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Tuesday, September 1, 2020

आज हो रहा है गणपति बप्पा मोरया का विसर्जन जाने कैसे करते हैं

गणेश चतुर्थी यानि गणेश जी के जन्मदिवस से पूरे 10 दिन तक भक्त उत्सव मनाते हैं। चतुर्थी से शुरु होकर अनंत चतुर्दशी के दिन यानी आज गणेश जी का विसर्जन होने जा रहा है। 10 दिन के इस त्योहार में भक्तों को पता ही नहीं चलता कि 10 दिन कब गुजर गए। इस दौरान भक्त गणपति जी को अपने घर में स्थापित करते हैं और पूरे 10 दिन तक उनकी पूजा अर्चना और सेवा करते हैं। समय की कमी के कारण कुछ लोग 1.5 दिन, 3 दिन, 5 दिन या 7 दिन में ही विसर्जन कर देते हैं जबकि गणपति विसर्जन का उपयुक्त समय स्थापना के 11वें दिन होता है।
गणपति जी की विदाई करते समय भक्त काफी भावुक नजर आते हैं। ऐसा प्रतीत होता है जैसे हमारे घर का कोई सदस्य विदा होकर जा रहा हो। गणपति जी की विदाई भी उसी प्रकार भक्तजन करते है। जैसे हम अपने घर के किसी सदस्य की विदाई करते हैं। कहते हैं कि जब गणेश जी को विदा किया जाता है तो उनके साथ कुछ खाने पीने का सामान दे देना चाहिए ताकि उन्हें रास्ते में किसी भी प्रकार कि परेशानी का सामना ना करना पड़े।
गणेश विसर्जन की विधि
रोज की तरह उनकी आरती करते हैं। विशेष प्रसाद का भोग लगाते हैं। गणेश जी के मंत्रों का उच्चारण करते हैं। एक स्वच्छ पाटा लेकर उसे गंगाजल से पवित्र कर फिर घर की स्त्री से उस पर स्वास्तिक बनाते हैं। उस पर अक्षत रखते हैं, एक पीला, लाल या गुलाबी सुसज्जित वस्त्र बिछाते हैं। उसपर फूल चढ़ाते हैं साथ में पाटे के चारों कोनों पर चार सुपारी भी रखते हैं। उसके बाद श्री गणेश भगवान को उनकी स्थापना वाले जगह से उठाकर इस पाटे पर विराजित करते हैं। इसके उपरांत उनके साथ फल, फूल वस्त्र दक्षिणा एवं 5 मोदक रखते हैं। तद पश्चात उन्हें किसी स्वक्ष तालाब में विसर्जित करते हैं।

लेकिन हर साल की तरह इस साल कोरोना महामारी के चलते गणपति जी का विसर्नजन नदी, तालाब या पोखर में नहीं कर पाएंगे। इस बार हमें घर पर ही करना होगा। विसर्जन से पूर्व पुनः आरती सम्पन्न करें। श्री गणेश से खुशी-खुशी विदाई की कामना करें और सबके लिए धन, सुख, शांति, समृद्धि के साथ मनचाहे आशीर्वाद मांगें। साथ ही साथ 10 दिनों में जाने -अनजाने में हुई गलती की क्षमा मांगें फिर गणेश जी की मूर्ति का विसर्जन करें।

अनंत चतुर्दशी के व्रत से होता है, हार मनोकामना पूर्ण। सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र भी रखा था यह व्रत।

भाद्रपद मास में शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को अनंत चतुर्दशी का त्योहार मनाया जाता है। इस त्योहार को अनंत चौदस नाम से भी जाना जाता है। इस दिन भगवान श्री हरि विष्णु के अनंत स्वरूप की पूजा की जाती है। मान्यता है कि 14 साल तक लगातार अनंत चतुर्दशी का व्रत रखने से विष्णु लोक की प्राप्ति होती है।
                    "ॐ अनन्ताय नमः"
अनंत चतुर्दशी का व्रत काफी फलदाई साबित होता है। कहा जाता है कि जब पांडव अपने राज्य को हारकर बनवास के लिए निकले तो भगवान श्री कृष्ण के कहने पर उन्होंने यह व्रत रखा। इस व्रत के प्रभाव से पांडव महाभारत का युद्ध भी जीते और अपना राज्य भी वापस पाए।

