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Monday, August 31, 2020

मदर टेरेसा का वह सच्चाई जो मीडिया ने समाज के सामने कभी आने नहीं दिया।

26 अगस्त 1910 को जन्मी टेरेसा जिन्हें रोमन कैथोलिक चर्च द्वारा कलकत्ता की संत टेरेसा के नाम से नवाज़ा गया है। उनका जन्म आन्येज़े गोंजा बोयाजियू के नाम से एक अल्बेनीयाई परिवार में उस्कुब, उस्मान साम्राज्य में हुआ था। टेरसा रोमन कैथोलिक नन थीं, जिन्होंने 1948 में स्वेच्छा से भारतीय नागरिकता ले ली थी। हमारे इतिहासकारों के अनुसार शांति दूत टेरेसा ममता की मूरत थीं। 
दीन-दुखियों को गले लगाना और बीमार लोगों को 
मिशनरीज ऑफ चैरिटी में दाखिल करा कर उसका धर्म परिवर्तन करना उनका प्राथमिकता होती थी। भारत अपने दरिया दिली के लिए जाना जाता रहा हैं। संत टेरेसा के साथ भी ऐसा ही हुआ। संत टेरेसा कैथोलिक थीं, लेकिन उन्हें भारत की नागरिकता मिली हुई थी। उन्हें भारत के साथ साथ कई अन्य देशों की नागरिकता मिली हुई थी, जिसमें ऑटोमन, सर्बिया, बुल्गेरिया और युगोस्लाविया शामिल हैं। 
साल 1946 में उन्होंने गरीबों, असहायों की सेवा का संकल्प लिया था, जो सरासर झूठ है। निस्वार्थ सेवा के लिए टेरेसा ने 7 अक्तूबर 1950 में कोलकाता में 'मिशनरीज ऑफ चैरिटी' की स्थापना की थी। यह सच है। जिसमे 12 सदस्यों के साथ संस्था की शुरुआत भी हुई। जो उस समय करोड़ों का दान लेकर विदेशो में चर्च और धर्म के नाम पर पैसा जाता था। भारत में सिर्फ दान वसूला जाता था। और भारत की भोली भाली जनता सिर्फ मिशनरीज का बिस्तार करने में चैरिटी का पैसा उपयोग होता था। अब यह संस्था 133 देशों में युद्ध स्तर पे अपना काम कर रही हैं। भारत में इसका उदाहरण पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र के कुछ हिस्सो में देखा और सुना जा सकता हैं। 133 देशों में इनकी लगभग 4501 सिस्टर हैं। 1981 में उन्होंने अपना नाम बदल लिया था। अल्बानिया मूल की टेरेसा ने कोलकाता में गरीबों और पीड़ित लोगों के लिए जो किया वो दुनिया में अभूतपूर्व माना जाता हैं। मिशनरीज ऑफ चैरिटी संस्था में 100 से कम मरीज भर्ती थे। लेकिन उनकी संस्था में कोई डॉक्टर नहीं होते थे। पूरा देखभाल उनकी संस्था की सिस्टर ही करती थी। और उन्हें यहां तक कि किसी को दर्द निवारक दवा भी नहीं दी जाती थी। और ना ही उनके संस्था में दर्द निवारक दवा होती थी। मदर टेरेसा अपनी मृत्यु तक कोलकाता में ही रहीं और अपने नेक कार्यों में सफल रही।
आज भी उनकी संस्था अपना कार्य ईमानदारी से कर रही हैं। सबसे आशचर्य की बात तब होती हैं जब गरीब बीमार आशहाय लोगों को इलाज की जरूरत पड़ती थी तो 'मिशनरीज ऑफ चैरिटी' संस्था की सिस्टर ही डाक्टर का कार्य करती थी। जबकि संत टेरेसा अपने छोटी सी इलाज के लिए विदेशों में जाती थी।
अब हमें यह जानकर आश्चर्य होता है कि सरकार उन्हें कौन सा नेक काम करने के लिए नोबेल शांति पुरस्कार के साथ भारत रत्न, टेम्पटन प्राइज, ऑर्डर ऑफ मेरिट और पद्म श्री से भी नवाजा। 
 रॉबिन फॉक्स (Robin fox) रॉबिन फॉक्स जो एक ब्रिटिश जर्नलिस्ट थे उन्होंने अपने एक रिपोर्ट में बताया था कि मदर टेरेसा का आश्रम किसी भी तरह से एक हॉस्पिटल नहींं था। जहां मरीजों का इलाज हो सके। मलेरिया वाले मरीज और जिनका इलाज नहीं हो सकता था आखरी स्टेज कैंसर वाला मरीजों दोनों को एक साथ रखा जाता था। जिन मरीजों का इलाज दूसरे अस्पताल में आसानी से हो सकता था। आश्रम में उनकी भी दर्दनाक मौत हो जाती थी। मरीजोंं को लगाए जाने वाले इंजेक्शन कई बार गर्म पानी में धोकर लगाए जाते थे। मदर टेरेसा केेे आश्रम का एक दूसरा नाम भी था house of dying यानी मरने वालों का घर।

