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Saturday, May 15, 2021

शनिवार को पढ़े सुंदरकांड का पाठ हनुमान जी के साथ साथ शनि देव भी होंगे प्रसन्न, होगी सारी मनोकामना पूरी।


कलयुग के रक्षक कहे जाने वाले संकटमोचन हनुमान जी की पूजा मंगलवार और शनिवार की जाती है। हनुमानजी की पूजा सबसे जल्दी मनोकामनाएं पूर्ण करने वाली मानी गई है। मनोकामना के साथ-साथ हर कष्टों का निवार्ण भी करते हैं बजरंगबली। शनिवार के दिन हनुमान जी की पूजा करने से शनिदेव भी प्रसन्न होते हैं। हिन्दू धर्म की प्रसिद्ध मान्यता के अनुसार सुंदरकांड का पाठ करने वाले भक्त की मनोकामना जल्द पूर्ण हो जाती है। जहां एक ओर पूर्ण रामचरितमानस में भगवान के गुणों को दर्शाया गया है उनकी महिमा बताई गई है, लेकिन दूसरी ओर रामचरितमानस के सुंदरकांड की कथा सबसे अलग और निराली है। ज्योतिषविद् अनीष व्यास के मुताबिक सुंदरकांड के महत्व को मनोवैज्ञानिकों ने भी बहुत खास माना है। शास्त्रीय मान्यताओं ने ही नहीं विज्ञान ने भी सुंदरकांड के पाठ के महत्व को समझाया है। विभिन्न मनोवैज्ञानिकों की राय में सुंदरकांड का पाठ भक्त के आत्मविश्वास और इच्छाशक्ति को बढ़ाता है।

सुंदरकांड की महत्ता।
हिन्दू धर्म की मान्यता के अनुसार, सुंदरकांड का पाठ करने वाले भक्त की मनोकामना जल्द पूर्ण हो जाती है। सुंदरकांड गोस्वामी तुलसीदास द्वारा लिखी गई रामचरितमानस के सात अध्यायों में से पांचवा अध्याय है। रामचरितमानस के सभी अध्याय भगवान की भक्ति के लिए हैं लेकिन सुंदरकांड का महत्व अधिक बताया गया है। जहां एक ओर पूर्ण रामचरितमानस में भगवान के गुणों को दर्शाया गया है उनकी महिमा बताई गई है लेकिन दूसरी ओर रामचरितमानस के सुंदरकांड की कथा सबसे अलग और निराली है। इसमें भगवान राम के गुणों की नहीं बल्कि उनके भक्त के गुणों और उनकी विजय के बारे में बताया गया है। कहा जाता है सुंदरकांड का पाठ करने वाले भक्त को हनुमान जी बल प्रदान करते हैं। उसके आसपास भी नकारात्मक शक्ति भटक नहीं सकती। यह भी माना जाता है कि जब भक्त का आत्मविश्वास कम हो जाए या जीवन में कोई काम ना बन रहा हो तो सुंदरकांड का पाठ करने से सभी काम अपने आप ही बनने लगते हैं।

शनिदेव भी होंगे खुश।
ज्योतिष और पौराणिक मान्यता है कि शनिदेव हनुमानजी से प्रसन्न रहते हैं। शनिदेव की दशा के प्रभाव को कम करने के उपायों में से एक है हनुमानजी की पूजा। शनिवार को यदि आप सुंदरकांड का पाठ करते हैं तो बजरंगबली तो प्रसन्न होंगे ही और साथ में शनिदेव भी आपका बुरा नहीं करेंगे। सुंदरकांड का पाठ करने वाले भक्त को हनुमान जी बल प्रदान करते हैं। उसके आसपास भी नकारात्मक शक्ति भटक नहीं सकती।

Friday, May 14, 2021

वह मंदिर जिसे टांगीनाथ धाम के नाम से जाना जाता है। और यहा भगवान परशुराम भगवान शिव की घोर तपस्या की थी।

