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Monday, July 20, 2020

अब साकार होगा कोठारी बंधुओ का सपना! अयोध्या में बनाने को तैयार हैं, "भव्य राम मंदिर"

21 से 30 अक्टूबर 1990 में लाखो कारसेवक इकठ्ठा हो चुके थे, और धीरे धीरे अयोध्या रामजन्म भूमि के तरफ बढ़ने लगे। उस समय उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव की सरकार थी, जो धारा 144 पूरे अयोध्या में लगा चुके थे और अधिकारियों को निर्देश दिए थे कि बाबरी मस्जिद को किसी तरह का नुकसान नहीं होना चाहिए।

जिसकी देख रेख बड़े बड़े नेता अशोक सिंघल, उमा भारती, विनय कटियार आदि लोग कर रहे थे। और रामभक्तो में प्रमुख रामकुमार कोठारी (23 वर्ष)  और सरद कोठारी (20 वर्ष) आदि लाखो लोग विवादित स्थल की ओर जाने लगे थे। विवादित स्थल के चारों तरफ भारी सुरक्षा थी। अयोध्या में लगे कर्फ्यू के बीच सुबह करीब 10 बजे चारों दिशाओं से बाबरी मस्जिद की ओर कारसेवक बढ़ने लगे। साधु-संतों और कारसेवकों ने 11 बजे सुरक्षाबलों की उस बस को काबू कर लिया जिसमें पुलिस ने कारसेवकों को हिरासत में लेकर शहर के बाहर छोड़ने के लिए रखा था। इन बसों को हनुमान गढ़ी मंदिर के पास खड़ा किया गया था। इसी बीच, एक साधु ने बस ड्राइवर को धक्का देकर नीचे गिरा दिया। इसके बाद वो खुद ही बस की स्टीयरिंग पर बैठ गया। बैरिकेडिंग तोड़ते हुए बस विवादित परिसर की ओर तेजी से बढ़ी। बैरिकेडिंग टूटने से रास्ता खुला तो 5000 हजार से ज्यादा कारसेवक विवादित स्थल तक पहुंच गए । बैरिकेडिंग टूटने के बाद कारसेवक विवादित ढांचे के गुंबद पर चढ़ गए। वहां, कोठारी बंधुओं मस्जिद के गुंबद पर शरद (20 साल) और रामकुमार कोठारी (23 साल) दोनों भाइयों ने भगवा झंडा फहराया। 30 अक्टूबर को गुंबद पर चढ़ने वाला पहला व्यक्ति शरद कोठारी ही था. फिर उसका भाई रामकुमार भी चढ़ा। दोनों ने वहां भगवा झंडा फहराया था। 2 नवंबर को दिगम्बर अखाड़े की तरफ से हनुमानगढ़ी की तरफ जा रहे थे। जब पुलिस ने गोली चलाई तो दोनों पुलिस फायरिंग का शिकार बन गए। दोनों ने मौके पर ही दम तोड़ दिया।

4 नवंबर 1990 को शरद और रामकुमार कोठारी का सरयू के घाट पर अंतिम संस्कार किया गया। उनके अंतिम संस्कार में हजारों लोग उमड़ पड़े थे। दोनों भाइयों के लिए अमर रहे के नारे गूंज रहे थे। शरद और रामकुमार का परिवार पीढ़ियों से कोलकाता में रह रहा है। मूलतः वे राजस्थान के बीकानेर जिले के रहने वाले थे। कोठारी बंधुओ की बहन ने एक बयान में बताया कि मुलायम सिंह यादव ने कारसेवकों की गोली चलवाकर हत्या करवाई। और मुलायम सिंह यादव ने खुद इस बात को मनी कि 1990 में कारसेवकों कि और जाने लेनी पड़ती तो लेता राज्य में शांति व्यवस्था को बनाए रखने के लिए। उन्होंने बताया कि 2 नवंबर की सुबह जब वह उठे तो अपने सिर पर भगवा पट्टी बांध ली और उसमें लिखा ‘कफन’। वह 11 बजे सुबह कारसेवा के लिए निकले। सबको बोला गया था कि जहां पर रोका जाए वहीं पर धरने पर बैठ जाना है और रामधुन गानी है। उन्होंने भी वैसा ही किया।

तभी पुलिस की तरफ से आंसू गैस के गोले दागने शुरू हो गए और लाठीचार्ज होने लगा। कुछ पुलिस वाले जो घोड़े पर थे वह भी दौड़ने लगे और भगदड़ मच गई। गोलियां भी चलने लगीं। जिसे जो घर दिखा वे वहां घुस गए। मेरे दोनों भाई भी एक घर में चले गए। वहां और कारसेवक भी थे। कुछ देर बाद बाहर से पानी-पानी की आवाज आई। भाई को लगा कि किसी कारसेवक को पानी की जरूरत है। तब छोटे भाई ने गेट खोला तो देखा कि बाहर तो पुलिस है। पुलिस ने उन्हें खींचकर बाहर निकाला और गोली मार दी। फिर घसीटते हुए ले जाने लगे। तब बड़ा भाई बाहर आया और कहा कि मेरे भाई को कहां ले जा रहे हो। पुलिस ने उन्हें भी गोली मार दी। 2 नवंबर को ही दिन तक इस घटना की खबर बड़ा बाजार (कोलकाता) तक पहुंच गई कि अयोध्या में गोली चली है, लेकिन साफ कुछ पता नहीं चल पा रहा था। टीवी पर भी कुछ नहीं दिखा रहे थे। पिताजी बड़ा बाजार में थे तो उन्हें जरूर कुछ लोगों ने बताया, पर हम तब बेलूर में थे। हमें रात में बताया गया लेकिन तब भी साफ नहीं बताया कि हुआ क्या है। मां को भाइयों की चिंता हो रही थी और वह पूरी रात बेहोश रही। हमें दूसरे दिन सुबह पूरी घटना की और भाइयों के मारे जाने की जानकारी मिली। मेरे दोनों भाई बचपन से ही संघ की शाखा में जाते थे। भाइयों के जाने के बाद मेरे माता-पिता हर कारसेवा में गए और फिर उनका एक ही सपना था कि वह अयोध्या में भव्य राम मंदिर बनता देखें। 

अयोध्या में राम मंदिर के शिलान्यास समारोह की तारीख हो गयी है। पीएम नरेंद्र मोदी 5 अगस्त को राम मंदिर के निर्माण कार्य से पहले भूमि पूजन करने अयोध्या जाएंगे। कोरोना वायरस लॉकडाउन के बीच, श्रीरामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने 18 जुलाई को अयोध्या में बैठक की और पीएम मोदी को निमंत्रण भेजा। शिलान्यास समारोह के बाद मंदिर का निर्माण कार्य शुरू हो जाएगा। ट्रस्ट का अनुमान है कि मंदिर का निर्माण 2023 तक पूरा हो जाएगा।



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