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Monday, November 28, 2022

वो जगह जहां कर्ण का हुआ था अंतिम संस्कार, हजारों साल से यहां के पेड़ में लगे हैं केवल तीन पत्ते...

सूरत: सनातन परंपरा की धरती भारत में ऐसे कई रहस्य हैं, जिसके बारे में बहुत कम लोगों को पता है। ऐसी ही एक जगह है सूरत शहर का बरछा इलाका, जहां महाबली कर्ण का अंतिम संस्कार हुआ था। यहां के लोग कहते हैं कि कर्ण की इच्छा के मुताबिक भगवान कृष्ण ने खुद ही उनका अंतिम संस्कार किया था। कहा जाता है कि केवल एक इंच ज़मीन पर कर्ण का अंतिम संस्कार हुआ था। यहीं पर केवल एक इंच भूमि ही ऐसी थी जहां इसके पहले किसी का शवदाह नहीं हुआ था और इतनी कम भूमि पर शव रखना और उसका दहन करना संभव नहीं हो सकता था। भगवान कृष्ण ने उस भूमि के टुकड़े पर एक बाण रखकर उसके ऊपर कर्ण का शरीर रखा और अंतिम संस्कार किया।


अब आपके जहन में ये बात आ रही होगी कि आखिर एक इंच जमीन पर क्यों हुआ कर्ण का अंतिम संस्कार? इसके पीछे एक बड़ी कहानी है। दरअसल महाभारत में युद्ध के 17वें दिन महायोद्धा कर्ण की मृत्यु हो गई थी। भगवान कृष्ण की प्रेरणा से अर्जुन ने दिव्यास्त्र की सहायता से कर्ण को मारने में सफलता पाई थी। मान्यता है कि कर्ण की वीरता और दानवीरता से प्रसन्न भगवान कृष्ण ने उनके जीवन के अंतिम क्षणों में एक वरदान मांगने को कहा था। कर्ण ने उनसे ऐसी भूमि पर अपना अंतिम संस्कार किए जाने की इच्छा जताई थी, जहां उसके पहले कभी किसी का अंतिम संस्कार न हुआ हो।

कर्ण की जब मृत्यु हुई तो भगवान श्रीकृष्ण ने कर्ण की इच्छानुसार जमीन खोजने का बहुत प्रयत्न किया, लेकिन पूरी पृथ्वी पर भूमि का कोई ऐसा टुकड़ा नहीं मिला, जहां उसके पहले किसी व्यक्ति की अंतिम क्रिया न हुई हो। केवल सूरत शहर में ताप्ती नदी के किनारे एक इंच भूमि ऐसी मिली, जहां उसके पहले कभी किसी का शवदाह नहीं हुआ था और फिर यहां उनका अंतिम संस्कार किया गया। सूरत शहर में यह स्थान अब 'तुल्सीबड़ी मंदिर' के रूप में जाना जाता है जिसकी आसपास के लोगों में बड़ी श्रद्धा है।


यहां आए श्रद्धालुओं का मानना है कि ताप्ती नदी के किनारे इस मंदिर की बड़ी मान्यता है और हजारों लोग इसके दर्शन के लिए आते हैं। यहीं पर एक गोशाला स्थापित की गई है जहां गायों की सेवा की जाती है। पूरी एरिया में इस मंदिर के प्रति लोगों की असीम श्रद्धा है और हर वर्ग के लोग इसके दर्शन करने आते हैं। इसके समीप ही बागनाथ मंदिर भी है। यहां तीन पत्ता बड़ का मंदिर भी है। यहां बरगद का एक पेड़ है जिसके बारे में लोगों की मान्यता है कि इसकी उम्र हजारों साल की है, लेकिन इसमें आज तक केवल तीन ही पत्ते आए हैं। तीनों पत्ते सदाबहार रहते हैं, ये आज भी हरे-भरे हैं। लेकिन इसमें कभी कोई नया पत्ता नहीं आता। इस बड़ (बरगद) को घेरकर एक मंदिर बना दिया गया है जहां आसपास के लोग दर्शन के लिए आते हैं। अमावस और पूर्णिमा को यहां आने वाले श्रद्धालुओं-दर्शकों की संख्या बहुत बढ़ जाती है। ताप्ती नदी के किनारे तीन पत्ते बड़ वाला यह मंदिर लोगों की आस्था का बड़ा केंद्र है।

Saturday, November 12, 2022

तीर्थ यात्रा के दौरान का मेरा अनुभव। और VIP व्यवस्था जो की भगवान के दर्शन के दौरान देखने और लेने पड़ते हैं।

