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Thursday, May 6, 2021

Mamata Banerjee नहीं लेतीं सैलरी और पेंशन, जाने कैसे चलता है उनका खर्च।

नई दिल्ली: पश्चिम बंगाल की सियासत में सबसे बड़ी खिलाड़ी के रूप में उभरी ममता बनर्जी ने तीसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली हैै। कोरोना के चलते उनका शपथ ग्रहण बेहद सामान्य रहा और अब बाकी मंत्रियों को बाद में शपथ दिलाई जाएगी। सादा लिबास में लोगों के बीच अपनी लोकप्रियता स्थापित करने वाली ममता का जीवन भी उतना ही सादगी भरा हैै।


विधायक से लेकर सांसद, कैबिनेट मंत्री और फिर तीन बार बंगाल की मुख्यमंत्री बनने के बाद भी ममता एक आम इंसान की तरह अपना जीवन बिताती हैं। सूती साड़ी और पैरों में हवाई चप्पल अब उनकी पहचान बन चुकी है और यही वजह है कि बंगाल की जनता ने लगातार तीसरी बार उन पर भरोसा जताया। बीजेपी की भारी-भरकम सियासी मशीनरी के बावजूद सूबे की सत्ता में बड़ी जीत के बाद उन्होंने वापसी की है।

ममता बनर्जी न सैलरी ली, न ही पेंशन।
एक आम बंगाली ब्राह्मण परिवार में जन्मीं ममता ने न्यूज 18 को दिए एक इंटरव्यू में बताया था कि बीते 7 साल से उन्होंने पूर्व सांसद के तौर पर पेंशन तक नहीं ली है। वह पूर्व सांसद और मंत्री रहने के चलते पेंशन की हकदार हैं। इसके अलावा ममता सूबे के मुख्यमंत्री को मिलने वाली सैलरी भी नहीं लेती हैं। उन्होंने कहा कि ऐसा करके वह सरकार के लाखों रुपये बचा रही हैं और यही उनका तरीका है।

ममता ने इस बातचीत में बताया कि पूर्व सांसद होने के नाते उन्हें संसद से जो पेंशन मिलती है वह बीते 7 साल से नहीं ली गई है। यही नहीं ममता सूबे के मुख्यमंत्री होने के नाते मिलने वाली सैलरी तक नहीं लेती हैं और सरकारी कार तक का इस्तेमाल नहीं करती हैं। वह बताती हैं कि उन्होंने हमेशा प्लेन की इकोनॉमी क्लास में ही सफर किया है। यहां तक कि कभी सरकारी गेस्ट हाउस में ठहरना भी हो तो वह खुद उसका खर्च उठाती हैं।

कैसे चलता है ममता बनर्जी का खर्च।
सैलरी और पेंशन न लेने के बावजूद उनका खर्च कैसे चलता है। इस सवाल के जवाब में ममता कहती हैं कि उनकी किताबों की रॉयल्टी से इसका पैसा आता है। ममता की 80 से ज्यादा किताबें छप चुकी हैं जिनमें से कुछ बेस्ट सेलर भी हैं। इसके अलावा ममता गानों के बोल लिखकर भी अपनी आमदनी करती हैं। वह बताती हैं कि चाय तक अपने पैसे से पीती हूं।
पेटिंग करते ममता बनर्जी की कई तस्वीरें आए दिन सोशल मीडिया पर वायरल होती हैं। उन्हें पेटिंग का शौक भी है और इस काम में वह कुशल भी हैं। हालांकि इस इंटरव्यू में वह बताती हैं कि वह पेटिंग्स को कभी कमाई का जरिया नहीं बनातीं और इनसे होने वाली इनकम को दान कर देती हैं।

साल में कितनी कमाती हैं ममता बनर्जी।
इंटरव्यू के दौरान ममता ने बताया कि गाने लिखने के लिए म्यूजिक कंपनी उन्हें सालाना करीब तीन लाख रुपये देती है। इसके अलावा किताबों की रॉयल्टी से भी साल में 10 लाख के करीब आमदनी हो जाती है। उनके पास आय के सीमित साधन हैं और वह कहती हैं कि अकेले होने की वजह से इतना पैसा उनके लिए काफी है।

