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Sunday, June 27, 2021

पांडवों ने क्यों बनवाया था केदारनाथ मंदिर? आखिर क्या इसका रहस्य।

हिन्दू धर्म में हिमालय की गोद में बसे केदारनाथ धाम को बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक माना गया है। हिन्दू पुराणों में साल के करीब 6 महीने हिम से ढके रहने वाले इस पवित्र धाम को भगवान शिव का निवास स्थान बताया जाता है। ऐसा माना जाता है कि यहां भगवान शिव त्रिकोण शिवलिंग के रूप में हर समय विराजमान रहते हैं। वैसे तो पौराणिक ग्रंथों में इस धाम से जुड़ी कई कथाओं का वर्णन मिलता है लेकिन आज आपको महाभारत में इस धाम से जुड़ी एक कथा के बारे में बताने जा रहे हैं। इस कथा में ये बताया गया है कि यहां पांडवों को भगवान शिव ने साक्षात् दर्शन दिए थे, जिसके बाद पांडवों ने यहां इस धाम को स्थापित किया।

पांडवों ने क्यों बनवाया था केदारनाथ मंदिर।
धार्मिक ग्रंथों में वर्णित कथा के अनुसार, महाभारत युद्ध में विजय के पश्चात पांडवों में सबसे बड़े युधिष्ठिर को हस्तिनापुर के नरेश के रूप में राज्याभिषेक किया गया। उसके बाद करीब चार दशकों तक युधिष्ठिर ने हस्तिनापुर पर राज्य किया। इसी दौरान एक दिन पांचों पांडव भगवान श्रीकृष्ण के साथ बैठकर महाभारत युद्ध की समीक्षा कर रहे थे। समीक्षा में पांडवों ने श्रीकृष्ण से कहा हे नारायण हम सभी भाइयों पर ब्रम्ह हत्या के साथ अपने बंधु बांधवों की हत्या का कलंक है।

इस कलंक को कैसे दूर किया जाए? तब श्रीकृष्ण ने पांडवों से कहा कि ये सच है कि युद्ध में भले ही जीत तुम्हारी हुई है लेकिन तुमलोग अपने गुरु और भाई बांधुओ को मारने के कारण पाप के भागी बन गए हो। इन पापों के कारण मुक्ति मिलना असंभव है। इन पापों से सिर्फ महादेव ही मुक्ति दिला सकते हैं। इसलिए महादेव की शरण में जाओ। उसके बाद श्रीकृष्ण द्वारका लौट गए।

उसके बाद पांडव पापों से मुक्ति के लिए चिंतित रहने लगे और मन ही मन सोचते रहे कि कब राज पाठ को त्यागकर भगवान शिव की शरण में जाएंगे। उसी बीच एक दिन पांडवों को पता चला कि वासुदेव ने अपना देह त्याग दिया है और वो अपने परमधाम लौट गए हैं। ये सुनकर पांडवों को भी पृथ्वी पर रहना उचित नहीं लग रहा था। गुरु, पितामह और सखा सभी तो युद्धभूमि में ही पीछे छूट गए थे। माता, ज्येष्ठ, पिता और काका विदुर भी वनगमन कर चुके थे। सदा के सहायक कृष्ण भी नहीं रहे थे। ऐसे में पांडवों ने राज्य परीक्षित को सौंप दिया और द्रौपदी समेत हस्तिनापुर छोड़कर भगवान शिव की तलाश में निकल पड़े।

हस्तिनापुर से निकलने के बाद पांचों भाई और द्रौपदी भगवान शिव के दर्शन के लिए सबसे पहले काशी पहुंचे, पर भोलेनाथ वहां नहीं मिले। उसके बाद उन लोगों ने कई और जगहों पर भगवान शिव को खोजने का प्रयास किया लेकिन जहां कहीं भी ये लोग जाते शिव जी वहां से चले जाते। इस क्रम में पांचों पांडव और द्रौपदी एक दिन शिव जी को खोजते हुए हिमालय तक आ पहुंचे।

यहां पर भी शिवजी ने इन लोगों को देखा तो वो छिप गए लेकिन यहां पर युधिष्ठिर ने भगवान शिव को छिपते हुए देख लिया था। तब युधिष्ठिर ने भगवान शिव से कहा कि हे प्रभु आप कितना भी छिप जाएं लेकिन हम आपके दर्शन किए बिना यहां से नहीं जाएंगे और मैं ये भी जनता हूं कि आप इसलिए छिप रहे हैं क्योंकि हमने पाप किया है। युधिष्ठिर के इतना कहने के बाद पांचों पांडव आगे बढ़ने लगे। उसी समय एक बैल उन पर झपट पड़ा। ये देख भीम उससे लड़ने लगे। इसी बीच बैल ने अपना सिर चट्टानों के बीच छुपा लिया जिसके बाद भीम उसकी पुंछ पकड़कर खींचने लगे तो बैल का धड़ सिर से अलग हो गया और उस बैल का धड़ शिवलिंग में बदल गया और कुछ समय के बाद शिवलिंग से भगवान शिव प्रकट हुए। शिव ने पंड़ावों के पाप क्षमा कर दिए।
 
