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Tuesday, July 21, 2020

राम मंदिर को कब और कैसे बाबरी मस्जिद में बदला गया! वास्तविक इतिहास को हिन्दूओ से दूर रखा गया। Part 01

अयोध्या को भगवान श्रीराम के पूर्वज विवस्वान (सूर्य) के पुत्र वैवस्वत मनु ने बसाया था, तभी से इस नगरी पर सूर्यवंशी राजाओं का राज महाभारतकाल तक रहा। यहीं पर प्रभु श्रीराम का दशरथ के महल में जन्म हुआ था। महर्षि वाल्मीकि ने भी रामायण में जन्मभूमि की शोभा एवं महत्ता की तुलना दूसरे इन्द्रलोक से की है। धन-धान्य व रत्नों से भरी हुई अयोध्या नगरी की अतुलनीय छटा एवं गगनचुंबी इमारतों के अयोध्या नगरी में होने का वर्णन भी वाल्मीकि रामायण में मिलता है। कहते हैं, कि भगवान श्रीराम के जल समाधि लेने के पश्चात अयोध्या कुछ काल के लिए उजाड़-सी गई थी, लेकिन उनकी जन्मभूमि पर बना महल वैसे का वैसा ही था। भगवान श्रीराम के पुत्र कुश ने एक बार पुन: राजधानी अयोध्या का पुनर्निर्माण कराया। इस निर्माण के बाद सूर्यवंश की अगली 44 पीढ़ियों तक इसका अस्तित्व आखिरी राजा, महाराजा बृहद्बल तक अपने चरम पर रहा। कौशलराज बृहद्बल की मृत्यु महाभारत युद्ध में अभिमन्यु के हाथों हुई थी। महाभारत के युद्ध के बाद अयोध्या उजड़-सी हो गई, मगर श्रीराम जन्मभूमि का अस्तित्व फिर भी बना रहा।
ईसा के लगभग 100 वर्ष पूर्व उज्जैन के चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य एक दिन आखेट करते-करते अयोध्या पहुंच गए। थकान होने के कारण अयोध्या में सरयू नदी के किनारे एक आम के वृक्ष के नीचे वे अपनी सेना सहित आराम करने लगे। उस समय यहां घना जंगल हो चला था। कोई बसावट भी यहां नहीं थी। महाराज विक्रमादित्य को इस भूमि में कुछ चमत्कार दिखाई देने लगे। तब उन्होंने खोज आरंभ की और पास के योगी व संतों की कृपा से उन्हें ज्ञात हुआ कि यह श्रीराम की अवध भूमि है। उन संतों के निर्देश से सम्राट ने यहां एक भव्य मंदिर के साथ ही कूप, सरोवर, महल आदि बनवाए। कहते हैं कि उन्होंने श्रीराम जन्मभूमि पर काले रंग के कसौटी पत्थर वाले 84 स्तंभों पर विशाल मंदिर का निर्माण करवाया था। इस मंदिर की भव्यता देखते ही बनती थी। विक्रमादित्य के बाद के राजाओं ने समय-समय पर इस मंदिर की देख-रेख की। उन्हीं में से एक शुंग वंश के प्रथम शासक पुष्यमित्र शुंग ने भी मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था। पुष्यमित्र का एक शिलालेख अयोध्या से प्राप्त हुआ था जिसमें उसे सेनापति कहा गया है तथा उसके द्वारा दो अश्वमेध यज्ञों के किए जाने का वर्णन है। अनेक अभिलेखों से ज्ञात होता है कि गुप्तवंशीय चन्द्रगुप्त द्वितीय के समय और तत्पश्चात काफी समय तक अयोध्या गुप्त साम्राज्य की राजधानी थी। गुप्तकालीन महाकवि कालिदास ने अयोध्या का रघुवंश में कई बार उल्लेख किया है।
 
