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Monday, June 21, 2021

International Yoga Day : जाने योग दिवस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दस बड़ी बातें।

International Yoga Day: कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर के बीच आज 7वां योद दिवस मनाया जा रहा है। इस साल का थीम 'योग फॉर वेलनेस' है। जो शारीरिक और मानसिक कल्याण के लिए योग का अभ्यास करने पर केंद्रित है। इस खास मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज सुबह देश को संबोधित किया। प्रधानमंत्री ने कहा कि जब पूरी दुनिया कोरोना जैसी महामारी से जूझ रही है तो योग उम्मीद की किरण बना है। साथ ही पीएम ने कहा कि मुझे विश्वास है कि योग जनता के स्वास्थ्य की देखभाल में निवारक एवं प्रेरक भूमिका निभाता रहेगा। उन्होंने कहा कि योग हमें तनाव से शक्ति का और नकारात्मकता से रचनात्मकता का रास्ता दिखाता है।

1- योग के प्रति उत्साह और बढ़ा है।

2- कोरोना काल में योग उम्मीद की किरण बना।

3- इस बार की थीम ने योग को लेकर उत्साह और बढ़ाया।

4- सभी मिलकर एक दूसरे की ताकत बनें।

5- हर देश का व्यक्ति स्वस्थ्य हो।

6- दुनिया के कोने-कोने में योग के नए साधक बने हैं।

7- योग दिवस के प्रति उत्साह कम नहीं हुआ।

8- योग आत्मबल का बड़ा माध्यम बना।

9- योग ने कोरोना से लड़ने का भरोसा बढ़ाया।

10- डॉक्टरों ने योग को सुरक्षाकवच बनाया।

Sunday, June 20, 2021

जाने भगवान शिव के गले में पड़ी मुण्ड माला का अद्धभुत रहस्य!

भगवान शिव और सती का अद्भुत प्रेम शास्त्रों में वर्णित है। इसका प्रमाण है सती के यज्ञ कुण्ड में कूदकर आत्मदाह करना और सती के शव को उठाए क्रोधित शिव का तांडव करना। हालांकि यह भी शिव की लीला थी क्योंकि इस बहाने शिव 51 शक्ति पीठों की स्थापना करना चाहते थे। शिव ने सती को पहले ही बता दिया था कि उन्हें यह शरीर त्याग करना है। इसी समय उन्होंने सती को अपने गले में मौजूद मुंडों की माला का रहस्य भी बताया था।

मुण्ड माला का रहस्य..!
एक बार नारद जी के उकसाने पर सती भगवान शिव से जिद करने लगी कि आपके गले में जो मुंड की माला है उसका रहस्य क्या है। जब काफी समझाने पर भी सती न मानी तो भगवान शिव ने रहस्य खोल ही दिया। शिव ने पार्वती से कहा कि इस मुंड की माला में जितने भी मुंड यानी सिर हैं वह सभी आपके हैं। सती इस बात का सुनकर चकित रह गईं।

सती ने भगवान शिव से पूछा, यह भला कैसे संभव है कि सभी मुंड मेरे हैं। इस पर शिव बोले यह आपका 108 वां जन्म है। इससे पहले आप 107 बार जन्म लेकर शरीर त्याग चुकी हैं और ये सभी मुंड उन पूर्व जन्मों की निशानी है। इस माला में अभी एक मुंड की कमी है इसके बाद यह माला पूर्ण हो जाएगी। शिव की इस बात को सुनकर सती ने शिव से कहा मैं बार-बार जन्म लेकर शरीर त्याग करती हूं लेकिन आप शरीर त्याग क्यों नहीं करते।

शिव हंसते हुए बोले मैं अमर कथा जानता हूं इसलिए मुझे शरीर का त्याग नहीं करना पड़ता। इस पर सती ने भी अमर कथा जानने की इच्छा प्रकट की। शिव जब सती को कथा सुनाने लगे तो उन्हें नींद आ गयी और वह कथा सुन नहीं पायी। इसलिए उन्हें दक्ष के यज्ञ कुंड में कूदकर अपने शरीर का त्याग करना पड़ा।

