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Friday, August 14, 2020

पंडित जवाहरलाल नेहरू और कमला नेहरू दोनों कि अलग होने की कहानी

जवाहर लाल नेहरू की पत्नी कमला नेहरू की मौत की सच्चाई।
टीवी चैनेलो पर सबसे ज्यादा कांग्रेसी चिल्लाते हैं, कि मोदी जी ने अपनी पत्नी को छोड़ दिया l लेकिन आज यह भयावह सच्चाई भी जानिये!

नेहरु की पत्नी कमला नेहरु को टीबी हो गई थी, उस जमाने में टीबी का दहशत ठीक ऐसा ही था जैसा आज कोरोना का है। क्योंकि तब टीबी का इलाज नही था और इन्सान तिल तिल तडप तडपकर पूरी तरह गलकर हड्डी का ढांचा बनकर मरता था। और कोई भी टीबी मरीज में पास भी नही जाता था क्योकि टीबी सांस से फैलती थी। लोग पहाड़ी इलाके में बने टीबी सेनिटोरियम में भर्ती कर देते थे। नेहरु में अपनी पत्नी को युगोस्लाविया के प्राग शहर में सेनिटोरियम में भर्ती करवा दिया।
कमला नेहरु पूरे दस सालों तक अकेले टीबी सेनिटोरियम में पल पल मौत का इंतजार करती रही। लेकिन नेहरु दिल्ली में एडविना और दूसरों के साथ इश्क फरमाता रहे लेकीन अपनी धर्म पत्नी से मिलने नहीं गए। मजे की बात ये कि इस दौरान नेहरु कई बार ब्रिटेन गया लेकिन एक बार भी वो प्राग जाकर अपनी धर्मपत्नी का हालचाल नही पूछा। नेताजी सुभाषचन्द्र बोस को जब पता चला तब वो प्राग गये। डाक्टरों से और अच्छे इलाज के बारे में बातचीत की।
 प्राग के डाक्टरों ने कहा कि स्विट्जरलैंड के बुसान शहर में एक आधुनिक टीबी हॉस्पिटल है जहाँ इनका अच्छा इलाज हो सकता है। तुरंत ही नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने उस जमाने में 70 हजार रूपये इकट्ठे किये और उन्हें विमान से स्विटजरलैंड के बुसान शहर में होस्पिटल में भर्ती किया। लेकिन कमला नेहरु असल में मन से बेहद टूट चुकी थी। उन्हें इस बात का दुःख था की उनका पति उनके पास पिछले दस सालो से हालचाल लेने तक नही आये और दूसरे लोग उनकी देखभाल कर रहे है।
दो महीनों तक बुसान में भर्ती रहने के बाद 28 February 1936 को बुसान में ही कमला नेहरु की मौत हो गयी। उनके मौत के दस दिन पहले ही नेताजी सुभाषचन्द्र ने नेहरु को तार भेजकर तुरंत बुसान आने को कहा था।लेकिन नेहरु नही आये। फिर नेहरु को उसकी पत्नी के मौत का तार भेजा गया। फिर भी नेहरु अपनी पत्नी के अंतिम संस्कार में भी नही आये। अंत में स्विटजरलैंड के बुसान शहर में ही नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने नेहरु की पत्नी कमला नेहरु का अंतिम संस्कार करवाया। वामपंथी तथा कथित इतिहासकारों ने इस खानदान की गंदी सच्चाई ही इतिहास की किताबो से गायब कर दी।

परमवीर मेजर शैतान सिंह, जो मरने तक चलाते रहे अपने पैर से मशीन-गन ।

लेफ्टिनेंट कर्नल हेम सिंह जिन्होंने प्रथम विश्व युद्ध के दौरान फ्रांस में भारतीय सेना के साथ सेवा की और ब्रिटिश सरकार द्वारा ऑर्डर ऑफ द ब्रिटिश एम्पायर  (ओबीई) से सम्मानित किए गए थे।  उनके पुत्र शैतान सिंह भाटी का जन्म 1 दिसम्बर 1924 को राजस्थान के जोधपुर जिले के बंसार गांव के एक राजपूत परिवार में हुआ था। अगर शक्ल और नाम देखेंं तो कोई मेल नहीं खाता।


