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Saturday, May 27, 2023

विश्व का सबसे बड़ा युद्ध महाभारत का कुरुक्षेत्र युद्ध जिसमे किया गया था चक्रव्यूह रचना।

विश्व का सबसे बड़ा युद्ध था, महाभारत का कुरुक्षेत्र युद्ध। इतिहास में इतना भयंकर युद्ध केवल एक बार ही घटित हुआ था। अनुमान है कि महाभारत के कुरुक्षेत्र युद्ध में परमाणू हथियारों का उपयॊग भी किया गया था। ‘चक्र’ यानी ‘पहिया’ और ‘व्यूह’ यानी ‘गठन’। पहिए के जैसे घूमता हुआ व्यूह है चक्रव्यूह। कुरुक्षेत्र युद्ध का सबसे खतरनाक रण तंत्र था चक्रव्यूह। यधपि आज का आधुनिक जगत भी चक्रव्यूह जैसे रण तंत्र से अनभिज्ञ हैं। चक्रव्यू या पद्मव्यूह को बेधना असंभव था। द्वापरयुग में केवल सात लोग ही इसे बेधना जानते थे। भगवान कृष्ण के अलावा अर्जुन, भीष्म, द्रॊणाचार्य, कर्ण, अश्वत्थाम और प्रद्युम्न ही व्यूह को बेध सकते थे जानते हैं। अभिमन्यु केवल चक्रव्यूह के अंदर प्रवेश करना जानता था।

चक्रव्यूह में कुल सात परत होती थी। सबसे अंदरूनी परत में सबसे शौर्यवान सैनिक तैनात होते थे। यह परत इस प्रकार बनाये जाते थे कि बाहरी परत के सैनिकों से अंदर की परत के सैनिक शारीरिक और मानसिक रूप से ज्यादा बलशाली होते थे। सबसे बाहरी परत में पैदल सैन्य के सैनिक तैनात हुआ करते थे। अंदरूनी परत में अस्र शत्र से सुसज्जित हाथियों की सेना हुआ करती थी। चक्रव्यूह की रचना एक भूल भुलैय्या के जैसे हॊती थी जिसमें एक बार शत्रू फंस गया तो घन चक्कर बनकर रह जाता था।

क्रव्यूह में हर परत की सेना घड़ी के कांटे के जैसे ही हर पल घूमता रहता था। इससे व्यूह के अंदर प्रवेश करने वाला व्यक्ति अंदर ही खॊ जाता और बाहर जाने का रास्ता भूल जाता था। माहाभारत में व्यूह की रचना गुरु द्रॊणाचार्य ही करते थे। चक्रव्यूह को युग का सबसे सर्वेष्ठ सैन्य दलदल माना जाता था। इस व्यूह का गठन युधिष्टिर को बंधी बनाने के लिए ही किया गया था। माना जाता है कि 48*128 किलॊमीटर के क्षेत्र फल में कुरुक्षेत्र नामक जगह पर युद्ध हुआ था जिसमें भाग लेने वाले सैनिकों की संख्या 1.8 मिलियन था!

चक्रव्यूह को घुमता हुआ मौत का पहिया भी कहा जाता था। क्यों कि एक बार जो इस व्यूक के अंदर गया वह कभी बाहर नहीं आ सकता था। यह पृथ्वी की ही तरह अपने अकस में घूमता था साथ ही साथ हर परत भी परिक्रमा करती हुई घूमती थी। इसी कारण से बाहर जाने का द्वार हर वक्त अलग दिशा में बदल जाता था जो शत्रु को भ्रमित करता था। अध्भुत और अकल्पनीय युद्ध तंत्र था चक्रव्यूह। आज का आधुनिक जगत भी इतने उलझे हुए और असामान्य रण तंत्र को युद्ध में नहीं अपना सकता है। ज़रा सॊचिये कि सहस्र सहस्र वर्ष पूर्व चक्रव्यूह जैसे घातक युद्ध तकनीक को अपनाने वाले कितने बुद्धिवान रहें होंगे।