Converting dying people मरते हुए लोगों का धर्म परिवर्तन, मरते हुए हिंदू और मुसलमानोंं से पूछा जाता था की आपको स्वर्ग या जन्नत का टिकट चाहिए। मरीज के हां कहने पर उसका धर्म परिवर्तन किया जाता था। उसको कहा जाता था कि उसके दर्द को कम करने के लिए इलाज कीया जा रहा हैं और उसके सर पर पानी डालकर उसके धर्म को back ties यानी क्रिश्चिचन बनाया जाता था।
Thousands of Crores in Vatican Trust वैक्तिकन बैंक में हजारों करोड़ों रुपए अपने आश्रमों से इकट्ठा किया गया चंदा Bank for the work of religion में जमा करती थे यह बैंक वेटिकन चर्च मैनेज  करता था। जिसकेे लिए मदर टेरेसा काम करती थी। सालोंं से जमा किए गए पैसे इतने ज्यादा थेे कि उस बैंक में आधे से ज्यादा पैसे मदर टेरेसा के ही थे। अगर मदर टेरेसा उस पैसे को निकाल ले तो शायद बैंक बर्बाद हो जाता। शायद यही कारण रहा होगा की आश्रम का हालत इतनी बुरी थी क्योंकि इकट्ठा किया गया पैसा सीधे बैंक जाता था और लोगों के लिए इस्तेमाल नहीं होता था।
False image in media मीडिया का झूठ Arup Chaudhari नाम के एक जनरलिस्ट ने अपनेे किताब में सारे समााज सुधारक के बारे में लिखा है उनका कहना था कि मीडिया मदर टेरेसा को हेल्पर ऑफ द पुअर यानी गरीबों का मसीहा जबकि यह बिल्कुल झूठ था। मदर टेरेेसा का सबसेे बड़ा आश्रम मिशनरीज ऑफ चैरिटी कोलकाता मे था। इस आश्रम में 100 से भी कम लोग भर्ती किये गए थे। लेकिन उसी वक्त की असेंबली ऑफ गॉड नाम के संस्था के द्वारा 18000 लोगों को खाने-पीने का सामान रोज बाटा जाता था। आज लोग ऐसे आश्रम का नाम भी नहीं जानते हैं। यही नहीं मदर टेरेसा के 8 ऐसेे आश्रम भी थे जहां एक भी गरीब आदमी नहीं 
थे। आश्रम सिर्फ चंदा इकट्ठा कर बैंक में जमा और धर्म परिवर्तन करने के लिए बनाया गया था।
Relation with controversial figure अमीरों से रिश्ता मदर टेरेसा के रिश्ता कुछ ऐसे लोगों से भी था जिन्हें सरकार क्रिमिनल्स घोषित कर चुकी थी। Robert Maxwell और Charles Creting उन लोगों में से थे जो मदर टेरेसा के आश्रम में करोड़ों रुपए दान करते थे और उन पर हजारों करोड़ों रुपए ठगने का आरोप था। Lisieo jelly इटालियन मडर र को मदर टेरेसा नोबेल पुरस्कार देने केे लिए सहमति भी दी थी। 1975 में इमरजेंसी के दौरान लोग परेशान थे लेकिन मदर टेरेसा ने इमरजेंसी का समर्थन किया था और पॉलीटिशियन के साथ थे।

जाने राष्ट्रिय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल कि जिंदगी से जुड़ी कुछ रोचक बातें।

