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Monday, May 17, 2021

रविवार के दिन नहीं करना चाहिए ये काम, वरना उठाना पड़ेगा भरी नुकसान।

रविवार का दिन सूर्य देव का दिन होता है। सूर्य देव की पूजा करने और उन्हें जल चढ़ाने से व्यक्ति का तेज बढ़ता है और भाग्य बलशाली होता है। ग्रहों के राजा सूर्य की कृपा से आपके जीवन में खुशहाली का वास हो सकता है लेकिन उनकी नाराज़गी से आपको बड़े से बड़े नुकसान का भी सामना करना पड़ सकता है। सप्ताह के दिनों के मुताबिक रविवार का दिन सूर्य ग्रह को समर्पित है, इसलिए अगर आप सूर्य देव की कृपा पाना चाहते हैं तो रविवार के दिन आपको कुछ कामों से दूर रहना चाहिए जो आपके लिए नुकसानदेह साबित हो सकते हैं।

1. रविवार के दिन आपको पश्चिम में और वायव्य दिशा में यात्रा नहीं करनी चाहिए। अगर किसी कारणवश आपको इस दिशा में यात्रा करनी ही है तो रविवार के दिन दलिया, घी या फिर पान खाकर या इससे पहले पांच कदम पीछे चलकर ही इस दिशा में जाएं क्योंकि इस दिन खासकर पश्चिम दिशा में शूल रहता है।

2. रविवार के दिन नमक नहीं खाना चाहिए। इससे स्वास्थ्य पर असर पड़ता है और आपके हर कार्य में बाधा ही उत्पन्न होती है। खासतौर पर सूर्यास्त के बाद तो नमक खाना ही नहीं चाहिए।

3. रविवार को तांबे से निर्मित चीजों को बेचने से आपको परहेज करना चाहिए। तांबे के अलावा सूर्य से संबंधित अन्य धातु या वस्तुएं भी नहीं बेचें।

4. रविवार के दिन नीले, काले और ग्रे रंग के कपड़ों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। इतना ही नहीं इस रंग के जूते पहनने से भी बचना चाहिए।

5. ज्यादातर लोग रविवार को ही बाल कटवाते हैं लेकिन मान्यता ये है कि इस दिन बाल कटवाने से आपका सूर्य कमजोर हो जाता है।

6. इस दिन तेल मालिश भी नहीं करना चाहिए क्योंकि ये सूर्य का दिन होता है और तेल शनि का होता है।

7. रविवार के दिन आपको मांस और मदिरा का सेवन नहीं करना चाहिए, जिस कारण सूर्य देव आप पर विपरीत प्रभाव डालते है। इस दिन शनि से संबंधित पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए।

8. रविवार के दिन सूर्य के दर्शन करने के बाद स्नान करना चाहिए और अगर घर में झगड़े होते हैं तो इस दिन मन ही मन ‘ओम घृणि सूर्याय नम:’ मंत्र का जाप करना चाहिए।

यह थे, वह काम जो रविवार के दिन नहीं करने चाहिए क्योंकि ग्रहों के राजा सूर्य की कृपा से आपके जीवन में खुशहाली का वास हो सकता है लेकिन उनकी नाराज़गी से आपको बड़े से बड़े नुकसान का भी सामना करना पड़ सकता है।

आज है जगद्गुरु आदि शंकराचार्य जयंती, जानिए उनके जीवन से जुड़ी ये कथा।

आज जगद्गुरु आदि शंकराचार्य जी की जयंती मनाई जा रही है। भारत में चार मठों की स्थापना करने वाले शंकराचार्य का जन्म वैशाख की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को आठवीं सदी में केरल में हुआ था। शंकराचार्य के पिता की मत्यु उनके बचपन में ही हो गई थी। बचपन से ही शंकराचार्य का रुझान संन्‍यासी जीवन की तरफ था। लेकिन उनके मां नहीं चाहती थीं कि वो संन्यासी जीवन अपनाएं।

