हम सभी आज जो भी हैं अपने शिक्षकों के प्रयासों और नेक मार्गदर्शन के कारण ही हैं। भारतीय जीवन-दर्शन में गुरुओं को ईश्वर से भी बढ़कर बताया गया है। भिन्न भिन्न कवी, लेखकों ने गुरु की महिमा को अपने अपने विचारों को भिन्न भिन्न तरीको से व्यक्त किया है।
कबीर दास जी कहते हैं...
गुरु गोविन्द दोऊ खड़े काके लागै पाएं ।
बलिहारी गुरु आपने गोविन्द दिओ बताए।।
कबीर दास जी कहते हैं...
गुरु गोविन्द दोऊ खड़े काके लागै पाएं ।
बलिहारी गुरु आपने गोविन्द दिओ बताए।।
शिक्षक दिवस की शुरुआत और इसके इतिहास के बारे में बात करें तो द्वितीय राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म 5 सितंबर 1888 को तमिलनाडु में हुआ था। उन्हीं के सम्मान में इस दिन को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। डॉ. राधाकृष्णन देश के द्वितीय राष्ट्रपति थे और उन्हें भारतीय संस्कृति के संवाहक, प्रख्यात शिक्षाविद्, महान दार्शनिक और एक आस्थावान हिन्दू विचारक के तौर पर याद किया जाता है। पूरे देश को अपनी विद्वता से अभिभूत करने वाले डा. राधाकृष्णन को भारत सरकार ने सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से अलंकृत किया था।
गुरुर्ब्रह्मा ग्रुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः ।
गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः ॥
गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः ॥
इस शिक्षक दिवस के अवसर पर हम उन तमाम गुरुओं को नमन वंदन करते।
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