शैतान सिंह ने जोधपुर के राजपूत हाई स्कूल में अपनी मैट्रिक तक की पढाई की । स्कूल में वह एक फुटबॉल खिलाड़ी के रूप में अपने कौशल के लिए जाने जाते थे। 1943 में स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद सिंह जसवंत कॉलेज गए और उन्होंने 1947 में स्नातक किया। 1 अगस्त 1949 को वह एक अधिकारी के रूप में जोधपुर राज्य बलों में शामिल हो गए। 

जोधपुर की रियासत का भारत में विलय हो जाने के बाद उन्हें कुमाऊं रेजीमेंट में स्थानांतरित कर दिया गया। उन्होंने नागा हिल्स ऑपरेशन तथा 1961 में गोवा के भारत में विलय में हिस्सा लिया था। उन्हें 11 जून 1962 को उन्हें मेजर पद के लिए पदोन्नत किया गया था। 

रेज़ांग ला का युद्ध 

युद्ध के दौरान कुमाऊं रेजिमेंट की 13वीं बटालियन को चुसुल सेक्टर में तैनात किया गया था। समुद्र तल से 5,000 मीटर (16,000 फीट) की ऊंचाई पर, सिंह की कमान में सी कंपनी रेजांग ला में एक स्थान पर थी, और इस क्षेत्र को पांच प्लाटून पोस्टों द्वारा बचाव किया जा रहा था। 18 नवंबर 1962 की सुबह चीनी सेना ने हमला कर दिया पर भारतीयों ने आक्रामक तरीके से तैयारी की थी क्योंकि उन्होंने चीनी सेना को सुबह 5 बजे के मंद प्रकाश में आगे बढ़ते हुए देखा था। जैसे ही भारतीयों ने दुश्मन को पहचाना, उन पर लाइट मशीन गन, राइफल्स, मोर्टार, और ग्रेनेड, से हमला कर दिया और कई चीनी सैनिक मार गिराए। 5:40 बजे चीनी सेना ने पुनः मोर्टार से हमले करने शुरू कर दिए और लगभग 350 चीनी सैनिकों ने आगे बढ़ना शुरू किया। चीनी सेना द्वारा सामने से किए गए हमले असफल होने के बाद लगभग चार सौ चीनी सैनिकों ने पीछे से हमला किया। साथ ही 8वीं प्लाटून पर मशीन गन और मोर्टार से पोस्ट के तार बाड़ के पीछे से हमला किया गया और 7वीं प्लाटून पर 120 चीनी सैनिकों ने पीछे से हमला किया। भारतीयों ने 3 इंच (76 मिमी) मोर्टार के गोले से मुकाबला किया और कई चीनी सैनिकों को मार दिया। जैसे ही आखिरी 20 जीवित लोग बचे, भारतीयों ने अपनी खाइयों से बाहर निकल कर चीनी सैनिकों के साथ हाथ से हाथ से लड़ने लड़ने लग गए। हालांकि प्लाटून जल्द ही चीन के अतिरिक्त सैनिकों के आगमन से घेर ली गई और आखिरकार 7वीं और 8वीं प्लाटून में से कोई जीवित नहीं बचा।

युद्ध के दौरान मेजर सिंह भाटी लगातार पोस्टों के बीच सामंजस्य तथा पुनर्गठन बना कर लगातार जवानों का हौसला बढ़ाते रहे। चूँकि वह एक पोस्ट से दूसरी पोस्ट पर बिना किसी सुरक्षा के जा रहे थे अतः वह गंभीर रूप से घायल हो गए और वीर गति को प्राप्त हो गए। इस युद्ध में भारत के 123 में से 109 सैनिक शहीद हुए थे। वीरगति को प्राप्त होने के बाद इनके पार्थिव शरीर को जोधपुर लाया गया था और सैन्य सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया।

वीर सावरकर के साथ आखिर क्यों हुआ अन्याय?

