भाई सूर्याजी व शेलार मामा ने इसे अपशकुन समझा, तब तानाजी ने कहा कि अगर यशवंती इस बार भी लौट आयी तो उसका वध कर देंगे और यह कहकर दुबारा उसे दुर्ग की तरफ उछाल दिया, इस बार यशवंती ने जबरदस्त पकड़ बनाई और उससे बंधी रस्सी से एक टुकड़ी दुर्ग पर चढ़ गई। अंत मे जब यशवंती को मुक्त करना चाहा तो पाया कि यशवंती भी भारी वजन के कारण वीरगति को प्राप्त हो चुकी थी किन्तु उसने अपनी पकड़ नही छोड़ी थी।
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Sunday, January 17, 2021
आज हम जानेंगे यशवंती नामक गोह प्रजाति की छिपकली की कहानी। जो अपनी जान देकर अपने स्वामी की साथ दिया।
कोंडाणा के किले में चढ़ने के लिए तानाजी ने यशवंती नामक गोह प्रजाति की छिपकली का प्रयोग किया था जिसको फ़िल्म में नही दिखाया गया और फिल्मों में इसका कोई वर्णन नहीं किया गया है। किले पर चढ़ाई के लिए तानाजी ने अपने बक्से से यशवंती को निकाला, उसे कुमकुम और अक्षत से तिलक किया और किले की दीवार की तरफ उछाल दिया किन्तु यशवंती किले की दीवार पर पकड़ न बना पायी और फिसल कर नीचे आ गिरी। फिर दूसरा प्रयास किया गया लेकिन यशवंती दुबारा नीचे आ गयी।
Friday, January 8, 2021
इस्लाम से डरकर महारानी क्लियोपेट्रा ने स्तन पर सांप से डसवाया था।
मिस्र की साम्राज्ञी क्लियोपेट्रा ने जो मौत चुनी उससे दुनिया स्तब्ध थी आखिर क्यों एक औरत नग्न अवस्था में अपने स्तन पर सांप से डसवाएगी, लेकिन वो जानती थी कि जिसने मिस्र पर हमला किया है वे इस्लामिक फ़ौज के लोग हैं, स्तन पर डँस मरवाने से पूरे शरीर में जहर फैल जाएगा, तो कोई इंफेक्शन के डर उसकी मृत देह के साथ बर्बरता नहीं कर पाएगा।
इस्लाम से डरकर महारानी क्लियोपेट्रा ने स्तन पर सांप से डसवाया था!
मिस्र की साम्राज्ञी क्लियोपेट्रा ने जो मौत चुनी उससे दुनिया स्तब्ध थी आखिर क्यों एक औरत नग्न अवस्था में अपने स्तन पर सांप से डसवाएगी, लेकिन वो जानती थी कि जिसने मिस्र पर हमला किया है वे इस्लामिक फ़ौज के लोग हैं, स्तन पर डँस मरवाने से पूरे शरीर में जहर फैल जाएगा, तो कोई इंफेक्शन के डर उसकी मृत देह के साथ बर्बरता नहीं कर पाएगा।
पाकिस्तान में जब किसी सुंदर लड़की की मौत होती है तो उसके परिजन महीनों उसकी कब्र की पहरेदारी करते हैं क्योंकि सुंदर लड़की की कब्र को भी खोदकर हवसखोर मुर्दा लड़की के शरीर के साथ भी बलात्कार करते है।
नेक्रोफिलिया
नेक्रोफिलिया एक मानसिक बीमारी है जिसमें व्यक्ति शव यानी लाश यानी डेड बॉडी के साथ बलात्कार करता है अगर मनोवैज्ञानिकों की मानें तो सामान्य रूप से यह बीमारी हर 10 लाख व्यक्तियों में से एक को होती है।