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Saturday, September 26, 2020

कभी कोई युद्ध ना हारने वाला अकबर के सेनापति बहलोल खान को भेजा था महाराणा प्रताप का सर लाने।

मुगली शासक अकबर का सबसे खतरनाक एक सेना नायक हुआ   बहलोल खां कहा जाता है कि हाथी जैसा बदन था इसका और ताक़त का जोर इतना कि नसें फटने को होती थीं ज़ालिम इतना कि तीन दिन के बालक को भी गला रेत-रेत के मार देता था बशर्ते वो हिन्दू का हो एक भी लड़ाई कभी हारा नहीं था अपने पूरे करियर में ये बहलोल खां काफी लम्बा कद का सेनापति था उसका कद 7 फुट 8 इंच है। कहा जाता है की घोडा उसने सामने छोटा लगता था। बहुत चौड़ा और ताकतवर था बहलोल खां, अकबर को बहलोल खां पर खूब नाज था, लूटी हुई औरतों में से बहुत सी बहलोल खां को दे दी जाती थी।

फिर हल्दीघाटी का युद्ध हुआ, अकबर और महाराणा प्रताप की सेनाएं आमने सामने थी, अकबर महाराणा प्रताप से बहुत डरता था। इसलिए वो खुद इस युद्ध से दूर रहा। अब इस युद्ध में सेनापति बहलोल खां को अकबर ने युद्ध के लिए आदेश दिया। हिन्दू-वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप से लड़ाई पूरे जोर पर और मुगलई गंद खा-खा के ताक़त का पहाड़ बने बहलोल खां का आमना-सामना हो गया अपने प्रताप से अफीम के ख़ुमार में डूबी हुई सुर्ख नशेड़ी आँखों से भगवा अग्नि की लपट सी प्रदीप्त रण के मद में डूबी आँखें टकराईं और जबरदस्त भिडंत शुरू कुछ देर तक तो राणा यूँ ही मज़ाक सा खेलते रहे मुगलिया बिलाव के साथ और फिर गुस्से में आ के अपनी तलवार से एक ही वार में घोड़े सहित हाथी सरीखे उस नर का पूरा धड़ बिलकुल सीधी लकीर में चीर दिया ऐसा फाड़ा कि बहलोल खां का आधा शरीर इस तरफ और आधा उस तरफ गिरा दिया।

ऐसे-ऐसे युद्ध-रत्न उगले हैं सदियों से भगवा चुनरी ओढ़े रण में तांडव रचने वाली मां भारती ने।

Thursday, September 24, 2020

डीआरडीओ की बड़ी उपलब्धि लांच किया ATGM मिसाइल 3 किलोमीटर तक कर सकता है सत्यानाश।

(Laser-guided Anti Tank Guided Missile-ATGM) लेजर गाइडेड एंटी टैंक गाइडेड मिसाइल का सफल परीक्षण किया है। AGTM का परीक्षण अहमदनगर के आर्मर्ड कॉर्प्‍स सेंटर एंड स्‍कूल (ACC&S) की केके रेंज में किया गया। रक्षा मंत्रालय ने बताया कि परीक्षण के दौरान मिसाइल ने 3 किलोमीटर दूर स्थित लक्ष्य पर एकदम सटीक वार करके ध्‍वस्‍त कर दिया। रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) द्वारा तैयार की गई इस मिसाइल को अर्जुन टैंक से लॉन्‍च किया गया था।


इनके सहयोग से बनी :-  इस मिसाइल को DRDO की आर्मामेंट रिसर्च एंड डेवलपमेंट एस्टेब्लिशमेंट (ARDE) पुणे, उच्च ऊर्जा सामग्री अनुसंधान प्रयोगशाला (HEMRL) पुणे और इंस्ट्रूमेंट्स रिसर्च एंड डेवलपमेंट एस्टेब्लिशमेंट (IRDE) देहरादून के सहयोग से विकसित किया गया है।