समय ज़्यादा दूर नहीं जब भगवान ख़ुद चल कर भक्त के घर तक पहुँचेंगे, फ़्री में दर्शन करने हैं तो सुबह चार बजे से लाइन लगाओ। फिर जा कर भगवान का गर्भगृह के दरवाजे से पूरे धक्का मुक्की के साथ दूर से दर्शन करो। पूर्वांचल की भाषा में कहे तो बिना टिकट जनरल डिब्बे के जैसे। तत्पशाचात आता है अगली श्रेणि जिसमे भगवान के दर्शन के लिए 15 रुपए या उससे ज्यादा का होता हैं, जिसमें समझ लो जनरल डिब्बे की टिकट के साथ रेल का सफ़र भगवान दर्शन तो देंगे गर्भगृह के दरवाजे से थोड़ा कम धक्का मुक्की के। उसके बाद अगली व्यवस्था 250 रुपए या उससे अधिक का होता हैं टिकट लेकर दर्शन की ( वो स्लीपर क्लास के जैसे समझ लो ) मतलब हर कोई ये व्यवस्था लेकर दर्शन की लाइन में लगेगा लेकिन दर्शन दूर से करेगा। थोड़ा उससे कम धक्का मुक्की के साथ अगली व्यवस्था 750 रुपए या उससे ज्यादा का जिसमें भक्त गर्भग्रह में जा सकता है , भगवान को हाथ लगा सकता है , जल चढ़ा सकता है , अभिषेक कर सकता है। अकेले या गर्भगृह के पंडित जी के साथ।

अगली व्यवस्था है 3000 रुपए या उससे अधिक वाली जिसमें भक्त के साथ एक पंडित भी रहेगा, वो गर्भग्रह में भगवान के सामने 5 मिनट के लिए आपसे पूजा करवाएगा, जल चढ़वाएगा, अभिषेक करवाएगा मंत्रोच्चरण के साथ। अगली व्यवस्था है 6000 रुपए या उससे अधिक वाली जिसमें भक्त के साथ पंडित और फ़ोटो ग्राफ़र भी जाएगा और जाता भी हैं।
  
💐 जल्द ही निम्नलिखित व्यवस्था देखने को मिलेंगी। 

🚩 अगली व्यवस्था होगी 6 लाख वाली जिसमें भक्त और उसके परिवार को भगवान विशेष दर्शन देंगे।

🚩 अगली व्यवस्था 6 करोड़ वाली जिसमें भगवान मंदिर से पालकी में निकल कर भक्त के hotel जाकर उसके रूम में दर्शन देंगे। 

🚩 अगली व्यवस्था होगी 100 करोड़ वाली जिसमें भगवान मंदिर से पालकी से निकल कर सीधे भक्त के घर दर्शन देने जाएँगे। 

🚩 लास्ट हज़ार करोड़ कोई देगा तो भगवान भक्त के घर ही अपना आसन लगा लेंगे। 

ये बहुत दुःखद हैं जो हमारे भगवान का नहीं सिस्टम का उपहास है जिसमें सिस्टम ने भगवान को बेचना शुरू कर दिया है। 

कोई इसे भगवान की आलोचना ना समझे यह सही हैं हमने अनुभव किया है, जो व्यापार बनता जा रहा है।🙏

Thursday, October 6, 2022

भारत के ऐसे 14 टूरिस्ट प्लेस, जहाँ कम बजट में मिलेगी भरपूर आनंद की अनुभूति

Top 14 Cheap Tourist Places of India:- आजकल हर इंसान पैसे कमाने की जद्दोजहद में लगा हुआ है। हम सभी अपनी दिनचर्या में अत्यधिक व्यस्त रहते हैं और ये सोचते हैं कि इस दौड़भाग के जीवन से दूर जाकर कहीं शांतिपूर्ण वातावरण में जाकर अपने और परिवार के लिए कुछ समय निकाला जाए और इस सुकून को पाने के लिए चाहे हम कहीं भी चले जाएँ, पर असली आनन्द तो हमें प्रकृति की गोद में जाकर ही मिलता है। कुछ समय प्राकृतिक वातावरण में गुज़ारने पर हमारे अंदर नई ऊर्जा का संचार होता है और हम फिर से तरोताजा हो जाते हैं। अगर आप भी अपनी बोरिंग ज़िन्दगी से बाहर निकलकर कहीं प्राकृतिक माहौल में जाने की सोच रहे हैं, तो हम आपकी मदद कर सकते हैं, क्योंकि आज हम आपको कई ऐसे प्राकृतिक स्थानों से के बारे में बताने जा रहे हैं, जो खूबसूरत और शांतिपूर्ण तो हैं ही और आप वहाँ कम बजट में भी जा सकते हैं। तो चलिए जानते हैं इन जगहों के बारे मे! 

