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Wednesday, November 18, 2020

पाकिस्तान में आज भी वह मंदिर मौजूद है जहां युधिष्ठिर और यक्ष राज के बीच हुआ था संवाद।

महाभारत युद्ध अधर्म पर धर्म की जीत का युद्ध था। 18 दिनों तक चलने वाला महाभारत युद्ध सबसे विनाशकारी युद्ध था। इस युद्ध को कौरवों ने छल के साथ लड़ा था।हालांकि, इस युद्ध में पांडवों की जीत हुई थी। महाभारत के युद्ध से पहले पांडवों को कई तरह के कष्ट उठाने पड़े। पांडवों को 13 वर्ष तक अज्ञातवास में रहना पड़ा।अज्ञातवास के दौरान पांडवों को अपनी पहचान और वेष बदलकर रहना पड़ा इस दौरान अर्जुन को बृहन्नला यानि एक किन्नर बनकर रहना पड़ा।

पांडव जब अज्ञातवास में रह रहे थे तब धर्मराज युधिष्ठिर की मुलाकात यक्षराज से हुई थी। जिसका वर्णन महाभारत की कथा में बहुत ही प्रभावशाली ढ़ग से किया गया है। कथा के अनुसार एक तलाब का पानी पीने से सभी पांडवों की मृत्यु हो गई। अंत में जब युधिष्ठिर इस तलाव के समीप पहुंचे तो उनका सामना एक यक्षराज से होता है।

पानी पीने से पहले यक्ष युधिष्ठिर से कुछ प्रश्न करता है। यक्ष युधिष्ठिर से पूछता है कि पृथ्वी से भारी क्या है? युधिष्ठिर ने जवाब दिया कि पृथ्वी से भारी यानी बढ़ कर है मां। यक्ष दूसरे प्रश्न में पूछता है कि आकाश से ऊंचा क्या है? धर्मराज युधिष्ठिर ने कहा- पिता का कद आकाश से भी ऊंचा होता है। यक्ष ने अगला सवाल किया कि वायु से तेज क्या चलता है? युधिष्ठिर ने कहा मन की गति वायु से भी तेज होती है। यक्ष ने पूछा कि तिनकों से अधिक संख्या किसकी है। युधिष्ठिर ने कहा कि चिंताओं की संख्या तिनकों से अधिक होती है। यक्ष ने पूछा कि सो जाने पर भी आखें कौन नहीं मूंदता? इस पर युधिष्ठिर ने कहा कि मछली सोने पर भी आखें नहीं मूंदती। इस प्रकार यक्ष के सभी प्रश्नों का युधिष्ठिर सही जवाब देते हैं। इस बात से खुश होकर यक्ष ने युधिष्ठिर से सभी भाइयों को जिंदा कर देता है और पानी लेने की अनुमति प्रदान करता है।

पाकिस्तान में मौजूद ये स्थान।
युधिष्ठिर और यक्ष का जिस स्थान पर संवाद हुआ था वह स्थान आज भी मौजूद है। ये स्थान पाकिस्तान में स्थित है। जहां आज भी हर साल हजारों लोग दर्शन करने के लिए आते हैं। ये स्थान पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के जिला चकवाल में स्थित है। यहीं पर प्राचीन और प्रसिद्ध कटासराज का मंदिर स्थित है। इस मंदिर के परिसर में एक कुंड बना हुआ है। माना जाता है कि ये वहीं कुंड है जहां से पांडवों ने पानी लिया था और इसी स्थान पर युधिष्ठिर का यक्ष से संवाद हुआ था। इस मंदिर के बारे में यह भी कहा जाता है कि ये कुंड भगवान शिव के आंसू गिरने से बना है। पौराणिक काल में भगवान शिव जब सती की अग्नि-समाधि से काफी दुखी हुए थे तो उनके आंसू दो जगह गिरे थे। एक आंसू से कटासराज सरोवर का निर्माण हुआ तो दूसरा आंसू राजस्थान के पुष्कर में गिरा था।