अजित डोभाल का जन्म 1945 में उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल में एक गढ़वाली परिवार में हुआ। पिता आर्मी में ब्रिगेडियर थे। उन्होंने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा अजमेर के मिलिट्री स्कूल से पूरी की थी। इसके बाद उन्होंने आगरा विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में एमए किये और पोस्ट ग्रेजुएशन करने के बाद वे आईपीएस की तैयारी में लग गए। कड़ी मेहनत के बाद वे केरल कैडर से 1968 में IPS का एग्जाम टॉप किया, केरल Batch के IPS Officer बने। 17 साल की नौकरी के बाद मिलने वाला Medal 6 साल की नौकरी में ही हासिल कर लिए थे।

इसके बाद पाकिस्तान में जासूस के तौर पर काम किया, वहा वे मुसलमान बनकर रहते थे। पाकिस्तान की आर्मी में मार्शल की पोस्ट तक पहुंचे और 6 साल भारत के लिए जासूसी करते रहे। बताया जाता है कि अंडर कवर जासूसी करने के बाद अजीत डोभाल ने भारत आकर कई अहम ऑपेशन को अंजाम दिया। 1987 में खालिस्तानी आतंकवाद के समय पाकिस्तानी एजेंट बनकर दरबार साहिब के अंदर पहुंचे, 3 दिन आतंकवादियों के साथ रहे। आतंकवादियों की सारी सूचना लेकर Operation Black Thunder को सफलता पूर्वक अंजाम दिया। 1988 में कीर्ति चक्र से सम्मानित किया गया।

देश का एक मात्र Non Army Person जिसे यह Award से सम्मानित किया जा चुका है। उसके बाद असम गए, वहां उल्फा आतंकवाद को कुचला। 1999 में Plane_Hijacking के समय आतंकवादियों से Dealing की। मोदी के सत्ता में आते ही उन्हें सरकार राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार NSA (National Security Advisor) बनाया। बलोचिस्तान में Raw फिर से Active की, बलोचिस्तान का मुद्दा International बनाया। केरल की 45 ईसाई नर्सों का Iraq में Isis ने किडनैप किया। अजित डोभाल खुद इराक़ गए, isis से पहली बार बीना किसी नुकसान के नर्सों को वापस लाया। वर्ष 2015 मई में भारत के पहले सर्जिकल ऑपरेशन को अंजाम दिया। भारत की सेना Myanmar में 5 किमी तक घुसी। और 50 आतंकवादी मारे गए। उन्होंने नागालैंड के आतंकवादियों से भारत की ऐतिहासिक समझौता करवाई, आतंकवादी संगठनों ने हथियार डाले।

भारत की डिफेंस पॉलिसी को Agressive बनाया। भारत की सीमा में घुस रहा पाकिस्तानी जहाज को बिना किसी चेतावनी के उड़ाया,कहा बिरयानी खिलाने वाला काम नही कर सकता। कश्मीर में सेना को खुली छूट दी, पैलेट गन सेना को दिलवाईं। पाकिस्तान को दुनिया के मुस्लिम देशों से ही तोड़ दिया। सितंबर 2016 आज़ाद भारत के इतिहास का 1971 के बाद सबसे इतिहासिक दिन था। जो अजीत डोभाल के बुने गए सर्जिकल स्ट्राइक को सेना ने दिया अंजाम। और PoK में 3 किलोमीटर घुसे। 40 आतंकी और 9 पाकिस्तानी फौजी मारे।

एयर स्ट्राइक की सफलता को तो पूरी दुनिया ने सेटेलाइट द्वारा देखा। कश्मीर से धारा 370 हटाने व शांति की स्थापना कायम रखने में विशेष योगदान दिया। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार देशभक्त हिंदू संगठन विवेकानंद यूथ फोरम की स्थापना कीया। उनके इन सब कार्यों के लिए राष्ट्रपति पुरस्कार भीम मिल चुका है। अजीत डोभाल कहते है की मैं इस्लामाबाद जीत सकता हूँ।

