प्राचीन समय की बात हैं। स्वारोचिष मन्वन्तर में सुरथ नामके एक परम धार्मिक राजा थे।वे परम उदार थे तथा प्रजा का पुत्रवत पालन करते थे। दुर्योगवश उनके मंत्री शत्रुओं से मिल गये और शत्रुओं ने उन्हें पराजित करके उनका राज्य छीन लिया। निराश होकर राजा सुरथ वन में चले गये। एक दिन भूख-प्यास से व्याकुल अवस्था में परम तपस्वी सुमेधा मुनि के आश्रम में पहुँचे। मुनि के पूछने पर उन्होंने अपनी सम्पूर्ण कथा बतायी। दयालु मुनि ने उनका यथोचित सत्कार किया और उन्हें आश्रम में आश्रय प्रदान किया।
एक दिन महाराज सुरथ एक वृक्ष के नीचे बैठकर अपने खोये हुए राज्य एवं परिवार के विषय में चिन्तन कर रहे थे। इतने में वहां एक वैश्य पहुंचा। उसका नाम समाधि था। उसके पुत्रो ने उसकी सम्पत्ति छीन ली थी और उसे घर से निकाल दिया था। परस्पर समान दुःख से दुःखी होने के कारण थोड़ी ही देर में राजा और वैश्य में प्रगाढ़ मैत्री हो गयी। फिर दोनों अपने शोक- निवारण का उपाय पूछने के लिये सुमेधा मुनि के पास गये और अपने कल्याण का उपाय पूछा।
सुमेधा मुनि ने कहा- वत्स! कल्याण चाहने वाले पुरुषों को चाहिये कि मन, वचन और कर्म से भगवती महामाया की आराधना करें। भगवती की कृपा से सुख, ज्ञान और मोक्ष सब कुछ सहज ही सुलभ हो जाता है। भगवती की प्रसन्नता के लिये व्रत, भगवती का पूजन, निवारण - मंत्र का जप तथा हवन करना चाहिये। नवरात्र-व्रत सम्पूर्ण व्रतों में श्रेष्ठ हैं। भगवती की कृपा से तुम्हारी विघ्न-बाधाएँ दूर हो जायेगी।
इस प्रकार सुमेधा मुनि से उपदेश प्राप्त करके राजा सुरथ और वैश्य एक श्रेष्ठ नदी के तट पर गये, वहां उन्होंने एक निर्जन स्थान पर बैठकर भगवती के मंत्र का जप और ध्यान करना प्रारम्भ कर दिया। तपस्या करते हुए एक वर्ष का समय पूरा हो गया। दूसरे वर्ष उन लोगों ने सूखे पत्ते खाकर तपस्या की। तीसरे वर्ष की तपस्या में उन्होने सूखे पत्तों का भी त्याग कर दिया। कठिन तप से प्रसन्न होकर महामाया भगवती ने उन्हें साक्षात दर्शन दिया और कहा- तुम दोनों की तपस्या से मैं संतुष्ट हो गयी हूँ हे भक्तो! वर माँगो।
देवी की बात सुनकर उन्होंने भगवती से अपने शत्रुओं के विनाश के साथ निष्कंलक राज्य की याचना की। भगवती ने कहा-राजन! अब तुम घर लौट जाओ। तुम्हारे शत्रु तुम्हारा राज्य छोड़कर लौट जायेगे। दस हजार वर्षो तक अखिल भूमण्डल का राज्य करने के बाद अगले जन्म में तुम सूर्य के यहाँ जन्म लेकर मनु के पद को प्राप्त करोगे।
भगवती ने तथास्तु कहकर वैश्य को भी तृप्त कर दिया। इस प्रकार सुरथ भगवती के कृपा प्रसाद से समुद्रपर्यन्त समस्त पृथ्वी का राज्य भोगने लगे और समाधि वैश्य ज्ञान प्राप्त करके मुक्ति पथ के पथिक बने। भगवती के पावन कृपा के इस प्रसंग को पढ़ने और मनन करने से ज्ञान, मोक्ष, यक्ष, सुख- सभी उपलब्ध हो जाते हैं इसमें कुछ भी संशय नही है।
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