इतिहासकारों के अनुसार 600 ईसा पूर्व अयोध्या में एक महत्वपूर्ण व्यापार केंद्र था। इस स्थान को अंतरराष्ट्रीय पहचान 5 वीं शताब्दी में ईसा पूर्व के दौरान तब मिली जबकि यह एक प्रमुख बौद्ध केंद्र के रूप में विकसित हुआ। तब इसका नाम साकेत था। कहते हैं कि चीनी भिक्षु फा-हियान ने यहां देखा कि कई बौद्ध मठों का रिकॉर्ड रखा गया है। यहां पर 7वीं शताब्दी में चीनी यात्री हेनत्सांग आया था। उसके अनुसार यहां 20 बौद्ध मंदिर थे तथा 3,000 भिक्षु रहते थे और यहां हिन्दुओं का एक प्रमुख और भव्य मंदिर भी था, जहां रोज हजारों की संख्या में लोग दर्शन करने आते थे।
पानीपत के युद्ध के बाद जयचंद का भी अंत हो गया। इसके बाद भारतवर्ष पर आक्रांताओं का आक्रमण और बढ़ गया। आक्रमणकारियों ने काशी, मथुरा के साथ ही अयोध्या में भी लूटपाट की और पुजारियों की हत्या कर मूर्तियां तोड़ने का क्रम जारी रखा। लेकिन 14वीं सदी तक वे अयोध्या में राम मंदिर को तोड़ने में सफल नहीं हो पाए।
 विभिन्न आक्रमणों के बाद भी सभी झंझावातों को झेलते हुए श्रीराम की जन्मभूमि पर बना भव्य मंदिर 14 वीं शताब्दी तक बचा रहा। कहते हैं कि सिकंदर लोदी के शासनकाल के दौरान यहां मंदिर मौजूद था। 14वीं शताब्दी में हिन्दुस्तान पर मुगलों का अधिकार हो गया और उसके बाद ही राम जन्मभूमि एवं अयोध्या को नष्ट करने के लिए कई अभियान चलाए गए। अंतत: 1527-28 में इस भव्य मंदिर को तोड़ दिया गया और उसकी जगह बाबरी ढांचा खड़ा किया गया। कहते हैं, कि मुगल साम्राज्य के संस्थापक बाबर के एक सेनापति ने बिहार अभियान के समय अयोध्या में श्रीराम के जन्मस्थान पर स्थित प्राचीन और भव्य मंदिर को तोड़कर एक मस्जिद बनवाई थी, जो 1992 तक विद्यमान रही।
 बाबरनामा के अनुसार 1528 में अयोध्या पड़ाव के दौरान बाबर ने मस्जिद निर्माण का आदेश दिया था। अयोध्या में बनाई गई मस्जिद में खुदे दो संदेशों से इसका संकेत भी मिलता है। इसमें एक खासतौर से उल्लेखनीय है। इसका सार है, 'जन्नत तक जिसके न्याय के चर्चे हैं, ऐसे महान शासक बाबर के आदेश पर दयालु मीर बकी ने फरिश्तों की इस जगह को मुकम्मल रूप दिया।हालांकि यह भी कहा जाता है कि अकबर और जहांगीर के शासनकाल में हिन्दुओं को यह भूमि एक चबूतरे के रूप से सौंप दी गई थी लेकिन क्रूर शासक औरंगजेब ने अपने पूर्वज बाबर के सपने को पूरा करते हुए यहां भव्य मस्जिद का निर्माण कर उसका नाम बाबरी मस्जिद रख दिया था।

Monday, July 20, 2020

अब साकार होगा कोठारी बंधुओ का सपना! अयोध्या में बनाने को तैयार हैं, "भव्य राम मंदिर"

21 से 30 अक्टूबर 1990 में लाखो कारसेवक इकठ्ठा हो चुके थे, और धीरे धीरे अयोध्या रामजन्म भूमि के तरफ बढ़ने लगे। उस समय उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव की सरकार थी, जो धारा 144 पूरे अयोध्या में लगा चुके थे और अधिकारियों को निर्देश दिए थे कि बाबरी मस्जिद को किसी तरह का नुकसान नहीं होना चाहिए।

