Popular Posts

Showing posts with label महापुरुष. Show all posts
Showing posts with label महापुरुष. Show all posts

Friday, August 6, 2021

रामानंद सागर के श्री राम अरुण गोविल इतनी सम्पत्ति के मालिक हैं।

अरुण गोविल फ़िल्मी जगत और दूरदर्शन के अभिनेता है। अरुण का जन्म 12 जनवरी 1952 को राम नगर उत्तर प्रदेश में हुआ। अरुण ने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा उत्तर प्रदेश से ही पूरी की और उसी दौरान अरुण ने नाटक में अभिनय करना आरम्भ किया। इनके पिता की इच्छा थी कि अरुण सरकारी नौकरी करे। लेकिन अरुण का सपना कुछ ऐसा कर दिखने का था कि सब उसे याद करे और अपने सपनो को सच करने के लिए अरुण मुम्बई आ गये। मुंबई आकर उन्हें बहुत संघर्ष करना पड़ा। शुरुआत में उन्होंने कई पारिवारिक फिल्मो में कम किया उसके बाद उन्हें रामानंद सागर-निर्देशित रामायण में भगवान राम का किरदार मिला। इस किरदार को निभा कर उनका बहुत नाम हुआ लोगो ने उनके अभिनय को बहुत सराहा। और सभी अरुण के अभिनय के फैन हो गये।

रामायण के बाद अरुण गोविल की प्रसिद्धी उन ऊँचाइयों पर पहुँच गई थी, जिसकी शायद उन्होंने भी कभी कल्पना नहीं की होगी। अपने निर्मल मुख, शान्त भाव और मनमोहक अदाकारी से, अरुण गोविल ने सिर्फ शौहरत ही नहीं कमाई, बल्कि उससे कई ज्यादा करोड़ों हिंदुस्तानियों का प्यार और सम्मान भी कमाया हैं। अरुण गोविल 1975 में मुंबई आए तो थे अपने भाई का बिजनेस में हाथ बटाने, पर यह काम उनको कुछ रास नहीं आया। आता भी कैसे, उनकी किस्मत में तो कुछ और ही लिखा था। फिल्म ‘पहेली’ के जरिए, 1977 में उन्हें बड़े पर्दे पर पहला मौका मिल गया। इसके बाद उन्होंने बॉलीवुड की कई फिल्मों में काम किया।

टीवी के श्रीराम ने, राम के किरदार से पहले – ‘सावन को आने दो’, ‘राधा और गीता’, ‘जियो तो ऐसे जियो’, और ‘सांच को आंच नहीं’ जैसी फिल्मों में काम किया हैं। ये फिल्मे अपने समय की हिट फिल्मों में शुमार हैं। इसके अलावा भी वे 80s और 90s की कई फिल्मों में नजर आए हैं। रामायण से पहले अरुण जी ने रामानंद सागर के ही ‘विक्रम बैताल’ में एक किरदार निभाया था, जिसके बाद ही उन्हें रामायण का सबसे अहम किरदार मिला। राम का किरदार निभा पाना इतना आसन नहीं था, और ये हर किसी कलाकार के बस की बात भी नहीं थी। पर अरुण गोविल ने जिस तरह ये किरदार निभाया, लोगों ने मान लिया की यहीं राम हैं। रामायण के बाद तो अरूण गोविल की पहचान एक देवपुरुष की ही बन गई थी। जिसके चलते उन्होंने ‘लव-कुश’, ‘हरीशचंद्र’ और ‘बुद्ध’ जैसे सीरियल में भी कार्य किया हैं।

2010 में अरुण गोविल की नेट वर्थ 38 करोड़ ($5 मिलियन) थी। वे अब काफी समय से अभिनय से दूर हैं, पर टीवी शोस और सोशल मीडिया पर वे काफी नजर आते हैं। पिछले साल ही वे ‘दी कपिल शर्मा शो’ में रामायण के अपने सह – कलाकार, दीपिका चिखलिया(सीता) और सुनील लहरी(लक्ष्मण) के साथ नजर आए थे, जहाँ उन्होंने अपने करियर और रामायण से जुड़े कई मजेदार किस्से साझा किये थे। अरुण गोविल, राजनैतिक तौर पर भारतीय जनता पार्टी से भी जुड़े हुए हैं।

अरुण, मुंबई में अपने खूबसूरत घर में अपने पूरे परिवार के साथ रहते हैं। उनके परिवार में उनकी पत्नी श्रीलेखा उनके दोनों बच्चे (एक बेटा और एक बेटी) बहु और पोता साथ रहते हैं। पिछले साल अरुण गोविल ने अपने पूरे परिवार के साथ रामायण देखते हुए एक तस्वीर साझा की थी, जिसे लोगों ने खूब पसंद किया था। इस फोटो को देखकर, लोगों ने यह भी कहा कि जो संस्कार, अरूण ने राम बनकर रामायण के जरिए सिखाए हैं, उनका वे खुद भी पालन करते हैं।

Saturday, July 10, 2021

अंबानी और अडानी सबसे अमीर क्यों हैं? क्यों नहीं टाटा।

जैसा कि एक आर्मी ऑफिसर द्वारा साझा किया गया। "यह प्रोफेशन के बारे में नहीं है"। मैं दिल्ली में गणतंत्र दिवस परेड में भाग लेने के लिए अस्थाई ड्यूटी पर था। मुझे दिल्ली में दो रात रुकना था, इसलिए मैं होटल TAJ में रहा। मैंने इस होटल को इसकी ख्याति के कारण विशेष रूप से चुना था। शाम को, मैंने रिसेप्शन को काॅल किया और उनसे मेरी ड्रेस को इस्त्री करने का अनुरोध किया। थोड़ी देर बाद रूम सर्विस बॉय मेरी ड्रेस लेने आया। मैंने उसे इस्त्री के लिए अपनी वर्दी सौंप दी। वह मेरी वर्दी को देखकर हैरान हो गया और विनम्रता से पूछा सर, आप आर्मी में हैं। मैंने जवाब दिया हाँ, उसने तुरंत अपना मोबाइल निकाला और मेरे साथ सेल्फी ली और कहा सर, मैं पहली बार किसी आर्मी ऑफिसर को देख रहा हूँ। मैंने उन्हें फिल्मों में ही देखा है। उन्होंने तुरंत अपने पैरों को स्टेप्ड किया और सलामी दी। उन्होंने कहा जय हिंद सर और चला गया ।

कुछ देर बाद किसी ने दरवाजा खटखटाया। मैंने दरवाजा खोला और अपने को विस्मित करने के लिए दो खूबसूरत लड़कियाँ हाथ में अपने सेलफोन के साथ खड़ी थीं। उनमें से एक ने कहा सर, हम एक सेल्फी के लिए अनुरोध करते हैं। मुझे नहीं पता था कि कैसे प्रतिक्रिया दूं। मैं एक मूर्ख की तरह मुस्कुराया। मैंने उन्हें मिनी बार से चॉकलेट दी, जैसे कि वे बच्चे हों। लेकिन आप जानते हैं, घबराहट आपके लिए क्या कर सकती है। यह विचारों के तार्किक प्रवाह को रोक देता है।

लगभग 09 बजे, मुझे रिसेप्शन से एक फोन आया, मुझसे पूछा गया कि, मैं रात के खाने के लिए नीचे आ सकता हूं क्योंकि यह कमरे में, अत्यंत विनम्र तरीके से परोसा जा सकता है। मैं रात का खाना खाने के लिए नीचे गया, तब मैंने उस जगह की असली खूबसूरती पर ध्यान दिया, आश्चर्यजनक रूप से गजब का इंटीरियर। कश्मीर के जंगलों से उतरते हुए, मेरे लिए माहौल बहुत असहज था। जिस क्षण मैंने मुख्य एरीना में प्रवेश किया, मेरे आश्चर्य का ठिकाना नही कि पूरा स्टाफ वहीं खड़ा था।

कर्मचारियों ने मुझसे प्रबंधक के साथ संपर्क किया, जो आकस्मिक रूप से अग्रणी था। मैनेजर ने कहा- हमारे होटल में आपका स्वागत है सर, हमारे होटल में आपका होना बहुत खुशी की बात है, मुझे खूबसूरत गुलदस्ता सौंप दिया। मैनेजर ने खुद मेरे साथ डिनर किया।

अगले दिन।
मेरे आश्चर्य के लिए, मुझे होटल से "राष्ट्रपति भवन" के लिए एक बीएमडब्ल्यू कार प्रदान की गई थी। सच कहूं, तो हम इस तरह के वीआईपी ट्रीटमेंट के अभ्यस्त नहीं हैं। हम अपनी जिप्सी में अधिक आरामदायक हैं।

चेक आउट का दिन।
मैं रिसेप्शन पर गया, कार्ड सौंपा।

रिसेप्शनिस्ट: आपके रहने के लिए धन्यवाद सर। आपका प्रवास कैसा था?

