बताया जाता है कि जोधपुर के राव राजा मालदेव अपनी बारात लेकर जैसलमेर गए थे, जहां पर उनकी शादी उमादे भटियानी के साथ वैशाख शुक्ल चौथ 1591 को हुई थी। शादी के बाद राजा मालदेव शादी की खुशी में आयोजित महफिल में शराब के नशे में मदहोश हो गये और रानी उनका इंतजार करती रही। देर रात को रानी ने अपनी दासी भारमली को मालदेव के पास उनको याद दिलाने भेजा लेकिन मदहोश राजा मालदेव ने भारमली को ही अपनी रानी समझ कर उसके साथ आलंगित हो गए।
बहुत देर होने के बाद जब दासी वापस नहीं लौटी तो उमादे रानी आरती का थाल लेकर वहां पहुंची लेकिन वहां का दृश्य देखकर रानी उमादे थाल गिराकर रूठ कर चली गई। इसके बाद राजा मालदेव को होश आने पर पता चला कि उनसे बहुत बड़ी गलती हो गई, जिसके बाद उन्होंने रानी उमादे को मनाने की काफी कोशिश की लेकिन प्रेम की आन-बान-शान की पवित्रता पर रानी उमादे मजबूत रही और उन्होंने राजा मालदेव को क्षमा नहीं किया।
ताउम्र रानी उमादे राजा मालदेव से रूठी रही इसीलिए आज भी रूठी रानी के नाम से रानी उमादे इतिहास के पन्नों में दर्ज है। भारतीय पतिव्रता धर्म के अनुसार राजा मालदेव के देहावसान पर उनकी पगड़ी लेकर रानी उमादे सती हो गई परंतु नारी की आन-बान-शान और पवित्रता को दाग नहीं लगने दिया।
इतिहासकार क्या बताते हैं।
मशहूर इतिहासकार और शिक्षाविद् राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित शिक्षक गोविंद कला ने ज़ी मीडिया से बातचीत करते हुए बताया कि भले ही दुनिया वैलेंटाइन डे मना रही है लेकिन रानी उमादे ने इसी दिन शादी की थी और वैलेंटाइन को महत्व दिया था। जीते जी प्यार के ऊपर कोई दाग नहीं लगने दिया और यही कारण है कि उनके प्रेम त्याग साहस और पवित्रता को लेकर आज भी इतिहास में उनका नाम रूठी रानी के नाम से दर्ज है।
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