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Friday, August 14, 2020

योगी आदित्यनाथ का गृहत्याग और राजनैतिक जीवन का कुछ अंश।

गढवाल में पैदा हुए आदित्यनाथ उत्तराखंड के गढ़वाल के एक गांव से आए अजय सिंह बिष्ट के योगी आदित्यनाथ बनने के पहले के जीवन के बारे में लोगों को ज़्यादा कुछ नहीं मालूम, सिवा इसके कि वह हेमवतीनंदन बहुगुणा विश्वविद्यालय, गढ़वाल से विज्ञान स्नातक हैं और उनके परिवार के लोग ट्रांसपोर्ट बिज़नेस में हैं। महंत अवैद्यनाथ भी उत्तराखंड के ही थे। 
गोरखनाथ मंदिर में लोगों की बहुत आस्था है। मकर संक्राति पर हर धर्म और वर्ग के लोग बाबा गोरखनाथ को खिचड़ी चढ़ाने आते हैं। महंत दिग्विजयनाथ ने इस मंदिर को 52 एकड़ में फैलाया था।
उन्हीं के समय गोरखनाथ मंदिर हिंदू राजनीति के महत्वपूर्ण केंद्र में बदला, जिसे बाद में महंत अवैद्यनाथ ने और आगे बढ़ाया। गोरखनाथ मंदिर के महंत की गद्दी का उत्तराधिकारी बनाने के चार साल बाद ही महंत अवैद्यनाथ ने योगी को अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी भी बना दिया। जिस गोरखपुर से महंत अवैद्यनाथ चार बार सांसद रहे, उसी सीट से योगी 1998 में 26 वर्ष की उम्र में लोकसभा पहुँच गए।पहला चुनाव वह 26 हज़ार के अंतर से जीते, पर 1999 के चुनाव में जीत-हार का यह अंतर 7,322 तक सिमट गया। मंडल राजनीति के उभार ने उनके सामने गंभीर चुनौती पेश की।
दो दशक पहले की है, गोरखपुर शहर के मुख्य बाज़ार गोलघर में गोरखनाथ मंदिर से संचालित इंटर कॉलेज में पढ़ने वाले कुछ छात्र एक दुकान पर कपड़ा ख़रीदने आए और उनका दुकानदार से विवाद हो गया। दुकानदार पर हमला हुआ, तो उसने रिवॉल्वर निकाल ली। दो दिन बाद दुकानदार के ख़िलाफ़ कार्रवाई की मांग को लेकर एक युवा योगी की अगुवाई में छात्रों ने उग्र प्रदर्शन किया और वे एसएसपी आवास की दीवार पर भी चढ़ गए। यह योगी आदित्यनाथ थे, जिन्होंने कुछ समय पहले ही 15 फरवरी 1994 को नाथ संप्रदाय के सबसे प्रमुख मठ गोरखनाथ मंदिर के उत्तराधिकारी के रूप में अपने गुरु महंत अवैद्यनाथ से दीक्षा ली थी। 
गोरखपुर की राजनीति में एक 'एंग्री यंग मैन' की यह धमाकेदार एंट्री थी। यह वही दौर था, जब गोरखपुर की राजनीति पर दो बाहुबली नेताओं हरिशंकर तिवारी और वीरेंद्र प्रताप शाही की पकड़ कमज़ोर हो रही थी। युवाओं ख़ासकर गोरखपुर विश्वविद्यालय के सवर्ण छात्र नेताओं को इस 'एंग्री यंग मैन' में हिंदू महासभा के अध्यक्ष रहे महंत दिग्विजयनाथ की 'छवि' दिखी और वो उनके साथ जुड़ते गए। अब यह योगी 'हिंदुत्व के सबसे बड़े फ़ायरब्रांड नेता' के रूप में स्थापित हो चुका है। दिल्ली के बाद बिहार में करारी हार से यूपी में अपने प्रदर्शन को लेकर चिंतित भाजपा में पिछले ही साल उन्हें मुख्यमंत्री पद के चेहरे के रूप में पेश करने की चर्चा हो रही थी। 2016 मार्च में गोरखनाथ मंदिर में हुई भारतीय संत सभा की चिंतन बैठक में आरएसएस के बड़े नेताओं की मौजूदगी में योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनाने का संकल्प लिया गया। तब संतों ने कहा, "हम 1992 में एक हुए तो 'ढांचा' तोड़ दिया। अब केंद्र में अपनी सरकार है। सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला हमारे पक्ष में आ जाए, तो भी प्रदेश में मुलायम या मायावती की सरकार रहते रामजन्मभूमि मंदिर नहीं बन पाएगा। इसके लिए हमें योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनाना होगा"।

