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Saturday, August 22, 2020

वह संजीवनी तो नही है जिसकी खोज हो रही हैं, पर यह भी किसी संजीवनी से कम नही है।

इस संजीवनी को पत्थर चट्टी, गरुड़ पंजा, हत्था जड़ी, लक्ष्मण बूटी आदि नामों से जाना जाता हैं। अक्सर आपलोगों ने इस पौधे को धार्मिक स्थल या मेलों में बिकते हुए देखा होगा। जब आप उनसे पूछेगे की यह क्या हैं। तो एक ही जवाब आएगा "संजीवनी" वैसे यह वह संजीवनी तो नही है जिसकी खोज हो रही हैं। पर यह भी किसी संजीवनी से कम नही इस पर और अधिक शोध की आवश्यकता है। पत्थरों अथवा चट्टानों पर उगने वाली यह वनस्पति गर्मी के दिनों में सूखकर सिकुड़ जाती है, और वर्षा होते ही पुनः पूर्णतः हरी हो जाती है।

इसके इसी गुण के कारण यह लम्बे समय से वैज्ञानिकों और जनसामान्य के लिए आकर्षण का केंद्र बनी हुयी है। सूखने के बाद पुनः हरा हो जाने के विलक्षण गुण के कारण ही इसे जनसामान्य "संजीवनी बूटी" भी कहा जाता हैं। अन्य पौधों कि तरह यह वनस्पति पानी में डालने से न सिर्फ हरी ही हो जाती है बल्कि पुनः जीवित भी हो जाती है और अनुकूल वातावरण उपलब्ध होने पर बढ़ने (उगने) भी लगती है। पत्थरों के ऊपर उगने के कारण तथा पथरी के रोग में उपयोगी होने के कारण स्थानीय आदिवासी इस वनस्पति को "पत्थरचट्टी" के नाम से भी जानते है। सूखने पर बंद हाथ की मुट्ठी जैसी प्रतीत होने के कारण मध्य प्रदेश के स्थानीय लोग इसे "हत्था जड़ी" के नाम से भी जानते हैं। पक्षी के पंजों जैसे प्रतीत होने वाले इसके शल्कपत्र युक्त पत्तों के कारण कुछ लोग इसको "गरुड़ पंजा" भी कहते है।

ग्रामीण व आदिवासी लोग इसके पौधों को सुखाकर शहरों में अथवा धार्मिक स्थलों या मेलों में बेचने हेतु लाते हैं। सूखे हुए पौधों को पानी में कुछ देर रखते ही वो हरे हो जाते हैं और लोग कौतुहलवश आकर्षित होकर इसको खरीदकर घर में सजाने हेतु ले जाते हैं। लोगो को लुभाने के लिए इसको "रामायण वाली दुर्लभ संजीवनी" के नाम से भी बेचते हैं। जैसा कि उपर्युक्त है कि इस वनस्पति को स्थानीय लोग मूत्राशय कि पथरी के लिए उपयोग करते हैं। इसके साथ ही इसका उपयोग यकृत व गुर्दों के अन्य रोगों में भी उपयोग किया जाता है।


सामान्यतः इसका प्रयोग गर्मी से होने वाले रोगों जैसे नकसीर, जलन, घमौरी, लू लगना आदि में किया जाता है। इसके साथ ही महिलाओं के मासिक धर्म सम्बन्धी विकारों में भी यह बहुत उपयोगी है। यह पेट के रोगों के लिए भी लाभदायक है।

आपके क्षेत्र में इसे किस नाम से जानते है इससे जुड़ी कोई भी जानकारी हो तो अवश्य साझा करें।

क्या आप जानते हैं, अकबर महान को जीवनदान देने वाली, महाराणा प्रताप की भतीजी बाईसा किरणदेवी की महानता।