Wednesday, August 26, 2020

क्यों! जब हज हाउस बना तो सारे बुद्धिजीवी मौन थे, जब राम मंदिर निर्माण के लिए भूमिपूजन हुआ तो सारे बुद्धिजीवी संविधान की दुहाई देने लगे।

मुस्लिम समुदाय के लोगों का एक 5 दिन का एक धार्मिक जलसा होता है, जो सऊदी अरब राज्य में होता है। इस जलसा में हर देश का मुस्लमान सीरकत होने आता है। यह यात्रा हर राज्य की राजधानी के एक विशेष जगह से शुरु होती है। जिसे हज हाउस कहते हैं। हज हाउस लगभग हर राज्य की राजधानी में उस राज्य के सरकार द्वारा बनाया गया है। जिसको बनाने में लगभग 50 से 60 करोड़ की लागत आया है। जिनमे से प्रमुख रूप से पटना का हज हाउस। अखिलेश यादव द्वारा बनवाया गया गाजियाबाद का हज हाउस। मुंबई का हज हाउस। भोपाल का हज हाउस। रांची हज हाउस। और केजरीवाल सरकार द्वारा बनाए जा रहे हज हाउस का निर्माण कार्य जारी है। तथा कोलकाता का हज हाउस है।
यह सभी हज हाउस सरकारी पैसों पैसे से बना है। बाकी समय बन्द रहता हैं। जब यह हज हाउस का निर्माण हुआ तो ओवैसी सहित किसी को भी भारत का संविधान क्यों नहीं याद आया कि सरकारी पैसे को या सरकारी जमीन को किसी धार्मिक कार्य के लिए किसी एक खास समुदाय के लिए खर्च करना बाबा साहब के संविधान का खुला उल्लंघन है। और सबसे आश्चर्य की बात यह लगा जब दिल्ली का मुख्यमंत्री केजरीवाल और उसका डिप्टी मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया दोनों राम मंदिर पर सैकड़ों बार कह चुके हैं, कि पता नहीं क्यों लोग मंदिर की रट लगाए बैठे हैं। वहां तो यूनिवर्सिटी बना देना चाहिए लेकिन यह दोनों इस वक्त भारत का सबसे आलीशान हज हाउस का निर्माण करवा रहे हैं। अब ये यह नहीं कहते कि इस हज हाउस के जगह हम यूनिवर्सिटी, अस्पताल बना दे। कुछ हज हाउस और उसकी कीमत देखे।
गाजियाबाद का हज हाउस
गाजियाबाद में समाजवादी पार्टी सरकार द्वारा आजम खान के ड्रीम प्रॉजेक्ट हज हाउस का करीब ₹51 करोड़ की लागत से निर्माण कराया गया था। 4.3 एकड़ में बने इस हज हाउस में ग्राउंड प्लस 6 फ्लोर बनाए गए हैं, जिसमें 47 डॉरमेट्री हॉल और 36 वीआईपी कमरे भी शामिल हैं। इस हज हाउस में करीब 2000 लोग एक साथ बैठ सकते हैं। यह हज हाउस पूरी सुविधाओं से लैस है, जिसका उद्घाटन सितंबर 2016 में पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के द्वारा किया गया था।

रांची का हज हाउस
मुख्यमंत्री रघुवर दास ने झारखण्ड की राजधानी रांची के कडरू में हज हाउस के उदघाटन के दौरान कहा कि झारखंड सरकार सबका साथ सबका विकास के साथ सबके विश्वास जीतने में भरोसा रखती है। यह हज हाउस
55 करोड़ की लागत से तैयार।
भोपाल का हज हाऊस
भोपाल के सिंगारचोली में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सोमवार दोपहर इसकी बुनियाद रखने जा रहे हैं। अगले साल के अंत तक यह बन जाएगा। 6 करोड़ 11 लाख की लागत से प्रस्तावित इस हज हाऊस में डेढ़ हजार हज यात्री ठहर सकेंगे।

