देवों के देव महादेव अनादि, आदि, मध्य और अनंत है। शिव है प्रथम और शिव ही है अंतिम। जो शिव के प्रति शरणागत नहीं है वह प्राणी दुख के गहरे गर्त में डूबता जाता है ऐसा पुराण कहते हैं। क्या आपको पता है भगवान शिव को भी श्राप मिला है। और ये वह श्राप है जिसके कारण उन्हें अपने ही पुत्र मस्तक काटना पड़ा। चलिए जानते आखिर क्यों काटना पड़ा शिव को भगवान गणेश का मस्तक।
एक समय में माली और सुमाली दो राक्षस थे जो शिव को समर्पित थे। सूर्य देव उन राक्षसों को उनके पापों के लिए मारने वाले थे। राक्षसों ने शिव से प्रार्थना की और शिव ने उनकी रक्षा के लिए हस्तक्षेप किया।
उन्होंने सूर्य को अपने त्रिशूल से मार दिया और इससे सारी दुनिया अंधेरे में डूब गयी। त्रिशूल की चोट से सूर्य की चेतना नष्ट हो गई और वह तुरंत रथ से नीचे गिर पड़े। जब कश्यपजी ने देखा कि उनका पुत्र मरणासन्न अवस्था में हैं, तो वे उसे छाती से लगाकर फूट-फूटकर विलाप करने लगे।
सारे देवताओं में हाहाकार मच गया। सभी भयभीत होकर रोने लगे। तब ब्रह्मा के पौत्र तपस्वी कश्यप जी ने शिवजी को शाप दिया, वे बोले जैसा आज तुम्हारे प्रहार के कारण मेरे पुत्र का हाल हो रहा है। ठीक वैसे ही तुम्हारे पुत्र पर भी होगा।
तुम स्वयं अपने ही पुत्र का मस्तक काट दोगे। इसी श्राप के कारण ऐसे संयोग बने कि महादेव को गणेश जी का सर काटना पड़ा।
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