अकबर की महानता का गुणगान तो कई इतिहासकारों ने किया है, लेकिन अकबर की ओछी हरकतों का वर्णन बहुत कम इतिहासकारों ने किया है। अकबर अपने गंदे इरादों से प्रतिवर्ष दिल्ली में नौरोज़ का मेला आयोजित करवाता था। नौरोज़ का शाब्दिक अर्थ होता है "नया दिन" ईरानी नववर्ष का नाम है, जिसे फारसी नया साल भी कहा जाता है। और मुख्यतः ईरानियों द्वारा दुनिया भर में मनाया जाता है। लेकिन अकबर हर रोज अपना नया साल मानता था। अकबर का नौरोज़ का मेला आप सब में से लगभग हर एक लोगों  को पता है। इसमें पुरुषों का प्रवेश निषेध था।

अकबर इस मेले में महिला की वेष-भूषा में जाता था। और जो महिला उसे मंत्र मुग्ध कर देती थी। उसे दासियाँ छल कपट से अकबर के सम्मुख ले जाती थी। एक दिन नौरोज़ के मेले में महाराणा प्रताप सिंह की भतीजी, छोटे भाई महाराज शक्तिसिंह की पुत्री मेले की सजावट देखने के लिए आई। जिनका नाम बाईसा किरणदेवी था।
उनका विवाह बीकानेर के राजा पृथ्वीराज जी से हुआ था। बाईसा किरणदेवी की सुंदरता को देखकर अकबर अपने आप पर क़ाबू नहीं रख पाया। और उसने बिना सोचे समझे दासियों के माध्यम से धोखे से ज़नाना महल में बुला लिया। जैसे ही अकबर ने बाईसा किरणदेवी को स्पर्श करने की कोशिश की। किरणदेवी ने कमर से कटार निकाली और अकबर को ऩीचे पटक कर उसकी छाती पर पैर रखकर कटार गर्दन पर लगा दी। और कहा 
नींच अधर्मी, तुझे पता नहीं मैं उन महाराणा प्रताप की भतीजी हूँ। जिनके नाम से तेरी नींद उड़ जाती है। बोल तेरी आख़िरी इच्छा क्या है। अकबर का ख़ून सूख गया।


कभी सोचा नहीं होगा कि सम्राट कहलाने वाला अकबर आज एक राजपूत बाईसा के चरणों में होगा। अकबर बोला: मुझसे पहचानने में भूल हो गई। मुझे माफ़ कर दो देवी। इस पर किरण देवी ने कहा। आज के बाद दिल्ली में नौरोज़ का मेला नहीं लगेगा।और किसी भी नारी को तुम परेशान नहीं करोगे। अकबर ने हाथ जोड़कर कहा आज के बाद कभी मेला नहीं लगेगा। उस दिन के बाद कभी मेला नहीं लगा। इस घटना का वर्णन गिरधर आसिया द्वारा रचित सगत रासो में 632 पृष्ठ संख्या पर दिया गया है। बीकानेर संग्रहालय में लगी एक पेटिंग में भी इस घटना को एक दोहे के माध्यम से बताया गया है।

किरण सिंहणी सी चढ़ी उर पर खींच कटार !
भीख मांगता प्राण की अकबर हाथ पसार !!

अकबर की छाती पर पैर रखकर खड़ी वीर बाला किरन का चित्र आज भी जयपुर के संग्रहालय में सुरक्षित रखा गया है। आप सब जा के देख सकते है। अब ऐसे इतिहासकार के बारे में क्या कहा जा सकता हैं। जो राजा महाराणा प्रताप के नाम से काप जाता हो। उनकी भतीजी ने उसे जीवनदान दिए हो ऐसे राजा को महान बता कर देश को मूर्ख बनाया जा सकता है। लेकिन झूठ कभी सच नहीं हो सकता।

