सावन में यदि एक बार सारंगनाथ के दर्शन हो जाएं तो काशी विश्वनाथ के दर्शन के बराबर पुण्य का भागी होता है मनुष्य। इस मंदिर में एक साथ मौजूद है दो शिवलिंग एक छोटा तो एक बड़ा जब दक्ष प्रजापति अपनी पुत्री सती का विवाह किये तो उस समय उनके भाई सारंग ऋषि उपस्थित नहीं थे। वो तपस्या के लिए कहीं गये हुए थे। तपस्या के बाद जब सारंग ऋषि वहां पहुंचे तो उन्हें पता चला कि उनके पिता ने उनकी बहन का विवाह कैलाश पर रहने वाले एक औघड़ से कर दिया है। बहन की शादी एक औघड़ से होने की बात सुनकर सारंग ऋषि बहुत परेशान हुए। वो सोचने लगे की मेरी बहन का विवाह एक भस्म पोतने वाले से हो गयी है। उन्होंने पता किया कि विलुप्त नगरी काशी में उनकी बहन सती और उनके पति विचरण कर रहे हैं। जिस पर वो बहत ज्यादा धन लेकर अपनी बहन से मिलने पहुंचे। रस्ते में जहां आज मंदिर है वहीं थकान की वजह से उन्हें नींद आ गयी। उन्होंने नींद में आये स्वप्न में देखा की उन्होंने काशी नगरी को स्वर्ण नगरी के रूप में देखा। जिसपर उन्हें बहुत ग्लानी हुई की उन्होंने क्या सोचा था और क्या निकला। जिसके बाद उन्होंने प्रण लिया की अब यहीं वो बाबा विश्वनाथ की तपस्या करेंगे उसके बाद ही वो अपनी बहन सती से मिलेंगे।
इसी स्थान पर उन्होंने बाबा विश्वनाथ की तपस्या की। तपस्या करते-करते उनके पूरे शरीर से लावे की तरह गोंद निकलने लगी। जिसके बाद उन्होंने तपस्या जारी रखी अंत में उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भोले शंकर ने सती के साथ उन्हें दर्शन दिए। बाबा विश्वनाथ से जब सारंग ऋषि से इस जगह से चलने को कहा तो उन्होंने कहा कि अब हम यहां से नहीं जाना चाहते यह जगह संसार में सबसे अच्छी जगह हैं जिसपर भगवान शंकर ने उन्हें आशीर्वाद देते हुए कहा कि भविष्य काल में तुम सारंगनाथ के नाम से जाने जाओगे और कलयुग में तुम्हे गोंद चढ़ाने का रिवाज रहेगा और जो चर्म रोगी सच्चे मन से तुम्हे गोंद चढ़ाएगा तो उसे चरम रोग से मुक्ति मिल जाएगी।
सारंग ऋषि का नाम उसी दिन से सारंगनाथ पड़ा और अपने साले की भक्ति देख प्रसन्न हुए बाबा विश्वनाथ भी यहां सोमनाथ के रूप में विराजमान हुए। इस मंदिर में जीजा साले की पूजा एक साथ होती है। इसलिए इस मंदिर को जीजा साले का भी मंदिर कहा जाता है। कहा जाता है कि सावन में बाबा विश्वनाथ यहां निवास करते हैं और जो भी व्यक्ति सावन में काशी विश्वनाथ मंदिर के दर्शन नहीं कर पाता वह एक दिन भी यदि सारंगनाथ का दर्शन करेगा तो उसे काशी विश्वनाथ मंदिर में जलाभिषेक के बराबर पुण्य मिलेगा। इस मंदिर में आने वाले श्रद्धालु मंदिर को भगवान शिव की ससुराल भी कहतें हैं। दर्शन करने आते श्रद्धालुओं ने कहा कि भगवान् भोलेनाथ आपने साले सारंग ऋषि के साथ यहां विराजमान हैं। वो सारंगनाथ और बाबा सोमनाथ के रूप में यहां है। इन दोनों की साथ में पूजा होती है इसलिए ये बाबा की ससुराल है। जहां वो अपने साले के साथ सदियों से हैं।
मंदिर के पास में ही सारंग तालाब भी है जिसको सारंग ऋषि में बनवाया था यहां अब स्नान कर के दर्शन की बहुत मान्यता है। जो लोग स्नान नही कर सकते वो मार्जन( जल से हाथ , पैर , मुह धोना) कर के दर्शन कर ले तोह दर्शन का सम्पूर्ण फल मिलता है। वाराणसी में सारनाथ क्षेत्र का नाम सारंग नाथ महादेव के नाम पर ही पड़ा है ।