मैं : रुकना बहुत आराम था। मेरा बिल प्लीज।

रिसेप्शनिस्ट : आपके ठहरने को हमारे होटल द्वारा प्रायोजित किया गया है। आप हमारे राष्ट्र की रक्षा करें। तो यह आपके लिए कृतज्ञता का हमारा छोटा सा टोकन है। हम आपके संरक्षण का सम्मान करते हैं।

* मैं सोचता हूँ कि मैं यह नहीं सोच रहा था कि चलो पैसे की बचत हो गयी जिससे मुझे अच्छा महसूस हुआ हो, लेकिन यह उन सम्मानों के बारे में था जो उन्होंने "ओलिव ब्लैक" के प्रति दिखाए थे। मुझे इस कृतज्ञता से गहरा स्पर्श हुआ, हम किस महान राष्ट्र में रहते हैं।

उस घटना के बाद, मैंने TAJ समूह के होटलों के सीईओ को लिखा। मेरा मकसद यह नहीं कि घटना को बयान करना और TAJ दिल्ली के प्रबंधक द्वारा दिखाए गए सौजन्य की सराहना करना है। मेरे आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा, मुझे सीईओ से एक रिटर्न मेल मिला, जिसमें कहा गया था कि TAJ होटलों के समूह ने देश भर के TAJ होटलों में अपने ठहरने के लिए सेना के अधिकारियों को छूट देने का निर्णय लिया है। वाह, सैनिकों को श्रद्धांजलि और सम्मान देने का एक शानदार तरीका है।

टाटा मे सबसे अच्छा काम नैतिकता का वातावरण है। इसलिए वे अन्य कॉर्पोरेट्स के विपरीत सबसे अमीर नहीं हैं। तो फिर अगर आपके पास नैतिकता के बिना पैसा है तो आप समाज के लिए अच्छे नहीं हैं। रतन टाटा (रत्न) जिंदाबाद। आप हैं सही मायने में भारत रत्न।

Wednesday, May 19, 2021

आज ही के दिन जन्मे अखंड भारत का सपना देखने वाले महान देशभक्त नाथुराम गोडसे की अंतिम इच्छा आज भी अधूरी है।

जब सिंधु नदी भारत में हो, अखंड भारत बन जाएं, तब उसी सिंधु में मेरी अस्थियां विसर्जित हो। फाँसी से एक दिन पहले लिखी वसीयत के अनुसार उनकी अंतिम इच्छा अभी अधूरी। अखंड भारत में सिंधु नदी में अस्थियां विसर्जित करने की अंतिम इच्छा थी नाथूराम गोडसे की। क्या आपको पता है मरने के बावजूद आज तक गोडसे की अस्थियों (Asthi Kalash) को नदी में प्रवाहित नहीं किया गया है, बल्कि इसे एक चांदी के डिब्बे में भरकर सुरक्षित रखा गया है। यहां अस्थ्यिों के अलावा गोडसे के कुछ कपड़े और हाथ से लिखे नोट्स भी रखे हुए हैं। नाथूराम गोडसे के परिजनों की ओर से दिए गए एक इंटरव्यू के तहत फांसी के बाद गोडसे का शव उन्हें नहीं दिया गया था। सरकार ने खुद घग्घर नदी के किनारे उनका अंतिम संस्कार कर दिया था। इसके बाद उनकी अस्थियों को एक डिब्बे में भरकर उन्हें दिया गया था। गोडसे की भतीजी हिमानी सावरकर ने एक इंटरव्यू के बताया था कि नाथूराम गोडसे की अस्थियों को नदी में प्रवाहित न करने के पीछे गोडसे की अंतिम इच्छा (Last Wish) रही है। दरअसल मरने से पहले उन्होंने कहा था कि उनकी अस्थियों को तब तक संभाल कर रखा जाए और जब तक कि सिंधु नदी स्वतंत्र भारत में समाहित न हो जाए। इसके बाद ही उनकी अस्थियों को सिंधु नदी में प्रवाहित किया जाए। उनके इस सपने के सच होने की आस में ही परिवार ने उनकी अस्थियों को संभालकर रखा है। गोडसे की अंतिम इच्छा आज भी अधूरी है, जिसमें उन्होंने अपनी राख सिंधु नदी में विर्सजित करने की बात कही थी। क्या लिखा है वसीयत मेंं।

1:- यह वसीयत (पत्र) गोडसे ने 14-11-1949 यानी अपनी फांसी से ठीक एक दिन पहले अपने छोटे भैया दत्तात्रेय विनायक गोडसे के नाम जेल से लिखा था।
2:- उनके भाई गोपाल गोडसे ने इसे अपनी किताब ‘गांधी, वध और मैं’ ने इसे प्रकाशित किया है।
3:- इस पत्र में नाथूराम गोडसे ने अपने बीमा के पैसों को भाई दत्तात्रेय गोडसे, उनकी पत्नी और उनके दूसरे भाई की पत्नी को देने को कहा था।
4:- साथ ही, अंतिम संस्कार का सारा अधिकार भी दत्तात्रेय गोडसे को दिया था।
5:- गोडसे ने अपनी अस्थियों को सिंधु नदी में प्रवाहित करने की बात भी लिखी है। वसीयत में नाथूराम गोडसे का नाम सबसे नीचे लिखा हुआ है।

यहां आज भी रखी है गोडसे की अस्थियां।
1:- पुणे के जिस इमारत में गोडसे की अस्थियां रखी हैं वहां एक रियल एस्टेट, वकालत और बीमा क्षेत्र से जुड़े ऑफिस है।

2:- शीशे के एक केस में गोडसे के कुछ कपड़े और हाथ से लिखे नोट्स भी संभालकर रखे गए हैं।

3:- गोडसे से जुड़ी यह निशानियां शिवाजी नगर इलाके में बने जिस कमरे में रखी हैं वह अजिंक्य डेवलपर्स का दफ्तर है।

4:- इसके मालिक और नाथूराम गोडसे के भाई गोपाल गोडसे के पोते अजिंक्य गोडसे ने कहा “इन अस्थियों का विसर्जन सिंधु नदी में ही होगा और तभी होगा जब उनका अखंड भारत का सपना पूरा हो जाएगा।”

5:- “मेरे दादाजी की अंतिम इच्छा यही थी, इसमें कई पीढ़ियां लग सकती है, लेकिन मुझे उम्मीद है कि वह एक दिन जरुर पूरी होगी।

6:- शनिवार पेठ के इसी घर में कभी नाथूराम गोडसे रहा करते थे। अब यह मकान बेहद जर्जर हो चुका है। इस घर में इन दिनों कई छोटी-छोटी प्रिटिंग प्रेस हैं।

नाथूराम गोडसे ने अपनी अंतिम इच्छा में कहा था कि उनकी अस्थियों को तब तक संभाल कर रखा जाए जब तक सिंधु नदी स्वतंत्र भारत में समाहित न हो जाए और फिर से एक बार अखंड भारत का निर्माण न हो जाए। जब ऐसा हो जाए तभी मेरी अस्थियों को सिंधु नदी में प्रवाहित करा जाए।

