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Friday, August 14, 2020

वीर सावरकर के साथ आखिर क्यों हुआ अन्याय?

45 साल के महात्मा गाँधी 1915 में भारत आये, 2 दशक से भी ज्यादा दक्षिण अफ्रीका में बिता कर। इससे 4 साल पहले 28 वर्ष का एक युवक अंडमान में एक कालकोठरी में बन्द। अंग्रेज दिन भर कोल्हू में बैल की जगह उसे हाँकते हुए तेल पेरवाते थे, रस्सी बटवाते थे और छिलके कूटवाते थे। वो तमाम कैदियों को शिक्षित कर रहा था, उनमें राष्ट्रभक्ति की भावनाएँ प्रगाढ़ कर रहा होता था और साथ ही दीवालों कर कील, काँटों और नाखून से साहित्य की रचना कर रहा था। उसका नाम था विनायक दामोदर सावरकर। जो आगे चलकर वीर सावरकर बने। उन्हें आत्महत्या के ख्याल आते थे। उस खिड़की की ओर एकटक देखते रहते थे, जहाँ से अन्य कैदियों ने पहले आत्महत्या की थी। पीड़ा असह्य हो रही थी। यातनाओं की सीमा पार हो रही थी। अंधेरा उन कोठरियों में ही नहीं, दिलोदिमाग पर भी छाया हुआ था। दिन भर बैल की जगह खटो, रात को करवट बदलते रहते थे। 11 साल ऐसे ही बीता दिए। कैदी उनकी इतनी इज्जत करते थे कि मना करने पर भी उनके बर्तन, कपड़े वगैरह धो देते थे, उनके काम में मदद करते थे। सावरकर से अँग्रेज बाकी कैदियों को दूर रखने की कोशिश करते थे। अंत में बुद्धि को विजय हुई तो उन्होंने अन्य कैदियों को भी आत्महत्या से विमुख किया।
लेकिन नहीं, महा गँवारों का कहना है कि सावरकर ने मर्सी पेटिशन लिखा, सॉरी कहा, माफ़ी माँगी..ब्ला-ब्ला-ब्ला। मूर्खों, काकोरी कांड में फसे क्रांतिकारी रामप्रसाद बिस्मिल ने भी माफ़ी माँगी थी, तो? उन्हें भी 'डरपोक' करार दोगे? बताओ। उन्होंने भी माफ़ी माँगी थी अंग्रेजों से। क्या अब इस कसौटी पर क्रांतिकारियों को तौला जाएगा? शेर जब बड़ी छलाँग लगाता है तो कुछ कदम पीछे लेता ही है। उस समय उनके मन में क्या था, आगे की क्या रणनीति थी- ये आज कुछ लोग बैठे-बैठे जान जाते हैं। कौन ऐसा स्वतंत्रता सेनानी है जिसे 11 साल कालापानी की सज़ा मिली हो। नेहरू? गाँधी? कौन?
नानासाहब पेशवा, महारानी लक्ष्मीबाई और वीर कुँवर सिंह जैसे कितने ही वीर इतिहास में दबे हुए थे। 1857 को सिपाही विद्रोह बताया गया था। तब इसके पर्दाफाश के लिए 20-22 साल का एक युवक लंदन की एक लाइब्रेरी का किसी तरह एक्सेस लेकर और दिन-रात लग कर अँग्रेजों के एक के बाद एक दस्तावेज पढ़ कर सच्चाई की तह तक जा रहा था, जो भारतवासियों से छिपाया गया था। उसने साबित कर दिया कि वो सैनिक विद्रोह नहीं, प्रथम स्वतंत्रता संग्राम था। उसके सभी अमर बलिदानियों की गाथा उसने जन-जन तक पहुँचाई। भगत सिंह सरीखे क्रांतिकारियों ने मिल कर उसे पढ़ा, अनुवाद किया।
दुनिया में कौन सी ऐसी किताब है जिसे प्रकाशन से पहले ही प्रतिबंधित कर दिया गया था? अँग्रेज कितने डरे हुए थे उससे कि हर वो इंतजाम किया गया, जिससे वो पुस्तक भारत न पहुँचे। जब किसी तरह पहुँची तो क्रांति की ज्वाला में घी की आहुति पड़ गई। कलम और दिमाग, दोनों से अँग्रेजों से लड़ने वाले सावरकर थे। दलितों के उत्थान के लिए काम करने वाले सावरकर थे। 11 साल कालकोठरी में बंद रहने वाले सावरकर थे। हिंदुत्व को पुनर्जीवित कर के राष्ट्रवाद की अलख जगाने वाले सावरकर थे। साहित्य की विधा में पारंगत योद्धा सावरकर थे। आज़ादी के बाद क्या मिला उन्हें? अपमान। नेहरू व मौलाना अबुल कलाम जैसों ने तो मलाई चाटी सत्ता की, सावरकर को गाँधी हत्या केस में फँसा दिया। गिरफ़्तार किया। पेंशन तक नहीं दिया। प्रताड़ित किया। 60 के दशक में उन्हें फिर गिरफ्तार किया, प्रतिबंध लगा दिया। उन्हें सार्वजनिक सभाओं में जाने से मना कर दिया गया।
ये सब उसी भारत में हुआ, जिसकी स्वतंत्रता के लिए उन्होंने अपना जीवन खपा दिया। आज़ादी के मतवाले से उसकी आज़ादी उसी देश में छीन ली गई, जिसे उसने आज़ाद करवाने में योगदान दिया था। शास्त्री जी PM बने तो उन्होंने पेंशन का जुगाड़ किया। वो कालापानी में कैदियों को समझाते थे कि धीरज रखो, एक दिन आएगा जब ये जगह तीर्थस्थल बन जाएगी। आज भले ही हमारा पूरे विश्व में मजाक बन रहा हो, एक समय ऐसा होगा जब लोग कहेंगे कि देखो, इन्हीं कालकोठरियों में हिंदुस्तानी कैदी बन्द थे। सावरकर कहते थे कि तब उन्हीं कैदियों की यहाँ प्रतिमाएँ होंगी। आज आप अंडमान जाते हैं तो सीधा 'वीर सावरकर इंटरनेशनल एयरपोर्ट' पर उतरते हैं। सेल्युलर जेल में उनकी प्रतिमा लगी है। उस कमरे में प्रधानमंत्री भी जाकर ध्यान धरता है, जिसमें सावरकर को रखा गया था। सावरकर का अपमान करने का अर्थ है, अपने आप का अपमान है।