मुंबई हज हाउस
दक्षिण मुंबई में छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस (सीएसएमटी) के पास स्थित हज हाउस इसकी लागत का कोई पुख्ता प्रमाण नहीं मिल पाया है।
नवा रायपुर में नया हज हाउस
नवा रायपुर में नया हज हाउस एयरपोर्ट से लगभग एक किमी की दूरी पर स्थित 3 एकड़ जमीन पर 14 करोड़ की लागत से सर्वसुविधायुक्त हज हाउस का निर्माण हुआ है।

दिल्ली हज हाउस
दिल्ली सरकार ने लगभग एक दशक के बाद, द्वारका सेक्टर 22 में हज हाउस बनाने के लिए कम से कम 93.47 करोड़ रुपये की लागत से हज हाउस का निर्माण कार्य शुरू कर दिया है। इस हज हाउस में केंद्र के वातानुकूलित घर में अत्याधुनिक सुविधाएं होंगी, जिनमें पुरुषों और महिलाओं के लिए अलग-अलग डोरमेट्री, वीआईपी सुइट, इमिग्रेशन काउंटर, प्रार्थना हॉल, रसोई और डाइनिंग हॉल शामिल हैं।
कोलकाता का हज हाउस
कोलकाता का हज हाउस की लागत 100 करोड़ रुपए बताई गई है।
Executive Officer,
West Bengal Haj Committee,
Haj House (Baitul Hujjaj),
26-B, Dilkhusha Street, Park Circus
KOLKATA - 700 017
West Bengal.
यह लेेेख किसी की भावनाओंं को आहत करने के लिए नहीं लिखी गई हैं। इस लेेख का एक मात्र उद्देश्य है। आम जनता को इन नेेेेताओ की दोहरी राजनीतिि को समाज के सामने लाना है। भारत में 135 करोड़ जनता है। जिसमे से 100 करोड़ से ज्यादा हिंदू हैं। आखिर क्यों 
मुस्लिमो को खुश करने के लिए 100 करोड़ से ज्यादा हिंदू आे को अपनानित करते हैं। यह नेता।

Friday, August 14, 2020

पंडित जवाहरलाल नेहरू और कमला नेहरू दोनों कि अलग होने की कहानी

जवाहर लाल नेहरू की पत्नी कमला नेहरू की मौत की सच्चाई।
टीवी चैनेलो पर सबसे ज्यादा कांग्रेसी चिल्लाते हैं, कि मोदी जी ने अपनी पत्नी को छोड़ दिया l लेकिन आज यह भयावह सच्चाई भी जानिये!