जिसकी देख रेख बड़े बड़े नेता अशोक सिंघल, उमा भारती, विनय कटियार आदि लोग कर रहे थे। और रामभक्तो में प्रमुख रामकुमार कोठारी (23 वर्ष)  और सरद कोठारी (20 वर्ष) आदि लाखो लोग विवादित स्थल की ओर जाने लगे थे। विवादित स्थल के चारों तरफ भारी सुरक्षा थी। अयोध्या में लगे कर्फ्यू के बीच सुबह करीब 10 बजे चारों दिशाओं से बाबरी मस्जिद की ओर कारसेवक बढ़ने लगे। साधु-संतों और कारसेवकों ने 11 बजे सुरक्षाबलों की उस बस को काबू कर लिया जिसमें पुलिस ने कारसेवकों को हिरासत में लेकर शहर के बाहर छोड़ने के लिए रखा था। इन बसों को हनुमान गढ़ी मंदिर के पास खड़ा किया गया था। इसी बीच, एक साधु ने बस ड्राइवर को धक्का देकर नीचे गिरा दिया। इसके बाद वो खुद ही बस की स्टीयरिंग पर बैठ गया। बैरिकेडिंग तोड़ते हुए बस विवादित परिसर की ओर तेजी से बढ़ी। बैरिकेडिंग टूटने से रास्ता खुला तो 5000 हजार से ज्यादा कारसेवक विवादित स्थल तक पहुंच गए । बैरिकेडिंग टूटने के बाद कारसेवक विवादित ढांचे के गुंबद पर चढ़ गए। वहां, कोठारी बंधुओं मस्जिद के गुंबद पर शरद (20 साल) और रामकुमार कोठारी (23 साल) दोनों भाइयों ने भगवा झंडा फहराया। 30 अक्टूबर को गुंबद पर चढ़ने वाला पहला व्यक्ति शरद कोठारी ही था. फिर उसका भाई रामकुमार भी चढ़ा। दोनों ने वहां भगवा झंडा फहराया था। 2 नवंबर को दिगम्बर अखाड़े की तरफ से हनुमानगढ़ी की तरफ जा रहे थे। जब पुलिस ने गोली चलाई तो दोनों पुलिस फायरिंग का शिकार बन गए। दोनों ने मौके पर ही दम तोड़ दिया।

4 नवंबर 1990 को शरद और रामकुमार कोठारी का सरयू के घाट पर अंतिम संस्कार किया गया। उनके अंतिम संस्कार में हजारों लोग उमड़ पड़े थे। दोनों भाइयों के लिए अमर रहे के नारे गूंज रहे थे। शरद और रामकुमार का परिवार पीढ़ियों से कोलकाता में रह रहा है। मूलतः वे राजस्थान के बीकानेर जिले के रहने वाले थे। कोठारी बंधुओ की बहन ने एक बयान में बताया कि मुलायम सिंह यादव ने कारसेवकों की गोली चलवाकर हत्या करवाई। और मुलायम सिंह यादव ने खुद इस बात को मनी कि 1990 में कारसेवकों कि और जाने लेनी पड़ती तो लेता राज्य में शांति व्यवस्था को बनाए रखने के लिए। उन्होंने बताया कि 2 नवंबर की सुबह जब वह उठे तो अपने सिर पर भगवा पट्टी बांध ली और उसमें लिखा ‘कफन’। वह 11 बजे सुबह कारसेवा के लिए निकले। सबको बोला गया था कि जहां पर रोका जाए वहीं पर धरने पर बैठ जाना है और रामधुन गानी है। उन्होंने भी वैसा ही किया।

तभी पुलिस की तरफ से आंसू गैस के गोले दागने शुरू हो गए और लाठीचार्ज होने लगा। कुछ पुलिस वाले जो घोड़े पर थे वह भी दौड़ने लगे और भगदड़ मच गई। गोलियां भी चलने लगीं। जिसे जो घर दिखा वे वहां घुस गए। मेरे दोनों भाई भी एक घर में चले गए। वहां और कारसेवक भी थे। कुछ देर बाद बाहर से पानी-पानी की आवाज आई। भाई को लगा कि किसी कारसेवक को पानी की जरूरत है। तब छोटे भाई ने गेट खोला तो देखा कि बाहर तो पुलिस है। पुलिस ने उन्हें खींचकर बाहर निकाला और गोली मार दी। फिर घसीटते हुए ले जाने लगे। तब बड़ा भाई बाहर आया और कहा कि मेरे भाई को कहां ले जा रहे हो। पुलिस ने उन्हें भी गोली मार दी। 2 नवंबर को ही दिन तक इस घटना की खबर बड़ा बाजार (कोलकाता) तक पहुंच गई कि अयोध्या में गोली चली है, लेकिन साफ कुछ पता नहीं चल पा रहा था। टीवी पर भी कुछ नहीं दिखा रहे थे। पिताजी बड़ा बाजार में थे तो उन्हें जरूर कुछ लोगों ने बताया, पर हम तब बेलूर में थे। हमें रात में बताया गया लेकिन तब भी साफ नहीं बताया कि हुआ क्या है। मां को भाइयों की चिंता हो रही थी और वह पूरी रात बेहोश रही। हमें दूसरे दिन सुबह पूरी घटना की और भाइयों के मारे जाने की जानकारी मिली। मेरे दोनों भाई बचपन से ही संघ की शाखा में जाते थे। भाइयों के जाने के बाद मेरे माता-पिता हर कारसेवा में गए और फिर उनका एक ही सपना था कि वह अयोध्या में भव्य राम मंदिर बनता देखें। 