लेकिन इस्लाम में हर दसवां व्यक्ति नेक्रोफिलिया का शिकार है, यानी जिंदा तो जिंदा अगर लड़की की लाश भी मिल गई या खुद भी उसकी हत्या करनी पड़ी है तो भी बलात्कार जरूर करेंगे मिस्र की साम्राज्ञी क्लियोपेट्रा ने जो मौत चुनी उससे दुनिया स्तब्ध थी आखिर क्यों एक औरत नग्न अवस्था में अपने स्तन पर सांप से डसवाएगी, लेकिन वो जानती थी कि जिसने मिस्र पर हमला किया है वे इस्लामिक फ़ौज के लोग हैं। स्तन पर डँस मरवाने से पूरे शरीर में जहर फैल जाएगा, तो कोई इंफेक्शन के डर उसकी मृत देह के साथ बर्बरता नहीं कर पाएगा, साथ ही स्तन को मुँह में लेकर कुचल नहीं पाएगा, वहशियों का क्या वे किसी भी हद तक जा सकते हैं। फिर भी आपको बता दूं कि इतिहासकार कहते हैं कि उसके शव के साथ तीन हज़ार बार बलात्कार किया गया था। महारानी पद्मावती ने भी लड़कर मरने के बजाय जौहर चुना। अभी जब पिछले दिनों फ़िल्म आई तो कितने लोगों ने कहा कि वो तो योद्धा थी, लड़कर क्यों नहीं मरी। जौहर क्यों चुना? तो इसका स्प्ष्ट कारण था ख़िलजी और वैसे ही इस्लामिक दरिंदो की फ़ौज थी। महारानी जानती थी की अगर लड़ते हुए उसने और उसकी साथी औरतों ने जान दी तो उसके शरीर के साथ क्या होगा, बल्कि दुनिया इस असलियत को जानती है सिर्फ हमारे बच्चों से इसे छुपाया गया है, नेक्रोफिलिया, बस बहन बेटियों को इतना ही सन्देश देना चाहता हूं कि देखो मेरी बहनों, जो पूरे विश्व में अपनी दरिंदगी और हवस के लिए प्रसिद्ध हैं, जो शव को भी बिना बलात्कार नहीं छोड़ते, अगर तुम लोग इस चक्कर में आ गई कि सब एक जैसे नहीं होते तो याद कर लेना क्लियोपेट्रा और महारानी पदमावती जैसी हजारों वीरांगनाओं जो जोहर की आग में समा गई। बस इतना सन्देश आज मैं मां बहन बेटियों को देना चाहता हूँ। आप भी अपने बच्चों को आगाह करके बचा सकते हैं। बच्चे समझने को तैयार हैं। बस हम तैयार नहीं हैं सही शब्दों में समझाने के लिए। ये इतने घिनोने है जाने क्यू अभी तक जिन्दा है। ये तो औरत को सिर्फ जिस्म समझते है। लानत है ऐसे धर्म पर। इसकी सच्चाई सभी सनातनी जान ले तो शायद ही सनातन जैसे धर्म को छोड़कर कोई इसको स्वीकारेगा। ऐसी घटना हिंदुस्तान में भी होती है,कोई कब्रिस्तान पर नजर नही रखता है ना क्योंकि वहाँ बाउंडरी वाल की हुई है, यकीन ना हो तो कब्रिस्तान में जाकर देख लो ये लोग औरत की हड्डियो के साथ भी बलात्कार करते है।
Sunday, September 6, 2020
जाने अपने विष्णू स्तम्भ को जो अब मुस्लिम आक्रनता कुतुबुद्दीन ऐबक ने क़ुतुबमीनार बना दिया।
अगर आप दिल्ली घुमने गए है तो आपने कभी विष्णू स्तम्भ (क़ुतुबमीनार) को भी अवश्य देखा होगा. जिसके बारे में हमारे इतिहास के पन्नों में बताया गया है कि उसे कुतुबुद्दीन ऐबक ने बनबाया था। हम कभी जानने की कोशिश भी नहीं करते हैं कि कुतुबुद्दीन कौन था, उसने कितने बर्ष दिल्ली पर शासन किया, उसने कब विष्णू स्तम्भ (क़ुतुबमीनार) को बनवाया या विष्णू स्तम्भ (कुतूबमीनार) से पहले वो और क्या क्या बनवा चुका था। कुतुबुद्दीन ऐबक, मोहम्मद गौरी का खरीदा हुआ गुलाम था। मोहम्मद गौरी भारत पर कई हमले कर चुका था।मगर हर बार उसे हारकर वापस जाना पडा था। ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की जासूसी और कुतुबुद्दीन की रणनीति के कारण मोहम्मद गौरी, तराइन की लड़ाई में पृथ्वीराज चौहान को हराने में कामयाब रहा और अजमेर/दिल्ली पर उसका कब्जा हो गया।
