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Friday, November 20, 2020

भारत को मिला P-8I विमान लंबी दूरी का एंटी-सबमरीन एयरक्राफ्ट लंबी दूरी तक रखेगा नजर।

भारत से बेवजह विवाद मोल लेकर जहां चीन अलग-थलग पड़ गया है, वहीं भारत अपनी ताकत में लगातार इजाफा कर रहा है। इसी क्रम में समुद्री गश्ती और पनडुब्बी रोधी युद्धक विमान P-8I को नौसेना के बेड़े में शामिल किया गया है। अमेरिका के साथ हुए 1.1 अरब डॉलर के रक्षा समझौते के तहत कुल चार P-8I विमान भारत को मिलने हैं, उनमें से पहला विमान बुधवार गोवा पहुंचा।


पहले से हैं आठ विमान।
P-8I अत्याधुनिक सेंसरों से लैस है, जो हिंद महासागर में चीन की हर हरकत पर नजर रखेगा। यह विमान बुधवार सुबह गोवा स्थित महत्वपूर्ण नेवल बेस आईएनएस हंस पहुंचा। बता दें कि भारतीय नौसेना के पास पहले से ही ऐसे आठ पी-8 आई विमान हैं, जिनमें से कुछ को पूर्वी लद्दाख में चीनी गतिविधियों की निगरानी के लिए तैनात किया गया है।

2016 में दिया था ऑर्डर।
जो आठ P-8I विमान भारत के पास पहले से हैं, उनके लिए जनवरी 2009 में सरकार ने 2.1 बिलियन डॉलर का समझौता किया था। ये विमान हार्पून ब्लॉक-II मिसाइलों और MK-54 लाइटवेट टॉरपीडो से लैस हैं। इसके बाद साल 2016 में रक्षा मंत्रालय ने चार और ऐसे विमानों की खरीद का आर्डर दिया था।

ताकत में हुआ इजाफा।
P-8I विमान लंबी दूरी का एंटी-सबमरीन एयरक्राफ्ट है। माना जा रहा है कि इसे हिंद महासागर में तैनात किया जाएगा। P-8I के नौसेना में शामिल होने से हिंद महासागर में भारत की ताकत में जबरदस्त इजाफा हुआ है। चीन जमीन और समुद्र दोनों की रास्तों से अपने विस्तारवादी मंसूबों को अंजाम देने के लिए कुख्यात है। इस लिहाज से P-8I के रूप में भारतीय नौसेना को एक ऐसा हथियार मिल गया है, जो चीन की हर हरकत पर बारीकी से नजर रखने में सक्षम है।

Thursday, November 19, 2020

शनिवार शनि देव की आराधना करने से मिलेगा शनि ध्वेस से मुक्ति।

शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए शनिवार को शनिदेव पर तेल चढ़ाया जाता है और सरसों के तेल का दीपक भी जलाया जाता है।

सरसों तेल और शनि देव के बीच संबंध।
दरअसल इसके पीछे एक पौराणिक कथा बताई जाती है। जिसके अनुसार रामायण काल यानी त्रेता युग में शनि देव को अपने बल और पराक्रम पर अहंकार हो था। इस दौर में शनि देव ने हनुमान जी के बल और पराक्रम की प्रशंसा सुनी तो वे बजरंग बली से युद्ध करने के लिए निकल पड़े। लेकिन उस समय हनुमान जी अपने प्रभु श्रीराम की भक्‍ति में लीन थे। तभी अपने बल के घमंड में चूर शनिदेव आ पहुंचे और उन्‍होंने हनुमान जी को युद्ध के लिए ललकारना शुरु किया। रामभक्त हनुमान जी को शनिदेव के क्रोध और घमंड का कारण समझ आ चुका था इसलिए उन्‍होंने युद्ध को स्‍वीकार करने की बजाय उन्‍हें शांत करना उचित समझा। लेकिन शनि देव माने नहीं और लगातार हनुमान जी को युद्ध के लिए ललकारते रहे।

जिसके बाद मजबूर होकर हनुमान जी को युद्ध करने के लिए आगे आना ही पड़ा। शनिदेव और बजरंग बली के बीच घमासान युद्ध हुआ। स्वयं शिव के अंशावतार और श्रीहरि के अवतार राम जी के भक्त हनुमान के आगे भला कौन टिक सकता था। इस युद्ध का अंजाम वही हुआ जो होना था। शनि देव को हनुमान जी ने परास्‍त कर दिया।