एक अन्य मान्यता है कि जब सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र अपना सब कुछ दान करने के बाद अपने घर को त्याग दिया था जंगल जंगल भटकने के बाद उन्हें किसी ने अनंत चतुर्दशी का व्रत करने को कहा। इस व्रत के प्रभाव से सत्यवादी हरिचंद को अपना राज्य वापस मिला।
अनंत चतुर्दशी के पावन पर्व पर सृष्टि के पालनहार और विघ्नहर्ता के चरणों में प्रणाम और यही प्रार्थना कि सब सुखी हों, सबका मंगल और कल्याण हो। 

Monday, August 31, 2020

मदर टेरेसा का वह सच्चाई जो मीडिया ने समाज के सामने कभी आने नहीं दिया।

26 अगस्त 1910 को जन्मी टेरेसा जिन्हें रोमन कैथोलिक चर्च द्वारा कलकत्ता की संत टेरेसा के नाम से नवाज़ा गया है। उनका जन्म आन्येज़े गोंजा बोयाजियू के नाम से एक अल्बेनीयाई परिवार में उस्कुब, उस्मान साम्राज्य में हुआ था। टेरसा रोमन कैथोलिक नन थीं, जिन्होंने 1948 में स्वेच्छा से भारतीय नागरिकता ले ली थी। हमारे इतिहासकारों के अनुसार शांति दूत टेरेसा ममता की मूरत थीं। 
दीन-दुखियों को गले लगाना और बीमार लोगों को 
मिशनरीज ऑफ चैरिटी में दाखिल करा कर उसका धर्म परिवर्तन करना उनका प्राथमिकता होती थी। भारत अपने दरिया दिली के लिए जाना जाता रहा हैं। संत टेरेसा के साथ भी ऐसा ही हुआ। संत टेरेसा कैथोलिक थीं, लेकिन उन्हें भारत की नागरिकता मिली हुई थी। उन्हें भारत के साथ साथ कई अन्य देशों की नागरिकता मिली हुई थी, जिसमें ऑटोमन, सर्बिया, बुल्गेरिया और युगोस्लाविया शामिल हैं। 
साल 1946 में उन्होंने गरीबों, असहायों की सेवा का संकल्प लिया था, जो सरासर झूठ है। निस्वार्थ सेवा के लिए टेरेसा ने 7 अक्तूबर 1950 में कोलकाता में 'मिशनरीज ऑफ चैरिटी' की स्थापना की थी। यह सच है। जिसमे 12 सदस्यों के साथ संस्था की शुरुआत भी हुई। जो उस समय करोड़ों का दान लेकर विदेशो में चर्च और धर्म के नाम पर पैसा जाता था। भारत में सिर्फ दान वसूला जाता था। और भारत की भोली भाली जनता सिर्फ मिशनरीज का बिस्तार करने में चैरिटी का पैसा उपयोग होता था। अब यह संस्था 133 देशों में युद्ध स्तर पे अपना काम कर रही हैं। भारत में इसका उदाहरण पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र के कुछ हिस्सो में देखा और सुना जा सकता हैं। 133 देशों में इनकी लगभग 4501 सिस्टर हैं। 1981 में उन्होंने अपना नाम बदल लिया था। अल्बानिया मूल की टेरेसा ने कोलकाता में गरीबों और पीड़ित लोगों के लिए जो किया वो दुनिया में अभूतपूर्व माना जाता हैं। मिशनरीज ऑफ चैरिटी संस्था में 100 से कम मरीज भर्ती थे। लेकिन उनकी संस्था में कोई डॉक्टर नहीं होते थे। पूरा देखभाल उनकी संस्था की सिस्टर ही करती थी। और उन्हें यहां तक कि किसी को दर्द निवारक दवा भी नहीं दी जाती थी। और ना ही उनके संस्था में दर्द निवारक दवा होती थी। मदर टेरेसा अपनी मृत्यु तक कोलकाता में ही रहीं और अपने नेक कार्यों में सफल रही।
आज भी उनकी संस्था अपना कार्य ईमानदारी से कर रही हैं। सबसे आशचर्य की बात तब होती हैं जब गरीब बीमार आशहाय लोगों को इलाज की जरूरत पड़ती थी तो 'मिशनरीज ऑफ चैरिटी' संस्था की सिस्टर ही डाक्टर का कार्य करती थी। जबकि संत टेरेसा अपने छोटी सी इलाज के लिए विदेशों में जाती थी।
अब हमें यह जानकर आश्चर्य होता है कि सरकार उन्हें कौन सा नेक काम करने के लिए नोबेल शांति पुरस्कार के साथ भारत रत्न, टेम्पटन प्राइज, ऑर्डर ऑफ मेरिट और पद्म श्री से भी नवाजा। 
 रॉबिन फॉक्स (Robin fox) रॉबिन फॉक्स जो एक ब्रिटिश जर्नलिस्ट थे उन्होंने अपने एक रिपोर्ट में बताया था कि मदर टेरेसा का आश्रम किसी भी तरह से एक हॉस्पिटल नहींं था। जहां मरीजों का इलाज हो सके। मलेरिया वाले मरीज और जिनका इलाज नहीं हो सकता था आखरी स्टेज कैंसर वाला मरीजों दोनों को एक साथ रखा जाता था। जिन मरीजों का इलाज दूसरे अस्पताल में आसानी से हो सकता था। आश्रम में उनकी भी दर्दनाक मौत हो जाती थी। मरीजोंं को लगाए जाने वाले इंजेक्शन कई बार गर्म पानी में धोकर लगाए जाते थे। मदर टेरेसा केेे आश्रम का एक दूसरा नाम भी था house of dying यानी मरने वालों का घर।