हिंदू युवा वाहिनी
इसके बाद उन्होंने निजी सेना के रूप में हिंदू युवा वाहिनी (हियुवा) का गठन किया, जिसे वह 'सांस्कृतिक संगठन' कहते हैं और जो 'ग्राम रक्षा दल के रूप में हिंदू विरोधी, राष्ट्र विरोधी और माओवादी विरोधी गतिविधियों' को नियंत्रित करता है। हिंदू युवा वाहिनी के खाते में गोरखपुर, देवरिया, महाराजगंज, कुशीनगर, सिद्धार्थनगर से लेकर मउ, आज़मगढ़ तक मुसलमानों पर हमले और सांप्रदायिक हिंसा भड़काने के दर्जनों मामले दर्ज हैं। हिंदू युवा वाहिनी के इन कामों से गोरखपुर में उनकी जीत का अंतर बढ़ने लगा और साल 2014 का चुनाव वह तीन लाख से भी अधिक वोट से जीते।
बढ़ता हुआ दबदबा नेपाल में राजतंत्र की समाप्ति और उसके सेकुलर होने पर दुख जताते हैं और नेपाल की एकता के लिए राजशाही की वकालत करते हैं। मंदिर द्वारा चलाए जाने वाली तीन दर्जन से अधिक शिक्षण-स्वास्थ्य संस्थाओं के वह अध्यक्ष या सचिव हैं। वह एक मेडिकल इंस्टीट्यूट बनाने में भी जुटे हैं। मंदिर की सम्पत्तियां गोरखपुर, तुलसीपुर, महराजगंज और नेपाल में भी हैं।
उनकी दिनचर्या सुबह मंदिर में लगने वाले दरबार से होती है, जिसमें वह लोगों की समस्याएं सुनते हैं और उसके समाधान के लिए अफ़सरों को आदेश देते हैं. इसके बाद क्षेत्र में शिलान्यास, लोकार्पण के कार्यक्रमों और बैठकों में व्यस्त हो जाते हैं.योगी के मीडिया प्रभारी और उनके द्वारा निकाले जाने वाले साप्ताहिक अख़बार 'हिंदवी' जो तीन वर्ष बाद बंद हो गया, के सम्पादक रहे डॉक्टर प्रदीप राव इससे सहमत नहीं हैं कि हियुवा के इस इलाक़े में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के कारण योगी को राजनीतिक सफलता मिली।
जनता से सीधा संपर्क 
वह कहते हैं कि योगी आदित्यनाथ की सबसे बड़ी ख़ासियत जनता से सीधा संवाद और संपर्क है। लोग उनमें महंत दिग्विजयनाथ के तेवर और महंत अवैद्यनाथ का सामाजिक सेवा कार्य का जोग देखते हैं। वह कहते हैं कि गोरखनाथ मंदिर के सामाजिक कार्यों का जनता पर काफ़ी असर है। योगी ने हिंदू युवा वाहिनी के अलावा विश्व हिंदू महासंघ से अपने लोगों को जोड़ रखा है।

यूट्यूब का सबसे नापसंद ट्रेलर बना सड़क 2 लोगों का गुस्सा सातवे आसमान पे।

लम्बे इंतज़ार के बाद, अनुभवी फिल्मकार महेश भट्ट के निर्देशन में बनी फिल्म 'सड़क 2' का ट्रेलर रिलीज़ हो गया है। फिल्म में संजय दत्त, आलिया भट्ट और आदित्य रॉय कपूर अहम किरदार निभा रहे हैं। फिल्म 28 अगस्त को डिज्नी प्लस हॉटस्टार पर रिलीज़ होने वाली है। हालांकि, 12 अगस्त को सड़क 2’ का ट्रेलर रिलीज होने के साथ ही ‘सड़क 2’ का ट्रेलर यूट्यूब पर ट्रेंड कर रहा है। महेश भट्ट द्वारा निर्देशित इस फ़िल्म के ट्रेलर को 24 घंटे के भीतर ही 19 मिलियन से ज्यादा बार देखा जा चुका है। लेकिन ‘सड़क 2’ के ट्रेलर को अब तक 82 लाख से ज्यादा बार डिस्लाइक किया चुका है, जो कि अपने आप में बेहद ही खराब रिकॉर्ड है। जबकि इस ट्रेलर को देखकर इसे पसंद या लाइक करने वालों की संख्या महज 4.4 लाख से ज्यादा है।