नेहरु की पत्नी कमला नेहरु को टीबी हो गई थी, उस जमाने में टीबी का दहशत ठीक ऐसा ही था जैसा आज कोरोना का है। क्योंकि तब टीबी का इलाज नही था और इन्सान तिल तिल तडप तडपकर पूरी तरह गलकर हड्डी का ढांचा बनकर मरता था। और कोई भी टीबी मरीज में पास भी नही जाता था क्योकि टीबी सांस से फैलती थी। लोग पहाड़ी इलाके में बने टीबी सेनिटोरियम में भर्ती कर देते थे। नेहरु में अपनी पत्नी को युगोस्लाविया के प्राग शहर में सेनिटोरियम में भर्ती करवा दिया।
कमला नेहरु पूरे दस सालों तक अकेले टीबी सेनिटोरियम में पल पल मौत का इंतजार करती रही। लेकिन नेहरु दिल्ली में एडविना और दूसरों के साथ इश्क फरमाता रहे लेकीन अपनी धर्म पत्नी से मिलने नहीं गए। मजे की बात ये कि इस दौरान नेहरु कई बार ब्रिटेन गया लेकिन एक बार भी वो प्राग जाकर अपनी धर्मपत्नी का हालचाल नही पूछा। नेताजी सुभाषचन्द्र बोस को जब पता चला तब वो प्राग गये। डाक्टरों से और अच्छे इलाज के बारे में बातचीत की।
 प्राग के डाक्टरों ने कहा कि स्विट्जरलैंड के बुसान शहर में एक आधुनिक टीबी हॉस्पिटल है जहाँ इनका अच्छा इलाज हो सकता है। तुरंत ही नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने उस जमाने में 70 हजार रूपये इकट्ठे किये और उन्हें विमान से स्विटजरलैंड के बुसान शहर में होस्पिटल में भर्ती किया। लेकिन कमला नेहरु असल में मन से बेहद टूट चुकी थी। उन्हें इस बात का दुःख था की उनका पति उनके पास पिछले दस सालो से हालचाल लेने तक नही आये और दूसरे लोग उनकी देखभाल कर रहे है।
दो महीनों तक बुसान में भर्ती रहने के बाद 28 February 1936 को बुसान में ही कमला नेहरु की मौत हो गयी। उनके मौत के दस दिन पहले ही नेताजी सुभाषचन्द्र ने नेहरु को तार भेजकर तुरंत बुसान आने को कहा था।लेकिन नेहरु नही आये। फिर नेहरु को उसकी पत्नी के मौत का तार भेजा गया। फिर भी नेहरु अपनी पत्नी के अंतिम संस्कार में भी नही आये। अंत में स्विटजरलैंड के बुसान शहर में ही नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने नेहरु की पत्नी कमला नेहरु का अंतिम संस्कार करवाया। वामपंथी तथा कथित इतिहासकारों ने इस खानदान की गंदी सच्चाई ही इतिहास की किताबो से गायब कर दी।

Sunday, July 12, 2020

गुजरात कांग्रेस का उत्तराधिकारी मिला हार्दिक पटेल को कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया।

ऐसे राजनितिक गलियारों में चर्चाएं तमाम होती है। किसी की कुर्सी जाती हैं तो किसी की कुर्सी आती हैं जैसा कि पहले से होता आ रहा है। आज भी ठीक वैसा ही हुआ गुजरात कांग्रेस ने गुजरात में पाटीदार आरक्षण आंदोलन से चर्चित हुए युवा नेता हार्दिक पटेल को शनिवार को प्रदेश कांग्रेस कमेटी का कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त किया। पार्टी के संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल की ओर से जारी बयान के मुताबिक कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने हार्दिक पटेल की तत्काल प्रभाव से नियुक्ति को स्वीकृति प्रदान की। 
इससे पहले कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने शनिवार को पार्टी के लोकसभा सदस्यों के साथ डिजिटल बैठक की जिसमें देश की वर्तमान राजनीतिक परिस्थिति एवं कोरोना महामारी के हालात पर चर्चा की गई। हालांकि इस दौरान कई सांसदों ने यह मांग की कि राहुल गांधी को फिर से पार्टी की कमान संभालनी चाहिए। सूत्रों के मुताबिक, इस बैठक में के. सुरेश, अब्दुल खालिक, गौरव गोगोई और कुछ अन्य सांसदों ने राहुल गांधी से आग्रह किया कि वह फिर से पार्टी की कमान संभालें।
दिग्विजय के मुताबिक, कांग्रेस नेतृत्व को संगठन के निर्माण की चुनौती हाथ में लेनी चाहिए। यहीं पर हमें राहुल और प्रियंका के बहुआयामी नेतृत्व की जरूरत है। मुझे भरोसा है कि दोनों में यह दम और साहस है कि वे ‘मोदी-शाह जोड़ी’ का मुकाबला कर सकें।

Saturday, July 11, 2020

'जय जवान, जय किसान' का नारा देने वाले लाल बहादुर शास्त्री का योगदान।

लाल बहादुर शास्त्री एक दुर्लभ भारतीय राजनेता 
दो घंटे युद्ध और चलता, तो भारत की सेना ने लाहोर तक कब्जा कर लिया होता। लेकिन तभी पाकिस्तान को लगा कि जिस रफ्तार से भारत की सेना आगे बढ़ रही हमारा तो पूरा अस्तित्व ही खत्म हो जाएगा।
(भारत और पाकिस्तान के बीच 1965 का युद्ध
भारत पाक युद्ध का भाग
तिथि - अगस्त – सितम्बर 23, 1965
स्थान -भारतीय उपमहाद्वीप
परिणाम-संयुक्त राष्ट्र के घोषनापत्र के द्वारा युद्धविराम)