कथा।
एक ब्राह्राण दंपति के विवाह होने के कई साल बाद भी कोई संतान नहीं हुई। संतान प्राप्ति के लिए ब्राह्राण दंपति ने भगवान शंकर की आराधना की। उनकी कठिन तपस्या से खुश होकर भगवान शंकर ने सपने में उनको दर्शन दिए और वरदान मांगने को कहा। इसके बाद ब्राह्राण दंपति ने भगवान शंकर से ऐसी संतान की कामना की जो दीर्घायु भी हो और उसकी प्रसिद्धि दूर दूर तक फैले। तब भगवान शिव ने कहा कि या तो तुम्हारी संतान दीर्घायु हो सकती है या फिर सर्वज्ञ। जो दीर्घायु होगा वो सर्वज्ञ नहीं होगा और अगर सर्वज्ञ संतान चाहते हो तो वह दीर्घायु नहीं होगी।

तब ब्राह्राण दंपति ने वरदान के रूप में दीर्घायु की बजाय सर्वज्ञ संतान की कामना की। वरदान देने के बाद भगवान शिव ने ब्राह्राण दंपति के यहां संतान रूप में जन्म लिया। वरदान के कारण ब्राह्राण दंपति ने पुत्र का नाम शंकर रखा। शंकराचार्य बचपन से प्रतिभा सम्पन्न बालक थे। जब वह मात्र तीन साल के थे तब उनके पिता का देहांत हो गया। तीन साल की उम्र में ही उन्हें मलयालम भाषा का ज्ञान प्राप्त कर लिया था।

कम उम्र में उन्हें वेदों का पूरा ज्ञान हो गया था और 12 वर्ष की उम्र में शास्त्रों का अध्ययन कर लिया था। 16 वर्ष की उम्र में वह 100 से भी अधिक ग्रंथों की रचना कर चुके थे। बाद में माता की आज्ञा से वैराग्य धारण कर लिया था। मात्र 32 साल की उम्र में केदारनाथ में उन्होंने समाधि ले ली। आदि शंकराचार्य ने हिन्दू धर्म का प्रचार-प्रसार के लिए देश के चारों कोनों में मठों की स्थापना की थी जिसे आज शंकराचार्य पीठ कहा जाता है।

आज जाने भगवान कृष्ण के अनन्य भक्त सूरदाज जी की जयंती, पर उनके द्वारा रचित भक्तिमय दोहे।

आज प्रसिद्ध कवि, लेखक और भगवान कृष्ण के भक्त सूरदास जी की जयंती है। हिन्दू कैलेंडर के अनुसार, वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को भगवान श्रीकृष्ण भक्त सूरदास जी का जन्म मथुरा के रुनकता गांव में हुआ था। वे जन्म से ही दृष्टिहीन थे और भगवान श्रीकृष्ण में उनकी अगाध आस्था थी। उन्होंने जीवनपर्यंत भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति की और ब्रज भाषा में कृष्ण की लीलाओं का वर्णन किया। सूरदास नेत्रहीन थे लेकिन ऐसे मान्यता है कि उनकी अनन्य भक्ति से प्रसन्न होकर स्वयं मुरलीधर भगवान कृष्ण ने उन्हें दिव्य-दृष्टि का आशीर्वाद दिया था। यही कारण है कि आंखें न होने के बावजूद सूरदास ने इतने सुन्दर और मधुर दोहों की रचना की। सूरदास जी ने ब्रज भाषा में कृष्ण की लीलाओं को बेहद सजीव और सुन्दर तरीके से उकेरा है। सूर की रचनाओं में भक्ति रस और श्रृंगार रस का सुंदर समायोजन है। आज हम आपके लिए लेकर आए हैं सूरदास के कुछ दोहे जिनमें भगवान श्री कृष्ण की लीलाओं का सजीव चित्रण है।