शनिदेव को सरसों तेल से मिली राहत।
लेकिन इस युद्ध के दौरान शनि देव बेहद घायल हो गए। बजरंग बली की गदा के भीषण प्रहारों से उन्हें बेहद चोट लगी और शरीर पर कई जगह घाव बन गए। जिसकी पीड़ा से शनिदेव व्याकुल हो गए। हालांकि शनिदेव ने हनुमान जी से दुश्मनी साधी थी और उन्हें युद्ध के लिए ललकारा था, लेकिन भक्त शिरोमणि हनुमान जी से उनकी पीड़ा नहीं देखी गई।

हनुमान जी ने शनि देव पर कृपा करते हुए उन्‍हें पीड़ा से मुक्‍त करने के लिए उनके शरीर पर सरसों का तेल लगाया। जिससे उन्हें आराम मिला। तभी से शनि देव को तेल चढ़ाने की पंरपरा की शुरुआत हुई। तेल चढ़ाने से भक्तों की पीड़ा दूर करते हैं शनिदेव।‍ मान्यता है कि शनि देव को तेल चढ़ाने से उनकी पीड़ा कम हो जाती है और फिर वे अपने भक्‍त की पीड़ा को भी कम कर देते हैं। शनि देव को तेल चढ़ाने से जीवन की सभी परेशानियों से छुटकारा मिलता है। आर्थिक समस्‍याओं से जूझ रहे लोगों को भी शनिवार के दिन शनि देव को सरसों का तेल चढ़ाना चाहिए। कहा जाता कि शनिदेव की पूजा में तेल के साथ तिल का भी बहुत महत्व है।

काली चीजें हैं शनिदेव को बेहद प्रिय।
काला तिल, तेल, काला वस्त्र, काली उड़द शनि देव को अत्यंत प्रिय है। मान्यता है कि काला तिल और तेल से शनिदेव जल्द ही प्रसन्न हो जाते हैं। यदि शनिदेव की पूजा इन वस्तुओं से की जाए तो ऐसी पूजा सफल मानी जाती है। ऐसी मान्यता है कि शनिदेव अपने भक्तों पर शीघ्र ही नाराज और प्रसन्न हो जाते है। शनिदेव की यदि विधिवत पूजा की जाए, तो वे अपने भक्तों को कभी दुखी नहीं रखते हैं। यदि कोई व्‍यक्‍ति शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या से गुज़र रहा है तो उसे भी शनिवार के दिन शनि देव की पूजा करनी चाहिए और उन्‍हें शनि देव को सरसों का तेल चढ़ाना चाहिए।

जानिए क्यों होती है कार्तिक माह में तुलसी पूजन और तुलसी विवाह।

कर्तिक का पावन महीना शुरू हो गया है। इस महीने में भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना की जाती है। ऐसी मान्यता है कि कार्तिक के महीने में भगवान विष्णु पानी के अंदर रहते हैं। इस पावन माह के ब्रह्ममुहूर्त में स्नान करने से पाप-दोष का नाश होता है। इसलिए तो कार्तिक मास को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष नामक पुरुषार्थों को देने वाला माना गया है। इस माह माता तुलसी की पूजा की जाती है। तुलसी पूजन के साथ-साथ इसी माह तुलसी विवाह भी होता है। तो चलिए जानते हैं, तुलसी पूजन की महिमा।

ब्रह्ममुहूर्त में स्नान की महिमा।
कार्तिक मास में सूर्योदय पूर्व स्नान, दान और रामायण पारायण का महत्व तो सर्वविदित है। सदियों से यह हमारी सनातन परंपरा का अंग है। इस मास में तुलसी पूजा का भी बहुत महत्व है। काशी के पंचगंगा घाट पर आकाशी दीपों की मासपर्यन्त चलने वाली कतारें सज जाती हैं।
भगवान श्रीकृष्ण ने श्रीमद्भागवत में मास की व्याख्या करते हुए कहा है- पौधों में तुलसी मुझे प्रिय है, मासों में कार्तिक मुझे प्रिय है, दिवसों में एकादशी और तीर्थों में द्वारका मेरे हृदय के निकट है। मान्यता है कि आंवले के फल एवम तुलसी-दल मिश्रित जल से स्नान करें तो गंगा स्नान के समान पुण्यलाभ होता हैं। कार्तिक मास में मनुष्य की सभी आवश्यकताओं जैसे- उत्तम स्वास्थ्य, पारिवारिक उन्नति, देव कृपा आदि का आध्यात्मिक समाधान बड़ी ही आसानी से हो जाता है।