अगर आप भी नहीं खाते हैं मूली, तो जरूर पढ़िए इसके अचूक फायदे और लाभ।

सर्दियों में सलाद के बहुत सारे ऑपशन होते हैं। लेकिन ज्यदातर लोग मूली खाना ज्यादा पसंद करते हैं। पर कुछ लोग ऐसे भी हैं जो मूली का सलाद खाना या यू कहें कि मूली कच्चा खाना पसंद नहीं करते हैं, तो ऐसे में वो लोग मूली के पराठे या फिर मूली को आचार रूप खाते हैं। हालांकि बहुत से लोग ऐसे भी हैं जो मूली की शक्‍ल देखकर ही मुंह बनाने लगते हैं। अगर आप भी ऐसे ही लोगों में शामिल हैं तो आपके लिए मूली के फायदों को जानना बेहद जरूरी है। 

1. कैंसर की छुट्टी।
मूली में भरपूर मात्रा में फॉलिक एसिड, विटामिन C और एंथोकाइनिन पाए जाते हैं। ये तत्‍व शरीर को कैंसर से लड़ने में मदद करते हैं। मुंह, पेट, आंत और किडनी के कैंसर से लड़ने में यह बहुत सहायक होती है।

2. डायबिटीज से छुटकारा।
मूली कम ग्‍लाइसेमिक इंडेक्‍स के लिए जानी जाती है। यानी कि इसे खाने से ब्‍लड शुगर पर असर नहीं होता है। रोजाना सुबह खाने में मूली का सेवन करने से डायबिटीज से जल्द छुटकारा मिल सकता है।

3. सर्दी-जुकाम में राहत।
मूली खाने से जुकाम भी नही होता है। कुछ नहीं तो मूली को कम से कम सलाद में तो जरूर खाना चाहिए।

4. दूर भगाए बीमारियां।
बवासीर में कच्ची मूली या मूली के पत्तों की सब्जी बनाकर खाना फायदेमंद होता है। हर रोज सुबह उठते ही एक कच्ची मूली खाने से पीलीया रोग में आराम मिलता है। अगर पेशाब का बनना बंद हो जाए तो मूली का रस पीने से पेशाब दोबारा बनने लगती है। आधा गिलास मूली का रस पीने से पेशाब के साथ होने वाली जलन और दर्द मिट जाता है। खट्टी डकारें आती है तो मूली के एक कप रस में मिश्री मिलाकर पीने से लाभ मिलता है।

5. पायरिया से राहत।
पायरिया से परेशान लोग मूली के रस से दिन में 2-3 बार कुल्ले करें और इसका रस पिएं तो बहुत फायदा होगा। मूली के रस से कुल्ला करना, मसूड़ों-दांतों पर मलना और पीना दांतों के लिये बहुत लाभकारी है. मूली को चबा-चबा कर खाने से दांतों और मसूड़ों की बीमारियां दूर होती हैं।

6. मिटेगी थकान, दूर होगा मोटापा।
थकान मिटाने और नींद लाने में मूली बेहद फायदेमंद है। वहीं, अगर आपको मोटापे से छुटकारा पाना है तो मूली के रस में नींबू और नमक मिलाकर खाने से बहुत लाभ मिलता है। दरअसल, मूली खाने से आपकी भूख शांत होती है।

7. मुंहासों से मुक्ति।
मूली में विटामिन C, जिंक, B कांप्‍लेक्‍स और फॉस्‍फोरस होता है। मुंहासों के लिए मूली का टुकड़ा गोल काट कर मुंहासों पर लगाएं और तब तक लगाए रखें जब तक यह खुश्क न हो जाए। थोड़ी देर बाद चेहरे को ठंडे पानी से धो लें। कुछ ही दिनों में चेहरा साफ हो जाएगा।

