Popular Posts

Friday, September 4, 2020

जाने जनेऊ क्यों कराया जाता हैं। क्या जनेऊ के लिए ब्राम्हण होना अनिवार्य है। Part 1

जनेऊ का नाम सुनते ही सबसे पहले जो चीज़ मन मे आती है वो है धागा दूसरी चीज है ब्राम्हण। जनेऊ का संबंध क्या सिर्फ ब्राम्हण से है , ये जनेऊ पहनाए क्यों जाते है। जनेऊ को उपवीत, यज्ञसूत्र, व्रतबन्ध, बलबन्ध, मोनीबन्ध और ब्रह्मसूत्र के नाम से भी जाना जाता है। हिन्दू धर्म के 24 संस्कार होता है। (आप सभी को 16 संस्कार पता होंगे लेकिन वो प्रधान संस्कार है। 8 उप संस्कार होता है।) उनमें से एक ‘उपनयन संस्कार’ के अंतर्गत ही जनेऊ पहनई जाती है। जिसे ‘यज्ञोपवीतधारण करने वाले व्यक्ति को सभी नियमों का पालन करना अनिवार्य होता है। उपनयन का शाब्दिक अर्थ है "सन्निकट ले जाना" और उपनयन संस्कार का अर्थ है "ब्रह्म (ईश्वर) और ज्ञान के पास ले जाना"
हिन्दू धर्म में प्रत्येक हिन्दू का कर्तव्य है जनेऊ पहनना और उसके नियमों का पालन करना। हर हिन्दू जनेऊ पहन सकता है। परंतु उसको कुछ नियमों का पालन करना होता है। ब्राह्मण ही नहीं समाज का हर वर्ग जनेऊ धारण कर सकता है। जनेऊ धारण करने के बाद ही द्विज बालक को यज्ञ तथा स्वाध्याय करने का अधिकार प्राप्त होता था। द्विज का अर्थ होता है दूसरा जन्म। मतलब सीधा है जनेऊ संस्कार के बाद ही शिक्षा का अधिकार मिलता था। और जो शिक्षा नही ग्रहण करता था उसे शूद्र की श्रेणी में रखा जाता था (वर्ण व्यवस्था)। लड़की जिसे आजीवन ब्रह्मचर्य का पालन करना हो, वह जनेऊ धारण कर सकती है। ब्रह्मचारी तीन और विवाहित छह धागों की जनेऊ पहनता है। यज्ञोपवीत के छह धागों में से तीन धागे स्वयं के और तीन धागे पत्नी के बतलाए गए हैं।

जनेऊ का आध्यात्मिक महत्व
जनेऊ में तीन-सूत्र:- त्रिमूर्ति ब्रह्मा, विष्णु और महेश के प्रतीक। देवऋण, पितृऋण और ऋषिऋण के प्रतीक।सत्व, रज और तम के प्रतीक होते है। साथ ही ये तीन सूत्र गायत्री मंत्र के तीन चरणों के प्रतीक है तो तीन आश्रमों के प्रतीक भी। जनेऊ के एक-एक तार में तीन-तीन तार होते हैं। अत: कुल तारों की संख्‍या नौ होती है। इनमे एक मुख, दो नासिका, दो आंख, दो कान, मल और मूत्र के दो द्वारा मिलाकर कुल नौ होते हैं। इनका मतलब है, हम मुख से अच्छा बोले और खाएं, आंखों से अच्छा देंखे और कानों से अच्छा सुने। जनेऊ में पांच गांठ लगाई जाती है, जो ब्रह्म, धर्म, अर्ध, काम और मोक्ष का प्रतीक है। ये पांच यज्ञों, पांच ज्ञानेद्रियों और पंच कर्मों के भी प्रतीक है।
जनेऊ की लंबाई:- जनेऊ की लंबाई 96 अंगुल होती है क्यूंकि जनेऊ धारण करने वाले को 64 कलाओं और 32 विद्याओं को सीखने का प्रयास करना चाहिए। 32 विद्याएं चार वेद, चार उपवेद, छह अंग, छह दर्शन, तीन सूत्रग्रंथ, नौ अरण्यक मिलाकर होती है। 64 कलाओं में वास्तु निर्माण, व्यंजन कला, चित्रकारी, साहित्य कला, दस्तकारी, भाषा, यंत्र निर्माण, सिलाई, कढ़ाई, बुनाई, दस्तकारी, आभूषण निर्माण, कृषि ज्ञान आदि आती हैं।
जनेऊ पहनने का नियम:- 
"जनेऊ बाएं कंधे से दाये कमर पर पहनना चाहिये"
मल-मूत्र विसर्जन के दौरान जनेऊ को दाहिने कान पर चढ़ा लेना चाहिए। और हाथ स्वच्छ करके ही उतारना चाहिए। इसका मूल भाव यह है कि जनेऊ कमर से ऊंचा हो जाए और अपवित्र न हो। यह बेहद जरूरी होता है।
मतलब साफ है कि जनेऊ पहनने वाला व्यक्ति ये ध्यान रखता है कि मलमूत्र करने के बाद खुद को साफ करना है। इससे उसको इंफेक्शन का खतरा कम से कम हो जाता है।