तुलसी पूजन और सेवन के लाभ।
कार्तिक माह में तुलसी पूजन करने तथा सेवन करने का विशेष महत्व बताया गया है। जो व्यक्ति यह चाहता है कि उसके घर में सदैव शुभ कर्म हो, सदैव सुख शान्ति का निवास रहे उसे तुलसी की आराधना अवश्य करनी चाहिए। पुरानी मान्यता है कि जिस घर में शुभ कर्म होते हैं, वहां तुलसी हरी-भरी रहती है और जहां अशुभ कर्म होते हैं वहां तुलसी कभी भी हरी-भरी नहीं रहती।

तुलसी विवाह की पुरानी प्रथा।
कार्तिक मास में तुलसी पूजन का विशेष महत्व बताया गया है। इसके समीप दीपक जलाने से मनुष्य अनंत पुण्य का भागी बनता है। जो तुलसी को पूजता है उसके घर मां लक्ष्मी हमेशा के लिए आ बसती है क्योंकि तुलसी में साक्षात लक्ष्मी का निवास माना गया है। तुलसी का एक नाम हरिप्रिया भी है, अर्थात वे हरि यानि भगवान विष्णु को अतिशय प्रिय हैं। इसी मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को तुलसी विवाह विधि-विधान से संपन्न कराया जाता है। उसी दिन भगवान विष्णु क्षीरसागर में चार मास शयन के बाद जगते हैं, उस अवधि को सनातन परंपरा में चतुर्मास काल कहा जाता है। उस एकादशी को देवोत्थान एकादशी या लोकभाषा में देवठन एकादशी कहा जाता है।

तुलसी की पौराणिक कथा।
पौराणिक कथा के अनुसार गुणवती नामक स्त्री ने कार्तिक मास में मंदिर के द्वार पर तुलसी की एक सुंदर वाटिका लगाई। उस पुण्य के कारण वह अगले जन्म में सत्यभामा बनी और सदैव कार्तिक मास का व्रत करने के कारण वह भगवान श्रीकृष्ण की पत्नी बनी।

माता सीता और द्रोपदी ने क्यों किया था छठ पूजा! जानें इस महापर्व का इतिहास।

आज से देश में महापर्व छठ की शुरूआत हो गई है। छठ पर्व पर सूर्य देव की पूजा का बहुत महत्व होता है, सूर्य को इस दिन शाम को और दूसरे दिन सुबह अर्घ्य दिया जाता है। छठ का पहला दिन नहाय खाए से शुरू होता है। उत्तर प्रदेश और खासकर बिहार में मनाया जाने वाला ये पर्व अपने आप में काफी खास है। इसे पूरे देश में धूमधाम से मनाया जाता है। छठ पूजा चार दिन तक चलती है। सूर्य देव की आराधना और संतान के सुखी जीवन की कामना के लिए समर्पित छठ पूजा हर वर्ष कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को होती है। इस वर्ष छठ पूजा 20 नवंबर यानी शुक्रवार को है।

राजा प्रियंवद की कोई संतान नहीं थी।
छठ पर्व कैसे शुरू हुआ इसके पीछे कई ऐतिहासिक कहानियां प्रचलित हैं। पुराण में छठ पूजा के पीछे की कहानी राजा प्रियंवद को लेकर है। कहते हैं राजा प्रियंवद की कोई संतान नहीं थी। तब महर्षि कश्यप ने पुत्र की प्राप्ति के लिए यज्ञ कराकर प्रियंवद की पत्नी मालिनी को आहुति के लिए बनाई गई खीर दी। इससे उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई लेकिन वह पुत्र मरा हुआ पैदा हुआ। प्रियंवद पुत्र को लेकर श्मशान गए और पुत्र वियोग में प्राण त्यागने लगे। उसी वक्त भगवान की मानस पुत्री देवसेना प्रकट हुईं और उन्होंने राजा से कहा कि क्योंकि वह सृष्टि की मूल प्रवृति के छठे अंश से उत्पन्न हुई हैं, इसी कारण वो षष्ठी कहलातीं हैं। उन्होंने राजा को उनकी पूजा करने और दूसरों को पूजा के लिए प्रेरित करने को कहा।

