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Friday, August 14, 2020

परमवीर मेजर शैतान सिंह, जो मरने तक चलाते रहे अपने पैर से मशीन-गन ।

लेफ्टिनेंट कर्नल हेम सिंह जिन्होंने प्रथम विश्व युद्ध के दौरान फ्रांस में भारतीय सेना के साथ सेवा की और ब्रिटिश सरकार द्वारा ऑर्डर ऑफ द ब्रिटिश एम्पायर  (ओबीई) से सम्मानित किए गए थे।  उनके पुत्र शैतान सिंह भाटी का जन्म 1 दिसम्बर 1924 को राजस्थान के जोधपुर जिले के बंसार गांव के एक राजपूत परिवार में हुआ था। अगर शक्ल और नाम देखेंं तो कोई मेल नहीं खाता।


शैतान सिंह ने जोधपुर के राजपूत हाई स्कूल में अपनी मैट्रिक तक की पढाई की । स्कूल में वह एक फुटबॉल खिलाड़ी के रूप में अपने कौशल के लिए जाने जाते थे। 1943 में स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद सिंह जसवंत कॉलेज गए और उन्होंने 1947 में स्नातक किया। 1 अगस्त 1949 को वह एक अधिकारी के रूप में जोधपुर राज्य बलों में शामिल हो गए। 

जोधपुर की रियासत का भारत में विलय हो जाने के बाद उन्हें कुमाऊं रेजीमेंट में स्थानांतरित कर दिया गया। उन्होंने नागा हिल्स ऑपरेशन तथा 1961 में गोवा के भारत में विलय में हिस्सा लिया था। उन्हें 11 जून 1962 को उन्हें मेजर पद के लिए पदोन्नत किया गया था। 

रेज़ांग ला का युद्ध 

युद्ध के दौरान कुमाऊं रेजिमेंट की 13वीं बटालियन को चुसुल सेक्टर में तैनात किया गया था। समुद्र तल से 5,000 मीटर (16,000 फीट) की ऊंचाई पर, सिंह की कमान में सी कंपनी रेजांग ला में एक स्थान पर थी, और इस क्षेत्र को पांच प्लाटून पोस्टों द्वारा बचाव किया जा रहा था। 18 नवंबर 1962 की सुबह चीनी सेना ने हमला कर दिया पर भारतीयों ने आक्रामक तरीके से तैयारी की थी क्योंकि उन्होंने चीनी सेना को सुबह 5 बजे के मंद प्रकाश में आगे बढ़ते हुए देखा था। जैसे ही भारतीयों ने दुश्मन को पहचाना, उन पर लाइट मशीन गन, राइफल्स, मोर्टार, और ग्रेनेड, से हमला कर दिया और कई चीनी सैनिक मार गिराए। 5:40 बजे चीनी सेना ने पुनः मोर्टार से हमले करने शुरू कर दिए और लगभग 350 चीनी सैनिकों ने आगे बढ़ना शुरू किया। चीनी सेना द्वारा सामने से किए गए हमले असफल होने के बाद लगभग चार सौ चीनी सैनिकों ने पीछे से हमला किया। साथ ही 8वीं प्लाटून पर मशीन गन और मोर्टार से पोस्ट के तार बाड़ के पीछे से हमला किया गया और 7वीं प्लाटून पर 120 चीनी सैनिकों ने पीछे से हमला किया। भारतीयों ने 3 इंच (76 मिमी) मोर्टार के गोले से मुकाबला किया और कई चीनी सैनिकों को मार दिया। जैसे ही आखिरी 20 जीवित लोग बचे, भारतीयों ने अपनी खाइयों से बाहर निकल कर चीनी सैनिकों के साथ हाथ से हाथ से लड़ने लड़ने लग गए। हालांकि प्लाटून जल्द ही चीन के अतिरिक्त सैनिकों के आगमन से घेर ली गई और आखिरकार 7वीं और 8वीं प्लाटून में से कोई जीवित नहीं बचा।

युद्ध के दौरान मेजर सिंह भाटी लगातार पोस्टों के बीच सामंजस्य तथा पुनर्गठन बना कर लगातार जवानों का हौसला बढ़ाते रहे। चूँकि वह एक पोस्ट से दूसरी पोस्ट पर बिना किसी सुरक्षा के जा रहे थे अतः वह गंभीर रूप से घायल हो गए और वीर गति को प्राप्त हो गए। इस युद्ध में भारत के 123 में से 109 सैनिक शहीद हुए थे। वीरगति को प्राप्त होने के बाद इनके पार्थिव शरीर को जोधपुर लाया गया था और सैन्य सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया।

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