क्यों है खास?
रक्षा मंत्रालय के मुताबिक, कई प्लेटफॉर्म लॉन्च क्षमता के साथ मिसाइल को विकसित किया गया है और वर्तमान में एमबीटी अर्जुन में लगी बंदूक से फायर कर इसका तकनीकी मूल्यांकन किया जा रहा है। लेजर गाइडेड एंटी टैंक गाइडेड लक्ष्य पर सटीक निशाना लगाने के लिए लेजर डेज़िग्नेशन का इस्तेमाल करती है। साथ ही यह HEAT (हाई स्‍पीड एक्‍सपेंडेबल एरियल टारगेट) वारहेड के जरिए एक्‍सप्‍लोसिव रिऐक्टिव आर्मर (ERA) प्रोटेक्‍टेड व्हीकल को उड़ाने में सक्षम है।

रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने दी बधाई :-

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह (Defence Minister Rajnath Singh) ने इस सफलता के लिए DRDO को बधाई दी है। उन्होंने ट्वीट करके कहा, ‘अहमदनगर में केके रेंज में एमबीटी अर्जुन से लेजर गाइडेड एंटी टैंक गाइडेड मिसाइल का सफलतापूर्वक परीक्षण किया गया। भारत को डीआरडीओ पर गर्व है जो निकट भविष्य में आयात निर्भरता को कम करने की दिशा में काम कर रहा है’।


Monday, September 21, 2020

फिल्म सिटी के लिए दी 1000 एकड़ की जमीन, योगी सरकार।

लखनऊ:- मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ ने देश की सबसे खूबसूरत फिल्म सिटी उत्तर प्रदेश में बनाने की बात कही थी। इस प्रोजेक्ट पर अब काम भी शुरू हो चुका है। योगी सरकार ने इस फिल्म सिटी के लिए 1000 एकड़ जमीन भी उपलब्ध कराई है। यमुना एक्सप्रेस वे के मुख्य कार्यपालक अधिकारी अरुण वीर सिंह ने अपर मुख्य सचिव अवस्थापना एवं ओद्योगिक विभाग को पत्र लिखकर फिल्म सिटी के उपलब्ध भूमि की जानकारी दी।

यमुना एक्सप्रेस वे पर बनेगी फिल्म सिटी:-
इस पत्र में फिल्म सिटी के लिए यमुना एक्सप्रेस वे ओद्योगिक विकास प्राधिकरण क्षेत्र के सेक्टर - 21 में ओद्योगिक भूखंडों के लिए 780 एकड़ और व्यावसायिक भूखंड के लिए 220 एकड़ यानि कुल 1000 एकड़ भूमि उपलब्ध है।

मधुर भंडारकर ने की थी CM योगी से मुलाकात
फिल्मकार मधुर भंडारकर (Madhur Bhandarkar) ने रविवार को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मुलाकात की. इस दौरान दोनों ने गौतमबुद्ध नगर जिले में देश के 'सबसे बड़े और सबसे खूबसूरत फिल्म सिटी' के बनाए जाने को लेकर मुख्यमंत्री की घोषणा पर चर्चा की. मुख्यमंत्री ने फिल्म निर्माता को भेंट स्वरूप एक सिक्का दिया, जिसमें भगवान राम की तस्वीर उकेरी गई थी और इसके साथ ही रामचरितमानस की एक प्रति, तुलसी के बीजों की एक माला व एक भव्य कुंभ कॉफी टेबल भी दी, जिसे पिछले साल प्रयागराज में आयोजित किया गया था. सरकार की तरफ से एक प्रवक्ता के मुताबिक, भंडारकर ने मुख्यमंत्री को फिल्म सिटी की योजना के लिए बधाई दी और फिल्म बिरादरी से पूर्ण सहयोग का आश्वासन दिया।

Saturday, September 19, 2020

दुनिया का इकलौता शुद्ध शाकाहारी मगरमच्छ।

मगरमच्छ पानी में रहने वाला एक खतरनाक जानवर जो एक इंसानी शरीर को बिना चबाए आराम से निगल सकता है। और जिसके शरीर के ऊपर की त्वचा इतनी सख्त होती है कि इस पर बंदूक की गोली का भी कोई असर नहीं होता है। लेकिन आज हम जिस मगरमच्छ के बारे में बात करने वाले हैं। वह दुनिया का इकलौता शुद्ध शाकाहारी मगरमच्छ है। यह जानकर आपको हैरानी जरूर होगी लेकिन यह एक सच है। केरल के कासरगोड जिले में स्थित है, भगवान विष्णु के अवतार श्री अनंत पदमनाभ स्वामी का मंदिर है। इसी मंदिर के किनारे बनी झील में रहता है, यह शाकाहारी मगरमच्छ जिसका नाम है “बबिया”