शिव ने सती के मुंड को भी माला में गूंथ लिया। इस प्रकार 108 मुंड की माला तैयार हो गयी। सती ने अगला जन्म पार्वती के रूप में हुआ। इस जन्म में पार्वती को अमरत्व प्राप्त होगा और फिर उन्हें शरीर त्याग नहीं करना पड़ा।

चाहते है, अच्छा स्वास्थ्य, लंबी आयु, तो भीष्म पितामह की इन 12 बातों को ध्यान रखें।

महाभारत युद्ध इतिहास का सबसे अहम युद्ध माना जाता है। इस युद्ध से ही पता चलता है कि अधर्म ज्यादा दिनों तक टिक नहीं सकता है। महाभारत युद्ध में भगवान श्रीकृष्ण द्वारा दिया गया ज्ञान जीवन में जीने की कला सीखाती है। हर पात्र कुछ न कुछ सिख सिखाता है। महाभारत के सबसे अहम पात्र भीष्ण के बिना महाभारत की कथा अधूरी मालूम पड़ती है। महाभारत की कथा में भीष्म पितामह की भूमिका बहुत ही अहम और प्रभावशाली है। भीष्म पितामह के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने जीवन भर धर्म का पालन किया।

महाभारत का युद्ध कितने दिनों तक चला।
महाभारत का युद्ध 18 दिनों तक चला। भीष्म पितामह कौरवों की सेना के सेनापति थे। भीष्म पितामह जब पाण्डवों की सेना पर भारी पड़ने लगे तो पाण्डवों की सेना में हड़कंप मच गया है। सैनिक भयभीत होने लगे। तब श्रीकृष्ण ने भीष्म पितामह से हाथ जोड़कर विनम्रता से मृत्यु का उपाय पूछा।

शिखंडी बना भीष्म की मौत का कारण।
उपाय जानने के बाद अगले दिन पांडव शिखंडी को भीष्म के समाने खड़ा कर देते हैं। भीष्म शिखंडी को सामने पाकर अपने अस्त्र और शस्त्र त्याग देते हैं। अर्जुन भीष्म पितामह युद्ध के दसवें दिन भीष्म  तीरों की शैया पर लेट जाते हैं। तीरों की शैया पर लेटकर भीष्म युधिष्ठिर को ज्ञान प्रदान करते हैं, और आयु और सेहत से जुड़ी ये 12 अहम बातें बताते हैं-

1- मन को काबू में रखना।
2- घमंड नहीं करना।
3- विषयों की तरफ बढ़ती इच्छाओं को रोकना।
4- कटु वचन सुनकर भी उतर नहीं देना।
5- किसी भी चोट पर शांत और धैर्य रखना।
6- अतिथि व लाचार को आश्रय देना।
7- निन्दा रस से दूर रखना।
8- नियमपूर्वक शास्त्र पढ़ना व सुनना।
9- दिन में नहीं सोना।
10- स्वयं आदर न चाहकर दूसरों को आदर देना।
11- क्रोध के वशीभूत नहीं रहना।
12- स्वाद के लिए नहीं स्वास्थ्य के लिए भोजन करना।

Saturday, June 19, 2021

जाने कैलाश पर्वत के नीचे एक रहस्यमयी गुफा के बारे में क्या है खास।

कैलाश पर्वत के निचले हिस्से में एक गुफा है जो सैकड़ों मील लंबी है। कहा जाता है कि प्राचीन समय में योगियों ने वहां समाधि ली थी और ध्यान का अभ्यास किया था। गुफा की सौ मीटर की गहराई के भीतर कई मानव हड्डियां मिली हैं। गुफा के प्रवेश द्वार पर आप कुछ मदहोश करने वाला संगीत सुन सकते हैं, जिसकी तीव्रता बढ़ जाती है, जब आप और अंदर जाते हैं। यह तबले, डमरू, युद्ध के सींग से युक्त किसी प्रकार की आवाज़ है।