Tuesday, August 18, 2020

बारिश की पूर्व सूचना देता है, कानपुर का जगन्नाथ मंदिर। जाने क्या है रहस्य।

आपको ताजमहल अजूबा लगता है, तो यह जानकर आश्चर्य होगा कि हमारे उत्तर प्रदेश के कानपुर में एक ऐसा मंदिर है बारिश की पूर्व सूचना देता है। और बारिश के पूर्व ही मंदिर के छत टपकाने लगता है जो अवदात कराता है कि अब बारिश आने वाली है। जिसको देखकर किसान अपने हल को लेकर खेत में निकाल जाता है खेत की जुताई करने के लिए जिससे बारिश होने के बाद खेती की जा सके। हम बात कर रहे है कानपुर का जगन्नाथ मंदिर की। क्या आप कल्पना कर सकते हैं किसी ऐसे भवन की जिसकी छत चिलचिलाती धूप में टपकने लगे बारिश की शुरुआत होते ही जिसकी छत से पानी टपकना बंद हो जाए।
ये घटना है तो हैरान कर देने वाली लेकिन सच है। उत्तर प्रदेश की औद्योगिक नगरी कहे जाने वाले कानपुर जनपद के भीतरगांव विकास खंड से ठीक तीन किलोमीटर की दूरी पर एक गांव है बेहटा यहीं पर है धूप में छत से पानी की बूंदों के टपकने और बारिश में छत के रिसाव के बंद होने का रहस्य यह घटनाक्रम किसी आम ईमारत या भवन में नहीं बल्कि यह होता है, भगवान जगन्नाथ के अति प्राचीन मंदिर में। छत टपकने से हो जाती है बारिश की आभास ग्रामीण बताते हैं, कि बारिश होने के छह-सात दिन पहले मंदिर की छत से पानी की बूंदे टपकने लगती हैं, इतना ही नहीं जिस आकार की बूंदे टपकती हैं उसी आधार पर बारिश होती है।

अब तो लोग मंदिर की छत टपकने के संदेश को समझकर जमीनों को जोतने के लिए निकल पड़ते हैं।हैरानी में डालने वाली बात यह भी है कि जैसे ही बारिश शुरु होती है छत अंदर से पूरी तरह सूख जाती है।
वैज्ञानिक भी नहीं जान पाए रहस्य -
मंदिर की प्राचीनता व छत टपकने के रहस्य के बारे में मंदिर के पुजारी बताते हैं, कि पुरातत्व विशेषज्ञ एवं वैज्ञानिक कई दफा आए लेकिन इसके रहस्य को नहीं जान पाए हैं अभी तक बस इतना पता चल पाया है कि मंदिर के जीर्णोद्धार का कार्य 11वीं सदी में किया गया
मंदिर की बनावट बौद्ध मठ की तरह है। इसकी दिवारें 14 फीट मोटी हैं, जिससे इसके सम्राट अशोक के शासन काल में बनाए जाने के अनुमान लगाए जा रहे हैं। वहीं मंदिर के बाहर मोर का निशान व चक्र बने होने से चक्रवर्ती सम्राट हर्षवर्धन के कार्यकाल में बने होने के कयास भी लगाए जाते हैं। लेकिन इसके निर्माण का ठीक-ठीक अनुमान अभी तक कोई भी नहीं लगा पाया है।

भगवान जगन्नाथ का यह मंदिर अति प्राचीन है। मंदिर में भगवान जगन्नाथ बलदाऊ व सुभद्रा की काले चिकने पत्थरों की मूर्तियां विराजमान हैं प्रांगण में सूर्यदेव और पद्मनाभम की मूर्तियां भी हैं। जगन्नाथ पुरी की तरह यहां भी स्थानीय लोगों द्वारा भगवान जगन्नाथ की यात्रा निकाली जाती है। लोगों की आस्था मंदिर के साथ गहरे से जुड़ी है लोग दर्शन करने के लिए दूर दूर से आते रहते हैं।

Monday, August 17, 2020

आर्माडिलो एक ऐसा स्तनधारि जीव है जिसका कोई भी खूंखार जानवर कुछ नहीं बिगड़ सकता।

आर्माडिलो अमेरिकी महाद्वीप में पाया जाने वाला एक स्तनधारी जीव है। जो बहुत चालक और फुर्तीला जीव है। यह जीव किसी भी खतरे को आसानी से भाप लेता है। और खतरे के अनुसार अपने शरीर को बना लेता है। इसके शरीर के ऊपरी परत काफी मजबूत होता है।


आर्माडिलो साउथ अमेरिका का सबसे विचित्र जीवो में से एक है, जो विपत्ति के समय अपने आप को समेट कर काफी छोटा कर लेता है।