आज भी इस घटना के प्रमाण केदारनाथ में दिखने को मिलता है, जहां शिवलिंग बैल के कुल्हे के रूप में मौजूद है। भगवान शिव को अपने सामने साक्षात देखकर पांडवों ने उन्हें प्रणाम किया और उसके बाद भगवान शिव ने पांडवों को स्वर्ग का मार्ग बताया और फिर अंतर्ध्यान हो गए। उसके बाद पांडवों ने उस शिवलिंग की पूजा-अर्चना की और आज वही शिवलिंग केदारनाथ धाम के नाम से जाना जाता है। यहां पांडवों को स्वर्ग जाने का रास्ता स्वयं शिव जी ने दिखाया था इसलिए हिन्दू धर्म में केदार स्थल को मुक्ति स्थल माना जाता है और ऐसी मान्यता है कि अगर कोई केदार दर्शन का संकल्प लेकर निकले और उसकी मृत्यु हो जाए तो उस जीव को दोबारा जन्म नहीं लेना पड़ता है।

Monday, June 21, 2021

आज है गायत्री जयंती, जानिए कैसे प्रकट हुई माता गायत्री।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को गायत्री जयंती मनाई जाती है। गायत्री को ब्रह्मा की पत्नी माना गया है और इनके मूल स्वरुप श्री सावित्री देवी है। मां गायत्री को गायत्री मंत्र की अधिष्ठात्री देवी और वेदमाता भी कहा गया है। हिंदू धर्म शास्त्रों में गायत्री मंत्र के जाप को जीवन के लिए आवश्यक बताया गया है। हिंदू धर्म में चार वेद हैं जिनका नाम है- ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद। इन सबमें ही वेदमाता गायत्री और गायत्री मंत्र के जप का उल्लेख मिलता है।

शास्त्रों के अनुसार सृष्टि के आरंभ में ब्रह्मा जी के मुख से गायत्री मंत्र प्रकट हुआ था। मां गायत्री की कृपा से ब्रह्माजी ने गायत्री मंत्र की व्याख्या अपने चारों मुखों से चार वेदों के रूप में की थी। आरम्भ में मां गायत्री की महिमा सिर्फ देवताओं तक ही थी, लेकिन महर्षि विश्वामित्र ने कठोर तपस्या कर मां की महिमा अर्थात् गायत्री मंत्र को जन-जन तक पहुंचाया था।

एक प्रसंग के अनुसार एक बार ब्रह्माजी ने यज्ञ का आयोजन किया। परंपरा के अनुसार यज्ञ में ब्रह्माजी को पत्नी सहित ही यज्ञ में बैठना था, लेकिन किसी कारणवश ब्रह्मा जी की पत्नी सावित्री को आने में देर हो गई। यज्ञ का मुहूर्त निकला जा रहा था, इसलिए ब्रह्मा जी ने वहां मौजूद देवी गायत्री से विवाह कर लिया और उन्हें अपनी पत्नी का स्थान देकर यज्ञ प्रारम्भ कर दिया।

गायत्री मंत्र
ॐ भूर् भुवः स्वः, तत् सवितुर्वरेण्यं
भर्गो देवस्य धीमहि, धियो यो नः प्रचोदयात्।।

हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार, अगर आप पूरे दिन में तीन बार भी गायत्री मंत्र का जाप करते हैं तो आपका जीवन सकारात्मकता की तरह प्रेरित होता है और नकारात्मकता जाती रहती है। यह भी माना जाता है कि मां गायत्री भक्तों के दुखों को हरने वाली हैं।

International Yoga Day : जाने योग दिवस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दस बड़ी बातें।

International Yoga Day: कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर के बीच आज 7वां योद दिवस मनाया जा रहा है। इस साल का थीम 'योग फॉर वेलनेस' है। जो शारीरिक और मानसिक कल्याण के लिए योग का अभ्यास करने पर केंद्रित है। इस खास मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज सुबह देश को संबोधित किया। प्रधानमंत्री ने कहा कि जब पूरी दुनिया कोरोना जैसी महामारी से जूझ रही है तो योग उम्मीद की किरण बना है। साथ ही पीएम ने कहा कि मुझे विश्वास है कि योग जनता के स्वास्थ्य की देखभाल में निवारक एवं प्रेरक भूमिका निभाता रहेगा। उन्होंने कहा कि योग हमें तनाव से शक्ति का और नकारात्मकता से रचनात्मकता का रास्ता दिखाता है।

1- योग के प्रति उत्साह और बढ़ा है।

2- कोरोना काल में योग उम्मीद की किरण बना।

3- इस बार की थीम ने योग को लेकर उत्साह और बढ़ाया।

4- सभी मिलकर एक दूसरे की ताकत बनें।

5- हर देश का व्यक्ति स्वस्थ्य हो।

6- दुनिया के कोने-कोने में योग के नए साधक बने हैं।

7- योग दिवस के प्रति उत्साह कम नहीं हुआ।

8- योग आत्मबल का बड़ा माध्यम बना।

9- योग ने कोरोना से लड़ने का भरोसा बढ़ाया।

10- डॉक्टरों ने योग को सुरक्षाकवच बनाया।

Sunday, June 20, 2021

जाने भगवान शिव के गले में पड़ी मुण्ड माला का अद्धभुत रहस्य!

