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Wednesday, July 22, 2020

'मेक इन इंडिया' के तहत एंटी टैंक 'ध्रुवास्त्र' मिसाइल का सफल परीक्षण।

'मेक इन इंडिया' मुहिम के तहत भारतीय सेना की एक और पहल सामने आ गयी है। एंटी टैंक 'ध्रुवास्त्र' मिसाइल का हाल ही में एक सफल परीक्षण किया गया है। बता दें कि ये मिसाइल मेड इन इंडिया है। 
हेलिकॉप्टर से लॉन्च की जाने वाली नाग मिसाइल (हेलिना) का परीक्षण ओडिशा के बालासोर में किया गया। इस मिसाइल को अब 'ध्रुवास्त्र' एंटी टैंक गाइडेड मिसाइल का नाम दिया गया है। एएनआई ने अपने ट्विटर हैंडल से इसकी जानकारी दी और बताया कि इसका सफल परिक्षण ओडिशा के आइटीआर बालासोर में 15 और 16 जुलाई को किया गया था। साथ ही उन्होंने ये भी बताया कि ये परिक्षण हेलिकॉप्टर के बिना किया गया था।

ख़बरों के मुताबिक, परिक्षण के बाद इस मिसाइल को सेना को सौंप दिया जाएगा। इसका इस्तेमाल भारतीय सेना के ध्रुव हेलिकॉप्टर के साथ किया जाएगा यानी अटैक हेलिकॉप्टर ध्रुव पर इसे तैनात किया जाएगा, ताकि वक्त आने पर दुश्मन पर हमला किया जा सके।

इस स्वदेशी मिसाइल की क्षमता 4 किमी तक है। ये किसी भी टैंक को खत्म कर सकती है। ध्रुव हेलिकॉप्टर भी पूरी तरह से स्वदेशी हेलिकॉप्टर है। इसे रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) और सेना के लिए एक बड़ी उपलब्धि माना जा रहा है क्योंकि अब वे ऐसी मिसाइलों के लिए किसी दूसरे देश पर निर्भर नहीं रहेगी। 


Tuesday, July 21, 2020

क्या आप जानते है, सभी ज्योतिर्लिंगों के स्थानों पर सबसे ज्यादा रेडिएशन पाया जाता है।