मुंबई के 5 सबसे महंगे घर, इनकी क़ीमत और उसका मालिकाना हक के बारे में जानिए...

हर इंसान का सपना होता है, कि उसके पास सिर छिपाने के लिए एक घर हो। छोटा ही सही पर एक मकान जिसे वो अपना कह सके। दुनिया में ज़्यादातर लोग इस सपने को पूरा करने में ही अपनी पूरी ज़िंदगी बिता देते हैं। लेकिन सपनों की नगरी मुंबई की बात से सायद ही कोई जुदा हो। ये वो शहर है, जो कभी सोता नहीं लेकिन विडंबना तो देखिए इसी शहर में दुनिया के कुछ सबसे महंगे घर बने हैं, जिन्हें सुकून भरी नींद के लिए तैयार किया गया है।
ये घर न केवल शहर के प्रमुख आवासों में से एक हैं, बल्क़ि देश की फ़ाइनेंशियल कैपिटल कहलाने वाली इस नगरी के महत्वपूर्ण लैंडमार्क भी हैं। आज हम आपको मुंबई के 5 सबसे महंगे घरों के बारे में बताएंगे। साथ ही, इन घरों की क़ीमत और उनके मालिक़ों के बारे में भी जानकारी देंगे।

1-एंटीलिया (Antilia)