ध्वनि के स्रोत अभी तक नहीं मिले हैं।
आश्चर्यजनक रूप से गुफा के अंदर ऑक्सीजन का स्तर बाहर की तुलना में बेहतर है और इसमें एक विदेशी गंध है। गुफा के अंदर का तापमान किसी भी अन्य गुफा की तरह बढ़ जाता है, इस तरह से तापमान असहनीय हो जाता है जिससे इंसान गुफा के ज्यादा अन्दर नहीं जा सकता। अंदर जाते ही आपके शरीर में एक अजीब सा कंपन महसूस होता है। आपकी सभी इंद्रियां असामान्य रूप से काम करना शुरू कर देती हैं। यदि आपकी आंखें बंद हैं तो आपको अजीब चीजें दिखती हैं। भारहीनता जैसी अनुभूति होती है मानो गुरुत्वाकर्षण कम हो रहा हो।

गुफा की विचित्रता के लिए स्पष्टीकरण प्राप्त करने के लिए बहुत सारे शोध किए गए हैं लेकिन फिर भी कोई नतीजा नहीं निकला है। गुफा के अंदर गर्मी और चुंबकत्व के कारण अंदर भेजे गए सभी प्रोब, रोबोट, ड्रोन कुछ दूर से आगे नहीं जा सकते हैं। गुफा में जाने वाले इंसान का जीवन अजीब तरह से प्रभावित होता है, इसलिए प्रवेश द्वार को छलावरण रॉक दरवाजे के साथ सील कर दिया गया है। लेकिन शुरुआती तस्वीरें उपलब्ध हैं। कैलाश पर्वत भारत में नहीं है लेकिन फिर भी यहां के लोग इससे जुड़े रहते हैं। यह सबसे बड़े अनसुलझे रहस्यों में से एक है और अच्छी तरह से गुप्त रखा गया है।

Wednesday, June 16, 2021

16 जून 2013 की भीषण त्रासदी के बाद भी एक पत्थर जो केदारनाथ में पुनः प्राण स्थापित किया।

16 जून 2013 की वह आपदा बेहद भीषण थी। केदारनाथ आपदा को आज आठ साल पूरे हो गए। उस भीषण त्रासदी को याद करके आज भी लोग सिहर जाते हैं। आपदा में 4,400 से अधिक लोग मारे गए और लापता हो गए। 4,200 से ज्यादा गांवों का संपर्क टूट गया। इनमें 991 स्थानीय लोग अलग-अलग जगह पर मारे गए। 11,091 से ज्यादा मवेशी बाढ़ में बह गए या मलबे में दबकर मर गए। ग्रामीणों की 1,309 हेक्टेयर भूमि बाढ़ में बह गई। 2,141 भवनों का नामों-निशान मिट गया। 100 से ज्यादा बड़े व छोटे होटल ध्वस्त हो गए। यात्रा मार्ग में फंसे 90 हजार यात्रियों को सेना ने और 30 हजार लोगों को पुलिस ने बाहर निकाला। आपदा में नौ नेशनल हाई-वे, 35 स्टेट हाई-वे और 2385 सड़कें 86 मोटर पुल, 172 बड़े और छोटे पुल बह गए और क्षतिग्रस्त हो गए। लेकिन एक पत्थर बाढ़ में बहते हुए आ कर केदारनाथ मंदिर से कुछ दूरी पर स्थित हो गया जिससे पानी का बहाव दो हिस्सो मे बट गया और बाबा भोलेनाथ की कृपा से केदारनाथ मुख्य मंदिर का कोई नुकसान नही हुआ, हा लेकिन मंदिर की दीवार पर हल्का नुकसान जरूर हुआ, जो उस तबाही से बहुत कम है।
आपदा से पहले गौरीकुंड से केदारनाथ जाने वाला पैदल मार्ग रामबाड़ा और गरुड़चट्टी से होकर गुजरता था, लेकिन मंदाकिनी नदी के उफनती लहरों ने रामबाड़ा का अस्तित्व ही खत्म कर दिया और इसी के साथ यह रास्ता भी तबाही की भेंट चढ़ गया। इसके बाद 2014 से यात्रा का रास्ता बदल दिया गया और चट्टी सूनी हो गई। 2017 में केदारनाथ पुनर्निर्माण कार्यों ने जोर पकड़ा तो गरुड़चट्टी को संवारने की कवायद भी शुरू हुई। अक्टूबर 2018 में रास्ता तैयार कर लिया गया। सोलह व सत्रह जून को बारिश, बाढ़ और भूस्खलन की घटनाओं ने रुद्रप्रयाग, चमोली, उत्तरकाशी, बागेश्वर, अल्मोड़ा, पिथौरागढ़ जिलों में भारी तबाही मचाई। आपदा से उत्तराखंड को जान-माल की भारी क्षति हुई। पर्यटन कारोबार की कमर टूट गई।