भगवान शिव और सती का अद्भुत प्रेम शास्त्रों में वर्णित है। इसका प्रमाण है सती के यज्ञ कुण्ड में कूदकर आत्मदाह करना और सती के शव को उठाए क्रोधित शिव का तांडव करना। हालांकि यह भी शिव की लीला थी क्योंकि इस बहाने शिव 51 शक्ति पीठों की स्थापना करना चाहते थे। शिव ने सती को पहले ही बता दिया था कि उन्हें यह शरीर त्याग करना है। इसी समय उन्होंने सती को अपने गले में मौजूद मुंडों की माला का रहस्य भी बताया था।

मुण्ड माला का रहस्य..!
एक बार नारद जी के उकसाने पर सती भगवान शिव से जिद करने लगी कि आपके गले में जो मुंड की माला है उसका रहस्य क्या है। जब काफी समझाने पर भी सती न मानी तो भगवान शिव ने रहस्य खोल ही दिया। शिव ने पार्वती से कहा कि इस मुंड की माला में जितने भी मुंड यानी सिर हैं वह सभी आपके हैं। सती इस बात का सुनकर चकित रह गईं।

सती ने भगवान शिव से पूछा, यह भला कैसे संभव है कि सभी मुंड मेरे हैं। इस पर शिव बोले यह आपका 108 वां जन्म है। इससे पहले आप 107 बार जन्म लेकर शरीर त्याग चुकी हैं और ये सभी मुंड उन पूर्व जन्मों की निशानी है। इस माला में अभी एक मुंड की कमी है इसके बाद यह माला पूर्ण हो जाएगी। शिव की इस बात को सुनकर सती ने शिव से कहा मैं बार-बार जन्म लेकर शरीर त्याग करती हूं लेकिन आप शरीर त्याग क्यों नहीं करते।

शिव हंसते हुए बोले मैं अमर कथा जानता हूं इसलिए मुझे शरीर का त्याग नहीं करना पड़ता। इस पर सती ने भी अमर कथा जानने की इच्छा प्रकट की। शिव जब सती को कथा सुनाने लगे तो उन्हें नींद आ गयी और वह कथा सुन नहीं पायी। इसलिए उन्हें दक्ष के यज्ञ कुंड में कूदकर अपने शरीर का त्याग करना पड़ा।

शिव ने सती के मुंड को भी माला में गूंथ लिया। इस प्रकार 108 मुंड की माला तैयार हो गयी। सती ने अगला जन्म पार्वती के रूप में हुआ। इस जन्म में पार्वती को अमरत्व प्राप्त होगा और फिर उन्हें शरीर त्याग नहीं करना पड़ा।

चाहते है, अच्छा स्वास्थ्य, लंबी आयु, तो भीष्म पितामह की इन 12 बातों को ध्यान रखें।

महाभारत युद्ध इतिहास का सबसे अहम युद्ध माना जाता है। इस युद्ध से ही पता चलता है कि अधर्म ज्यादा दिनों तक टिक नहीं सकता है। महाभारत युद्ध में भगवान श्रीकृष्ण द्वारा दिया गया ज्ञान जीवन में जीने की कला सीखाती है। हर पात्र कुछ न कुछ सिख सिखाता है। महाभारत के सबसे अहम पात्र भीष्ण के बिना महाभारत की कथा अधूरी मालूम पड़ती है। महाभारत की कथा में भीष्म पितामह की भूमिका बहुत ही अहम और प्रभावशाली है। भीष्म पितामह के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने जीवन भर धर्म का पालन किया।

महाभारत का युद्ध कितने दिनों तक चला।
महाभारत का युद्ध 18 दिनों तक चला। भीष्म पितामह कौरवों की सेना के सेनापति थे। भीष्म पितामह जब पाण्डवों की सेना पर भारी पड़ने लगे तो पाण्डवों की सेना में हड़कंप मच गया है। सैनिक भयभीत होने लगे। तब श्रीकृष्ण ने भीष्म पितामह से हाथ जोड़कर विनम्रता से मृत्यु का उपाय पूछा।

शिखंडी बना भीष्म की मौत का कारण।
उपाय जानने के बाद अगले दिन पांडव शिखंडी को भीष्म के समाने खड़ा कर देते हैं। भीष्म शिखंडी को सामने पाकर अपने अस्त्र और शस्त्र त्याग देते हैं। अर्जुन भीष्म पितामह युद्ध के दसवें दिन भीष्म  तीरों की शैया पर लेट जाते हैं। तीरों की शैया पर लेटकर भीष्म युधिष्ठिर को ज्ञान प्रदान करते हैं, और आयु और सेहत से जुड़ी ये 12 अहम बातें बताते हैं-

1- मन को काबू में रखना।
2- घमंड नहीं करना।
3- विषयों की तरफ बढ़ती इच्छाओं को रोकना।
4- कटु वचन सुनकर भी उतर नहीं देना।
5- किसी भी चोट पर शांत और धैर्य रखना।
6- अतिथि व लाचार को आश्रय देना।
7- निन्दा रस से दूर रखना।
8- नियमपूर्वक शास्त्र पढ़ना व सुनना।
9- दिन में नहीं सोना।
10- स्वयं आदर न चाहकर दूसरों को आदर देना।
11- क्रोध के वशीभूत नहीं रहना।
12- स्वाद के लिए नहीं स्वास्थ्य के लिए भोजन करना।