45 साल के महात्मा गाँधी 1915 में भारत आये, 2 दशक से भी ज्यादा दक्षिण अफ्रीका में बिता कर। इससे 4 साल पहले 28 वर्ष का एक युवक अंडमान में एक कालकोठरी में बन्द। अंग्रेज दिन भर कोल्हू में बैल की जगह उसे हाँकते हुए तेल पेरवाते थे, रस्सी बटवाते थे और छिलके कूटवाते थे। वो तमाम कैदियों को शिक्षित कर रहा था, उनमें राष्ट्रभक्ति की भावनाएँ प्रगाढ़ कर रहा होता था और साथ ही दीवालों कर कील, काँटों और नाखून से साहित्य की रचना कर रहा था। उसका नाम था विनायक दामोदर सावरकर। जो आगे चलकर वीर सावरकर बने। उन्हें आत्महत्या के ख्याल आते थे। उस खिड़की की ओर एकटक देखते रहते थे, जहाँ से अन्य कैदियों ने पहले आत्महत्या की थी। पीड़ा असह्य हो रही थी। यातनाओं की सीमा पार हो रही थी। अंधेरा उन कोठरियों में ही नहीं, दिलोदिमाग पर भी छाया हुआ था। दिन भर बैल की जगह खटो, रात को करवट बदलते रहते थे। 11 साल ऐसे ही बीता दिए। कैदी उनकी इतनी इज्जत करते थे कि मना करने पर भी उनके बर्तन, कपड़े वगैरह धो देते थे, उनके काम में मदद करते थे। सावरकर से अँग्रेज बाकी कैदियों को दूर रखने की कोशिश करते थे। अंत में बुद्धि को विजय हुई तो उन्होंने अन्य कैदियों को भी आत्महत्या से विमुख किया।
लेकिन नहीं, महा गँवारों का कहना है कि सावरकर ने मर्सी पेटिशन लिखा, सॉरी कहा, माफ़ी माँगी..ब्ला-ब्ला-ब्ला। मूर्खों, काकोरी कांड में फसे क्रांतिकारी रामप्रसाद बिस्मिल ने भी माफ़ी माँगी थी, तो? उन्हें भी 'डरपोक' करार दोगे? बताओ। उन्होंने भी माफ़ी माँगी थी अंग्रेजों से। क्या अब इस कसौटी पर क्रांतिकारियों को तौला जाएगा? शेर जब बड़ी छलाँग लगाता है तो कुछ कदम पीछे लेता ही है। उस समय उनके मन में क्या था, आगे की क्या रणनीति थी- ये आज कुछ लोग बैठे-बैठे जान जाते हैं। कौन ऐसा स्वतंत्रता सेनानी है जिसे 11 साल कालापानी की सज़ा मिली हो। नेहरू? गाँधी? कौन?
नानासाहब पेशवा, महारानी लक्ष्मीबाई और वीर कुँवर सिंह जैसे कितने ही वीर इतिहास में दबे हुए थे। 1857 को सिपाही विद्रोह बताया गया था। तब इसके पर्दाफाश के लिए 20-22 साल का एक युवक लंदन की एक लाइब्रेरी का किसी तरह एक्सेस लेकर और दिन-रात लग कर अँग्रेजों के एक के बाद एक दस्तावेज पढ़ कर सच्चाई की तह तक जा रहा था, जो भारतवासियों से छिपाया गया था। उसने साबित कर दिया कि वो सैनिक विद्रोह नहीं, प्रथम स्वतंत्रता संग्राम था। उसके सभी अमर बलिदानियों की गाथा उसने जन-जन तक पहुँचाई। भगत सिंह सरीखे क्रांतिकारियों ने मिल कर उसे पढ़ा, अनुवाद किया।
दुनिया में कौन सी ऐसी किताब है जिसे प्रकाशन से पहले ही प्रतिबंधित कर दिया गया था? अँग्रेज कितने डरे हुए थे उससे कि हर वो इंतजाम किया गया, जिससे वो पुस्तक भारत न पहुँचे। जब किसी तरह पहुँची तो क्रांति की ज्वाला में घी की आहुति पड़ गई। कलम और दिमाग, दोनों से अँग्रेजों से लड़ने वाले सावरकर थे। दलितों के उत्थान के लिए काम करने वाले सावरकर थे। 11 साल कालकोठरी में बंद रहने वाले सावरकर थे। हिंदुत्व को पुनर्जीवित कर के राष्ट्रवाद की अलख जगाने वाले सावरकर थे। साहित्य की विधा में पारंगत योद्धा सावरकर थे। आज़ादी के बाद क्या मिला उन्हें? अपमान। नेहरू व मौलाना अबुल कलाम जैसों ने तो मलाई चाटी सत्ता की, सावरकर को गाँधी हत्या केस में फँसा दिया। गिरफ़्तार किया। पेंशन तक नहीं दिया। प्रताड़ित किया। 60 के दशक में उन्हें फिर गिरफ्तार किया, प्रतिबंध लगा दिया। उन्हें सार्वजनिक सभाओं में जाने से मना कर दिया गया।
ये सब उसी भारत में हुआ, जिसकी स्वतंत्रता के लिए उन्होंने अपना जीवन खपा दिया। आज़ादी के मतवाले से उसकी आज़ादी उसी देश में छीन ली गई, जिसे उसने आज़ाद करवाने में योगदान दिया था। शास्त्री जी PM बने तो उन्होंने पेंशन का जुगाड़ किया। वो कालापानी में कैदियों को समझाते थे कि धीरज रखो, एक दिन आएगा जब ये जगह तीर्थस्थल बन जाएगी। आज भले ही हमारा पूरे विश्व में मजाक बन रहा हो, एक समय ऐसा होगा जब लोग कहेंगे कि देखो, इन्हीं कालकोठरियों में हिंदुस्तानी कैदी बन्द थे। सावरकर कहते थे कि तब उन्हीं कैदियों की यहाँ प्रतिमाएँ होंगी। आज आप अंडमान जाते हैं तो सीधा 'वीर सावरकर इंटरनेशनल एयरपोर्ट' पर उतरते हैं। सेल्युलर जेल में उनकी प्रतिमा लगी है। उस कमरे में प्रधानमंत्री भी जाकर ध्यान धरता है, जिसमें सावरकर को रखा गया था। सावरकर का अपमान करने का अर्थ है, अपने आप का अपमान है।