बता दें कि महेश भट्ट की यह मूवी जल्द ही दुनिया की सबसे ज्यादा डिसलाइक वीडियो में शामिल हो चुकी है। सड़क 2 के ट्रेलर ने ज़ूमिंग पास्ट के सबसे खराब प्रदर्शित वीडियो स्वीडिश गमेर पिउडाईपाई के रिकॉर्ड को भी पछाड़ दिया है। वर्तमान में सड़क 2 भारत की सबसे ज्यादा डिसलाइक वीडियो बन गई है। इसके ट्रेलर ने यूट्यूब पर कॉल ऑफ ड्यूटी: इनफिनिट वारफेयर डेविल के ट्रेलर को काफी मार्जिन के साथ पीछे छोड़ दिया है।
वहीं अब सड़क 2 सोशल मीडिया प्लेटफार्म में टॉप 10 मोस्ट डिसलाइक वीडियो में शामिल हो चुका है। यूट्यूब के सबसे डिसलाइक किरदार जेक पॉल, जिसे अब तक 4.9 मिलियन डिसलाइक मिल चुके है, सड़क 2 के इस ट्रेलर ने उसके भी रिकॉर्ड को तोड़ दिया है।
दिवंगत अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत के सुसाइड के बाद से ही लोग फिल्म निर्देशक महेश भट्ट और उनकी बेटी आलिया भट्ट को सोशल मीडिया पर लगातार ट्रोल करते नजर आ रहे हैं। सुशांत के चाहने वाले इन पर नेपोटिज्म का आरोप लगा रहे हैं। सड़क 2 के लॉन्च के साथ ही लोगों ने इसका विरोध करना शुरू कर दिया है। सोशल मीडिया यूज़र्स ट्विटर पर #Sadak2dislike के साथ इस पर अपना गुस्सा निकाल रहे हैं।
ज्ञात हो कि सड़क-2 फ़िल्म, 28 अगस्त को डिज्नी प्लस हॉटस्टार पर रिलीज करने की घोषणा हुई है। सोशल मीडिया पर इस दौरान ‘अनइंस्टॉल हॉटस्टार’ ट्रेंड होता रहा क्योंकि लोगों का कहना है कि इस फिल्म में केवल नेपोटिज्म के प्रोडक्ट्स भरे पड़े हैं, जिन्हें महेश भट्ट आगे बढ़ा रहे हैं। चूँकि इसे ‘डिजनी हॉटस्टार’ पर रिलीज किया जाना है, इसीलिए इसका विरोध हो रहा है। सोशल मीडिया में कई लोगों ने हॉटस्टार को अनइंस्टॉल कर के स्क्रीनशॉट्स भी शेयर किए। अब देखना बहुत दिलचस्प होगा कि यह फिल्म कितना कमाई कर पाती हैं।

फोर्ब्स लिस्ट में अक्षय कुमार नम्बर-1 पर, "खान गैंग" इस लिस्ट से बाहर। देखे पूरा लिस्ट।

हर साल की तरह इस बार भी फोर्ब्स ने सबसे अधिक कमाई करने वाले स्टार्स की लिस्ट जारी कर दी है, जिसमें बॉलिवुड ऐक्टर अक्षय कुमार का भी नाम शामिल है। जी हां, फोर्ब्स की इस साल की जो अमीर लोगों की लिस्ट सामने आई है, उसमें टॉप 10 में इकलौते बॉलिवुड ऐक्टर अक्षय कुमार ही हैं। फोर्ब्स ने इस साल सबसे ज्यादा सैलरी पाने वाले मेल स्टार्स की जो लिस्ट जारी की है, उसमें अक्षय कुमार ने कई हॉलिवुड स्टार्स को पछाड़ दिया है।
1. ड्वेन जॉनसन
पहले नंबर पर हैं ड्वेन जॉनसन। ड्वेन ने 1 जून 2019 से 1 जून 2020 तक 87.5 मिलियन डॉलर (1402करोड़ रुपए) की कमाई की।
2. रयान रेनॉल्ड्स
इसके बाद दूसरे नंबर पर हैं हॉलिवुड ऐक्टर रयान रेनॉल्ड्स, जिनकी कमाई 71.5 मिलियन डॉलर यानी (534 करोड़ रुपए) है।
3. मार्क वॉलबर्ग
फोर्ब्स की लिस्ट में तीसरे नंबर पर मार्क वॉलबर्ग हैं, जिनकी कमाई 58 मिलियन डॉलर यानी (433 करोड़) हैं।
4. बेन एफ्लेक
चौथे नंबर पर ऐक्टर, डायरेक्टर बेन एफ्लेक, जिनकी कमाई (55 मिलियन डॉलर- 411 करोड़ रुपए) है।
5. विन डीजल
पांचवें नंबर पर विन डीजल और इनकी कमाई (54 मिलियन डॉलर यानी 403 करोड़ रुपये ) है।
6. अक्षय कुमार

