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Tuesday, July 28, 2020

फ्रांस से चला भारत का तूफान एयर-टू-एयर रिफ्यूलिंग करते दिखा "राफेल"

भारत को मिलने वाले राफेल फाइटर जेट्स ने सोमवार को भारत के लिए उड़ान भरी थी और बुधवार को सभी पांचों विमान हरियाणा के अंबाला एयरफोर्स स्टेशन पहुंचेंगे। वही भारत आते समय विमानों में एयर-टू-एयर रिफ्यूलिंग के तहत, हवा में ही ईंधन भरा गया। बता दें, राफेल एयरक्राफ्ट फ्रांस से भारत तक करीब 7 हजार किलोमीटर की दूरी तय कर अा रहा हैं।

इस दौरान इसमे एयर-टू-एयर ईंधन भरा गया। इन पांचों राफेल फाइटर प्लेन को 7 भारतीय पायलट उड़ाकर अंबाला एयरबेस ला रहे हैं। भारत ने सितंबर 2016 में फ्रांस के साथ लगभग 58,000 करोड़ रुपये की लागत से 36 राफेल लड़ाकू विमानों की खरीद के लिए अंतर-सरकारी समझौते पर हस्ताक्षर किए थे।यह विमान कई शक्तिशाली हथियारों को ले जाने में सक्षम है। इसमें यूरोपीय मिसाइल निर्माता एमबीडीए का मेटॉर मिसाइल शामिल है।

राफेल फाइटर जेट की विशेषताएं-

मीडियम मल्टी-रोल कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (MMRCA) होने के नाते, राफेल जेट अपनी गति, हथियार धारण क्षमता और हमले की क्षमता के लिए जाना जाता है। राफेल दो एसएनईसीएमए एम 88 इंजन द्वारा संचालित है। जो इसे 1,912 किमी प्रति घंटे की उच्च गति और 3,700 किमी से अधिक की सीमा प्राप्त करने में मदद करता है। इसमें मार्टिन-बेकर मार्क 16F ‘जीरो-जीरो’ इजेक्शन सीट भी है जो शून्य गति और ऊंचाई पर परिचालन करने में सक्षम है। 

हमला करने की क्षमता

2223 किमी की शीर्ष गति होने के कारण, यह लेजर-निर्देशित बमों से सुसज्जित है जिसका वजन 900 किलोग्राम है। इसकी आंतरिक तोप से प्रति मिनट 2500 राउंड फायर किए जा सकते हैं। इसके अलावा, दृश्य सीमा मिसाइल, हैमर एयर-टू-ग्राउंड मिसाइल, उल्का और स्कैल्प मिसाइलों से परे MICA की उपस्थिति, भारतीय वायु सेना को भारतीय वायु अंतरिक्ष पार किये बिना 600 किमी दूर दुश्मन के ठिकानों पर हमला करने की क्षमता देती है। साथ ही राफेल जेट को 60-70 किमी की रेंज वाले HAMMER मिसाइल से लैस किया जाएगा। यह भारत को पूर्वी लद्दाख जैसे पहाड़ी स्थानों सहित अन्य सभी इलाकों में बंकरों, कठोर आश्रयों और अन्य ठिकानों को नष्ट करने की क्षमता देता है। 

4.5 जनरेशन विमान एईएसए रडार, स्पैक्ट्रा इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर सिस्टम और आईआरएसटी सिस्टम से लैस, राफेल को 4.5 जनरेशन विमान के रूप में वर्गीकृत किया गया है। यह अमूल्य है क्योंकि भारतीय वायुसेना के पास वर्तमान में केवल तीसरी और चौथी पीढ़ी के फाइटर जेट हैं। वर्तमान में, भारत के पास सुखोई सु -30 एमकेआई, मिग 29, मिराज -2000 और स्वदेश निर्मित तेजस जैसे फाइटर जेट हैं। हालांकि, इसका सबसे बड़ा फायदा परमाणु हथियार पहुंचाने की इसकी क्षमता है।


22.6 किग्रा शुद्ध चादी के ईट से रखी जाएगी राममंदिर कि निव।

उत्तर प्रदेश के अयोध्या में पांच अगस्त को राम मंदिर निर्माण के लिए 'भूमि पूजन' समारोह होने वाला है। जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत कई लोग शमिल होने वाले हैं। भूमि पूजन में उपयोग होने वाले ईट कि तस्वीर भी सामने अा गई है जो शुद्ध चादि कि 22.6 किग्रा है। इस ईट पे तिलक और स्वस्त्विक का चिन्ह भी बना हुआ है।