Saturday, June 19, 2021

जाने कैलाश पर्वत के नीचे एक रहस्यमयी गुफा के बारे में क्या है खास।

कैलाश पर्वत के निचले हिस्से में एक गुफा है जो सैकड़ों मील लंबी है। कहा जाता है कि प्राचीन समय में योगियों ने वहां समाधि ली थी और ध्यान का अभ्यास किया था। गुफा की सौ मीटर की गहराई के भीतर कई मानव हड्डियां मिली हैं। गुफा के प्रवेश द्वार पर आप कुछ मदहोश करने वाला संगीत सुन सकते हैं, जिसकी तीव्रता बढ़ जाती है, जब आप और अंदर जाते हैं। यह तबले, डमरू, युद्ध के सींग से युक्त किसी प्रकार की आवाज़ है।

ध्वनि के स्रोत अभी तक नहीं मिले हैं।
आश्चर्यजनक रूप से गुफा के अंदर ऑक्सीजन का स्तर बाहर की तुलना में बेहतर है और इसमें एक विदेशी गंध है। गुफा के अंदर का तापमान किसी भी अन्य गुफा की तरह बढ़ जाता है, इस तरह से तापमान असहनीय हो जाता है जिससे इंसान गुफा के ज्यादा अन्दर नहीं जा सकता। अंदर जाते ही आपके शरीर में एक अजीब सा कंपन महसूस होता है। आपकी सभी इंद्रियां असामान्य रूप से काम करना शुरू कर देती हैं। यदि आपकी आंखें बंद हैं तो आपको अजीब चीजें दिखती हैं। भारहीनता जैसी अनुभूति होती है मानो गुरुत्वाकर्षण कम हो रहा हो।

गुफा की विचित्रता के लिए स्पष्टीकरण प्राप्त करने के लिए बहुत सारे शोध किए गए हैं लेकिन फिर भी कोई नतीजा नहीं निकला है। गुफा के अंदर गर्मी और चुंबकत्व के कारण अंदर भेजे गए सभी प्रोब, रोबोट, ड्रोन कुछ दूर से आगे नहीं जा सकते हैं। गुफा में जाने वाले इंसान का जीवन अजीब तरह से प्रभावित होता है, इसलिए प्रवेश द्वार को छलावरण रॉक दरवाजे के साथ सील कर दिया गया है। लेकिन शुरुआती तस्वीरें उपलब्ध हैं। कैलाश पर्वत भारत में नहीं है लेकिन फिर भी यहां के लोग इससे जुड़े रहते हैं। यह सबसे बड़े अनसुलझे रहस्यों में से एक है और अच्छी तरह से गुप्त रखा गया है।

Wednesday, June 16, 2021

16 जून 2013 की भीषण त्रासदी के बाद भी एक पत्थर जो केदारनाथ में पुनः प्राण स्थापित किया।

16 जून 2013 की वह आपदा बेहद भीषण थी। केदारनाथ आपदा को आज आठ साल पूरे हो गए। उस भीषण त्रासदी को याद करके आज भी लोग सिहर जाते हैं। आपदा में 4,400 से अधिक लोग मारे गए और लापता हो गए। 4,200 से ज्यादा गांवों का संपर्क टूट गया। इनमें 991 स्थानीय लोग अलग-अलग जगह पर मारे गए। 11,091 से ज्यादा मवेशी बाढ़ में बह गए या मलबे में दबकर मर गए। ग्रामीणों की 1,309 हेक्टेयर भूमि बाढ़ में बह गई। 2,141 भवनों का नामों-निशान मिट गया। 100 से ज्यादा बड़े व छोटे होटल ध्वस्त हो गए। यात्रा मार्ग में फंसे 90 हजार यात्रियों को सेना ने और 30 हजार लोगों को पुलिस ने बाहर निकाला। आपदा में नौ नेशनल हाई-वे, 35 स्टेट हाई-वे और 2385 सड़कें 86 मोटर पुल, 172 बड़े और छोटे पुल बह गए और क्षतिग्रस्त हो गए। लेकिन एक पत्थर बाढ़ में बहते हुए आ कर केदारनाथ मंदिर से कुछ दूरी पर स्थित हो गया जिससे पानी का बहाव दो हिस्सो मे बट गया और बाबा भोलेनाथ की कृपा से केदारनाथ मुख्य मंदिर का कोई नुकसान नही हुआ, हा लेकिन मंदिर की दीवार पर हल्का नुकसान जरूर हुआ, जो उस तबाही से बहुत कम है।
आपदा से पहले गौरीकुंड से केदारनाथ जाने वाला पैदल मार्ग रामबाड़ा और गरुड़चट्टी से होकर गुजरता था, लेकिन मंदाकिनी नदी के उफनती लहरों ने रामबाड़ा का अस्तित्व ही खत्म कर दिया और इसी के साथ यह रास्ता भी तबाही की भेंट चढ़ गया। इसके बाद 2014 से यात्रा का रास्ता बदल दिया गया और चट्टी सूनी हो गई। 2017 में केदारनाथ पुनर्निर्माण कार्यों ने जोर पकड़ा तो गरुड़चट्टी को संवारने की कवायद भी शुरू हुई। अक्टूबर 2018 में रास्ता तैयार कर लिया गया। सोलह व सत्रह जून को बारिश, बाढ़ और भूस्खलन की घटनाओं ने रुद्रप्रयाग, चमोली, उत्तरकाशी, बागेश्वर, अल्मोड़ा, पिथौरागढ़ जिलों में भारी तबाही मचाई। आपदा से उत्तराखंड को जान-माल की भारी क्षति हुई। पर्यटन कारोबार की कमर टूट गई।