भारत का रेडियो एक्टिविटी मैप उठा लें, हैरान हो जायेंगे! भारत सरकार के न्युक्लियर रिएक्टर के अलावा सभी ज्योतिर्लिंगों के स्थानों पर सबसे ज्यादा रेडिएशन पाया जाता है। शिवलिंग और कुछ नहीं बल्कि न्युक्लियर रिएक्टर्स ही तो हैं, तभी तो उन पर जल चढ़ाया जाता है, ताकि वो शांत रहें। महादेव के सभी प्रिय पदार्थ जैसे कि बिल्व पत्र, आकमद, धतूरा, गुड़हल आदि सभी न्युक्लिअर एनर्जी सोखने वाले हैं। क्यूंकि शिवलिंग पर चढ़ा पानी भी रिएक्टिव हो जाता है इसीलिए तो जल निकासी नलिका को लांघा नहीं जाता। 
भाभा एटॉमिक रिएक्टर का डिज़ाइन भी शिवलिंग की तरह ही है।शिवलिंग पर चढ़ाया हुआ जल नदी के बहते हुए जल के साथ मिलकर औषधि का रूप ले लेता है। तभी तो हमारे पूर्वज हम लोगों से कहते थे कि महादेव शिवशंकर अगर नाराज हो जाएंगे तो प्रलय आ जाएगी। ध्यान दें कि हमारी परम्पराओं के पीछे कितना गहन विज्ञान छिपा हुआ है। जिस संस्कृति की कोख से हमने जन्म लिया है, वो तो चिर सनातन है। विज्ञान को परम्पराओं का जामा इसलिए पहनाया गया है, ताकि वो प्रचलन बन जाए और हम भारतवासी सदा वैज्ञानिक जीवन जीते रहें। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि भारत में ऐसे महत्वपूर्ण शिव मंदिर हैं जो केदारनाथ से लेकर रामेश्वरम तक एक ही सीधी रेखा में बनाये गये हैं। आश्चर्य है कि हमारे पूर्वजों के पास ऐसा कैसा विज्ञान और तकनीक था जिसे हम आज तक समझ ही नहीं पाये? उत्तराखंड का केदारनाथ, तेलंगाना का कालेश्वरम, आंध्रप्रदेश का कालहस्ती, तमिलनाडु का एकंबरेश्वर, चिदंबरम और अंततः रामेश्वरम मंदिरों को 79°E 41’54” Longitude की भौगोलिक सीधी रेखा में बनाया गया है। यह सारे मंदिर प्रकृति के 5 तत्वों में लिंग की अभिव्यक्ति का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिसे हम आम भाषा में पंचभूत कहते हैं। पंचभूत यानी पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और अंतरिक्ष। इन्हीं पांच तत्वों के आधार पर इन पांच शिवलिंगों को प्रतिष्टापित किया गया है। जल का प्रतिनिधित्व तिरुवनैकवल मंदिर में है, आग का प्रतिनिधित्व तिरुवन्नमलई में है, हवा का प्रतिनिधित्व कालाहस्ती में है, पृथ्वी का प्रतिनिधित्व कांचीपुरम् में है और अतं में अंतरिक्ष या आकाश का प्रतिनिधित्व चिदंबरम मंदिर में है! वास्तु-विज्ञान-वेद का अद्भुत समागम को दर्शाते हैं ये पांच मंदिर।
भौगोलिक रूप से भी इन मंदिरों में विशेषता पायी जाती है। इन पांच मंदिरों को योग विज्ञान के अनुसार बनाया गया था, और एक दूसरे के साथ एक निश्चित भौगोलिक संरेखण में रखा गया है। इस के पीछे निश्चित ही कोई विज्ञान होगा जो मनुष्य के शरीर पर प्रभाव करता होगा।
इन मंदिरों का करीब पाँच हज़ार वर्ष पूर्व निर्माण किया गया था जब उन स्थानों के अक्षांश और देशांतर को मापने के लिए कोई उपग्रह तकनीक उपलब्ध ही नहीं थी। तो फिर कैसे इतने सटीक रूप से पांच मंदिरों को प्रतिष्टापित किया गया था? उत्तर भगवान ही जानें।
केदारनाथ और रामेश्वरम के बीच 2383 किमी की दूरी है। लेकिन ये सारे मंदिर लगभग एक ही समानांतर रेखा में पड़ते हैं।आखिर हज़ारों वर्ष पूर्व किस तकनीक का उपयोग कर इन मंदिरों को समानांतर रेखा में बनाया गया है, यह आज तक रहस्य ही है। श्रीकालहस्ती मंदिर में टिमटिमाते दीपक से पता चलता है कि वह वायु लिंग है।तिरुवनिक्का मंदिर के अंदरूनी पठार में जल वसंत से पता चलता है कि यह जल लिंग है। अन्नामलाई पहाड़ी पर विशाल दीपक से पता चलता है कि वह अग्नि लिंग है। कंचिपुरम् के रेत के स्वयंभू लिंग से पता चलता है कि वह पृथ्वी लिंग है और चिदंबरम की निराकार अवस्था से भगवान की निराकारता यानी आकाश तत्व का पता लगता है।
अब यह आश्चर्य की बात नहीं तो और क्या है कि ब्रह्मांड के पांच तत्वों का प्रतिनिधित्व करने वाले पांच लिंगों को एक समान रेखा में सदियों पूर्व ही प्रतिष्टापित किया गया है। हमें हमारे पूर्वजों के ज्ञान और बुद्दिमत्ता पर गर्व होना चाहिए कि उनके पास ऐसी विज्ञान और तकनीकी थी जिसे आधुनिक विज्ञान भी नहीं भेद पाया है। माना जाता है कि केवल यह पांच मंदिर ही नहीं अपितु इसी रेखा में अनेक मंदिर होंगे जो केदारनाथ से रामेश्वरम तक सीधी रेखा में पड़ते हैं। इस रेखा को “शिव शक्ति अक्श रेखा” भी कहा जाता है। संभवतया यह सारे मंदिर कैलाश को ध्यान में रखते हुए बनाये गये हों जो 81.3119° E में पड़ता है!?  उत्तर शिवजी ही जाने।
कमाल की बात है "महाकाल" से शिव ज्योतिर्लिंगों के बीच कैसा सम्बन्ध है..?
उज्जैन से शेष ज्योतिर्लिंगों की दूरी भी है रोचक-
उज्जैन से सोमनाथ- 777 किमी
उज्जैन से ओंकारेश्वर- 111 किमी
उज्जैन से भीमाशंकर- 666 किमी
उज्जैन से काशी विश्वनाथ- 999 किमी
उज्जैन से मल्लिकार्जुन- 999 किमी
उज्जैन से केदारनाथ- 888 किमी
उज्जैन से  त्रयंबकेश्वर- 555 किमी
उज्जैन से बैजनाथ- 999 किमी
उज्जैन से रामेश्वरम्- 1999 किमी
उज्जैन से घृष्णेश्वर - 555 किमी
हिन्दू धर्म में कुछ भी बिना कारण के नहीं होता था ।
उज्जैन पृथ्वी का केंद्र माना जाता है, जो सनातन धर्म में हजारों सालों से मानते आ रहे हैं। इसलिए उज्जैन में सूर्य की गणना और ज्योतिष गणना के लिए मानव निर्मित यंत्र भी बनाये गये हैं करीब 2050 वर्ष पहले। और जब करीब 100 साल पहले पृथ्वी पर काल्पनिक रेखा (कर्क) अंग्रेज वैज्ञानिक द्वारा बनायी गयी तो उनका मध्य भाग उज्जैन ही निकला। आज भी वैज्ञानिक उज्जैन ही आते हैं सूर्य और अन्तरिक्ष की जानकारी के लिये।

बाबरी मस्जिद का विध्वंस के बाद राम मंदिर निर्माण का कोर्ट में लगातार सुनवाई। Part 02