फ़ोर्ब्स द्वारा इसकी क़ीमत 1 बिलियन डॉलर आंकी गई है। ये न सिर्फ़ मुंबई और भारत में सबसे महंगा घर है, बल्क़ि पूरी दुनिया के सबसे महंगे आवासों में शामिल है। इस आलीशान घर के मालिक मुकेश अंबानी हैं, जो दुनिया के छठे सबसे अमीर शख़्स के तौर पर फ़ोर्ब्स की रियल-टाइम बिलियनेयर लिस्ट में शामिल हैं।
बिज़नेस इनसाइडर के मुताबिक, दक्षिण मुंबई में स्थित एंटीलिया 27 मंज़िलों और 9 हाई-स्पीड एलीवेटर्स से लैस है। इसमें एक बहुमंज़िला गैराज है जो 168 कारों को समायोजित कर सकता है, और इसमें 3 हेलीपैड, एक भव्य बॉलरूम, एक थिएटर, एक स्पा, एक मंदिर और कई सीढ़ीदार बगीचे भी हैं।

2- जटिया हाउस (Jatia House)

मुंबई के मालाबार हिल्स के ऊपर स्थित ये आशियाना आदित्य बिरला ग्रुप के चेयरमैन कुमार मंगलम बिड़ला का है। वे आदित्य बिड़ला समूह के चौथी पीढ़ी के प्रमुख हैं। मिड-डे की एक रिपोर्ट के अनुसार, ये घर 2926 वर्ग मीटर में फैला है और इसमें कम से कम 28,000 वर्ग फ़ुट का एक निर्मित क्षेत्र है। इस घर की क़ीमत 425 करोड़ रुपये है।
3- गुलिता (Gulita)

साउथ मुंबई के वर्ली में स्थित ये घर ईशा अंबानी और पीरामल है। द इकोनॉमिक टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, घर को पीरामल ने 2012 में ख़रीदा था, जिसकी कुल क़ीमत 452 करोड़ रुपये थी। ये पांच मंज़िला आलीशान घर है, जिसमें तीन बेसमेंट हैं। इनमें से दो पार्किंग के लिए रिज़र्व हैं और एक में बड़ा सा लॉन है।
ग्राउंड फ़्लोर में ग्रांड एंटरेंस लॉबी है और ऊपरी मंज़िल मे रहने और खाने के हॉल हैं। साथ ही ट्रिपल-हाई-मल्टी परपस रूम्स के अलावा बेडरूम और सर्कुलर स्टडी भी शामिल है।

4- लिंकन हाउस (Lincoln House)

लिंकन हाउस, जिसे पहले वांकानेर हाउस के रूप में जाना जाता था, शहर की सबसे महंगी हेरिटेज प्रॉपर्टीज़ में से एक है। दक्षिण मुंबई के ब्रीच कैंडी क्षेत्र में 50,000 वर्ग फ़ुट में स्थित इस घर के मालिक साइरस पूनावाला हैं। मिड-डे के मुताबिक़, उन्होंने 2015 में इसे 750 करोड़ रुपये में ख़रीदा था।
ये हवेली मूल रूप से वांकानेर के महाराजा एचएच सर अमरसिंहजी बानसिंहजी के लिए 1993 में ब्रिटिश वास्तुकार क्लाउड बट्टले ने बनाया था।

5- मन्नत (Mannat)

हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, शाहरुख़ ख़ान के बांद्रा में संपत्ति ख़रीदने के दो दशक बाद घर की क़ीमत 200 करोड़ रुपये है। मन्नत छह मंजिला एनेक्सी, कई बेडरूम, एक छत, एक बगीचा, एक एलीवेटर सिस्टम, एक निजी थिएटर, पर्सनल क्वार्टर और एक बड़ा एंटरटेनमेंट स्पेस शामिल है।

Friday, August 7, 2020

2 लाख रुपये लगाकर खड़ा किया बंधन बैंक, 20 पर्सेंट शेयर बेच कमाए 10,600 करोड़।

बंधन बैंक के संस्थापक चंद्र शेखर घोष ने अपनी हिस्सेदारी बेचकर 10,600 करोड़ रुपये की रकम हासिल की है। आरबीआई की ओर से दिए गए दिशानिर्देशों के तहत बैंक के सीईओ घोष ने यह हिस्सेदारी बेची है। बैंक में अब उनकी 60.95% की बजाय 40% हिस्सेदारी होगी। आरबीआई के नियमों के मुताबिक किसी भी वित्तीय संस्थान में किसी एक व्यक्ति की 40 फीसदी से ज्यादा हिस्सेदारी नहीं हो सकती। घोष की ओर से ऐसा न करने के चलते बीते साल आरबीआई ने बंधन बैंक की शाखाओं के विस्तार पर रोक लगा दी थी। बांग्लादेश के एक गरीब परिवार में जन्मे घोष का सफर फर्श से अर्श पर पहुंचने की कहानी है।