जानकारों का मानना है कि आपदा के जख्मों को पूरी तरह से भरने में अब भी कई साल लग जाएंगे। राहत और पुनर्निर्माण के मरहम से हालात सुधारने के प्रयास जारी हैं। मगर पर्यावरण सरोकारों से जुड़े लोगों का मानना है कि सरकारों ने जख्म तो भरे हैं पर आपदा से सबक नहीं सीखा है।

Monday, June 14, 2021

राजस्थान में भगवान जगन्नाथ विशाल रथ को 85 किलो चांदी से किया जा रहा है तैयार।

भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा एक महोत्सव से कम नहीं होती है। जहां भगवान जगन्नाथ की एक झलक पाने के लिए श्रद्धालु उत्सुक रहते हैं। पुरी की जगन्नाथ यात्रा की तर्ज पर ही उदयपुर में भी भगवान जगन्नाथ की विशाल रथ यात्रा की तैयारी शुरू हो गई है। भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा के लिए राजस्थान में विशाल रथ तैयार किया जा रहा है। करीब दो साल से इसकी तैयारी की जा रही है। 28 खंडों को मिलाकर इस रजत रथ का निर्माण किया जा रहा है। रजत रथ में करीब 85 किलो चांदी चढ़ाई गई है। भले ही भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा को लेकर अभी असमंजस की स्थिति बरकरार हो लेकिन भक्त अपनी तैयारियों में कोई कमी नहीं छोड़ रहे हैं। पिछले वर्ष भी कोरोना महामारी के चलते रथ यात्रा को स्थगित किया गया था। इस वर्ष भी रथ यात्रा को लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं है। इन सबके बावजूद भगवान जगन्नाथ के लिए भक्तों की ओर से नया रजत रथ तैयार किया जा रहा है। यहां रथ यात्रा की परंपरा 368 साल पुरानी है यहां भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा की परंपरा 368 साल पुरानी है। पहले भगवान को मंदिर परिसर में परिक्रमा करवाई जाती थी लेकिन अब भगवान जगन्नाथ स्वयं भक्तों को दर्शन देने के लिए नगर भ्रमण पर निकलते हैं। भगवान जगन्नाथ के नगर भ्रमण के लिए तैयार किए जा रहे नए रजत रथ पर चांदी चढ़ाने का काम 6 कारीगरों द्वारा किया जा रहा है।

भगवान जगन्नाथ का नया रजत रथ अत्याधुनिक तकनीक से युक्त होगा। रथ की लंबाई 16 फिट, चौड़ाई 8 फीट और ऊंचाई 21 फीट होगी। रथ के पहियों को 6 इंच अंदर लिया गया है। इससे दुर्घटना नहीं होगी। रथ में हाइड्रोलिक ब्रेक लगाए जा रहे हैं। मंदिर परिसर में करीब दो दर्जन कार्यकर्ता दिन रात रथ को तैयार करने में जुटे हुए हैं। नए रथ को आकर्षक और खूबसूरत बनाने के प्रयास किए जा रहे हैं। नए रथ पर दोनों पहियों के ऊपर आगे हंस और पीछे शेर का मुख बनाया जा रहा है। रथ के पहिए हैदराबादी नक्काशी से बनाए गए हैं। रथ में हाइड्रोलिक ब्रेक लगाए जा रहे हैं ताकि रथ को आसानी से रोका जा सके। भगवान जगन्नाथ जब इस नए रजत रथ में विराजित होंगे तब भक्तों को दर्शन में परेशानी ना हो इसके लिए भी पूरा ध्यान रखा गया है।