Converting dying people मरते हुए लोगों का धर्म परिवर्तन, मरते हुए हिंदू और मुसलमानोंं से पूछा जाता था की आपको स्वर्ग या जन्नत का टिकट चाहिए। मरीज के हां कहने पर उसका धर्म परिवर्तन किया जाता था। उसको कहा जाता था कि उसके दर्द को कम करने के लिए इलाज कीया जा रहा हैं और उसके सर पर पानी डालकर उसके धर्म को back ties यानी क्रिश्चिचन बनाया जाता था।
Thousands of Crores in Vatican Trust वैक्तिकन बैंक में हजारों करोड़ों रुपए अपने आश्रमों से इकट्ठा किया गया चंदा Bank for the work of religion में जमा करती थे यह बैंक वेटिकन चर्च मैनेज  करता था। जिसकेे लिए मदर टेरेसा काम करती थी। सालोंं से जमा किए गए पैसे इतने ज्यादा थेे कि उस बैंक में आधे से ज्यादा पैसे मदर टेरेसा के ही थे। अगर मदर टेरेसा उस पैसे को निकाल ले तो शायद बैंक बर्बाद हो जाता। शायद यही कारण रहा होगा की आश्रम का हालत इतनी बुरी थी क्योंकि इकट्ठा किया गया पैसा सीधे बैंक जाता था और लोगों के लिए इस्तेमाल नहीं होता था।
False image in media मीडिया का झूठ Arup Chaudhari नाम के एक जनरलिस्ट ने अपनेे किताब में सारे समााज सुधारक के बारे में लिखा है उनका कहना था कि मीडिया मदर टेरेसा को हेल्पर ऑफ द पुअर यानी गरीबों का मसीहा जबकि यह बिल्कुल झूठ था। मदर टेरेेसा का सबसेे बड़ा आश्रम मिशनरीज ऑफ चैरिटी कोलकाता मे था। इस आश्रम में 100 से भी कम लोग भर्ती किये गए थे। लेकिन उसी वक्त की असेंबली ऑफ गॉड नाम के संस्था के द्वारा 18000 लोगों को खाने-पीने का सामान रोज बाटा जाता था। आज लोग ऐसे आश्रम का नाम भी नहीं जानते हैं। यही नहीं मदर टेरेसा के 8 ऐसेे आश्रम भी थे जहां एक भी गरीब आदमी नहीं 
थे। आश्रम सिर्फ चंदा इकट्ठा कर बैंक में जमा और धर्म परिवर्तन करने के लिए बनाया गया था।
Relation with controversial figure अमीरों से रिश्ता मदर टेरेसा के रिश्ता कुछ ऐसे लोगों से भी था जिन्हें सरकार क्रिमिनल्स घोषित कर चुकी थी। Robert Maxwell और Charles Creting उन लोगों में से थे जो मदर टेरेसा के आश्रम में करोड़ों रुपए दान करते थे और उन पर हजारों करोड़ों रुपए ठगने का आरोप था। Lisieo jelly इटालियन मडर र को मदर टेरेसा नोबेल पुरस्कार देने केे लिए सहमति भी दी थी। 1975 में इमरजेंसी के दौरान लोग परेशान थे लेकिन मदर टेरेसा ने इमरजेंसी का समर्थन किया था और पॉलीटिशियन के साथ थे।

जाने राष्ट्रिय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल कि जिंदगी से जुड़ी कुछ रोचक बातें।