"आर्माडिलो" दुनिया का एक ऐसा जीव है, जिसकी बाहरी त्वचा बुलेप्रूफ जैकेट के सामान होती है। जो खूंखार जानवरो से उसकी रक्षा करता है। और कोई भी खूंखार जानवर उसकी कोई छती नहीं पहुंचता।


Sunday, August 16, 2020

एक एपिसोड का कितना चार्ज करते है, द कपिल शर्मा शो के हास्य कलाकार खजूर।

इंडिया बेस्ट ड्रामेबाज़’ सीजन 2 से अपने करियर की शुरुआत करने वाले कार्तिकेय राज आज किसी परिचय के मोहताज नहीं है। बिहार के पटना से आने वाले 12 साल के कॉमेडियन कार्तिक राज आपको तो याद ही होगा। टीवी चैनल के रियलिटी शो 'इंडिया बेस्ट ड्रामेबाज सीजन-2' के फाइनल में कार्तिक को कॉमिक रोल में बेस्ट एक्टर का अवॉर्ड मिला था। ये अवॉर्ड शो में मेहमान बनकर आए खुद कपिल शर्मा ने दिया था। कार्तिक की कॉमिक टाइमिंग को देखते हुए शो के जज साजिद खान और विवेक ऑबरॉय ने इनकी तुलना एक्टर गोविंदा तक से कर दी थी।

बिहार के पटना का रहने वाला 12 साल का वो लड़का जिसे ‘द कपिल शर्मा शो’ (The KapilSharma Show)ने नया नाम दिया था- खजूर। कपिल शर्मा शो का हिस्सा बनने से पहले खजूर को लोग उनके असल नाम कार्तिकेय राज (Kartikey Raj) से ही जानते थे। लेकिन साल 2016 में जब वे कपिल के नजरों में आए तो उनकी ना सिर्फ किस्मत बदली बल्कि टीवी की दुनिया में वो नन्हें हास्य कलाकार के रूप में भी ख्याति पाए।

 
मां है टेलर, पिता करते हैं 
जानकारी के मुताबिक, कार्तिक की मां कपड़े सिलतीं हैं जबकि पिता राजमिस्त्री (घर में बनाने वाले मजदूर) का काम करते हैं। मम्मी-पापा के अलावा कार्तिक की फैमिली में इनकी दो बहनें भी हैं, जो बिहार में पढ़ाई कर रही हैं।

आपको बता दें कि खजूर उर्फ कार्तिक राज की हर एक एपिसोड का चार्ज 1 से 2 लाख रुपया चार्ज करते है जो इस उम्र में आम लड़को की कमाई से कहीं ज्यादा है।

पारसी समुदाय के लोगों को नवरोज मंगलमय हो।

पारसी नववर्ष पारसी समुदाय में बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। पारसी धर्म में इसे खौरदाद साल के नाम से जाना जाता है। पारसियों में 1 साल 360 दिन का होता है और बाकी बचें 5 दिन गाथा के रूप में अपने पूर्वजों को याद करने के लिए रखा जाता है। साल के खत्म होने के ठीक 5 दिन पहले इसे मनाया जाता है।

दरअसल सातवीं शाताब्दी में जब ईरान में धर्म परिवर्तन की मुहिम चली तो वहां के कई पारसियों ने अपना धर्म परिवर्तित कर लिया, लेकिन कई पारसी जिन्हें यह धर्म परिवर्तन करना मंजूर नहीं था वे लोग ईरान को छोड़कर भारत आ गए। और इसी धरती पर अपने संस्कारों को सहेज कर रखना शुरू कर दिया।

लोक कथाओं के मुताबिक नबी जरथुश्त्र ने यह पर्व बनाया था और यह त्योहार आज भी महाराष्ट्र के अधिकांश हिस्सों में एक मुख्य त्योहार के रूप में मनाते हैं। वैसे तो पूरे विश्व के दूसरे पारसी समुदायों के बीच 21 मार्च को नवरोज का पर्व मनाया जाता है। नवरोज़, फारस के राजा जमशेद की याद में मनाते हैं, जिन्होंने पारसी कैलेंडर की स्थापना की थी। इस दिन पारसी परिवार के लोग नए कपड़े पहनकर अपने उपासना स्थल फायर टेंपल जाते हैं और प्रार्थना के बाद एक दूसरे को नए साल की मुबारकबाद देते हैं। साथ ही इस दिन घर की साफ-सफाई कर घर के बाहर रंगोली बनाई जाती है और कई तरह के पकवान भी बनते हैं।