28 साल पहले अयोध्या के हनुमान गढ़ी जा रहे कारसेवकों पे गोलियां चलाई गईं थीं। उत्तर प्रदेश में तब मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री थे। हिंदू साधु-संतों ने अयोध्या कूच कर रहे थे। उन दिनों श्रद्धालुओं की भारी भीड़ अयोध्या पहुंचने लगी थी। प्रशासन ने अयोध्या में कर्फ्यू लगा रखा था, इसके चलते श्रद्धालुओं के प्रवेश नहीं दिया जा रहा था। पुलिस ने बाबरी मस्जिद के 1.5 किलोमीटर के दायरे में बैरिकेडिंग कर रखी थी। कारसेवकों की भीड़ बेकाबू हो गई थी। पहली बार 30 अक्टबूर, 1990 को कारसेवकों पर चली गोलियों में 5 लोगों की मौत हुई थीं। इस घटना के बाद अयोध्या से लेकर देश का माहौल पूरी तरह से गर्म हो गया था। इस गोलीकांड के दो दिनों बाद ही 2 नवंबर को हजारों कारसेवक हनुमान गढ़ी के करीब पहुंच गए, जो बाबरी मस्जिक के बिल्कुल करीब था। 
उमा भारती, अशोक सिंघल, स्वामी वामदेवी जैसे बड़े हिन्दूवादी नेता हनुमान गढ़ी में कारसेवकों का नेतृत्व कर रहे थे। ये तीनों नेता अलग-अलग दिशाओं से करीब 5-5 हजार कारसेवकों के साथ हनुमान गढ़ी की ओर बढ़ रहे थे। प्रशासन उन्हें रोकने की कोशिश कर रहा था, लेकिन 30 अक्टूबर को मारे गए कारसेवकों के चलते लोग गुस्से से भरे थे। आसपास के घरों की छतों तक पर बंदूकधारी पुलिसकर्मी तैनात थे और किसी को भी बाबरी मस्जिद तक जाने की इजाजत नहीं थी। 2 नवंबर को सुबह का वक्त था अयोध्या के हनुमान गढ़ी के सामने लाल कोठी के सकरी गली में कारसेवक बढ़े चले आ रहे थे। पुलिस ने सामने से आ रहे कारसेवकों पर फायरिंग कर दी, जिसमें करीब ढेड़ दर्जन लोगों की मौत हो गई। ये सरकारी आंकड़ा है। इस दौरान ही कोलकाता से आए कोठारी बंधुओं रामकुमार कोठारी और सरद कोठारी की भी मौत हुई थी। कारसेवकों ने अयोध्या में मारे गए कारसेवकों के शवों के साथ प्रदर्शन भी किया।आखिरकार 4 नवंबर को कारसेवकों का अंतिम संस्कार किया गया और उनके अंतिम संस्कार के बाद उनकी राख को देश के अलग-अलग हिस्सों में ले जाया गया था। अयोध्या में कारसेवकों पर गोली चलवाने वाले मुलायम सिंह यादव ने कई साल बाद आजतक से बात करते हुए कहा था कि उस समय मेरे सामने मंदिर-मस्जिद और देश की एकता का सवाल था। बीजेपी वालों ने अयोध्या में 11 लाख की भीड़ कारसेवा के नाम पर लाकर खड़ी कर दी थी। देश की एकता के लिए मुझे गोली चलवानी पड़ी। हालांकि, मुझे इसका अफसोस है, लेकिन और कोई विकल्प नहीं था। इस घटना के दो साल बाद 6 दिसंबर, 1992 को विवादित ढांचे को गिरा दिया गया था। 

चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली 5 जजों की विशेष बेंच चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस शरद अरविंद बोबड़े, जस्टिस धनंजय यशवंत चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस अब्दुल नज़ीर पहुंचे। पांच जजों ने लिफाफे में बंद फैसले की कॉपी पर दस्तखत किए और इसके बाद जस्टिस गोगोई ने फैसला सुनाया।फैसले में ASI (भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण) का हवाला देते हुए कहा गया कि बाबरी मस्जिद का निर्माण किसी खाली जगह पर नहीं किया गया था. विवादित जमीन के नीचे एक ढांचा था और यह इस्लामिक ढांचा नहीं था. कोर्ट ने कहा कि पुरातत्व विभाग की खोज को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। हालांकि, कोर्ट ने ASI रिपोर्ट के आधार पर अपने फैसले में ये भी कहा कि मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाने की भी पुख्ता जानकारी नहीं है. लेकिन इससे आगे कोर्ट ने कहा कि मुस्लिम पक्ष विवादित जमीन पर दावा साबित करने में नाकाम रहा है। पूरी विवादित जमीन को मंदिर बनाने के लिए दिये जाने और मुसलमानों को दूसरी जगह पांच एकड़ जमीन मस्जिद के लिए देने का फैसला सुनाया है। 


बनेगा भब्य राम मंदिर अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि पर भव्य राम मंदिर निर्माण के लिए भूमि पूजन की तिथि अब निर्धारित हो चुकी है। इससे प्रयागराज में भी संत समाज उत्साहित है। कई सालों तक राम मंदिर के लिए आंदोलन चलाने वाले संगठन, विश्व हिंदू परिषद से जुड़े कार्यकर्ता भूमि पूजन की तिथि 5 अगस्त को एक अलग अंदाज में मनाने की तैयारी में लग गए हैं। राम मंदिर के भूमि पूजन में तीर्थराज संगम का जल और मिटटी भी इस्तेमाल होगी। 5 अगस्त को अयोध्या में भगवान् श्री राम मंदिर के लिए भूमि पूजन का कार्यक्रम तय कर लिया गया है, राम मंदिर ट्रस्ट ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को निमंत्रण भेजा था और 3 अगस्त तथा 5 अगस्त की तारीख बताई थी, प्रधानमंत्री ने 5 अगस्त की तारीख को पसंद किया, इसी 5 अगस्त को साल 2019 में धारा 370 को भी ख़त्म किया गया था। रिपोर्टों के मुताबिक भूमि पूजन के दौरान श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के अध्यक्ष महंत नृत्य गोपाल दास लगभग 40 किलो चॉंदी की श्रीराम शिला समर्पित करेंगे। पीएम मोदी इस शिला का पूजन कर स्थापित करेंगे।