ओणम पर्व की कुछ रोचक जानकारियां, कब और कैसे मनाया जाता हैं।

भार‍त विविध धर्मों, जातियों तथा संस्कृतियों को मानने वाले का देश है। भारत भर के उत्सवों एवं पर्वों का विश्व में एक अलग स्थान है। यहां हर रोज त्योहार कोई न कोई रूप में मनाया जाता हैं। जिसमे अपने इस्ट देवी देवताओं की पूजा अर्चना की जाती है। उनमें से एक त्योहार ओनम का त्योहार हैं। यह त्योहार दक्षिण भारत में खासकर केरल में बहुत धूमधाम से मनाया जाता है।

ओणम को खासतौर पर खेतों में फसल की अच्छी उपज के लिए मनाया जाता है। 1 सितंबर से शुरू हुआ यह त्योहार 13 सितंबर तक मनाया जाएगा। ओणम इसलिए भी विशेष है क्योंकि इसकी पूजा मंदिर में नहीं बल्कि घर में की जाती है। सर्वधर्म समभाव के प्रतीक केरल प्रांत का मलयाली पर्व 'ओणम' समाज में सामाजिक समरसता की भावना, प्रेम तथा भाईचारे का संदेश पूरे देश में देता हैं। और देश की एकता एवं अखंडता को मजबूत करने की प्रेरणा देता है। प्राचीन मान्यता के अनुसार राजा बलि ओणम के दिन अपनी प्रजा से मिलने आते हैं।
उन्हें यह सौभाग्य भगवान विष्णु से मिला था। उसके चलते समाज के लोग विष्णु की आराधना और पूजा करने के साथ ही अपने राजा का स्वागत करते हैं। 
ओणम पर्व पर राजा बलि के स्वागत के लिए घरों की आकर्षक साज-सज्जा के साथ तरह-तरह के पकवान बनाकर उनको भोग अर्पित करती है। और हर घर को और द्वार पर रंगोली से सजाया और दीप जलाया जाता है। और यह परंपरा वर्षों से चला आ रहा हैं। इस अवसर पर मलयाली समाज के लोग एक-दूसरे को गले मिलकर शुभकामनाएं देते हैं। साथ ही परिवार के लोग और रिश्तेदार इस परंपरा को साथ मिलकर मनाते हैं। 
ओणम पर्व की मान्यता : मान्यता के अनुसार राजा बलि केरल के राजा थे, उनके राज्य में प्रजा बहुत सुखी व संपन्न थी। किसी भी तरह की कोई समस्या नहीं थी। वे महादानी भी थे। उन्होंने अपने बल से तीनों लोकों को जीत लिया था। इसी दौरान भगवान विष्णु वामन अवतार लेकर आए और तीन पग में उनका पूरा राज्य लेकर उनका उद्धार कर दिया।

माना जाता है कि वे साल में एक बार अपनी प्रजा को देखने के लिए आते हैं। तब से केरल में हर साल राजा बलि के स्वागत में ओणम का पर्व मनाया जाता है।

Saturday, August 29, 2020

भारत के 10 सबसे महंगे होटल जहां एक रात बिताने के लाखो रुपया चार्ज किया जाता हैं।

काफी लोगों की जहन में ये बात रहती हैं कि भारत देश के सबसे महंगे होटलों का एक रात ठहरने का कितना चार्ज देना पड़ता है। या भारत के सबसे महंगे होटलो कि एक रात ठहरने की कीमत कितनी होती है। उसमें क्या क्या सुविधाएं उपलब्ध होती है। आज हम भारत के 10 सबसे महंगे होटलों के बारे में बताएंगे और वह भारत में कहा स्थित है।
1. रामबाग़ पैलेस, जयपुर
यहां के Grand Presidential Suite में एक रात के रुकने का किराया 6 लाख है।
2. द लीला पैलेस, नई दिल्ली
यहां के महाराजा Suite में एक रात के रुकने का किराया 45,000 है।
3. द ओबरॉय उदयविलास, उदयपुर
यहां के कोहिनूर Suite में एक रात के रुकने का किराया 2.5 लाख है।
4. ताज लेक पैलेस, उदयपुर
यहां के Grand Presidential Suite में एक रात के रुकने का किराया 6 लाख है।
5. द ओबरॉय, मुंबई
यहां के Presidential Suite में एक रात के रुकने का किराया 3 लाख है।
6. द ओबरॉय, गुरुग्राम
यहां के Presidential Suite में एक रात के रुकने का किराया 3 लाख है।
7. द ओबरॉय अमरविलास, आगरा
यहां के Most Expensive Suite में एक रात के रुकने का किराया 2.5 लाख है।
8. द लीला पैलेस, जयपुर
यहां के महाराजा Suite में एक रात रुकने का किराया 2 लाख है।
9. ताज फ़लकनुमा पैलेस, हैदराबाद
यहां के ग्रैंड रोयाल Suite में एक रात रुकने का किराया 1.95 लाख है।
10. ताज लैंड एंड्स, मुंबई
यहां के Presidential Suite में एक रात के रुकने का किराया 2.3 लाख है।