बबिया मगरमच्छ खाने में केवल मंदिर का बना प्रसाद ही खाता है इसके अलावा कुछ नहीं खाता इस झील में उसके साथ रहने वाली मछलियाँ उससे बिल्कुल भी भयभीत नहीं होती है। बल्कि आराम से उसके पास तैरती है बिना किसी डर के अनंत पदमनाभ स्वामी मंदिर तिरुवंतपुरम में श्री अनंत पदमनाभ स्वामी का एक बहुत विशाल एवं भव्य मंदिर है। लेकिन स्थानीय लोगों के अनुसार अनंतपुर में स्थित मंदिर ही श्री अनंत पदमनाभ स्वामी का मूल स्थान है। अनंतपुर में यह मंदिर करीब 2 एकड़ जगह में फैला हुआ है। इस मंदिर के पास में एक झील भी है। पौराणिक कथाओं के अनुसार प्रभु अनंत पद्मनाभस्वामी इसी झील के अंदर स्थित एक गुफा से होकर तिरुवंतपुरम गए थे इसी वजह से दोनों जगहों का नाम एक जैसा ही है।

मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा।
मंदिर में पूजा करने वाले स्थानीय पुजारियों के अनुसार लगभग 3000 साल पहले दिवाकर मुनि विल्व  मंगलम स्वामी  अनंतपुर के इसी मंदिर मे रहा करते थे, एवं विष्णु भगवान की पूजा किया करते थे। उनकी पूजा से प्रसन्न होकर एक दिन विष्णु भगवान स्वयं एक छोटे बालक के रूप में उनके सामने प्रकट हुए एवं उनके साथ इसी आश्रम में रहने लगे। धीरे धीरे यह बालक विल्व मंगलम स्वामी के साथ घुल मिल गया, एवं वह आश्रम की कार्यों में भी मुनि का हाथ बटाने लगा। समय बीतता गया और एक दिन जब विल्व मंगलम स्वामी अपने दैनिक पूजा का कार्य कर रहे थे। उस समय वह बालक उनके कार्य में विघ्न उत्पन्न कर रहा था। इस बात से परेशान होकर उन्होंने उस बालक को डाँटा और उसे पीछे की ओर धकेल दिया। मुनि के इस व्यवहार से आहत होकर वह बालक यह कहते हुए पास स्थित झील मे अदृश्य हो गया कि जब भी विल्व मंगलम स्वामी उनसे मिलना चाहे वे अनंतकट के जंगलों में उसे पाएंगे। जब तक मुनि को अपनी भूल का एहसास हुआ, कि जिस नन्हे बालक को उन्होंने डांटा है। वह स्वयं भगवान विष्णु का रूप है। तब तक बहुत देर हो चुकी थी। और वह बालक झील मे बनी गुफा मे अद्रश्य चुका था।

झील मे बनी गुफा।
विल्व मंगलम स्वामी स्वयं से हुई भूल का पश्चाताप करने के लिए एवं बालक से माफी मांगने के लिए उसी गुफा में प्रवेश करते हैं। और वे गुफा के दूसरी और समुद्र के पास में निकलते हैं। वहां पर वह देखते हैं कि समुद्र में स्वयं भगवान विष्णु विराजमान है। उनके चारों और विशाल नाग लिपटे हुए हैं।
बबिया मगरमच्छ के अस्तित्व का इतिहास।
स्थानीय पुजारियों के अनुसार बबिया मगरमच्छ उसी गुफा में रहता है। जहां पर भगवान श्री विष्णु के बाल अवतार श्री कृष्ण अदृश्य हुए थे। उनके अनुसार बबिया मगरमच्छ श्री कृष्ण के द्वार की पहरेदारी करता है।
बबिया के बारे में सबसे हैरान करने वाली बात यह है, कि यह शुद्ध शाकाहारी मगरमच्छ है। मंदिर के पुजारियों द्वारा इसे दिन में दो बार चावल का प्रसाद भोजन के रूप में दिया जाता है। मंदिर में पूजा करने वाले चंद्र प्रकाश जी के अनुसार वे पिछले 10 सालों से बबिया को भोजन करा रहे हैं वे कहते हैं कि वे प्रतिदिन 1 किलो चावल स्वयं अपने हाथों से बबिया को खिलाते हैं। और वह बिना उन पर आक्रमण किए या किसी अन्य मछलियों पर आक्रमण किए प्रसाद का भोजन करता है एवं अपनी गुफा में चला जाता है। बबिया पिछले 75 सालों से इसी झील में रह रहा है।