अजित डोभाल का जन्म 1945 में उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल में एक गढ़वाली परिवार में हुआ। पिता आर्मी में ब्रिगेडियर थे। उन्होंने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा अजमेर के मिलिट्री स्कूल से पूरी की थी। इसके बाद उन्होंने आगरा विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में एमए किये और पोस्ट ग्रेजुएशन करने के बाद वे आईपीएस की तैयारी में लग गए। कड़ी मेहनत के बाद वे केरल कैडर से 1968 में IPS का एग्जाम टॉप किया, केरल Batch के IPS Officer बने। 17 साल की नौकरी के बाद मिलने वाला Medal 6 साल की नौकरी में ही हासिल कर लिए थे।

इसके बाद पाकिस्तान में जासूस के तौर पर काम किया, वहा वे मुसलमान बनकर रहते थे। पाकिस्तान की आर्मी में मार्शल की पोस्ट तक पहुंचे और 6 साल भारत के लिए जासूसी करते रहे। बताया जाता है कि अंडर कवर जासूसी करने के बाद अजीत डोभाल ने भारत आकर कई अहम ऑपेशन को अंजाम दिया। 1987 में खालिस्तानी आतंकवाद के समय पाकिस्तानी एजेंट बनकर दरबार साहिब के अंदर पहुंचे, 3 दिन आतंकवादियों के साथ रहे। आतंकवादियों की सारी सूचना लेकर Operation Black Thunder को सफलता पूर्वक अंजाम दिया। 1988 में कीर्ति चक्र से सम्मानित किया गया।

देश का एक मात्र Non Army Person जिसे यह Award से सम्मानित किया जा चुका है। उसके बाद असम गए, वहां उल्फा आतंकवाद को कुचला। 1999 में Plane_Hijacking के समय आतंकवादियों से Dealing की। मोदी के सत्ता में आते ही उन्हें सरकार राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार NSA (National Security Advisor) बनाया। बलोचिस्तान में Raw फिर से Active की, बलोचिस्तान का मुद्दा International बनाया। केरल की 45 ईसाई नर्सों का Iraq में Isis ने किडनैप किया। अजित डोभाल खुद इराक़ गए, isis से पहली बार बीना किसी नुकसान के नर्सों को वापस लाया। वर्ष 2015 मई में भारत के पहले सर्जिकल ऑपरेशन को अंजाम दिया। भारत की सेना Myanmar में 5 किमी तक घुसी। और 50 आतंकवादी मारे गए। उन्होंने नागालैंड के आतंकवादियों से भारत की ऐतिहासिक समझौता करवाई, आतंकवादी संगठनों ने हथियार डाले।

भारत की डिफेंस पॉलिसी को Agressive बनाया। भारत की सीमा में घुस रहा पाकिस्तानी जहाज को बिना किसी चेतावनी के उड़ाया,कहा बिरयानी खिलाने वाला काम नही कर सकता। कश्मीर में सेना को खुली छूट दी, पैलेट गन सेना को दिलवाईं। पाकिस्तान को दुनिया के मुस्लिम देशों से ही तोड़ दिया। सितंबर 2016 आज़ाद भारत के इतिहास का 1971 के बाद सबसे इतिहासिक दिन था। जो अजीत डोभाल के बुने गए सर्जिकल स्ट्राइक को सेना ने दिया अंजाम। और PoK में 3 किलोमीटर घुसे। 40 आतंकी और 9 पाकिस्तानी फौजी मारे।

एयर स्ट्राइक की सफलता को तो पूरी दुनिया ने सेटेलाइट द्वारा देखा। कश्मीर से धारा 370 हटाने व शांति की स्थापना कायम रखने में विशेष योगदान दिया। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार देशभक्त हिंदू संगठन विवेकानंद यूथ फोरम की स्थापना कीया। उनके इन सब कार्यों के लिए राष्ट्रपति पुरस्कार भीम मिल चुका है। अजीत डोभाल कहते है की मैं इस्लामाबाद जीत सकता हूँ।

ओणम पर्व की कुछ रोचक जानकारियां, कब और कैसे मनाया जाता हैं।

भार‍त विविध धर्मों, जातियों तथा संस्कृतियों को मानने वाले का देश है। भारत भर के उत्सवों एवं पर्वों का विश्व में एक अलग स्थान है। यहां हर रोज त्योहार कोई न कोई रूप में मनाया जाता हैं। जिसमे अपने इस्ट देवी देवताओं की पूजा अर्चना की जाती है। उनमें से एक त्योहार ओनम का त्योहार हैं। यह त्योहार दक्षिण भारत में खासकर केरल में बहुत धूमधाम से मनाया जाता है।

