रामविलास पासवान में गजब की प्रतिभा निखरी। 89 वर्षीय श्री सिंह कहते हैं वर्ष 1969 में मैं मुंगेर जिला सोशलिस्ट पार्टी का अध्यक्ष था। जाड़े का मौसम था और नहाकर आया था। धूप में देह सुखाने के ख्याल से बैठा था और उस समय के पार्टी का अखबार जनता लेकर पढ़ रहा था। तभी देखा सड़क पर से एक कुर्तापाजामा पहने दुबला पतला लड़का पार्टी आफिस की तरफ आ रहा था। मैं अखबार पढ़ता रहा।
वह लड़का मेरे सामने पहुंचा और प्रणाम कर खड़ा हो गया। मैंने पूछा किधर आए हैं। तो वे कहने लगे – जी मेरा नाम रामविलास पासवान है और मैं अलौली क्षेत्र का निवासी हूं और आपसे सोशलिस्ट पार्टी का टिकट मांगने आया हूं। मैंने सामने की स्टूल बढ़ा दी और कहा -बैठिए। वह बैठ गया और कहा – सर आप चाहेंगे तो मुझे टिकट मिल जाएगा। मैंने कहा – आप चुनाव कैसे लडयिएगा। कहां सर ही न व्यवस्था कराएंगे। मैंने कहा -, कितने तक पढ़े लिखे हैं तो कहे कि बीए पास हूं। ठीक हे एक आवेदन टिकट के लिए लिखिए। वह सामने से हटकर आवेदन लिखने लगा।
उस समय अलौली से कांग्रेस के विधायक मिश्री सदा हुआ करते थे। वे आजादी के बाद से ही लगातार जीत रहे थे। वहां से सोशलिस्ट पार्टी से कोई लड़का हिम्मत कर टिकट मांगने आया था। मैंने मन में विचार किया ,इसकी मदद करनी चाहिए। तबतक वह आवेदन लिखकर दे आया था । हमने उसके आवेदन की गलतियों की फ्रूफ रीडिंग कर ठीक किया और कहा ठीक है मैं आज ही पटना जा रहा हूं और वहां से पार्टी सिंबल ले लूंगा। आप सोमवार को यहां से पार्टी सिंबल ले जाइएगा। मैं पटना गया और अपने पार्टी के नेता कर्पूरी ठाकुर और अन्य को आवेदन दिखा सारी बात की जानकारी दी। वे लोग मेरे सुझाव को मानकर टिकट फाइनल कर दिया। मैंने सिंबल ले लिया और नियत तिथि को पार्टी आफिस में पहुंचा। रामविलास जी पहले से पहुंचे थे । जब मैंने सिंबल दिया तो कहने लगे सर गरीब आदमी हूं , चुनाव खर्च की कुछ व्यवस्था हो जाती तो अच्छा होता। मैंने एक हजार रूपये दिए। वे सोशलिस्ट के टिकट पर चुनाव जीत गए। उस समय बेगूसराय जिले के गढ़पुरा ब्लाक के कुछ पंचायत अलौली विधानसभा क्षेत्र में ही थे। जो मेरे क्षेत्र के बगल में था। मैंने उस क्षेत्र में इनकी मदद की।
इसके बाद वे लगातार राजनीतिक सोपान चढ़ते गए। वर्ष 1972 का विधानसभा चुनाव में मिश्री सदा से हार गए। इसके बाद हुए छात्र आंदोलन में कूद पड़े। वर्ष 1977 में हाजीपुर से रेकर्ड मतों से जीते और जनता पार्टी के एमपी बन गए। इसके बाद कभी पीछे मुड़कर नहीं देखे। सांसद, विभिन्न विभागों के केन्द्रीय मंत्री और पार्टी के लगातार अध्यक्ष बनते रहे। राजनीति के मौसम वैज्ञानिक से लेकर अवसरवाद और परिवार के कुनबों को राजनीति में बढ़ाते देश के शीर्ष राजनीति में हावी रहे। केन्द्र की बदलती सरकारों के साथ सरोकार जोड़ने की रणनीति के ये सिद्धहस्त थे। ऐसे नेता के निधन से देश ने एक जमीनी नेता को खो दिया।
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