1. मेघालय की गुफाएँ (Meghalaya cave)
मेघालय में करेम पूरी नामक एक गुफा है, जो विश्व की सबसे लंबी गुफा है। यह गुफा बलुआ पत्थर से निर्मित है। करेम पूरी के अलावा भी मेघालय में दूसरी बहुत-सी गुफाएँ हैं, जहाँ पर आप अकेले भी वक़्त बिता सकते हैं।
2. मुन्नार (Munnar)
अगर आप हरियाली वाले प्राकृतिक सुंदरता से भरे स्थान पर जाना चाहते हैं, तो आपके लिए मुन्नार बहुत अच्छी जगह है। ये जगह सारी दुनिया में चाय के बगानों के लिए ख़ूब प्रसिद्ध है। जब आप इन हरे-भरे बागानों को देखेंगे तो आपकी आंखों और मन को अलग ही सुकून की अनुभूति होगी।
3. अंडमान-निकोबार (Andaman Nicobar)
कुदरती वातावरण को पसंद करने वालों के लिए अंडमान-निकोबार सबसे अच्छा विकल्प है। यहाँ स्थित द्वीपों पर जाकर आपको इतना आनन्द और शान्ति मिलेगी, जो आपने कभी किसी दूसरे स्थान पर अनुभव नहीं की होगी।
4. लद्दाख (Ladakh)
यहाँ जाने के लिए आपको किसी विशेष मौसम का इंतज़ार करने की ज़रूरत नहीं है, क्योंकि हर मौसम में इसकी खूबसूरती बरकरार रहती है। लद्दाख जाकर आपको लगेगा कि मानो स्वर्ग में आ गए हों, क्योंकि यहाँ का सुंदर और शांत वातावरण ऐसी ही अनुभूति देता है।
5. अलेप्पी (Alleppey)
जब फुर्सत के पल बिताने के लिए किसी शांत जगह की तलाश हो, तो अलेप्पी काफ़ी अच्छा विकल्प है। यहाँ की नहरों तथा पाम के पेड़ों के बीच में स्थित खूबसूरत जलभराव व हरियाली देखकर आपका मन रोमांचित हो जाएगा और आप कल्पनाओं के नये आयाम में पहुँच जाएंगे। इस जगह को पूरब का वेनिस भी कहते हैं।
6. मनाली (Manali)
हिमाचल प्रदेश के कुल्लू में स्थित यह हिल स्टेशन पर्यटकों के लिए छुट्टी बिताने की बेहद मशहूर जगह है। यहाँ बर्फ से ढके पहाड़, नदी घाटियाँ, अदभुत कैफे व शांत स्थानों के नज़ारे चारो तरफ़ दिखाई देते हैं। यहाँ आप ट्रेकिंग का आनन्द ले सकते हैं और साथ ही यहाँ सोलंग घाटी में पैराग्लाइडिंग का अनुभव भी ख़ूब मज़ेदार रहेगा।
7. डोंगरी ट्रेक (Dzongri Trek)
ये स्थान सिक्किम से 13 किमी की दूरी पर स्थित है। पहाड़ की चोटियों, रोडोडेंड्रोन जंगलों व घाटी में बहती नदी के शानदार नज़ारे इसकी सुंदरता में चार चांद लगा देते हैं। अगर आप अपनी क्षमता परखना चाहते हैं, तो यहाँ के अनछुए जंगलों में ट्रेकिंग करना आपके लिए एक अच्छा विकल्प हो सकता है।
8. फूलों की घाटी (Phulo ki ghati)
चारों ओर से रंग-बिरंगे फूलों और बर्फ से ढके पहाड़ों का आकर्षक नज़ारा देखना हो तो आप उत्तराखंड की फूलों की घाटी में ज़रूर जाइए। ख़ुशबू से महकते इस स्थान पर आपको हर महीने मौसम के अनुसार अलग-अलग प्रकार के खूबसूरत फूल दिखाई देंगे।
9. कच्छ का रण (Kutch ka Rann)
कच्छ का रण विश्व का सबसे बड़ा नमक का रेगिस्तान है, जो गुजरात में स्थित है। साधारणतया रेगिस्तान पीले होते हैं, लेकिन नमक की वज़ह से यह सफेद है। इसे द ग्रेट रण ऑफ कच्छ भी कहा जाता है। सूर्य की रोशनी में चमकते लवणीय कणों से युक्त इस जगह पर जाकर आपको शांतिपूर्ण वातावरण मिलेगा।
10. थार मरुस्थल (Thar Desert)
अकेले समय व्यतीत करने के लिए किसी शांत स्थान पर जाने का सोंच रहे हों, तो थार का मरुस्थल काफ़ी बेहतर है। अरावली के पहाड़ी के पश्चिमी किनारे पर स्थित यह मरुस्थल लहरदार रेतीले पहाड़ों का एक विस्तृत मैदान है। ये दुनिया का 17वां सबसे बड़ा रेगिस्तान है।
11. जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क (Jim Corbett National Park)
अगर आप प्रकृति और पशु प्रेमी हैं तो आपके लिए हिमालयन बेल्ट की तलहटी में स्थित जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क एक परफेक्ट प्लेस है। इसमें आपको शानदार परिदृश्य और विभिन्न पशु-पक्षियों की प्रजातियाँ मिलेंगी। यहाँ आप जंगल सफ़ारी का लुत्फ भी उठा सकते हैं।
12. ऋषिकेश के आश्रम (Rishikesh ka ashram)
प्रकृतिप्रेमियों और आस्थावानों के लिए इस ऋषिकेश में अनेक आकर्षक स्थल हैं। यहाँ गंगा के किनारे बसे आश्रम में आपको आध्यात्मिक शांति प्राप्त होगी।
13. सिंधू दुर्ग क़िला (Sindhudurg fort)
ऊंचे पहाड़ और समुद्र के किनारे इस सिंधू दुर्ग किले की सुंदरता को दोगुना कर देते हैं। यही वज़ह है कि यहाँ पूरे साल टूरिस्टों का तांता लगा रहता है। इस किले को छत्रपति शिवाजी महाराज ने बनवाया था। यह क़िला मुम्बई से दूर स्थित रत्नागिरी में है।
14. कुर्गू (Kurgu)
यह खुबसूरत हिल स्टेशन कर्नाटक का प्रमुख पर्यटन स्थल है, इसे भारत का स्कॉटलैंड भी कहते हैं। यहाँ की सुंदर घाटियाँ, रहस्‍यमयी पहाड़ियाँ, चाय व कॉफी के विस्तृत बागान, बुलंद चोटियाँ व तेजी से बहने वाली नदियाँ पर्यटकों को आकर्षित कर लेती हैं। यहाँ जाकर आप साहसिक खेलों का भी आनन्द उठा सकते हैं। प्राकृतिक सौंदर्य के कारण यह स्थान आपको बहुत आएगा।