अजमेर पर कब्जा होने के बाद मोहम्मद गौरी ने चिश्ती से इनाम मांगने को कहा। तब चिश्ती ने अपनी जासूसी का इनाम मांगते हुए, एक भव्य मंदिर की तरफ इशारा करके गौरी से कहा कि तीन दिन में इस मंदिर को तोड़कर मस्जिद बना कर दो। तब कुतुबुद्दीन ने कहा आप तीन दिन कह रहे हैं। मैं यह काम ढाई दिन में कर के आपको दूंगा। कुतुबुद्दीन ने ढाई दिन में उस मंदिर को तोड़कर मस्जिद में बदल दिया। आज भी यह जगह "अढाई दिन का झोपड़ा" के नाम से जानी जाती है। जीत के बाद मोहम्मद गौरी, पश्चिमी भारत की जिम्मेदारी "कुतुबुद्दीन" को और पूर्वी भारत की जिम्मेदारी अपने दुसरे सेनापति "बख्तियार खिलजी" (जिसने नालंदा को जलाया था) को सौंप कर वापस चला गय था ।
कुतुबुद्दीन कुल चार साल ( 1206 से 1210 तक) दिल्ली का शासक रहा। इन चार साल में वो अपने राज्य का विस्तार, इस्लाम के प्रचार और बुतपरस्ती का खात्मा करने में लगा रहा। हांसी, कन्नौज, बदायूं, मेरठ, अलीगढ़, कालिंजर, महोबा, आदि को उसने जीता। अजमेर के विद्रोह को दबाने के साथ राजस्थान के भी कई इलाकों में उसने काफी आतंक मचाय।
विष्णु स्तम्भ
जिसे क़ुतुबमीनार कहते हैं वो महाराजा वीर विक्रमादित्य की वेदशाला थी। जहा बैठकर खगोलशास्त्री वराहमिहर ने ग्रहों, नक्षत्रों, तारों का अध्ययन कर, भारतीय कैलेण्डर "विक्रम संवत" का आविष्कार किया था। यहाँ पर 27 छोटे छोटे भवन (मंदिर) थे जो 27 नक्षत्रों के प्रतीक थे। और मध्य में विष्णू स्तम्भ था, जिसको ध्रुव स्तम्भ भी कहा जाता था। दिल्ली पर कब्जा करने के बाद उसने उन 27 मंदिरों को तोड दिया। विशाल विष्णु स्तम्भ को तोड़ने का तरीका समझ न आने पर उसने उसको तोड़ने के बजाय अपना नाम दे दिया। तब से उसे क़ुतुबमीनार कहा जाने लगा। कालान्तर में यह सब झूठ प्रचारित किया गया कि क़ुतुब मीनार को कुतुबुद्दीन ने बनबाया था। जबकि वो एक विध्वंशक सासक था न कि कोई निर्माता।
कुतुबुद्दीन ऐबक की मौत का सच
अब बात करते हैं, कुतुबुद्दीन की मौत की। इतिहास की किताबो में लिखा है, कि उसकी मौत पोलो खेलते समय घोड़े से गिरने से हुई। ये अफगान / तुर्क लोग "पोलो" नहीं खेलते थे। पोलो खेल अंग्रेजों ने शुरू किया। अफगान/तुर्क लोग बुजकशी खेलते हैं जिसमे एक बकरे को मारकर उसे लेकर घोड़े पर भागते है, जो उसे लेकर मंजिल तक पहुंचता है, वो जीतता है। कुतबुद्दीन ने अजमेर के विद्रोह को कुचलने के बाद राजस्थान के अनेकों इलाकों में कहर बरपाया था। उसका सबसे कडा विरोध उदयपुर के राजा ने किया। परन्तु कुतुबद्दीन उनको हराने में कामयाब रहा। उसने धोखे से राजकुंवर कर्णसिंह को बंदी बनाकर और उनको जान से मारने की धमकी देकर, राजकुंवर और उनके घोड़े शुभ्रक को पकड कर लाहौर ले आया।
एक दिन राजकुंवर ने कैद से भागने की कोशिश की, लेकिन पकड़ा गया। इस पर क्रोधित होकर कुतुबुद्दीन ने उसका सर काटने का हुकुम दिया। दरिंदगी दिखाने के लिए उसने कहा कि बुजकशी खेला जाएगा लेकिन इसमें बकरे की जगह राजकुंवर का कटा हुआ सर इस्तेमाल होगा। कुतुबुद्दीन ने इस काम के लिए, अपने लिए घोड़ा भी राजकुंवर का "शुभ्रक" चुना। कुतुबुद्दीन "शुभ्रक" घोडे पर सवार होकर अपनी टोली के साथ जन्नत बाग में पहुंचा। राजकुंवर को भी जंजीरों में बांधकर वहां लाया गया। राजकुंवर का सर काटने के लिए जैसे ही उनकी जंजीरों को खोला गया, शुभ्रक घोडे ने उछलकर कुतुबुद्दीन को अपनी पीठ से नीचे गिरा दिया और अपने पैरों से उसकी छाती पर कई बार वार किये, जिससे कुतुबुद्दीन वहीं पर मर गया।