मैया मोरी मैं नही माखन खायौ।
भोर भयो गैयन के पाछे ,मधुबन मोहि पठायो।
चार पहर बंसीबट भटक्यो , साँझ परे घर आयो।।
मैं बालक बहियन को छोटो ,छीको किहि बिधि पायो।
ग्वाल बाल सब बैर पड़े है ,बरबस मुख लपटायो।।
तू जननी मन की अति भोरी इनके कहें पतिआयो।
जिय तेरे कछु भेद उपजि है ,जानि परायो जायो।।
यह लै अपनी लकुटी कमरिया ,बहुतहिं नाच नचायों।
सूरदास तब बिहँसि जसोदा लै उर कंठ लगायो।।

निरगुन कौन देस को वासी।
मधुकर किह समुझाई सौह दै, बूझति सांची न हांसी।।
को है जनक ,कौन है जननि ,कौन नारि कौन दासी।
कैसे बरन भेष है कैसो ,किहं रस में अभिलासी।।
पावैगो पुनि कियौ आपनो, जा रे करेगी गांसी।
सुनत मौन हवै रह्यौ बावरों, सुर सबै मति नासी।।

बुझत स्याम कौन तू गोरी। कहां रहति काकी है बेटी देखी नही कहूं ब्रज खोरी।।
काहे को हम ब्रजतन आवति खेलति रहहि आपनी पौरी।
सुनत रहति स्त्रवननि नंद ढोटा करत फिरत माखन दधि चोरी।।
तुम्हरो कहा चोरी हम लैहैं खेलन चलौ संग मिलि
जोरी।
सूरदास प्रभु रसिक सिरोमनि बातनि भूरइ राधिका भोरी।।

मैया मोहि दाऊ बहुत खिजायौ।
मोसो कहत मोल को लीन्हो ,तू जसमति कब जायौ?
कहा करौ इही के मारे खेलन हौ नही जात।
पुनि -पुनि कहत कौन है माता ,को है तेरौ तात?
गोरे नंद जसोदा गोरी तू कत श्यामल गात।
चुटकी दै दै ग्वाल नचावत हंसत सबै मुसकात।
तू मोहि को मारन सीखी दाउहि कबहु न खीजै।।
मोहन मुख रिस की ये बातै ,जसुमति सुनि सुनि रीझै।
सुनहु कान्ह बलभद्र चबाई ,जनमत ही कौ धूत।
सूर स्याम मोहै गोधन की सौ,हौ माता थो पूत।।

जसोदा हरि पालनै झुलावै।
हलरावै दुलरावै मल्हावै जोई सोई कछु गावै।।
मेरे लाल को आउ निंदरिया कहे न आनि सुवावै।
तू काहै नहि बेगहि आवै तोको कान्ह बुलावै।।
कबहुँ पलक हरि मुंदी लेत है कबहु अधर फरकावै।
सोवत जानि मौन ह्वै कै रहि करि करि सैन बतावै।।
इही अंतर अकुलाई उठे हरि जसुमति मधुरैं गावै।
जो सुख सुर अमर मुनि दुर्लभ सो नंद भामिनि पावै।।

अबिगत गति कछु कहत न आवै।
ज्यो गूँगों मीठे फल की रास अंतर्गत ही भावै।।
परम स्वादु सबहीं जु निरंतर अमित तोष उपजावै।
मन बानी को अगम अगोचर सो जाने जो पावै।।
रूप रेख मून जाति जुगति बिनु निरालंब मन चक्रत धावै।
सब बिधि अगम बिचारहि,तांतों सुर सगुन लीला पद गावै।।