आज ही जन्म लिया था अखंड भारत" का सपना देखने वाले और गांधी को मारने वाले “नाथूराम गोड्से” जिनकी अंतिम इच्छा आज भी अधूरी है।

75 साल से उसको ही नफरत का प्रतीक घोषित किये रहे। वो नाम जो भारत के विभाजन से दुखी था, वो नाम जो हमेशा अखण्ड भारत का स्वप्न देखता रहा , यहां तक कि मृत्यु के बाद भी। ये बात हो रही है नाथूराम गोडसे की जिनका जन्म आज ही के दिन अर्थात 19 मई को हुआ था। कम लोगों को पता है कि कश्मीर के कुख्यात आतंकियों तक के शव उनके परिवार को दे दिया जाता है जिसमे सेना विरोधी, भारत विरोधी नारे लगते हैं और आतंकी उन्हें बन्दूकों की सलामी देते हैं।

लेकिन नाथूराम गोडसे का शव इन्ही तथाकथित मानवता के ठेकेदारों ने उनके घर वालों को नही दिया था बल्कि तत्कालीन सरकार के आदेश पर जेल के अधिकारियों ने घग्घर नदी के किनारे पर उन्हें जला दिया था। जेल में नाथूराम और आप्टे को बी कैटेगरी में रखा गया था। नाथूराम कॉफी पीने और जासूसी किताबें पढ़ने का शौकीन थे। 15 नवंबर 1949 को गोडसे को फांसी दिए जाने से एक दिन पहले परिजन उससे मिलने अंबाला जेल गए थे। गोडसे की भतीजी और गोपाल गोडसे की पुत्री हिमानी सावरकर ने एक इंटरव्यू में बताया था कि वह फांसी से एक दिन पहले अपनी मां के साथ उनसे मिलने अंबाला जेल गई थी।

उस समय वह ढाई साल की थी। गिरफ़्तार होने के बाद गोडसे ने गांधी के पुत्र देवदास गांधी (राजमोहन गांधी के पिता) को तब पहचान लिया था जब वे गोडसे से मिलने थाने पहुंचे थे। इस मुलाकात का जिक्र नाथूराम के भाई और सह-अभियुक्त गोपाल गोडसे ने अपनी किताब गांधी वध क्यों, में किया है। गोपल गोडसे ने अपनी किताब में लिखा है, देवदास शायद इस उम्मीद में आए होंगे कि उन्हें कोई वीभत्स चेहरे वाला, गांधी के खून का प्यासा कातिल नजर आएगा, लेकिन नाथूराम सहज और सौम्य थे। उनका आत्मविश्वास बना हुआ था। देवदास ने जैसा सोचा होगा, उससे एकदम उलट थे नाथूराम जिनके चेहरे पर तब भी थी सौम्यता और शांति के साथ संतोष के भाव।

नाथूराम ने देवदास गांधी से कहा, “मैं नाथूराम विनायक गोडसे हूं। हिंदी अख़बार हिंदू राष्ट्र का संपादक। मैं भी वहां था (जहां गांधी की हत्या हुई)। आज तुमने अपने पिता को खोया है। मेरी वजह से तुम्हें दुख पहुंचा है। तुम पर और तुम्हारे परिवार को जो दुख पहुंचा है, इसका मुझे भी बड़ा दुख है। कृप्या मेरा यक़ीन करो, मैंने यह काम किसी व्यक्तिगत रंजिश के चलते नहीं किया है, ना तो मुझे तुमसे कोई द्वेष है और ना ही कोई ख़राब भाव। अदालत पर आज सवाल उठाने वालों के समय मे अदालत में नाथूराम गोडसे के दिये बयान पर प्रतिबंध लगा दिया गया जबकि इन्ही लोगों ने मुम्बई ब्लास्ट के दोषी याकूब के एक एक बयान यहां तक कि नहाने धोने तक कि खबर को जनता के बीच भावनात्मक रूप से पहुचाया।

गोपाल गोडसे ने अपनी पुस्तक के अनुच्छेद में नाथूराम की वसीयत का जिक्र किया है। जिसकी अंतिम पंक्ति है- “अगर सरकार अदालत में दिए मेरे बयान पर से पाबंदी हटा लेती है, ऐसा जब भी हो, मैं तुम्हें उसे प्रकाशित करने के लिए "अधिकृत करता हूं”। नाथूराम गोडसे के बयानों में ये भी था कि– मेरा पहला दायित्व हिंदुत्व और हिंदुओं के लिए है, एक देशभक्त और विश्व नागरिक होने के नाते। 30 करोड़ हिंदुओं की स्वतंत्रता और हितों की रक्षा अपने आप पूरे भारत की रक्षा होगी, जहां दुनिया का प्रत्येक पांचवां शख्स रहता है। इस सोच ने मुझे हिंदू संगठन की विचारधारा और कार्यक्रम के नज़दीक किया।

मेरे विचार से यही विचारधारा हिंदुस्तान को आज़ादी दिला सकती है और उसे कायम रख सकती है”। आगे गोड्से ने गांधी की कार्यशैली और एकतरफा तुष्टिकरण पर सवाल उठाते हुए लिखा कि– "32 साल तक विचारों में उत्तेजना भरने वाले गांधी ने जब मुस्लिमों के पक्ष में अपना अंतिम उपवास रखा तो मैं इस नतीजे पर पहुंच गया कि गांधी के अस्तित्व को तुरंत खत्म करना होगा, जब कांग्रेस के दिग्गज नेता, गांधी की सहमति से देश के बंटवारे का फ़ैसला कर रहे थे, उस देश का जिसे हम पूजते रहे हैं, मैं भीषण ग़ुस्से से भर रहा था। व्यक्तिगत तौर पर किसी के प्रति मेरी कोई दुर्भावना नहीं है लेकिन मैं कहना चाहता हूं कि मैं मौजूदा सरकार का सम्मान नहीं करता, क्योंकि उनकी नीतियां मुस्लिमों के पक्ष में थीं। लेकिन उसी वक्त मैं ये साफ देख रहा हूं कि ये नीतियां केवल गांधी की मौजूदगी के चलते थीं”।

30 जनवरी 1948 को नाथूराम गोडसे दिल्ली के बिड़ला भवन में प्रार्थना-सभा के समय से 40 मिनट पहले पहुँच गये। जैसे ही गान्धी प्रार्थना-सभा के लिये परिसर में दाखिल हुए, नाथूराम ने पहले उन्हें हाथ जोड़कर प्रणाम किया उसके बाद बिना कोई बिलम्ब किये अपनी पिस्तौल से तीन गोलियाँ मार कर गान्धी का अन्त कर दिया। गोडसे ने उसके बाद भागने का कोई प्रयास नहीं किया। मुक़दमे के लिए नाथूराम गोडसे को सर्वप्रथम पंजाब उच्च न्यायालय में पेश किया गया। एक वर्ष से अधिक चले मुकद्दमे के बाद 8 नवम्बर 1949 को उसे मृत्युदंड प्रदान किया गया। उनका एक वाक्य ये भी था – "जिस दिन सच्चा इतिहास लिखा जाएगा उस दिन मेरे कार्यों को सराहा जाएगा। और जब पाकिस्तान में बहने वाली सिंधु नदी भारत के झंडे के नीचे बहने लगे , मेरी अस्थियां तब उसमें प्रवाहित करना। भले ही इसके लिए एक दो पीढ़ी की भी प्रतीक्षा करनी पड़े तो कर लेना। नाथूराम गोडसे की अस्थियां आज भी नागपुर में उसी प्रतीक्षा में हैं।

Monday, May 17, 2021

आज जाने भगवान कृष्ण के अनन्य भक्त सूरदाज जी की जयंती, पर उनके द्वारा रचित भक्तिमय दोहे।