हर बुधवार को भगवान गणेश को जरूर चढ़ाएं ये चार चीजें होगी सारी मनोकामना पुण्य।

हिंदू शास्त्रों में बुधवार का दिन गणपति बप्पा का बताया गया है। इसलिए बुधवार के दिन भगवान गणेश को खुश करने के लिए उनकी आराधना की जाती है। इस दिन उनकी पूजा करने से जातकों के सारे संकट दूर हो जाते हैं। गणपति बप्पा सभी देवों में सर्वप्रथम पूजनीय हैं। हर एक पूजा से पहले उनकी पूजा होती है तभी वह पूजा मान्य होती है। लेकिन गणपति बप्पा की पूजा में कुछ बातों का ध्यान रखना बेहद जरूरी होता है। आइए जानते हैं बुधवार के दिन भगवान गणेश पूजा में किन बातों का रखना चाहिए।

पूजा में गणेश जी को जरूर चढ़ाएं दुर्वा।
गणपति बप्पा को दूर्वा अति प्रिय है। बुधवार के दिन गणेश जी की पूजा में उन्हें दूर्वा जरूर चढ़ानी चाहिए। ऐसा करने से गणेश भगवान का आशीर्वाद भक्तों को प्राप्त होता है।

मोदक का लगाएं भोग।
गणेश भगवान को मोदक का भोग जरूर लगाना चाहिए। मोदक गणेश भगवान को अति प्रिय है। ऐसे में बुधवार के दिन गणेश भगवान की पूजा में उन्हें मोदक जरूर चढ़ाना चाहिए।

भगवान गणेश को लाल फूल चढ़ाएं।
भगवान गणेश को लाल फूल चढ़ाने चाहिए। अगर लाल फूल चढ़ाना संभव नहीं है तो आप कोई और फूल भी चढ़ा सकते हैं। बस इस बात का ध्यान रखें भगवान गणेश की पूजा में तुलसी का इस्तेमाल नहीं किया जाता है।

गणपति को प्रिय है लाल सिंदूर।
गणपति बप्पा को लाल सिंदूर बहुत पसंद होता है। भगवान गणेश को स्नान कराने के बाद उन्हें लाल सिंदूर लगाना चाहिए। उसके बाद अपने माथे में भी लाल सिंदूर का तिलक लगाएं। ऐसा आप हर रोज भी कर सकते हैं। भगवान गणेश के आशीर्वाद से आपको हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त होगी।

इस मंत्र का करें जाप।
गणेश भगवान आर्थिक क्षेत्र में आने वाली परेशानी और विघ्न से रक्षा करते हैं। गणेश जी को सिंदूर चढ़ाते समय यह मंत्र बोलें- 'सिन्दूरं शोभनं रक्तं सौभाग्यं सुखवर्धनम. शुभदं कामदं चैव सिन्दूरं प्रतिगृह्यताम॥ ऊँ गं गणपतये नम:

Tuesday, November 17, 2020

अगर छठ पूजा में करते हैं ये काम, तो प्रसन्न होती हैं छठ मईया।

हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को छठ पर्व मनाया जाता है। जो इस बार 20 नवंबर यानि कि शुक्रवार के दिन है। इस दिन छठ पूजा के साथ साथ डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है और फिर अगले दिन सूर्योदय पर भी अर्घ्य देकर व्रत का पारण किया जाता है। लेकिन छठ पर्व की शुरुआत षष्ठी तिथि से दो दिन पहले चतुर्थी से ही हो जाती है। तिथि के अनुसार, छठ पूजा 4 दिनों की होती है। इस दौरान व्रतधारी लगातार 36 घंटे का व्रत रखते हैं। व्रत के दौरान वह पानी भी ग्रहण नहीं करते हैं।

यह व्रत संतान प्राप्ति के साथ-साथ परिवार की सुख-समृद्धि के लिए भी रखा जाता है। छठ पूजा के दौरान बहुत ही विधि-विधान के साथ पूजा की जाती है। इस दिन विधि-विधान से पूजा करने के साथ-साथ कई नियमों का पालन करना भी बहुत जरूरी होता है। यह व्रत जितना कठिन होता है उतने ही कठिन इसके नियम होते हैं। जानें छठ पूजा के दौरान किन 10 नियमों का पालन करना बहुत जरूरी होता है।