जानकारों का मानना है कि आपदा के जख्मों को पूरी तरह से भरने में अब भी कई साल लग जाएंगे। राहत और पुनर्निर्माण के मरहम से हालात सुधारने के प्रयास जारी हैं। मगर पर्यावरण सरोकारों से जुड़े लोगों का मानना है कि सरकारों ने जख्म तो भरे हैं पर आपदा से सबक नहीं सीखा है।

Monday, June 14, 2021

राजस्थान में भगवान जगन्नाथ विशाल रथ को 85 किलो चांदी से किया जा रहा है तैयार।

भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा एक महोत्सव से कम नहीं होती है। जहां भगवान जगन्नाथ की एक झलक पाने के लिए श्रद्धालु उत्सुक रहते हैं। पुरी की जगन्नाथ यात्रा की तर्ज पर ही उदयपुर में भी भगवान जगन्नाथ की विशाल रथ यात्रा की तैयारी शुरू हो गई है। भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा के लिए राजस्थान में विशाल रथ तैयार किया जा रहा है। करीब दो साल से इसकी तैयारी की जा रही है। 28 खंडों को मिलाकर इस रजत रथ का निर्माण किया जा रहा है। रजत रथ में करीब 85 किलो चांदी चढ़ाई गई है। भले ही भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा को लेकर अभी असमंजस की स्थिति बरकरार हो लेकिन भक्त अपनी तैयारियों में कोई कमी नहीं छोड़ रहे हैं। पिछले वर्ष भी कोरोना महामारी के चलते रथ यात्रा को स्थगित किया गया था। इस वर्ष भी रथ यात्रा को लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं है। इन सबके बावजूद भगवान जगन्नाथ के लिए भक्तों की ओर से नया रजत रथ तैयार किया जा रहा है। यहां रथ यात्रा की परंपरा 368 साल पुरानी है यहां भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा की परंपरा 368 साल पुरानी है। पहले भगवान को मंदिर परिसर में परिक्रमा करवाई जाती थी लेकिन अब भगवान जगन्नाथ स्वयं भक्तों को दर्शन देने के लिए नगर भ्रमण पर निकलते हैं। भगवान जगन्नाथ के नगर भ्रमण के लिए तैयार किए जा रहे नए रजत रथ पर चांदी चढ़ाने का काम 6 कारीगरों द्वारा किया जा रहा है।

भगवान जगन्नाथ का नया रजत रथ अत्याधुनिक तकनीक से युक्त होगा। रथ की लंबाई 16 फिट, चौड़ाई 8 फीट और ऊंचाई 21 फीट होगी। रथ के पहियों को 6 इंच अंदर लिया गया है। इससे दुर्घटना नहीं होगी। रथ में हाइड्रोलिक ब्रेक लगाए जा रहे हैं। मंदिर परिसर में करीब दो दर्जन कार्यकर्ता दिन रात रथ को तैयार करने में जुटे हुए हैं। नए रथ को आकर्षक और खूबसूरत बनाने के प्रयास किए जा रहे हैं। नए रथ पर दोनों पहियों के ऊपर आगे हंस और पीछे शेर का मुख बनाया जा रहा है। रथ के पहिए हैदराबादी नक्काशी से बनाए गए हैं। रथ में हाइड्रोलिक ब्रेक लगाए जा रहे हैं ताकि रथ को आसानी से रोका जा सके। भगवान जगन्नाथ जब इस नए रजत रथ में विराजित होंगे तब भक्तों को दर्शन में परेशानी ना हो इसके लिए भी पूरा ध्यान रखा गया है।

Sunday, June 13, 2021

उत्तर प्रदेश में भी बना माता कोरोना का मंदिर, जाने क्या है खास।

देश में कोरोना वायरस के प्रकोप से कितने घर में मातम छाया हुआ है। हालांकि मेडिकल साइंस अपनी जी जान लगा रही है। लेकिन अब लोग इस संकट को भगाने के लिए पूजा-पाठ की तरफ जा रहे हैं। केरल के बाद उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ में कोरोना माता का मंदिर स्थापित किया गया है। इस मंदिर माता कोरोना की एक मूर्ति स्थापित की गई है। इस महामारी से मुक्ति पाने के लिए लोग लगातार इस मंदिर में पूजा अर्चना के लिए आ रहे हैं। हालांकि मंदिर में प्रवेश के लिए बनाए गए नियम लोगों को संक्रमण के प्रति जागरूकता का संदेश भी दे रहे हैं।