राम मंदिर को कब और कैसे बाबरी मस्जिद में बदला गया! वास्तविक इतिहास को हिन्दूओ से दूर रखा गया। Part 01

अयोध्या को भगवान श्रीराम के पूर्वज विवस्वान (सूर्य) के पुत्र वैवस्वत मनु ने बसाया था, तभी से इस नगरी पर सूर्यवंशी राजाओं का राज महाभारतकाल तक रहा। यहीं पर प्रभु श्रीराम का दशरथ के महल में जन्म हुआ था। महर्षि वाल्मीकि ने भी रामायण में जन्मभूमि की शोभा एवं महत्ता की तुलना दूसरे इन्द्रलोक से की है। धन-धान्य व रत्नों से भरी हुई अयोध्या नगरी की अतुलनीय छटा एवं गगनचुंबी इमारतों के अयोध्या नगरी में होने का वर्णन भी वाल्मीकि रामायण में मिलता है। कहते हैं, कि भगवान श्रीराम के जल समाधि लेने के पश्चात अयोध्या कुछ काल के लिए उजाड़-सी गई थी, लेकिन उनकी जन्मभूमि पर बना महल वैसे का वैसा ही था। भगवान श्रीराम के पुत्र कुश ने एक बार पुन: राजधानी अयोध्या का पुनर्निर्माण कराया। इस निर्माण के बाद सूर्यवंश की अगली 44 पीढ़ियों तक इसका अस्तित्व आखिरी राजा, महाराजा बृहद्बल तक अपने चरम पर रहा। कौशलराज बृहद्बल की मृत्यु महाभारत युद्ध में अभिमन्यु के हाथों हुई थी। महाभारत के युद्ध के बाद अयोध्या उजड़-सी हो गई, मगर श्रीराम जन्मभूमि का अस्तित्व फिर भी बना रहा।
ईसा के लगभग 100 वर्ष पूर्व उज्जैन के चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य एक दिन आखेट करते-करते अयोध्या पहुंच गए। थकान होने के कारण अयोध्या में सरयू नदी के किनारे एक आम के वृक्ष के नीचे वे अपनी सेना सहित आराम करने लगे। उस समय यहां घना जंगल हो चला था। कोई बसावट भी यहां नहीं थी। महाराज विक्रमादित्य को इस भूमि में कुछ चमत्कार दिखाई देने लगे। तब उन्होंने खोज आरंभ की और पास के योगी व संतों की कृपा से उन्हें ज्ञात हुआ कि यह श्रीराम की अवध भूमि है। उन संतों के निर्देश से सम्राट ने यहां एक भव्य मंदिर के साथ ही कूप, सरोवर, महल आदि बनवाए। कहते हैं कि उन्होंने श्रीराम जन्मभूमि पर काले रंग के कसौटी पत्थर वाले 84 स्तंभों पर विशाल मंदिर का निर्माण करवाया था। इस मंदिर की भव्यता देखते ही बनती थी। विक्रमादित्य के बाद के राजाओं ने समय-समय पर इस मंदिर की देख-रेख की। उन्हीं में से एक शुंग वंश के प्रथम शासक पुष्यमित्र शुंग ने भी मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था। पुष्यमित्र का एक शिलालेख अयोध्या से प्राप्त हुआ था जिसमें उसे सेनापति कहा गया है तथा उसके द्वारा दो अश्वमेध यज्ञों के किए जाने का वर्णन है। अनेक अभिलेखों से ज्ञात होता है कि गुप्तवंशीय चन्द्रगुप्त द्वितीय के समय और तत्पश्चात काफी समय तक अयोध्या गुप्त साम्राज्य की राजधानी थी। गुप्तकालीन महाकवि कालिदास ने अयोध्या का रघुवंश में कई बार उल्लेख किया है।
 