अक्षय कुमार हॉलिवुड के कई स्टार्स को पछाड़ते हुए छठे नंबर पर विराजमान हैं। इस रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि अक्षय की कमाई का सबसे बड़ा सोर्स विज्ञापन है।

बता दें कि अक्षय कुमार 48.5 मिलियन डॉलर (करीब 362 करोड़) की कमाई के साथ ही इस लिस्ट में अपनी छठे नंबर पर है।

7. लिन मेनुएल मिरांडा 

सातवें पर लिन मेनुएल मिरांडा, जिनकी कमाई (45.5 मिलियन डॉलर यानी 340 करोड़ रुपये ) है।


8. विल स्मिथ 

आठवें नंबर पर हैं विल स्मिथ (44.5 मिलियन डॉलर यान 332 करोड़ रुपये)।


9. ऐडम सैंडलर

नौवें पर ऐडम सैंडलर, जिनकी कमाई 41 मिलियन डॉलर यानी 306 करोड़ रुपये है।


10. जैकी चैन

10वें नंबर पर हैं जैकी चैन, जिनकी कमाई 40 मिलियन डॉलर यानी 299 करोड़ रुपये है।


पंडित जवाहरलाल नेहरू और कमला नेहरू दोनों कि अलग होने की कहानी

जवाहर लाल नेहरू की पत्नी कमला नेहरू की मौत की सच्चाई।
टीवी चैनेलो पर सबसे ज्यादा कांग्रेसी चिल्लाते हैं, कि मोदी जी ने अपनी पत्नी को छोड़ दिया l लेकिन आज यह भयावह सच्चाई भी जानिये!

नेहरु की पत्नी कमला नेहरु को टीबी हो गई थी, उस जमाने में टीबी का दहशत ठीक ऐसा ही था जैसा आज कोरोना का है। क्योंकि तब टीबी का इलाज नही था और इन्सान तिल तिल तडप तडपकर पूरी तरह गलकर हड्डी का ढांचा बनकर मरता था। और कोई भी टीबी मरीज में पास भी नही जाता था क्योकि टीबी सांस से फैलती थी। लोग पहाड़ी इलाके में बने टीबी सेनिटोरियम में भर्ती कर देते थे। नेहरु में अपनी पत्नी को युगोस्लाविया के प्राग शहर में सेनिटोरियम में भर्ती करवा दिया।
कमला नेहरु पूरे दस सालों तक अकेले टीबी सेनिटोरियम में पल पल मौत का इंतजार करती रही। लेकिन नेहरु दिल्ली में एडविना और दूसरों के साथ इश्क फरमाता रहे लेकीन अपनी धर्म पत्नी से मिलने नहीं गए। मजे की बात ये कि इस दौरान नेहरु कई बार ब्रिटेन गया लेकिन एक बार भी वो प्राग जाकर अपनी धर्मपत्नी का हालचाल नही पूछा। नेताजी सुभाषचन्द्र बोस को जब पता चला तब वो प्राग गये। डाक्टरों से और अच्छे इलाज के बारे में बातचीत की।
 प्राग के डाक्टरों ने कहा कि स्विट्जरलैंड के बुसान शहर में एक आधुनिक टीबी हॉस्पिटल है जहाँ इनका अच्छा इलाज हो सकता है। तुरंत ही नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने उस जमाने में 70 हजार रूपये इकट्ठे किये और उन्हें विमान से स्विटजरलैंड के बुसान शहर में होस्पिटल में भर्ती किया। लेकिन कमला नेहरु असल में मन से बेहद टूट चुकी थी। उन्हें इस बात का दुःख था की उनका पति उनके पास पिछले दस सालो से हालचाल लेने तक नही आये और दूसरे लोग उनकी देखभाल कर रहे है।
दो महीनों तक बुसान में भर्ती रहने के बाद 28 February 1936 को बुसान में ही कमला नेहरु की मौत हो गयी। उनके मौत के दस दिन पहले ही नेताजी सुभाषचन्द्र ने नेहरु को तार भेजकर तुरंत बुसान आने को कहा था।लेकिन नेहरु नही आये। फिर नेहरु को उसकी पत्नी के मौत का तार भेजा गया। फिर भी नेहरु अपनी पत्नी के अंतिम संस्कार में भी नही आये। अंत में स्विटजरलैंड के बुसान शहर में ही नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने नेहरु की पत्नी कमला नेहरु का अंतिम संस्कार करवाया। वामपंथी तथा कथित इतिहासकारों ने इस खानदान की गंदी सच्चाई ही इतिहास की किताबो से गायब कर दी।