चित्र में जो त्रिशूल-फरसा है वह श्री परशुराम जी के द्वारा धँसाया गया है। झारखंड के गुमला जिले में भगवान परशुराम का तप स्थल है। यह जगह रांची से करीब 150 किमी दूर है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान परशुराम ने यहां शिव की घोर उपासना की थी। यहीं उन्होंने अपने परशु यानी फरसे को जमीन में गाड़ दिया था। इस फरसे की ऊपरी आकृति कुछ त्रिशूल से मिलती-जुलती है। यही वजह है कि यहां श्रद्धालु इस फरसे की पूजा के लिए आते है।

वहीं शिव शंकर के इस मंदिर को टांगीनाथ धाम के नाम से जाना जाता है। कहा जाता है कि टांगीनाथ धाम में साक्षात भगवान शिव निवास करते हैं। झारखंड के इस बियावान और जंगली इलाके में शिवरात्रि के अवसर पर ही श्रद्धालु टांगीनाथ के दर्शन के लिए आते हैं। यहां स्थ‍ित एक मंदिर में भोलेनाथ शाश्वत रूप में हैं। स्थानीय आदिवासी ही यहां के पुजारी है और इनका कहना है कि यह मंदिर अत्यंत प्राचीन है। मान्यता है महर्षि परशुराम ने यहीं अपने परशु यानी फरसे को गाड़ दिया था। स्थानीय लोग इसे त्रिशूल के रूप में भी पूजते हैं।
आश्चर्य की बात ये है कि इसमें कभी जंग नहीं लगता।खुले आसमान के नीचे धूप, छांव, बरसात- का कोई असर इस त्रिशूल पर नहीं पड़ता है।आदिवासी बहुल ये इलाका पूरी तरह उग्रवाद से प्रभावित है।ऐसे में यहां अधिकतर सावन और महाशिवरात्रि के दिन ही यहां शिवभक्तों की भीड़ उमड़ती है।

आजादी की 73वीं वर्षगांठ मना रहा है इजरायल, अरब देशों के खिलाफ युद्ध से हुई थी सफर की शुरुआत।

नई दिल्ली: फिलिस्तीन के साथ लगातार हो रही गोलाबारी की वजह से इजरायल एक बार फिर सुर्खियों में है। सालों के संघर्ष के बाद पूरी दुनिया से अपनी मातृभूमि पर वापस लौटने वाले लाखों यहूदियों ने इस देश की नींव रखी थी। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अंग्रेजों ने फिलिस्तीन से लौटने का फैसला किया था। ऐसे में 14 मई 1948 को इजरायल ने अपनी आजादी का ऐलान कर दिया था। आज उसने अपनी आजादी के 73 साल पूरे कर लिए हैं।


हिब्रु कैलेंडर के मुताबिक मनाता है स्वतंत्रता दिवस।
हालांकि इजरायल आधिकारिक तौर पर अपना स्वतंत्रता दिवस हिब्रु कैलेंडर के मुताबिक इयार के महीने के पांचवें दिन मनाता है। जो कि मौजूदा वर्ष में 14 अप्रैल को मनाया जा चुका है लेकिन ग्रिगेरेयन कैलेंडर के मुताबिक 14 मई ही उसका स्वतंत्रता दिवस है। स्वतंत्रता दिवस के दिन इजरायल उन सभी लोगों को याद करता है जिन्होंने इस देश की आजादी के लिए और उसके वजूद को बनाए रखने के लिए अपनी जान न्यौछावर कर दी। इजरायल की स्थापना के साथ ही यहूदियों की उनकी मातृभूमि में 2000 साल के लंबे अंतराल के बाद पुनर्स्थापना हो सकी।