चक्रव्यूह ठीक उस आंधी की तरह था जो अपने मार्ग में आनेवाले हरस चीच को तिनके की तरह उड़ाकर नष्ट कर देता था। इस व्यूह को बेधने की जानकारी केवल सात लोगों के ही पास थी। अभिमन्यू व्यूह के भीतर प्रवेश करना जानता था लेकिन बाहर निकलना नहीं जानता था। इसी कारण वश कौरवों ने छल से अभिमन्यू की हत्या कर दी थी। माना जाता है कि चक्रव्यूह का गठन शत्रु सैन्य को मनोवैज्ञानिक और मानसिक रूप से इतना जर्जर बनाता था कि एक ही पल में हज़ारों शत्रु सैनिक प्राण त्याग देते थे। कृष्ण, अर्जुन, भीष्म, द्रॊणाचार्य, कर्ण, अश्वत्थाम और प्रद्युम्न के अलावा चक्रव्यूह से बाहर निकलने की रणनीति किसी के भी पास नहीं थी।

अपको जानकर आश्चर्य होगा कि संगीत या शंख के नाद के अनुसार ही चक्रव्यूह के सैनिक अपने स्थिती को बदल सकते थे। कॊई भी सेनापती या सैनिक अपनी मन मर्ज़ी से अपनी स्थिती को बदल नहीं सकता था। अद्भूत अकल्पनीय। सदियों पूर्व ही इतने वैज्ञानिक रीति से अनुशासित रण नीती का गठन करना सामान्य विषय नहीं है। माहाभारत के युद्ध में कुल तीन बार चक्रव्यूह का गठन किया था, जिनमें से एक में अभिमन्यू की म्रुत्यू हुई थी। केवल अर्जुन ने कृष्ण की कृपा से चक्रव्यूह को बेध कर जयद्रत का वध किया था। हमें गर्व होना चाहिए कि हम उस देश के वासी है जिस देश में सदियों पूर्व के विज्ञान और तकनीक का अद्भुत निदर्शन देखने को मिलता है। निस्संदेह चक्रव्यूह न भूतो न भविष्यती युद्ध तकनीक था। न भूत काल में किसी ने देखा और ना भविष्य में कॊई इसे देख पायेगा।

मध्य प्रदेश के 1 स्थान और कर्नाटक के शिवमंदिर में आज भी चक्रव्यूह बना हुआ है।

Wednesday, May 24, 2023

रामभद्राचार्य जी है जिन्होंने सुप्रीम कोर्ट में रामलला के पक्ष में वेद पुराण के उद्धारण के साथ गवाही दी थी।

ये वही रामभद्राचार्य जी है जिन्होंने सुप्रीम कोर्ट में रामलला के पक्ष में वेद पुराण के उद्धारण के साथ गवाही दी थी। सनातन धर्म को दुनिया का सबसे पुराना धर्म कहा जाता है। वेदों और पुराणों के मुताबिक सनातन धर्म तब से है जब ये सृष्टि ईश्वर ने बनाई। जिसे बाद में साधू और संन्यासियों ने आगे बढ़ाया। ऐसे ही आठवीं सदी में शंकराचार्य आए, जिन्होंने सनातन धर्म को आगे बढ़ाने में मदद की। पद्मविभूषण रामभद्राचार्यजी एक ऐसे संन्यासी हैं जो अपनी दिव्यांगता को हराकर जगद्गुरू बने। आइए जानते हैं उनके सांसारिक जीवन के बारे कुछ अनसुने बाते।


1. जगद्गुरु रामभद्राचार्य चित्रकूट में रहते हैं। उनका वास्तविक नाम गिरधर मिश्रा है, उनका जन्म उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले में हुआ था।

2. रामभद्राचार्य एक प्रख्यात विद्वान्, शिक्षाविद्, बहुभाषाविद्, रचनाकार, प्रवचनकार, दार्शनिक और हिन्दू धर्मगुरु हैं।

3. वे रामानन्द सम्प्रदाय के वर्तमान चार जगद्गुरु रामानन्दाचार्यों में से एक हैं और इस पद पर साल 1988 से प्रतिष्ठित हैं।

4. रामभद्राचार्य चित्रकूट में स्थित संत तुलसीदास के नाम पर स्थापित तुलसी पीठ नामक धार्मिक और सामाजिक सेवा स्थित जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय के संस्थापक हैं और आजीवन कुलाधिपति हैं।