आज हाकी के जदूगर मेजर ध्यानचंद की 114 वी जयंती है। जाने उनकी कुछ खास बातें।

हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद के जन्मदिन को राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में मनाया जाता है। मेजर ध्यानचंद का आज 114वां जन्मदिन है। आज ही के दिन सन् 1905 में इलाहाबाद में उनका जन्म हुआ था। इलाहाबाद अब प्रयागराज के नाम से जाना जाता हैं। तब प्रयागराज में पैदा हुए ध्यानचंद को खेल जगत की दुनिया में 'दद्दा' कहकर पुकारते थे। इसी दिन सर्वोच्च खेल सम्मान राजीव गांधी खेल रत्न के अलावा अर्जुन, ध्यानचंद पुरस्कार और द्रोणाचार्य पुरस्कार आदि दिए जाते हैं। दद्दा के जन्मदिन के मौके पर जानते हैं, उनसे जुड़ी कुछ अहम बातें।
16 साल की उम्र में ध्यानचंद भारतीय सेना के साथ जुड़ गए। इसके बाद ही उन्होंने हॉकी खेलना शुरू किया। ध्यानचंद को हॉकी का इतना जुनून था कि वह काफी प्रैक्टिस किया करते थे। वह चांद निकलने तक हॉकी का अभ्यास करते रहते। इसी वजह से उनके साथी खिलाड़ी उन्हें 'चांद' कहने लगे थे।
1928 एम्सटर्डम ओलिंपिक गेम्स में वह भारत की ओर से सबसे ज्यादा गोल करने वाले खिलाड़ी थे। उन खेलों में ध्यानचंद ने 14 गोल किए। एक अखबार ने लिखा था, 'यह हॉकी नहीं बल्कि जादू था। और ध्यानचंद हॉकी के जादूगर हैं।'

1932 के ओलिंपिक फाइनल में भारत ने संयुक्त राज्य अमेरिका को 24-1 से हराया था। उस मैच में ध्यानचंद ने 8 और उनके भाई रूप सिंह ने 10 गोल किए थे। उस टूर्नमेंट में भारत की ओर से किए गए 35 गोलों में से 25 गोल इन दो भाइयों ने किया था। इसमें 15 गोल रूप सिंह ने किए थे। एक मैच में 24 गोल दागने का 86 साल पुराना यह रेकॉर्ड भारतीय हॉकी टीम ने 2018 में इंडोनेशिया में खेले गए एशियाई खेलों में हॉन्ग कॉन्ग को 26-0 से मात देकर तोड़ा।
ध्यानचंद ने 1928, 1932 और 1936 ओलिंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व किया। तीनों ही बार भारत ने गोल्ड मेडल जीता।
एक मैच में ध्यानचंद गोल नहीं कर पा रहे थे। उन्होंने मैच रेफरी से गोल पोस्ट की चौड़ाई जांचने को कहा। जब ऐसा किया गया तो हर कोई हैरान रह गया। गोलपोस्ट की चौड़ाई मानकों के हिसाब से कम थी।
बर्लिन ओलिंपिक में ध्यानचंद के शानदार प्रदर्शन से प्रभावित होकर हिटलर ने उन्हें डिनर पर आमंत्रित किया। इस तानाशाह ने उन्हें जर्मन फौज में बड़े पद पर जॉइन करने का न्योता दिया। हिटलर चाहता था कि ध्यानचंद जर्मनी के लिए हॉकी खेलें। लेकिन ध्यानचंद ने इस ऑफर को सिरे से ठुकरा दिया। उन्होंने कहा, 'हिंदुस्तान ही मेरा वतन है और मैं जिंदगीभर उसी के लिए हॉकी खेलूंगा।'
भारत सरकार ने उनके सम्मान में साल 2002 में दिल्ली में नैशनल स्टेडियम का नाम ध्यान चंद नैशनल स्टेडियम किया।