 ट्रस्ट के सदस्यों के अनुसार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के राम मंदिर की आधारशिला रखने के लिए अयोध्या पहुंचेगे। वही 'भूमि पूजन' समारोह के लिए जिन लोगों को आमंत्रित किया जा रहा हैं उनमें BJP नेता लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (RSS) के प्रमुख मोहन भागवत शामिल हैं। बता दें, दूरदर्शन द्वारा इस समारोह का सीधा प्रसारण किया जायेगा। मंदिर के ट्रस्टी अपनी सारी तैयारियां युद्ध स्तर पर कर दिया है। भूमि पूजन में उपयोग किया जाने वाला जल भी निकाल चुका है जल्द ही भूमि पूजन के लिए जल भी अयोध्या पहुंच जाएगा।

मंदिर का स्वरूप
राम मंदिर के मॉडल में प्रस्तावित बदलाव किया गया है। पहले आयताकार था, अब कुर्सीफार्म शेप का मॉडल होगा। पहले 2 मंडप थे, लेकिन अब बदल कर 5 मंडप होगा। गर्भगृह के ऊपर के मुख्य गुम्बद के अलावा 3 मंडप गर्भगृह के बाद होंगे, उसके बाद एक और मंदिर के प्रवेश के पास एक छोटा मंडप होगा। पहले आकार 313×149 फुट था, अब 344×235 फुट होगा। शिखर की चोटी की ऊंचाई पहले 138 फुट प्रस्तावित थी, जो अब बढ़कर 161 फुट होगी। पत्थर की मात्रा पहले 243,000 घन फुट आंकी गई थी, जो अब बढ़कर 375,000 घन फुट होगा। क्षेत्रफल में भी बदलाव होगा।

Monday, July 27, 2020

जल्द अा रहा है भारत के पास 5 राफेल लड़ाकू विमान।

 राफेल या डसॉल्ट राफेल फ्रांसीसी उच्चारण में शाब्दिक अर्थ है "हवा का गहरा" और "अधिक आग की भावना में" एक फ्रेंच दोहरे इंजन वाला, कैनर्ड डेल्टा विंग, मल्टीरोल डेसॉल्ट एविएशन द्वारा डिजाइन और निर्मित लड़ाकू विमान है। हथियार की एक विस्तृत श्रृंखला के साथ सुसज्जित, राफेल का उद्देश्य वायु वर्चस्व, हस्तक्षेप, हवाई पुनर्मिलन, जमीन समर्थन, गहराई से मार, विरोधी जहाज हड़ताल और परमाणु प्रतिरोध मिशन करने का है। राफेल को डेसॉल्ट द्वारा "ओमनीरोले" विमान के रूप में जाना जाता है।
राफेल में तीन तरह की मिसाइलें लगेंगी. हवा से हवा में मार करने वाली मीटियोर मिसाइल. हवा से जमीन में मार करने वाल स्कैल्प मिसाइल. तीसरी है हैमर मिसाइल. इन मिसाइलों से लैस होने के बाद राफेल काल बनकर दुश्मनों पर टू टेगा। राफेल में लगी मीटियोर मिसाइल 150 किलोमीटर और स्कैल्फ मिसाइल 300 किलोमीटर तक मार कर सकती है, जबकि, HAMMER यानी Highly Agile Modular Munition Extended Range एक ऐसी मिसाइल है, जिनका इस्तेमाल कम दूरी के लिए किया जाता है. ये मिसाइल आसमान से जमीन पर वार करने के लिए कारगर साबित हो सकती हैं.