छठ पूजा के 10 बड़े नियम।
👉मान्यताओं के अनुसार प्याज और लहसुन का सेवन करना इन 4 दिनों में वर्जित माना जाता है।

👉छठ पूजा में सफाई का बहुत अधिक ध्यान रखना पड़ता है। इसलिए बिना साफ-सफाई के पूजा की कोई भी चीज नहीं छूनी चाहिए।

👉जो महिलाएं यह व्रत करती हैं वह इन दिनों में पलंग या चारपाई पर नहीं सोती बल्कि जमीन पर चादर बिछाकर सोती हैं।

👉सूर्य भगवान को अर्ध्य देना बहुत ही जरूरी माना जाता है। इसलिए कभी भी पूजा के लिए चांदी, स्टील, प्लास्टिक के बर्तनों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।

👉प्रसाद तैयार करते समय खुद कुछ नहीं खाना चाहिए।

👉जिस जगह आप प्रसाद बना रहे हैं, वहां पर पहले खाना न बनता हो।

👉पूजा के समय हमेशा साफ-सुथरे और धुले हुए कपड़े ही पहनें।

👉अगर आपने व्रत रखा है तो बिना सूर्य को अर्घ्य दिए जल या फिर किसी और चीज का सेवन न करें।

👉छठ व्रत के दौरान शराब, अल्कोहल और मांसाहारी खाने से दूरी बनाकर रखें।

👉पूजा के दिनों में किसी को भी फलों का सेवन नहीं करना चाहिए। पूजा समाप्त होने के बाद फलों का सेवन कर सकते हैं।

Monday, November 16, 2020

भाई दूज पर टीके का शुभ मुहूर्त का समय, पूजा विधि और व्रत कथा जानिए।

उल्लास के पर्व दीपावली के तीसरे दिन भाई-बहन के प्यार के प्रतीक भाईदूज मनाया जाता रहा है। हर साल कि तरह इस साल भी भाईदूज 16 नवंबर को पड़ने वाले भाई दूज के साथ ही दीपोत्सव का समापन हो रहा है। इस दिन बहनें अपने भाइयों को अपने घर भोजन के लिए बुलाती है और उन्हें प्यार से खाना खिलाती हैं।

भाईदूज का त्योहार कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है। साल 2020 में भाईदूज के पर्व का समय 16 नवंबर की सुबह 7 बजकर 6 मिनट से 17 नवंबर की सुबह 3 बजकर 56 मिनट तक पड़ रहा है। इस साल टीके का शुभ मुर्हूत दिन 12:56 से 03:06 तक है। इस साल भाईदूज 16 नवंबर को मनाया जाएगा।

16 को भगवान चित्रगुप्त और कलाम-दवात की पूजा: इसी दिन पूरे जगत का लेखाजोखा रखने वाले भगवान चित्रगुप्त की जयंती भी मनाई जाती है। चित्रगुप्त पूजा के दौरान कलम दवात की पूजा होगी।

कैसे मनाया जाता है भाईदूज।
भाईदूज का त्योहार विक्रमी संवत नववर्ष के दूसरे दिन भी मनाया जाता है। भाईदूज को अन्य नामों से भी जाना जाता है, जैसे- भाईजी, भाई टीका. यह त्योहार करीब रक्षाबंधन की तरह ही मनाया जाता है। इस दिन बहनें अपने भाइयों का टीका करती हैं और उन्हें प्यार से भोजन कराती हैं। बहनें भाइयों की सुख-समृद्धि और खुशहाली की कामना करती हैं और भाई अपनी बहनों को उपहार देते हैं।

क्यों मनाते हैं भाईदूज का त्योहार।
भाईदूज का त्योहार क्यों मनाया जाता है, इसके पीछे एक पौराणिक कथा प्रचलित है। द्वापर युग में जब भगवान श्री कृष्ण नरकासुर नाम के राक्षस का वध करने के बाद अपनी बहन सुभद्रा के पास आए, तो सुभद्रा ने श्री कृष्ण का मिठाई और फूलों के साथ स्वागत किया। इस दिन सुभद्रा ने भगवान श्रीकृष्ण का तिलक किया था। कहा जाता है कि तब से ही हर साल इस तिथि को भाईदूज के रूप में मनाने की परंपरा शुरू हुई। देश के अलग-अलग हिस्सों में यह त्योहार अलग-अलग रूपों में भी मनाया जाता है, जैसे दक्षिण भारत में लोग इस दिन को यम द्वितीया के रूप में मनाते हैं।