मुंबई के 5 सबसे महंगे घर, इनकी क़ीमत और उसका मालिकाना हक के बारे में जानिए...

हर इंसान का सपना होता है, कि उसके पास सिर छिपाने के लिए एक घर हो। छोटा ही सही पर एक मकान जिसे वो अपना कह सके। दुनिया में ज़्यादातर लोग इस सपने को पूरा करने में ही अपनी पूरी ज़िंदगी बिता देते हैं। लेकिन सपनों की नगरी मुंबई की बात से सायद ही कोई जुदा हो। ये वो शहर है, जो कभी सोता नहीं लेकिन विडंबना तो देखिए इसी शहर में दुनिया के कुछ सबसे महंगे घर बने हैं, जिन्हें सुकून भरी नींद के लिए तैयार किया गया है।
ये घर न केवल शहर के प्रमुख आवासों में से एक हैं, बल्क़ि देश की फ़ाइनेंशियल कैपिटल कहलाने वाली इस नगरी के महत्वपूर्ण लैंडमार्क भी हैं। आज हम आपको मुंबई के 5 सबसे महंगे घरों के बारे में बताएंगे। साथ ही, इन घरों की क़ीमत और उनके मालिक़ों के बारे में भी जानकारी देंगे।

1-एंटीलिया (Antilia)