सीता जी ने 6 दिनों तक सूर्यदेव की उपासना की।
राजा प्रियंवद ने पुत्र इच्छा के कारण देवी षष्ठी का व्रत किया और उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई। कहते हैं ये पूजा कार्तिक शुक्ल षष्ठी को हुई थी और तभी से छठ पूजा होती है। इस कथा के अलावा एक कथा राम-सीता जी से भी जुड़ी हुई है। पौराणिक कथाओं के मुताबिक जब राम और सीता 14 वर्ष के वनवास के बाद अयोध्या लौटे थे तो रावण वध के पाप से मुक्त होने के लिए उन्होंने ऋषि-मुनियों के आदेश पर राजसूर्य यज्ञ करने का फैसला किया था। पूजा के लिए उन्होंने मुग्दल ऋषि को आमंत्रित किया। मुग्दल ऋषि ने मां सीता पर गंगा जल छिड़क कर उन्हें पवित्र किया और कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को सूर्यदेव की उपासना करने का आदेश दिया। उस समय सीता जी ने मुग्दल ऋषि के आश्रम में रहकर 6 दिनों तक भगवान सूर्यदेव की पूजा की थी।

द्रौपदी ने भी छठ व्रत रखा था।
एक और मान्यता के अनुसार छठ पर्व की शुरुआत महाभारत काल में हुई थी। इसकी शुरुआत सबसे पहले सूर्यपुत्र कर्ण ने सूर्य की पूजा करके की थी। कर्ण भगवान सूर्य के परम भक्त थे और वह रोज घंटों कमर तक पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देते थे। सूर्य की कृपा से ही वह महान योद्धा बने। आज भी छठ में अर्घ्य दान की यही परंपरा प्रचलित है। छठ पर्व के बारे में एक कथा और भी है। इस कथा के मुताबिक जब पांडव अपना सारा राजपाठ जुए में हार गए तब द्रौपदी ने छठ व्रत रखा था। इस व्रत से उनकी मनोकामना पूरी हुई थी और पांडवों को अपना राजपाठ वापस मिल गया था। लोक परंपरा के मुताबिक सूर्य देव और छठी मईया का संबंध भाई-बहन का है। इसलिए छठ के मौके पर सूर्य की आराधना फलदायी मानी गई है।

Wednesday, November 18, 2020

प्रधानमंत्री मोदी का हवा में उड़ता 'अभेद्य महल।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Modi) के लिए अमेरिका (America) में तैयार विशेष विमान बोइंग 777 (Boing 777) गुरुवार दोपहर 3 बजे दिल्ली इंटरनेशनल हवाई अड्डे पर उतर गया। अमेरिका के राष्ट्रपति के एयरफोर्स वन जैसी क्षमताओं से लैस इस विमान में कई विशेषताएं हैं। इस विमान का प्रयोग प्रधानमंत्री के अलावा राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद और उपराष्ट्रपति वैंकैया नायडू भी करेंगे।

प्रधानमंत्री मोदी का हवा में उड़ता 'अभेद्य क़िला'
सुपर VIP विमान की रफ़्तार 900 किलोमीटर प्रति घंटे है। ये विमान  इतना शक्तिशाली है कि दुश्मनों की मिसाइल भी बेअसर हो जाए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए अमेरिका में तैयार ये विशेष विमान बोइंग 777 है। अमेरिका से इस विशालकाय विमान का गुरुवार को भारत की धरती पर आगमन हुआ है। इस विमान की एक नहीं, कई विशेषताएं हैं।

अमेरिकी राष्ट्रपति के विमान जैसी शक्तियों से लैस
ये विमान अमेरिकी राष्ट्रपति के एयरफोर्स वन जैसी कई शक्तियों से लैस है। इस विमान का अपना खुद का मिसाइल डिफेंस सिस्टम है। इस विमान में मिरर बॉल सिस्टम भी है। ये आधुनिक इंफ्रारेड सिग्नल से चलने वालीं मिसाइलों को  भ्रमित कर सकता है। यानी इस विमान पर मिसाइल हमले का असर नहीं होगा।

