पितृ दोष से मुक्ति पाने का सबसे सही समय होता है पितृपक्ष। इस दौरान किए गए श्राद्ध कर्म और दान-तर्पण से पित्रो को तृप्ति मिलती है। वे खुश होकर अपने वंशजों को सुखी और संपन्न जीवन का आशीर्वाद देते हैं। पितृपक्ष में श्राद्ध कर्म करने की परंपरा हमारी सांस्कृतिक विरासत में सदियों से चली आ रही है। धर्मशास्त्रों में श्राद्धों के विषय में विस्तार से बताया गया है। कहा गया है, कि पितरों का श्राद्ध करने वाले को समृद्धि और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। श्राद्ध के लिए अपराह्न व्यापिनी तिथि ली जाती है। मृतक का अग्नि संस्कार करने वाले दिन श्राद्ध नहीं किया जाता।
धर्मशास्त्रों में कहा गया है कि पितरों के पूजन करने वाले को दीर्घायु, सुयोग्य पुत्र, यश, स्वर्ग, ताकत, लक्ष्मी, गाय आदि पशु सब प्रकार के सुख और धन धान्य की प्राप्ति होती है। प्राचीन भारतीय चिंतन परम्परा के अनु सार मनुष्यों को अपने जीवन में तीन प्रकार के ऋण उतारने होते हैं। ये तीन ऋण हैं। देव ऋण, ऋषि ऋण और पितृ ऋण। ऐसा कहा गया है कि श्राद्ध करने से उपासक के तीनों ऋण उतर जाते हैं। श्राद्धों में बहुत लोगों को इसकी जानकारी नहीं होती है कि किस दिन किसका श्राद्ध करना चाहिए।
धर्मशास्त्रों में स्पष्ट रूप से श्राद्ध के नियम दिए गए हैं। इनके अंतर्गत कहा गया है कि जिस पिता की मृत्यु जिस दिन हुई हो उसी दिन उसका श्राद्ध किया जाना चाहिए। दिन का अर्थ वार से नहीं बल्कि देसी तिथियों प्रथमा, द्वितीया, तृतीया आदि से लिया जाना चाहिए। यदि मृत्यु प्रतिपदा के दिन हुई हो तो उनका श्राद्ध पहले दिन यानी प्रतिपदा पर ही करना चाहिये। लेकिन पिता के श्राद्ध के लिए अष्टमी को और माता के श्राद्ध के लिए नवमी तिथि को श्रेष्ठ माना गया है। श्राद्ध पक्ष के पहले दिन प्रतिपदा के श्राद्ध का विधान है। इस दिन उन्हीं का श्राद्ध ही किया जाता है, जिनकी मृत्यु प्रतिपदा के दिन हुई हो।
परिवार में कुछ ऐसे भी पितर होते हैं जिनकी अकाल या अस्वाभाविक रूप से मृत्यु हो जाती है, ऐसे पितरों का श्राद्ध चतुर्दशी के दिन किया जाता है। जिन पितरों की मृत्यु की तिथि ज्ञात न हो उनका श्राद्ध अमावस के दिन किया जाना चाहिए। श्राद्धों में ब्राह्मणों को भोजन कराया जाता है। श्राद्ध करने के अपने नियम होते हैं। श्राद्ध पक्ष हिंदी कैलेंडर के अश्विन महीने के कृष्ण पक्ष में आता है। जिस तिथि में जिस परिजन की मृत्यु हुई हो, उसी तिथि में उनका श्राद्ध कर्म किया जाता है। श्राद्ध कर्म पूर्ण विश्वास, श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया जाना चाहिए। पितृों तक केवल हमारा दान ही नहीं बल्कि हमारे भाव भी पहुंचते हैं।
जिन लोगों की मृत्यु के दिन की सही-सही जानकारी न हो, उनका श्राद्ध अमावस्या तिथि को करना चाहिए। सांप काटने से मृत्यु और बीमारी में या अकाल मृत्यु होने पर भी अमावस्या तिथि को श्राद्ध किया जाता है। जिनकी आग से मृत्यु हुई हो या जिनका अंतिम संस्कार न किया जा सका हो, उनका श्राद्ध भी अमावस्या को करते हैं।
No comments:
Post a Comment
If you have any doubts, please let me know.