तभी पाकिस्तान ने अमेरिका से कहा कि वो किसी तरह से युद्ध रुकवा दे। अमेरिका जानता था कि शास्त्री जी इतनी जल्दी नहीं मानने वाले थे। क्यूँ कि वो पहले भी दो -तीन बार भारत को धमका चुका था। धमका कैसे चुका था?
अमेरिका से गेहूं आता था भारत के लिए PL 48 स्कीम के अंडर। PL मतलब Public Law 48। जैसे भारत मे सविधान मे धराए होती है, ऐसे अमेरिका मे PL होता है।तो बिलकुल लाल रंग का सड़ा हुआ गेंहू अमेरिका से भारत मे आता था। और ये समझोता पंडित नेहरू ने किया था। जिस गेंहू को अमेरिका मे जानवर भी नहीं खाते थे उसे भारत के लोगो के लिए आयात करवाया जाता था। आपके घर मे कोई बुजुर्ग हो आप उनसे पूछ सकते हैं। कितना घटिया गेहूं होता था वो। तो अमेरिका ने भारत को धमकी दी कि हम भारत को गेहूं देना बंद कर देंगे। तो शास्त्री जी ने कहा हाँ कर दो। 
फिर कुछ दिन बाद अमेरिका का ब्यान आया कि अगर भारत को हमने गेंहू देना बंद कर दिया। तो भारत के लोग भूखे मर जाएँगे। शास्त्री जी ने कहा हम बिना गेंहू के भूखे मारे या बहुत अधिक खा के मरे। तुम्हें क्या तकलीफ है? हमे भूखे मारना पसंद होगा बेशर्ते तुम्हारे देश का सड़ा हुआ गेंहू खाके। एक तो हम पैसे भी पूरे दे ऊपर से सड़ा हुआ गेहूं खाये। नहीं चाहीये तुम्हारा गेंहू। फिर शास्त्री ने दिल्ली मे एक रामलीला मैदान मे लाखो लोगो से निवेदन किया कि एक तरफ पाकिस्तान से युद्ध चल रहा है। ऐसे हालातो मे देश को पैसे कि बहुत जरूरत पड़ती है। सब लोग अपने फालतू खर्चे बंद करे। ताकि वो Domestic Saving से देश के काम आए। या आप सीधे सेना के लिए दान दे। और हर व्यति सप्ताह से एक दिन सोमवार का वर्त जरूर रखे। तो शास्त्री जी के कहने पर देश के लाखो लोगो ने सोमवार को व्रत रखना शुरू कर दिया।
हुआ ये कि हमारे देश मे ही गेहु बढ्ने लगा। और शास्त्री जी भी खुद सोमवार का व्रत रखा और आगे भी रखते थे। शास्त्री जी ने जो लोगो से कहा पहले उसका पालन खुद किया। उनके घर मे बाई आती थी। जो साफ सफाई और कपड़े धोती थी।तो शास्त्री जी उसको हटा दिया और बोला। देश हित के लिए मैं इतना खर्चा नहीं कर सकता। मैं खुद ही घर कि सारी सफाई करूंगा। क्योंकि पत्नी ललिता देवी बीमार रहा करती थी। और शास्त्री जी अपने कपड़े भी खुद धोते थे। उनके पास सिर्फ दो जोड़ी धोती कुरता ही थी। उनके घर मे एक ट्यूटर भी आया करता था जो उनके बच्चो को अँग्रेजी पढ़ाया करता