एक और लोकप्रिय कथा के अनुसार, कार्तिक शुक्ल के दिन मृत्यु के देवता यमराज अपने दिव्य स्वरूप में अपनी बहन यमुना जी से मिलने के लिए गए थे, तब यमुना ने यमराज का मंगल तिलक कर और प्यार से भोजन कराके आशीर्वाद दिया था। इसीलिए इस दिन यमुना में डुबकी लगाने की भी परंपरा है। भाईदूज पर यमुना स्नान करने का बड़ा ही महत्व बताया गया है।

Sunday, November 15, 2020

गोवर्धन पूजा का शुभ मुहूर्त और पूजा विधि जानिए।

हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को गोवर्धन पूजा व अन्नकूट का पर्व मनाया जाता है। इस साल आज यानी 15 नवंबर 2020 दिन रविवार को गोवर्धन पूजा या अन्नकूट का त्योहार है। इसमें महिलाएं गोबर से भगवान गोवर्धन को बनाती हैं। तथा इनकी पूजा करती हैं इसके साथ गायों की भी पूजा करती है।

दिवाली के अगले दिन होती है गोवर्धन पूजा
गोवर्धन पूजा कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को मनाए जाने की परंपरा रही है। गोवर्धन पूजा यानी अन्नकूट को दिवाली के अगले दिन मनाते हैं। 14 नवंबर को दिवाली मनाई गई। आज 15 नवंबर को गोवर्धन पूजा है।

गोवर्धन पूजा का शुभ मुहूर्त।
इस पर्व पर भगवान श्री कृष्‍ण के गोवर्धन स्‍वरूप की पूजा की जाती है। उन्‍हें 56 भोग और अन्‍नकूट का प्रसाद चढ़ाए जाने की परंपरा है। इस बार कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा तिथि 15 नवंबर, सुबह 10 बजकर 36 मिनट पर शुरू हो रही है। यह 16 नवंबर की सुबह 07 बजकर, 5 मिनट तक रहेगी। गोवर्धन पूजा के लिए शुभ मुहूर्त दोपहर 3 बजकर, 19 मिनट से शाम 5 बजकर, 26 मिनट तक रहेगा।

गोर्वधन पूजा की विधि।
मान्‍यता है कि अगर इस दिन पूरे विधि विधान से भगवान गोवर्धन की पूजा की जाए तो भगवान श्री कृष्ण की कृपा प्राप्‍त होती है। इसलिए गोर्वधन पूजा करने के लिए इसकी विधि अच्‍छी तरह समझना बहुत जरूरी है। इसके लिए सबसे पहले गाय के गोबर से चौक और पर्वत बनाएं। इसके बाद इसे अच्छी तरह सुंदर फूलों से सजाएं। अब रोली, चावल, खीर, बताशे, जल, दूध, पान, केसर रखें और दीप जलाकर भगवान गोवर्धन की पूजा करें। जब पूजा संपन्‍न हो जाए तो भगवान गोवर्धन की सात बार परिक्रमा जरूर करें।

इस दौरान ध्‍यान रखें कि आपके हाथों में जल जरूर होना चाहिए। जल को किसी लोटे में लेकर इस तरह परिक्रमा करते रहें कि जल थोड़ा-थोड़ा गिरता जाए। गोवर्धन पूजा जब संपन्‍न हो जाए तो अन्‍नकूट का प्रसाद चढ़ाएं। इसे घर के सभी लोगों को दें।