कभी साइकल पर चलने वाले घोष कैसे इस मुकाम तक पहुंचे…
चंद्रशेखर घोष का जन्म ग्रेटर त्रिपुरा में 1960 में हुआ था। छह भाई-बहनों में सबसे बड़े घोष के परिवार में कुल 15 सदस्य थे और पिता मिठाई की एक छोटी सी दुकान चलाते थे। परिवार में सबसे बड़े बेटे होने के चलते घोष ने पिता को आर्थिक तौर पर सहारा देने के लिए दूध बेचना शुरू किया था और बच्चों को ट्यूशन पढ़ाकर भी कुछ रुपये कमा लेते थे। हालांकि इस संघर्ष के बीच भी उनकी पढ़ाई जारी रही और स्टैटिस्टिक्स में ढाका यूनिवर्सिटी से उन्होंने एमए किया था। इसके बाद 1985 में वे ढाका स्थित एक BRAC से जुड़े जो बांग्लादेश के गांवों में गरीब महिलाओं को मदद करने वाला इंटरनेशनल ऑर्गनाइजेशन था।
कहते हैं कि यहीं से चंद्रशेखर घोष को बंधन बैंक जैसा कुछ शुरू करने की प्रेरणा मिली। बेहद गरीबी में गुजर कर रहीं महिलाओं को अकसर अपने पतियों की प्रताड़ना भी झेलनी पड़ती थी। घोष को महसूस हुआ कि यदि इन महिलाओं के हाथों में कुछ आर्थिक शक्ति हो तो वे अपने और परिवार के जीवन को तब्दील कर सकती हैं। विलेज वेलफेयर सोसायटी के साथ काम कर चुके घोष ने अपने अनुभव को आगे बढ़ाते हुए महिलाओं के लिए माइक्रोफाइनेंस की संस्था शुरू की। इसके बाद 2001 में उन्होंने महज 2 लाख रुपये से बंधन-कोननगर संस्था की शुरुआत की। यह रकम भी रिश्तेदारों से कर्ज के तौर पर ली गई थी। इसके जरिए वह गरीब महिलाओं को कम दर पर लोन दिया करते थे।
चंद्रशेखर घोष कहते हैं कि जुड़ाव को दर्शाने के लिए उन्होंने ‘बंधन’ शब्द को चुना और फिर इसी नाम से बैंक की स्थापना की। अपने शुरुआती दिनों के बारे में बताते हुए वह कहते हैं, ‘मैं पश्चिम बंगाल के हुगली जिले के छोटे-छोटे गांवों में यात्राएं करता था और महिलाओं को लोन लेने के लिए समझाता था ताकि वे अपने बच्चों को पढ़ा सकें। शुरुआत में महिलाएं संदेह की नजर से देखती थीं।’ इसके बाद 2009 में उन्होंने बंधन को नॉन-बैंकिंग फाइनेंस कंपनी के तौर पर स्थापित किया और 2014 में बैंकिंग का लाइसेंस हासिल किया।

