हिडमा को संतोष उर्फ इंदमुल उर्फ पोडियाम भीमा जैसे कई और नामों से भी जाना जाता है।
कद-काठी में छोटे से दिखने वाले हिडमा का माओवादी संगठनों में कद काफी बड़ा है। हिडमा नक्सलियों के नेतृत्व की काबिलियत के कारण ही सबसे कम उम्र में माओवादियों की टॉप सेंट्रल कमेटी का मेम्बर बन गया है।
कौन है हिडमा।
छत्तीसगढ़ में कई नक्सली हमलों को अंजाम देने वाले दुर्दांत नक्सली का जन्म सुकमा जिले के पुवर्ती गांव में हुआ था। यह गांव दुर्गम पहाड़ियों और घने जंगलों के बीच में बसा हुआ है। इस गांव में पहुंचना बहुत मुश्किल है। हिडमा के गांव में बीते लगभग 20 सालों से स्कूल नहीं लगा है। यहां आज भी नक्सलियों की जनताना सरकार का बोलबाला है। हिडमा की उम्र अगर 40 साल से ऊपर मानी जाए, तो हिडमा का जन्म सुकमा में उस काल में हुआ था, जब यहां नक्सलवाद चरम पर था। हिडमा का परवरिश ऐसे माहौल में हुई है, जहां सिर्फ माओवादियों क शासन था। बताते हैं कि हिडमा सिर्फ दसवीं क्लास तक पढ़ा है, लेकिन पढ़ने-लिखने में रूचि होने के कारण वह फर्राटेदार अंग्रेजी भी बोल लेता है। बताया जाता है कि हिडमा अपने साथ हमेशा एक नोटबुक लेकर चलता है, जिसमें वह अपने नोट्स बनाता रहता है। हिडमा की पहचान को लेकर कहा जाता है कि उसके बाएं हाथ में एक अंगुली नहीं है, यही उसकी सबसे बड़ी पहचान है।
पहले भी कई बड़े नक्सली हमलों को दे चुका है, अंजाम।
हिडमा साल 1990 में माओवादियों के साथ जुड़ा। लेकिन कुछ ही सालों में यह नक्सली संगठनों का एक बड़ा नाम बन गया। हिडमा की नेतृत्व करने और सटीक रणनीति बनाने की प्रतिभा ने उसे बहुत जल्द शीर्ष नेतृत्व पर पहुंचा दिया और हिडमा को एरिया कमांडर बना। दिया गया। साल 2010 में ताड़मेटला में हुए हमले में CRPF के 76 जवानों की मौत में हिडमा कि अहम भूमिका थी। इसके बाद बहुत चर्चित रहे साल 2013 में हुए जीरम हमले में भी हिडमा की अहम भूमिका थी। इस हमले में कई बड़े कांग्रेसी नेताओं सहित 31 लोगों की मौत हो गई थी। साल 2017 में बुरकापाल में हुए हमले में भी हिडमा की अहम भूमिका बताई गई थी। इस हमले में 25 CRPF जवान शहीद हो गए थे।