Thursday, September 3, 2020

जाने डॉ. भीमराव अम्बेडकर की कुछ सच्चाई जो मीडिया नहीं बताया।

आज हम आपको बताने जा रहे है डॉ. बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर की कुछ सच्चाइयां। जो आज तक कोई पत्रकार ने सामने लाने की कोशिश नहीं की ओर ना ही सामने अा पाया। और आम जनता वही जान पाई जो उससमय कि सरकार और बुद्धिजीवियों ने बताना चाहा।

1 मिथक:- अंबेडकर बहुत मेधावी थे।
सच्चाई:- अंबेडकर ने अपनी सारी शैक्षणिक डिग्रीयां तीसरी श्रेणी में पास की।

2 मिथक:- अंबेडकर बहुत गरीब थे।
सच्चाई:- जिस जमाने में लोग फोटो नहीं खींचा पाते थे उस जमाने में अंबेडकर की बचपन की बहुत सी फोटो है वह भी कोट पैंट में।

3 मिथक:- अंबेडकर ने शूद्रों को पढ़ने का अधिकार दिया।
सच्चाई:- अंबेडकर के पिता जी खुद उस ज़माने में आर्मी में सूबेदार मेजर थे।

4 मिथक:- अंबेडकर को पढ़ने नहीं दिया गया।
सच्चाई:- उस जमाने में अंबेडकर को गुजरात बढ़ोदरा के क्षत्रिय राजा सीयाजी गायकवाड़ ने स्कॉलरशिप दी और विदेश पढ़ने तक भेजा और ब्राह्मण गुरु जी ने अपना नाम अंबेडकर दिया।

5 मिथक:- अंबेडकर ने नारियों को पढ़ने का अधिकार दिया।
सच्चाई:- अंबेडकर के समय ही 20 पढ़ी लिखी औरतों ने संविधान लिखने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
6 मिथक:- अंबेडकर स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे।
सच्चाई:- अंबेडकर ने सदैव अंग्रेजों का साथ दिया भारत छोड़ो आंदोलन की जम कर खिलाफत की अंग्रेजो को पत्र लिखकर बोला कि आप और दिन तक देश में राज करिए उन्होंने जीवन भर हर जगह आजादी की लड़ाई का विरोध किया।

7 मिथक:- अम्बेडकर बड़े शक्तिशाली थे।
सच्चाई:- 1946 के चुनाव में पूरे भारत भर में अंबेडकर की पार्टी की जमानत जप्त हुई थी।

8 मिथक:- अंबेडकर ने अकेले आरक्षण दिया।
सच्चाई:- आरक्षण संविधान सभा ने दिया जिसमे कुल 389 लोग थे अंबेडकर का उसमें सिर्फ एक वोट था आरक्षण सब के वोट से दिया गया था।

9 मिथक:- अंबेडकर बहुत विद्वान था।
सच्चाई:- अंबेडकर संविधान के प्रारूप समिति के अध्यक्ष थे। स्थाई समीति के अध्यक्ष परम् विद्वान डाक्टर राजेंद्र प्रसाद जी थे।

10 मिथक:- अंबेडकर राष्ट्रवादी थे।
सच्चाई:- 1931मे गोलमेज सम्मेलन में गांधी जी भारत के टुकड़े करने की बात कर दलितों के लिए अलग दलिस्तान की मांग की थी।
11 मिथक:- अंबेडकर ने भारत का संविधान लिखा।
सच्चाई:- जो संविधान अंग्रेजों के1935 के मैग्नाकार्टा से लिया गया हो और विश्व के 12 देशों से चुराया गया है उसे आप मौलिक संविधान कैसें कह सकते है? अभी भी सोसायटी एक्ट में 1860 लिखा जाता है।