आज प्रसिद्ध कवि, लेखक और भगवान कृष्ण के भक्त सूरदास जी की जयंती है। हिन्दू कैलेंडर के अनुसार, वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को भगवान श्रीकृष्ण भक्त सूरदास जी का जन्म मथुरा के रुनकता गांव में हुआ था। वे जन्म से ही दृष्टिहीन थे और भगवान श्रीकृष्ण में उनकी अगाध आस्था थी। उन्होंने जीवनपर्यंत भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति की और ब्रज भाषा में कृष्ण की लीलाओं का वर्णन किया। सूरदास नेत्रहीन थे लेकिन ऐसे मान्यता है कि उनकी अनन्य भक्ति से प्रसन्न होकर स्वयं मुरलीधर भगवान कृष्ण ने उन्हें दिव्य-दृष्टि का आशीर्वाद दिया था। यही कारण है कि आंखें न होने के बावजूद सूरदास ने इतने सुन्दर और मधुर दोहों की रचना की। सूरदास जी ने ब्रज भाषा में कृष्ण की लीलाओं को बेहद सजीव और सुन्दर तरीके से उकेरा है। सूर की रचनाओं में भक्ति रस और श्रृंगार रस का सुंदर समायोजन है। आज हम आपके लिए लेकर आए हैं सूरदास के कुछ दोहे जिनमें भगवान श्री कृष्ण की लीलाओं का सजीव चित्रण है।

मैया मोरी मैं नही माखन खायौ।
भोर भयो गैयन के पाछे ,मधुबन मोहि पठायो।
चार पहर बंसीबट भटक्यो , साँझ परे घर आयो।।
मैं बालक बहियन को छोटो ,छीको किहि बिधि पायो।
ग्वाल बाल सब बैर पड़े है ,बरबस मुख लपटायो।।
तू जननी मन की अति भोरी इनके कहें पतिआयो।
जिय तेरे कछु भेद उपजि है ,जानि परायो जायो।।
यह लै अपनी लकुटी कमरिया ,बहुतहिं नाच नचायों।
सूरदास तब बिहँसि जसोदा लै उर कंठ लगायो।।

निरगुन कौन देस को वासी।
मधुकर किह समुझाई सौह दै, बूझति सांची न हांसी।।
को है जनक ,कौन है जननि ,कौन नारि कौन दासी।
कैसे बरन भेष है कैसो ,किहं रस में अभिलासी।।
पावैगो पुनि कियौ आपनो, जा रे करेगी गांसी।
सुनत मौन हवै रह्यौ बावरों, सुर सबै मति नासी।।

बुझत स्याम कौन तू गोरी। कहां रहति काकी है बेटी देखी नही कहूं ब्रज खोरी।।
काहे को हम ब्रजतन आवति खेलति रहहि आपनी पौरी।
सुनत रहति स्त्रवननि नंद ढोटा करत फिरत माखन दधि चोरी।।
तुम्हरो कहा चोरी हम लैहैं खेलन चलौ संग मिलि
जोरी।
सूरदास प्रभु रसिक सिरोमनि बातनि भूरइ राधिका भोरी।।

मैया मोहि दाऊ बहुत खिजायौ।
मोसो कहत मोल को लीन्हो ,तू जसमति कब जायौ?
कहा करौ इही के मारे खेलन हौ नही जात।
पुनि -पुनि कहत कौन है माता ,को है तेरौ तात?
गोरे नंद जसोदा गोरी तू कत श्यामल गात।
चुटकी दै दै ग्वाल नचावत हंसत सबै मुसकात।
तू मोहि को मारन सीखी दाउहि कबहु न खीजै।।
मोहन मुख रिस की ये बातै ,जसुमति सुनि सुनि रीझै।
सुनहु कान्ह बलभद्र चबाई ,जनमत ही कौ धूत।
सूर स्याम मोहै गोधन की सौ,हौ माता थो पूत।।

जसोदा हरि पालनै झुलावै।
हलरावै दुलरावै मल्हावै जोई सोई कछु गावै।।
मेरे लाल को आउ निंदरिया कहे न आनि सुवावै।
तू काहै नहि बेगहि आवै तोको कान्ह बुलावै।।
कबहुँ पलक हरि मुंदी लेत है कबहु अधर फरकावै।
सोवत जानि मौन ह्वै कै रहि करि करि सैन बतावै।।
इही अंतर अकुलाई उठे हरि जसुमति मधुरैं गावै।
जो सुख सुर अमर मुनि दुर्लभ सो नंद भामिनि पावै।।

अबिगत गति कछु कहत न आवै।
ज्यो गूँगों मीठे फल की रास अंतर्गत ही भावै।।
परम स्वादु सबहीं जु निरंतर अमित तोष उपजावै।
मन बानी को अगम अगोचर सो जाने जो पावै।।
रूप रेख मून जाति जुगति बिनु निरालंब मन चक्रत धावै।
सब बिधि अगम बिचारहि,तांतों सुर सगुन लीला पद गावै।।

Friday, May 14, 2021

अमिताभ का 1 करोड़ का दान दिखाने वाला राष्ट्रीय मिडिया 10 करोड़ के दान को क्यों भुल गया। क्योंकि TRP ज्यादा जरूरी है।

सैनिक कल्याण बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष प्रेमसिंह बाजौर ने महाराणा प्रताप की जयंती पर कोरोना से लड़ाई के लिए दस करोड़ रुपए दान दिए, वो आक्सीजन प्लांट लगाने में पूरे राजस्थान में सरकार का सहयोग भी कर रहे है।

बाजौर साहब ने प्रदेश में शहीदों के सम्मान के लिए भी विशेष कार्यक्रम चला रखा है जिसके अंतर्गत उन्होंने 28 करोड़ रूपये की धनराशि से उनके स्मारक तथा प्रतिमाएं स्थापित की है। इसके अलावा जरूरतमंद को भी मदद करने में पीछे नहीं रहते।

राजस्थान के जोधपुर जिले में सेतरावा मेगा हाइवे पर गांव भूंगरा तहसील शेरगढ़ में वीर शहीद वेलफेयर समिति राजस्थान व शहीद परिवारों ने मिलकर राजस्थान के भामाशाह माननीय प्रेमसिंह जी बाजोर (पूर्व अध्यक्ष, राजस्थान सैनिक कल्याण बोर्ड) की जीती जागती प्रतिमा लगवाई है। इस प्रतिमा का अनावरण केंद्रीय मंत्री श्री गजेन्द्रसिंह शेखावत व स्वयं श्री प्रेमसिंह जी बाजोर ने किया था।

बाजोर साहब ने"शहीद सम्मान यात्रा के तहत पिछले 18 माह में लगभग एक लाख किमी की यात्रा कर 1600 शहीद परिवारों से मिलकर उनके हालचाल पूछे और उनकी हरसंभव मदद की तथा 1170 शहीदों की प्रतिमा व स्मारक बनवाए जिनकी लागत 28 करोड़ के लगभग आई और वो राशि खुद की निजी आय से व्यय की। इसी कारण इनके सम्मान में वीर शहीद वेलफेयर समिति व शहीद परिवारों ने मिलकर इनकी जीती जागती प्रतिमा बनवाई। 

ये राम मंदिर निर्माण हेतु भी एक करोड़ का दान दे चुके हैं।

Friday, February 19, 2021

मुगलों के छक्के छुड़ाने वाले वीर योद्धा छत्रपति शिवाजी महाराज के जयंती पर जाने उनके क्रांतिकारी विचार।

वीर सपूत छत्रपति शिवाजी महाराज भारत के एक महान योद्धा और कुशल प्रशासक थे। उन्होंने अपने पराक्रम, शौर्य और कुशल युद्ध नीति के बल पर मुगलों के छक्के छुड़ा दिए थे। छत्रपति शिवाजी महाराज का जन्म 19 फरवरी 1630 में महाराष्ट्र के शिवनेरी दुर्ग में हुआ था। उन्होंने 1674 में मराठा साम्राज्य की स्थापना की थी। आइए आज इस खास मौके पर जानते हैं शिवाजी महाराज के कुछ अनमोल विचार।