बबिया का इतिहास।
स्थानीय लोगों के अनुसार लगभग 75 साल पहले एक ब्रिटिश सैनिक ने बबिया से पहले इस गुफा की सुरक्षा कर रहे मगरमच्छ को मार दिया था। इस घटना के कुछ दिनों बाद ही उसे सैनिक की रहस्यमयी तरीके से सांप के काटने के कारण मृत्यु हो गई। स्थानीय लोगों का मानना है, कि सर्प देवता ने उसे उसके अपराध की सजा दी है। 
पहले वाले मगरमच्छ की मृत्यु हो जाने के बाद बबिया मगरमच्छ उसकी जगह पर उस गुफा की पहरेदारी करने के लिए उपस्थित हो गया।
ऐसा हर बार होता है जब भी गुफा की सुरक्षा में लगा हुआ मगरमच्छ मृत्यु को प्राप्त होता है। उसकी जगह पर दूसरा मगरमच्छ अपने आप ही उसका स्थान ले लेता है। यह कहां से आते हैं कोई नहीं जानता। यहां पर ऐसी मान्यता है, कि अगर आप इस झील में बबिया मगरमच्छ को तैरता हुआ देख लेते हैं तो आपकी किस्मत बदल सकती है बबिया अच्छे भाग्य का प्रतीक माना जाता है।

Wednesday, September 16, 2020

विश्वकर्मा पूजा, के दिन इस प्रकर करे पूजा। भूलकर भी न करें ये काम !

विश्वकर्मा पूजा के बिना कोई भी तकनीकी कार्य शुभ नहीं होता। इसलिए घर हो या दुकान तकनीकी कार्य शुरू करने से पहले इनका पूजन किया जाता है। विश्वकर्मा पूजा इस साल 16 सितंबर को मनाई जा रही है। ऐसी मान्यता है कि भगवान विश्वकर्मा खुश होते हैं तो बिजनेस में दिन दूनी रात चौगुनी तरक्‍की होती है। भगवान विश्वकर्मा ने पूरी सृष्टि का निर्माण किया है और इन्हें सृष्टि का निर्माणकर्ता कहा जाता है।

विश्वकर्मा पूजा इस साल 17 सितंबर को मनाई जा रही है। दरअसल इस बार 16 सितंबर को शाम 7 बजकर 23 मिनट पर संक्रांति है, इसलिए विश्वकर्मा जयंती 17 सितंबर को ही मनाई जाएगी। यह पूजा खासकर देश के पूर्वी प्रदेशों में मनाई जाती है, जैसे असम, त्रिपुरा, वेस्ट बंगाल, ओड़िशा, बिहार, झारखंड। कहते हैं कि विश्वकर्मा भगवान ने ही ब्रह्मा जी की सृष्टि के निर्माण में मदद की थी और पूरे संसार का नक्शा बनाया था। शास्त्रों के अनुसार विश्वकर्मा भगवान वास्तुदेव के पुत्र हैं। ऐसा भी कहा जाता है कि पांडवों के लिए माया सभा भी विश्वकर्मा भगवान ने ही बनाई थी। ऋग वेद में कहा गया है कि स्थापत्य वेद जो मशीन और आर्किटेक्टर की साइंस है, उसे भी विश्वकर्मा भगवान ने बनाया है। एक तरह से इन्हें भगवान विश्वकर्मा को पूरी दुनिया का सबसे पहला इंजीनियर कहा जाता है।

