मैं देखूँगा।
मैं वो फिल्म इसलिए देखूँगा कि मुझे आग की उस तपिश को महसूस करना है, जिस आग में वर्षो से हमारे कश्मीरी भाई बहनों की आत्माएँ सुलग रही है। मैं जानना चाहूँगा कि जब एक सत्ताधारी ने सहानुभूति जताने के लिए भी नफरत के साथ नकार दिया तो बाराँ नरसंहार के रोते बिलखते घायलों पर क्या बीती थी। सिनेमा हॉल में हमारी भीड़ कश्मीरी पंडितों के उन जख्मों पर एक मरहम होगा , जिसे कभी भी जख्म समझा ही नहीं गया।
हाँ हम देखेंगे। क्यों कि हमें उस मशाल को बुझने नहीं देना है, जिसे कभी भी जलायी ही नहीं गई! मैं देखना चाहूँगा कि जब पृथ्वी राज चौहान को कैद कर के ले जाया गया था, तब हिंदुस्तान पर क्या बीत रही थी? देश के बंटवारे के समय लाहौर से आती ट्रेनों से बहते लहू की गर्मी महसूस करना है हमें! हिंदुकुश में हिंदुओं के उड़ते चिथड़ों को देखकर भविष्य के लिए सजग रहना है हमें!
महाराणा प्रताप के घास की रोटी का स्वाद महसूस करना है हमें! द कश्मीर फाइल्स देखना है हमें! और मारना है एक तमाचा। फिल्मी दुनियाँ के उन तमाम अर्धपुरुषों को....जो स्वाँग करते करते सदैव के लिए बृहन्नला हो गए हैं!
अरे! मैंने सुना है कि फिल्मी दुनियाँ में एक मर्द आया है!जो सीना ठोक कर कहता है कि " पद्म श्री " किसी को खामोश रहने के लिए भी दिया जाता है!
अब तो फिल्म देखना ही पड़ेगा!
अब तो फिल्म देखना ही पड़ेगा!
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