5. जगद्गुरु रामभद्राचार्य जब सिर्फ दो माह के थे तभी उनके आंखों की रोशनी चली गई थी।

6. वे बहुभाषाविद् हैं और 22 भाषाएं जैसे संस्कृत, हिन्दी, अवधी, मैथिली सहित कई भाषाओं में कवि और रचनाकार हैं।

7. उन्होंने 80 से अधिक पुस्तकों और ग्रंथों की रचना की है, जिनमें चार महाकाव्य (दो संस्कृत और दो हिन्दी में ) हैं। उन्हें तुलसीदास पर भारत के सर्वश्रेष्ठ विशेषज्ञों में गिना जाता है।

8. चिकित्सक ने गिरिधर की आँखों में रोहे के दानों को फोड़ने के लिए गरम द्रव्य डाला, परन्तु रक्तस्राव के कारण गिरिधर के दोनों नेत्रों की रोशनी चली गयी।

9. वे न तो पढ़ सकते हैं और न लिख सकते हैं और न ही ब्रेल लिपि का प्रयोग करते हैं। वे केवल सुनकर सीखते हैं और बोलकर अपनी रचनाएं लिखवाते हैं।

10. साल 2015 में भारत सरकार ने उन्हें पद्मविभूषण से सम्मानित किया"।

कैसी लगी आपको हमारी लेख कमेंट कर जरूर बताएं।

Friday, April 28, 2023

क्या आप जानते है उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ जी महाराज कितना पढ़े लिखे हैं।

बहुत से लोग सोचते हैं कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री भगवा पोशाक में सिर्फ एक "सन्यासी" हैं। लेकिन उनके बारे में तथ्य जानने के लिए नीचे पढ़ें! और अच्छा लगे तो शेयर करें।
आज हम बात कर रहे हैं उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी महाराज के बारे मे सन्यास से पहले योगी आदित्यनाथ जी का नाम अजय सिंह बिष्ट था। एचएनबी गढ़वाल विश्वविद्यालय से उत्तर प्रदेश के इतिहास में सर्वाधिक अंक (100%) योगी जी गणित के छात्र हैं, जिन्होंने बीएससी गणित स्वर्ण पदक के साथ उत्तीर्ण किया है। ये यूपी के एक पिछड़े पंचूर गांव में एक बेहद गरीब परिवार में पैदा हुए। जो अब अतराखंड मे है। वह अब 50 साल के हैं। भारतीय सेना की सबसे पुरानी गोरखा रेजीमेंट के आध्यात्मिक गुरु। नेपाल में योगी समर्थक का विशाल समूह, जो योगी को गुरु भगवान के रूप में पूजते हैं।
फील्ड मार्शल आर्ट में अद्भुत उत्कृष्टता। चार लोगों को एकसाथ हराने का रिकार्ड है। उत्तर प्रदेश के जाने-माने तैराक। कई विशाल नदियां पार कीं। एक लेखा विशेषज्ञ जो कंप्यूटर को भी हरा देता है। प्रसिध्द गणितज्ञ शकुंतला देवी ने भी की योगी की तारीफ की हैं। रात में केवल चार घंटे की नींद। रोजाना सुबह 3:30 बजे उठ जाते हैं। योग, ध्यान गोशाला, आरती, पूजा प्रतिदिन की दिनचर्या है। दिन में दो बार ही खाते हैं। पूर्णतः शाकाहारी। भोजन में शामिल रहता है कन्द, मूल, फल और देशी गाय का दूध। वह अब तक किसी भी कारण से कभी अस्पताल में भर्ती नहीं हुए।
योगी आदित्यनाथ एशिया के सर्वश्रेष्ठ वन्यजीव प्रशिक्षकों में से एक हैं उन्हें वन्यजीवों से बहुत प्रेम है। योगी का परिवार अभी भी उसी स्थिति में रहता है, जैसा उनके सांसद या मुख्यमंत्री बनने के पहले रहता था। योगी सालों पहले सन्यास लेने लेने के बाद सिर्फ एक बार घर गए हैं। योगी का सिर्फ एक बैंक अकाउंट है और कोई जमीन संपत्ति उनके नाम नहीं है और न ही उनका कोई खर्च है। अपने भोजन कपडे का खर्च वो स्वयं के वेतन से करते हैं, और शेष पैसा राहत कोष में जमा कर देते हैं।
ये है योगी आदित्यनाथ जी महाराज की प्रोफाइल..! भारत में एक सच्चे लीडर की प्रोफाइल ऐसी ही होनी चाहिए। ऐसे संत ही भारत को फिर से विश्व गुरु बना सकते हैं।