Wednesday, August 5, 2020

जानिए राम मंदिर का डिजाइन किसने और कब बनाया था।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज अयोध्या के राम मंदिर निर्माण के भूमि पूजन की नींव रखी। भूमि पूजन से पहले पीएम मोदी हनुमानगढ़ी में हुनमान जी की पूजा और आरती की। उसके बाद तय मुहूर्त पर पीएम मोदी ने राम मंदिर की आधार शिला रखी। जिसके बाद अब मंदिर का निर्माण कार्य शुरू हो जाएगा। लेकिन क्या आप जानते हैं कि राम मंदिर का भव्य निर्माण कौन कर रहा है। ये वहीं आर्किटेक्ट हैं जिन्होंने 31 साल पहले 
इसकी नींव रखी थी।
दरअसल गुजरात के चंद्रकांत भाई सोमपुरा ने आज से 31 साल पहले राम मंदिर का डिजाइन तैयार किया था। गुजरात के आर्किटेक्ट चंद्रकांत भाई सोमपुरा ने बताया है कि अशोक सिंघल उन्हें अयोध्या लेकर गए थे और अशोक सिंघल ने उनसे मंदिर बनाने के लिए डिजाइन तैयार करने के लिए कहा था।
वीएचपी ने 31 साल पहले गुजरात के आर्किटेक्ट चंद्रकांत भाई सोमपुरा से राम मंदिर का मॉडल बनवाया था। चंद्रकांत भाई सोमपुरा ने एक न्यूज़ चैनल से बातचीत में बताया है कि उन्होंने जो डिजाइन बनाई है, वैसा मंदिर निर्माण होने में तकरीबन तीन साल का समय लग सकता है।
उन्होंने बताया है कि मंदिर नागर शैली का है। इसकी लंबाई 270 फीट है, मंदिर 145 फीट चौड़ा है और 145 फीट ऊंचा है। गर्भगृह, चौकी, सीता मंदिर, लक्ष्मण मंदिर, भरत मंदिर और गणेश मंदिर है। चार द्वार हैं। कथाकुंज, स्टाफ का रूम आदि भी बनाया गया है।
सोमपुरा का कहना है कि 31 साल पहले उन्होंने अपने पैर से जमीन मापी थी और उसी के आधार पर मंदिर का डिजाइन तैयार किया था। उनका कहना है कि मंदिर बनने में तीन साल लगेगा। यह मंदिर बाकी मंदिरों से अलग होगा। अष्टकोणीय मंदिर होगा।

Monday, August 3, 2020

हिंदू धर्म में रक्षाबन्धन का महत्व ।

किसी भी धार्मिक अनुष्ठान या पूजा पाठ में रक्षासूत्र बांधते समय सभी आचार्य एक श्लोक का उच्चारण करते हैं। जिसमें रक्षाबन्धन का सम्बन्ध राजा बलि से स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होता है। यह श्लोक रक्षाबंधन का अभीष्ट मंत्र है।
"येन बद्धो बलि: राजा दानवेन्द्रो महाबल:। तेन
त्वामभिबध्नामि रक्षे मा चल मा चल॥"
अर्थात - जिस रक्षासूत्र से महान शक्तिशाली दानवेन्द्र राजा बलि को बांधा गया था,उसी रक्षाबन्धन से मैं तुम्हें बांधता हूं जो तुम्हारी रक्षा करेगा। रक्षाबंधन का त्यौहार श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है।
रक्षाबंधन में राखी या रक्षासूत्र का सबसे अधिक महत्व है। राखी कच्चे सूत जैसे सस्ती वस्तु से लेकर रंगीन कलावे, रेशमी धागे, तथा सोने या चांदी जैसी मंहगी वस्तु तक की हो सकती है। राखी सामान्यतः बहनें भाई को बांधती हैं। परंतु पुत्री द्वारा पिता को, दादा को,चाचा को आथवा कोई भी किसी को भी सम्बन्ध मधुर बनाने की भावना से,सुरक्षा की कामना के साथ रक्षासूत्र बाँध सकता है | 
प्रकृति संरक्षण के लिए वृक्षों को राखी बांधने की परंपरा भी प्रारंभ हो गई है| सनातन परम्परा में किसी भी कर्मकांड व अनुष्ठान की पूर्णाहुति बिना रक्षा सूत्र बांधे पूरी नहीं होती |