शुभ्रत मरकर भी अमर हो गया
इससे पहले कि सिपाही कुछ समझ पाते राजकुवर शुभ्रक घोडे पर सवार होकर वहां से निकल गए। कुतुबुदीन के सैनिको ने उनका पीछा किया मगर वो उनको पकड न सके। शुभ्रक कई दिन और कई रात दौड़ता रहा और अपने स्वामी को लेकर उदयपुर के महल के सामने आ कर रुका। वहां पहुंचकर जब राजकुंवर ने उतर कर पुचकारा तो वो मूर्ति की तरह शांत खडा हो गया था। वो मर चुका था, सर पर हाथ फेरते ही उसका निष्प्राण शरीर लुढ़क गया। कुतुबुद्दीन की मौत और शुभ्रक की स्वामिभक्ति की इस घटना के बारे में हमारे स्कूलों में नहीं पढ़ाया जाता है। लेकिन इस घटना के बारे में फारसी के प्राचीन लेखकों ने काफी लिखा है।धन्य है भारत की भूमि जहाँ इंसान तो क्या जानवर भी अपनी स्वामी भक्ति के लिए प्राण दांव पर लगा देते हैं।
मै सच्चाई बयां करने की कोशिश की है। इसमें लिखे सारी जानकारियां तथ्यों के साथ आप स्वयं भी प्राप्त कर सकते है।
Tuesday, September 1, 2020
जाने सबसे बड़ा भारतीय साम्राज्य विजेता सम्राट अशोक अपने ही देश के इतिहासकारों से कैसे हार गए।
आखिर क्यों संपूर्ण भारत विजेता सम्राट अशोक पूरा भारत विजयी होने के बाद भी उनको अपने ही देश के इतिहासकर इतिहास के पन्नों में हरा दिया। आखरी क्यों और क्या थी राजनीत जिसके कारण भारत विजेता सम्राट अशोक हार गए। आज उनके द्वार दिए गए हर एक चिझ को भारत सरकार से लेकर हर भारतीय जिसे जान कर सुन कर गौरवान्वित होता है।
1. जिस सम्राट के नाम के साथ संसार भर के इतिहासकार “महान” शब्द लगाते हैं।
2. जिस सम्राट का राजचिन्ह अशोकचक्र भारत देश अपने झंडे में लगता है।
3.जिस सम्राट का राजचिन्ह चारमुखी शेर को भारत देश राष्ट्रीय प्रतीक मानकर सरकार चलाती है और सत्यमेव जयते को अपनाया गया।
4. जिस देश में सेना का सबसे बड़ा युद्ध सम्मान सम्राट अशोक के नाम पर अशोक चक्र दिया जाता है।
5. जिस सम्राट से पहले या बाद में कभी कोई ऐसा राजा या सम्राट नहीं हुआ, जिसने अखंड भारत (आज का नेपाल, बांग्लादेश, पूरा भारत, पाकिस्तान और अफगानिस्तान) जितने बड़े भूभाग पर एक छत्र राज किया हो।
6. जिस सम्राट के शासनकाल को विश्व के बुद्धिजीवी और इतिहासकार भारतीय इतिहास का सबसे स्वर्णिम काल मानते हैं।
7. जिस सम्राट के शासनकाल में भारत विश्वगुरु था, सोने की चिड़िया था, जनता खुशहाल और भेदभाव रहित थी।
8. जिस सम्राट के शासनकाल जीटी रोड जैसे कई हाई-वे बने, पूरे रोड पर पेड़ लगाये गए, सरायें बनायी गईं, इंसान तो इंसान जानवरों के लिए भी प्रथम बार हॉस्पिटल खोले गए, जानवरों को मारना बंद कर दिया गया।