Thursday, August 4, 2022

"रक्षाबंधन" हमने क्या क्या खो दिया इस बदलाव को पाते पात...

बहनें 200 से 1500/- की राखियाँ ख़रीद कर भाईयों काे बॉंधती हैं। जबकि राखी एक तीन रंग की माेली धागे सें प्रारंम्भ हुआ त्याेहार था, जिसकाे राखियाँ बनाने वाले उत्पादक 2000/- की राखी तक ले गये हैं। आप हम देखते हैं कि यह एक भावनाओं का त्याेहार हैं। बहनें लंम्बी दूरी सें भाई काे राखी बांधने व सम्मान पाने व भाई के परिवार को खुशियां देने आती हैं। राखी बांधनें का मतलब है भाई, तुम दीर्घायु हों और मेरी बुरे समय में रक्षा करना। परन्तु आज के दौर में बहनें भी इस होड में लगी हैं कि मेरी राखी सब से महंगी हो ताकि उसकी भाभीयां ये ताना ना मारें कि ननद बाईसा तो इसी राखी लावे सफा ही की पूछो मत, पर क्या वह महंगी राखी दिखावा बनकर नहीं रह गई? 

क्या हमने बहन को नीचा दिखाने के लिए घर बुलाया है या उसे यह अहसास दिलवाने कि अभी तेरा भाई है, तु फिक्र ना कर बहना। रक्षाबंन्धन पर भाई भी अपनी बहनाें काे उपहार रूप में काेई चीज व नगद देते हैं। लेकिन आजकल 50% ऐसा हाेता हमने देखा हैं कि बहन की राखी लागत ही उपहार में नहीं निकलती हैं। इसलिए हम कुछ ज़्यादा बहन काे देने की सोचते हैं, हमने इस चकाचौंध की जीवनशैली के कारण भाई-बहन के प्यार को पैसे के तराजू मे ही रख दिया। सभी भाइयों काे प्रण करना चाहिये कि हम सिर्फ बहन सें माेली धागा ही बंधवायेगें और मिठाई में सिर्फ गुड। और जाे देना हैं बहन काे वह देते रहेंगे। 

आप हम देखते हैं, कि राखियाँ हम सब 2-4 घंटे या सायं तक ही बाँधे रख पा रहे हैं और बहन का सैकडों रूपया उस राखी पर लगा धन था। जाे कुछ ही घंटे में स्क्रेप हाे गया। कृपया सुधार करके अपनें पुरानें माेली धागा या रेशम की सुन्दर गुँथी राखी बाँधे ताे आपका बीरा (भाई ) साल भर भी बांधे रखेगा। और यह बहन के लिए गर्व की बात होगी कि मेरा बिरा मेरे रक्षा के सूत्र को सदा बांधे रखता है। वहीं भाई को भी सदा बहन का स्मरण रहेगा कि मेरी बहन है मुझे सदा प्यार व दुलार बरसाने वाली। 

निवेदन - इसको सकारात्मक लें और युद्ध स्तर पर इसको समाज में प्रचलन में लाकर इसका परिवार सहित पालन करें, वहीं भाई बहन के प्यार को पैसे के तराजू में ना तोलें...