था। तो शास्त्री जी ने उसे भी हटा दिया। तो उसने शास्त्री जी ने कहा कि आपका बच्चा अँग्रेजी मे फेल हो जाएगा। तब शास्त्री जी ने कहा होने दो। देश के हजारो बच्चे अँग्रेजी मे ही फेल होते है तो इसे भी होने दो। अगर अंग्रेज़ हिन्दी मे फेल हो सकते है तो भारतीय अँग्रेजी मे फेल हो सकते हैं। ये तो स्व्भविक है क्योंकि अपनी भाषा ही नहीं है ये।
 एक दिन शास्त्री जी की पत्नी ने कहा कि आपकी धोती फट गई है। आप नई धोती ले आईये। शास्त्री जी ने कहा बेहतर होगा, कि सूई धागा लेकर तुम इसको सिल दो। मैं नई धोती लाने की कल्पना भी नहीं कर सकता। मैंने सब कुछ छोड़ दिया है पगार लेना भी बंद कर दिया है। और जितना हो सके कम से कम खर्चे मे घर का खर्च चलाओ। अंत मे शास्त्री जी युद्ध के बाद समझोता करने ताशकंद गए। और फिर जिंदा कभी वापिस नहीं लौट पाये। पूरे देश को बताया गया की उनकी मृत्यु हो गई। जब कि उनकी हत्या कि गई थी।
भारत मे शास्त्री जी जैसा सिर्फ एक मात्र प्रधानमंत्री हुआ। जिसने अपना पूरा जीवन आम आदमी की तरह व्यतीत किया। और पूरी ईमानदारी से देश के लिए अपना फर्ज अदा किया। जिसने जय जवान और जय किसान का नारा दिया। क्योंकि उनका मानना था देश के लिए अनाज पैदा करने वाला किसान और सीमा कि रक्षा करने वाला जवान दोनों देश ले लिए सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है। स्वदेशी की राह पर उन्होने देश को आगे बढ़ाया। विदेशी कंपनियो को देश मे घुसने नहीं दिया।अमेरिका का सड़ा गेंहू बंद करवाया। ऐसा प्रधानमंत्री भारत को शायद ही कभी मिले ! अंत मे जब उनकी Paas Book चेक की गई तो सिर्फ 365 रुपए 35 पैसे थे उनके बैंक एकाउंट मे। शायद आज कल्पना भी नहीं किया जा सकता हैं की ऐसा नेता भारत मे कभी हुआ था ना होगा।