अधिकतम स्पीड 2,130 किमी/घंटा और 3700 किमी. तक मारक क्षमता

24,500 किलो उठाकर ले जाने में सक्षम और 60 घंटे अतिरिक्त उड़ान की गारंटी

यह दो इंजन वाला लड़ाकू विमान है, जो भारतीय वायुसेना की पहली पसंद है. हर तरह के मिशन में भेजा जा सकता।

स्कैल्प मिसाइल की रेंज 300 किमी, हथियारों के स्टोरेज के लिए 6 महीने की गारंटी

अत्याधुनिक हथियारों से लैस होगा राफेल, प्लेन के साथ मेटेअर मिसाइल भी है


Friday, July 24, 2020

साकेत गोखले ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस को दी अर्जी। अर्जी हुआ खारिज।

कई दसको से चला आ रहा रामजन्म भूमि विवाद तो आखिर कार सुप्रीम कोर्ट के पाच जजों की बेंच कि सुनवाई के बाद श्री रामचन्द्र जी को अपना जन्मस्थान मिला। लेकिन कांग्रेस पार्टी को वह पसंद नहीं आया आखिर कार कांग्रेस ने अपना धर्म विरोधी एजेंडे को आगे किया और राहुल गांधी के करीबी साकेत गोखले ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस को अर्जी दी है कि  राम मंदिर निर्माण हेतु 5 अगस्त को प्रस्तावित भूमि पूजन पर रोक लगाई जाए। कांग्रेस की इस तरह की राजनीति कई दसको से चला आ रहा है जिसमें वह कभी प्रधानमंत्री को गाली देने की बात हो, सेना के सॉर्य पे सवाल उठाने की बात हो या प्रभु श्री रामचन्द्र कि आस्तित्व कि बात हो। कांग्रेस हर धर्म विरोधी एजेंडे में आगे रहकर देश की अस्मिता को धूमिल करती अा रही है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राहुल गांधी समर्थित , श्रीमान साकेत गोखले जी की भूमि पूजन रोकने की याचिका 
को खारिज कर दी है और मशवरा भी दिया है राज्य सरकार अपने काम जानती है आप समय खराब न करें।
साकेत गोखले के समर्थन में आए राहुल गांधी और उनके करीबीयो को खुलकर समर्थन करते देखा जा सकता है।

Thursday, July 23, 2020

"मैं आज़ाद था, आज़ाद हूँ, आज़ाद रहूँगा" चंद्रशेखर आजाद !