29 नवंबर, 1947 को यूएन ने लगाई थी इजरायल की स्थापना पर मुहर।
आधिकारिक तौर संयुक्त राष्ट्र ने फिलिस्तीन और यहूदियों के लिए दो देशों के विभाजन पर मुहर 29 नवंबर, 1947 को लगा दी थी। दूसरे विश्व युद्ध के बाद फिलिस्तीन पर शासन कर रहे ब्रिटन के लिए दोनों गुटों के बीच संघर्ष को संभाल पाना मुश्किल हो गया था। ऐसे में वो इस मामले को संयुक्त राष्ट्र में ले गया जहां द्वि-राष्ट सिद्धांत के तहत फैसला हुआ और इस इलाके को यहूदी और अरब देशों में बांट दिया साथ ही यरुशलम को अंतरराष्ट्रीय शहर घोषित किया गया।

14 मई, 1948 को अंग्रेजों ने छोड़ा था फिलिस्तीन।
बरसों से अपनी मातृभूमि लताश रहे यहूदियों ने संयुक्त राष्ट्र के इस फैसले को तत्काल मान्यता दे दी। लेकिन अरब देशों ने इस फैसले को स्वीकार नहीं किया। 1948 में अंग्रेज इस इलाके को छोड़कर चले गए और 14 मई, 1948 को अंग्रेजों की विदाई से पहले ही यहूदियों ने इजरायल की आजादी का ऐलान कर दिया। एक नए मुल्क का उदय जिन परिस्थितियों में हुआ था उसका पहला कदम युद्ध की तरफ बढ़ गया।

आजादी के एक दिन बाद अरब सेनाओं ने कर दिया हमला।
एक ऐसी जगह जहां बसने के लिए पूरी दुनिया के यहूदी इंतजार कर रहे थे जिसे वो अपनी मातृभूमि कह सकें। लेकिन इजरायल की अपनी स्थापना के महज एक दिन बाद 15 मई, 1948 को अरब देशों की संयुक्त सेना( सीरिया, ट्रांस जॉर्डन, सीरिया और ईराक) ने उसके ऊपर हमला बोल दिया था। हमले के बाद अरब सेना ने संयुक्त राष्ट्र द्वारा फिलिस्तीन अरब देश के रूप में इंगित किए गए इलाके को अपने कब्जे में लिया और इजरायल के कब्जे वाले इलाकों और यहूदी बस्तियों में हमला बोल दिया। समय के साथ ही इस युद्ध में शामिल इजरायल के विरोधियों की संख्या में इजाफा होता गया। सउदी अरब ने युद्ध के लिए अपनी सेना भेजी और मिस्र की सहायता से इजरायल पर हमला किया। तकरीबन 1 साल तक चले इस युद्ध में इजरायल के महिलाओं और पुरुषों ने हार नहीं मानी और अरब देशों को धूल चटा दी।

इजरायल ने अरब देशों को युद्ध में चटाई धूल।
9 महीने 23 दिन चले इस युद्ध में एक तरफ अकेला इजरायल था जिसके पास शुरुआत में लगभग 30 हजार लड़ाके थे जिनकी संख्या युद्ध की समाप्ति तक तकरीबन 1 लाख 17 हजार हो गई. वहीं दूसरी तरफ मिस्र, ट्रांसजॉर्डन, ईराक, सीरिया, लेबनान, सउदी अरब, उत्तरी यमन की सेनाएं थीं।

अमिताभ का 1 करोड़ का दान दिखाने वाला राष्ट्रीय मिडिया 10 करोड़ के दान को क्यों भुल गया। क्योंकि TRP ज्यादा जरूरी है।

सैनिक कल्याण बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष प्रेमसिंह बाजौर ने महाराणा प्रताप की जयंती पर कोरोना से लड़ाई के लिए दस करोड़ रुपए दान दिए, वो आक्सीजन प्लांट लगाने में पूरे राजस्थान में सरकार का सहयोग भी कर रहे है।