अयोध्या में राम मंदिर के शिलान्यास समारोह की तारीख हो गयी है। पीएम नरेंद्र मोदी 5 अगस्त को राम मंदिर के निर्माण कार्य से पहले भूमि पूजन करने अयोध्या जाएंगे। कोरोना वायरस लॉकडाउन के बीच, श्रीरामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने 18 जुलाई को अयोध्या में बैठक की और पीएम मोदी को निमंत्रण भेजा। शिलान्यास समारोह के बाद मंदिर का निर्माण कार्य शुरू हो जाएगा। ट्रस्ट का अनुमान है कि मंदिर का निर्माण 2023 तक पूरा हो जाएगा।



Sunday, July 19, 2020

“मारो फिरंगी को” भारतीय स्वाधीनता संग्राम' के अग्रणी योद्धा, मंगल पांडेय!

भारतीय स्वाधीनता संग्राम' में अग्रणी योद्धाओं के रूप में अपनी पहचान बनाने वाले मंगल पांडेय, जिनके द्वारा भड़काई गई क्रांति की ज्वाला से अंग्रेज ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन बुरी तरह हिल गया था। आज उनकी 192 वीं जयंती है। उनका जन्म आज ही के दिन 19 जुलाई 1827 को हुआ था। अपनी हिम्मत और हौसले के दम पर समूची अंग्रेजी हुकूमत के सामने मंगल पांडे की शहादत ने भारत में पहली क्रांति के बीज बोए थे।

मंगल पांडे का जन्म 19 जुलाई, 1827 को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के नगवा गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम  दिवाकर पांडे तथा माता का नाम श्रीमती अभय रानी था। वे कलकत्ता (कोलकाता) के पास बैरकपुर की सैनिक छावनी में "34वीं बंगाल नेटिव इन्फैंट्री" की पैदल सेना के 1446 नंबर के सिपाही थे। भारत की आजादी की पहली लड़ाई अर्थात् 1857 के संग्राम की शुरुआत उन्हीं के विद्रोह से हुई थी।
“मारो फिरंगी को” नारा भारत की स्वाधीनता के लिए सर्वप्रथम आवाज उठाने वाले क्रांतिकारी “मंगल पांडे” की जुबां से निकला था। मंगल पांडे को आजादी का सर्वप्रथम क्रांतिकारी माना जाता है। 'फिरंगी' अर्थात् 'अंग्रेज़' या ब्रिटिश जो उस समय देश को गुलाम बनाए हुए थे, को क्रांतिकारियों और भारतियों द्वारा फिरंगी नाम से पुकारा जाता था। आपको बता दें, गुलाम जनता और सैनिकों के दिल में क्रांति की जल रही आग को धधकाने के लिए और लड़कर आजादी लेने की इच्छा को दर्शाने के लिए यह नारा मंगल पांडे द्वारा गुंजाया गया था।18 अप्रैल, 1857 का दिन मंगल पांडे की फांसी के लिए निश्चित किया गया था. आपको बता दें, बैरकपुर के जल्लादों ने मंगल पांडे के खून से अपने हाथ रंगने से इनकार कर दिया। तब कलकत्ता (कोलकाता) से चार जल्लाद बुलाए गए। 8 अप्रैल, 1857 के सूर्य ने उदित होकर मंगल पांडे के बलिदान का समाचार संसार में प्रसारित कर दिया। भारत के एक वीर पुत्र ने आजादी के यज्ञ में अपने प्राणों की आहुति दे दी। वहीं उस दिन की याद में भारत सरकार ने बैरकपुर में शहीद मंगल पांडे महाउद्यान के नाम से उसी जगह पर उद्यान बनवाया था।