कोरोना संक्रमण ने लोगों के दिल में खौफ पैदा कर दिया है। परेशान लोगों ने अब आस्था की राह अपनाई है। सांगीपुर के पूरे जूही (शुकुलपुर) में महामारी से तीन मौतें हुईं तो लोग डर गए। गांव के लोकेश श्रीवास्तव की पहल के बाद ग्रामीणों ने 7 जून को कोरोना माता की मूर्ति स्थापित कराई।

बनवाई गई खास मूर्ति।
विशेष ऑर्डर पर तैयार करवाई गई मूर्ति को गांव में नीम के पेड़ के पास स्थापित कर इसे कोरोना माता मंदिर का नाम दे दिया गया। ग्रामीणों का मानना है कि, पूर्वजों ने चेचक को माता शीतला का स्वरूप माना था और अब कोरोना भी देवी माता का ही रूप है।

मंदिर में लिखे गए ये निर्देश।
ग्रामीणों का दावा है कि, यह विश्व का पहला कोरोना माता का मंदिर है। मंदिर में ऐसा लिखा भी गया है। मंदिर की दीवारों पर कुछ संदेश भी लिखे गए हैं। जिनमें कृपया दर्शन से पूर्व मास्क लगाएं, हाथ धोएं, दूर से दर्शन करें वरना...।

मंदिर में पीले फूल और...
इतना ही नहीं एक तरफ लिखा गया है कि कृपया सेल्फी लेते समय मूर्ति को न छुएं तो दूसरी तरफ कृपया पीले रंग का ही फूल, फल, वस्त्र, मिठाई, घंटा आदि चढ़ाएं। अब इसे अंधविश्वास कहें या लोगों की आस्था लेकिन मंदिर में बड़ी संख्या में लोग पूजा-अर्चना करने भी पहुंच रहे हैं।

केरल और कर्नाटक में बन चुके हैं मंदिर।
हालांकि इस तरह का कोरोना माता मंदिर केरल और तमिलनाडु के कोयंबटूर में कामचीपुरम इलाके में भी बना है। इससे पहले पिछले जून में, केरल के कोल्लम जिले के कडक्कल के एक मंदिर के पुजारी ने वायरस के डर को दूर करने के लिए अपने घर से जुड़े एक अस्थायी मंदिर में कोरोना देवी की मूर्ति स्थापित की थी।

Not:- ऐसी मान्यताओं को जय इंडिया पुष्टि नहीं करता।

भारतीय कोस्ट गार्ड की बढ़ी ताकत, एएलएच एमके-3  हेलिकॉप्टर अब तटरक्षक बल में शामिल।

भारतीय कोस्ट गार्ड यानि तटरक्षक बल की ताकत अब और बढ़ गई है, भारत में ही बने एएलएच एमके-3  हेलिकॉप्टर अब तटरक्षक बल में शामिल हो गये हैं। दरअसल भारत में ही बने ये तीन बेहद हल्के लेकिन बेहद एडवांस हेलिकॉप्टर अब सेवा देने के लिए कोस्ट गार्ड में शामिल कर लिये गये हैं। आत्मनिर्भर भारत और मेक इन इंडिया के तहत इन्हें भारत में एचएएल यानि हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड ने बनाया है।

रक्षा सचिव अजय कुमार की उपस्थिति में एक ऑनलाइन कार्यक्रम में इन हेलीकॉप्टरों को आईसीजी यानि इंडियन कोस्ट गार्ड के बेड़े में शामिल किया गया। यह कार्यक्रम दिल्ली में भारतीय तटरक्षक मुख्यालय और बेंगलुरु में एचएएल के हेलीकॉप्टर एमआरओ डिवीजन में एक साथ आयोजित किया गया था। एचएएल अगले साल के मध्य तक 16 ऐसे हेलिकॉप्टर सप्लाई करेगा, इन हेलीकॉप्टरों को भुवनेश्वर, पोरबंदर, कोच्चि और चेन्नई में चार तटरक्षक स्क्वाड्रनों में तैनात किया जाएगा।

1. एएलएच एमके-3 हेलीकॉप्टर हर प्रकार के मौसम में इस्तेमाल किया जा सकता है 

2. ये बहुउद्देशीय भूमिका वाला अत्याधुनिक हेलीकॉप्टर है

3. इसमें अत्याधुनिक ग्लास कॉकपिट और शक्तिशाली शक्ति इंजन लगा है

इन हेलिकॉप्टर में कई खूबियां हैं। ये हेलीकॉप्टर सर्विलांस रडार, इलेक्ट्रो ऑप्टिक पॉड, चिकित्सा देखभाल इकाई, उच्च तीव्रता लाइट, एसएआर होमर प्रणाली,  मशीन गन जैसे अत्याधुनिक उपकरणों से लैस हैं। इस हेलिकॉप्टर में लगे उन्नत सेंसर की मदद से कोस्ट गार्ड चुनौती पूर्ण कार्य करने में सक्षम हो पाएंगे।