Wednesday, April 5, 2023

हर शुभ कार्य से पहले क्यों बनाया जाता है स्वास्तिक, जानिए इसका कारण और रहस्य?

स्वस्तिक अत्यन्त प्राचीन काल से भारतीय संस्कृति में मंगल और शुभता का प्रतीक माना जाता रहा है। हिंदू धर्म में किसी भी शुभ कार्य से पहले स्वास्तिक का चिन्ह अवश्य बनाया जाता है। स्वास्तिक शब्द सु+अस+क शब्दों से मिलकर बना है। 'सु' का अर्थ अच्छा या शुभ,'अस' का अर्थ 'सत्ता' या 'अस्तित्व' और 'क' का अर्थ 'कर्त्ता' या करने वाले से है। इस प्रकार 'स्वस्तिक' शब्द में किसी व्यक्ति या जाति विशेष का नहीं,अपितु सम्पूर्ण विश्व के कल्याण या 'वसुधैव कुटुम्बकम्' की भावना निहित है।

'स्वस्तिक' अर्थात् 'कुशलक्षेम या कल्याण का प्रतीक ही स्वस्तिक है। स्वस्तिक में एक दूसरे को काटती हुई दो सीधी रेखाएँ होती हैं, जो आगे चलकर मुड़ जाती हैं। इसके बाद भी ये रेखाएँ अपने सिरों पर थोड़ी और आगे की तरफ मुड़ी होती हैं। स्वस्तिक की यह आकृति दो प्रकार की हो सकती है। प्रथम स्वस्तिक, जिसमें रेखाएँ आगे की ओर इंगित करती हुई हमारे दायीं ओर मुड़ती हैं। इसे 'स्वस्तिक' कहते हैं। यही शुभ चिह्न है,जो हमारी प्रगति की ओर संकेत करता है। स्वस्तिक को ऋग्वेद की ऋचा में सूर्य का प्रतीक माना गया है और उसकी चार भुजाओं को चार दिशाओं की उपमा दी गई है।

सिद्धान्तसार नामक ग्रन्थमें उसे विश्व ब्रह्माण्ड का प्रतीक चित्र माना गया है। उसके मध्य भाग को विष्णु की कमल नाभि और रेखाओं को ब्रह्माजी के चार मुख, चार हाथ और चार वेदों के रूप में निरूपित किया गया है। अन्य ग्रन्थों में चार युग, चार वर्ण, चार आश्रम एवं धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के चार प्रतिफल प्राप्त करने वाली समाज व्यवस्था एवं वैयक्तिक आस्था को जीवन्त रखने वाले संकेतों को स्वस्तिक में ओत-प्रोत बताया गया है। स्वास्तिक की चार रेखाओं को जोडऩे के बाद मध्य में बने बिंदु को भी विभिन्न मान्यताओं द्वारा परिभाषित किया जाता है। मान्यता है कि यदि स्वास्तिक की चार रेखाओं को भगवान ब्रह्मा के चार सिरों के समान माना गया है, तो फलस्वरूप मध्य में मौजूद बिंदु भगवान विष्णु की नाभि है, जिसमें से भगवान ब्रह्मा प्रकट होते हैं। स्वस्तिक में भगवान गणेश और नारद की शक्तियां निहित हैं। स्वस्तिक को भगवान विष्णु और सूर्य का आसन माना जाता है। स्वस्तिक का बायां हिस्सा गणेश की शक्ति का स्थान 'गं' बीज मंत्र होता है।

Monday, November 28, 2022

वो जगह जहां कर्ण का हुआ था अंतिम संस्कार, हजारों साल से यहां के पेड़ में लगे हैं केवल तीन पत्ते...