परमवीर मेजर शैतान सिंह, जो मरने तक चलाते रहे अपने पैर से मशीन-गन ।

लेफ्टिनेंट कर्नल हेम सिंह जिन्होंने प्रथम विश्व युद्ध के दौरान फ्रांस में भारतीय सेना के साथ सेवा की और ब्रिटिश सरकार द्वारा ऑर्डर ऑफ द ब्रिटिश एम्पायर  (ओबीई) से सम्मानित किए गए थे।  उनके पुत्र शैतान सिंह भाटी का जन्म 1 दिसम्बर 1924 को राजस्थान के जोधपुर जिले के बंसार गांव के एक राजपूत परिवार में हुआ था। अगर शक्ल और नाम देखेंं तो कोई मेल नहीं खाता।


शैतान सिंह ने जोधपुर के राजपूत हाई स्कूल में अपनी मैट्रिक तक की पढाई की । स्कूल में वह एक फुटबॉल खिलाड़ी के रूप में अपने कौशल के लिए जाने जाते थे। 1943 में स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद सिंह जसवंत कॉलेज गए और उन्होंने 1947 में स्नातक किया। 1 अगस्त 1949 को वह एक अधिकारी के रूप में जोधपुर राज्य बलों में शामिल हो गए। 

जोधपुर की रियासत का भारत में विलय हो जाने के बाद उन्हें कुमाऊं रेजीमेंट में स्थानांतरित कर दिया गया। उन्होंने नागा हिल्स ऑपरेशन तथा 1961 में गोवा के भारत में विलय में हिस्सा लिया था। उन्हें 11 जून 1962 को उन्हें मेजर पद के लिए पदोन्नत किया गया था। 

रेज़ांग ला का युद्ध 

युद्ध के दौरान कुमाऊं रेजिमेंट की 13वीं बटालियन को चुसुल सेक्टर में तैनात किया गया था। समुद्र तल से 5,000 मीटर (16,000 फीट) की ऊंचाई पर, सिंह की कमान में सी कंपनी रेजांग ला में एक स्थान पर थी, और इस क्षेत्र को पांच प्लाटून पोस्टों द्वारा बचाव किया जा रहा था। 18 नवंबर 1962 की सुबह चीनी सेना ने हमला कर दिया पर भारतीयों ने आक्रामक तरीके से तैयारी की थी क्योंकि उन्होंने चीनी सेना को सुबह 5 बजे के मंद प्रकाश में आगे बढ़ते हुए देखा था। जैसे ही भारतीयों ने दुश्मन को पहचाना, उन पर लाइट मशीन गन, राइफल्स, मोर्टार, और ग्रेनेड, से हमला कर दिया और कई चीनी सैनिक मार गिराए। 5:40 बजे चीनी सेना ने पुनः मोर्टार से हमले करने शुरू कर दिए और लगभग 350 चीनी सैनिकों ने आगे बढ़ना शुरू किया। चीनी सेना द्वारा सामने से किए गए हमले असफल होने के बाद लगभग चार सौ चीनी सैनिकों ने पीछे से हमला किया। साथ ही 8वीं प्लाटून पर मशीन गन और मोर्टार से पोस्ट के तार बाड़ के पीछे से हमला किया गया और 7वीं प्लाटून पर 120 चीनी सैनिकों ने पीछे से हमला किया। भारतीयों ने 3 इंच (76 मिमी) मोर्टार के गोले से मुकाबला किया और कई चीनी सैनिकों को मार दिया। जैसे ही आखिरी 20 जीवित लोग बचे, भारतीयों ने अपनी खाइयों से बाहर निकल कर चीनी सैनिकों के साथ हाथ से हाथ से लड़ने लड़ने लग गए। हालांकि प्लाटून जल्द ही चीन के अतिरिक्त सैनिकों के आगमन से घेर ली गई और आखिरकार 7वीं और 8वीं प्लाटून में से कोई जीवित नहीं बचा।

