सोचिए जरा ...
1. यह उस मंदिर के लिए किया गया दान है जिसके लिए 78 बार युद्ध हो चुके हैं। लाखों हिन्दुओं ने बलिदान दिया है।
2. 27 फरवरी के बाद अगर आप दो चार करोड़ भी दान करना चाहेंगे तो चाहकर भी दान नहीं कर पाएंगे क्योंकि यह अंतिम तिथि है और संघ की यही कार्य प्रणाली और अनुशासन है।
3. इसकी 10 रुपए की रसीद को आप फ्रेम में मढ़वा कर अपने पूजा घर में रख सकते हैंं।
4. दो चार पीढ़ियों के बाद आपके घर के लोग गर्व से कहेंगे हमारे परदादा ने भी श्रीराम मंदिर के लिए दान दिया था.. इसकी रसीद हमारे घर में आज भी है
5. अगर आपके नाती पोते किसी के घर जाएंगे।उनके ड्राइंग रूम में इन पर्चियों की फोटो फ्रेम टंगी होगी तो आपकी आने वाली पीढ़ियाँ यह तो नहीं कहेंगी कि हमारे परदादा ने 492 वर्ष बाद बनने वाले मंदिर के लिए कुछ नहीं दिया था। उनको भी कुछ करना तो जरूर चाहिए था।
6. कल संसार भर से लोग उस अद्वितीय मंदिर को देखने आएंगेे। वहाँ दान पात्र में 10 रुपए भी डालेंगे, लेकिन मंदिर बनाने के लिए देना और मंदिर बनने के बाद दान देना।दोनो बातें अलग-अलग है।
7. जब आप अयोध्या जी जाएंगे तो आपको उस अद्वितीय मंदिर को देखकर अपने उस निर्णय पर कितना गर्व होगा जब आपने 10 रुपए की रसीद कटवाई थी।
8. संघ अगर चाहता तो दो चार दिनों में देश विदेश से हजारों करोड़ रुपए इस मंदिर के लिए जमा कर लेता। लेकिन ऐसा न करके इसने हर हिन्दू को एक अमूल्य अवसर दिया है कि वे भी अपना अंशदान कर सकेंं।
9. समर्पण निधि की पर्चियाँ आपके क्षेत्र में काटने अगर कोई नहीं पहुंचा तो कौन काट रहा है। ये रसीद बुक किसके पास हैंं। ये आपको स्वयं पता भी करना पड़े तो अवश्य कीजिए। ये संघ के स्वयंसेवकों विहिप के पदाधिकारियों के पास अवश्य मिलेंगी।
10. ये अमूल्य रसीदें हैं, इनको ढूंढिए नहीं तो इस ऐतिहासिक अवसर को गंवाने के बाद कल आपको कितना पछतावा होगा।
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