स्वतंत्रता वह वरदान है, जिसे पाने का अधिकारी हर किसी को है।
-छत्रपति शिवाजी महाराज

जब इरादे पक्के हों, तो पहाड़ भी एक मिट्टी का ढेर लगता है।
-छत्रपति शिवाजी महाराज

शत्रु को कमजोर समझना या बहुत अधिक बलवान समझना दोनों ही स्थिति घातक है।
- छत्रपति शिवाजी महाराज

एक छोटा कदम छोटे लक्ष्य पर,बाद मे विशाल लक्ष्य भी हासिल करा देता है।
-छत्रपति शिवाजी महाराज

नारी के सभी अधिकारों में, सबसे महान अधिकार माँ बनने का है।
-छत्रपति शिवाजी महाराज

शत्रु को कमजोर न समझो, तो अत्यधिक बलिष्ठ समझ कर डरो भी मत।
-छत्रपति शिवाजी महाराज

Saturday, January 23, 2021

Netaji Subhash Chandra Bose 125th Jayanti : हर भारतीय के हृदय में बसने वाले एक कालजयी नेता सुभाषचंद्र बोस की जयंती पर गृहमंत्री अमित शाह का लेख।

Netaji Subhash Chandra Bose 125th Jayanti : आज सुभाषचंद्र बोस की 125वीं जन्म जयंती के अवसर पर मैं उस वीर को प्रणाम करता हूं, जिन्होंने देशहित में अपने जीवन का सर्वस्व अर्पित करके, रक्त के कतरे-कतरे से इस देश को सिंचित किया हैै। मैं प्रणाम करता हूं, बंगजननी के उस गौरवशाली संतान को, जिसने समस्त भारत को अपना नेतृत्व दिया है, देश को स्वाधीन कराने के लिए उन्होंने पूरी दुनिया का भ्रमण कियाा। जिनका जीवन कोलकाता में शुरू हुआ व कालांतर में वह भारतीय राजनीति के शिखर पर पहुंचे व उसके बाद बर्लिन से शुरू करके सिंगापुर तक भारत माता के संतानों को लेकर उन्होंने देशहित में वृहद अभियान चलाया। उनका जीवन दर्शन भारत के युवा समाज के लिए आदर्श है, उनके जीवन युवा समाज के तन-मन को राष्ट्रवादी भावना से भर देता है।

उस समय भारत मे सर्वाधिक जरूरत थी एक सटीक योजना लेकर देश को आगे ले जाने की, इस विचार के आधुनिक भारत के सर्वप्रथम प्रस्तावक थे सुभाषचंद्र। 1938 के फरवरी महीने में हरिपुर कांग्रेस में उन्होंने राष्ट्रीय योजना का मुद्दा उठाया था। दिसंबर 1936 में, पहली राष्ट्रीय योजना समिति का गठन किया गया था। उसी वर्ष सुभाष ने वैज्ञानिक मेघनाद साहा को एक साक्षात्कार में कहा, मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि यदि हमारी राष्ट्रीय सरकार बनती है, तो हमारा पहला काम राष्ट्रीय योजना आयोग का गठन करना होगा। स्वातंत्र्योत्तर योजना आयोग उनकी विरासत है।

यह विचार सुभाषचंद्र के दिमाग में अपने छात्र जीवन में आया। 1921 में उन्होंने देशबंधु चित्तरंजन दास को एक पत्र लिखा था, जिसमें उन्होंने कहा था कि वह सरकारी नौकरी नहीं चाहते हैं, अपितु राजनीति में शामिल होकर अपना योगदान करना चाहते हैं. इसके साथ ही उन्होंने संक्षिप्त, लेकिन स्पष्ट रूप से लिखा कि वह कांग्रेस के कार्यों में योजनाबद्ध कदम देखना चाहते हैं। आज के युवाओं के लिए राष्ट्र निर्माण के कार्य में सुभाषचंद्र के ये विचार आज भी प्रासंगिक हैं।

आजकल बहिरागत बोलने की बात शुरू हुई है। बहिरागत का मतलब अब तक लोग किसी दूर देश के व्यक्ति अथवा किसी घुसपैठिया को समझते थे। लेकिन देश के भिन्न अंश के लोगों को बहिरागत अथवा बाहरी बोलने की संकीर्ण क्षेत्रवाद सुभाषचंद्र के राज्य में शुरू करना दुर्भाग्यपूर्ण है। जिस राज्य ने भारत के लोगों में राष्ट्रवाद के विचार को पुनर्जीवित किया है, उसे 'वंदे मातरम' और जन-गण-मन राष्ट्र गान दिया, उस राज्य में ऐसी सोच बहुत दुखद व खतरनाक है। इस राज्य के लोगों के मुकुट में गहना, सुभाषचंद्र को तत्कालीन राष्ट्र की सबसे बड़ी संगठन इंडियन नेशनल कांग्रेस द्वारा अपना अध्यक्ष चुना गया था। लेकिन सुभाषचंद्र उनसे एक कदम आगे थे और अंतरराष्ट्रीय राजनीति से परिचित थे।

कोलकातासुभाष चंद्र के मन-मस्तिष्क में बसे थे विवेकानंद, सिंगापुर में रामकृष्ण मिशन से मंगवायी थी 108 रुद्राक्षों की जपमाला

अपने छात्र जीवन में मैंने कई सुभाष भक्त देखे. एक हावड़ा के अध्यापक असित बंद्योपाध्याय थे। एक अन्य हावड़ा के ही शंकरी प्रसाद बसु। शंकरी प्रसाद कहते थे कि स्वामी विवेकानंद को सुभाषचंद्र ने अपने मन-मस्तिष्क में धारण किया था। उसकी ही परिणति नेताजी के रूप में हुई।


बंगाल क्लब में एक बार सेमिनार में गया था। वहां शरत बसु की पुत्रवधु कृष्णा बसु भी थीं। उन्होंने कहा कि जैसे छोटे भाई थे, वैसे बड़े भाई, वैसी भाभी। देश के लड़कों ने उनके संबंध में आज तक नहीं जाना। मैंने कहा कि उनके साथ भतीजे शिशिर बसु को भी शामिल किया जा सकता है, जिन्होंने अपने सारे डर को किनारे रख कर देर रात को एल्गिन रोड से गाड़ी चलाकर चाचा को गोमो रेलवे स्टेशन पहुंचाया था। इसे 'महानिष्क्रमण' कहा जाता है। यह दुखद है कि इस साहसिक महानिष्क्रमण की बात नहीं सुनायी देती। कृष्णा दी नेताजी के कहानी संग्रह की बात बताती हैं। उन्होंने वह विख्यात गाड़ी भी दिखायी, जिसपर 1941 में 17 जनवरी की रात डेढ़ बजे सुभाष चंद्र एल्गिन रोड से सवार होकर पुलिस की आंखों में धूल झोंककर कोलकाता से रवाना हुए थे।

उन्होंने ही बताया था कि देर रात एल्गिन रोड का घर छोड़ने से पहले नेताजी ने भतीजी इला को कहा था कि घर की लाइट को मत बुझाना। कम से कम और एक घंटा लाइट जलाये रखना। इससे निगरानी कर रही पुलिस को लगेगा कि सुभाष बोस अभी भी काम कर रहे हैं। आज भी सोचता हूं कि हमने उन भारतीय पुलिसकर्मियों की तलाश क्यों नहीं की, जो उस रात नेताजी की निगरानी कर रहे थे। क्या वह सजग नहीं थे? या फिर देखकर भी नहीं देखे थे। उन पुलिसकर्मियों के परिजन आज कहां हैं?