Saturday, June 12, 2021

क्यों चलते हैं शनिदेव लंगड़ाकर, पढ़िए ये पौराणिक कथा।

एक बार सूर्य देव का तेज सहन न कर पाने की वजह से उनकी पत्नी संज्ञा देवी ने अपने शरीर से अपने जैसी ही एक प्रतिमूर्ति तैयार की और उसका नाम स्वर्णा रखा। उसे आज्ञा दी कि तुम मेरी अनुपस्थिति में मेरी सारी संतानों की देखरेख करते हुये सूर्यदेव की सेवा करो और पत्नी सुख भोगो। ये आदेश देकर वह अपने पिता के घर चली गयी। स्वर्णा ने भी अपने आप को इस तरह ढाला कि सूर्यदेव भी यह रहस्य न जान सके। इस बीच सूर्यदेव से स्वर्णा को पांच पुत्र व दो पुत्रियां हुई। स्वर्णा अपने बच्चों पर अधिक और संज्ञा की संतानों पर कम ध्यान देने लगी। एक दिन संज्ञा के पुत्र शनि को तेज भूख लगी, तो उसने स्वर्णा से भोजन मांगा।

तब स्वर्णा ने कहा कि अभी ठहरो, पहले मैं भगवान का भोग लगा लूं और तुम्हारे छोटे भाई बहनों को खाना खिला दूं, फिर तुम्हें भोजन दूंगी। यह सुन शनि को क्रोध आ गया और उसने माता को मारने के लिये अपना पैर उठाया तो स्वर्णा ने शनि को श्राप दे दिया कि तेरा पांव अभी टूट जाये। माता का श्राप सुनकर शनिदेव डरकर अपने पिता के पास गये और सारा किस्सा कह दिया। सूर्यदेव समझ गये कि कोई भी माता अपने बच्चे को इस तरह का श्राप नहीं दे सकती। तब सूर्यदेव ने क्रोध में आकर पूछा कि बताओ तुम कौन हो? सूर्य का तेज देखकर स्वर्णा घबरा गयी और सारी सच्चाई बता दी।

तब सूर्य देव ने शनि को समझाया कि स्वर्णा तुम्हारी माता तो नहीं है परंतु मां के समान है। इसलिए उसका श्राप व्यर्थ तो नहीं होगा, परंतु यह उतना कठोर नहीं होगा कि टांग पूरी तरह से अलग हो जाये। हां, तुम आजीवन एक पांव से लंगड़ाकर चलते रहोगे। रावण की पत्नी मंदोदरी जब गर्भवती हुई तो रावण ने अपराजय व दीर्घायु पुत्र की कामना से सभी ग्रहों को अपनी इच्छानुसार स्थापित कर लिया। 

सभी ग्रह भविष्य में होने वाली घटनाओं को लेकर चिंतित थे लेकिन रावण के भय से वहीं ठहरे रहे। जब रावण पुत्र मेघनाद का जन्म होने वाला था तो उसी समय शनिदेव ने स्थान परिवर्तन कर लिया जिसके कारण मेघनाद की दीर्घायु, अल्पायु में परिवर्तित हो गई। शनि की बदली हुई स्थिति को देखकर रावण अत्यन्त क्रोधित हुआ और उसने शनि के पैर में अपनी गदा से प्रहार किया जिसके कारण शनिदेव लंगडे़ हो गये।

Wednesday, June 9, 2021

आज है ज्येष्ठ का दूसरा बड़ा मंगलवार, ऐसे करें हनुमान जी को प्रसन्न।

मंगलवार का दिन श्री राम भक्त हनुमान जी को समर्पित है। इस दिन पूरे मन से बजरंगबली की पूजा की जाती है। और आज ज्येष्ठ मास का दूसरा बड़ा मंगलवार है। हिंदू शास्त्रों में इस दिन का बहुत महत्व है। श्रद्धालु आज के दिन व्रत रह कर पूरे विधि विधान से पूजा कर हनुमान जी को प्रसन्न करते हैं। हनुमान जी अपने भक्तों के हर कष्टों को दूर करते हैं। तभी तो उनको संकटमोचन कहा जाता है।

हिंदू धर्म में हनुमान जी को बल और बुद्धि का देवता माना गया है। धार्मिक मान्यता है कि हनुमान जी अपने भक्तों को शीघ्र फल प्रदान करते हैं, इसीलिए इन्हें कलयुग का देवता कहते हैं। ये ही एक मात्र देवता है जो आज भी अपने भक्तों की मदद के लिए जीवित हैं।

मान्यता है कि आज बड़े मंगलवार को हनुमान जी की पूजा बड़े नियम और संयम से करनी चाहिए। इस दिन भक्त यदि ये काम करें तो हनुमान जी उनकी मनोकामना पूरी करेंगें।

आइये जानें ये काम।

1- हनुमान जी की कृपा पाने के लिए बड़े मंगलवार को बजरंग बाण का नियम पूर्वक पाठ करना चाहिए। इससे आत्म-विश्वास और साहस में वृद्धि होती है। शत्रु पराजित होते हैं।

2- आज बड़े मंगल के दिन हनुमान जी के दर्शन के बाद भगवान राम और माता सीता का दर्शन जरूर करें। ऐसा करने से भक्त की मनोकामना पूरी होती है।

3- हनुमान जी को प्रसन्न करने के लिए बड़े मंगल के दिन गुलाब की माला या केवड़े का इत्र अर्पित करें। मान्यता है कि ऐसा करने से हनुमान जी कृपा भक्त पर बरसती हैm

4- बड़े मंगलवार को हनुमान जी के मंदिर में नारियल रखना शुभ होता है। माना जाता है कि ऐसा करने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

5- बड़े मंगलवार को लाल रंग की रोटी खिलाएं. ऐसा करना बेहद शुभ होता है।

6- बड़े मंगलवार के दिन हनुमान जी के साथ-साथ पीपल की पूजा भी करनी चाहिए। इससे भक्त की हर मनोकामना पूरी होती है और हनुमान जी भक्त को मालामाल कर देते हैं।

Monday, June 7, 2021

जानिए क्यों और कब शाम के समय शिवलिंग के पास दीपक जलाना चाहिए!