Sunday, May 16, 2021

डीआरडीओ ने बनाई कोरोना की दवा, केंद्र सरकार ने आपात इस्तेमाल की दी मंजूरी।

कोरोना वायरस की दूसरी लहर के कारण देश में बढ़ती मुश्किलों के बीच एक अच्छी खबर आ रही है। भारत के डीआरडीओ ने कोरोना की "2 डीजी" नाम की दवा बना ली गई है। इस दवा के लिए केंद्र सरकार ने आपात इस्तेमाल की मंजूरी भी दे दी है। रक्षा मंत्रालय द्वारा ने इसकी जानकारी दी है। इस दवा की 10 हजार डोज का पहला बैच आज या कल में मिलने की उम्मीद है। इसके साथ ही भविष्य को देखते हुए इसके उत्पादन को बढ़ाने पर भी जोर दिया जा रहा है।

हैदराबाद के के अलावा अन्य केंद्रों पर ‘2-डीजी’ का बड़े पैमाने पर उत्पादन शुरू किया जा रहा है। इस दवा के बारे में बताते हुए DRDO (Defence Research and Development Organisation) के एक अधिकारी ने बताया कि ये दवा कोरोना मरीजों को रिकवर होने में और ऑक्सीजन पर उनकी निर्भरता को कम कम करती है। यानी इसे लेने के बाद मरीज कोरोना वायरस से जीतने में कम समय ले रहे हैं, जल्दी सही हो रहे हैं। दूसरी तरफ उन्हें ऑक्सीजन की भी कम ही जरूरत पड़ रही है।

वैज्ञानिकों ने बताया कि जब कोई वायरस शरीर के अंदर प्रवेश कर जाता है, तो मानव कोशिकाओं को धोखा देकर अपनी प्रतियां बनाता है, साफ शब्दों में कहा जाए, तो अपनी संख्या बढ़ाता है। इसके लिए वह कोशिकाओं से बड़ी मात्रा में प्रोटीन लेता है। डीआरडीओ द्वारा तैयार की गई दवा एक "सूडो" ग्लूकोज है, जो इसकी क्षमता को बढ़ने से रोकती है।

Saturday, May 15, 2021

सरकार की नई गाइडलाइंस, DL और RC के कामों को किया आसान घर बैठे ही निपटाएं।

कोरोना वायरस (Coronavirus) का उछाल दूसरी लहर (Corona second wave) में काफी तेजी से बढ़ रहा है। ऐसे में सरकार ने देश के कई राज्यों में सख्ती के साथ लॉकडाउन लगा दिया है। ऐसे में घर से केवल वो ही लोग बाहर निकल सकते हैं, जिन्हें जरूरी सामान लेना हो या काम हो। लेकिन ऐसी स्थिति में अगर आपको अपना ड्राइविंग लाइसेंस (Driving License), रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट (RC) से जुड़ा कोई भी काम करवाना है, तो उसके लिए घबराएं नहीं। क्योंकि आप अपने इस लाइसेंस संबंधित काम को ऑनलाइन भी निपटा सकते हैं।


सरकारी ने जारी की नई गाइडलाइंल (Government released new guidelines)
सड़क और परिवहन मंत्रालय (Ministry of Road Transport & Highways) ने DL बनवाने और उसे रीन्यूअल करवाने के लिए नई गाइडलाइन जारी की है। इसके चलते किसी को भी RTO जाने की जरूरत नहीं है, क्योंकि वो घर बैठे भी अपनी इस प्रक्रिया को ऑनलाइन पूरा कर सकता है।

ऑनलाइन DL और RC की प्रक्रिया को ऐसे करें पूरा (Complete the process of DL And RC online)
बता दें जिन लोगों को अपना नया लाइसेंस बनवाना है, उनकी नई गाइडलेंस के मुताबिक ऑनलाइन प्रक्रिया पूरी हो सकती है। इसका मतलब Learner's license की एप्लीकेशन से लेकर प्रिंटिंग तक का पूरा प्रोसेस ऑनलाइन होगा। साथ ही इलेक्ट्रॉनिक सर्टिफिकेट और डॉक्यूमेंट्स का इस्तेमाल मेडिकल सर्टिफिकेट्स, लर्नर लाइसेंस, ड्राइविंग लाइसेंस सरेंडर और उसके रीन्यूअल के लिए किया जा सकेगा। RC वालों को भी सरकार ने राहत दी है, जिसमें नई गाड़ी के रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया को भी आसान किया गया है। रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट (RC) का रीन्यूअल अब 60 दिन एडवांस में किया जा सकेगा, इसके अलावा टेम्परेरी रजिस्ट्रेशन की समय सीमा भी अब 1 महीने से बढ़ाकर 6 महीने कर दी गई है।