इतिहासकारों के अनुसार 600 ईसा पूर्व अयोध्या में एक महत्वपूर्ण व्यापार केंद्र था। इस स्थान को अंतरराष्ट्रीय पहचान 5 वीं शताब्दी में ईसा पूर्व के दौरान तब मिली जबकि यह एक प्रमुख बौद्ध केंद्र के रूप में विकसित हुआ। तब इसका नाम साकेत था। कहते हैं कि चीनी भिक्षु फा-हियान ने यहां देखा कि कई बौद्ध मठों का रिकॉर्ड रखा गया है। यहां पर 7वीं शताब्दी में चीनी यात्री हेनत्सांग आया था। उसके अनुसार यहां 20 बौद्ध मंदिर थे तथा 3,000 भिक्षु रहते थे और यहां हिन्दुओं का एक प्रमुख और भव्य मंदिर भी था, जहां रोज हजारों की संख्या में लोग दर्शन करने आते थे।
पानीपत के युद्ध के बाद जयचंद का भी अंत हो गया। इसके बाद भारतवर्ष पर आक्रांताओं का आक्रमण और बढ़ गया। आक्रमणकारियों ने काशी, मथुरा के साथ ही अयोध्या में भी लूटपाट की और पुजारियों की हत्या कर मूर्तियां तोड़ने का क्रम जारी रखा। लेकिन 14वीं सदी तक वे अयोध्या में राम मंदिर को तोड़ने में सफल नहीं हो पाए।
 विभिन्न आक्रमणों के बाद भी सभी झंझावातों को झेलते हुए श्रीराम की जन्मभूमि पर बना भव्य मंदिर 14 वीं शताब्दी तक बचा रहा। कहते हैं कि सिकंदर लोदी के शासनकाल के दौरान यहां मंदिर मौजूद था। 14वीं शताब्दी में हिन्दुस्तान पर मुगलों का अधिकार हो गया और उसके बाद ही राम जन्मभूमि एवं अयोध्या को नष्ट करने के लिए कई अभियान चलाए गए। अंतत: 1527-28 में इस भव्य मंदिर को तोड़ दिया गया और उसकी जगह बाबरी ढांचा खड़ा किया गया। कहते हैं, कि मुगल साम्राज्य के संस्थापक बाबर के एक सेनापति ने बिहार अभियान के समय अयोध्या में श्रीराम के जन्मस्थान पर स्थित प्राचीन और भव्य मंदिर को तोड़कर एक मस्जिद बनवाई थी, जो 1992 तक विद्यमान रही।
 बाबरनामा के अनुसार 1528 में अयोध्या पड़ाव के दौरान बाबर ने मस्जिद निर्माण का आदेश दिया था। अयोध्या में बनाई गई मस्जिद में खुदे दो संदेशों से इसका संकेत भी मिलता है। इसमें एक खासतौर से उल्लेखनीय है। इसका सार है, 'जन्नत तक जिसके न्याय के चर्चे हैं, ऐसे महान शासक बाबर के आदेश पर दयालु मीर बकी ने फरिश्तों की इस जगह को मुकम्मल रूप दिया।हालांकि यह भी कहा जाता है कि अकबर और जहांगीर के शासनकाल में हिन्दुओं को यह भूमि एक चबूतरे के रूप से सौंप दी गई थी लेकिन क्रूर शासक औरंगजेब ने अपने पूर्वज बाबर के सपने को पूरा करते हुए यहां भव्य मस्जिद का निर्माण कर उसका नाम बाबरी मस्जिद रख दिया था।

Monday, July 20, 2020

अब साकार होगा कोठारी बंधुओ का सपना! अयोध्या में बनाने को तैयार हैं, "भव्य राम मंदिर"

21 से 30 अक्टूबर 1990 में लाखो कारसेवक इकठ्ठा हो चुके थे, और धीरे धीरे अयोध्या रामजन्म भूमि के तरफ बढ़ने लगे। उस समय उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव की सरकार थी, जो धारा 144 पूरे अयोध्या में लगा चुके थे और अधिकारियों को निर्देश दिए थे कि बाबरी मस्जिद को किसी तरह का नुकसान नहीं होना चाहिए।

जिसकी देख रेख बड़े बड़े नेता अशोक सिंघल, उमा भारती, विनय कटियार आदि लोग कर रहे थे। और रामभक्तो में प्रमुख रामकुमार कोठारी (23 वर्ष)  और सरद कोठारी (20 वर्ष) आदि लाखो लोग विवादित स्थल की ओर जाने लगे थे। विवादित स्थल के चारों तरफ भारी सुरक्षा थी। अयोध्या में लगे कर्फ्यू के बीच सुबह करीब 10 बजे चारों दिशाओं से बाबरी मस्जिद की ओर कारसेवक बढ़ने लगे। साधु-संतों और कारसेवकों ने 11 बजे सुरक्षाबलों की उस बस को काबू कर लिया जिसमें पुलिस ने कारसेवकों को हिरासत में लेकर शहर के बाहर छोड़ने के लिए रखा था। इन बसों को हनुमान गढ़ी मंदिर के पास खड़ा किया गया था। इसी बीच, एक साधु ने बस ड्राइवर को धक्का देकर नीचे गिरा दिया। इसके बाद वो खुद ही बस की स्टीयरिंग पर बैठ गया। बैरिकेडिंग तोड़ते हुए बस विवादित परिसर की ओर तेजी से बढ़ी। बैरिकेडिंग टूटने से रास्ता खुला तो 5000 हजार से ज्यादा कारसेवक विवादित स्थल तक पहुंच गए । बैरिकेडिंग टूटने के बाद कारसेवक विवादित ढांचे के गुंबद पर चढ़ गए। वहां, कोठारी बंधुओं मस्जिद के गुंबद पर शरद (20 साल) और रामकुमार कोठारी (23 साल) दोनों भाइयों ने भगवा झंडा फहराया। 30 अक्टूबर को गुंबद पर चढ़ने वाला पहला व्यक्ति शरद कोठारी ही था. फिर उसका भाई रामकुमार भी चढ़ा। दोनों ने वहां भगवा झंडा फहराया था। 2 नवंबर को दिगम्बर अखाड़े की तरफ से हनुमानगढ़ी की तरफ जा रहे थे। जब पुलिस ने गोली चलाई तो दोनों पुलिस फायरिंग का शिकार बन गए। दोनों ने मौके पर ही दम तोड़ दिया।