Saturday, November 14, 2020

सिर्फ सोना-चांदी खरीदने का नहीं आरोग्य और चरित्र अपनाने का उत्सव है, धनतेरस।

संस्कृत भाषा में एक सूक्ति है, शरीर माद्यं खलु धर्म साधनम्. यानी कि शरीर ही सभी प्रकार के धर्म करने का माध्यम है. इसी बात को और अधिक विस्तार तरीके से समझाते हुए एक श्लोक में कहा गया है कि यदि धन चला गया तो समझिए कि कुछ नहीं गया, यदि स्वास्थ्य चला गया तो समझिए कि आधा धन चला गया, लेकिन अगर धर्म और चरित्र चला गया तो समझिए सबकुछ चला गया।

यानी कि भारतीय मनीषा सृष्टि के निर्माण के साथ ही मनुष्य जीवन के लिए उन्नत तरीकों और विचारों को बहुत पहले ही स्थापित कर चुकी थी. समय-समय पर इन्हीं विचारों को याद दिलाने और समाज में इनकी स्थापना बनाए रखने के लिए त्योहारों-पर्वों की परंपरा विकसित की गई. इन्हीं परंपराओं का सबसे बड़ा केंद्र है, दीपावली प्रकाश का पर्व।

क्या है धनतेरस
यह पर्व सिर्फ बाहरी उजाले का पर्व नहीं, बल्कि आतंरिक प्रकाश को जगाने का पर्व है. इसकी शुरुआत हो जाती है, कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी से, जिसे कि धनत्रयोदशी और धनतेरस भी कहते हैं. आयुर्वेद और अमरता के वरदायी देव भगवान धन्वन्तरि इस उत्सव के अधिष्ठाता देव हैं. उनके नाम की शुरुआत में धन शब्द होने से यह पर्व केवल धन को समर्पित रह गया है।
भारतीय समाज विडंबनाओं में जी रहा है
पिछले कुछ 20 सालों में भारतीय समाज की विडंबना रही है कि हम तेजी से बाजार की जकड़ में आए हैं. ऐसे में धनतेरस के शुभलक्षणों का पर्व केवल धन-संपत्ति को समर्पित पर्व रह गया है।
इसके साथ ही विभिन्न आभूषण निर्माता कंपनियां लुभावने विज्ञापनों के जरिए यह दिखाने की कोशिश करती हैं कि धनतेरस का अर्थ केवल उनके ब्रांड का आभूषण उत्पाद खरीदना है. जबकि धनतेरस का महत्व इससे कहीं अधिक का है।
सागर मंथन से निकले भगवान धन्वन्तरि
दरअसल, पौराणिक आधार पर मानें तो समुद्र मंथन से अमृत कलश लेकर निकले भगवान धन्वन्तरि ने अमरता की विद्या से आयुर्वेद को पुनर्जीवन प्रदान किया और देवताओं के वैद्य कहलाए. भगवान विष्णु का अवतार माने जाने की वजह से उनकी गणना अवतारी व्यक्तित्वों में भी होती है।
उन्होंने आरोग्य के महत्व को परिभाषित किया और इस तरह की जीवन शैली का निर्माण किया जिससे जन्म से लेकर मृत्यु तक मनुष्य निरोगी काया के साथ रह सकता है. यही आरोग्य का धन सबसे बड़ा धन है।
आरोग्य का लीजिए लाभ
कार्तिक त्रयोदशी के दिन समुद्र से उत्पन्न होने के कारण इसी दिन धनतेरस का उत्सव मनाया जाता है. इस उत्सव का पहला उद्देश्य़ आरोग्य लाभ ही है. धन्वन्तरि विद्या के अनुसार ऋतु के अनुसार भोजन, शाक, रस आदि ग्रहण करना चाहिए. व्यायाम करना चाहिए और सबसे जरूरी बात समय पर सोना और जागना, यही सबसे बड़ा धन है।

मैं तो इंसानियत से मजबूर था तुम्हे बीच मे नही डुबोया" मगर तुमने मुझे क्यों काट लिया!

नदी में बाढ़ आती है छोटे से टापू में पानी भर जाता है वहां रहने वाला सीधा साधा1चूहा कछुवे  से कहता है मित्र  "क्या तुम मुझे नदी पार करा ...