Wednesday, August 26, 2020

नोबेल शांति पुरस्कार विजेता और भारत रत्न मदर टेरेसा का जन्म 1910 में आज ही के दिन हुआ था।

1910 में आज ही के दिन हुआ था नोबेल शांति पुरस्कार विजेता और भारत रत्न मदर टेरेसा का जन्म। मदर टेरेसा जिन्हें रोमन कैथोलिक चर्च द्वारा कलकत्ता की संत टेरेसा के नाम से नवाज़ा गया है। उनका जन्म आन्येज़े गोंजा बोयाजियू के नाम से एक अल्बेनीयाई परिवार में उस्कुब, उस्मान साम्राज्य में हुआ था। मदर टेरसा रोमन कैथोलिक नन थीं, जिन्होंने 1948 में स्वेच्छा से भारतीय नागरिकता ले ली थी। आज संत मदर टेरेसा की 109वीं जयंती है। शांति दूत मदर टेरेसा ममता की मूरत थीं। 
दीन-दुखियों को गले लगाना और बीमार लोगों के चेहरे में मुस्कान लाने की कोशिश करना ही उनकी पहचान थी।
मदर टेरेसा कैथोलिक थीं, लेकिन उन्हें भारत की नागरिकता मिली हुई थी। उन्हें भारत के साथ साथ कई अन्य देशों की नागरिकता मिली हुई थी, जिसमें ऑटोमन, सर्बिया, बुल्गेरिया और युगोस्लाविया शामिल हैं। 
साल 1946 में उन्होंने गरीबों, असहायों की सेवा का संकल्प लिया था। निस्वार्थ सेवा के लिए टेरेसा ने  7 अक्तूबर 1950 में कोलकाता में 'मिशनरीज ऑफ चैरिटी' की स्थापना की थी। उन्होंने 12 सदस्यों के साथ अपनी संस्था की शुरुआत की थी और अब यह संस्था 133 देशों में काम कर रही है। 133 देशों में इनकी लगभग 4501 सिस्टर हैं। 1981 में उन्होंने अपना नाम बदल लिया था। अल्बानिया मूल की मदर टेरेसा ने कोलकाता में गरीबों और पीड़ित लोगों के लिए जो किया वो दुनिया में अभूतपूर्व माना जाता हैं। मदर टेरेसा अपनी मृत्यु तक कोलकाता में ही रहीं और आज भी उनकी संस्था गरीबों के लिए काम कर रही है। उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार के साथ भारत रत्न, टेम्पटन प्राइज, ऑर्डर ऑफ मेरिट और पद्म श्री से भी नवाजा गया है। उनका कहना था, 'जख्म भरने वाले हाथ प्रार्थना करने वाले होंठ से कहीं ज्यादा पवित्र हैं'।
मदर टेरेसा को 1979 में  नोबेल शांति पुरस्कार दिया गया, मदर टेरेसा ने प्राइज मनी लेने से इंकार कर दिया और कहा कि इसे भारत के गरीब लोगों में दान कर दिया जाए। उन्होंने गरीबों के इलाज और गरीब बच्चों की पढ़ाई के लिए ‘निर्मल हृदय’ और ‘निर्मला शिशु भवन’ के नाम से आश्रम खोले। आपको बता दें, अपने जीवन के अंतिम समय में मदर टेरेसा पर कई लोगों ने आरोप भी लगाए। उन पर गरीबों की सेवा करने के बदले उनका धर्म बदलवाकर ईसाई बनाने का आरोप लगाया गया। बता दें, लगातार गिरती सेहत की वजह से 5 सितंबर 1997 को उनकी मौत हो गई।

क्यों! जब हज हाउस बना तो सारे बुद्धिजीवी मौन थे, जब राम मंदिर निर्माण के लिए भूमिपूजन हुआ तो सारे बुद्धिजीवी संविधान की दुहाई देने लगे।