बाजौर साहब ने प्रदेश में शहीदों के सम्मान के लिए भी विशेष कार्यक्रम चला रखा है जिसके अंतर्गत उन्होंने 28 करोड़ रूपये की धनराशि से उनके स्मारक तथा प्रतिमाएं स्थापित की है। इसके अलावा जरूरतमंद को भी मदद करने में पीछे नहीं रहते।

राजस्थान के जोधपुर जिले में सेतरावा मेगा हाइवे पर गांव भूंगरा तहसील शेरगढ़ में वीर शहीद वेलफेयर समिति राजस्थान व शहीद परिवारों ने मिलकर राजस्थान के भामाशाह माननीय प्रेमसिंह जी बाजोर (पूर्व अध्यक्ष, राजस्थान सैनिक कल्याण बोर्ड) की जीती जागती प्रतिमा लगवाई है। इस प्रतिमा का अनावरण केंद्रीय मंत्री श्री गजेन्द्रसिंह शेखावत व स्वयं श्री प्रेमसिंह जी बाजोर ने किया था।

बाजोर साहब ने"शहीद सम्मान यात्रा के तहत पिछले 18 माह में लगभग एक लाख किमी की यात्रा कर 1600 शहीद परिवारों से मिलकर उनके हालचाल पूछे और उनकी हरसंभव मदद की तथा 1170 शहीदों की प्रतिमा व स्मारक बनवाए जिनकी लागत 28 करोड़ के लगभग आई और वो राशि खुद की निजी आय से व्यय की। इसी कारण इनके सम्मान में वीर शहीद वेलफेयर समिति व शहीद परिवारों ने मिलकर इनकी जीती जागती प्रतिमा बनवाई। 

ये राम मंदिर निर्माण हेतु भी एक करोड़ का दान दे चुके हैं।

आज भगवान श्री परशुराम जयंती, जानिए क्यों किया था अपनी ही मां का सर धड़ से अलग।

आज भगवान श्री परशुराम की जयंती है। भारतीय ऋषियों और गुरुओं की परंपरा में परशुराम का जिक्र जरूर होता है। परशुराम भगवान विष्णु की छठा अवतार माने जाते हैं। ब्राह्मण कुल में जन्में परशुराम क्रोधी स्वाभाव वाले ऋषि थे। उनमें क्षत्रियों के प्रति इतनी नाराजगी थी कि उन्होंने उन्हें धरती से खाली करने की शपथ खाई थी। परशुराम को लेकर तमाम किस्से कहानियां हैं। कहा जाता है कि परशुराम अपनी माता-पिता के आज्ञाकारी पुत्र थे। इसके बावजूद उन्होंने अपनी माता की गर्दन धड़ से अलग कर दी थी। आइए जानते हैं इसके पीछे क्या कारण था।

भगवान परशुराम ने अपनी मां की हत्या की थी। ये घटना भी हैरान करने वाली है। हालांकि उन्होंने अपने मन से ऐसा बिल्कुल नहीं किया था। इसकी वजह इस तरह था। हालांकि जब परशुराम ने मां की हत्या कर दी तो उनके पिता समेत हर कोई अवाक रह गया। फिर उन्होंने एक और काम किया जो इसी हैरानी को और बढ़ाने वाला था।

दरअसल परशुराम की मां रेणुका जल का कलश लेकर नदी गईं थीं। उन्हें वहां से कलश में जल भरकर लौटना था। नदी में गंधर्व चित्ररथ अप्सराओं के साथ जलक्रीड़ा कर रहा था। उसे देखने में रेणुका इतनी तल्लीन हो गईं कि उन्हें जल लेकर लौटने में देर हो गई। उधर उनके पति और ऋषि जमदग्नि यज्ञ के लिए बैठे थे। देर होने से वो यज्ञ नहीं कर पाए।