फ़ोर्ब्स द्वारा इसकी क़ीमत 1 बिलियन डॉलर आंकी गई है। ये न सिर्फ़ मुंबई और भारत में सबसे महंगा घर है, बल्क़ि पूरी दुनिया के सबसे महंगे आवासों में शामिल है। इस आलीशान घर के मालिक मुकेश अंबानी हैं, जो दुनिया के छठे सबसे अमीर शख़्स के तौर पर फ़ोर्ब्स की रियल-टाइम बिलियनेयर लिस्ट में शामिल हैं।
बिज़नेस इनसाइडर के मुताबिक, दक्षिण मुंबई में स्थित एंटीलिया 27 मंज़िलों और 9 हाई-स्पीड एलीवेटर्स से लैस है। इसमें एक बहुमंज़िला गैराज है जो 168 कारों को समायोजित कर सकता है, और इसमें 3 हेलीपैड, एक भव्य बॉलरूम, एक थिएटर, एक स्पा, एक मंदिर और कई सीढ़ीदार बगीचे भी हैं।

2- जटिया हाउस (Jatia House)

मुंबई के मालाबार हिल्स के ऊपर स्थित ये आशियाना आदित्य बिरला ग्रुप के चेयरमैन कुमार मंगलम बिड़ला का है। वे आदित्य बिड़ला समूह के चौथी पीढ़ी के प्रमुख हैं। मिड-डे की एक रिपोर्ट के अनुसार, ये घर 2926 वर्ग मीटर में फैला है और इसमें कम से कम 28,000 वर्ग फ़ुट का एक निर्मित क्षेत्र है। इस घर की क़ीमत 425 करोड़ रुपये है।
3- गुलिता (Gulita)

साउथ मुंबई के वर्ली में स्थित ये घर ईशा अंबानी और पीरामल है। द इकोनॉमिक टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, घर को पीरामल ने 2012 में ख़रीदा था, जिसकी कुल क़ीमत 452 करोड़ रुपये थी। ये पांच मंज़िला आलीशान घर है, जिसमें तीन बेसमेंट हैं। इनमें से दो पार्किंग के लिए रिज़र्व हैं और एक में बड़ा सा लॉन है।
ग्राउंड फ़्लोर में ग्रांड एंटरेंस लॉबी है और ऊपरी मंज़िल मे रहने और खाने के हॉल हैं। साथ ही ट्रिपल-हाई-मल्टी परपस रूम्स के अलावा बेडरूम और सर्कुलर स्टडी भी शामिल है।

4- लिंकन हाउस (Lincoln House)

लिंकन हाउस, जिसे पहले वांकानेर हाउस के रूप में जाना जाता था, शहर की सबसे महंगी हेरिटेज प्रॉपर्टीज़ में से एक है। दक्षिण मुंबई के ब्रीच कैंडी क्षेत्र में 50,000 वर्ग फ़ुट में स्थित इस घर के मालिक साइरस पूनावाला हैं। मिड-डे के मुताबिक़, उन्होंने 2015 में इसे 750 करोड़ रुपये में ख़रीदा था।
ये हवेली मूल रूप से वांकानेर के महाराजा एचएच सर अमरसिंहजी बानसिंहजी के लिए 1993 में ब्रिटिश वास्तुकार क्लाउड बट्टले ने बनाया था।

5- मन्नत (Mannat)

हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, शाहरुख़ ख़ान के बांद्रा में संपत्ति ख़रीदने के दो दशक बाद घर की क़ीमत 200 करोड़ रुपये है। मन्नत छह मंजिला एनेक्सी, कई बेडरूम, एक छत, एक बगीचा, एक एलीवेटर सिस्टम, एक निजी थिएटर, पर्सनल क्वार्टर और एक बड़ा एंटरटेनमेंट स्पेस शामिल है।

Friday, August 7, 2020

2 लाख रुपये लगाकर खड़ा किया बंधन बैंक, 20 पर्सेंट शेयर बेच कमाए 10,600 करोड़।

बंधन बैंक के संस्थापक चंद्र शेखर घोष ने अपनी हिस्सेदारी बेचकर 10,600 करोड़ रुपये की रकम हासिल की है। आरबीआई की ओर से दिए गए दिशानिर्देशों के तहत बैंक के सीईओ घोष ने यह हिस्सेदारी बेची है। बैंक में अब उनकी 60.95% की बजाय 40% हिस्सेदारी होगी। आरबीआई के नियमों के मुताबिक किसी भी वित्तीय संस्थान में किसी एक व्यक्ति की 40 फीसदी से ज्यादा हिस्सेदारी नहीं हो सकती। घोष की ओर से ऐसा न करने के चलते बीते साल आरबीआई ने बंधन बैंक की शाखाओं के विस्तार पर रोक लगा दी थी। बांग्लादेश के एक गरीब परिवार में जन्मे घोष का सफर फर्श से अर्श पर पहुंचने की कहानी है।