लर्नर्स लाइसेंस को ड्राइविंग टेस्ट के लिए नहीं जाना होगा RTO (Learner's license will not have to go for driving test)
कोरोना महामारी (Coronavirus) के चलते ड्राइविंग टेस्ट (Driving Test) देने के लिए भी किसी को RTO जाने की जरूरत नहीं होगी। घर बैठे ही नागरिक का ट्यूटोरियल के जरिए ऑनलाइन टेस्ट किया जा सकेगा।

DL, RC की वैधता बढ़ाई जा चुकी है (Validity of DL, RC has been increased)
सरकार ने सभी डॉक्यूमेंटेशन प्रोसेस में बदलाव करने की आखिरी तारीख मार्च के महीने में तय की थी। लेकिन कोरोना संकट को देखते हुए इसे 30 जून तक बढ़ा दिया गया था। मंत्रालय द्वारा जारी सर्कुलर के हिसाब से पूरे देश में कोरोना से खराब होते हालात को देखते हुए इन दस्तावेजों को, जो कि 1 फरवरी 2020 को एक्सपायर हो गए थे, उन्हें अगली 30 जून 2021 तक वैध माना जाएगा।

शनिवार को पढ़े सुंदरकांड का पाठ हनुमान जी के साथ साथ शनि देव भी होंगे प्रसन्न, होगी सारी मनोकामना पूरी।


कलयुग के रक्षक कहे जाने वाले संकटमोचन हनुमान जी की पूजा मंगलवार और शनिवार की जाती है। हनुमानजी की पूजा सबसे जल्दी मनोकामनाएं पूर्ण करने वाली मानी गई है। मनोकामना के साथ-साथ हर कष्टों का निवार्ण भी करते हैं बजरंगबली। शनिवार के दिन हनुमान जी की पूजा करने से शनिदेव भी प्रसन्न होते हैं। हिन्दू धर्म की प्रसिद्ध मान्यता के अनुसार सुंदरकांड का पाठ करने वाले भक्त की मनोकामना जल्द पूर्ण हो जाती है। जहां एक ओर पूर्ण रामचरितमानस में भगवान के गुणों को दर्शाया गया है उनकी महिमा बताई गई है, लेकिन दूसरी ओर रामचरितमानस के सुंदरकांड की कथा सबसे अलग और निराली है। ज्योतिषविद् अनीष व्यास के मुताबिक सुंदरकांड के महत्व को मनोवैज्ञानिकों ने भी बहुत खास माना है। शास्त्रीय मान्यताओं ने ही नहीं विज्ञान ने भी सुंदरकांड के पाठ के महत्व को समझाया है। विभिन्न मनोवैज्ञानिकों की राय में सुंदरकांड का पाठ भक्त के आत्मविश्वास और इच्छाशक्ति को बढ़ाता है।