ऋषि जमदग्नि परशुराम के पिता थे, वे गुस्से से लाल-पीले हो रहे थे कि तभी रेणुका जल लेकर लौट आईं। उनके आते ही ऋषि जमदग्नि क्रोध में दहाड़े। उन्होंने अपने चार पुत्रों से तुरंत उनकी मां का वध करने को कहा। तीनों बेटों ने ये बात सुनी लेकिन वो सिर झुकाकर खड़े हो गए। लेकिन परशुराम ने ऐसा नहीं किया। बल्कि उन्होंने अपना फरसा उठाया। एक ही वार में मां का सिर धड़ से अलग कर दिया।

परशुराम के ऐसा करते ही हर कोई स्तब्ध रह गया। उनके पिता को उम्मीद नहीं थी कि परशुराम उनकी आज्ञा मानने के लिए यहां तक जा सकते हैं। एक ओर वो अपनी पत्नी की हत्या से दुखी थे तो दूसरी ओर ये देखकर खुश कि उनका ये बेटा उनकी कितनी बात मानता है। उन्होंने परशुराम से वरदान मांगने को को कहा। परशुराम ने तुरंत पिता से चार वरदान मांगे

1. मां फिर से जिंदा हो जाएं

2. उन्हें (मां को) ये याद ही नहीं रहे कि उनकी हत्या की गई थी।

3. उनके सभी भाई भी स्तब्ध अवस्था से सामान्य स्थिति में लौट आएं।

4. इन वरदानों के साथ पिता ऋषि जमदग्नि ने उन्हें अमर रहने का वरदान भी दिया।

भगवान परशुराम इसलिए नाराज हुए थे, क्षत्रियों पर।
महर्षि जमदग्नि और रेणुका के पुत्र परशुराम ब्राह्मण होने के बाद भी कर्म से क्षत्रिय गुणों वाले थे। आखिर क्या बात थी कि उन्होंने धरती से क्षत्रियों के समूलनाश की प्रतिज्ञा कर ली थी। एक दिन जब परशुराम बाहर गये थे तो राजा सहस्रबाहु हैहयराज के दोनों बेटे कृतवीर अर्जुन और कार्तवीर्य अर्जुन उनकी कुटिया पर आए। उन्होंने राजा द्वारा दान में दी गईं गायों और बछड़ों की जबरदस्ती छीन लिया। साथ ही मां का अपमान भी किया। परशुराम को मालूम पड़ा तो नाराज होकर उन्होंने राज सहस्रबाहु हैहयराज को मार डाला। परिणामस्वरूप उसके दोनों बेटों ने फिर आश्रम पर धावा बोला। तब परशुराम वहां नहीं थे। उन्होंने मुनि जमदग्नि को मार डाला। जब परशुराम घर पहुँचे तो उन्हें इसकी जानकारी हुई। उन्होंने उसी समय शपथ ली कि वो धरती को क्षत्रियहीन कर देंगे। परशुराम ने इक्कीस बार पृथ्वी के समस्त क्षत्रियों का संहार किया।

भगवान परशुराम क्रोधी स्वभाव।
दुर्वासा ऋषि की भाँति भगवान परशुराम भी अपने क्रोधी स्वभाव के लिए विख्यात थे। 21 बार उन्होंने धरती को क्षत्रिय-विहीन किया। हर बार हताहत क्षत्रियों की पत्नियाँ जीवित रहीं और नई पीढ़ी को जन्म दिया। हर बार क्षत्रियों को मारने के बाद वो कुरुक्षेत्र की पाँच झीलों में रक्त भर देते थे। अंत में पितरों की आकाशवाणी सुनकर उन्होंने क्षत्रियों से युद्ध करना छोड़कर तपस्या की ओर ध्यान लगाते थे।

भगवान श्री राम पर भी हुए थे नाराज। 
रामायण में उनका जिक्र तब आता है जब राम ने सीता स्वयंवर में शिव का धनुष तोडे थे। तब वो नाराज होकर वहां आए थे। लेकिन राम से मुलाकात के बाद समझ गए कि वो विष्णु के अवतार हैं। इसलिए उनकी वंदना करके वापस तपस्या के लिए चले गए।