कभी साइकल पर चलने वाले घोष कैसे इस मुकाम तक पहुंचे…
चंद्रशेखर घोष का जन्म ग्रेटर त्रिपुरा में 1960 में हुआ था। छह भाई-बहनों में सबसे बड़े घोष के परिवार में कुल 15 सदस्य थे और पिता मिठाई की एक छोटी सी दुकान चलाते थे। परिवार में सबसे बड़े बेटे होने के चलते घोष ने पिता को आर्थिक तौर पर सहारा देने के लिए दूध बेचना शुरू किया था और बच्चों को ट्यूशन पढ़ाकर भी कुछ रुपये कमा लेते थे। हालांकि इस संघर्ष के बीच भी उनकी पढ़ाई जारी रही और स्टैटिस्टिक्स में ढाका यूनिवर्सिटी से उन्होंने एमए किया था। इसके बाद 1985 में वे ढाका स्थित एक BRAC से जुड़े जो बांग्लादेश के गांवों में गरीब महिलाओं को मदद करने वाला इंटरनेशनल ऑर्गनाइजेशन था।
कहते हैं कि यहीं से चंद्रशेखर घोष को बंधन बैंक जैसा कुछ शुरू करने की प्रेरणा मिली। बेहद गरीबी में गुजर कर रहीं महिलाओं को अकसर अपने पतियों की प्रताड़ना भी झेलनी पड़ती थी। घोष को महसूस हुआ कि यदि इन महिलाओं के हाथों में कुछ आर्थिक शक्ति हो तो वे अपने और परिवार के जीवन को तब्दील कर सकती हैं। विलेज वेलफेयर सोसायटी के साथ काम कर चुके घोष ने अपने अनुभव को आगे बढ़ाते हुए महिलाओं के लिए माइक्रोफाइनेंस की संस्था शुरू की। इसके बाद 2001 में उन्होंने महज 2 लाख रुपये से बंधन-कोननगर संस्था की शुरुआत की। यह रकम भी रिश्तेदारों से कर्ज के तौर पर ली गई थी। इसके जरिए वह गरीब महिलाओं को कम दर पर लोन दिया करते थे।
चंद्रशेखर घोष कहते हैं कि जुड़ाव को दर्शाने के लिए उन्होंने ‘बंधन’ शब्द को चुना और फिर इसी नाम से बैंक की स्थापना की। अपने शुरुआती दिनों के बारे में बताते हुए वह कहते हैं, ‘मैं पश्चिम बंगाल के हुगली जिले के छोटे-छोटे गांवों में यात्राएं करता था और महिलाओं को लोन लेने के लिए समझाता था ताकि वे अपने बच्चों को पढ़ा सकें। शुरुआत में महिलाएं संदेह की नजर से देखती थीं।’ इसके बाद 2009 में उन्होंने बंधन को नॉन-बैंकिंग फाइनेंस कंपनी के तौर पर स्थापित किया और 2014 में बैंकिंग का लाइसेंस हासिल किया।