12 मिथक:- आरक्षण को लेकर संविधान सभा के सभी सदस्य सहमत थे।
सच्चाई:- इसी आरक्षण को लेकर सरदार पटेल से अंबेडकर की कहा सुनी हो गई थी। पटेल जी संविधान सभा की मीटिंग छोड़कर बाहर चले गये थे बाद में नेहरू के कहने पर पटेल जी वापस आये थे। सरदार पटेल ने कहा कि जिस भारत को अखण्ड भारत बनाने के लिए भारतीय देशी राजाओं, महराजाओं, रियासतदारों, तालुकेदारों ने अपनी 546 रियासतों को भारत में विलय कर दिया जिसमें 513 रियासतें क्षत्रिय राजाओं की थी।इस आरक्षण के विष से भारत भविष्य में खण्डित होने के कगार पर पहुंच जाएगा।

13 मिथक:- अंबेडकर स्वेदशी थे।
सच्चाई:- देश के सभी नेताओं का तत्कालीन पहनावा भारतीय पोशाक धोती -कुर्ता, पैजामा-कुर्ता, सदरी व टोपी,पगड़ी, साफा, आदि हुआ करता था।गांधी जी ने विदेशी पहनावा व वस्तुओं की होली जलवाई थी। यद्यपि कि नेहरू, गाधीं व अन्य नेता विदेशी विश्वविद्यालय व विदेशों में रहे भी थे फिर भी स्वदेशी आंदोलन से जुड़े रहे। अंबेडकर की कोई भी तस्वीर भारतीय पहनावा में नही है। अंबेडकर अंग्रेजिएत का हिमायती थे।
अंत में कहना चाहता हूं कि अंग्रेज जब भारत छोड़ कर जा रहे थे तो अपने नापाक इरादों को जिससे भविष्य में भारत खंडित हो सके के रुप में अंग्रेजियत शख्सियत अंबेडकर की खोज कर लिए थे।



मेरा उद्देश्य किसी की भावनाओं को ठेस पहुचाना नही बल्कि सच्चाई बयां करने की कोशिश करना है। तथ्यों की जानकारी आप स्वयं भी प्राप्त कर सकते है।

अगर भीष्म पितामह के दिए उपदेश का पालन करें तो जीवन में आने वाले दुखो से बच सकते हैं।

महाभारत युद्ध अधर्म पर धर्म की लड़ाई थी। जो कौरव और पांडवों के बीच हुई थी। जिसमें कौरवों ने हर कदम पर छल और अधर्म का साथ लिया। वहीं, पांडवों ने धर्म के साथ आगे बढ़ते हुए इस युद्ध पर विजय प्राप्त किया।
महाभारत के शांति पर्व में युधिष्ठिर ने भीष्म पितामह से पूछा कि पितामह जीवन में कभी-कभी हमारे सामने ऐसी परिस्थितियां बन जाती हैं, जिसमें हम समझ नहीं पाते हैं कि क्या करें और क्या न करें। कभी-कभी गुरु द्वारा बताए गए ज्ञान के अनुसार कोई काम करना जरूरी होता है, लेकिन उसमें हिंसा होने की वजह से हमें अनुचित लगता है। पितामह, ऐसे अवसर पर हमें वह काम तुरंत करना चाहिए या उसके संबंध में विचार करना चाहिए।

भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर को गौतम ऋषि और उनके पुत्र चिरकारी की कथा सुनाई। भीष्म ने कहा कि चिरकारी हर काम हर काम सोच-समझकर देरी से करता था। एक दिन गौतम ऋषि अपनी पत्नी से क्रोधित हो गए और चिरकारी से कहा अपनी मां का वध कर दो। ऐसा बोलकर गौतम ऋषि वहां चले गए। चिरकारी सोचने लगा कि माता का वध करूं या नहीं। माता-पिता के बारे में धर्म के अनुसार विचार करने लगा। बहुत समय तक उसने पिता की आज्ञा का पालन नहीं किया। जब गौतम ऋषि लौटकर आए तो उन्हें दुख हो रहा था कि उन्होंने पत्नी को मारने का आदेश देकर गलती कर दी। जब घर पहुंचे तो उन्होंने देखा कि चिरकारी की माता जीवित थी। ये देखकर गौतम ऋषि प्रसन्न हो गए।
भीष्म ने युधिष्ठिर से कहा कि:-
रागे दर्पे च माने च द्रोहे पापे च कर्मणि।
अप्रिये चैव कर्तव्ये चिरकारी प्रशस्यते।।