मंगल पांडे द्वारा लगायी गयी विद्रोह की यह चिंगारी बुझी नहीं। 1857 विद्रोह का प्रारम्भ एक बंदूक की वजह से हुआ। सिपाहियों को पैटऱ्न 1853 एनफ़ील्ड बंदूक दी गयीं जो कि 0.577 कैलीबर की बंदूक थी तथा पुरानी और कई दशकों से उपयोग में लायी जा रही ब्राउन बैस के मुकाबले में शक्तिशाली और अचूक थी। नयी बंदूक में गोली दागने की आधुनिक प्रणाली (प्रिकशन कैप) का प्रयोग किया गया था परन्तु बंदूक में गोली भरने की प्रक्रिया पुरानी थी। नयी एनफ़ील्ड बंदूक भरने के लिये कारतूस को दांतों से काट कर खोलना पड़ता था और उसमे भरे हुए बारुद को बंदूक की नली में भर कर कारतूस को डालना पड़ता था। कारतूस का बाहरी आवरण में चर्बी होती थी जो कि उसे पानी की सीलन से बचाती थी। सिपाहियों के बीच अफ़वाह फ़ैल चुकी थी कि कारतूस में लगी हुई चर्बी सुअर और गाय के मांस से बनायी जाती है। 29 मार्च 1857 को बैरकपुर परेड मैदान कलकत्ता के निकट मंगल पाण्डेय रेजीमेण्ट के अफ़सर लेफ़्टीनेण्ट बाग पर हमला कर के उसे घायल कर दिया। जनरल जान हेएरसेये के अनुसार मंगल पाण्डेय किसी प्रकार के धार्मिक पागलपन में थे जनरल ने जमादार ईश्वरी प्रसाद ने मंगल पांडेय को गिरफ़्तार करने का आदेश दिया पर ज़मीदार ने मना कर दिया। सिवाय एक सिपाही शेख पलटु को छोड़ कर सारी रेजीमेण्ट ने मंगल पाण्डेय को गिरफ़्तार करने से मना कर दिया। मंगल पाण्डेय ने अपने साथियों को खुलेआम विद्रोह करने के लिये कहा पर किसी के ना मानने पर उन्होने अपनी बंदूक से अपनी प्राण लेने का प्रयास किया। परन्तु वे इस प्रयास में केवल घायल हुये। 6 अप्रैल 1857 को मंगल पाण्डेय का कोर्ट मार्शल कर दिया गया और 8 अप्रैल को फ़ांसी दे दी गयी।
एक महीने बाद ही 10 मई सन् 1857 को मेरठ की छावनी में बगावत हो गयी। यह विप्लव देखते ही देखते पूरे उत्तरी भारत में फैल गया जिससे अंग्रेजों को स्पष्ट संदेश मिल गया कि अब भारत पर राज्य करना उतना आसान नहीं है जितना वे समझ रहे थे। इसके बाद ही हिंदुस्तान में चौंतीस हजार सात सौ पैंतीस अंग्रेजी कानून यहाँ की जनता पर लागू किये गये ताकि मंगल पाण्डेय सरीखा कोई सैनिक दोबारा भारतीय शासकों के विरुद्ध बगावत न कर सके।

