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Friday, August 14, 2020

आखिर क्यों! पशु की लाश खाने से पाप लगता है तो अन्न खाने से पाप क्यों नही लगता। "वेदांत दर्शन"

"वेदांत सूत्र" को वेदों का निचोड़ कहा जाता है। ये जितना कठिन है, समझने में उतना ही गज़ब का ग्रंथ है। इसमें लगभग सभी प्रश्नों का उत्तर है। ये वेद व्यास की रचना है। यानी ईश्वरीय रचना है। वेदांत सूत्र में प्रश्न ये है की अगर पशु की लाश खाने से पाप लगता है तो अन्न खाने से पाप क्यों नही लगता, वेद (विज्ञान) के अनुसार अन्न भी जीव है।
वेदांत सूत्र उत्तर देता है कि "पशु में प्राण एवम चेतना दोनों होती है,वो दर्द महसूस करते है। जबकि अन्न या फल इत्यादि में चेतना नही होती सिर्फ प्राण होते है। उन्हें तकलीफ महसूस नही होती इसीलिए उन्हें खाना पाप नही,और ईश्वर ने उन्हें खाने के लिए ही बनाया इसीलिए अन्न या फल में चेतना नही डाली"
बहुत ही शानदार एवम आम बुद्धि से समझ मे आने वाला उत्तर है।
फिर भगवद गीता ,जो ईश्वरीय ज्ञान है उसमें स्वयं भगवान कह रहे है कि मांसाहार असुर या दैत्यों का आहार है। ये चार पाप के स्तम्भो में से एक है।

1.) जब राजा वेन ने यज्ञ में पशु बलि दे देकर अति कर दी थी तब उन्हें नरक की प्राप्ति हुई थी।

2.) राजा शिवि ने कबूतर के प्राण बचाने हेतु खुद के शरीर का मांस दान किया था। क्योंकि वो किसी भी पशु पक्षी की हत्या के सख्त खिलाफ थे।

3.) भक्तमाल में जिक्र मिलता है कि जब कर्णप्पा ने हिरण का शिकार किया और बाद में शूलपाणि शंकर प्रकट हुए तो शिव ने उपदेश दिया कि "किसी पशु की हत्या भोजन के उद्देश्य से करना पाप है वत्स"

4.) नाथ सम्प्रदाय की स्थापना करने वाले मत्स्येंद्रनाथ ने अपने माता पिता का त्याग महज 5 वर्ष की आयु में कर दिया था क्योंकि उनके माता पिता मछली खाते थे।

5.) पशु बलि मांगने पर शिव अवतारी गुरु गोरक्षनाथ ने देवी काली को बंदी बना लिया था।

ये है ऐतिहासिक दृष्टिकोण...
बाकी राम, कृष्ण, बुद्ध, महावीर, गुरु नानक इत्यादि सभी ने एक स्वर में इसे पाप कहा है। यही भारतीय दर्शन है।

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