श्रावण मास की पूर्णिमा को रक्षाबंधन का त्योहार मनाया जाता है। इस साल यह त्योहार 3 अगस्त को पड़ रहा है। इस दिन बहनें सज-संवरकर मेहंदी रचे हाथों से भाइयों को तिलक कर दाहिनी कलाई पर राखी बांधती हैं।
धार्मिक और पौराणिक कथाओं के अनुसार !
द्रौपदी और भगवान श्री कृष्ण की कथा
महाभारत काल के दौरान, शिशुपाल के वध के समय भगवान कृष्ण की कलाई पर चोट लग गई, जहां से उनका खून बहने लगा। भगवान श्री कृष्ण की कलाई से यूं रक्त बहता देख पांडवों की पत्नी द्रौपदी ने तुरंत अपनी साड़ी का एक किनारा फाड़कर उसे भगवान कृष्ण की कलाई पर बांध दिया, जिससे उनका खून बहना बंद हो गया। इसी समय श्री कृष्ण ने द्रौपदी को अपनी बहन स्वीकार कर, उसकी रक्षा करते हुए उसके आंचल के एक-एक सूत का कर्ज उतारने का वचन दिया। माना जाता है कि भगवान कृष्ण ने जरूरत पड़ने पर अपना वचन निभाया भी और जिस समय पांडव द्रौपदी को जुए में हार गए थे और भरी सभा में उनका चीरहरण हो रहा था तब वह स्वयं श्रीकृष्ण ही थे जिन्होंने द्रौपदी की लाज बचाई थी। मान्यता अनुसार तभी रक्षाबंधन का पर्व मनाने की शुरुआत हुई। उस दिन से आज तक यह पर्व मनया जाता है।
रक्षाबंधन मनाने की सही विधि
👉रक्षाबंधन के दिन सुबह भोर में उठकर स्नान आदि कर स्वच्छ कपड़े पहनें।
👉फिर चावल, कच्चे सूत का कपड़ा, सरसों, रोली को एक साथ मिलाकर, पूजा की थाली तैयार करें।
👉पूजा की थाली में शुद्ध देसी घी का एक दीप जलाएं, साथ ही थाली में कुछ मिठाई भी रखें।
👉इसके बाद यदि आपका भाई आपके साथ है तो, उसे एक पीढ़े पर बिठाएं. वहीं यदि भाई किसी कारणवश आप से दूर है तो, आप उसके स्थान पर उसकी कोई तस्वीर भी रख सकते हैं।
👉इसके बाद शुभ मुहूर्त अनुसार भाई को रक्षा सूत्र बांधते वक्त, उसको पूर्व दिशा की ओर मुंह करके बिठाएं।
👉इसके साथ ही ध्यान रहे कि भाई को तिलक लगाते समय, बहन का मुख भी पश्चिम दिशा की ओर होना चाहिए।
👉इसके बाद भाई के माथ पर टीका लगाकर, उसके दाहिने हाथ पर रक्षा सूत्र बांधें।
👉इसके पश्चात भाई की आरती उतारें और उसे मिठाई खिलाएं।
👉अब यदि बहन बड़ी हो तो छोटे भाई को उसके पैर छूकर आशीर्वाद लेना चाहिए और छोटी हो तो उसे बड़े भाई को प्रणाम करते हुए उसका आशीर्वाद लेना चाहिए।
रक्षाबंधन पर्व का धार्मिक और पौराणिक महत्व
देवताओं और इंद्राणी की कथा रक्षाबंधन पर्व के मनाने को लेकर भी कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। उन्हीं कहानियों में से एक का उल्लेख भविष्य पुराण में किया गया है। इस कथा के अनुसार पौराणिक काल में, देवों और दानवों के बीच जब भयंकर युद्ध हुआ तो उस दौरान देवता असुरों से हारने लगे। तब सभी देव अपने राजा इंद्र के पास उनकी सहायता के लिए गए। असुरों से भयभीत देवताओं को देवराज इंद्र की सभा में देखकर, देवइंद्र की पत्नी इंद्राणी ने सभी देवताओं के हाथों पर एक रक्षा सूत्र बांधा। माना जाता है कि इसी रक्षा सूत्र ने देवताओं का आत्मविश्वास बढ़ाया जिसके कारण वो बाद में दानवों पर विजय प्राप्त करने में सफल रहे। कहा जाता है कि तभी से राखी बांधने की प्रथा प्रारम्भ हुई।
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