारपुर गांव में अपने इसी छद्म नाम से स्थानीय लोगों के बीच बहुत लोकप्रिय हो गए थे। झांसी में रहते हुए चंद्रशेखर आजाद ने गाड़ी चलानी भी सीख ली थी।
जेलर के मुंह पर फेंक दिया पैसा
ज्वॉइंट मजिस्ट्रेट ने जब उनका नाम पूछा, तो उन्होंने जवाब दिया, 'आजाद', पिता का नाम स्वाधीनता और घर का पता जेल। यह सुन मजिस्ट्रेट तिलमिलिया और बेंत से मारने की निर्मम सजा सुना दी। सेंट्रल जेल में कसूरी बेतों की हर मार पर गांधी जी की जय, भारत माता की जय और वंदेमातरम का नाद हंसते हुए करते थे। जीवनी के अनुसार सेंट्रल जेल से लहूलुहान करने के बाद खूंखार जेलर गंडा ङ्क्षसह ने आजाद को तीन आने पैसे दिए, जिसे चंद्रशेखर आजाद ने जेलर के मुंह पर ही फेंक दिया और खुद को घसीटते हुए वह आगे निकल गए। बेंतों की मार इतनी भयावह थी कि बनारस के पंडित गौरी शंकर शास्त्री आजाद को अपने घर लाये और अपनी औषधियों से उनके सभी घावों का इलाज किया, साथ में रहने और भोजन का भी प्रबंध। इसके बाद से ज्ञानवापी पर काशी वासियों ने फूल-माला से भव्य स्वागत किया। भीड़ जब उन्हें नहीं देख पा रही थी तो अभिवादन के लिए उन्हें मेज पर खड़ा होना पड़ा। उसी समय चरखे के साथ उनकी एक तस्वीर भी ली गई। इसके बाद से ही चंद्रशेखर तिवारी आजाद उपनाम से विख्यात हुए।
अंग्रेजो की आंखों में झोंका धूल
असहयोग आंदोलन के दौरान संपूर्णानन्द जी ने आजाद को कोतवाली के सामने कांग्रेस की एक नोटिस लगाने का जिम्मा सौंपा। अंग्रेजी फौज की कड़ी सुरक्षा के बीच वह अपनी पीठ पर नोटिस हल्का सा चिपकाकर निकल गए। कोतवाली की दीवार से सटकर खड़े हो गए और पहरा देने वाले सिपाही से कुशलक्षेम लेते रहे, उतने देर में सिपाही के जाते ही आजाद भी निकल गए। बाद में नोटिस को देखकर जब शहर में हो-हल्ला मचा, तो सिपाही आजाद का कारनामा देख हक्का-बक्का रह गया।

स्वतंत्रता संग्राम के महान क्रांतिकारी जिनका बलिदान  देश के लिए जीने की प्रेरणा देता है, ऐसे चंद्रशेखर आज़ाद जी की जयंती पर उन्हें नमन !

मैं तो इंसानियत से मजबूर था तुम्हे बीच मे नही डुबोया" मगर तुमने मुझे क्यों काट लिया!

नदी में बाढ़ आती है छोटे से टापू में पानी भर जाता है वहां रहने वाला सीधा साधा1चूहा कछुवे  से कहता है मित्र  "क्या तुम मुझे नदी पार करा ...