किसी भी धार्मिक अनुष्ठान या पूजा पाठ में रक्षासूत्र बांधते समय सभी आचार्य एक श्लोक का उच्चारण करते हैं। जिसमें रक्षाबन्धन का सम्बन्ध राजा बलि से स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होता है। यह श्लोक रक्षाबंधन का अभीष्ट मंत्र है।
"येन बद्धो बलि: राजा दानवेन्द्रो महाबल:। तेन
त्वामभिबध्नामि रक्षे मा चल मा चल॥"
अर्थात - जिस रक्षासूत्र से महान शक्तिशाली दानवेन्द्र राजा बलि को बांधा गया था,उसी रक्षाबन्धन से मैं तुम्हें बांधता हूं जो तुम्हारी रक्षा करेगा। रक्षाबंधन का त्यौहार श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है।
रक्षाबंधन में राखी या रक्षासूत्र का सबसे अधिक महत्व है। राखी कच्चे सूत जैसे सस्ती वस्तु से लेकर रंगीन कलावे, रेशमी धागे, तथा सोने या चांदी जैसी मंहगी वस्तु तक की हो सकती है। राखी सामान्यतः बहनें भाई को बांधती हैं। परंतु पुत्री द्वारा पिता को, दादा को,चाचा को आथवा कोई भी किसी को भी सम्बन्ध मधुर बनाने की भावना से,सुरक्षा की कामना के साथ रक्षासूत्र बाँध सकता है |
प्रकृति संरक्षण के लिए वृक्षों को राखी बांधने की परंपरा भी प्रारंभ हो गई है| सनातन परम्परा में किसी भी कर्मकांड व अनुष्ठान की पूर्णाहुति बिना रक्षा सूत्र बांधे पूरी नहीं होती |
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