भारत में पारसी समुदाय के लोग एक छोटे से अल्पसंख्यक समुदाय है, लेकिन दशकों में विभिन्न क्षेत्रों में प्रख्यात व्यक्तित्वों का उत्पादन किया है। पारसी नव वर्ष को नवरोज भी कहा जाता है। पारसी भाषा में नव का मतलब नया और रोज का मतलब दिन होता है, तो नवरोज को नया दिन कहा जाता है। इस दिन से नए पारसी कैलेंडर की शुरूआत की जाती है।




Saturday, August 15, 2020

भारत की बहू नेताजी सुभाष चंद्र बोस की धर्मपत्नी श्रीमती "एमिली शेंकल" जिनको भारत ने कभी नहीं स्वीकारा।

आज हम बात कर रहे हैं, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की धर्मपत्नी एमिली शेंकल की जिन्होंने अपनी सारी जिंदगी गुमनामी में बीता दिया। ये है भारत की असली बहू नेताजी सुभाष चंद्र बोस की धर्मपत्नी जिनका भारत ने कभी स्वागत नहीं किया। श्रीमती "एमिली शेंकल" ने 1937 में भारत मां के सबसे लाडले बेटे नेताजी सुभाष चन्द्र बोस से विवाह किया।
एक ऐसे देश को ससुराल के रूप में चुना जहां कभी इस "बहू" का स्वागत नहीं किया गया, न बहू के आगमन पर मंगल गीत गाये गये, न बेटी अनीता बोस के जन्म होने पर कोई सोहर ही गाया गया। यहां तक गुमनामी की इतनी मोटी चादर के नीचे उन्हें ढंक दिया गया कि कभी जनमानस में चर्चा भी नहीं हुआ। अपने 7 साल के कुल वैवाहिक जीवन में पति के साथ इन्हें केवल 3 साल रहने का मौका मिला, फिर इन्हें और नन्हीं सी बेटी को छोड़कर बोस जी देश के लिए लड़ने चले गये। अपनी पत्नी से इस वादे के साथ गये की पहले देश आजाद करा लूँ फिर हम साथ-साथ रहेंगे, पर अफसोस कि ऐसा नहीं हुआ क्योंकि कथित विमान दुर्घटना में बोस जी लापता हो गए।
उस समय "एमिली शेंकल" बेहद युवा थीं वो चाहती तो युरोपीय संस्कृति के अनुसार दूसरी शादी कर लेती पर नहीं की और बेहद कठिन तरीके से जीवन गुजारा।आपको जान कर बेहद दु:ख होगा कि एक तारघर में मामूली क्लर्क की नौकरी और बेहद कम वेतन के साथ वो अपनी बेटी को पालती रही। तब तक भारत आजाद हो गया था वो चाहती थी, उनका बहुत मन था, भारत आने का, की एक बार अपने पति के वतन की मिट्टी को हाथ से छू कर नेताजी को महसूस करूं, जिस वतन के लिए मेरे पति ने अपना पूरा जीवन बलिदान कर दिया। 
लेकिन ऐसा हो न सका क्योंकि कुछ लोग नहीं चाहते थे। जबकि उन्हें सम्मान-सहित बुलाकर भारत की नागरिकता देनी चाहिए थी। उस महान महिला का बड़प्पन देखिये कि उन्होंने इसकी कभी किसी से शिकायत भी नहीं की और गुमनामी में ही मार्च 1996 में जीवन त्याग दिया।

मैं तो इंसानियत से मजबूर था तुम्हे बीच मे नही डुबोया" मगर तुमने मुझे क्यों काट लिया!

नदी में बाढ़ आती है छोटे से टापू में पानी भर जाता है वहां रहने वाला सीधा साधा1चूहा कछुवे  से कहता है मित्र  "क्या तुम मुझे नदी पार करा ...