4 नवंबर 1990 को शरद और रामकुमार कोठारी का सरयू के घाट पर अंतिम संस्कार किया गया। उनके अंतिम संस्कार में हजारों लोग उमड़ पड़े थे। दोनों भाइयों के लिए अमर रहे के नारे गूंज रहे थे। शरद और रामकुमार का परिवार पीढ़ियों से कोलकाता में रह रहा है। मूलतः वे राजस्थान के बीकानेर जिले के रहने वाले थे। कोठारी बंधुओ की बहन ने एक बयान में बताया कि मुलायम सिंह यादव ने कारसेवकों की गोली चलवाकर हत्या करवाई। और मुलायम सिंह यादव ने खुद इस बात को मनी कि 1990 में कारसेवकों कि और जाने लेनी पड़ती तो लेता राज्य में शांति व्यवस्था को बनाए रखने के लिए। उन्होंने बताया कि 2 नवंबर की सुबह जब वह उठे तो अपने सिर पर भगवा पट्टी बांध ली और उसमें लिखा ‘कफन’। वह 11 बजे सुबह कारसेवा के लिए निकले। सबको बोला गया था कि जहां पर रोका जाए वहीं पर धरने पर बैठ जाना है और रामधुन गानी है। उन्होंने भी वैसा ही किया।

तभी पुलिस की तरफ से आंसू गैस के गोले दागने शुरू हो गए और लाठीचार्ज होने लगा। कुछ पुलिस वाले जो घोड़े पर थे वह भी दौड़ने लगे और भगदड़ मच गई। गोलियां भी चलने लगीं। जिसे जो घर दिखा वे वहां घुस गए। मेरे दोनों भाई भी एक घर में चले गए। वहां और कारसेवक भी थे। कुछ देर बाद बाहर से पानी-पानी की आवाज आई। भाई को लगा कि किसी कारसेवक को पानी की जरूरत है। तब छोटे भाई ने गेट खोला तो देखा कि बाहर तो पुलिस है। पुलिस ने उन्हें खींचकर बाहर निकाला और गोली मार दी। फिर घसीटते हुए ले जाने लगे। तब बड़ा भाई बाहर आया और कहा कि मेरे भाई को कहां ले जा रहे हो। पुलिस ने उन्हें भी गोली मार दी। 2 नवंबर को ही दिन तक इस घटना की खबर बड़ा बाजार (कोलकाता) तक पहुंच गई कि अयोध्या में गोली चली है, लेकिन साफ कुछ पता नहीं चल पा रहा था। टीवी पर भी कुछ नहीं दिखा रहे थे। पिताजी बड़ा बाजार में थे तो उन्हें जरूर कुछ लोगों ने बताया, पर हम तब बेलूर में थे। हमें रात में बताया गया लेकिन तब भी साफ नहीं बताया कि हुआ क्या है। मां को भाइयों की चिंता हो रही थी और वह पूरी रात बेहोश रही। हमें दूसरे दिन सुबह पूरी घटना की और भाइयों के मारे जाने की जानकारी मिली। मेरे दोनों भाई बचपन से ही संघ की शाखा में जाते थे। भाइयों के जाने के बाद मेरे माता-पिता हर कारसेवा में गए और फिर उनका एक ही सपना था कि वह अयोध्या में भव्य राम मंदिर बनता देखें। 

अयोध्या में राम मंदिर के शिलान्यास समारोह की तारीख हो गयी है। पीएम नरेंद्र मोदी 5 अगस्त को राम मंदिर के निर्माण कार्य से पहले भूमि पूजन करने अयोध्या जाएंगे। कोरोना वायरस लॉकडाउन के बीच, श्रीरामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने 18 जुलाई को अयोध्या में बैठक की और पीएम मोदी को निमंत्रण भेजा। शिलान्यास समारोह के बाद मंदिर का निर्माण कार्य शुरू हो जाएगा। ट्रस्ट का अनुमान है कि मंदिर का निर्माण 2023 तक पूरा हो जाएगा।



Sunday, July 19, 2020

“मारो फिरंगी को” भारतीय स्वाधीनता संग्राम' के अग्रणी योद्धा, मंगल पांडेय!

भारतीय स्वाधीनता संग्राम' में अग्रणी योद्धाओं के रूप में अपनी पहचान बनाने वाले मंगल पांडेय, जिनके द्वारा भड़काई गई क्रांति की ज्वाला से अंग्रेज ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन बुरी तरह हिल गया था। आज उनकी 192 वीं जयंती है। उनका जन्म आज ही के दिन 19 जुलाई 1827 को हुआ था। अपनी हिम्मत और हौसले के दम पर समूची अंग्रेजी हुकूमत के सामने मंगल पांडे की शहादत ने भारत में पहली क्रांति के बीज बोए थे।