ओणम को खासतौर पर खेतों में फसल की अच्छी उपज के लिए मनाया जाता है। 1 सितंबर से शुरू हुआ यह त्योहार 13 सितंबर तक मनाया जाएगा। ओणम इसलिए भी विशेष है क्योंकि इसकी पूजा मंदिर में नहीं बल्कि घर में की जाती है। सर्वधर्म समभाव के प्रतीक केरल प्रांत का मलयाली पर्व 'ओणम' समाज में सामाजिक समरसता की भावना, प्रेम तथा भाईचारे का संदेश पूरे देश में देता हैं। और देश की एकता एवं अखंडता को मजबूत करने की प्रेरणा देता है। प्राचीन मान्यता के अनुसार राजा बलि ओणम के दिन अपनी प्रजा से मिलने आते हैं।
उन्हें यह सौभाग्य भगवान विष्णु से मिला था। उसके चलते समाज के लोग विष्णु की आराधना और पूजा करने के साथ ही अपने राजा का स्वागत करते हैं। 
ओणम पर्व पर राजा बलि के स्वागत के लिए घरों की आकर्षक साज-सज्जा के साथ तरह-तरह के पकवान बनाकर उनको भोग अर्पित करती है। और हर घर को और द्वार पर रंगोली से सजाया और दीप जलाया जाता है। और यह परंपरा वर्षों से चला आ रहा हैं। इस अवसर पर मलयाली समाज के लोग एक-दूसरे को गले मिलकर शुभकामनाएं देते हैं। साथ ही परिवार के लोग और रिश्तेदार इस परंपरा को साथ मिलकर मनाते हैं। 
ओणम पर्व की मान्यता : मान्यता के अनुसार राजा बलि केरल के राजा थे, उनके राज्य में प्रजा बहुत सुखी व संपन्न थी। किसी भी तरह की कोई समस्या नहीं थी। वे महादानी भी थे। उन्होंने अपने बल से तीनों लोकों को जीत लिया था। इसी दौरान भगवान विष्णु वामन अवतार लेकर आए और तीन पग में उनका पूरा राज्य लेकर उनका उद्धार कर दिया।

माना जाता है कि वे साल में एक बार अपनी प्रजा को देखने के लिए आते हैं। तब से केरल में हर साल राजा बलि के स्वागत में ओणम का पर्व मनाया जाता है।

Saturday, August 29, 2020

भारत के 10 सबसे महंगे होटल जहां एक रात बिताने के लाखो रुपया चार्ज किया जाता हैं।

काफी लोगों की जहन में ये बात रहती हैं कि भारत देश के सबसे महंगे होटलों का एक रात ठहरने का कितना चार्ज देना पड़ता है। या भारत के सबसे महंगे होटलो कि एक रात ठहरने की कीमत कितनी होती है। उसमें क्या क्या सुविधाएं उपलब्ध होती है। आज हम भारत के 10 सबसे महंगे होटलों के बारे में बताएंगे और वह भारत में कहा स्थित है।
1. रामबाग़ पैलेस, जयपुर
यहां के Grand Presidential Suite में एक रात के रुकने का किराया 6 लाख है।
2. द लीला पैलेस, नई दिल्ली
यहां के महाराजा Suite में एक रात के रुकने का किराया 45,000 है।
3. द ओबरॉय उदयविलास, उदयपुर
यहां के कोहिनूर Suite में एक रात के रुकने का किराया 2.5 लाख है।
4. ताज लेक पैलेस, उदयपुर
यहां के Grand Presidential Suite में एक रात के रुकने का किराया 6 लाख है।
5. द ओबरॉय, मुंबई
यहां के Presidential Suite में एक रात के रुकने का किराया 3 लाख है।
6. द ओबरॉय, गुरुग्राम
यहां के Presidential Suite में एक रात के रुकने का किराया 3 लाख है।
7. द ओबरॉय अमरविलास, आगरा
यहां के Most Expensive Suite में एक रात के रुकने का किराया 2.5 लाख है।
8. द लीला पैलेस, जयपुर
यहां के महाराजा Suite में एक रात रुकने का किराया 2 लाख है।
9. ताज फ़लकनुमा पैलेस, हैदराबाद
यहां के ग्रैंड रोयाल Suite में एक रात रुकने का किराया 1.95 लाख है।
10. ताज लैंड एंड्स, मुंबई
यहां के Presidential Suite में एक रात के रुकने का किराया 2.3 लाख है।