ये महाभारत के शांति पर्व के 266वें अध्याय का 70वां श्लोक है। इसमें भीष्म पितामह युधिष्ठिर से कहते हैं कि हमें राग यानी मोह बढ़ाने में, अत्यधिक जोश दिखाने में देरी करना चाहिए। घमंड दिखाने में, लड़ाई करने में, कोई पाप करने में, किसी का बुरा करने में जितनी ज्यादा हो सके, उतनी देरी करनी चाहिए। इस नीति का ध्यान रखने पर हम कई समस्याओं से बच सकते हैं।

पितृ दोष से मुक्ति पाने का सबसे सही समय होता है, "पितृपक्ष" ।

पितृ दोष से मुक्ति पाने का सबसे सही समय होता है पितृपक्ष। इस दौरान किए गए श्राद्ध कर्म और दान-तर्पण से पित्रो को तृप्ति मिलती है। वे खुश होकर अपने वंशजों को सुखी और संपन्न जीवन का आशीर्वाद देते हैं। पितृपक्ष में श्राद्ध कर्म करने की परंपरा हमारी सांस्कृतिक विरासत में सदियों से चली आ रही है। धर्मशास्त्रों में श्राद्धों के विषय में विस्तार से बताया गया है। कहा गया है, कि पितरों का श्राद्ध करने वाले को समृद्धि और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। श्राद्ध के लिए अपराह्न व्यापिनी तिथि ली जाती है। मृतक का अग्नि संस्कार करने वाले दिन श्राद्ध नहीं किया जाता।

धर्मशास्त्रों में कहा गया है कि पितरों के पूजन करने वाले को दीर्घायु, सुयोग्य पुत्र, यश, स्वर्ग, ताकत, लक्ष्मी, गाय आदि पशु सब प्रकार के सुख और धन धान्य की प्राप्ति होती है। प्राचीन भारतीय चिंतन परम्परा के अनु सार मनुष्यों को अपने जीवन में तीन प्रकार के ऋण उतारने होते हैं। ये तीन ऋण हैं। देव ऋण, ऋषि ऋण और पितृ ऋण। ऐसा कहा गया है कि श्राद्ध करने से उपासक के तीनों ऋण उतर जाते हैं। श्राद्धों में बहुत लोगों को इसकी जानकारी नहीं होती है कि किस दिन किसका श्राद्ध करना चाहिए।

धर्मशास्त्रों में स्पष्ट रूप से श्राद्ध के नियम दिए गए हैं। इनके अंतर्गत कहा गया है कि जिस पिता की मृत्यु जिस दिन हुई हो उसी दिन उसका श्राद्ध किया जाना चाहिए। दिन का अर्थ वार से नहीं बल्कि देसी तिथियों प्रथमा, द्वितीया, तृतीया आदि से लिया जाना चाहिए। यदि मृत्यु प्रतिपदा के दिन हुई हो तो उनका श्राद्ध पहले दिन यानी प्रतिपदा पर ही करना चाहिये। लेकिन पिता के श्राद्ध के लिए अष्टमी को और माता के श्राद्ध के लिए नवमी तिथि को श्रेष्ठ माना गया है। श्राद्ध पक्ष के पहले दिन प्रतिपदा के श्राद्ध का विधान है। इस दिन उन्हीं का श्राद्ध ही किया जाता है, जिनकी मृत्यु प्रतिपदा के दिन हुई हो।

परिवार में कुछ ऐसे भी पितर होते हैं जिनकी अकाल या अस्वाभाविक रूप से मृत्यु हो जाती है, ऐसे पितरों का श्राद्ध चतुर्दशी के दिन किया जाता है। जिन पितरों की मृत्यु की तिथि ज्ञात न हो उनका श्राद्ध अमावस के दिन किया जाना चाहिए। श्राद्धों में ब्राह्मणों को भोजन कराया जाता है। श्राद्ध करने के अपने नियम होते हैं। श्राद्ध पक्ष हिंदी कैलेंडर के अश्विन महीने के कृष्ण पक्ष में आता है। जिस तिथि में जिस परिजन की मृत्यु हुई हो, उसी तिथि में उनका श्राद्ध कर्म किया जाता है। श्राद्ध कर्म पूर्ण विश्वास, श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया जाना चाहिए। पितृों तक केवल हमारा दान ही नहीं बल्कि हमारे भाव भी पहुंचते हैं।