Tuesday, May 24, 2022

Gyanvapi case 1991: आज हम ऐसे हिंदू सनातनीय से मिलाने जा रहे है जो मुस्लिम बन कर मस्जिद में गए और साक्ष्य इक्कठा किए।

उत्तर प्रदेश के वाराणसी में स्थित ज्ञानवापी मस्जिद पर विवाद गहराता जा रहा है। हाल ही में खत्म हुए सर्वे की लीक रिपोर्ट का हवाला देकर कहा जा रहा है कि मस्जिद में मंदिर के कई प्रमाण मिले हैं। ऐसे में एक शख्स ऐसा भी है जो मस्जिद से मंदिर के प्रमाण जुटाने के लिए मुस्लिम बनकर ज्ञानवापी में प्रवेश किया। हम बात कर रहे हैं हरिहर पांडेय जी की। इस मामले पर हरिहर पांडेय जी ने न्यूज चैनल ज़ी न्यूज से खास बातचीत की है। जिसमे उन्होंने कुछ चौकाने वाले तथ्य और जानकारी रखी। आइये जानते हैं हरिहर पांडेय जी ने 1991 में ज्ञानवापी में क्या क्या देखा था।

1991 के ज्ञानवापी मुकदमे के मुख्य पक्षकार हरिहर पाण्डेय ने Zee News से Exclusive बातचीत में बताया कि वो 1991 में मंदिर के सबूतों को इकट्ठा करने के लिए मुस्लिम बन ज्ञानवापी परिसर में पहुंचे थे। उन्होंने कहा कि वो बाबा विश्वनाथ के पक्ष में सबूत इकट्ठा करने ज्ञानवापी परिसर में गए थे। हरिहर जी ने कहा, 'उस वक्त मैं रात 1 बजे जालीदार टोपी पहनकर ज्ञानवापी परिसर में गया। मैंने मंदिर का ढांचा देखा, मैंने अपनी आंखों से मंदिर के सबूत देखे और कोर्ट को आकर बताया'। उन्होंने कहा, 'मैंने कलश, कमल, हाथी, मगरमच्छ की आकृतियां देखीं। मैंने देखा कि मंदिर के मलबे को पत्थरों से ढक कर रखा गया है और उसके ऊपर इमारत बनाई गई है। मलबा हटाना चाहिए, मलबा हटेगा तो ज्योतिर्लिंग दिखेगा। परिसर में कई शिवलिंग मिलेंगे l हरिहर पांडेय जी ने आगे बताया कि उनके खुलासे के बाद मुस्लिम पक्ष उनसे मिलने पहुंचा था और पूछा था कि समाधान के क्या विकल्प हैं? उन्होंने कहा, 'मैंने मुस्लिम पक्ष को बताया कि सड़क किनारे मेरी 8 बीघे जमीन आप ले लीजिए और मस्जिद शिफ्ट कर लीजिए, वो तैयार नहीं हुए। मैंने फिर कहा कि हम मंदिर लेकर रहेंगे और फिर मुस्लिम पक्ष चला गया। मैं ही आखिरी व्यक्ति इस केस में जिंदा बचा हूं, मेरे साथ के दो पक्षकारों की मौत हो चुकी है। मैं आखिरी सांस तक यह केस लड़ूंगा, मेरे बाद मेरे बेटे लड़ेंगे लेकिन बाबा विश्वनाथ को आजाद कराएंगे'l

हरिहर पाण्डेय जी ने कहा कि देश की जनता को यह भी पता होना चाहिए कि ज्ञानकूप और ज्ञानवापी का अर्थ क्या है? उन्होंने कहा कि जब शिवजी.. पार्वती जी के साथ काशी आए तो स्वयंभू ज्योतिर्लिंग के जलाभिषेक के लिए जल की आवश्यकता थी, तो शिवजी ने अपने त्रिशूल से ज्ञानकूप बनाया और फिर जलाभिषेक हुआ। पार्वती जी को इसी स्थान पर शिवजी ने ज्ञान दिया, इसीलिए यह परिसर ज्ञानवापी कहलाता हैl

भगवान श्री काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग का सच पूरे देश के सामने रखा। श्री हरिहर पांडे जी और उनके परिवार को उच्च श्रेणी की सुरक्षा प्रदान की जानी चाहिए क्योंकि वह एक अति महत्वपूर्ण जीवित साक्ष्य हैं और उनके बाद उनके बेटे को भी खतरा बढ़ गया है। वैसे तो अभी दो पुलिस कांस्टेबल हरिहर पांडे जी की सुरक्षा में तैनात हैं लेकिन यह सुरक्षा हिंसक जिहादी मजहब वाले शत्रुओं का सामना करने में सक्षम नहीं हो सकेगी क्योंकि ज्ञान वापी मंदिर का मुद्दा इस समय विस्फोटक बना हुआ है और अंतरराष्ट्रीय जिहादी आतंकियों के निशाने पर आज हर वह हिंदू है जिसने ज्ञान वापी मंदिर के लिए न्यायालय में वाद प्रस्तुत किया है।

Saturday, May 7, 2022

महाभारत में चक्रव्यूह क्या था, इस युद्ध मे और कितने प्रकार के व्यूहों का उपयोग हुआ? आइये जानते हैं।