आज हाकी के जदूगर मेजर ध्यानचंद की 114 वी जयंती है। जाने उनकी कुछ खास बातें।

हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद के जन्मदिन को राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में मनाया जाता है। मेजर ध्यानचंद का आज 114वां जन्मदिन है। आज ही के दिन सन् 1905 में इलाहाबाद में उनका जन्म हुआ था। इलाहाबाद अब प्रयागराज के नाम से जाना जाता हैं। तब प्रयागराज में पैदा हुए ध्यानचंद को खेल जगत की दुनिया में 'दद्दा' कहकर पुकारते थे। इसी दिन सर्वोच्च खेल सम्मान राजीव गांधी खेल रत्न के अलावा अर्जुन, ध्यानचंद पुरस्कार और द्रोणाचार्य पुरस्कार आदि दिए जाते हैं। दद्दा के जन्मदिन के मौके पर जानते हैं, उनसे जुड़ी कुछ अहम बातें।
16 साल की उम्र में ध्यानचंद भारतीय सेना के साथ जुड़ गए। इसके बाद ही उन्होंने हॉकी खेलना शुरू किया। ध्यानचंद को हॉकी का इतना जुनून था कि वह काफी प्रैक्टिस किया करते थे। वह चांद निकलने तक हॉकी का अभ्यास करते रहते। इसी वजह से उनके साथी खिलाड़ी उन्हें 'चांद' कहने लगे थे।
1928 एम्सटर्डम ओलिंपिक गेम्स में वह भारत की ओर से सबसे ज्यादा गोल करने वाले खिलाड़ी थे। उन खेलों में ध्यानचंद ने 14 गोल किए। एक अखबार ने लिखा था, 'यह हॉकी नहीं बल्कि जादू था। और ध्यानचंद हॉकी के जादूगर हैं।'

1932 के ओलिंपिक फाइनल में भारत ने संयुक्त राज्य अमेरिका को 24-1 से हराया था। उस मैच में ध्यानचंद ने 8 और उनके भाई रूप सिंह ने 10 गोल किए थे। उस टूर्नमेंट में भारत की ओर से किए गए 35 गोलों में से 25 गोल इन दो भाइयों ने किया था। इसमें 15 गोल रूप सिंह ने किए थे। एक मैच में 24 गोल दागने का 86 साल पुराना यह रेकॉर्ड भारतीय हॉकी टीम ने 2018 में इंडोनेशिया में खेले गए एशियाई खेलों में हॉन्ग कॉन्ग को 26-0 से मात देकर तोड़ा।
ध्यानचंद ने 1928, 1932 और 1936 ओलिंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व किया। तीनों ही बार भारत ने गोल्ड मेडल जीता।
एक मैच में ध्यानचंद गोल नहीं कर पा रहे थे। उन्होंने मैच रेफरी से गोल पोस्ट की चौड़ाई जांचने को कहा। जब ऐसा किया गया तो हर कोई हैरान रह गया। गोलपोस्ट की चौड़ाई मानकों के हिसाब से कम थी।
बर्लिन ओलिंपिक में ध्यानचंद के शानदार प्रदर्शन से प्रभावित होकर हिटलर ने उन्हें डिनर पर आमंत्रित किया। इस तानाशाह ने उन्हें जर्मन फौज में बड़े पद पर जॉइन करने का न्योता दिया। हिटलर चाहता था कि ध्यानचंद जर्मनी के लिए हॉकी खेलें। लेकिन ध्यानचंद ने इस ऑफर को सिरे से ठुकरा दिया। उन्होंने कहा, 'हिंदुस्तान ही मेरा वतन है और मैं जिंदगीभर उसी के लिए हॉकी खेलूंगा।'
भारत सरकार ने उनके सम्मान में साल 2002 में दिल्ली में नैशनल स्टेडियम का नाम ध्यान चंद नैशनल स्टेडियम किया।

मैं तो इंसानियत से मजबूर था तुम्हे बीच मे नही डुबोया" मगर तुमने मुझे क्यों काट लिया!

नदी में बाढ़ आती है छोटे से टापू में पानी भर जाता है वहां रहने वाला सीधा साधा1चूहा कछुवे  से कहता है मित्र  "क्या तुम मुझे नदी पार करा ...