युद्ध के दौरान मेजर सिंह भाटी लगातार पोस्टों के बीच सामंजस्य तथा पुनर्गठन बना कर लगातार जवानों का हौसला बढ़ाते रहे। चूँकि वह एक पोस्ट से दूसरी पोस्ट पर बिना किसी सुरक्षा के जा रहे थे अतः वह गंभीर रूप से घायल हो गए और वीर गति को प्राप्त हो गए। इस युद्ध में भारत के 123 में से 109 सैनिक शहीद हुए थे। वीरगति को प्राप्त होने के बाद इनके पार्थिव शरीर को जोधपुर लाया गया था और सैन्य सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया।

वीर सावरकर के साथ आखिर क्यों हुआ अन्याय?

45 साल के महात्मा गाँधी 1915 में भारत आये, 2 दशक से भी ज्यादा दक्षिण अफ्रीका में बिता कर। इससे 4 साल पहले 28 वर्ष का एक युवक अंडमान में एक कालकोठरी में बन्द। अंग्रेज दिन भर कोल्हू में बैल की जगह उसे हाँकते हुए तेल पेरवाते थे, रस्सी बटवाते थे और छिलके कूटवाते थे। वो तमाम कैदियों को शिक्षित कर रहा था, उनमें राष्ट्रभक्ति की भावनाएँ प्रगाढ़ कर रहा होता था और साथ ही दीवालों कर कील, काँटों और नाखून से साहित्य की रचना कर रहा था। उसका नाम था विनायक दामोदर सावरकर। जो आगे चलकर वीर सावरकर बने। उन्हें आत्महत्या के ख्याल आते थे। उस खिड़की की ओर एकटक देखते रहते थे, जहाँ से अन्य कैदियों ने पहले आत्महत्या की थी। पीड़ा असह्य हो रही थी। यातनाओं की सीमा पार हो रही थी। अंधेरा उन कोठरियों में ही नहीं, दिलोदिमाग पर भी छाया हुआ था। दिन भर बैल की जगह खटो, रात को करवट बदलते रहते थे। 11 साल ऐसे ही बीता दिए। कैदी उनकी इतनी इज्जत करते थे कि मना करने पर भी उनके बर्तन, कपड़े वगैरह धो देते थे, उनके काम में मदद करते थे। सावरकर से अँग्रेज बाकी कैदियों को दूर रखने की कोशिश करते थे। अंत में बुद्धि को विजय हुई तो उन्होंने अन्य कैदियों को भी आत्महत्या से विमुख किया।
लेकिन नहीं, महा गँवारों का कहना है कि सावरकर ने मर्सी पेटिशन लिखा, सॉरी कहा, माफ़ी माँगी..ब्ला-ब्ला-ब्ला। मूर्खों, काकोरी कांड में फसे क्रांतिकारी रामप्रसाद बिस्मिल ने भी माफ़ी माँगी थी, तो? उन्हें भी 'डरपोक' करार दोगे? बताओ। उन्होंने भी माफ़ी माँगी थी अंग्रेजों से। क्या अब इस कसौटी पर क्रांतिकारियों को तौला जाएगा? शेर जब बड़ी छलाँग लगाता है तो कुछ कदम पीछे लेता ही है। उस समय उनके मन में क्या था, आगे की क्या रणनीति थी- ये आज कुछ लोग बैठे-बैठे जान जाते हैं। कौन ऐसा स्वतंत्रता सेनानी है जिसे 11 साल कालापानी की सज़ा मिली हो। नेहरू? गाँधी? कौन?
नानासाहब पेशवा, महारानी लक्ष्मीबाई और वीर कुँवर सिंह जैसे कितने ही वीर इतिहास में दबे हुए थे। 1857 को सिपाही विद्रोह बताया गया था। तब इसके पर्दाफाश के लिए 20-22 साल का एक युवक लंदन की एक लाइब्रेरी का किसी तरह एक्सेस लेकर और दिन-रात लग कर अँग्रेजों के एक के बाद एक दस्तावेज पढ़ कर सच्चाई की तह तक जा रहा था, जो भारतवासियों से छिपाया गया था। उसने साबित कर दिया कि वो सैनिक विद्रोह नहीं, प्रथम स्वतंत्रता संग्राम था। उसके सभी अमर बलिदानियों की गाथा उसने जन-जन तक पहुँचाई। भगत सिंह सरीखे क्रांतिकारियों ने मिल कर उसे पढ़ा, अनुवाद किया।