चक्रव्यूह का उल्लेख हिन्दू पौराणिक ग्रंथ महाभारत में हुआ है। इस व्यूह की रचना गुरु द्रोणाचार्य ने युद्ध के तेरहवें दिन की थी। अर्जुन के अतिरिक्त और कोई भी चक्रव्यूह भेदन नहीं जानता था। युधिष्ठिर को बंदी बनाने के लिए चक्रव्यूह की रचना की गयी थी। दुर्योधन इस चक्रव्यूह के बिलकुल मध्य में था। इस व्यूह में बाकी सात महारथी व्यूह की विभिन्न परतों में थे। व्यूह के द्वार पर जयद्रथ था।
अभिमन्यु ही इस व्यूह को भेदने में सफल हो पाया पर वह भी अंतिम द्वार(यानी परत) को पार नहीं कर सका तथा बाद में सात महारथियों द्वारा उसकी हत्या कर दी गयी। महाभारत युद्ध में पांडवों और कौरवों द्वारा कुछ और व्यूह रचे गए थे जो निम्न हैं।
महाभारत ग्रंथ के अनुसार व्यूह-रचना।
1. गरुड़-व्यूह
2. क्रौंच व्यूह
3. श्येन व्यूह 
4. सुपर्ण(गरुड़) व्यूह
5. सारंग व्यूह
6. सर्प व्यूह
7. खड्ग सर्प व्यूह
8. शेषनाग व्यूह 
9. मकर व्यूह
10. कुर्मा(कछुआ) व्यूह
11. वराह व्यूह
12. महिष व्यूह  
13. त्रिशूल व्यूह
14. चक्र व्यूह
15. अर्धचन्द्र व्यूह
16.  कमल व्यूह
17.  उर्मि व्यूह
18.  मंडल व्यूह
19.  वज्र व्यूह
20.  चक्रशकट व्यूह 
21.  शकट व्यूह, 
22.  सर्वतोभद्र व्यूह 
23.  शृंगघटक व्यूह
24.  चन्द्रकाल व्यूह 
25.  कमल व्यूह
26.  देव व्यूह
27.  असुर व्यूह
28.  सूचि व्यूह
29.  श्रीन्गातका व्यूह
30.  चन्द्र कला  
31.  माला व्यूह  
32.  पद्म व्यूह
33.  सूर्य व्यूह
34.  दण्डव्यूह 
35.  गर्भव्यूह 
36.  शंखव्यूह 
37.  मंण्डलार्ध व्यूह   
38.  हष्ट व्यूह  
39.  नक्षत्र मण्डल व्यूह
40.  भोग व्यूह
41.  प्रणाल व्यूह
42.  मण्डलार्द्ध व्यूह
43.  मयूर व्यूह
44.  मंगलब्यूह 
45.  असह्मव्यूह  
46.  असंहतव्यूह
47.  विजय व्यूह

प्राचीन भारत के 13 विश्वविद्यालय, जहां पढ़ने आते थे दुनियाभर के छात्र।

प्राचीन भारत के 13 विश्वविद्यालय, जहां पढ़ने आते थे दुनियाभर के छात्र। तुर्की मुगल आक्रमण ने सब जला दिया । बहुत हिन्दू मंदिर लूटे गये। नही तो मेगास्थनीज अलविरुनी इउ एन सांग के ग्रन्थो मे अति समृद्ध भारत का वर्णन है। वैदिक काल से ही भारत में शिक्षा को बहुत महत्व दिया गया है। इसलिए उस काल से ही गुरुकुल और आश्रमों के रूप में शिक्षा केंद्र खोले जाने लगे थे। वैदिक काल के बाद जैसे-जैसे समय आगे बढ़ता गया। भारत की शिक्षा पद्धति भी और ज्यादा पल्लवित होती गई। गुरुकुल और आश्रमों से शुरू हुआ शिक्षा का सफर उन्नति करते हुए विश्वविद्यालयों में तब्दील होता गया। पूरे भारत में प्राचीन काल में 13 बड़े विश्वविद्यालयों या शिक्षण केंद्रों की स्थापना हुई। 8 वी शताब्दी से 12 वी शताब्दी के बीच भारत पूरे विश्व में शिक्षा का सबसे बड़ा और प्रसिद्ध केंद्र था।गणित, ज्योतिष, भूगोल, चिकित्सा विज्ञान(आयुर्वेद ),रसायन, व्याकरण और साहित्य के साथ ही अन्य विषयों की शिक्षा देने में भारतीय विश्वविद्यालयों का कोई सानी नहीं था। हालांकि आजकल अधिकतर लोग सिर्फ दो ही प्राचीन विश्वविद्यालयों के बारे में जानते हैं पहला नालंदा और दूसरी तक्षशिला। ये दोनों ही विश्वविद्यालय बहुत प्रसिद्ध थे। इसलिए आज भी सामान्यत: लोग इन्हीं के बारे में जानते हैं, लेकिन इनके अलावा भी ग्यारह ऐसे विश्वविद्यालय थे जो उस समय शिक्षा के मंदिर थे। आइए आज जानते हैं प्राचीन विश्वविद्यालयों और उनसे जुड़ी कुछ खास बातों को..