"भारतीय स्वाधीनता संग्राम के अग्रदूत, त्याग, स्वाभिमान एवं राष्ट्रभक्ति की साक्षात प्रतिमूर्ति, अमर शहीद श्री मंगल पांडे जी की जयंती पर उन्हें शत्-शत् नमन"। आपका संघर्ष हम सभी भारतीयों के लिए एक महान प्रेरणा है।

Saturday, July 18, 2020

आज दक्षिण अफ्रीका के अश्वेत राष्ट्रपति नेल्सन मंडेला दिन (नेल्सन मंडेला की उपलब्धियां)

नेल्सन मंडेला का जन्म 18 जुलाई 1918 को म्वेज़ो, ईस्टर्न केप, दक्षिण अफ़्रीका संघ में गेडला हेनरी म्फ़ाकेनिस्वा और उनकी तीसरी पत्नी नेक्यूफी नोसकेनी के यहाँ हुआ था। वे अपनी माँ नोसकेनी की प्रथम और पिता की सभी संतानों में 13 भाइयों में तीसरे थे। मंडेला के पिता हेनरी म्वेजो कस्बे के जनजातीय सरदार थे। स्थानीय भाषा में सरदार के बेटे को मंडेला कहते थे, जिससे उन्हें अपना उपनाम मिला। उनके पिता ने इन्हें 'रोलिह्लाला' प्रथम नाम दिया था जिसका खोज़ा में अर्थ "उपद्रवी" होता है। उनकी माता मेथोडिस्ट थी। मंडेला ने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा क्लार्कबेरी मिशनरी स्कूल से पूरी की। उसके बाद की स्कूली शिक्षा मेथोडिस्ट मिशनरी स्कूल से ली। मंडेला जब 12 वर्ष के थे तभी उनके पिता की मृत्यु हो गयी।
नेल्सन मंडेला राजनीत जीवन
1941 में मंडेला जोहन्सबर्ग चले गये जहाँ इनकी मुलाकात वॉल्टर सिसुलू और वॉल्टर एल्बरटाइन से हुई। उन दोनों ने राजनीतिक रूप से मंडेला को बहुत प्रभावित किया। 1944 में वे अफ़्रीकन नेशनल कांग्रेस में शामिल हो गये जिसने रंगभेद के विरूद्ध आन्दोलन चला रखा था। इसी वर्ष उन्होंने अपने मित्रों और सहयोगियों के साथ मिल कर अफ़्रीकन नेशनल कांग्रेस यूथ लीग की स्थापना की। 1947 में वे लीग के सचिव चुने गये।
1961 में मंडेला और उनके कुछ मित्रों के विरुद्ध देशद्रोह का मुकदमा चला परन्तु उसमें उन्हें निर्दोष माना गया। 5 अगस्त 1962 को उन्हें मजदूरों को हड़ताल के लिये उकसाने और बिना अनुमति देश छोड़ने के आरोप में गिरफ़्तार कर लिया गया। उन पर मुकदमा चला और 12 जुलाई 1964 को उन्हें उम्रकैद की सजा सुनायी गयी। सज़ा के लिये उन्हें राबेन द्वीप की जेल में भेजा गया किन्तु सजा से भी उनका उत्साह कम नहीं हुआ।
उन्होंने जेल में भी अश्वेत कैदियों को लामबन्द करना शुरू कर दिया था। जीवन के 27 वर्ष कारागार में बिताने के बाद अन्ततः 11 फ़रवरी 1990 को उनकी रिहाई हुई। रिहाई के बाद समझौते और शान्ति की नीति द्वारा उन्होंने एक लोकतान्त्रिक एवं बहुजातीय अफ्रीका की नींव रखी। 1994 में दक्षिण अफ़्रीका में रंगभेद रहित चुनाव हुए। अफ़्रीकन नेशनल कांग्रेस ने 62 प्रतिशत मत प्राप्त किये और बहुमत के साथ उसकी सरकार बनी। 10 मई 1994 को मंडेला अपने देश के सर्वप्रथम अश्वेत राष्ट्रपति बने। दक्षिण अफ्रीका के नये संविधान को मई 1996 में संसद की ओर से सहमति मिली जिसके अन्तर्गत राजनीतिक और प्रशासनिक अधिकारों की जाँच के लिये कई संस्थाओं की स्थापना की गयी। 1997 में वे सक्रिय राजनीति से अलग हो गये और दो वर्ष पश्चात् उन्होंने 1999 में कांग्रेस-अध्यक्ष का पद भी छोड़ दिया।
5 दिसम्बर 2013 को फेफड़ों में संक्रमण हो जाने के कारण मंडेला की हॉटन, जोहान्सबर्ग स्थित अपने घर में मृत्यु हो गयी। मृत्यु के समय ये 95 वर्ष के थे और उनका पूरा परिवार उनके साथ था। उनकी मृत्यु की घोषणा राष्ट्रपति जेकब ज़ूमा ने की।
उपलब्धि एवम् सम्मान नवम्बर 2009 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने रंगभेद विरोधी संघर्ष में उनके योगदान के सम्मान में उनके जन्मदिन (18 जुलाई) को 'मंडेला दिवस' घोषित किया। 67 साल तक मंडेला के इस आन्दोलन से जुड़े होने के उपलक्ष्य में लोगों से दिन के 24 घण्टों में से 67 मिनट दूसरों की मदद करने में दान देने का आग्रह किया गया। मंडेला को विश्व के विभिन्न देशों और संस्थाओं द्वारा 250 से भी अधिक सम्मान और पुरस्कार प्रदान किए गए हैं।
👉 1993 में दक्षिण अफ्रीका के पूर्व राष्ट्रपति फ़्रेडरिक विलेम डी क्लार्क के साथ संयुक्त रूप से नोबेल शांति पुरस्कार
👉 प्रेसीडेंट मैडल ऑफ़ फ़्रीडम
👉 ऑर्डर ऑफ़ लेनिन
👉 भारत रत्न
👉 निशान-ए–पाकिस्तान
👉 23 जुलाई 2008 को गाँधी शांति पुरस्कार

Thursday, July 16, 2020

बॉर्डर पर बढ़ती टेंशन के बीच इजरायल से आया अच्छी खबर भारत को मिलेंगे हेरॉन ड्रोन, स्‍पाइक मिसाइलें