दुश्मन के रडार को कर सकता है जाम
इस विमान के अगले हिस्से में जैमर लगा है। जो दुश्मन के रडार सिग्नल को जाम करने की शक्ति रखता है। यह विमान सेल्फ प्रोटेक्शन सूइट्स और अत्याधुनिक कम्यूनिकेशन सिस्टम से लैस है। इसमें हवा में ही ईंधन भरने की क्षमता है। एक बार ईंधन भरने पर अमेरिका से भारत तक की लंबी उड़ान भर सकता है।

अमेरिका से दो विमानों की डील
भारत ने फरवरी में अमेरिका से 8400 करोड़ रुपये की लागत से ऐसे दो विमानों की डील की थी। माना जा रहा है कि अमेरिका से दूसरे विमान का आगमन भी जल्द हो सकता है। इस सुपर VIP प्लेन को आने वाले समय में एयर इंडिया नहीं बल्कि भारतीय वायुसेना ऑपरेट करेगी।

बालासाहेब ठाकरे ने बाबरी मस्जिद तोड़ा उधव ठाकरे ने कंगना रनौत का घर तोड़ा।

बाला साहेब ठाकरे का इतिहास उठा कर देखे तो ऐसा कोई हिंदूओ बहादुरी की वो आवाज़ थे जो मुखर होकर हर राष्ट्रविरोधी फुंकार को कुचल दिया करते थे। हर सही बात के पक्ष में बाला साहेब की बुलंद आवाज ‘सामना’ अख़बार के जरिये देश पढ़ता था। ऐसे में बाला साहेब की विरासत को सम्हालना और उसे आगे बढ़ाना बड़ी जिम्मेदारी का काम था, जिसे पूरा करने में उद्धव ठाकरे नाकाम साबित हुए हैं।


उद्धव ठाकरे ने शिवसेना की आत्मा और बाला साहेब के सपने के साथ समझौता कर छल किया है। मराठी अस्मिता को हिन्दू राष्ट्रीय गौरव के सिक्के से चमका कर चलाने वाले बाला साहेब की दूरदर्शिता उद्धव में दूर दूर तक नहीं है। महाराष्ट्र में दक्षिण भारतीयों के खिलाफ आवाज उठाना हो या बाबरी विध्वंस के समय हिंदुत्व की आत्मा में प्राण फूंकने हो, बाला साहेब हमेशा आगे रहे। 1990 के दौर में ये बाला साहेब ही थे जिन्होंने हिंदू अस्मिता बोध के रूपक महाराष्ट्र की जनता के मन में बोये, जिसकी फसल 6 दिसम्बर को अयोध्या में देखने को मिली। बाला साहेब को शिव सैनिकों पर इतना गर्व था कि वो हक़ से कहा करते थे कि बाबरी पर चढ़ने वालों में सबसे आगे शिवसैनिक होंगे और 6 दिसम्बर 1992 को बाबरी विध्वंस में शिवसैनिकों ने बाला साहेब के वचनों का मान भी रखा।


अब दूसरी तरफ हैं बाला साहेब के बेटे उद्धव ठाकरे जो बाबरी तो दूर मुम्बई में हुए अवैध निर्माणों को रोक नहीं पाए हैं। हजारों रोहिंग्या-बंगलादेशी घुसपैठिए मुंबई के तमाम इलाकों में छिपे हुए हैं। सड़को के बीचों-बीच अवैध मस्जिदें बनाकर खुदा को पुकारा जाता है और उद्धव ठाकरे अपने कान में रुई डालकर बैठे रहते हैं। मगर इन्हीं उद्धव ठाकरे की सारी ताकत तब नुमायां होती है जब एक लड़की बॉलीवुड ड्रग माफिया के खिलाफ आवाज बुलंद करती है और उद्धव ठाकरे CM कुर्सी का जलाल इस्तेमाल करते हुए कंगना का दफ्तर तुड़वा देते हैं।


सारा देश बाला साहेब को याद करता है कि साहेब आपने कैसा बेटा दिया है जो कांग्रेस-NCP की चाटूकारिता में शिवसैनिक होने के मूल अभिमान को ही भूल गया है। जाहिर है एक तरफ थे हिंदू ह्रदय सम्राट बाला साहेब ठाकरे जो बाबरी विध्वंस पर गर्व करते थे तो दूसरी ओर है उद्धव ठाकरे जो एक औरत का दफ्तर तोड़ने पर गर्व करते हैं… बड़ा सवाल मन में कौंधता है कि शिवसेना कहाँ से चली थी और कहां तक आ गई है।