1. नालंदा विश्वविद्यालय (Nalanda university)
यह प्राचीन भारत में उच्च शिक्षा का सबसे महत्वपूर्ण और विख्यात केन्द्र था। यह विश्वविद्यालय वर्तमान बिहार के पटना शहर से 88.5 किलोमीटर दक्षिण-पूर्व और राजगीर से 11.5 किलोमीटर में स्थित था। इस महान बौद्ध विश्वविद्यालय के भग्नावशेष इसके प्राचीन वैभव का बहुत कुछ अंदाज करा देते हैं। सातवीं शताब्दी में भारत भ्रमण के लिए आए चीनी यात्री ह्वेनसांग और इत्सिंग के यात्रा विवरणों से इस विश्वविद्यालय के बारे में जानकारी मिलती है। यहां 10,000 छात्रों को पढ़ाने के लिए 2,000 शिक्षक थे। इस विश्वविद्यालय की स्थापना का श्रेय गुप्त शासक कुमारगुप्त प्रथम 450-470 को प्राप्त है। गुप्तवंश के पतन के बाद भी आने वाले सभी शासक वंशों ने इसकी समृद्धि में अपना योगदान जारी रखा। इसे महान सम्राट हर्षवद्र्धन और पाल शासकों का भी संरक्षण मिला। भारत के विभिन्न क्षेत्रों से ही नहीं बल्कि कोरिया, जापान, चीन, तिब्बत, इंडोनेशिया, फारस तथा तुर्की से भी विद्यार्थी यहां शिक्षा ग्रहण करने आते थे।
इस विश्वविद्यालय की नौवीं शताब्दी से बारहवीं शताब्दी तक अंतरर्राष्ट्रीय ख्याति रही थी। सुनियोजित ढंग से और विस्तृत क्षेत्र में बना हुआ यह विश्वविद्यालय स्थापत्य कला का अद्भुत नमूना था। इसका पूरा परिसर एक विशाल दीवार से घिरा हुआ था। जिसमें प्रवेश के लिए एक मुख्य द्वार था। उत्तर से दक्षिण की ओर मठों की कतार थी और उनके सामने अनेक भव्य स्तूप और मंदिर थे। मंदिरों में बुद्ध भगवान की सुन्दर मूर्तियां स्थापित थीं। केन्द्रीय विद्यालय में सात बड़े कक्ष थे और इसके अलावा तीन सौ अन्य कमरे थे। इनमें व्याख्यान हुआ करते थे। अभी तक खुदाई में तेरह मठ मिले हैं। वैसे इससे भी अधिक मठों के होने ही संभावना है। मठ एक से अधिक मंजिल के होते थे। कमरे में सोने के लिए पत्थर की चौकी होती थी। दीपक, पुस्तक आदि रखने के लिए खास जगह बनी हुई है। हर मठ के आंगन में एक कुआं बना था। आठ विशाल भवन, दस मंदिर, अनेक प्रार्थना कक्ष और अध्ययन कक्ष के अलावा इस परिसर में सुंदर बगीचे व झीलें भी थी। नालंदा में सैकड़ों विद्यार्थियों और आचार्यों के अध्ययन के लिए, नौ तल का एक विराट पुस्तकालय था। जिसमें लाखों पुस्तकें थी।

2. तक्षशिला विश्वविद्यालय 
ये सब से प्राचीन विश्वविद्यालय है। महान राजनीतिज्ञ चाणक्य यहा के अध्यक्ष रहे। तक्षशिला विश्वविद्यालय की स्थापना लगभग 2700 साल पहले की गई थी। इस विश्विद्यालय में लगभग 10500 विद्यार्थी पढ़ाई करते थे। इनमें से कई विद्यार्थी अलग-अलग देशों से ताल्लुुक रखते थे। वहां का अनुशासन बहुत कठोर था। राजाओं के लड़के भी यदि कोई गलती करते तो पीटे जा सकते थे। तक्षशिला राजनीति और शस्त्रविद्या की शिक्षा का विश्वस्तरीय केंद्र थी। वहां के एक शस्त्रविद्यालय में विभिन्न राज्यों के 103 राजकुमार पढ़ते थे।

आयुर्वेद और विधिशास्त्र के इसमे विशेष विद्यालय थे। कोसलराज प्रसेनजित, मल्ल सरदार बंधुल, लिच्छवि महालि, शल्यक जीवक और लुटेरे अंगुलिमाल के अलावा चाणक्य और पाणिनि जैसे लोग इसी विश्वविद्यालय के विद्यार्थी थे। इसमें अलग-अलग छोटे-छोटे गुरुकुल होते थे। इन गुरुकुलों में व्यक्तिगत रूप से विभिन्न विषयों के आचार्य विद्यार्थियों को शिक्षा प्रदान करते थे।