मंगल पांडे का जन्म 19 जुलाई, 1827 को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के नगवा गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम  दिवाकर पांडे तथा माता का नाम श्रीमती अभय रानी था। वे कलकत्ता (कोलकाता) के पास बैरकपुर की सैनिक छावनी में "34वीं बंगाल नेटिव इन्फैंट्री" की पैदल सेना के 1446 नंबर के सिपाही थे। भारत की आजादी की पहली लड़ाई अर्थात् 1857 के संग्राम की शुरुआत उन्हीं के विद्रोह से हुई थी।
“मारो फिरंगी को” नारा भारत की स्वाधीनता के लिए सर्वप्रथम आवाज उठाने वाले क्रांतिकारी “मंगल पांडे” की जुबां से निकला था। मंगल पांडे को आजादी का सर्वप्रथम क्रांतिकारी माना जाता है। 'फिरंगी' अर्थात् 'अंग्रेज़' या ब्रिटिश जो उस समय देश को गुलाम बनाए हुए थे, को क्रांतिकारियों और भारतियों द्वारा फिरंगी नाम से पुकारा जाता था। आपको बता दें, गुलाम जनता और सैनिकों के दिल में क्रांति की जल रही आग को धधकाने के लिए और लड़कर आजादी लेने की इच्छा को दर्शाने के लिए यह नारा मंगल पांडे द्वारा गुंजाया गया था।18 अप्रैल, 1857 का दिन मंगल पांडे की फांसी के लिए निश्चित किया गया था. आपको बता दें, बैरकपुर के जल्लादों ने मंगल पांडे के खून से अपने हाथ रंगने से इनकार कर दिया। तब कलकत्ता (कोलकाता) से चार जल्लाद बुलाए गए। 8 अप्रैल, 1857 के सूर्य ने उदित होकर मंगल पांडे के बलिदान का समाचार संसार में प्रसारित कर दिया। भारत के एक वीर पुत्र ने आजादी के यज्ञ में अपने प्राणों की आहुति दे दी। वहीं उस दिन की याद में भारत सरकार ने बैरकपुर में शहीद मंगल पांडे महाउद्यान के नाम से उसी जगह पर उद्यान बनवाया था।
मंगल पांडे द्वारा लगायी गयी विद्रोह की यह चिंगारी बुझी नहीं। 1857 विद्रोह का प्रारम्भ एक बंदूक की वजह से हुआ। सिपाहियों को पैटऱ्न 1853 एनफ़ील्ड बंदूक दी गयीं जो कि 0.577 कैलीबर की बंदूक थी तथा पुरानी और कई दशकों से उपयोग में लायी जा रही ब्राउन बैस के मुकाबले में शक्तिशाली और अचूक थी। नयी बंदूक में गोली दागने की आधुनिक प्रणाली (प्रिकशन कैप) का प्रयोग किया गया था परन्तु बंदूक में गोली भरने की प्रक्रिया पुरानी थी। नयी एनफ़ील्ड बंदूक भरने के लिये कारतूस को दांतों से काट कर खोलना पड़ता था और उसमे भरे हुए बारुद को बंदूक की नली में भर कर कारतूस को डालना पड़ता था। कारतूस का बाहरी आवरण में चर्बी होती थी जो कि उसे पानी की सीलन से बचाती थी। सिपाहियों के बीच अफ़वाह फ़ैल चुकी थी कि कारतूस में लगी हुई चर्बी सुअर और गाय के मांस से बनायी जाती है। 29 मार्च 1857 को बैरकपुर परेड मैदान कलकत्ता के निकट मंगल पाण्डेय रेजीमेण्ट के अफ़सर लेफ़्टीनेण्ट बाग पर हमला कर के उसे घायल कर दिया। जनरल जान हेएरसेये के अनुसार मंगल पाण्डेय किसी प्रकार के धार्मिक पागलपन में थे जनरल ने जमादार ईश्वरी प्रसाद ने मंगल पांडेय को गिरफ़्तार करने का आदेश दिया पर ज़मीदार ने मना कर दिया। सिवाय एक सिपाही शेख पलटु को छोड़ कर सारी रेजीमेण्ट ने मंगल पाण्डेय को गिरफ़्तार करने से मना कर दिया। मंगल पाण्डेय ने अपने साथियों को खुलेआम विद्रोह करने के लिये कहा पर किसी के ना मानने पर उन्होने अपनी बंदूक से अपनी प्राण लेने का प्रयास किया। परन्तु वे इस प्रयास में केवल घायल हुये। 6 अप्रैल 1857 को मंगल पाण्डेय का कोर्ट मार्शल कर दिया गया और 8 अप्रैल को फ़ांसी दे दी गयी।
एक महीने बाद ही 10 मई सन् 1857 को मेरठ की छावनी में बगावत हो गयी। यह विप्लव देखते ही देखते पूरे उत्तरी भारत में फैल गया जिससे अंग्रेजों को स्पष्ट संदेश मिल गया कि अब भारत पर राज्य करना उतना आसान नहीं है जितना वे समझ रहे थे। इसके बाद ही हिंदुस्तान में चौंतीस हजार सात सौ पैंतीस अंग्रेजी कानून यहाँ की जनता पर लागू किये गये ताकि मंगल पाण्डेय सरीखा कोई सैनिक दोबारा भारतीय शासकों के विरुद्ध बगावत न कर सके।

"भारतीय स्वाधीनता संग्राम के अग्रदूत, त्याग, स्वाभिमान एवं राष्ट्रभक्ति की साक्षात प्रतिमूर्ति, अमर शहीद श्री मंगल पांडे जी की जयंती पर उन्हें शत्-शत् नमन"। आपका संघर्ष हम सभी भारतीयों के लिए एक महान प्रेरणा है।

Saturday, July 18, 2020

आज दक्षिण अफ्रीका के अश्वेत राष्ट्रपति नेल्सन मंडेला दिन (नेल्सन मंडेला की उपलब्धियां)