अच्छे फल की प्राप्ति के लिए अक्षय तृतीया पर ऐसे करें पूजा होगा लाभ।

अक्षय तृतीया को आखातीज के नाम से भी जाना जाता है। आखातीज का व्रत वैशाख माह में सुदी तीज को किया जाता है। इस दिन श्री लक्ष्मी जी सहित भगवान नारायण की पूजा की जाती है। पहले भगवान नारायण और लक्ष्मी जी की प्रतिमा को गंगाजल से स्नान कराना चाहिए। उन्हें पुष्प और पुष्प-माल्यार्पण करना चाहिए। भगवान की धूप, दीप से आरती उतारकर चंदन लगाना चाहिए। मिश्री और भीगे हुए चनों का भोग लगाना चाहिए। भगवान को तुलसी-दल और नैवेद्य अर्पित कर ब्राह्मणों को भोजन कराकर श्रद्धानुसार दक्षिणा देकर विदा करना चाहिए। 

इस दिन सभी को भगवत्-भजन करते हुए सद्चिंतन करना चाहिए। अक्षय तृतीया के दिन किया गया कोई भी कार्य बेकार नहीं जाता इसलिए इसे अक्षय तृतीया कहा जाता है। अक्षय तृतीया का व्रत भगवान लक्ष्मीनारायण को प्रसन्नता प्रदान करता है। वृंदावन में केवल आज ही के दिन बिहारी जी के पांव के दर्शन होते हैं। किसी भी शुभ कार्य को करने के लिए यह दिन बहुत ही शुभ माना जाता है। इस दिन प्रात: काल में मूंग और चावल की खिचड़ी बिना नमक डाले बनाए जाने को बड़ा ही शुभ माना जाता है। इस दिन पापड़ नहीं सेंका जाता और न ही पक्की रसोई बनाई जाती है। इस दिन नया घड़ा, पंखा, चावल, चीनी, घी, नमक, दाल, इमली, रुपया इत्यादि ब्राह्मण को श्रद्धापूर्वक दान दिया जाता है।

अक्षय तृतीया या आखातीज व्रत की कथा।
अत्यंत प्राचीन काल की बात है। महोदय नामक एक वैश्य कुशावती नगरी में निवास करता था। सौभाग्यवश महोदय वैश्य को एक पंडित द्वाता अक्षय तृतीया के व्रत का विवरण प्राप्त हुआ। उसने भक्ति-भाव से विधि व नियमपूर्वक व्रत रखा। व्रत के प्रभाव से वह वैश्य कुशावती नगरी का महाप्रतापी और शक्तिशाली राजा बन गया। उसका कोष हमेशा स्वर्ण-मुदाओं, हीरे-जवाहरातों से भरा रहता था। राजा स्वभाव से दानी भी था। वह उदार मन होकर बिना सोचे समझे दोनों हाथों से दान देता था। एक बार राजा के वैभव और सुख-शांतिपूर्ण जीवन से आकर्षित होकर कुछ जिज्ञासु लोगों ने राजा से उसकी समृद्धि और प्रसिद्धि का कारण पूछा। 

राजा ने स्पष्ट रूप से अपने अक्षय तृतीया व्रत की कथा को सुनाया और इस व्रत की कृपा के बारे में भी बताया। राजा से यह सुनकर उन जिज्ञासु पुरुषों और राजा की प्रजा ने नियम और विधान सहित अक्षय तृतीया व्रत रखना प्रारंभ कर दिया। अक्षय तृतीया व्रत के पुण्य प्रताप से सभी नगर-निवासी धन-धान्य से पूर्ण होकर वैभवशालौ और सुखी हो गए। हे अक्षय तीज माता! जैसे आपने उस वैश्य को वैभव-सुख और राज्य प्रसान किया वैसे ही अपने सब भक्तों एवं श्रद्धालुओं को धन-धान्य और सुख देना। सब पर अपनी कृपादृष्टि बनाए रखना। हमारी आप से यही विनती है।

Thursday, May 13, 2021

यासिर अराफात जब इजराइल के विरुद्ध फिलिस्तीन राष्ट्र की घोषणा की, तो फिलिस्तीन को सबसे पहले मान्यता देने वाला देश कौन था।

जब एक आतंकवादी, यासिर अराफात ने इजराइल के विरुद्ध फिलिस्तीन राष्ट्र की घोषणा की, तो फिलिस्तीन को सबसे पहले मान्यता देने वाला देश कौन था?