Friday, July 3, 2020

चाय बेचने वाला एक साधारण परिवार का लड़का मुख्यमत्री और प्रधानंत्री कैसे बना।

आज हम बात कर रहे है दुनिया के सबसे लोकप्रिय नेता और भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द दामोदर दास मोदी की  मोदी का जन्म तत्कालीन बॉम्बे राज्य के महेसाना जिला स्थित वडनगर ग्राम में हीराबेन मोदी और दामोदरदास मूलचन्द मोदी के एक मध्यम-वर्गीय परिवार में 17 सितम्बर 1950 को हुआ था। वह पैदा हुए छह बच्चों में तीसरे थे। मोदी का परिवार 'मोध-घांची-तेली समुदाय से था, जिसे भारत सरकार द्वारा अन्य पिछड़़ा वर्ग के रूप में वर्गीकृत किया जाता है। वह पूर्णत: शाकाहारी हैं। भारत पाकिस्तान के बीच द्वितीय विश्वयुद्ध के  दौरान अपने तरुणकाल में उन्होंने स्वेच्छा से रेलवे स्टेशनों पर सफ़र कर रहे सैनिकों की सेवा की। युवावस्था में वह छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में शामिल हुए | उन्होंने साथ ही साथ भ्रष्टाचार विरोधी नव निर्माण आन्दोलन में हिस्सा लिया। एक पूर्णकालिक आयोजक के रूप में कार्य करने के पश्चात् उन्हें भारतीय जनता पार्टी में संगठन का प्रतिनिधि मनोनीत किया गया।
किशोरावस्था में अपने भाई के साथ एक चाय की दुकान चला चुके मोदी ने अपनी स्कूली शिक्षा वडनगर में पूरी की। उन्होंने आरएसएस के प्रचारक रहते हुए 1980 में   गुजरात  विश्वविद्यालय  से  राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर परीक्षा दी और विज्ञान स्नातकोत्तर की डिग्री प्राप्त की। अपने माता-पिता की कुल छ: सन्तानों में तीसरे पुत्र नरेन्द्र ने बचपन में रेलवे स्टेशन पर चाय बेचने में अपने पिता का भी हाथ बँटाया। बड़नगर के ही एक स्कूल मास्टर के अनुसार नरेन्द्र हालाँकि एक औसत दर्ज़े का छात्र थे, लेकिन वाद-विवाद और नाटक प्रतियोगिताओं में उसकी बेहद रुचि थी। 
इसके अलावा उसकी रुचि राजनीतिक विषयों पर नयी-नयी परियोजनाएँ प्रारम्भ करने की भी थी। 13 वर्ष की आयु में नरेन्द्र की सगाई जसोदा बेन चमनलाल के साथ कर दी गयी और जब उनका विवाह हुआ, तब वह मात्र 17 वर्ष के थे। फाइनेंशियल एक्सप्रेस की एक खबर के अनुसार पति-पत्नी ने कुछ वर्ष साथ रहकर बिताये। परन्तु कुछ समय बाद वे दोनों एक दूसरे के लिये अजनबी हो गये क्योंकि नरेन्द्र मोदी ने उनसे कुछ ऐसी ही इच्छा व्यक्त की थी। जबकि नरेन्द्र मोदी के जीवनी-लेखक ऐसा नहीं मानते। उनका कहना है।
"उन दोनों की शादी जरूर हुई परन्तु वे दोनों एक साथ कभी नहीं रहे। शादी के कुछ बरसों बाद नरेन्द्र मोदी ने घर त्याग दिया और एक प्रकार से उनका वैवाहिक जीवन लगभग समाप्त-सा ही हो गया।"

पिछले चार विधान सभा चुनावों में अपनी वैवाहिक स्थिति पर खामोश रहने के बाद नरेन्द्र मोदी ने कहा कि अविवाहित रहने की जानकारी देकर उन्होंने कोई पाप नहीं किया। नरेन्द्र मोदी के मुताबिक एक शादीशुदा के मुकाबले अविवाहित व्यक्ति भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ जोरदार तरीके से लड़ सकता है क्योंकि उसे अपनी पत्नी, परिवार व बालबच्चों की कोई चिन्ता नहीं रहती।हालांकि नरेन्द्र मोदी ने शपथ पत्र प्रस्तुत कर जसोदाबेन को अपनी पत्नी स्वीकार किया है।


 आठ साल की उम्र में वे आरएसएस से जुड़े, जिसके साथ एक लंबे समय तक सम्बंधित रहे। स्नातक होने के बाद उन्होंने अपने घर छोड़ दिया। मोदी ने दो साल तक भारत भर में यात्रा की, और कई धार्मिक केन्द्रों का दौरा किया। 1969 या 1970 वे गुजरात लौटे और अहमदाबाद चले गए। 1971 में वह आरएसएस के लिए पूर्णकालिक कार्यकर्ता बन गए। 1975 में देश भर में आपातकाल की स्थिति के दौरान उन्हें कुछ समय के लिए छिपना पड़ा। 1985 में वे बीजेपी से जुड़े और 2001 तक पार्टी पदानुक्रम के भीतर कई पदों पर कार्य किया, जहाँ से वे धीरे धीरे भाजपा में सचिव के पद पर पहुँचे।