दुनिया में कौन सी ऐसी किताब है जिसे प्रकाशन से पहले ही प्रतिबंधित कर दिया गया था? अँग्रेज कितने डरे हुए थे उससे कि हर वो इंतजाम किया गया, जिससे वो पुस्तक भारत न पहुँचे। जब किसी तरह पहुँची तो क्रांति की ज्वाला में घी की आहुति पड़ गई। कलम और दिमाग, दोनों से अँग्रेजों से लड़ने वाले सावरकर थे। दलितों के उत्थान के लिए काम करने वाले सावरकर थे। 11 साल कालकोठरी में बंद रहने वाले सावरकर थे। हिंदुत्व को पुनर्जीवित कर के राष्ट्रवाद की अलख जगाने वाले सावरकर थे। साहित्य की विधा में पारंगत योद्धा सावरकर थे। आज़ादी के बाद क्या मिला उन्हें? अपमान। नेहरू व मौलाना अबुल कलाम जैसों ने तो मलाई चाटी सत्ता की, सावरकर को गाँधी हत्या केस में फँसा दिया। गिरफ़्तार किया। पेंशन तक नहीं दिया। प्रताड़ित किया। 60 के दशक में उन्हें फिर गिरफ्तार किया, प्रतिबंध लगा दिया। उन्हें सार्वजनिक सभाओं में जाने से मना कर दिया गया।
ये सब उसी भारत में हुआ, जिसकी स्वतंत्रता के लिए उन्होंने अपना जीवन खपा दिया। आज़ादी के मतवाले से उसकी आज़ादी उसी देश में छीन ली गई, जिसे उसने आज़ाद करवाने में योगदान दिया था। शास्त्री जी PM बने तो उन्होंने पेंशन का जुगाड़ किया। वो कालापानी में कैदियों को समझाते थे कि धीरज रखो, एक दिन आएगा जब ये जगह तीर्थस्थल बन जाएगी। आज भले ही हमारा पूरे विश्व में मजाक बन रहा हो, एक समय ऐसा होगा जब लोग कहेंगे कि देखो, इन्हीं कालकोठरियों में हिंदुस्तानी कैदी बन्द थे। सावरकर कहते थे कि तब उन्हीं कैदियों की यहाँ प्रतिमाएँ होंगी। आज आप अंडमान जाते हैं तो सीधा 'वीर सावरकर इंटरनेशनल एयरपोर्ट' पर उतरते हैं। सेल्युलर जेल में उनकी प्रतिमा लगी है। उस कमरे में प्रधानमंत्री भी जाकर ध्यान धरता है, जिसमें सावरकर को रखा गया था। सावरकर का अपमान करने का अर्थ है, अपने आप का अपमान है।

मुंबई के 5 सबसे महंगे घर, इनकी क़ीमत और उसका मालिकाना हक के बारे में जानिए...

हर इंसान का सपना होता है, कि उसके पास सिर छिपाने के लिए एक घर हो। छोटा ही सही पर एक मकान जिसे वो अपना कह सके। दुनिया में ज़्यादातर लोग इस सपने को पूरा करने में ही अपनी पूरी ज़िंदगी बिता देते हैं। लेकिन सपनों की नगरी मुंबई की बात से सायद ही कोई जुदा हो। ये वो शहर है, जो कभी सोता नहीं लेकिन विडंबना तो देखिए इसी शहर में दुनिया के कुछ सबसे महंगे घर बने हैं, जिन्हें सुकून भरी नींद के लिए तैयार किया गया है।
ये घर न केवल शहर के प्रमुख आवासों में से एक हैं, बल्क़ि देश की फ़ाइनेंशियल कैपिटल कहलाने वाली इस नगरी के महत्वपूर्ण लैंडमार्क भी हैं। आज हम आपको मुंबई के 5 सबसे महंगे घरों के बारे में बताएंगे। साथ ही, इन घरों की क़ीमत और उनके मालिक़ों के बारे में भी जानकारी देंगे।