विश्वकर्मा पूजा की विधि
विश्वकर्मा पूजा के लिए भगवान विश्वकर्मा की प्रतिमा को विराजित कर इनकी पूजा की जाती है। हालांकि बहुत से लोग अपने कल-पुर्जे को ही भगवान विश्वकर्मा मानकर उसकी पूजा करते हैं। इस दिन कई जगहों पर यज्ञ का भी आयोजन किया जाता है। पूजा में बैठने से पहले स्‍नान कर लें और भगवान विष्‍णु का ध्‍यान करने के बाद एक चौकी पर भगवान विश्वकर्मा की मूर्ति या तस्‍वीर रखें। फिर अपने दाहिने हाथ में फूल, अक्षत लेकर मंत्र पढ़ें और अक्षत को चारों ओर छिड़के दें और फूल को जल में छोड़ दें। इसके बाद हाथ में रक्षासूत्र, मौली या कलावा बांधे। फिर भगवान विश्वकर्मा का ध्यान करने के बाद उनकी विधिव‍त पूजा करें। पूजा के बाद विविध प्रकार के औजारों और यंत्रों को जल, रोली, अक्षत, फूल और मि‍ठाई से पूजें और फिर विधिव‍त हवन करें।

घर में ऐसे करें पूजा
इस दिन कार्यालयों और कारखानों के साथ ही घर में भी सभी मशीनों की पूजा करनी चाहिए। चाहे बिजली के उपकरण हो या फिर बाहर खड़ी गाड़ी, विश्वकर्मा पूजा के दिन सभी की सफाई करें। अगर जरूरी हो तो ऑयलिंग और ग्रीसिंग भी करें। इस दिन इनकी देखभाल किसी मशीन की तरह न करके, इस प्रकार करें जिससे प्रतीत हो कि आप भगवान विश्वकर्मा की ही पूजा कर रहे हैं।
भगवान विश्वकर्मा की पूजा का मंत्र
ॐ आधार शक्तपे नम: और ॐ कूमयि नम:, ॐ अनन्तम नम:, ॐ पृथिव्यै नम:

विश्वकर्मा पूजा पर भूलकर भी न करें ये काम
उपकरण का न करें इस्तेमाल, मान्यता है कि इस दिन लोगों का अपने कारखाने फैक्ट्रियां बंद रखनी चाहिए।ऐसा करने के साथ ही वहां मौजूद मशीनों, उपकरणों और औजारों की पूजा करने से घर में बरकत आती है।इस दिन लोगों को किसी भी तरह की मशीनों और औजारों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।

भूलकर भी मांस-मदिरा का सेवन न करें
इस दिन तामसिक भोजन यानी मांस-मदिरा का सेवन नहीं करना चाहिए। साथ ही अपने व्यापार और रोजगार को बढ़ाने के लिए इस दिन गरीब और जरूरतमंद लोगों को दान जरूर देना चाहिए। रोजमर्रा में इस्तेमाल करने वाली चीजों का करें सम्मान। भगवान विश्वकर्मा को देवताओं का शिल्पकार माना जाता है। इस दिन किसी भी प्रकार के औजार का इस्तेमाल न करें। भले ही ये उपकरण घर के ही क्यों न हों, लेकिन उनके इस्तेमाल से भी बचना चाहिए। साथ ही मशीनों को इधर-उधर बिखरने से भी बचाना चाहिए। इसके अलावा इस दिन किसी को भी अपने औजार उधार न दें।

Tuesday, September 15, 2020

सर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया पहले सोचो, योजना बनाओ, फिर खूबियों और खामियों को समझने के बाद काम शुरू करो।