जिन लोगों की मृत्यु के दिन की सही-सही जानकारी न हो, उनका श्राद्ध अमावस्या तिथि को करना चाहिए। सांप काटने से मृत्यु और बीमारी में या अकाल मृत्यु होने पर भी अमावस्या तिथि को श्राद्ध किया जाता है। जिनकी आग से मृत्यु हुई हो या जिनका अंतिम संस्कार न किया जा सका हो, उनका श्राद्ध भी अमावस्या को करते हैं।

Wednesday, September 2, 2020

स्वीडन का खूबसूरत शहर माल्मो पूरी तरह मुस्लिम दंगाइयों ने किया जलाकर राख।

29 August 2020
स्वीडन का खूबसूरत शहरों में से एक माल्मो शहर भी मुस्लिम दंगाइयों से नहीं बच सका। और पूरी तरह जलकर राख हो गया। अब यह दंगा दूसरे शहरों में भी तेजी से फैल रहा है।
दरअसल मुस्लिम समुदाय के एक ग्रुप ने विरोध प्रदर्शन के दौरान बाइबल (क्रिश्चियन धर्म ग्रन्थ) जला दिया था। उसके बाद उसका बदला लेने के लिए कुछ चरमपंथी ईसाईयों ने कुरान (इस्लामिक धर्म ग्रंथ) जलाने का कार्यक्रम रखा और जैसे ही मुसलमानों ने सुना कि कुरान जलाने का कार्यक्रम रखा गया है। उन्होंने पूरे स्वीडन को जलाकर राख करने की तैयारी कर ली हालांकि उनकी तैयारी हर वक्त दुनिया को जलाने की उनकी तैयारी पहले से ही पूरी होती है।
सोचिए मात्र दो दशक पहले पूरे स्वीडन में एक भी मुस्लिम नहीं थे। लेकिन स्वीडन की वामपंथी विचारधारा वाली सरकारों ने सीरिया लेबनान अफगानिस्तान लीबिया तमाम देशों से मुस्लिम शरणार्थियों को अपने यहां बसाया। बिकाऊ लालची सत्ताधारी ने नागरिकता भी छीप छीप कर देता गया। उन्हें सोशल सिक्योरिटी दी गई। उन्हें मुफ्त में खाना रहने का घर सब कुछ दिया गया। और आज उन्ही मुस्लिम शरणार्थियों ने स्वीडन को जलाकर राख कर दिया।
स्वीडन ऐसे तो भारत के हर गतिविधियो पे बहुत ध्यान देता है और समय समय पर अपनी प्रतिक्रिया भी देता आया है। भारत ने जब जम्मू कश्मीर से धारा 370/35A हटाया था तो स्वीडन खुल कर अपनी प्रतिक्रिया दिया था। और मुस्लिम समुदाय को उसकी बहुत चिंता हो रही थी। जबकि भारत के जम्मू कश्मीर राज्य में 80% से ज्यादा मुस्लिम सांती दूत है और स्वीडन में 16 % मुस्लिम सांती हैं। अब स्वीडन को किसी भी देश के आंतरिक मुद्दों पर कोई प्रतिक्रिया नहीं देना चाहिए।

Tuesday, September 1, 2020

जाने सबसे बड़ा भारतीय साम्राज्य विजेता सम्राट अशोक अपने ही देश के इतिहासकारों से कैसे हार गए।

आखिर क्यों संपूर्ण भारत विजेता सम्राट अशोक पूरा भारत विजयी होने के बाद भी उनको अपने ही देश के इतिहासकर इतिहास के पन्नों में हरा दिया। आखरी क्यों और क्या थी राजनीत जिसके कारण भारत विजेता सम्राट अशोक हार गए। आज उनके द्वार दिए गए हर एक चिझ को भारत सरकार से लेकर हर भारतीय जिसे जान कर सुन कर गौरवान्वित होता है।
1. जिस सम्राट के नाम के साथ संसार भर के इतिहासकार “महान” शब्द लगाते हैं।
2. जिस सम्राट का राजचिन्ह अशोकचक्र भारत देश अपने झंडे में लगता है।
3.जिस सम्राट का राजचिन्ह चारमुखी शेर को भारत देश राष्ट्रीय प्रतीक मानकर सरकार चलाती है और सत्यमेव जयते को अपनाया गया।
4. जिस देश में सेना का सबसे बड़ा युद्ध सम्मान सम्राट अशोक के नाम पर अशोक चक्र दिया जाता है।
5. जिस सम्राट से पहले या बाद में कभी कोई ऐसा राजा या सम्राट नहीं हुआ, जिसने अखंड भारत (आज का नेपाल, बांग्लादेश, पूरा भारत, पाकिस्तान और अफगानिस्तान) जितने बड़े भूभाग पर एक छत्र राज किया हो।
6. जिस सम्राट के शासनकाल को विश्व के बुद्धिजीवी और इतिहासकार भारतीय इतिहास का सबसे स्वर्णिम काल मानते हैं।
7. जिस सम्राट के शासनकाल में भारत विश्वगुरु था, सोने की चिड़िया था, जनता खुशहाल और भेदभाव रहित थी।
8. जिस सम्राट के शासनकाल जीटी रोड जैसे कई हाई-वे बने, पूरे रोड पर पेड़ लगाये गए, सरायें बनायी गईं, इंसान तो इंसान जानवरों के लिए भी प्रथम बार हॉस्पिटल खोले गए, जानवरों को मारना बंद कर दिया गया।