नेताजी कुछ भी गुप्त नहीं रखते थे
अमेरिका में रहने वाले स्वामी चेतनानंद कहते थे कि नेताजी इतने सरल थे कि कुछ भी गुप्त नहीं रखते थे। इस वजह से कई साधु उनके सामने जुबान नहीं खोलते थे. कोलकाता में जापानी ऑफिस में कार्यरत एक ऑफिसर ने चेतनानंद को बताया था कि वह आजाद हिंद फौज में नेताजी के बॉडीगार्ड थे। एक दिन नेताजी ने सिंगापुर स्थित रामकृष्ण मिशन के आश्रम से एक जपमाला खरीद कर लाने को कहा।

भारी बारिश में भी लोग सुनते रहे नेताजी का भाषण
म्यूनिसिपल ऑफिस के सामने के मैदान में नेताजी ने करीब डेढ़ घंटे तक भाषण दिया। भाषण के बीच में भारी बारिश शुरू हो गयी। लेकिन, लोग टस से मस नहीं हुए थे। कृष्णा दी ने कहा कि उनके ससुर सुभाष चंद्र के बड़े भाई शरतचंद्र बसु ने पहले जो करीब का घर किराये पर लिया था, आज वह नहीं है।

वुडबर्न पार्क में रहते थे सुभाष चंद्र बोस
इसके बाद इसी मोहल्ले में दूसरा बसु भवन 1 नंबर वुडबर्न पार्क हुआ। वहां भी सुभाष चंद्र रहते थे। उस घर की बात बताते हुए कृष्णा दी ने मुझे बताया कि इस घर को कितनों ने आलोकित किया है, जिनमें महात्मा गांधी, मोतीलाल नेहरू, जवाहरलाल, उनकी बेटी इंदिरा गांधी, सरदार वल्लभ भाई पटेल, सरोजिनी नायडू, अबुल कलाम आजाद शामिल हैं। इसी घर में महात्मा गांधी से मिलने के लिए रवींद्रनाथ टैगोर दो बार आये थे। तब लिफ्ट नहीं थी। उन्हें चेयर पर बैठाकर दूसरी मंजिल पर ले जाने वालों में शरतचंद्र, जवाहरलाल व महादेव देसाई के अलावा सुभाष चंद्र बोस भी थे। रवींद्रनाथ को चप्पल पहनाने वाले महात्मा गांधी थे। एल्गिन रोड से आज भी जब जाता हूं, तो मन कहता है कि 'हे पथिक रुक जाओ, बंगाल में जब भी जन्म हो, तो कुछ क्षण के लिए स्मृतियों से भरे इस मंदिर में जरूर ठहरो।

Sunday, November 29, 2020

रतन टाटा के जीवन की तीन घटनाएं जो उन्हे और महान बनती हैं।

आज देश के अनमोल रत्न रतन जी टाटा पर पूरे देश को गर्व है। उसके जीवन की कुछ रोचक घटनाएं जो उनके प्रति देश के युवाओं के दिल में प्रेम और सम्मान और बढ़ा देता है।

1978 की हकीकत
एक बार जे आर डी टाटा फ्लाइट में बैठे थे उसके बगल में दिलीप कुमार बैठे थे। दिलीप कुमार से रहा नहीं गया उन्होंने अपना परिचय दिया मैं नामी फिल्मस्टार हूं आप मेरी फिल्म देखी होगी। जे आर डी टाटा ने जवाब दिया नहीं, कौन दिलीप कुमार? उस वक़्त दिलीप कुमार की बेजती हो गई। सभी अखबार में खबर आई।

एक बार अमिताभ के बगल की सीट पर फ्लाइट में सफर कर रहे थे अमिताभ ने पूछा, आप फिल्म देखते हैं, इन्होंने कहा समय नहीं मिलता, अमिताभ ने बताया कि वह फिल्म स्टार है। इन्होंने कहा बहुत खुशी हुई आपसे मिलकर। अमिताभ बहुत प्रसन्न थे। अपना फिल्मस्टार वाला एटिट्यूड दिखा रहे थे। जब एयरपोर्ट पर उतरे तो अमिताभ ने पूछा कि आपने परिचय नहीं दिया तो इन्होंने कहा टाटा ग्रुप ऑफ इंडस्ट्री के चेयरमैन हूं  रतन टाटा नाम है। अमिताभ को काटो तो खून नही।

दूसरी घटना मुंबई हमले की बाद की है। पाकिस्तान ने टाटा सूमो की हजारों गाड़ियों का आर्डर दिए था। जो मुंबई हमले के बाद टाटा ने डिलीवरी को कैंसिल कर दी व ये कहकर गाड़ियां देने से मना कर दिया की मैं उस देश को गाड़ी नहीं दे सकता जो गाड़ी मेरे देश के खिलाफ इस्तेमाल करे।

तीसरी घटना मुंबई हमले के बाद की है मुंबई ताज होटल की मॉडिफिकेशन का था पाकिस्तान के एक पार्टी इस काम के लिए इनसे मिलने आई। इन्होंने मिलने से मना कर दिया। पार्टी ने दिल्ली जाकर आनन्द शर्मा से सिफारिश करवाई। शर्मा ने पार्टी की तारीफ करते हुए कहा इन्हें काम दीजिए ये अच्छा काम करेंगे। रतन टाटा का जवाब था- You may be shameless,I am not (आप बेशर्म हो सकते हैं, मैं नहीं!)

प्रधानमंत्री के आग्रह पर वो व्यक्ति दीया लिये खड़ा है
यही वो व्यक्ति है जिन्होंने कोरोना फंड में 1500 करोड़ दान किए हैं और कहा है जरूरत पड़ने पर अपनी पूरी संपत्ति देश के लिए दे सकता है। ऐसा देश भक्त महान पुरुष, कर्मयोद्धा को करबद्ध नमन है। ये है हमारे देश के असली हीरो। आज के युवा को इन्हें अपना आदर्श मानना चाहिए और इन पर गौरव करना चाहिए , न कि टुच्चे नेताओं को हीरो मानकर उनके पीछे चक्कर लगाना चाहिए।

मेरे नजर में भारत रत्न का हकदार ये असली रत्न, ये कर्मयोद्धा है जिसने भारत की औद्योगिक क्रांति का नेतृत्व किया और उत्पादों की गुणवत्ता के सदैव मानक स्थापित किए।

Saturday, September 26, 2020

कभी कोई युद्ध ना हारने वाला अकबर के सेनापति बहलोल खान को भेजा था महाराणा प्रताप का सर लाने।

मुगली शासक अकबर का सबसे खतरनाक एक सेना नायक हुआ   बहलोल खां कहा जाता है कि हाथी जैसा बदन था इसका और ताक़त का जोर इतना कि नसें फटने को होती थीं ज़ालिम इतना कि तीन दिन के बालक को भी गला रेत-रेत के मार देता था बशर्ते वो हिन्दू का हो एक भी लड़ाई कभी हारा नहीं था अपने पूरे करियर में ये बहलोल खां काफी लम्बा कद का सेनापति था उसका कद 7 फुट 8 इंच है। कहा जाता है की घोडा उसने सामने छोटा लगता था। बहुत चौड़ा और ताकतवर था बहलोल खां, अकबर को बहलोल खां पर खूब नाज था, लूटी हुई औरतों में से बहुत सी बहलोल खां को दे दी जाती थी।

फिर हल्दीघाटी का युद्ध हुआ, अकबर और महाराणा प्रताप की सेनाएं आमने सामने थी, अकबर महाराणा प्रताप से बहुत डरता था। इसलिए वो खुद इस युद्ध से दूर रहा। अब इस युद्ध में सेनापति बहलोल खां को अकबर ने युद्ध के लिए आदेश दिया। हिन्दू-वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप से लड़ाई पूरे जोर पर और मुगलई गंद खा-खा के ताक़त का पहाड़ बने बहलोल खां का आमना-सामना हो गया अपने प्रताप से अफीम के ख़ुमार में डूबी हुई सुर्ख नशेड़ी आँखों से भगवा अग्नि की लपट सी प्रदीप्त रण के मद में डूबी आँखें टकराईं और जबरदस्त भिडंत शुरू कुछ देर तक तो राणा यूँ ही मज़ाक सा खेलते रहे मुगलिया बिलाव के साथ और फिर गुस्से में आ के अपनी तलवार से एक ही वार में घोड़े सहित हाथी सरीखे उस नर का पूरा धड़ बिलकुल सीधी लकीर में चीर दिया ऐसा फाड़ा कि बहलोल खां का आधा शरीर इस तरफ और आधा उस तरफ गिरा दिया।