सम्राट अशोक मगथ के सम्राट थे जिसकी राजधानी पाटलीपुत्र थी। सम्राट मगथ के सम्राट जरूर थे लेकिन कलिंग को छोड़कर संपूर्ण भारतवर्ष पर उनका शासन था। कहते हैं कि ईरान से लेकर बर्मा तक अशोक का साम्राज्य था। अशोक के समय मौर्य राज्य उत्तर में हिन्दुकुश की श्रेणियों से लेकर दक्षिण में गोदावरी नदी के दक्षिण तथा मैसूर, कर्नाटक तक तथा पूर्व में बंगाल से पश्चिम में अफगानिस्तान तक पहुंच गया था। यह उस समय तक का सबसे बड़ा भारतीय साम्राज्य था। ऐसे महान सम्राट अशोक कि जयंती उनके अपने देश भारत में क्यों नहीं मनायी जाती, न ही कोई छुट्टी घोषित कि गई है? अफ़सोस जिन लोगों को ये जयंती मनानी चाहिए, वो लोग अपना इतिहास ही नहीं जानते और जो जानते हैं, वो मानना नहीं चाहते।
Saturday, August 22, 2020
क्या आप जानते हैं, अकबर महान को जीवनदान देने वाली, महाराणा प्रताप की भतीजी बाईसा किरणदेवी की महानता।
अकबर की महानता का गुणगान तो कई इतिहासकारों ने किया है, लेकिन अकबर की ओछी हरकतों का वर्णन बहुत कम इतिहासकारों ने किया है। अकबर अपने गंदे इरादों से प्रतिवर्ष दिल्ली में नौरोज़ का मेला आयोजित करवाता था। नौरोज़ का शाब्दिक अर्थ होता है "नया दिन" ईरानी नववर्ष का नाम है, जिसे फारसी नया साल भी कहा जाता है। और मुख्यतः ईरानियों द्वारा दुनिया भर में मनाया जाता है। लेकिन अकबर हर रोज अपना नया साल मानता था। अकबर का नौरोज़ का मेला आप सब में से लगभग हर एक लोगों को पता है। इसमें पुरुषों का प्रवेश निषेध था।
अकबर इस मेले में महिला की वेष-भूषा में जाता था। और जो महिला उसे मंत्र मुग्ध कर देती थी। उसे दासियाँ छल कपट से अकबर के सम्मुख ले जाती थी। एक दिन नौरोज़ के मेले में महाराणा प्रताप सिंह की भतीजी, छोटे भाई महाराज शक्तिसिंह की पुत्री मेले की सजावट देखने के लिए आई। जिनका नाम बाईसा किरणदेवी था।
उनका विवाह बीकानेर के राजा पृथ्वीराज जी से हुआ था। बाईसा किरणदेवी की सुंदरता को देखकर अकबर अपने आप पर क़ाबू नहीं रख पाया। और उसने बिना सोचे समझे दासियों के माध्यम से धोखे से ज़नाना महल में बुला लिया। जैसे ही अकबर ने बाईसा किरणदेवी को स्पर्श करने की कोशिश की। किरणदेवी ने कमर से कटार निकाली और अकबर को ऩीचे पटक कर उसकी छाती पर पैर रखकर कटार गर्दन पर लगा दी। और कहा
नींच अधर्मी, तुझे पता नहीं मैं उन महाराणा प्रताप की भतीजी हूँ। जिनके नाम से तेरी नींद उड़ जाती है। बोल तेरी आख़िरी इच्छा क्या है। अकबर का ख़ून सूख गया।
कभी सोचा नहीं होगा कि सम्राट कहलाने वाला अकबर आज एक राजपूत बाईसा के चरणों में होगा। अकबर बोला: मुझसे पहचानने में भूल हो गई। मुझे माफ़ कर दो देवी। इस पर किरण देवी ने कहा। आज के बाद दिल्ली में नौरोज़ का मेला नहीं लगेगा।और किसी भी नारी को तुम परेशान नहीं करोगे। अकबर ने हाथ जोड़कर कहा आज के बाद कभी मेला नहीं लगेगा। उस दिन के बाद कभी मेला नहीं लगा। इस घटना का वर्णन गिरधर आसिया द्वारा रचित सगत रासो में 632 पृष्ठ संख्या पर दिया गया है। बीकानेर संग्रहालय में लगी एक पेटिंग में भी इस घटना को एक दोहे के माध्यम से बताया गया है।
किरण सिंहणी सी चढ़ी उर पर खींच कटार !