चन्द्रशेखर आजाद का जन्म भाबरा गाँव (अब चन्द्रशेखर आजादनगर) (वर्तमान अलीराजपुर जिला) में 23 जुलाई सन्  1906 को हुआ था। उनके पूर्वज बदरका (वर्तमान उन्नाव जिला) बैसवारा से थे। आजाद के पितापण्डित सीताराम तिवारी संवत् 1856 में अकाल के समय अपने पैतृक निवास बदरका को छोड़कर पहले कुछ दिनों [मध्य प्रदेश] अलीराजपुर रियासत में नौकरी करते रहे फिर जाकर भाबरा [गाँव] में बस गये। यहीं बालक चन्द्रशेखर का बचपन बीता। उनकी माँ का नाम जगरानी देवी था। आजाद का प्रारम्भिक जीवन आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र में स्थित भाबरा गाँव में बीता अतएव बचपन में आजाद ने भील बालकों के साथ खूब धनुष बाण चलाये। इस प्रकार उन्होंने निशानेबाजी बचपन में ही सीख ली थी। बालक चन्द्रशेखर आज़ाद का मन अब देश को आज़ाद कराने के अहिंसात्मक उपायों से हटकर सशस्त्र क्रान्ति की ओर मुड़ गया। उस समय बनारस क्रान्तिकारियों का गढ़ था। वह मन्मथनाथ गुप्त और प्रणवेश चटर्जी के सम्पर्क में आये और क्रान्तिकारी दल के सदस्य बन गये। क्रान्तिकारियों का वह दल "हिन्दुस्तान प्रजातन्त्र संघ" के नाम से जाना जाता था।
क्रांतिकारी गतिविधियां
1919 में हुए अमृतसर के जलियांवाला बाग नरसंहार ने देश के नवयुवकों को उद्वेलित कर दिया। चन्द्रशेखर उस समय पढाई कर रहे थे। जब गांधीजी ने सन् 1921 में असहयोग आन्दोलनका फरमान जारी किया तो वह आग ज्वालामुखी बनकर फट पड़ी और तमाम अन्य छात्रों की भाँति चन्द्रशेखर भी सडकों पर उतर आये। अपने विद्यालय के छात्रों के जत्थे के साथ इस आन्दोलन में भाग लेने पर वे पहली बार गिरफ़्तार हुए और उन्हें 15 बेतों की सज़ा मिली। इस घटना का उल्लेख पं० जवाहरलाल नेहरू ने कायदा तोड़ने वाले एक छोटे से लड़के की कहानी के रूप में किया है।
चंद्रशेखर आजाद ने एक निर्धारित समय के लिए झांसी को अपना गढ़ बना लिया। झांसी से पंद्रह किलोमीटर दूर ओरछा के जंगलों में वह अपने साथियों के साथ निशानेबाजी किया करते थे। अचूक निशानेबाज होने के कारण चंद्रशेखर आजाद दूसरे क्रांतिकारियों को प्रशिक्षण देने के साथ-साथ पंडित हरिशंकर ब्रह्मचारी के छ्द्म नाम से बच्चों के अध्यापन का कार्य भी करते थे। वह धिमारपुर गांव में अपने इसी छद्म नाम से स्थानीय लोगों के बीच बहुत लोकप्रिय हो गए थे। झांसी में रहते हुए चंद्रशेखर आजाद ने गाड़ी चलानी भी सीख ली थी।
जेलर के मुंह पर फेंक दिया पैसा
ज्वॉइंट मजिस्ट्रेट ने जब उनका नाम पूछा, तो उन्होंने जवाब दिया, 'आजाद', पिता का नाम स्वाधीनता और घर का पता जेल। यह सुन मजिस्ट्रेट तिलमिलिया और बेंत से मारने की निर्मम सजा सुना दी। सेंट्रल जेल में कसूरी बेतों की हर मार पर गांधी जी की जय, भारत माता की जय और वंदेमातरम का नाद हंसते हुए करते थे। जीवनी के अनुसार सेंट्रल जेल से लहूलुहान करने के बाद खूंखार जेलर गंडा ङ्क्षसह ने आजाद को तीन आने पैसे दिए, जिसे चंद्रशेखर आजाद ने जेलर के मुंह पर ही फेंक दिया और खुद को घसीटते हुए वह आगे निकल गए। बेंतों की मार इतनी भयावह थी कि बनारस के पंडित गौरी शंकर शास्त्री आजाद को अपने घर लाये और अपनी औषधियों से उनके सभी घावों का इलाज किया, साथ में रहने और भोजन का भी प्रबंध। इसके बाद से ज्ञानवापी पर काशी वासियों ने फूल-माला से भव्य स्वागत किया। भीड़ जब उन्हें नहीं देख पा रही थी तो अभिवादन के लिए उन्हें मेज पर खड़ा होना पड़ा। उसी समय चरखे के साथ उनकी एक तस्वीर भी ली गई। इसके बाद से ही चंद्रशेखर तिवारी आजाद उपनाम से विख्यात हुए।
अंग्रेजो की आंखों में झोंका धूल
असहयोग आंदोलन के दौरान संपूर्णानन्द जी ने आजाद को कोतवाली के सामने कांग्रेस की एक नोटिस लगाने का जिम्मा सौंपा। अंग्रेजी फौज की कड़ी सुरक्षा के बीच वह अपनी पीठ पर नोटिस हल्का सा चिपकाकर निकल गए। कोतवाली की दीवार से सटकर खड़े हो गए और पहरा देने वाले सिपाही से कुशलक्षेम लेते रहे, उतने देर में सिपाही के जाते ही आजाद भी निकल गए। बाद में नोटिस को देखकर जब शहर में हो-हल्ला मचा, तो सिपाही आजाद का कारनामा देख हक्का-बक्का रह गया।

स्वतंत्रता संग्राम के महान क्रांतिकारी जिनका बलिदान  देश के लिए जीने की प्रेरणा देता है, ऐसे चंद्रशेखर आज़ाद जी की जयंती पर उन्हें नमन !