ऐसे-ऐसे युद्ध-रत्न उगले हैं सदियों से भगवा चुनरी ओढ़े रण में तांडव रचने वाली मां भारती ने।

Monday, August 31, 2020

जाने राष्ट्रिय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल कि जिंदगी से जुड़ी कुछ रोचक बातें।

अजित डोभाल का जन्म 1945 में उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल में एक गढ़वाली परिवार में हुआ। पिता आर्मी में ब्रिगेडियर थे। उन्होंने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा अजमेर के मिलिट्री स्कूल से पूरी की थी। इसके बाद उन्होंने आगरा विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में एमए किये और पोस्ट ग्रेजुएशन करने के बाद वे आईपीएस की तैयारी में लग गए। कड़ी मेहनत के बाद वे केरल कैडर से 1968 में IPS का एग्जाम टॉप किया, केरल Batch के IPS Officer बने। 17 साल की नौकरी के बाद मिलने वाला Medal 6 साल की नौकरी में ही हासिल कर लिए थे।

इसके बाद पाकिस्तान में जासूस के तौर पर काम किया, वहा वे मुसलमान बनकर रहते थे। पाकिस्तान की आर्मी में मार्शल की पोस्ट तक पहुंचे और 6 साल भारत के लिए जासूसी करते रहे। बताया जाता है कि अंडर कवर जासूसी करने के बाद अजीत डोभाल ने भारत आकर कई अहम ऑपेशन को अंजाम दिया। 1987 में खालिस्तानी आतंकवाद के समय पाकिस्तानी एजेंट बनकर दरबार साहिब के अंदर पहुंचे, 3 दिन आतंकवादियों के साथ रहे। आतंकवादियों की सारी सूचना लेकर Operation Black Thunder को सफलता पूर्वक अंजाम दिया। 1988 में कीर्ति चक्र से सम्मानित किया गया।

देश का एक मात्र Non Army Person जिसे यह Award से सम्मानित किया जा चुका है। उसके बाद असम गए, वहां उल्फा आतंकवाद को कुचला। 1999 में Plane_Hijacking के समय आतंकवादियों से Dealing की। मोदी के सत्ता में आते ही उन्हें सरकार राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार NSA (National Security Advisor) बनाया। बलोचिस्तान में Raw फिर से Active की, बलोचिस्तान का मुद्दा International बनाया। केरल की 45 ईसाई नर्सों का Iraq में Isis ने किडनैप किया। अजित डोभाल खुद इराक़ गए, isis से पहली बार बीना किसी नुकसान के नर्सों को वापस लाया। वर्ष 2015 मई में भारत के पहले सर्जिकल ऑपरेशन को अंजाम दिया। भारत की सेना Myanmar में 5 किमी तक घुसी। और 50 आतंकवादी मारे गए। उन्होंने नागालैंड के आतंकवादियों से भारत की ऐतिहासिक समझौता करवाई, आतंकवादी संगठनों ने हथियार डाले।

भारत की डिफेंस पॉलिसी को Agressive बनाया। भारत की सीमा में घुस रहा पाकिस्तानी जहाज को बिना किसी चेतावनी के उड़ाया,कहा बिरयानी खिलाने वाला काम नही कर सकता। कश्मीर में सेना को खुली छूट दी, पैलेट गन सेना को दिलवाईं। पाकिस्तान को दुनिया के मुस्लिम देशों से ही तोड़ दिया। सितंबर 2016 आज़ाद भारत के इतिहास का 1971 के बाद सबसे इतिहासिक दिन था। जो अजीत डोभाल के बुने गए सर्जिकल स्ट्राइक को सेना ने दिया अंजाम। और PoK में 3 किलोमीटर घुसे। 40 आतंकी और 9 पाकिस्तानी फौजी मारे।

एयर स्ट्राइक की सफलता को तो पूरी दुनिया ने सेटेलाइट द्वारा देखा। कश्मीर से धारा 370 हटाने व शांति की स्थापना कायम रखने में विशेष योगदान दिया। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार देशभक्त हिंदू संगठन विवेकानंद यूथ फोरम की स्थापना कीया। उनके इन सब कार्यों के लिए राष्ट्रपति पुरस्कार भीम मिल चुका है। अजीत डोभाल कहते है की मैं इस्लामाबाद जीत सकता हूँ।

Wednesday, August 26, 2020

नोबेल शांति पुरस्कार विजेता और भारत रत्न मदर टेरेसा का जन्म 1910 में आज ही के दिन हुआ था।

1910 में आज ही के दिन हुआ था नोबेल शांति पुरस्कार विजेता और भारत रत्न मदर टेरेसा का जन्म। मदर टेरेसा जिन्हें रोमन कैथोलिक चर्च द्वारा कलकत्ता की संत टेरेसा के नाम से नवाज़ा गया है। उनका जन्म आन्येज़े गोंजा बोयाजियू के नाम से एक अल्बेनीयाई परिवार में उस्कुब, उस्मान साम्राज्य में हुआ था। मदर टेरसा रोमन कैथोलिक नन थीं, जिन्होंने 1948 में स्वेच्छा से भारतीय नागरिकता ले ली थी। आज संत मदर टेरेसा की 109वीं जयंती है। शांति दूत मदर टेरेसा ममता की मूरत थीं। 
दीन-दुखियों को गले लगाना और बीमार लोगों के चेहरे में मुस्कान लाने की कोशिश करना ही उनकी पहचान थी।
मदर टेरेसा कैथोलिक थीं, लेकिन उन्हें भारत की नागरिकता मिली हुई थी। उन्हें भारत के साथ साथ कई अन्य देशों की नागरिकता मिली हुई थी, जिसमें ऑटोमन, सर्बिया, बुल्गेरिया और युगोस्लाविया शामिल हैं। 
साल 1946 में उन्होंने गरीबों, असहायों की सेवा का संकल्प लिया था। निस्वार्थ सेवा के लिए टेरेसा ने  7 अक्तूबर 1950 में कोलकाता में 'मिशनरीज ऑफ चैरिटी' की स्थापना की थी। उन्होंने 12 सदस्यों के साथ अपनी संस्था की शुरुआत की थी और अब यह संस्था 133 देशों में काम कर रही है। 133 देशों में इनकी लगभग 4501 सिस्टर हैं। 1981 में उन्होंने अपना नाम बदल लिया था। अल्बानिया मूल की मदर टेरेसा ने कोलकाता में गरीबों और पीड़ित लोगों के लिए जो किया वो दुनिया में अभूतपूर्व माना जाता हैं। मदर टेरेसा अपनी मृत्यु तक कोलकाता में ही रहीं और आज भी उनकी संस्था गरीबों के लिए काम कर रही है। उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार के साथ भारत रत्न, टेम्पटन प्राइज, ऑर्डर ऑफ मेरिट और पद्म श्री से भी नवाजा गया है। उनका कहना था, 'जख्म भरने वाले हाथ प्रार्थना करने वाले होंठ से कहीं ज्यादा पवित्र हैं'।
मदर टेरेसा को 1979 में  नोबेल शांति पुरस्कार दिया गया, मदर टेरेसा ने प्राइज मनी लेने से इंकार कर दिया और कहा कि इसे भारत के गरीब लोगों में दान कर दिया जाए। उन्होंने गरीबों के इलाज और गरीब बच्चों की पढ़ाई के लिए ‘निर्मल हृदय’ और ‘निर्मला शिशु भवन’ के नाम से आश्रम खोले। आपको बता दें, अपने जीवन के अंतिम समय में मदर टेरेसा पर कई लोगों ने आरोप भी लगाए। उन पर गरीबों की सेवा करने के बदले उनका धर्म बदलवाकर ईसाई बनाने का आरोप लगाया गया। बता दें, लगातार गिरती सेहत की वजह से 5 सितंबर 1997 को उनकी मौत हो गई।