नेल्सन मंडेला का जन्म 18 जुलाई 1918 को म्वेज़ो, ईस्टर्न केप, दक्षिण अफ़्रीका संघ में गेडला हेनरी म्फ़ाकेनिस्वा और उनकी तीसरी पत्नी नेक्यूफी नोसकेनी के यहाँ हुआ था। वे अपनी माँ नोसकेनी की प्रथम और पिता की सभी संतानों में 13 भाइयों में तीसरे थे। मंडेला के पिता हेनरी म्वेजो कस्बे के जनजातीय सरदार थे। स्थानीय भाषा में सरदार के बेटे को मंडेला कहते थे, जिससे उन्हें अपना उपनाम मिला। उनके पिता ने इन्हें 'रोलिह्लाला' प्रथम नाम दिया था जिसका खोज़ा में अर्थ "उपद्रवी" होता है। उनकी माता मेथोडिस्ट थी। मंडेला ने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा क्लार्कबेरी मिशनरी स्कूल से पूरी की। उसके बाद की स्कूली शिक्षा मेथोडिस्ट मिशनरी स्कूल से ली। मंडेला जब 12 वर्ष के थे तभी उनके पिता की मृत्यु हो गयी।
नेल्सन मंडेला राजनीत जीवन
1941 में मंडेला जोहन्सबर्ग चले गये जहाँ इनकी मुलाकात वॉल्टर सिसुलू और वॉल्टर एल्बरटाइन से हुई। उन दोनों ने राजनीतिक रूप से मंडेला को बहुत प्रभावित किया। 1944 में वे अफ़्रीकन नेशनल कांग्रेस में शामिल हो गये जिसने रंगभेद के विरूद्ध आन्दोलन चला रखा था। इसी वर्ष उन्होंने अपने मित्रों और सहयोगियों के साथ मिल कर अफ़्रीकन नेशनल कांग्रेस यूथ लीग की स्थापना की। 1947 में वे लीग के सचिव चुने गये।
1961 में मंडेला और उनके कुछ मित्रों के विरुद्ध देशद्रोह का मुकदमा चला परन्तु उसमें उन्हें निर्दोष माना गया। 5 अगस्त 1962 को उन्हें मजदूरों को हड़ताल के लिये उकसाने और बिना अनुमति देश छोड़ने के आरोप में गिरफ़्तार कर लिया गया। उन पर मुकदमा चला और 12 जुलाई 1964 को उन्हें उम्रकैद की सजा सुनायी गयी। सज़ा के लिये उन्हें राबेन द्वीप की जेल में भेजा गया किन्तु सजा से भी उनका उत्साह कम नहीं हुआ।
उन्होंने जेल में भी अश्वेत कैदियों को लामबन्द करना शुरू कर दिया था। जीवन के 27 वर्ष कारागार में बिताने के बाद अन्ततः 11 फ़रवरी 1990 को उनकी रिहाई हुई। रिहाई के बाद समझौते और शान्ति की नीति द्वारा उन्होंने एक लोकतान्त्रिक एवं बहुजातीय अफ्रीका की नींव रखी। 1994 में दक्षिण अफ़्रीका में रंगभेद रहित चुनाव हुए। अफ़्रीकन नेशनल कांग्रेस ने 62 प्रतिशत मत प्राप्त किये और बहुमत के साथ उसकी सरकार बनी। 10 मई 1994 को मंडेला अपने देश के सर्वप्रथम अश्वेत राष्ट्रपति बने। दक्षिण अफ्रीका के नये संविधान को मई 1996 में संसद की ओर से सहमति मिली जिसके अन्तर्गत राजनीतिक और प्रशासनिक अधिकारों की जाँच के लिये कई संस्थाओं की स्थापना की गयी। 1997 में वे सक्रिय राजनीति से अलग हो गये और दो वर्ष पश्चात् उन्होंने 1999 में कांग्रेस-अध्यक्ष का पद भी छोड़ दिया।
5 दिसम्बर 2013 को फेफड़ों में संक्रमण हो जाने के कारण मंडेला की हॉटन, जोहान्सबर्ग स्थित अपने घर में मृत्यु हो गयी। मृत्यु के समय ये 95 वर्ष के थे और उनका पूरा परिवार उनके साथ था। उनकी मृत्यु की घोषणा राष्ट्रपति जेकब ज़ूमा ने की।
उपलब्धि एवम् सम्मान नवम्बर 2009 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने रंगभेद विरोधी संघर्ष में उनके योगदान के सम्मान में उनके जन्मदिन (18 जुलाई) को 'मंडेला दिवस' घोषित किया। 67 साल तक मंडेला के इस आन्दोलन से जुड़े होने के उपलक्ष्य में लोगों से दिन के 24 घण्टों में से 67 मिनट दूसरों की मदद करने में दान देने का आग्रह किया गया। मंडेला को विश्व के विभिन्न देशों और संस्थाओं द्वारा 250 से भी अधिक सम्मान और पुरस्कार प्रदान किए गए हैं।
👉 1993 में दक्षिण अफ्रीका के पूर्व राष्ट्रपति फ़्रेडरिक विलेम डी क्लार्क के साथ संयुक्त रूप से नोबेल शांति पुरस्कार
👉 प्रेसीडेंट मैडल ऑफ़ फ़्रीडम
👉 ऑर्डर ऑफ़ लेनिन
👉 भारत रत्न
👉 निशान-ए–पाकिस्तान
👉 23 जुलाई 2008 को गाँधी शांति पुरस्कार

मैं तो इंसानियत से मजबूर था तुम्हे बीच मे नही डुबोया" मगर तुमने मुझे क्यों काट लिया!

नदी में बाढ़ आती है छोटे से टापू में पानी भर जाता है वहां रहने वाला सीधा साधा1चूहा कछुवे  से कहता है मित्र  "क्या तुम मुझे नदी पार करा ...