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के जनक व विराट व्यक्तित्व के धनी 'लोकमान्य' बाल गंगाधर तिलक

लोकमान्य तिलक का मूल नाम केशव गंगाधर टिळक जन्म 23 जुलाई 1856 को ब्रिटिश भारत में वर्तमान महाराष्ट्र स्थित रत्नागिरी जिले के एक गाँव चिखली में हुआ था। ये आधुनिक कालेज शिक्षा पाने वाली पहली भारतीय पीढ़ी में से थे। इन्होंने कुछ समय तक स्कूल और कालेजों में गणित पढ़ाया। अंग्रेजी शिक्षा के ये घोर आलोचक थे और मानते थे कि यह भारतीय सभ्यता के प्रति अनादर सिखाती है। इन्होंने दक्कन शिक्षा सोसायटी की स्थापना की ताकि भारत में शिक्षा का स्तर सुधरे।
लोकमान्य तिलक ने इंग्लिश मे मराठा दर्पण व मराठी में केसरी नाम से दो दैनिक समाचार पत्र शुरू किये जो जनता में बहुत लोकप्रिय हुए। लोकमान्य तिलक ने अंग्रेजी शासन की क्रूरता और भारतीय संस्कृति के प्रति हीन भावना की बहुत आलोचना की। उन्होंने माँग की कि ब्रिटिश सरकार तुरन्त भारतीयों को पूर्ण स्वराज दे। केसरी में छपने वाले उनके लेखों की वजह से उन्हें कई बार जेल भेजा गया।
लोकमान्य तिलक भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हुए लेकिन जल्द ही वे कांग्रेस के नरमपंथी रवैये के विरुद्ध बोलने लगे। 1907 में कांग्रेस गरम दल और नरम दल में विभाजित हो गयी। गरम दल में लोकमान्य तिलक के साथ लाला लाजपत राय और श्री बिपिन चन्द्र पाल शामिल थे। इन तीनों को लाल-बाल-पाल के नाम से जाना जाने लगा। 1908 में लोकमान्य तिलक ने क्रान्तिकारी प्रफुल्ल चाकी और क्रान्तिकारी खुदीराम बोस के बम हमले का समर्थन किया जिसकी वजह से उन्हें बर्मा (अब म्यांमार) स्थित मांडले की जेल भेज दिया गया। जेल से छूटकर वे फिर कांग्रेस में शामिल हो गये और 1916 में एनी बेसेंट जी और मुहम्मद अली जिन्ना के साथ अखिल भारतीय होम रूल लीग की स्थापना की। लोकमान्य तिलक भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से 1890 में जुड़े। हालांकि, उसकी मध्य अभिवृत्ति, खासकर जो स्वराज्य हेतु लड़ाई के प्रति थी, वे उसके ख़िलाफ़ थे। वे अपने समय के सबसे प्रख्यात आमूल परिवर्तनवादियों में से एक थे। अल्पायु में विवाह करने के व्यक्तिगत रूप से विरोधी होने के बावजूद, लोकमान्य तिलक 1891 एज ऑफ़ कंसेन्ट विधेयक के खिलाफ थे, क्योंकि वे उसे हिन्दू धर्म में अतिक्रमण और एक खतरनाक उदाहरण के रूप में देख रहे थे। इस अधिनियम ने लड़की के   विवाह करने की न्यूनतम आयु को 10 से बढ़ाकर 12 वर्ष कर दिया था।
राजद्रोह के मामले लोकमान्य तिलक ने अपने पत्र केसरी में "देश का दुर्भाग्य" नामक शीर्षक से लेख लिखा जिसमें ब्रिटिश सरकार की नीतियों का विरोध किया। उनको भारतीय दंड संहिता की धारा 124-ए के अन्तर्गत राजद्रोह के अभियोग में 27 जुलाई 1897 को गिरफ्तार कर लिया गया। उन्हें 6 वर्ष के कठोर कारावास के अंतर्गत माण्डले (बर्मा) जेल में बन्द कर दिया गया।
सामाजिक योगदान उन्होंने सबसे पहले ब्रिटिश राज के दौरान पूर्ण स्वराज की मांग उठाई। लोकमान्य तिलक ने जनजागृति का कार्यक्रम पूरा करने के लिए महाराष्ट्र में गणेश उत्सव तथा शिवाजी उत्सव सप्ताह भर मनाना प्रारंभ किया। इन त्योहारों के माध्यम से जनता में देशप्रेम और अंग्रेजों के अन्यायों के विरुद्ध संघर्ष का साहस भरा गया।

