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Thursday, September 30, 2021

अखिल भारतीय अखाडा परिषद के अध्य्क्ष रहे ब्रह्मलीन महंत नरेंद्र गिरी के उत्तराधिकारी होंगे शिष्य बलबीर गिरि।

अखिल भारतीय अखाडा परिषद के अध्य्क्ष रहे ब्रह्मलीन महंत नरेंद्र गिरी की हाल ही में संदिग्द परिस्थिति में मौत हो गई थी। महंत नरेंद्र गिरी की मौत के बाद उनके उत्तरधिकारी पर फैसला हो गया है। महंत नरेंद्र गिरी के शिष्य बलवीर गिरी को उत्तराधिकारी बनाया जाएगा।  

यह फैसला अखाड़ा परिषद के पंच परमेश्वरों ने वसीयत के आधार पर लिया है। अखाड़ा परिषद के पंच परमेश्वरों ने फैसला लेते हुए महंत बलवीर गिरि को श्री मठ बाघंबरी की गद्दी पर बैठाया जाएगा। 5 अक्टूबर को होने वाले नरेंद्र गिरी के षोडशी संस्कार के मौके पर बाघंबरी मठ की कमान बलवीर गिरि को सौंपी जाएगी। वसीयत के आधार पर ही मठ का उत्तराधिकारी चुना जाता है।

महंत नरेन्द्र गिरि की संदिग्द परिस्थिति में मौत हो गई थी। मौत के बाद महंत जी के कमरे से एक सुसाइड नोट मिला था। इसमें बलवीर गिरि को उत्तराधिकारी घोषित किया था। हालांकि बाद में इस सुसाइड नोट की विश्वसनीयता पर सवाल उठे। मठ पंच परमेश्वरों ने सुसाइड नोट को फर्जी बताया और बलवीर गिरि को उत्तराधिकारी बनाने से इनकार कर दिया था। हालांकि नरेन्द्र गिरि की अब वसीयत सामने आई है।

इसमें जून 2020 में बलवीर गिरि को अपना उत्तराधिकारी बनाया है। हैरानी की बात ये है कि वसीयत के आधार पर ही मठ का उत्तराधिकारी चुना जाता है। 2004 में महंत नरेंद्र गिरि भी वसीयत के आधार पर ही मठाधीश बने थे। दरअसल, महंत नरेंद्र गिरि संदिग्ध मौत के बाद उनका सुसाइड नोट मिला था, जिसमें उन्होंने बलवीर गिरि को उत्तराधिकारी घोषित किया था।लेकिन मठ पंच परमेश्वरों ने सुसाइड नोट को फर्जी बताते हुए बलवीर गिरि को उत्तराधिकारी बनाने से इनकार कर दिया था।

एक मीडिया पोर्टल ने नरेंद्र गिरि की रजिस्टर्ड वसीयत का खुलासा किया था, जिसमे उन्होंने जून 2020 में बलवीर गिरि को अपना उत्तराधिकारी बनाया है। बता दें वसीयत के आधार पर ही मठ का उत्तराधिकारी चुना जाता है। 2004 में महंत नरेंद्र गिरि भी ऐसे ही मठाधीश बनें थे। 

महंत नरेंद्र गिरि ने तीन वसीयत बनाई थी. पहले वसीयत में उन्होंने बलवीर गिरि को उत्तराधिकारी बनाया था। इसके बाद 2011 में एक दूसरी वसीयत बनवाई,जिसमें आनंद गिरि को उत्तराधिकारी बनाया। लेकिन आनंद गिरि से विवाद के बाद उन्होंने अपनी पहले की दोनों वसीयतों को रद्द करते हुए तीसरी वसीयत बनाई जिसमें एक बार फिर उन्होंने बलवीर गिरि को उत्तराधिकारी बनाया।

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