मुस्लिम समुदाय के लोगों का एक 5 दिन का एक धार्मिक जलसा होता है, जो सऊदी अरब राज्य में होता है। इस जलसा में हर देश का मुस्लमान सीरकत होने आता है। यह यात्रा हर राज्य की राजधानी के एक विशेष जगह से शुरु होती है। जिसे हज हाउस कहते हैं। हज हाउस लगभग हर राज्य की राजधानी में उस राज्य के सरकार द्वारा बनाया गया है। जिसको बनाने में लगभग 50 से 60 करोड़ की लागत आया है। जिनमे से प्रमुख रूप से पटना का हज हाउस। अखिलेश यादव द्वारा बनवाया गया गाजियाबाद का हज हाउस। मुंबई का हज हाउस। भोपाल का हज हाउस। रांची हज हाउस। और केजरीवाल सरकार द्वारा बनाए जा रहे हज हाउस का निर्माण कार्य जारी है। तथा कोलकाता का हज हाउस है।
यह सभी हज हाउस सरकारी पैसों पैसे से बना है। बाकी समय बन्द रहता हैं। जब यह हज हाउस का निर्माण हुआ तो ओवैसी सहित किसी को भी भारत का संविधान क्यों नहीं याद आया कि सरकारी पैसे को या सरकारी जमीन को किसी धार्मिक कार्य के लिए किसी एक खास समुदाय के लिए खर्च करना बाबा साहब के संविधान का खुला उल्लंघन है। और सबसे आश्चर्य की बात यह लगा जब दिल्ली का मुख्यमंत्री केजरीवाल और उसका डिप्टी मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया दोनों राम मंदिर पर सैकड़ों बार कह चुके हैं, कि पता नहीं क्यों लोग मंदिर की रट लगाए बैठे हैं। वहां तो यूनिवर्सिटी बना देना चाहिए लेकिन यह दोनों इस वक्त भारत का सबसे आलीशान हज हाउस का निर्माण करवा रहे हैं। अब ये यह नहीं कहते कि इस हज हाउस के जगह हम यूनिवर्सिटी, अस्पताल बना दे। कुछ हज हाउस और उसकी कीमत देखे।
गाजियाबाद का हज हाउस
गाजियाबाद में समाजवादी पार्टी सरकार द्वारा आजम खान के ड्रीम प्रॉजेक्ट हज हाउस का करीब ₹51 करोड़ की लागत से निर्माण कराया गया था। 4.3 एकड़ में बने इस हज हाउस में ग्राउंड प्लस 6 फ्लोर बनाए गए हैं, जिसमें 47 डॉरमेट्री हॉल और 36 वीआईपी कमरे भी शामिल हैं। इस हज हाउस में करीब 2000 लोग एक साथ बैठ सकते हैं। यह हज हाउस पूरी सुविधाओं से लैस है, जिसका उद्घाटन सितंबर 2016 में पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के द्वारा किया गया था।

रांची का हज हाउस
मुख्यमंत्री रघुवर दास ने झारखण्ड की राजधानी रांची के कडरू में हज हाउस के उदघाटन के दौरान कहा कि झारखंड सरकार सबका साथ सबका विकास के साथ सबके विश्वास जीतने में भरोसा रखती है। यह हज हाउस
55 करोड़ की लागत से तैयार।
भोपाल का हज हाऊस
भोपाल के सिंगारचोली में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सोमवार दोपहर इसकी बुनियाद रखने जा रहे हैं। अगले साल के अंत तक यह बन जाएगा। 6 करोड़ 11 लाख की लागत से प्रस्तावित इस हज हाऊस में डेढ़ हजार हज यात्री ठहर सकेंगे।

मुंबई हज हाउस
दक्षिण मुंबई में छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस (सीएसएमटी) के पास स्थित हज हाउस इसकी लागत का कोई पुख्ता प्रमाण नहीं मिल पाया है।
नवा रायपुर में नया हज हाउस
नवा रायपुर में नया हज हाउस एयरपोर्ट से लगभग एक किमी की दूरी पर स्थित 3 एकड़ जमीन पर 14 करोड़ की लागत से सर्वसुविधायुक्त हज हाउस का निर्माण हुआ है।