अगर हम शिव पुराण के अनुसार देखें तो इसमें भगवान शिव जी की पूजा अर्चना की विधियों के बारे में उल्लेख किया गया है, उन्हीं विधियों में से एक सावन महीने की रात के समय शिवलिंग के पास दीपक जलाने का उल्लेख मिलता है, शिव पुराण के अनुसार शिवलिंग के पास दीपक जलाना पूजा विधि बताई गई है, अगर आप सावन महीने में शिवलिंग के पास रात के समय दीपक जलाते हैं तो इससे अपको अपने जीवन में धन से जुड़ी हुई परेशानियां नहीं होंगी, आपको धन संबधित सभी परेशानियों से छुटकारा प्राप्त होगा। शिवलिंग के पास दीपक जलाने से आपको धन संबंधित फायदा प्राप्त होता है।

एक प्रचलित कथा के मुताबिक ऐसा कहा जाता है प्राचीन काल में गुणनिधि नाम का एक व्यक्ति बहुत ही निर्धन था, वह अपने और अपने परिवार के लिए भोजन की तलाश में लगा हुआ था, उसको भोजन की तलाश करते करते रात हो गई थी और वह एक शिव मंदिर में पहुंच गया था, गुणनिधि ने यह विचार किया कि रात के समय इसी स्थान पर आराम कर लेना उचित होगा लेकिन रात का समय था और वहां पर बहूत ज्यादा अंधेरा भी हो गया था।

तब उसने अंधेरे को दूर करने के लिए शिव मंदिर में उसने अपनी कमीज़ जला दी थी, रात के समय शिवलिंग तके समक्ष प्रकाश करने के फल स्वरुप उसको अगले जन्म में कुबेर देव का पद प्राप्त हुआ था, इसी वजह से ऐसा माना जाता है कि अगर व्यक्ति को धनवान बनने की इच्छा है तो सावन महीने में रात के समय शिलिंग के पास दीपक जलाना चाहिए.

Saturday, June 5, 2021

10 जून को है शनि जयंती, उस दिन भूलकर भी न करें ये गलतियां।

इस साल शनि देव जयंती 10 जून को मनाई जाएगी। हिंदू पंचाग के अनुार शनि जयंती हर साल जेष्ठ मास की अमावस्या के दिन मनाया जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार मनुष्य के कर्मों के अनुसार ही शनि देव उसे वैसा ही फल देते हैं। मनुष्य द्वारा किया गया कोई भी बुरा या अच्छा कार्य शनिदेव से छिपा हुआ नहीं है। इस दिन शनिदेव की विधि-विधान से पूजा की जाती है। मान्यता है कि इससे शनिदेव प्रसन्न होते हैं। और जिसके बाद जीवन में धन की परेशानी नहीं रहती है। साथ ही मान-सम्मान में वृद्धि होती है। परन्तु उनकी पूजा में यदि भूल से भी ये गलतियाँ हो गई तो उपासक को अपार क्षति हो सकती है। यहां तक की उनके जीवन में अनिष्ट भी हो सकता है. आइये जानें इन गलतियों के बारे में।

शनि जयंती शुभ मुहूर्त
ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि 09 जून को दोपहर 1 बजकर 57 मिनट से शुरू होगी, जोकि 10 जून को शाम 04 बजकर 22 मिनट पर समाप्त होगी।

ना करें ये गलतियां।
शनिदेव की पूजा करते समय उपासक को भूलकर भी उनसे अपनी दृष्टि नहीं मिलानी चाहिए। अन्यथा उपासक के जीवन में अनिष्ट हो सकता है। उपासक को चाहिए कि वे शनिदेव का सारा पूजन सिर को नीचे झुकाकर ही करें। ऐसी मान्यता है कि शनिदेव को उनकी पत्नी से श्राप मिलने से दृष्टि वक्र हो गई है। ऐसे में आंख मिलाकर उनकी पूजा करने से उपासक के जीवन में अनिष्ट हो सकता है। इसलिए शनिदेव के सामने कभी भी एकदम खड़े होकर उनकी आंखों में आँख डालकर पूजा या दर्शन नहीं करनी चाहिए।

मैं तो इंसानियत से मजबूर था तुम्हे बीच मे नही डुबोया" मगर तुमने मुझे क्यों काट लिया!

नदी में बाढ़ आती है छोटे से टापू में पानी भर जाता है वहां रहने वाला सीधा साधा1चूहा कछुवे  से कहता है मित्र  "क्या तुम मुझे नदी पार करा ...