न्यूज एजेंसी एएनआई की तरफ से दी गई जानकारी के मुताबिक सेनाओं की सर्विलांस क्षमता और उनके हथियारों में इजाफा होने वाला है। Israel से Heron Drone और Spike Anti Tank Guided Missile खरीदेगा भारत। Heron Drone को इजरायल की एरोस्‍पेस इंडस्‍ट्रीज (आईएआई) ने तैयार किया है। 
इस ड्रोन को उन हथियारों से फिट किया जा सकता है जो जमीन पर आसानी से टारगेट को तबाह कर सकते हैं। 
अगर इसे दिल्ली से लॉन्च किया जाये तो सिर्फ 30 मिनट के अंदर बॉर्डर पर दुश्मनों का पता लगा सकता है। सरकार की तरफ से मिली आपातकालीन आर्थिक शक्तियों का प्रयोग करके सेनाओं ने इजरायल से हेरॉन सर्विलांस ड्रोन और स्‍पाइक एंटी-टैंक गाइडेड मिसाइलों को खरीदने का मन बना लिया है। हेरॉन ड्रोन पहले ही वायुसेना, नौसेना और सेना के पास है और इस समय सर्विलांस के लिए इसका प्रयोग बड़े पैमाने पर हो रहा है। लद्दाख सेक्‍टर में भी इसे जमकर प्रयोग किया जा रहा है। ऐसे में आने वाले दिनों में इस ड्रोन के और ज्‍यादा ऑर्डर्स दिए जा सकते हैं।हेरॉन ड्रोन वायुसेना की जरूरतों को पूरा करने में खरा उतर रहा है।
हेरॉन ड्रोन में क्या खास है। 
👉 30,000 फीट की ऊंचाई पर लगा सकता है दुश्‍मन का पता।
👉 इसके सेंसर इतने तेज हैं कि 30,000 फीट की ऊंचाई से भी यह दुश्मनों की जानकारी आसानी से मिल सकती है।
👉 इसकी प्रदर्शन की बात करे तो यह पहली बार इजरायल ने फरवरी 2015 में बंगलुरु के एरो-इंडिया शो में पहली बार हेरॉन का प्रदर्शन किया था।


फायर एंड फॉरगेट स्‍पाइक मिसाइल
स्पाइक इज़राइल की डिजाइन की हुई चौथी पीढ़ी की मिसाइल है। इस मिसाइल की ख़ास बात यह है कि यह गाइडेड मिसाइल है। माने आप मिसाइल दागिए और भूल जाइए। वो अपने-आप निशाने पर जाकर लग जाएगी। दूसरा, इस मिसाइल को आसानी से लादकर इधर से उधर लेकर जाया जा सकता है। इसकी ये दो खासियत आमने-सामने के मोर्चे में बहुत मददगार साबित होती हैं। इससे चलते हुए टैंक पर बिना चूक के निशाना लगाया जा सकता है।
👉 इजरायल की स्‍पाइक एंटी-गाइडेड मिसाइल चौथी पीढ़ी का सिस्‍टम है।
👉 इस मिसाइल को इजरायल की कंपनी राफेल एंडवांस्‍ड डिफेंस सिस्‍टम्‍स ने तैयार किया है।
👉 इस मिसाइल को जवान लॉन्‍च कर सकते हैं, किसी व्‍हीकल से भी इसे दुश्‍मन पर दागा जा सकता है।
👉 स्‍पाइक मिसाइल को हेलीकॉप्‍टर से भी दुश्‍मन पर लॉन्‍च किया जा सकता है।
👉 इस मिसाइल के कुछ वैरीएंट्स ऐसे हैं जो एक साथ कई टारगेट्स को तबाह कर सकते हैं।
👉 यह फायर एंड फॉरगेट मिसाइल है जो ऑटोमैटिक सेल्‍फ गाइडेंस और लॉन्‍च से पहले लॉक-ऑन जैसे फीचर्स से लैस है।

Tuesday, July 14, 2020

चिनुक हेलीकाप्टर कि डिलीवरी हुई पूरी, अमेरिकी एविएशन कम्पनी बोइंग ने दी जानकारी।

अमेरिकी एविएशन कंपनी बोइंग ने इंडियन एयरफोर्स (आईएएफ) को अटैक हेलीकॉप्‍टर चिनुक की तय संख्‍या की डिलीवरी कर दी है। कंपनी की तरफ से रिलीज जारी कर इस बात की जानकारी दी गई है। अब आईएएफ के पास15 चिनुक हैवीलिफ्ट हेलीकॉप्‍टर हैं। यह जानकारी ऐसे समय में आई है जब भारत चीन  लाइन ऑफ एक्‍चुअल कंट्रोल (एलएसी) पर तनाव चल रहा है। चिनूक हेलीकॉप्टर की खास बात ऊंची उड़ानों के चलते यह हेलीकॉप्टर हिमालय जैसी जगहों पर किए जाने वाले ऑपरेशन के लिए बिल्कुल सही है। खास बात यह है कि इस हेलीकॉप्टर को किसी भी समय और किसी भी तरह के मौसम में उड़ाया जा सकता है।

