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Tuesday, June 30, 2020

भारत मां की रक्षा के लिए 5-5 युद्ध लडने वाले परमवीर योद्धा माँ भारती के सपूत #जनरल श्री सैम मानेकशॉ

सैम मानेकशॉ का जन्म 3 अप्रैल 1914 को अमृतसर में एक पारसी परिवार में हुआ था। उनका परिवार गुजरात के शहर वलसाड से पंजाब आ गया था। मानेकशॉ का असली नाम साइरस था। उन्हीं दिनों उस नाम के एक पारसी को किसी जुर्म में जेल हुई थी। उसके बाद उनकी चाची ने उनका नाम मानेकशॉ रख दिया। प्रारंभिक शिक्षा अमृतसर में की, बाद में वे नैनीताल के शेरवुड कॉलेज में दाखिला ली। वे देहरादून के इंडियन मिलिट्री एकेडमी के पहले बैच (1932) के लिए चुने गए 40 छात्रों में से एक थे। वहां से वे कमीशन प्राप्ति के बाद 1934 में भारतीय सेना में भर्ती हुए।


1937 में एक सार्वजनिक समारोह के लिए लाहौर गए सैम की मुलाकात सिल्लो बोडे से हुई। दो साल की यह दोस्ती 22 अप्रैल 1939 को विवाह में बदल गई। 1969 को उन्हें सेनाध्यक्ष बनाया गया और 1973 में फील्ड मार्शल का सम्मान प्रदान किया गया।


17वी इंफेंट्री डिवीजन में तैनात सैम ने पहली बार द्वितीय विश्व युद्ध में जंग का स्वाद चखा 4-12 फ्रंटियर फोर्स रेजिमेंट के कैप्टन के तौर पर बर्मा अभियान के दौरान सेतांग नदी के तट पर जापानियों से लोहा लेते हुए वे गम्भीर रूप से घायल हो गए थे।


स्वस्थ होने पर मानेकशॉ पहले स्टाफ कॉलेज क्वेटा, फिर जनरल स्लिम्स की 14 वीं सेना के 12 फ्रंटियर राइफल फोर्स में लेफ्टिनेंट बनकर बर्मा के जंगलों में एक बार फिर जापानियों से दो-दो हाथ करने पहुँचे गए।, यहाँ वे भीषण लड़ाई में फिर से बुरी तरह घायल हुए, द्वितीय विश्वयुद्ध खत्म होने के बाद सैम को स्टॉफ आफिसर बनाकर जापानियों के आत्मसमर्पण के लिए इंडो-चाइना भेजा गया जहां उन्होंने लगभग 10000 युद्ध बंदियों के पुनर्वास में अपना योगदान दिया।


1946 में वे फर्स्ट ग्रेड स्टॉफ ऑफिसर बनकर मिलिट्री आपरेशंस डायरेक्ट्रेट में सेवारत रहे, भारत के विभाजन के बाद 1947-48 की भारत-पाकिस्तान युद्ध 1947 की लड़ाई में भी उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। भारत की आजादी के बाद गोरखों की कमान संभालने वाले वे पहले भारतीय अधिकारी थे। गोरखों ने ही उन्हें सैम बहादुर के नाम से सबसे पहले पुकारना शुरू किया था। तरक्की की सीढ़ियाँ चढ़ते हुए सैम को नागालैंड समस्या को सुलझाने के अविस्मरणीय योगदान के लिए 1968 में पद्मभूषण से नवाजा गया।