सन 1919 ई. में कांग्रेस की अमृतसर बैठक में हिस्सा लेने के लिये स्वदेश लौटने के समय तक लोकमान्य तिलक इतने नरम हो गये थे कि उन्होंने मॉन्टेग्यू-चेम्सफ़ोर्ड सुधारों के द्वारा स्थापित लेजिस्लेटिव कौंसिल (विधायी परिषद) के चुनाव के बहिष्कार की गांधी जी की नीति का विरोध ही नहीं किया। इसके बजाय लोकमान्य तिलक ने क्षेत्रीय सरकारों में कुछ हद तक भारतीयों की भागीदारी की शुरुआत करने वाले सुधारों को लागू करने के लिये प्रतिनिधियों को यह सलाह अवश्य दी कि वे उनके प्रत्युत्तरपूर्ण सहयोग की नीति का पालन करें। लेकिन नये सुधारों को निर्णायक दिशा देने से पहले ही 1 अगस्त, 1920 ई. को बम्बई में उनकी मृत्यु हो गयी। मरणोपरान्त श्रद्धाञ्जलि देते हुए गांधी जी ने उन्हें आधुनिक भारत का निर्माता कहा और जवहरलाल नेहरू ने भारतीय क्रान्ति का जनक बतलाया।

स्वतंत्रता सेनानी लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक जी की जयंती पर उन्हें शत-शत नमन !

Wednesday, July 22, 2020

"विचारशक्ति के जागरण के लिये विचारों से मुक्त होना अत्यंत आवश्यक है।"