पाकिस्तान में आज भी वह मंदिर मौजूद है जहां युधिष्ठिर और यक्ष राज के बीच हुआ था संवाद।

महाभारत युद्ध अधर्म पर धर्म की जीत का युद्ध था। 18 दिनों तक चलने वाला महाभारत युद्ध सबसे विनाशकारी युद्ध था। इस युद्ध को कौरवों ने छल के साथ लड़ा था।हालांकि, इस युद्ध में पांडवों की जीत हुई थी। महाभारत के युद्ध से पहले पांडवों को कई तरह के कष्ट उठाने पड़े। पांडवों को 13 वर्ष तक अज्ञातवास में रहना पड़ा।अज्ञातवास के दौरान पांडवों को अपनी पहचान और वेष बदलकर रहना पड़ा इस दौरान अर्जुन को बृहन्नला यानि एक किन्नर बनकर रहना पड़ा।

पांडव जब अज्ञातवास में रह रहे थे तब धर्मराज युधिष्ठिर की मुलाकात यक्षराज से हुई थी। जिसका वर्णन महाभारत की कथा में बहुत ही प्रभावशाली ढ़ग से किया गया है। कथा के अनुसार एक तलाब का पानी पीने से सभी पांडवों की मृत्यु हो गई। अंत में जब युधिष्ठिर इस तलाव के समीप पहुंचे तो उनका सामना एक यक्षराज से होता है।

पानी पीने से पहले यक्ष युधिष्ठिर से कुछ प्रश्न करता है। यक्ष युधिष्ठिर से पूछता है कि पृथ्वी से भारी क्या है? युधिष्ठिर ने जवाब दिया कि पृथ्वी से भारी यानी बढ़ कर है मां। यक्ष दूसरे प्रश्न में पूछता है कि आकाश से ऊंचा क्या है? धर्मराज युधिष्ठिर ने कहा- पिता का कद आकाश से भी ऊंचा होता है। यक्ष ने अगला सवाल किया कि वायु से तेज क्या चलता है? युधिष्ठिर ने कहा मन की गति वायु से भी तेज होती है। यक्ष ने पूछा कि तिनकों से अधिक संख्या किसकी है। युधिष्ठिर ने कहा कि चिंताओं की संख्या तिनकों से अधिक होती है। यक्ष ने पूछा कि सो जाने पर भी आखें कौन नहीं मूंदता? इस पर युधिष्ठिर ने कहा कि मछली सोने पर भी आखें नहीं मूंदती। इस प्रकार यक्ष के सभी प्रश्नों का युधिष्ठिर सही जवाब देते हैं। इस बात से खुश होकर यक्ष ने युधिष्ठिर से सभी भाइयों को जिंदा कर देता है और पानी लेने की अनुमति प्रदान करता है।

पाकिस्तान में मौजूद ये स्थान।
युधिष्ठिर और यक्ष का जिस स्थान पर संवाद हुआ था वह स्थान आज भी मौजूद है। ये स्थान पाकिस्तान में स्थित है। जहां आज भी हर साल हजारों लोग दर्शन करने के लिए आते हैं। ये स्थान पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के जिला चकवाल में स्थित है। यहीं पर प्राचीन और प्रसिद्ध कटासराज का मंदिर स्थित है। इस मंदिर के परिसर में एक कुंड बना हुआ है। माना जाता है कि ये वहीं कुंड है जहां से पांडवों ने पानी लिया था और इसी स्थान पर युधिष्ठिर का यक्ष से संवाद हुआ था। इस मंदिर के बारे में यह भी कहा जाता है कि ये कुंड भगवान शिव के आंसू गिरने से बना है। पौराणिक काल में भगवान शिव जब सती की अग्नि-समाधि से काफी दुखी हुए थे तो उनके आंसू दो जगह गिरे थे। एक आंसू से कटासराज सरोवर का निर्माण हुआ तो दूसरा आंसू राजस्थान के पुष्कर में गिरा था।

मैं तो इंसानियत से मजबूर था तुम्हे बीच मे नही डुबोया" मगर तुमने मुझे क्यों काट लिया!

नदी में बाढ़ आती है छोटे से टापू में पानी भर जाता है वहां रहने वाला सीधा साधा1चूहा कछुवे  से कहता है मित्र  "क्या तुम मुझे नदी पार करा ...