Sunday, August 2, 2020

रक्षाबंधन पर्व का धार्मिक और पौराणिक महत्व।

श्रावण मास की पूर्णिमा को रक्षाबंधन का त्योहार मनाया जाता है। इस साल यह त्योहार 3 अगस्त को पड़ रहा है। इस दिन बहनें सज-संवरकर मेहंदी रचे हाथों से भाइयों को तिलक कर दाहिनी कलाई पर राखी बांधती हैं। 
धार्मिक और पौराणिक कथाओं के अनुसार !
द्रौपदी और भगवान श्री कृष्ण की कथा
महाभारत काल के दौरान, शिशुपाल के वध के समय भगवान कृष्ण की कलाई पर चोट लग गई, जहां से उनका खून बहने लगा। भगवान श्री कृष्ण की कलाई से यूं रक्त बहता देख पांडवों की पत्नी द्रौपदी ने तुरंत अपनी साड़ी का एक किनारा फाड़कर उसे भगवान कृष्ण की कलाई पर बांध दिया, जिससे उनका खून बहना बंद हो गया। इसी समय श्री कृष्ण ने द्रौपदी को अपनी बहन स्वीकार कर, उसकी रक्षा करते हुए उसके आंचल के एक-एक सूत का कर्ज उतारने का वचन दिया। माना जाता है कि भगवान कृष्ण ने जरूरत पड़ने पर अपना वचन निभाया भी और जिस समय पांडव द्रौपदी को जुए में हार गए थे और भरी सभा में उनका चीरहरण हो रहा था तब वह स्वयं श्रीकृष्ण ही थे जिन्होंने द्रौपदी की लाज बचाई थी। मान्यता अनुसार तभी रक्षाबंधन का पर्व मनाने की शुरुआत हुई। उस दिन से आज तक यह पर्व मनया जाता है।
रक्षाबंधन मनाने की सही विधि
👉रक्षाबंधन के दिन सुबह भोर में उठकर स्नान आदि कर स्वच्छ कपड़े पहनें।
👉फिर चावल, कच्चे सूत का कपड़ा, सरसों, रोली को एक साथ मिलाकर, पूजा की थाली तैयार करें।
👉पूजा की थाली में शुद्ध देसी घी का एक दीप जलाएं, साथ ही थाली में कुछ मिठाई भी रखें।
👉इसके बाद यदि आपका भाई आपके साथ है तो, उसे एक पीढ़े पर बिठाएं. वहीं यदि भाई किसी कारणवश आप से दूर है तो, आप उसके स्थान पर उसकी कोई तस्वीर भी रख सकते हैं।
👉इसके बाद शुभ मुहूर्त अनुसार भाई को रक्षा सूत्र बांधते वक्त, उसको पूर्व दिशा की ओर मुंह करके बिठाएं।
👉इसके साथ ही ध्यान रहे कि भाई को तिलक लगाते समय, बहन का मुख भी पश्चिम दिशा की ओर होना चाहिए।
👉इसके बाद भाई के माथ पर टीका लगाकर, उसके दाहिने हाथ पर रक्षा सूत्र बांधें।
👉इसके पश्चात भाई की आरती उतारें और उसे मिठाई खिलाएं।
👉अब यदि बहन बड़ी हो तो छोटे भाई को उसके पैर छूकर आशीर्वाद लेना चाहिए और छोटी हो तो उसे बड़े भाई को प्रणाम करते हुए उसका आशीर्वाद लेना चाहिए।
रक्षाबंधन पर्व का धार्मिक और पौराणिक महत्व

देवताओं और इंद्राणी की कथा रक्षाबंधन पर्व के मनाने को लेकर भी कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। उन्हीं कहानियों में से एक का उल्लेख भविष्य पुराण में किया गया है। इस कथा के अनुसार पौराणिक काल में, देवों और दानवों के बीच जब भयंकर युद्ध हुआ तो उस दौरान देवता असुरों से हारने लगे। तब सभी देव अपने राजा इंद्र के पास उनकी सहायता के लिए गए। असुरों से भयभीत देवताओं को देवराज इंद्र की सभा में देखकर, देवइंद्र की पत्नी इंद्राणी ने सभी देवताओं के हाथों पर एक रक्षा सूत्र बांधा। माना जाता है कि इसी रक्षा सूत्र ने देवताओं का आत्मविश्वास बढ़ाया जिसके कारण वो बाद में दानवों पर विजय प्राप्त करने में सफल रहे। कहा जाता है कि तभी से राखी बांधने की प्रथा प्रारम्भ हुई।