एक आदमी सोचता है, दूसरा आदमी समझता है। इसमें बडा फर्क है। जो समझता है उसमें विचार शक्ति जाग्रत है। जो सोचता है वह सोचता ही रहता है विचारों से आक्रांत होकर। विचारों की निरंतरता उसे समझने का मौका ही नहीं देती। विचार रुकें तो समझे भी सही।
सामान्यतया आदमी विचारों से समझने की कोशिश करता है। उसे कहा जाय विचार बंद करो। तो वह कहेगा फिर समझूंगा कैसे? समझने के लिये विचारना जरूरी है ऐसा उसे लगता है। सच यह है कि जो नहीं सोचता वही समझ सकता है। अब यह भी किसी मुसीबत से कम नहीं। विचार निरंतर उठते हैं यह सच है मगर उन्हें रोका नहीं जा सकता। रोकने पर संघर्ष होता है और नये नये विचार उठने लगते हैं। आदमी परेशान हो जाता है। फिर विश्वास भी होता है। विचार, विचार मालूम नहीं होते, तथ्य मालूम होते हैं। हर शब्द से विचार पैदा होते हैं और वे विचार जगत की सत्यता का आभास कराते हैं। लेकिन पीछे लौटा जाय विचार के मूल में शब्द को पहचान लिया जाय तो मौन घट सकता है। जैसे प्रेम शब्द सुनते ही विचार शुरू हो जाते हैं तो विचार न करके वापस प्रेम शब्द पर आ जायें। शत्रु शब्द सुनते ही शत्रु याद आने लगते हैं। शत्रु संबंधी विचार आने लगते हैं। उस समय केवल शत्रु शब्द पर ही ध्यान दिया जाय। मेरा मित्र कहता-शब्द भी नहीं बारहखड़ी देखनी चाहिए।
साधारणतया यह लोगों के लिए बडा मुश्किल होता है। वे विचारों से भरे होते हैं और विचार बडे वेग मेंं होते हैं।ऊपर से हर विचार के साथ विश्वास जुडा होता है।
भीतर से विचार उठते हैं तब आदमी यह थोडे ही समझता है कि विचार मात्र उठ रहे हैं। वे बाहर बडी बडी समस्याओं के सूचक होते हैं। विचारों से ही मालूम होता है कहां क्या है। मन क्या है? विचारों के समूह को ही तो मन कहते हैं।
कह सकते हैं मन ही जानकारी का स्रोत है। वह सब है विचार स्वरुप। विचार है तो कुछ जाना जा सकता है,नहीं तो कुछ नहीं। इसलिए जब विचारों को देखते हैं तब उन्हें तथ्यों से जोडकर नहीं देखना चाहिए। यह बहुत जरूरी है। जैसे कहा सुख या दुख,या भय या चिंता या क्रोधक्षोभ। तो वहां विश्वासपूर्ण चिंतन का होना बाधक है। सुख,सुख नहीं एक विचार है। दुख,दुख नहीं एक विचार है। भय एक विचार है,चिंता एक विचार है। क्रोध एक विचार है,क्षोभ एक विचार है। यह तो ठीक "मैं" भी एक विचार मात्र है, "दूसरा व्यक्ति" भी वस्तुतः एक विचार ही है। विचार के रुप में जानें,न कि तथ्य के रुप में। तथ्य के रुप में लेंगे तो विचार बलपूर्वक बढेंगे। उनका आवरण आयेगा और विक्षेप बढेगा। और एक उदाहरण-समस्या, समस्या नहीं अपितु एक विचार है। समस्या मानते हैं तो विचारों की तीव्रता बढेगी। समस्या एक विचार मात्र है तो क्या सोचना है? समस्या का विचार हो सकता है,विचार का क्या विचार हो सकता है? और है विचार ही या मन ही सबके मूल में मन नहीं तो कुछ नहीं। मन उपद्रव है। अमन शांति है। ऐसे मन से हम सत्य को समझ लें यह असंभव ही है। मन सत्य के अनुभव में परम बाधा है और यह बाधा भी इसलिए है क्योंकि हम मन के विषयों को सत्य मानते हैं।
मन में कोई व्यक्ति चल रहा हो तब क्या हम जानते हैं कि यह मन है या एक विचार मात्र है इसकी जगह हम व्यक्ति विशेष के चिंतन में खो जाते हैं। उस समय हमें ध्यान रहना सही है कि जिस व्यक्ति का हम चिंतन कर रहे हैं वह वस्तुतः मन है या एक विचार मात्र है। इसीलिए तो कहा है कि मन ही द्रष्टा बन जाता है,मन ही दृश्य बन जाता है। द्रष्टा बना मन,दृश्य बने मन को देखता है, प्रतिक्रिया करता है और इस प्रतिक्रिया में चित्त डूब जाता है। ये सब समझ में आये तो बाहरी जगत के उपद्रव बंद हों। यह समझ में आ जाये कि जिसे "बाहरी" कह रहे हैं वह एक विचार मात्र है, "आंतरिक" भी एक विचार मात्र है। अगर कहें "विश्वास" तो विश्वास भी एक विचार मात्र है, अविश्वास भी एक विचार ही है। सबके मूल में विचार को जान लिया जाय तो सारा जगत ही लुप्त हो जाय क्योंकि वह विचार से निर्मित होता है। विचार नहीं तो जगत भी नहीं। जगत विचारनिर्मित है। हमें विश्वास होता है जगत का जबकि विश्वास भी एक विचार है,जगत एक विचार है। इस तरह विचार को विचार की तरह देखना सीख जायें तो सभी मिथ्या भ्रमों का उपद्रव समाप्त हो सकता हैं। विचार ही बने हुए हैं सब कुछ यह जाना तो विचार चलेंगे कैसे, विचार से विचार तो चलने से रहे।विचार रुक जाते हैं तब जागरण होता है प्रज्ञा का,तब विचारशक्ति अपना कार्य शुरू करती है। अब ये थोडी अजीब बात है कि विचारशक्ति हो तो उपरोक्त बातों को समझा जा सकता है, विचार शक्ति है नहीं त़ो कैसे समझेंगे? सिर्फ एक संभावना है जिसका मन मौन हो गया, जिसके विचार आने बंद हो गये हैं, जिसमें समझ शक्ति आगयी है वह जब दूसरे को समझाता है और दूसरा रुचि लेकर समझने की कोशिश करता है तो उसकी समझ के बंद द्वार खुल सकते हैं। इसलिए मेहनत करे कोई तो दूसरे अनेक लोग लाभान्वित हो सकते हैं।कोई भी मेहनत न करे तो कुछ नहीं हो सकता लेकिन निराश होने की कोई बात नहीं इस ईश्वरीय योजना में ऐसा कोई न कोई समय समय पर होता रहता है जिसमें प्रज्ञाशक्ति जाग्रत होती है तथा सभी को उससे लाभ होता है। प्रज्ञाशक्ति हर एक में जाग्रत हो सकती है अगर वह विचार व वास्तविकता के फर्क को समझे। 

मैं तो इंसानियत से मजबूर था तुम्हे बीच मे नही डुबोया" मगर तुमने मुझे क्यों काट लिया!

नदी में बाढ़ आती है छोटे से टापू में पानी भर जाता है वहां रहने वाला सीधा साधा1चूहा कछुवे  से कहता है मित्र  "क्या तुम मुझे नदी पार करा ...