3. विक्रमशीला विश्वविद्यालय (Vikramshila university)
विक्रमशीला विश्वविद्यालय की स्थापना पाल वंश के राजा धर्म पाल ने की थी। 8 वी शताब्दी से 12 वी शताब्दी के अंंत तक यह विश्वविद्यालय भारत के प्रमुख शिक्षा केंद्रों में से एक था। भारत के वर्तमान नक्शे के अनुसार यह विश्वविद्यालय बिहार के भागलपुर शहर के आसपास रहा होगा।
कहा जाता है कि यह उस समय नालंदा विश्वविद्यालय का सबसे बड़ा प्रतिस्पर्धी था। यहां 1000 विद्यार्थीयों पर लगभग 100 शिक्षक थे। यह विश्वविद्यालय तंत्र शास्त्र की पढ़ाई के लिए सबसे ज्यादा जाना जाता था। इस विषय का सबसे मशहूर विद्यार्थी अतीसा दीपनकरा था, जो की बाद में तिब्बत जाकर बौद्ध हो गया।

4. वल्लभी विश्वविद्यालय (Vallabhi university)
वल्लभी विश्वविद्यालय सौराष्ट्र (गुजरात) में स्थित था। छटी शताब्दी से लेकर 12 वी शताब्दी तक लगभग 600 साल इसकी प्रसिद्धि चरम पर थी। चायनीज यात्री ईत- सिंग ने लिखा है कि यह विश्वविद्यालय 7 वी शताब्दी में गुनामति और स्थिरमति नाम की विद्याओं का सबसे मुख्य केंद्र था। यह विश्वविद्यालय धर्म निरपेक्ष विषयों की शिक्षा के लिए भी जाना जाता था। यही कारण था कि इस शिक्षा केंद्र पर पढ़ने के लिए पूरी दुनिया से विद्यार्थी आते थे।
5. उदांत पुरी विश्वविद्यालय (Odantapuri university)
उदांतपुरी विश्वविद्यालय मगध यानी वर्तमान बिहार में स्थापित किया गया था। इसकी स्थापना पाल वंश के राजाओं ने की थी। आठवी शताब्दी के अंत से 12 वी शताब्दी तक लगभग 400 सालों तक इसका विकास चरम पर था। इस विश्वविद्यालय में लगभग 12000 विद्यार्थी थे।

6. सोमपुरा विश्वविद्यालय (Somapura mahavihara)
सोमपुरा विश्वविद्यालय की स्थापना भी पाल वंश के राजाओं ने की थी। इसे सोमपुरा महाविहार के नाम से पुकारा जाता था। आठवीं शताब्दी से 12 वी शताब्दी के बीच 400 साल तक यह विश्वविद्यालय बहुत प्रसिद्ध था। यह भव्य विश्वविद्यालय लगभग 27 एकड़ में फैला था। उस समय पूरे विश्व में बौद्ध धर्म की शिक्षा देने वाला सबसे अच्छा शिक्षा केंद्र था।
7. पुष्पगिरी विश्वविद्यालय (Pushpagiri university)
पुष्पगिरी विश्वविद्यालय वर्तमान भारत के उड़ीसा में स्थित था। इसकी स्थापना तीसरी शताब्दी में कलिंग राजाओं ने की थी। अगले 800 साल तक यानी 11 वी शताब्दी तक इस विश्वविद्यालय का विकास अपने चरम पर था। इस विश्वविद्यालय का परिसर तीन पहाड़ों ललित गिरी, रत्न गिरी और उदयगिरी पर फैला हुआ था।
नालंदा, तशक्षिला और विक्रमशीला के बाद ये विश्वविद्यालय शिक्षा का सबसे प्रमुख केंद्र था। चायनीज यात्री एक्ज्युन जेंग ने इसे बौद्ध शिक्षा का सबसे प्राचीन केंद्र माना। कुछ इतिहासकार मानते हैं कि इस विश्ववविद्यालय की स्थापना राजा अशोक ने करवाई थी।

अन्य विश्वविद्यालय (Other Universities)
प्राचीन भारत में इन विश्वविद्यालयों के अलावा जितने भी अन्य विश्वविद्यालय थे। उनकी शिक्षा प्रणाली भी इन्हीं विश्वविद्यालयों से प्रभावित थी। इतिहास में मिले वर्णन के अनुसार शिक्षा और शिक्षा केंद्रों की स्थापना को सबसे ज्यादा बढ़ावा पाल वंश के शासको ने दिया।

8. जगददला, पश्चिम बंगाल में (पाल राजाओं के समय से भारत में अरबों के आने तक
9. नागार्जुनकोंडा, आंध्र प्रदेश में।
10. वाराणसी उत्तर प्रदेश में (आठवीं सदी से आधुनिक काल तक)
11. कांचीपुरम, तमिलनाडु में
12. मणिखेत, कर्नाटक
13. शारदा पीठ, कश्मीर मे।

मैं तो इंसानियत से मजबूर था तुम्हे बीच मे नही डुबोया" मगर तुमने मुझे क्यों काट लिया!

नदी में बाढ़ आती है छोटे से टापू में पानी भर जाता है वहां रहने वाला सीधा साधा1चूहा कछुवे  से कहता है मित्र  "क्या तुम मुझे नदी पार करा ...