Saturday, August 1, 2020

"स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर ही रहूँगा" लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक कि जयंती।

 महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक (Bal Gangadhar Tilak) की आज जयंती है। उनका जन्म 23 जुलाई, 1856 को महाराष्ट्र के कोंकण प्रदेश (रत्नागिरी) के चिखली गांव में हुआ था। बाल गंगाधर तिलक को लोकमान्य तिलक के नाम से भी जाना जाता है। लोकमान्य का शीर्षक भी इन्हीं को दिया गया था। स्वतंत्रता सेनानी के अलावा उनको समाज सुधारक, दार्शनिक, प्रखर चिंतक, शिक्षक और पत्रकार के तौर पर भी जाना जाता है।
'स्वराज यह मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर ही रहूंगा'
बचपन से ही मेधावी छात्र बाल गंगाधर तिलक रत्नागिरी गांव से निकलकर आधुनिक कालेज में शिक्षा पाने वाले ये भारतीय पीढ़ी के पहले पढ़े लिखे नेता थे। कुछ समय तक उन्होंने स्कूल और कॉलेज के छात्रों को गणित की भी शिक्षा दी। उन्होंने देश में शिक्षा के स्तर को सुधारने के लिए काफी काम किया, इसके लिए उन्होंने दक्कन शिक्षा सोसायटी की भी स्थापना की थी।
राजनीतिक सफर
ब्रिटिश सरकार की नीतियों के विरोध चलते एक समय उन्हें मुकदमे और उत्पीड़न का सामना करना पड़ा। उन्होंने कांग्रेस पार्टी ज्वाइन करके काफी समय तक काम किया, लेकिन बाद में पार्टी नरमपंथी रवैये को देखते हुए वो अलग हो गए। इसके बाद पार्टी के दो हिस्से हो गए, और बाल गंगाधर तिलक के साथ लाला लाजपत राय और बिपिन चन्द्र पाल, अलग हिस्से में शामिल हो गए। 1908 में तिलक ने क्रान्तिकारी प्रफुल्ल चाकी और खुदीराम बोस के बम हमले का समर्थन किया जिसकी वजह से उन्हें बर्मा (अब म्यांमार) स्थित मांडले की जेल भेज दिया गया। जेल से छूटकर वे फिर कांग्रेस में शामिल हो गए और 1916 में एनी बेसेंट और मुहम्मद अली जिन्ना के साथ अखिल भारतीय होम रूल लीग की स्थापना की। इसके अलावा ब्रिटिश सरकार की नीतियों की आलोचना करने और भारतीयों को पूर्ण स्वराज देने की मांग के चलते उन्हें कई बार जेल भी जाना पड़ा। उन्होंने अपने अखबारों के जरिए भी ब्रिटिश शासन की क्रूरता और भारतीय संस्कृति के प्रति हीन भावना की बहुत आलोचना की। वो अपने मराठी अखबार 'केसरी' में अंग्रेजों के खिलाफ काफी आक्रामक लेख लिखते थे। इन्हीं लेखों की वजह से उनको कई बार जेल भेजा गया।
जिंदगी का अंतिम सफर
ब्रिटिश सरकार ने बाल गंगाधर तिलक को 6 साल की जेल की सजा सुनाई थी और इसी दौरान उनकी पत्नी की मृत्यु हो गई थी। इस कारण वो अपनी मृतक पत्नी के अंतिम दर्शन भी नहीं कर पाए थे। इसके बाद 1 अगस्त, 1920 को मुंबई में उनकी मृत्यु हो गई थी। उनके निधन पर श्रद्धांजलि देते हुए महात्मा गांधी ने उन्हें आधुनिक भारत का निर्माता कहा और जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें भारतीय क्रान्ति का जनक कहा था।

मैं तो इंसानियत से मजबूर था तुम्हे बीच मे नही डुबोया" मगर तुमने मुझे क्यों काट लिया!

नदी में बाढ़ आती है छोटे से टापू में पानी भर जाता है वहां रहने वाला सीधा साधा1चूहा कछुवे  से कहता है मित्र  "क्या तुम मुझे नदी पार करा ...