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Friday, May 14, 2021

आज भगवान श्री परशुराम जयंती, जानिए क्यों किया था अपनी ही मां का सर धड़ से अलग।

आज भगवान श्री परशुराम की जयंती है। भारतीय ऋषियों और गुरुओं की परंपरा में परशुराम का जिक्र जरूर होता है। परशुराम भगवान विष्णु की छठा अवतार माने जाते हैं। ब्राह्मण कुल में जन्में परशुराम क्रोधी स्वाभाव वाले ऋषि थे। उनमें क्षत्रियों के प्रति इतनी नाराजगी थी कि उन्होंने उन्हें धरती से खाली करने की शपथ खाई थी। परशुराम को लेकर तमाम किस्से कहानियां हैं। कहा जाता है कि परशुराम अपनी माता-पिता के आज्ञाकारी पुत्र थे। इसके बावजूद उन्होंने अपनी माता की गर्दन धड़ से अलग कर दी थी। आइए जानते हैं इसके पीछे क्या कारण था।

भगवान परशुराम ने अपनी मां की हत्या की थी। ये घटना भी हैरान करने वाली है। हालांकि उन्होंने अपने मन से ऐसा बिल्कुल नहीं किया था। इसकी वजह इस तरह था। हालांकि जब परशुराम ने मां की हत्या कर दी तो उनके पिता समेत हर कोई अवाक रह गया। फिर उन्होंने एक और काम किया जो इसी हैरानी को और बढ़ाने वाला था।

दरअसल परशुराम की मां रेणुका जल का कलश लेकर नदी गईं थीं। उन्हें वहां से कलश में जल भरकर लौटना था। नदी में गंधर्व चित्ररथ अप्सराओं के साथ जलक्रीड़ा कर रहा था। उसे देखने में रेणुका इतनी तल्लीन हो गईं कि उन्हें जल लेकर लौटने में देर हो गई। उधर उनके पति और ऋषि जमदग्नि यज्ञ के लिए बैठे थे। देर होने से वो यज्ञ नहीं कर पाए।

ऋषि जमदग्नि परशुराम के पिता थे, वे गुस्से से लाल-पीले हो रहे थे कि तभी रेणुका जल लेकर लौट आईं। उनके आते ही ऋषि जमदग्नि क्रोध में दहाड़े। उन्होंने अपने चार पुत्रों से तुरंत उनकी मां का वध करने को कहा। तीनों बेटों ने ये बात सुनी लेकिन वो सिर झुकाकर खड़े हो गए। लेकिन परशुराम ने ऐसा नहीं किया। बल्कि उन्होंने अपना फरसा उठाया। एक ही वार में मां का सिर धड़ से अलग कर दिया।

परशुराम के ऐसा करते ही हर कोई स्तब्ध रह गया। उनके पिता को उम्मीद नहीं थी कि परशुराम उनकी आज्ञा मानने के लिए यहां तक जा सकते हैं। एक ओर वो अपनी पत्नी की हत्या से दुखी थे तो दूसरी ओर ये देखकर खुश कि उनका ये बेटा उनकी कितनी बात मानता है। उन्होंने परशुराम से वरदान मांगने को को कहा। परशुराम ने तुरंत पिता से चार वरदान मांगे

1. मां फिर से जिंदा हो जाएं

2. उन्हें (मां को) ये याद ही नहीं रहे कि उनकी हत्या की गई थी।

3. उनके सभी भाई भी स्तब्ध अवस्था से सामान्य स्थिति में लौट आएं।

4. इन वरदानों के साथ पिता ऋषि जमदग्नि ने उन्हें अमर रहने का वरदान भी दिया।

भगवान परशुराम इसलिए नाराज हुए थे, क्षत्रियों पर।
महर्षि जमदग्नि और रेणुका के पुत्र परशुराम ब्राह्मण होने के बाद भी कर्म से क्षत्रिय गुणों वाले थे। आखिर क्या बात थी कि उन्होंने धरती से क्षत्रियों के समूलनाश की प्रतिज्ञा कर ली थी। एक दिन जब परशुराम बाहर गये थे तो राजा सहस्रबाहु हैहयराज के दोनों बेटे कृतवीर अर्जुन और कार्तवीर्य अर्जुन उनकी कुटिया पर आए। उन्होंने राजा द्वारा दान में दी गईं गायों और बछड़ों की जबरदस्ती छीन लिया। साथ ही मां का अपमान भी किया। परशुराम को मालूम पड़ा तो नाराज होकर उन्होंने राज सहस्रबाहु हैहयराज को मार डाला। परिणामस्वरूप उसके दोनों बेटों ने फिर आश्रम पर धावा बोला। तब परशुराम वहां नहीं थे। उन्होंने मुनि जमदग्नि को मार डाला। जब परशुराम घर पहुँचे तो उन्हें इसकी जानकारी हुई। उन्होंने उसी समय शपथ ली कि वो धरती को क्षत्रियहीन कर देंगे। परशुराम ने इक्कीस बार पृथ्वी के समस्त क्षत्रियों का संहार किया।

भगवान परशुराम क्रोधी स्वभाव।
दुर्वासा ऋषि की भाँति भगवान परशुराम भी अपने क्रोधी स्वभाव के लिए विख्यात थे। 21 बार उन्होंने धरती को क्षत्रिय-विहीन किया। हर बार हताहत क्षत्रियों की पत्नियाँ जीवित रहीं और नई पीढ़ी को जन्म दिया। हर बार क्षत्रियों को मारने के बाद वो कुरुक्षेत्र की पाँच झीलों में रक्त भर देते थे। अंत में पितरों की आकाशवाणी सुनकर उन्होंने क्षत्रियों से युद्ध करना छोड़कर तपस्या की ओर ध्यान लगाते थे।

भगवान श्री राम पर भी हुए थे नाराज। 
रामायण में उनका जिक्र तब आता है जब राम ने सीता स्वयंवर में शिव का धनुष तोडे थे। तब वो नाराज होकर वहां आए थे। लेकिन राम से मुलाकात के बाद समझ गए कि वो विष्णु के अवतार हैं। इसलिए उनकी वंदना करके वापस तपस्या के लिए चले गए।

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