सूरत: सनातन परंपरा की धरती भारत में ऐसे कई रहस्य हैं, जिसके बारे में बहुत कम लोगों को पता है। ऐसी ही एक जगह है सूरत शहर का बरछा इलाका, जहां महाबली कर्ण का अंतिम संस्कार हुआ था। यहां के लोग कहते हैं कि कर्ण की इच्छा के मुताबिक भगवान कृष्ण ने खुद ही उनका अंतिम संस्कार किया था। कहा जाता है कि केवल एक इंच ज़मीन पर कर्ण का अंतिम संस्कार हुआ था। यहीं पर केवल एक इंच भूमि ही ऐसी थी जहां इसके पहले किसी का शवदाह नहीं हुआ था और इतनी कम भूमि पर शव रखना और उसका दहन करना संभव नहीं हो सकता था। भगवान कृष्ण ने उस भूमि के टुकड़े पर एक बाण रखकर उसके ऊपर कर्ण का शरीर रखा और अंतिम संस्कार किया।


अब आपके जहन में ये बात आ रही होगी कि आखिर एक इंच जमीन पर क्यों हुआ कर्ण का अंतिम संस्कार? इसके पीछे एक बड़ी कहानी है। दरअसल महाभारत में युद्ध के 17वें दिन महायोद्धा कर्ण की मृत्यु हो गई थी। भगवान कृष्ण की प्रेरणा से अर्जुन ने दिव्यास्त्र की सहायता से कर्ण को मारने में सफलता पाई थी। मान्यता है कि कर्ण की वीरता और दानवीरता से प्रसन्न भगवान कृष्ण ने उनके जीवन के अंतिम क्षणों में एक वरदान मांगने को कहा था। कर्ण ने उनसे ऐसी भूमि पर अपना अंतिम संस्कार किए जाने की इच्छा जताई थी, जहां उसके पहले कभी किसी का अंतिम संस्कार न हुआ हो।

कर्ण की जब मृत्यु हुई तो भगवान श्रीकृष्ण ने कर्ण की इच्छानुसार जमीन खोजने का बहुत प्रयत्न किया, लेकिन पूरी पृथ्वी पर भूमि का कोई ऐसा टुकड़ा नहीं मिला, जहां उसके पहले किसी व्यक्ति की अंतिम क्रिया न हुई हो। केवल सूरत शहर में ताप्ती नदी के किनारे एक इंच भूमि ऐसी मिली, जहां उसके पहले कभी किसी का शवदाह नहीं हुआ था और फिर यहां उनका अंतिम संस्कार किया गया। सूरत शहर में यह स्थान अब 'तुल्सीबड़ी मंदिर' के रूप में जाना जाता है जिसकी आसपास के लोगों में बड़ी श्रद्धा है।


यहां आए श्रद्धालुओं का मानना है कि ताप्ती नदी के किनारे इस मंदिर की बड़ी मान्यता है और हजारों लोग इसके दर्शन के लिए आते हैं। यहीं पर एक गोशाला स्थापित की गई है जहां गायों की सेवा की जाती है। पूरी एरिया में इस मंदिर के प्रति लोगों की असीम श्रद्धा है और हर वर्ग के लोग इसके दर्शन करने आते हैं। इसके समीप ही बागनाथ मंदिर भी है। यहां तीन पत्ता बड़ का मंदिर भी है। यहां बरगद का एक पेड़ है जिसके बारे में लोगों की मान्यता है कि इसकी उम्र हजारों साल की है, लेकिन इसमें आज तक केवल तीन ही पत्ते आए हैं। तीनों पत्ते सदाबहार रहते हैं, ये आज भी हरे-भरे हैं। लेकिन इसमें कभी कोई नया पत्ता नहीं आता। इस बड़ (बरगद) को घेरकर एक मंदिर बना दिया गया है जहां आसपास के लोग दर्शन के लिए आते हैं। अमावस और पूर्णिमा को यहां आने वाले श्रद्धालुओं-दर्शकों की संख्या बहुत बढ़ जाती है। ताप्ती नदी के किनारे तीन पत्ते बड़ वाला यह मंदिर लोगों की आस्था का बड़ा केंद्र है।