गुजरात भूकंप 2001,
(भुज में भूकंप) के बाद गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल असफल स्वास्थ्य और ख़राब सार्वजनिक छवि के कारण नरेंद्र मोदी को 2001 में गुजरात के मुख्यमंत्री नियुक्त किया गया। मोदी जल्द ही विधायी विधानसभा के लिए चुने गए। 2002 के गुजरात दंगों में उनके प्रशासन को कठोर माना गया है, इस दौरान उनके संचालन की आलोचना भी हुई। हालांकि सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त विशेष जांच दल (एसआईटी) को अभियोजन पक्ष की कार्यवाही शुरू करने के लिए कोई सबूत नहीं मिला। मुख्यमंत्री के तौर पर उनकी नीतियों को आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करने के लिए श्रेय दिया गया। उनके नेतृत्व में भारत की प्रमुख विपक्षी पार्टी भारतीय जनता पार्टी ने 2014 का लोकसभा चुनाव लड़ा और 282 सीटें जीतकर अभूतपूर्व सफलता प्राप्त की। एक सांसद के रूप में उन्होंने उत्तर प्रदेश की सांस्कृतिक नगरी वाराणसी एवं अपने गृहराज्य गुजरात के वडोदरा संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़ा और दोनों जगह से जीत दर्ज़ की। उनके राज में भारत का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश एवं बुनियादी सुविधाओं पर खर्च तेज़ी से बढ़ा। उन्होंने अफसरशाही में कई सुधार किये तथा योजना आयोग को हटाकर नीति आयोग का गठन किया। 
इसके बाद वर्ष 2019 में भारतीय जनता पार्टी ने उनके नेतृत्त्व में दोबारा चुनाव लड़ा और इस बार पहले से भी ज्यादा बड़ी जीत हासिल हुई। पार्टी ने कुल 303 सीटों पर जीत हासिल की। भाजपा के समर्थक दलों यानी एनडीए को कुल 352 सीटें प्राप्त हुईं। 30 मई 2019 को शपथ ग्रहण कर नरेंद्र मोदी लगातार दूसरी बार प्रधानमंत्री बने। इससे पूर्व वे गुजरात राज्य के 14 वें मुख्यमंत्री रहे। उन्हें उनके काम के कारण गुजरात की जनता ने लगातार 4 बार (2001 से 2014 तक) मुख्यमन्त्री चुना। गुजरात विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर डिग्री प्राप्त नरेन्द्र मोदी विकास पुरुष के नाम से जाने जाते हैं और वर्तमान समय में देश के सबसे लोकप्रिय नेताओं में से हैं। माइक्रो-ब्लॉगिंग साइट ट्विटर पर भी वे सबसे ज्यादा फॉलोअर (4.5करोड़+, जनवरी 2019) वाले भारतीय नेता हैं। उन्हें 'नमो' नाम से भी जाना जाता है। टाइम पत्रिका ने मोदी को पर्सन ऑफ़ द ईयर 2013 के 42 उम्मीदवारों की सूची में शामिल किया है
नरेन्द्र मोदी एक राजनेता और कवि हैं। वे गुजरती भाषा के अलावा हिन्दी में भी देशप्रेम से ओतप्रोत कविताएँ लिखते हैं।
नरेंद्र मोदी अपने मुख्यमंत्री के कार्यकाल से लेकर अब तक छुट्टी लेना उचित नही समझते है। ओ अब तक के ऎशे प्रधानमंत्री है जिनके विदेश दौरे में बाकी के प्रधानन्त्री से बहुत कम खर्च आया है। ये अब तक के सबसे पसंदीदा राजनेता भी है जो अपने कार्यकाल में अपने से पूर्व प्रधानमंत्री के हटने के बाद अपना स्टाफ नहीं बदले । अब तक जो भी नए प्रधानमंत्री बना ओ अपना स्टाफ बदल देता था लेकिन मोदी सरकार में ऎसा कुछ भी नहीं देखने को मिला।
प्रधान मंत्री मोदी त्यौहारो में अक्सर सरहद पर सक्रिय सैनिकों के साथ बिताते हैं।

मैं तो इंसानियत से मजबूर था तुम्हे बीच मे नही डुबोया" मगर तुमने मुझे क्यों काट लिया!

नदी में बाढ़ आती है छोटे से टापू में पानी भर जाता है वहां रहने वाला सीधा साधा1चूहा कछुवे  से कहता है मित्र  "क्या तुम मुझे नदी पार करा ...