Sunday, June 13, 2021

उत्तर प्रदेश में भी बना माता कोरोना का मंदिर, जाने क्या है खास।

देश में कोरोना वायरस के प्रकोप से कितने घर में मातम छाया हुआ है। हालांकि मेडिकल साइंस अपनी जी जान लगा रही है। लेकिन अब लोग इस संकट को भगाने के लिए पूजा-पाठ की तरफ जा रहे हैं। केरल के बाद उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ में कोरोना माता का मंदिर स्थापित किया गया है। इस मंदिर माता कोरोना की एक मूर्ति स्थापित की गई है। इस महामारी से मुक्ति पाने के लिए लोग लगातार इस मंदिर में पूजा अर्चना के लिए आ रहे हैं। हालांकि मंदिर में प्रवेश के लिए बनाए गए नियम लोगों को संक्रमण के प्रति जागरूकता का संदेश भी दे रहे हैं।

कोरोना संक्रमण ने लोगों के दिल में खौफ पैदा कर दिया है। परेशान लोगों ने अब आस्था की राह अपनाई है। सांगीपुर के पूरे जूही (शुकुलपुर) में महामारी से तीन मौतें हुईं तो लोग डर गए। गांव के लोकेश श्रीवास्तव की पहल के बाद ग्रामीणों ने 7 जून को कोरोना माता की मूर्ति स्थापित कराई।

बनवाई गई खास मूर्ति।
विशेष ऑर्डर पर तैयार करवाई गई मूर्ति को गांव में नीम के पेड़ के पास स्थापित कर इसे कोरोना माता मंदिर का नाम दे दिया गया। ग्रामीणों का मानना है कि, पूर्वजों ने चेचक को माता शीतला का स्वरूप माना था और अब कोरोना भी देवी माता का ही रूप है।

मंदिर में लिखे गए ये निर्देश।
ग्रामीणों का दावा है कि, यह विश्व का पहला कोरोना माता का मंदिर है। मंदिर में ऐसा लिखा भी गया है। मंदिर की दीवारों पर कुछ संदेश भी लिखे गए हैं। जिनमें कृपया दर्शन से पूर्व मास्क लगाएं, हाथ धोएं, दूर से दर्शन करें वरना...।

मंदिर में पीले फूल और...
इतना ही नहीं एक तरफ लिखा गया है कि कृपया सेल्फी लेते समय मूर्ति को न छुएं तो दूसरी तरफ कृपया पीले रंग का ही फूल, फल, वस्त्र, मिठाई, घंटा आदि चढ़ाएं। अब इसे अंधविश्वास कहें या लोगों की आस्था लेकिन मंदिर में बड़ी संख्या में लोग पूजा-अर्चना करने भी पहुंच रहे हैं।

केरल और कर्नाटक में बन चुके हैं मंदिर।
हालांकि इस तरह का कोरोना माता मंदिर केरल और तमिलनाडु के कोयंबटूर में कामचीपुरम इलाके में भी बना है। इससे पहले पिछले जून में, केरल के कोल्लम जिले के कडक्कल के एक मंदिर के पुजारी ने वायरस के डर को दूर करने के लिए अपने घर से जुड़े एक अस्थायी मंदिर में कोरोना देवी की मूर्ति स्थापित की थी।

Not:- ऐसी मान्यताओं को जय इंडिया पुष्टि नहीं करता।

मैं तो इंसानियत से मजबूर था तुम्हे बीच मे नही डुबोया" मगर तुमने मुझे क्यों काट लिया!

नदी में बाढ़ आती है छोटे से टापू में पानी भर जाता है वहां रहने वाला सीधा साधा1चूहा कछुवे  से कहता है मित्र  "क्या तुम मुझे नदी पार करा ...