भीख मांगता प्राण की अकबर हाथ पसार !!
अकबर की छाती पर पैर रखकर खड़ी वीर बाला किरन का चित्र आज भी जयपुर के संग्रहालय में सुरक्षित रखा गया है। आप सब जा के देख सकते है। अब ऐसे इतिहासकार के बारे में क्या कहा जा सकता हैं। जो राजा महाराणा प्रताप के नाम से काप जाता हो। उनकी भतीजी ने उसे जीवनदान दिए हो ऐसे राजा को महान बता कर देश को मूर्ख बनाया जा सकता है। लेकिन झूठ कभी सच नहीं हो सकता।
Saturday, August 1, 2020
01 अगस्त आज ही के दिन महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन की शुरुआत की थी। क्या थे कारण!
01 अगस्त 1920 को महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन की शुरुआत की। आंदोलन के दौरान विद्यार्थियों ने सरकारी स्कूलों और कॉलेजों में जाना छोड़ दिया। वकीलों ने अदालत में जाने से मना कर दिया। कई कस्बों और नगरों में श्रमिक हड़ताल पर चले गए। अंग्रेज हुक्मरानों की बढ़ती ज्यादतियों का विरोध करने के लिए यह आंदोलन की शुरुआत की। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 1921 में 396 हड़तालें हुई जिनमें छह लाख श्रमिक शामिल थे और इससे 70 लाख कार्य दिवसों का नुकसान हुआ।
शहरों से लेकर गांव देहात में इस आंदोलन का असर दिखाई देने लगा और सन 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के बाद असहयोग आंदोलन से पहली बार अंग्रेजी राज की नींव हिल गई। 5 फ़रवरी 1922 में किसानों के एक समूह ने संयुक्त प्रांत के गोरखपुर जिले के चौरी-चौरा पुरवा में एक पुलिस स्टेशन पर आक्रमण कर उसमें आग लगा दी।इस अग्निकांड में कई पुलिस वालों की जान चली गई। हिंसा की इस कार्यवाही से गाँधी जी को यह आंदोलन तत्काल वापस लेना पड़ा।
उन्होंने जोर दिया कि, ‘किसी भी तरह की उत्तेजना को निहत्थे और एक तरह से भीड़ की दया पर निर्भर व्यक्तियों की घृणित हत्या के आधार पर उचित नहीं ठहराया जा सकता है’। 12 फ़रवरी 1922 को बारदोली में हुई कांग्रेस की बैठक में असहयोग आन्दोलन को समाप्त करने के निर्णय के बारे में गांधी जी ने यंग इण्डिया में लिखा था कि, "आन्दोलन को हिंसक होने से बचाने के लिए मैं हर एक अपमान, हर एक यातनापूर्ण बहिष्कार, यहाँ तक की मौत भी सहने को तैयार हूँ।" अब गांधी जी ने रचनात्मक कार्यों पर ज़ोर दिया।
असहयोग आंदोलन (1920-21)के प्रमुख कारण थे
- सभी वयस्कों को काँग्रेस का सदस्य बनाना
- तीन सौ सदस्यों की अखिल भारतीय काँग्रेस समिति का गठन
- भाषायी आधार पर प्रांतीय काँग्रेस समितियों का पुनर्गठन
- स्वदेशी मुख्यतः हाथ की कताई-बुनाई को प्रोत्साहन
- यथासंभव हिन्दी का प्रयोग आदि
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मैं तो इंसानियत से मजबूर था तुम्हे बीच मे नही डुबोया" मगर तुमने मुझे क्यों काट लिया!
नदी में बाढ़ आती है छोटे से टापू में पानी भर जाता है वहां रहने वाला सीधा साधा1चूहा कछुवे से कहता है मित्र "क्या तुम मुझे नदी पार करा ...
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