Saturday, November 12, 2022

तीर्थ यात्रा के दौरान का मेरा अनुभव। और VIP व्यवस्था जो की भगवान के दर्शन के दौरान देखने और लेने पड़ते हैं।

समय ज़्यादा दूर नहीं जब भगवान ख़ुद चल कर भक्त के घर तक पहुँचेंगे, फ़्री में दर्शन करने हैं तो सुबह चार बजे से लाइन लगाओ। फिर जा कर भगवान का गर्भगृह के दरवाजे से पूरे धक्का मुक्की के साथ दूर से दर्शन करो। पूर्वांचल की भाषा में कहे तो बिना टिकट जनरल डिब्बे के जैसे। तत्पशाचात आता है अगली श्रेणि जिसमे भगवान के दर्शन के लिए 15 रुपए या उससे ज्यादा का होता हैं, जिसमें समझ लो जनरल डिब्बे की टिकट के साथ रेल का सफ़र भगवान दर्शन तो देंगे गर्भगृह के दरवाजे से थोड़ा कम धक्का मुक्की के। उसके बाद अगली व्यवस्था 250 रुपए या उससे अधिक का होता हैं टिकट लेकर दर्शन की ( वो स्लीपर क्लास के जैसे समझ लो ) मतलब हर कोई ये व्यवस्था लेकर दर्शन की लाइन में लगेगा लेकिन दर्शन दूर से करेगा। थोड़ा उससे कम धक्का मुक्की के साथ अगली व्यवस्था 750 रुपए या उससे ज्यादा का जिसमें भक्त गर्भग्रह में जा सकता है , भगवान को हाथ लगा सकता है , जल चढ़ा सकता है , अभिषेक कर सकता है। अकेले या गर्भगृह के पंडित जी के साथ।

अगली व्यवस्था है 3000 रुपए या उससे अधिक वाली जिसमें भक्त के साथ एक पंडित भी रहेगा, वो गर्भग्रह में भगवान के सामने 5 मिनट के लिए आपसे पूजा करवाएगा, जल चढ़वाएगा, अभिषेक करवाएगा मंत्रोच्चरण के साथ। अगली व्यवस्था है 6000 रुपए या उससे अधिक वाली जिसमें भक्त के साथ पंडित और फ़ोटो ग्राफ़र भी जाएगा और जाता भी हैं।
  
💐 जल्द ही निम्नलिखित व्यवस्था देखने को मिलेंगी। 

🚩 अगली व्यवस्था होगी 6 लाख वाली जिसमें भक्त और उसके परिवार को भगवान विशेष दर्शन देंगे।

🚩 अगली व्यवस्था 6 करोड़ वाली जिसमें भगवान मंदिर से पालकी में निकल कर भक्त के hotel जाकर उसके रूम में दर्शन देंगे। 

🚩 अगली व्यवस्था होगी 100 करोड़ वाली जिसमें भगवान मंदिर से पालकी से निकल कर सीधे भक्त के घर दर्शन देने जाएँगे। 

🚩 लास्ट हज़ार करोड़ कोई देगा तो भगवान भक्त के घर ही अपना आसन लगा लेंगे। 

ये बहुत दुःखद हैं जो हमारे भगवान का नहीं सिस्टम का उपहास है जिसमें सिस्टम ने भगवान को बेचना शुरू कर दिया है। 

कोई इसे भगवान की आलोचना ना समझे यह सही हैं हमने अनुभव किया है, जो व्यापार बनता जा रहा है।🙏