Friday, August 14, 2020

योगी आदित्यनाथ का गृहत्याग और राजनैतिक जीवन का कुछ अंश।

गढवाल में पैदा हुए आदित्यनाथ उत्तराखंड के गढ़वाल के एक गांव से आए अजय सिंह बिष्ट के योगी आदित्यनाथ बनने के पहले के जीवन के बारे में लोगों को ज़्यादा कुछ नहीं मालूम, सिवा इसके कि वह हेमवतीनंदन बहुगुणा विश्वविद्यालय, गढ़वाल से विज्ञान स्नातक हैं और उनके परिवार के लोग ट्रांसपोर्ट बिज़नेस में हैं। महंत अवैद्यनाथ भी उत्तराखंड के ही थे। 
गोरखनाथ मंदिर में लोगों की बहुत आस्था है। मकर संक्राति पर हर धर्म और वर्ग के लोग बाबा गोरखनाथ को खिचड़ी चढ़ाने आते हैं। महंत दिग्विजयनाथ ने इस मंदिर को 52 एकड़ में फैलाया था।
उन्हीं के समय गोरखनाथ मंदिर हिंदू राजनीति के महत्वपूर्ण केंद्र में बदला, जिसे बाद में महंत अवैद्यनाथ ने और आगे बढ़ाया। गोरखनाथ मंदिर के महंत की गद्दी का उत्तराधिकारी बनाने के चार साल बाद ही महंत अवैद्यनाथ ने योगी को अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी भी बना दिया। जिस गोरखपुर से महंत अवैद्यनाथ चार बार सांसद रहे, उसी सीट से योगी 1998 में 26 वर्ष की उम्र में लोकसभा पहुँच गए।पहला चुनाव वह 26 हज़ार के अंतर से जीते, पर 1999 के चुनाव में जीत-हार का यह अंतर 7,322 तक सिमट गया। मंडल राजनीति के उभार ने उनके सामने गंभीर चुनौती पेश की।
दो दशक पहले की है, गोरखपुर शहर के मुख्य बाज़ार गोलघर में गोरखनाथ मंदिर से संचालित इंटर कॉलेज में पढ़ने वाले कुछ छात्र एक दुकान पर कपड़ा ख़रीदने आए और उनका दुकानदार से विवाद हो गया। दुकानदार पर हमला हुआ, तो उसने रिवॉल्वर निकाल ली। दो दिन बाद दुकानदार के ख़िलाफ़ कार्रवाई की मांग को लेकर एक युवा योगी की अगुवाई में छात्रों ने उग्र प्रदर्शन किया और वे एसएसपी आवास की दीवार पर भी चढ़ गए। यह योगी आदित्यनाथ थे, जिन्होंने कुछ समय पहले ही 15 फरवरी 1994 को नाथ संप्रदाय के सबसे प्रमुख मठ गोरखनाथ मंदिर के उत्तराधिकारी के रूप में अपने गुरु महंत अवैद्यनाथ से दीक्षा ली थी। 
गोरखपुर की राजनीति में एक 'एंग्री यंग मैन' की यह धमाकेदार एंट्री थी। यह वही दौर था, जब गोरखपुर की राजनीति पर दो बाहुबली नेताओं हरिशंकर तिवारी और वीरेंद्र प्रताप शाही की पकड़ कमज़ोर हो रही थी। युवाओं ख़ासकर गोरखपुर विश्वविद्यालय के सवर्ण छात्र नेताओं को इस 'एंग्री यंग मैन' में हिंदू महासभा के अध्यक्ष रहे महंत दिग्विजयनाथ की 'छवि' दिखी और वो उनके साथ जुड़ते गए। अब यह योगी 'हिंदुत्व के सबसे बड़े फ़ायरब्रांड नेता' के रूप में स्थापित हो चुका है। दिल्ली के बाद बिहार में करारी हार से यूपी में अपने प्रदर्शन को लेकर चिंतित भाजपा में पिछले ही साल उन्हें मुख्यमंत्री पद के चेहरे के रूप में पेश करने की चर्चा हो रही थी। 2016 मार्च में गोरखनाथ मंदिर में हुई भारतीय संत सभा की चिंतन बैठक में आरएसएस के बड़े नेताओं की मौजूदगी में योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनाने का संकल्प लिया गया। तब संतों ने कहा, "हम 1992 में एक हुए तो 'ढांचा' तोड़ दिया। अब केंद्र में अपनी सरकार है। सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला हमारे पक्ष में आ जाए, तो भी प्रदेश में मुलायम या मायावती की सरकार रहते रामजन्मभूमि मंदिर नहीं बन पाएगा। इसके लिए हमें योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनाना होगा"।

हिंदू युवा वाहिनी
इसके बाद उन्होंने निजी सेना के रूप में हिंदू युवा वाहिनी (हियुवा) का गठन किया, जिसे वह 'सांस्कृतिक संगठन' कहते हैं और जो 'ग्राम रक्षा दल के रूप में हिंदू विरोधी, राष्ट्र विरोधी और माओवादी विरोधी गतिविधियों' को नियंत्रित करता है। हिंदू युवा वाहिनी के खाते में गोरखपुर, देवरिया, महाराजगंज, कुशीनगर, सिद्धार्थनगर से लेकर मउ, आज़मगढ़ तक मुसलमानों पर हमले और सांप्रदायिक हिंसा भड़काने के दर्जनों मामले दर्ज हैं। हिंदू युवा वाहिनी के इन कामों से गोरखपुर में उनकी जीत का अंतर बढ़ने लगा और साल 2014 का चुनाव वह तीन लाख से भी अधिक वोट से जीते।
बढ़ता हुआ दबदबा नेपाल में राजतंत्र की समाप्ति और उसके सेकुलर होने पर दुख जताते हैं और नेपाल की एकता के लिए राजशाही की वकालत करते हैं। मंदिर द्वारा चलाए जाने वाली तीन दर्जन से अधिक शिक्षण-स्वास्थ्य संस्थाओं के वह अध्यक्ष या सचिव हैं। वह एक मेडिकल इंस्टीट्यूट बनाने में भी जुटे हैं। मंदिर की सम्पत्तियां गोरखपुर, तुलसीपुर, महराजगंज और नेपाल में भी हैं।
उनकी दिनचर्या सुबह मंदिर में लगने वाले दरबार से होती है, जिसमें वह लोगों की समस्याएं सुनते हैं और उसके समाधान के लिए अफ़सरों को आदेश देते हैं. इसके बाद क्षेत्र में शिलान्यास, लोकार्पण के कार्यक्रमों और बैठकों में व्यस्त हो जाते हैं.योगी के मीडिया प्रभारी और उनके द्वारा निकाले जाने वाले साप्ताहिक अख़बार 'हिंदवी' जो तीन वर्ष बाद बंद हो गया, के सम्पादक रहे डॉक्टर प्रदीप राव इससे सहमत नहीं हैं कि हियुवा के इस इलाक़े में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के कारण योगी को राजनीतिक सफलता मिली।
जनता से सीधा संपर्क 
वह कहते हैं कि योगी आदित्यनाथ की सबसे बड़ी ख़ासियत जनता से सीधा संवाद और संपर्क है। लोग उनमें महंत दिग्विजयनाथ के तेवर और महंत अवैद्यनाथ का सामाजिक सेवा कार्य का जोग देखते हैं। वह कहते हैं कि गोरखनाथ मंदिर के सामाजिक कार्यों का जनता पर काफ़ी असर है। योगी ने हिंदू युवा वाहिनी के अलावा विश्व हिंदू महासंघ से अपने लोगों को जोड़ रखा है।

मैं तो इंसानियत से मजबूर था तुम्हे बीच मे नही डुबोया" मगर तुमने मुझे क्यों काट लिया!

नदी में बाढ़ आती है छोटे से टापू में पानी भर जाता है वहां रहने वाला सीधा साधा1चूहा कछुवे  से कहता है मित्र  "क्या तुम मुझे नदी पार करा ...