1-एंटीलिया (Antilia)

फ़ोर्ब्स द्वारा इसकी क़ीमत 1 बिलियन डॉलर आंकी गई है। ये न सिर्फ़ मुंबई और भारत में सबसे महंगा घर है, बल्क़ि पूरी दुनिया के सबसे महंगे आवासों में शामिल है। इस आलीशान घर के मालिक मुकेश अंबानी हैं, जो दुनिया के छठे सबसे अमीर शख़्स के तौर पर फ़ोर्ब्स की रियल-टाइम बिलियनेयर लिस्ट में शामिल हैं।
बिज़नेस इनसाइडर के मुताबिक, दक्षिण मुंबई में स्थित एंटीलिया 27 मंज़िलों और 9 हाई-स्पीड एलीवेटर्स से लैस है। इसमें एक बहुमंज़िला गैराज है जो 168 कारों को समायोजित कर सकता है, और इसमें 3 हेलीपैड, एक भव्य बॉलरूम, एक थिएटर, एक स्पा, एक मंदिर और कई सीढ़ीदार बगीचे भी हैं।

2- जटिया हाउस (Jatia House)

मुंबई के मालाबार हिल्स के ऊपर स्थित ये आशियाना आदित्य बिरला ग्रुप के चेयरमैन कुमार मंगलम बिड़ला का है। वे आदित्य बिड़ला समूह के चौथी पीढ़ी के प्रमुख हैं। मिड-डे की एक रिपोर्ट के अनुसार, ये घर 2926 वर्ग मीटर में फैला है और इसमें कम से कम 28,000 वर्ग फ़ुट का एक निर्मित क्षेत्र है। इस घर की क़ीमत 425 करोड़ रुपये है।
3- गुलिता (Gulita)

साउथ मुंबई के वर्ली में स्थित ये घर ईशा अंबानी और पीरामल है। द इकोनॉमिक टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, घर को पीरामल ने 2012 में ख़रीदा था, जिसकी कुल क़ीमत 452 करोड़ रुपये थी। ये पांच मंज़िला आलीशान घर है, जिसमें तीन बेसमेंट हैं। इनमें से दो पार्किंग के लिए रिज़र्व हैं और एक में बड़ा सा लॉन है।
ग्राउंड फ़्लोर में ग्रांड एंटरेंस लॉबी है और ऊपरी मंज़िल मे रहने और खाने के हॉल हैं। साथ ही ट्रिपल-हाई-मल्टी परपस रूम्स के अलावा बेडरूम और सर्कुलर स्टडी भी शामिल है।

4- लिंकन हाउस (Lincoln House)

लिंकन हाउस, जिसे पहले वांकानेर हाउस के रूप में जाना जाता था, शहर की सबसे महंगी हेरिटेज प्रॉपर्टीज़ में से एक है। दक्षिण मुंबई के ब्रीच कैंडी क्षेत्र में 50,000 वर्ग फ़ुट में स्थित इस घर के मालिक साइरस पूनावाला हैं। मिड-डे के मुताबिक़, उन्होंने 2015 में इसे 750 करोड़ रुपये में ख़रीदा था।
ये हवेली मूल रूप से वांकानेर के महाराजा एचएच सर अमरसिंहजी बानसिंहजी के लिए 1993 में ब्रिटिश वास्तुकार क्लाउड बट्टले ने बनाया था।

5- मन्नत (Mannat)

हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, शाहरुख़ ख़ान के बांद्रा में संपत्ति ख़रीदने के दो दशक बाद घर की क़ीमत 200 करोड़ रुपये है। मन्नत छह मंजिला एनेक्सी, कई बेडरूम, एक छत, एक बगीचा, एक एलीवेटर सिस्टम, एक निजी थिएटर, पर्सनल क्वार्टर और एक बड़ा एंटरटेनमेंट स्पेस शामिल है।

मैं तो इंसानियत से मजबूर था तुम्हे बीच मे नही डुबोया" मगर तुमने मुझे क्यों काट लिया!

नदी में बाढ़ आती है छोटे से टापू में पानी भर जाता है वहां रहने वाला सीधा साधा1चूहा कछुवे  से कहता है मित्र  "क्या तुम मुझे नदी पार करा ...