सम्राट अशोक मगथ के सम्राट थे जिसकी राजधानी पाटलीपुत्र थी। सम्राट मगथ के सम्राट जरूर थे लेकिन कलिंग को छोड़कर संपूर्ण भारतवर्ष पर उनका शासन था। कहते हैं कि ईरान से लेकर बर्मा तक अशोक का साम्राज्य था। अशोक के समय मौर्य राज्य उत्तर में हिन्दुकुश की श्रेणियों से लेकर दक्षिण में गोदावरी नदी के दक्षिण तथा मैसूर, कर्नाटक तक तथा पूर्व में बंगाल से पश्चिम में अफगानिस्तान तक पहुंच गया था। यह उस समय तक का सबसे बड़ा भारतीय साम्राज्य था। ऐसे महान सम्राट अशोक कि जयंती उनके अपने देश भारत में क्यों नहीं मनायी जाती, न ही कोई छुट्टी घोषित कि गई है? अफ़सोस जिन लोगों को ये जयंती मनानी चाहिए, वो लोग अपना इतिहास ही नहीं जानते और जो जानते हैं, वो मानना नहीं चाहते।

अब स्पीड पोस्ट से भी मांगा सकते है माता वैष्णो देवी का प्रसाद।

वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड माता के भक्तों के लिए एक और उपहार लेकर आया है। देशभर के भक्त अब माता वैष्णो देवी का प्रसाद स्पीड पोस्ट के जरिए भी प्राप्त कर सकेंगे। श्री माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी रमेश कुमार और डाक सेवाएं विभाग के निदेशक गौरव श्रीवास्तव ने एक समझौते पर हस्ताक्षर कर सेवा सुरु की गई हैं। इसके तहत डाक विभाग स्पीड पोस्ट के जरिए देश भर में कहीं भी वैष्णो देवी के प्रसाद की डिलीवरी करेगा। बता दें, बोर्ड के अनुसार यह सेवा नो प्रॉफिट नो लॉस पर दी जाएगी। श्राइन बोर्ड ने तीन अलग-अलग श्रेणी का प्रसाद लांच किया है।
कैसे करें ऑर्डर 
माता वैष्णो देवी का प्रसाद मंगाने के लिए श्राइन बोर्ड ने नो प्रोफिट, नो लॉस के आधार पर तीन तरह का प्रसाद लॉन्च किया है। प्रसाद ऑर्डर करने के लिए माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड के वेबसाइट maavaishnodevi.org पर जाकर बुक किया जा सकता है, अथवा इसके लिए मुहैया कराए गए विशेष फोन नंबर 9906019475 पर कॉल किया जा सकता है। यहां पर आपको प्रसाद की कैटेगरी, क्वालिटी और कीमत सभी चीजों की जानकारी मिल जाएगी।

इस बीच 16 अगस्त से शुरू हुई मां वैष्णो देवी की यात्रा रफ्तार पकड़ लिया है। यहां यात्रा के लिए पहुंचने वाले भक्तों के लिए हेलिकॉप्टर, बैटरी से चलने वाला रिक्शा, माता भवन और भैरो मंदिर के बीच रोप वे की सुविधा भी शुरू कर दी गई है। अभी यहां हर रोज 2000 भक्तों को दर्शन करने की इजाजत मिली है।

मैं तो इंसानियत से मजबूर था तुम्हे बीच मे नही डुबोया" मगर तुमने मुझे क्यों काट लिया!

नदी में बाढ़ आती है छोटे से टापू में पानी भर जाता है वहां रहने वाला सीधा साधा1चूहा कछुवे  से कहता है मित्र  "क्या तुम मुझे नदी पार करा ...