Thursday, October 6, 2022

भारत के ऐसे 14 टूरिस्ट प्लेस, जहाँ कम बजट में मिलेगी भरपूर आनंद की अनुभूति

Top 14 Cheap Tourist Places of India:- आजकल हर इंसान पैसे कमाने की जद्दोजहद में लगा हुआ है। हम सभी अपनी दिनचर्या में अत्यधिक व्यस्त रहते हैं और ये सोचते हैं कि इस दौड़भाग के जीवन से दूर जाकर कहीं शांतिपूर्ण वातावरण में जाकर अपने और परिवार के लिए कुछ समय निकाला जाए और इस सुकून को पाने के लिए चाहे हम कहीं भी चले जाएँ, पर असली आनन्द तो हमें प्रकृति की गोद में जाकर ही मिलता है। कुछ समय प्राकृतिक वातावरण में गुज़ारने पर हमारे अंदर नई ऊर्जा का संचार होता है और हम फिर से तरोताजा हो जाते हैं। अगर आप भी अपनी बोरिंग ज़िन्दगी से बाहर निकलकर कहीं प्राकृतिक माहौल में जाने की सोच रहे हैं, तो हम आपकी मदद कर सकते हैं, क्योंकि आज हम आपको कई ऐसे प्राकृतिक स्थानों से के बारे में बताने जा रहे हैं, जो खूबसूरत और शांतिपूर्ण तो हैं ही और आप वहाँ कम बजट में भी जा सकते हैं। तो चलिए जानते हैं इन जगहों के बारे मे! 

