पारसी नववर्ष पारसी समुदाय में बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। पारसी धर्म में इसे खौरदाद साल के नाम से जाना जाता है। पारसियों में 1 साल 360 दिन का होता है और बाकी बचें 5 दिन गाथा के रूप में अपने पूर्वजों को याद करने के लिए रखा जाता है। साल के खत्म होने के ठीक 5 दिन पहले इसे मनाया जाता है।
दरअसल सातवीं शाताब्दी में जब ईरान में धर्म परिवर्तन की मुहिम चली तो वहां के कई पारसियों ने अपना धर्म परिवर्तित कर लिया, लेकिन कई पारसी जिन्हें यह धर्म परिवर्तन करना मंजूर नहीं था वे लोग ईरान को छोड़कर भारत आ गए। और इसी धरती पर अपने संस्कारों को सहेज कर रखना शुरू कर दिया।
लोक कथाओं के मुताबिक नबी जरथुश्त्र ने यह पर्व बनाया था और यह त्योहार आज भी महाराष्ट्र के अधिकांश हिस्सों में एक मुख्य त्योहार के रूप में मनाते हैं। वैसे तो पूरे विश्व के दूसरे पारसी समुदायों के बीच 21 मार्च को नवरोज का पर्व मनाया जाता है। नवरोज़, फारस के राजा जमशेद की याद में मनाते हैं, जिन्होंने पारसी कैलेंडर की स्थापना की थी। इस दिन पारसी परिवार के लोग नए कपड़े पहनकर अपने उपासना स्थल फायर टेंपल जाते हैं और प्रार्थना के बाद एक दूसरे को नए साल की मुबारकबाद देते हैं। साथ ही इस दिन घर की साफ-सफाई कर घर के बाहर रंगोली बनाई जाती है और कई तरह के पकवान भी बनते हैं।
भारत में पारसी समुदाय के लोग एक छोटे से अल्पसंख्यक समुदाय है, लेकिन दशकों में विभिन्न क्षेत्रों में प्रख्यात व्यक्तित्वों का उत्पादन किया है। पारसी नव वर्ष को नवरोज भी कहा जाता है। पारसी भाषा में नव का मतलब नया और रोज का मतलब दिन होता है, तो नवरोज को नया दिन कहा जाता है। इस दिन से नए पारसी कैलेंडर की शुरूआत की जाती है।