7 जून 1969 को सैम मानेकशॉ ने जनरल कुमारमंगलम के बाद भारत के 8 वें चीफ ऑफ द आर्मी स्टाफ का पद ग्रहण किया, उनके इतने सालों के अनुभव के इम्तिहान की घड़ी तब आई जब हजारों शरणार्थियों के जत्थे पूर्वी पाकिस्तान से भारत आने लगे और युद्घ अवश्यंभावी हो गया, दिसम्बर 1971 में यह आशंका सत्य सिद्घ हुई, सैम के युद्घ कौशल के सामने पाकिस्तान की करारी हार हुई तथा बांग्लादेश का निर्माण हुआ, उनके देशप्रेम व देश के प्रति निस्वार्थ सेवा के चलते उन्हें 1972 में।  पद्मविभूषण तथा 1 जनवरी 1973 को फील्ड मार्शल के पद से नवाजा गया। चार दशकों तक देश की सेवा करने के बाद सैम बहादुर 15 जनवरी 1973 को फील्ड मार्शल के पद से सेवानिवृत्त हुए। 1973 में सेना प्रमुख के पद से सेवानिवृत्त होने के बाद वे वेलिंगटन,   तमिलनाडु में बस गए थे। वद्धावस्था में उन्हें फेफड़े संबंधी बिमारी हो गई थी और वे कोमा में चले गए। उनकी मृत्यु वेलिंगटन के सैन्य अस्पताल के आईसीयू में 27 जून 2008 को रात 12.30 बजे हुई।


सैम मानेक्शॉ बहुत खुले दिल के बहादुर सैनिक थे। मानेकशॉ खुलकर अपनी बात कहने वालों में से थे। उन्होंने एक बार तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को 'मैडम' कहने से इनकार कर दिया था। उन्होंने कहा था कि यह संबोधन 'एक खास वर्ग' के लिए होता है। मानेकशॉ ने कहा कि वह उन्हें प्रधानमंत्री ही कहेगे।


भारतीय सेना के परमवीर योद्धा माँ भारती के सपूत  #जनरल श्री सैम मानेक्शॉ जी को सरकार की तरफ से जो सम्मान मिलना चाहिए ओ सम्मान कांग्रेस सरकार के तरफ से और सम्मान नहीं मिला। हकीकत यह है कि 1971 में जब इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थी उस समय फिल्ड मार्शल  मानेक्शा आर्मी चीफ थे, इंदिरा गाँधी ने उन्हें पाकिस्तान पर  चढाई करने का आदेश दिया। इसके जवाब में जनरल मानेकशा ने कहा सैनिक तैयार हैे, पर उचित समय पर युद्ध करेंगे। इंदिरा गाँधी ने ताबड़तोड़ चढाई करने का हुकूम दिया। परंतु, उचित समय पर ही सेना ने चढ़ाई करके सिर्फ 13 दिनों में पूर्वी पाकिस्तान को बांगलादेश बना दिया। उचित समय आने पर श्री मानेक्शा इंदिरा गाँधी से बोले..."मै आपके राजकाज में दखल नही देता.. वैसे ही आप भी सैन्य कार्यवाही में दखल मत दीजिये" इस के पश्चात 1971 के बाद से जनरल मानेकशा जी का वेतन का सारे हिस्सा रोक के कुछ थोड़ा हिस्सा दिया जाने लगा। परंतु, माँ भारती के इस सपूत ने कभी भी अपने कटा वेतन की मांग नही की। 25 साल बाद जब वो हॉस्पिटल में थे तब एक दिन तत्कालीन राष्ट्रपति श्री  ए. पी. जे. अब्दुल कलाम, उनसे मिलने गए। उस वक्त बातचीत के बाद राष्ट्रपति श्री ए. पी. जे. अब्दुल कलाम ने अपने देश के लिए 5-5  युद्ध लडने वाले वीर जबज योद्धा को 1971 के बाद से काट के दिया जा रहा वेतन को तत्काल कार्यवाही करके उनकी शेष राशि का भुगतान लगभग 1.3 करोड़ रुपये का चेक भिजवाया।
आज उस महान योद्धा की पुण्यतिथि है,(29/ जून) उन्हें सत् सत् नमन!
जय_हिन्द 🇮🇳
भारत_माता_की_जय !

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