Wednesday, August 5, 2020

जानिए राम मंदिर का डिजाइन किसने और कब बनाया था।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज अयोध्या के राम मंदिर निर्माण के भूमि पूजन की नींव रखी। भूमि पूजन से पहले पीएम मोदी हनुमानगढ़ी में हुनमान जी की पूजा और आरती की। उसके बाद तय मुहूर्त पर पीएम मोदी ने राम मंदिर की आधार शिला रखी। जिसके बाद अब मंदिर का निर्माण कार्य शुरू हो जाएगा। लेकिन क्या आप जानते हैं कि राम मंदिर का भव्य निर्माण कौन कर रहा है। ये वहीं आर्किटेक्ट हैं जिन्होंने 31 साल पहले 
इसकी नींव रखी थी।
दरअसल गुजरात के चंद्रकांत भाई सोमपुरा ने आज से 31 साल पहले राम मंदिर का डिजाइन तैयार किया था। गुजरात के आर्किटेक्ट चंद्रकांत भाई सोमपुरा ने बताया है कि अशोक सिंघल उन्हें अयोध्या लेकर गए थे और अशोक सिंघल ने उनसे मंदिर बनाने के लिए डिजाइन तैयार करने के लिए कहा था।
वीएचपी ने 31 साल पहले गुजरात के आर्किटेक्ट चंद्रकांत भाई सोमपुरा से राम मंदिर का मॉडल बनवाया था। चंद्रकांत भाई सोमपुरा ने एक न्यूज़ चैनल से बातचीत में बताया है कि उन्होंने जो डिजाइन बनाई है, वैसा मंदिर निर्माण होने में तकरीबन तीन साल का समय लग सकता है।
उन्होंने बताया है कि मंदिर नागर शैली का है। इसकी लंबाई 270 फीट है, मंदिर 145 फीट चौड़ा है और 145 फीट ऊंचा है। गर्भगृह, चौकी, सीता मंदिर, लक्ष्मण मंदिर, भरत मंदिर और गणेश मंदिर है। चार द्वार हैं। कथाकुंज, स्टाफ का रूम आदि भी बनाया गया है।
सोमपुरा का कहना है कि 31 साल पहले उन्होंने अपने पैर से जमीन मापी थी और उसी के आधार पर मंदिर का डिजाइन तैयार किया था। उनका कहना है कि मंदिर बनने में तीन साल लगेगा। यह मंदिर बाकी मंदिरों से अलग होगा। अष्टकोणीय मंदिर होगा।

Monday, August 3, 2020

हिंदू धर्म में रक्षाबन्धन का महत्व ।

किसी भी धार्मिक अनुष्ठान या पूजा पाठ में रक्षासूत्र बांधते समय सभी आचार्य एक श्लोक का उच्चारण करते हैं। जिसमें रक्षाबन्धन का सम्बन्ध राजा बलि से स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होता है। यह श्लोक रक्षाबंधन का अभीष्ट मंत्र है।
"येन बद्धो बलि: राजा दानवेन्द्रो महाबल:। तेन
त्वामभिबध्नामि रक्षे मा चल मा चल॥"
अर्थात - जिस रक्षासूत्र से महान शक्तिशाली दानवेन्द्र राजा बलि को बांधा गया था,उसी रक्षाबन्धन से मैं तुम्हें बांधता हूं जो तुम्हारी रक्षा करेगा। रक्षाबंधन का त्यौहार श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है।
रक्षाबंधन में राखी या रक्षासूत्र का सबसे अधिक महत्व है। राखी कच्चे सूत जैसे सस्ती वस्तु से लेकर रंगीन कलावे, रेशमी धागे, तथा सोने या चांदी जैसी मंहगी वस्तु तक की हो सकती है। राखी सामान्यतः बहनें भाई को बांधती हैं। परंतु पुत्री द्वारा पिता को, दादा को,चाचा को आथवा कोई भी किसी को भी सम्बन्ध मधुर बनाने की भावना से,सुरक्षा की कामना के साथ रक्षासूत्र बाँध सकता है | 
प्रकृति संरक्षण के लिए वृक्षों को राखी बांधने की परंपरा भी प्रारंभ हो गई है| सनातन परम्परा में किसी भी कर्मकांड व अनुष्ठान की पूर्णाहुति बिना रक्षा सूत्र बांधे पूरी नहीं होती |

मैं तो इंसानियत से मजबूर था तुम्हे बीच मे नही डुबोया" मगर तुमने मुझे क्यों काट लिया!

नदी में बाढ़ आती है छोटे से टापू में पानी भर जाता है वहां रहने वाला सीधा साधा1चूहा कछुवे  से कहता है मित्र  "क्या तुम मुझे नदी पार करा ...