विश्वेश्वरैया का जन्म 15 सितम्बर को 1860 में मैसूर रियासत में हुआ था, जो आज कर्नाटका राज्य बन गया है। इनके पिता श्रीनिवास शास्त्री संस्कृत विद्वान और आयुर्वेदिक चिकित्सक थे। इनकी माता वेंकचाम्मा एक धार्मिक महिला थी। जब विश्वेश्वरैया 15 साल के थे, तब उनके पिता का देहांत हो गया था। चिकबल्लापुर से इन्होंने प्रायमरी स्कूल की पढाई पूरी की, और आगे की पढाई के लिए वे बैंग्लोर चले गए। 1881 में विश्वेश्वरैया ने मद्रास यूनिवर्सिटी के सेंट्रल कॉलेज, बैंग्लोर से बीए की परीक्षा पास की। इसके बाद मैसूर सरकार से उन्हें सहायता मिली और उन्होंने पूना के साइंस कॉलेज में इंजीनियरिंग के लिए दाखिला लिया। 1883 में LCE और FCE एग्जाम में उनका पहला स्थान आया। (ये परीक्षा आज के समय BE या B.Tech के रूप में कराई जाती हैं।)
सर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया के जीवन की फिलॉस्फी पहले सोचो, योजना बनाओ, फिर खूबियों और खामियों को समझने के बाद काम शुरू करो। इन्होंने इंजीनियरिंग के क्षेत्र में वो उपलब्धियां हासिल कीं, जो इतिहास में अमर हो गईं। आज इनका जन्मदिन है, जिसे इंजीनियर्स-डे के रूप में सेलिब्रेट किया जाता है। सर मोक्षगुंडम ने अपने दौर में इंजीनियरिंग के क्षेत्र में ऐसे कीर्तिमान रचे जिसका लोहा अंग्रेजों ने भी माना। इंजीनियर्स डे पर उनके जीवन के कुछ किस्से।
जिन अंग्रेजों ने मजाक उड़ाया, उन्हीं ने मांगी माफी विश्वेश्वरैया के जीवन में सबसे दिलचस्प किस्सा अंग्रेजों से जुड़ा है। एक बार वह अंग्रेजों के साथ ट्रेन में सफर कर रहे थे। सांवले रंग और सामान्य कद काठी वाले विश्वेश्वरैया को अनपढ़ समझकर अंग्रेजों ने मजाक उड़ाना शुरू कर दिया। इस पर उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया। ट्रेन तेज रफ्तार में चल रही थी, वे अचानक उठे और चेन खींच दी। ट्रेन वहीं रुक गई। यात्रियों ने उन्हें बुरा भला कहना शुरू कर दिया। थोड़ी देर बाद गार्ड के सवाल करने पर उन्होंने कहा- मैंने चेन खींची है। मेरा अनुमान है कि करीब 220 गज की दूरी पर रेल की पटरी उखड़ी हुई है। गार्ड ने पूछा- यह आपको कैसे पता चला। उन्होंने जवाब दिया- सफर के दौरान अहसास हुआ कि ट्रेन की गति में अंतर आ गया है। पटरी की तरफ से आने वाली आवाज में बदलाव हुआ है। उनकी इस बात की पुष्टि करने के लिए गार्ड जब कुछ दूर आगे चला तो दंग रह गया। वहां पर पटरी के नट-बोल्ट बिखरे पड़े थे। अंग्रेज यह देखकर दंग रह गए और उनसे माफी मांगी।
इकलौते इंजीनियर जिसने 75 फुट ऊंची सीढ़ी पर चढ़ने का साहस जुटाया 
एक बार देश के कुछ चुनिंदा इंजीनियरों को अमेरिका भेजा गया ताकि वे वहां की फैक्ट्रियों की वर्किंग को समझ सकें। फैक्ट्री के एक ऑफिसर ने कहा, अगर मशीन को समझना चाहते हैं तो 75 फुट ऊंची सीढ़ी पर चढ़ना पड़ेगा। इतनी ऊंची सीढ़ी देखकर सभी इंजीनियर पीछे हट गए, लेकिन उस समूह में सबसे उम्रदराज होने के बाद भी डॉ. मोक्षगुंडम ने कहा, मैं देखूंगा। वह सीढ़ी पर चढ़े और मशीन को देखा। उनके बाद सिर्फ दो और इंजीनियर चढ़े। उनका साहस देखकर अमेरिका की फैक्ट्री में लोगों ने तारीफ की।
लम्बी उम्र का रहस्य बताया
102 साल की उम्र में डॉ. मोक्षगुंडम का निधन हुआ। उम्र के इस पड़ाव पर भी वह अंतिम समय तक एक्टिव रहे। एक बार इनसे इतनी लम्बी उम्र का रहस्य पूछा गया है तो उन्होंने जवाब दिया- जब बुढ़ापा मेरा दरवाजा खटखटाता है तो मैं भीतर से जवाब देता हूं कि विश्वेश्वरैया घर पर नहीं है। फिर वह निराश होकर लौट जाता है। बुढ़ापे से मेरी मुलाकात ही नहीं हो पाती है तो वह मुझ पर कैसे हावी हो सकता है।