सउदी अरब? - जी नहीं।
पाकिस्तान? - जी नहीं।
अफगानिस्तान? -.जी नहीं।
इराक? - जी नहीं।
तुर्की? - जी नहीं।
सोचिये फिर किस देश ने फिलिस्तीन को सबसे पहले मान्यता दी होगी ..?

चलिए हम आपको बताते हैं, सेकुलर भारत! जी हाँ। "भारत"
इंदिरा गाँधी ने मुस्लिम तुष्टीकरण के लिए, सबसे पहले फिलिस्तीन को मान्यता दी, और यासिर अराफात जैसे आतंकवादी को "नेहरू शांति पुरस्कार", और राजीव गाँधी ने उसको "इंदिरा गाँधी अंतर्राष्ट्रीय शांति पुरस्कार" दिए। और तो और राजीव गाँधी ने तो उसको पूरे विश्व में घूमने के लिए बोइंग ७४७ गिफ्ट में दिया था।

अब आगे जानिए।
वही अराफात, ने OIC (Organisation of Islamic Countries) में काश्मीर को "पाकिस्तान का अभिन्न भाग" बताया, और उस आतंकवादी ने बोला कि "पाकिस्तान जब भी चाहे तब मेरे लड़ाके काश्मीर की आज़ादी के लिए लड़ेंगे।

और जी हाँ, इतना ही नहीं, जिस शख्स को दुनिया के 103 देश आतंकवादी घोषित किये हों, और जिसने 8 विमानों का अपहरण किया हो, और जिसने दो हज़ार निर्दोष लोगों को मार डाला हो, ऐसे आतंकवादी यासिर अराफात को सबसे पहले भारत ने किसी अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार से नवाजा। जी हाँ।

इंदिरा गाँधी ने उसे "नेहरू शांति पुरस्कार" दिया, जिसमें एक करोड रुपये नगद, और दो सौ ग्राम सोने से बना एक शील्ड होता है।

आप सोचिये, 1983 में, यानि आज से 37 वर्षों पहले, एक करोड़ रुपये की आज वैल्यू क्या होगी (देढ़ अरब से भी ऊपर)

फिर राजीव गाँधी ने उसे "इंदिरा गाँधी अंतरराष्ट्रीय शांति पुरस्कार" दिया।

फिर यही यासिर अराफात काश्मीर के मामले पर खुलकर पाकिस्तान के साथ हो गया, और इसने घूम घूमकर पूरे इस्लामिक देशों में कहा, कि फिलिस्तीन और काश्मीर दोनों जगहों के मुसलमान गैर-मुसलमानों के हाथों मारे जा रहे हैं, इसलिए पूरे मुस्लिम जगत को इन दोनों मामलों पर एकजुट होना चाहिए।

अब, वो कांग्रेस पार्टी मोदी जी को सिखा रही है, कि "विदेश नीति कैसे की जाती है।

अब आप विचार करने के लिए स्वतंत्र हैं कि देशद्रोही कौन है और देशभक्त कौन।

मैं तो इंसानियत से मजबूर था तुम्हे बीच मे नही डुबोया" मगर तुमने मुझे क्यों काट लिया!

नदी में बाढ़ आती है छोटे से टापू में पानी भर जाता है वहां रहने वाला सीधा साधा1चूहा कछुवे  से कहता है मित्र  "क्या तुम मुझे नदी पार करा ...