सुंदरकांड की महत्ता।
हिन्दू धर्म की मान्यता के अनुसार, सुंदरकांड का पाठ करने वाले भक्त की मनोकामना जल्द पूर्ण हो जाती है। सुंदरकांड गोस्वामी तुलसीदास द्वारा लिखी गई रामचरितमानस के सात अध्यायों में से पांचवा अध्याय है। रामचरितमानस के सभी अध्याय भगवान की भक्ति के लिए हैं लेकिन सुंदरकांड का महत्व अधिक बताया गया है। जहां एक ओर पूर्ण रामचरितमानस में भगवान के गुणों को दर्शाया गया है उनकी महिमा बताई गई है लेकिन दूसरी ओर रामचरितमानस के सुंदरकांड की कथा सबसे अलग और निराली है। इसमें भगवान राम के गुणों की नहीं बल्कि उनके भक्त के गुणों और उनकी विजय के बारे में बताया गया है। कहा जाता है सुंदरकांड का पाठ करने वाले भक्त को हनुमान जी बल प्रदान करते हैं। उसके आसपास भी नकारात्मक शक्ति भटक नहीं सकती। यह भी माना जाता है कि जब भक्त का आत्मविश्वास कम हो जाए या जीवन में कोई काम ना बन रहा हो तो सुंदरकांड का पाठ करने से सभी काम अपने आप ही बनने लगते हैं।

शनिदेव भी होंगे खुश।
ज्योतिष और पौराणिक मान्यता है कि शनिदेव हनुमानजी से प्रसन्न रहते हैं। शनिदेव की दशा के प्रभाव को कम करने के उपायों में से एक है हनुमानजी की पूजा। शनिवार को यदि आप सुंदरकांड का पाठ करते हैं तो बजरंगबली तो प्रसन्न होंगे ही और साथ में शनिदेव भी आपका बुरा नहीं करेंगे। सुंदरकांड का पाठ करने वाले भक्त को हनुमान जी बल प्रदान करते हैं। उसके आसपास भी नकारात्मक शक्ति भटक नहीं सकती।

Friday, May 14, 2021

वह मंदिर जिसे टांगीनाथ धाम के नाम से जाना जाता है। और यहा भगवान परशुराम भगवान शिव की घोर तपस्या की थी।

चित्र में जो त्रिशूल-फरसा है वह श्री परशुराम जी के द्वारा धँसाया गया है। झारखंड के गुमला जिले में भगवान परशुराम का तप स्थल है। यह जगह रांची से करीब 150 किमी दूर है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान परशुराम ने यहां शिव की घोर उपासना की थी। यहीं उन्होंने अपने परशु यानी फरसे को जमीन में गाड़ दिया था। इस फरसे की ऊपरी आकृति कुछ त्रिशूल से मिलती-जुलती है। यही वजह है कि यहां श्रद्धालु इस फरसे की पूजा के लिए आते है।

वहीं शिव शंकर के इस मंदिर को टांगीनाथ धाम के नाम से जाना जाता है। कहा जाता है कि टांगीनाथ धाम में साक्षात भगवान शिव निवास करते हैं। झारखंड के इस बियावान और जंगली इलाके में शिवरात्रि के अवसर पर ही श्रद्धालु टांगीनाथ के दर्शन के लिए आते हैं। यहां स्थ‍ित एक मंदिर में भोलेनाथ शाश्वत रूप में हैं। स्थानीय आदिवासी ही यहां के पुजारी है और इनका कहना है कि यह मंदिर अत्यंत प्राचीन है। मान्यता है महर्षि परशुराम ने यहीं अपने परशु यानी फरसे को गाड़ दिया था। स्थानीय लोग इसे त्रिशूल के रूप में भी पूजते हैं।
आश्चर्य की बात ये है कि इसमें कभी जंग नहीं लगता।खुले आसमान के नीचे धूप, छांव, बरसात- का कोई असर इस त्रिशूल पर नहीं पड़ता है।आदिवासी बहुल ये इलाका पूरी तरह उग्रवाद से प्रभावित है।ऐसे में यहां अधिकतर सावन और महाशिवरात्रि के दिन ही यहां शिवभक्तों की भीड़ उमड़ती है।

मैं तो इंसानियत से मजबूर था तुम्हे बीच मे नही डुबोया" मगर तुमने मुझे क्यों काट लिया!

नदी में बाढ़ आती है छोटे से टापू में पानी भर जाता है वहां रहने वाला सीधा साधा1चूहा कछुवे  से कहता है मित्र  "क्या तुम मुझे नदी पार करा ...