वायुसेना की ताकत में पहली बार सोमवार 25 मार्च 2019 को इजाफा हुआ । अमेरिकी कंपनी बोइंग द्वारा बनाए गए चिनूक सीएच-47आइ हेलीकॉप्टर को भारतीय वायुसेना के बेड़े में 25 मार्च 2019 को चंडीगढ़ में शामिल किया 
चिनूक हेलीकॉप्टर से 11 टन और 45 ट्रूप का अधिकतम भार उठाया जा सकता है। इस हेलीकॉप्टर में फुली-इंटीग्रेटेड डिजिटल कॉकपिट मैनेजमेंट सिस्टम दिया गया है। इसके साथ ही कॉमन एविएशन आर्किटेक्चर और एडवांस्ड कार्गो-हैंडलिंग क्षमता भी दी गई है।

अमेरिका से 72,000 असॉल्ट राइफल खरीद रहा भारत, सीमा पर तैनात सैनिक करेंगे इस्तेमाल।

भारतीय सेना (Indian Army) अपने जवानों के लिए अमेरिका से 72,000 सिग सॉर असॉल्ट राइफल (SIG Sauer Assault Rifle) की खरीद को लेकर तेजी से आगे बढ़ रही है। सेना (इन्फैन्ट्री) के आधुनिकीकरण के लिए खरीदा जा रहा है। भारत चीन सीमा पर विवाद को देखते हुए यह खरीद की जा रही है।अधिकारियों ने रविवार को ये जानकारी देते हुए बताया कि यह खरीद ऐसे समय में की जा रही है, जब पूर्वी लद्दाख क्षेत्र में भारतीय और चीनी सेना के बीच सीमा पर तनाव की स्थिति है।
सिग सॉर असॉल्ट राइफल (SIG Sauer Assault Rifle)
विशेषताएं
SIG516 में बाईं ओर एक सुरक्षा लीवर है, जिसका उपयोग शूटिंग के हाथ के अंगूठे द्वारा किया जाता है।  गैस ब्लॉक एक समायोज्य गैस नियामक को एकीकृत करता है।  फ्रंट गैस ब्लॉक को फ्लिप-अप दृष्टि पोस्ट के साथ सामने की दृष्टि को स्वीकार करने के लिए छापा जाता है।  SIG516 मॉडल M16A2 स्टाइल बर्ड-केज फ्लैश हैडर से लैस हैं। Marksman को छोड़कर सभी SIG516 मॉडल 16-इंच बैरल से सुसज्जित हैं जो एक मुक्त-फ्लोटिंग M1913 Picatinny रेल से सुसज्जित हैं, साथ ही SIG Sauer द्वारा निर्मित फ्लिप-अप आयरन जगहें (BUIS) भी हैं।5.56 × 45 मिमी नाटो SIG516 मॉडल AR-15 स्टाइल बॉक्स पत्रिकाओं को स्वीकार करते हैं।  इन पत्रिकाओं का निर्माण 5-, 10-, 20- और 30-राउंड वेरिएंट में किया जाता है।  SIG516 रूसी राइफल्स को एक अलग पत्रिका का उपयोग करना चाहिए, क्योंकि वे 7.62 × 39 मिमी में चैम्बर हैं।  SIG516 रूसी 7.62 × 39 मिमी AR-15 शैली राइफल के लिए डिज़ाइन की गई पत्रिकाओं का उपयोग करता है।  राइफल को हथौड़े से दागा जाता है और इसमें SIG516 मार्क्समैन में दो-चरण ट्रिगर तंत्र है, जबकि अन्य सभी में एक सैन्य विनिर्देश एकल-चरण ट्रिगर है।

मैं तो इंसानियत से मजबूर था तुम्हे बीच मे नही डुबोया" मगर तुमने मुझे क्यों काट लिया!

नदी में बाढ़ आती है छोटे से टापू में पानी भर जाता है वहां रहने वाला सीधा साधा1चूहा कछुवे  से कहता है मित्र  "क्या तुम मुझे नदी पार करा ...