हैप्पी इंजीनियर्स डे:- हर इंसान इंजिनियर हैं।
हर इंसान इंजिनियर हैं, कुछ मकान बनाते हैं।
कुछ सॉफ्टवेयर बनाते हैं, कुछ मशीन बनाते हैं।।
और कुछ सपने बनाते हैं, और हम जैसे उनकी कहानियों को स्याही में डुबोकर उन्हें अमर बनाते हैं।।
"हैप्पी इंजीनियर्स डे"

हैप्पी इंजीनियर्स डे:- चार साल, 40 विषय, 4 हजार असाइनमेंट, 4 हजार घंटे।
चार साल, 40 विषय, 4 हजार असाइनमेंट, 4 हजार घंटे,
एक आम इंसान ऐसा नहीं कर सकता है।
ऐसे करने वाले सुपर हीरो को,
इंजीनियरिंग के छात्र कहते हैं,
हैप्पी इंजीनियर्स डे।

ENGINEERS DAY WISHES:- जो CTRL + C और CTRL + V का सही इस्तेमाल।
जो Ctrl + C और Ctrl + V का सही इस्तेमाल जानता हैं वही एक अच्छा इंजिनियर बन सकता हैं।
हैप्पी इंजीनियर्स डे।

Monday, September 14, 2020

Hindi Diwas 2020. अंग्रेज़ी, मंदारिन के बाद हिंदी सबसे ज़्यादा बोली जाने वाली भाषा है।

अंग्रेज़ी, मंदारिन के बाद हिंदी सबसे ज़्यादा बोली जाने वाली भाषा है।1953 से ही हिंदी दिवस हम मनाते आ रहे हैं। इथोनोलॉज के मुताबिक दुनियाभर में 61.5 करोड़ लोग हिंदी बोलते हैं। 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा ने एक मत से यह निर्णय लिया कि हिंदी ही भारत की राजभाषा होगी। राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा के अनुरोध पर 1953 से 14 सितंबर का दिन हर साल ‘हिंदी दिवस’ के रूप में मनाया जाने लगा। 1918 में आयोजित हिंदी साहित्य सम्मेलन में महात्मा गांधी ने हिंदी को आम जनमानस की भाषा बताते हुए इसे राष्ट्रभाषा का दर्जा देने के लिए कहा था।
जानें इस दिन से जुड़ी ये खास बातें।

🇮🇳 दक्षिण प्रशांत महासागर क्षेत्र में फिजी नाम का एक द्वीप देश है, जहां हिंदी को आधिकारिक भाषा का दर्जा दिया गया है।

🇮🇳 अमेरिका में लगभग 150 से ज्यादा शैक्षणिक संस्थानों में हिंदी का पठन-पाठन हो रहा है।

🇮🇳 भारत के अलावा मॉरीशस, फिजी, सूरीनाम, गुयाना, त्रिनिदाद एवं टोबैगो और नेपाल में भी हिंदी बोली जाती है।

🇮🇳 हिंदी दुनिया के 30 से अधिक देशों में पढ़ी-पढ़ाई जाती है। लगभग 100 विश्वविद्यालयों में उसके लिए अध्यापन केंद्र खुले हुए हैं।

🇮🇳 हिंदी को वैश्विक स्तर पर बढ़ावा देने के लिए 1975 से ‘विश्व हिंदी सम्मेलन’ का आयोजन शुरू किया गया।

🇮🇳 1997 में हुए एक सर्वेक्षण में पाया गया था कि भारत में 66 फीसदी लोग हिंदी बोलते हैं, जबकि 77 प्रतिशत इसे समझ लेते हैं।
🇮🇳 2016 में डिजिटल माध्यम पर हिंदी में समाचार पढ़ने वालों की संख्या 5.5 करोड़ थी, जो 2021 में बढ़कर 14.4 करोड़ होने का अनुमान है।

🇮🇳 2016 में डिजिटल माध्यम पर हिंदी में समाचार पढ़ने वालों की संख्या 5.5 करोड़ थी, जो 2021 में बढ़कर 14.4 करोड़ होने का अनुमान है।





मैं तो इंसानियत से मजबूर था तुम्हे बीच मे नही डुबोया" मगर तुमने मुझे क्यों काट लिया!

नदी में बाढ़ आती है छोटे से टापू में पानी भर जाता है वहां रहने वाला सीधा साधा1चूहा कछुवे  से कहता है मित्र  "क्या तुम मुझे नदी पार करा ...