1. मेघालय की गुफाएँ (Meghalaya cave)
मेघालय में करेम पूरी नामक एक गुफा है, जो विश्व की सबसे लंबी गुफा है। यह गुफा बलुआ पत्थर से निर्मित है। करेम पूरी के अलावा भी मेघालय में दूसरी बहुत-सी गुफाएँ हैं, जहाँ पर आप अकेले भी वक़्त बिता सकते हैं।
2. मुन्नार (Munnar)
अगर आप हरियाली वाले प्राकृतिक सुंदरता से भरे स्थान पर जाना चाहते हैं, तो आपके लिए मुन्नार बहुत अच्छी जगह है। ये जगह सारी दुनिया में चाय के बगानों के लिए ख़ूब प्रसिद्ध है। जब आप इन हरे-भरे बागानों को देखेंगे तो आपकी आंखों और मन को अलग ही सुकून की अनुभूति होगी।
3. अंडमान-निकोबार (Andaman Nicobar)
कुदरती वातावरण को पसंद करने वालों के लिए अंडमान-निकोबार सबसे अच्छा विकल्प है। यहाँ स्थित द्वीपों पर जाकर आपको इतना आनन्द और शान्ति मिलेगी, जो आपने कभी किसी दूसरे स्थान पर अनुभव नहीं की होगी।
4. लद्दाख (Ladakh)
यहाँ जाने के लिए आपको किसी विशेष मौसम का इंतज़ार करने की ज़रूरत नहीं है, क्योंकि हर मौसम में इसकी खूबसूरती बरकरार रहती है। लद्दाख जाकर आपको लगेगा कि मानो स्वर्ग में आ गए हों, क्योंकि यहाँ का सुंदर और शांत वातावरण ऐसी ही अनुभूति देता है।
5. अलेप्पी (Alleppey)
जब फुर्सत के पल बिताने के लिए किसी शांत जगह की तलाश हो, तो अलेप्पी काफ़ी अच्छा विकल्प है। यहाँ की नहरों तथा पाम के पेड़ों के बीच में स्थित खूबसूरत जलभराव व हरियाली देखकर आपका मन रोमांचित हो जाएगा और आप कल्पनाओं के नये आयाम में पहुँच जाएंगे। इस जगह को पूरब का वेनिस भी कहते हैं।
6. मनाली (Manali)
हिमाचल प्रदेश के कुल्लू में स्थित यह हिल स्टेशन पर्यटकों के लिए छुट्टी बिताने की बेहद मशहूर जगह है। यहाँ बर्फ से ढके पहाड़, नदी घाटियाँ, अदभुत कैफे व शांत स्थानों के नज़ारे चारो तरफ़ दिखाई देते हैं। यहाँ आप ट्रेकिंग का आनन्द ले सकते हैं और साथ ही यहाँ सोलंग घाटी में पैराग्लाइडिंग का अनुभव भी ख़ूब मज़ेदार रहेगा।
7. डोंगरी ट्रेक (Dzongri Trek)
ये स्थान सिक्किम से 13 किमी की दूरी पर स्थित है। पहाड़ की चोटियों, रोडोडेंड्रोन जंगलों व घाटी में बहती नदी के शानदार नज़ारे इसकी सुंदरता में चार चांद लगा देते हैं। अगर आप अपनी क्षमता परखना चाहते हैं, तो यहाँ के अनछुए जंगलों में ट्रेकिंग करना आपके लिए एक अच्छा विकल्प हो सकता है।
8. फूलों की घाटी (Phulo ki ghati)
चारों ओर से रंग-बिरंगे फूलों और बर्फ से ढके पहाड़ों का आकर्षक नज़ारा देखना हो तो आप उत्तराखंड की फूलों की घाटी में ज़रूर जाइए। ख़ुशबू से महकते इस स्थान पर आपको हर महीने मौसम के अनुसार अलग-अलग प्रकार के खूबसूरत फूल दिखाई देंगे।
9. कच्छ का रण (Kutch ka Rann)
कच्छ का रण विश्व का सबसे बड़ा नमक का रेगिस्तान है, जो गुजरात में स्थित है। साधारणतया रेगिस्तान पीले होते हैं, लेकिन नमक की वज़ह से यह सफेद है। इसे द ग्रेट रण ऑफ कच्छ भी कहा जाता है। सूर्य की रोशनी में चमकते लवणीय कणों से युक्त इस जगह पर जाकर आपको शांतिपूर्ण वातावरण मिलेगा।
10. थार मरुस्थल (Thar Desert)
अकेले समय व्यतीत करने के लिए किसी शांत स्थान पर जाने का सोंच रहे हों, तो थार का मरुस्थल काफ़ी बेहतर है। अरावली के पहाड़ी के पश्चिमी किनारे पर स्थित यह मरुस्थल लहरदार रेतीले पहाड़ों का एक विस्तृत मैदान है। ये दुनिया का 17वां सबसे बड़ा रेगिस्तान है।
11. जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क (Jim Corbett National Park)
अगर आप प्रकृति और पशु प्रेमी हैं तो आपके लिए हिमालयन बेल्ट की तलहटी में स्थित जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क एक परफेक्ट प्लेस है। इसमें आपको शानदार परिदृश्य और विभिन्न पशु-पक्षियों की प्रजातियाँ मिलेंगी। यहाँ आप जंगल सफ़ारी का लुत्फ भी उठा सकते हैं।
12. ऋषिकेश के आश्रम (Rishikesh ka ashram)
प्रकृतिप्रेमियों और आस्थावानों के लिए इस ऋषिकेश में अनेक आकर्षक स्थल हैं। यहाँ गंगा के किनारे बसे आश्रम में आपको आध्यात्मिक शांति प्राप्त होगी।
13. सिंधू दुर्ग क़िला (Sindhudurg fort)
ऊंचे पहाड़ और समुद्र के किनारे इस सिंधू दुर्ग किले की सुंदरता को दोगुना कर देते हैं। यही वज़ह है कि यहाँ पूरे साल टूरिस्टों का तांता लगा रहता है। इस किले को छत्रपति शिवाजी महाराज ने बनवाया था। यह क़िला मुम्बई से दूर स्थित रत्नागिरी में है।
14. कुर्गू (Kurgu)
यह खुबसूरत हिल स्टेशन कर्नाटक का प्रमुख पर्यटन स्थल है, इसे भारत का स्कॉटलैंड भी कहते हैं। यहाँ की सुंदर घाटियाँ, रहस्‍यमयी पहाड़ियाँ, चाय व कॉफी के विस्तृत बागान, बुलंद चोटियाँ व तेजी से बहने वाली नदियाँ पर्यटकों को आकर्षित कर लेती हैं। यहाँ जाकर आप साहसिक खेलों का भी आनन्द उठा सकते हैं। प्राकृतिक सौंदर्य के कारण यह स्थान आपको बहुत आएगा।

मैं तो इंसानियत से मजबूर था तुम्हे बीच मे नही डुबोया" मगर तुमने मुझे क्यों काट लिया!

नदी में बाढ़ आती है छोटे से टापू में पानी भर जाता है वहां रहने वाला सीधा साधा1चूहा कछुवे  से कहता है मित्र  "क्या तुम मुझे नदी पार करा ...