दिल्ली हज हाउस
दिल्ली सरकार ने लगभग एक दशक के बाद, द्वारका सेक्टर 22 में हज हाउस बनाने के लिए कम से कम 93.47 करोड़ रुपये की लागत से हज हाउस का निर्माण कार्य शुरू कर दिया है। इस हज हाउस में केंद्र के वातानुकूलित घर में अत्याधुनिक सुविधाएं होंगी, जिनमें पुरुषों और महिलाओं के लिए अलग-अलग डोरमेट्री, वीआईपी सुइट, इमिग्रेशन काउंटर, प्रार्थना हॉल, रसोई और डाइनिंग हॉल शामिल हैं।
कोलकाता का हज हाउस
कोलकाता का हज हाउस की लागत 100 करोड़ रुपए बताई गई है।
Executive Officer,
West Bengal Haj Committee,
Haj House (Baitul Hujjaj),
26-B, Dilkhusha Street, Park Circus
KOLKATA - 700 017
West Bengal.
यह लेेेख किसी की भावनाओंं को आहत करने के लिए नहीं लिखी गई हैं। इस लेेख का एक मात्र उद्देश्य है। आम जनता को इन नेेेेताओ की दोहरी राजनीतिि को समाज के सामने लाना है। भारत में 135 करोड़ जनता है। जिसमे से 100 करोड़ से ज्यादा हिंदू हैं। आखिर क्यों 
मुस्लिमो को खुश करने के लिए 100 करोड़ से ज्यादा हिंदू आे को अपनानित करते हैं। यह नेता।

Saturday, August 22, 2020

वह संजीवनी तो नही है जिसकी खोज हो रही हैं, पर यह भी किसी संजीवनी से कम नही है।

इस संजीवनी को पत्थर चट्टी, गरुड़ पंजा, हत्था जड़ी, लक्ष्मण बूटी आदि नामों से जाना जाता हैं। अक्सर आपलोगों ने इस पौधे को धार्मिक स्थल या मेलों में बिकते हुए देखा होगा। जब आप उनसे पूछेगे की यह क्या हैं। तो एक ही जवाब आएगा "संजीवनी" वैसे यह वह संजीवनी तो नही है जिसकी खोज हो रही हैं। पर यह भी किसी संजीवनी से कम नही इस पर और अधिक शोध की आवश्यकता है। पत्थरों अथवा चट्टानों पर उगने वाली यह वनस्पति गर्मी के दिनों में सूखकर सिकुड़ जाती है, और वर्षा होते ही पुनः पूर्णतः हरी हो जाती है।

इसके इसी गुण के कारण यह लम्बे समय से वैज्ञानिकों और जनसामान्य के लिए आकर्षण का केंद्र बनी हुयी है। सूखने के बाद पुनः हरा हो जाने के विलक्षण गुण के कारण ही इसे जनसामान्य "संजीवनी बूटी" भी कहा जाता हैं। अन्य पौधों कि तरह यह वनस्पति पानी में डालने से न सिर्फ हरी ही हो जाती है बल्कि पुनः जीवित भी हो जाती है और अनुकूल वातावरण उपलब्ध होने पर बढ़ने (उगने) भी लगती है। पत्थरों के ऊपर उगने के कारण तथा पथरी के रोग में उपयोगी होने के कारण स्थानीय आदिवासी इस वनस्पति को "पत्थरचट्टी" के नाम से भी जानते है। सूखने पर बंद हाथ की मुट्ठी जैसी प्रतीत होने के कारण मध्य प्रदेश के स्थानीय लोग इसे "हत्था जड़ी" के नाम से भी जानते हैं। पक्षी के पंजों जैसे प्रतीत होने वाले इसके शल्कपत्र युक्त पत्तों के कारण कुछ लोग इसको "गरुड़ पंजा" भी कहते है।

ग्रामीण व आदिवासी लोग इसके पौधों को सुखाकर शहरों में अथवा धार्मिक स्थलों या मेलों में बेचने हेतु लाते हैं। सूखे हुए पौधों को पानी में कुछ देर रखते ही वो हरे हो जाते हैं और लोग कौतुहलवश आकर्षित होकर इसको खरीदकर घर में सजाने हेतु ले जाते हैं। लोगो को लुभाने के लिए इसको "रामायण वाली दुर्लभ संजीवनी" के नाम से भी बेचते हैं। जैसा कि उपर्युक्त है कि इस वनस्पति को स्थानीय लोग मूत्राशय कि पथरी के लिए उपयोग करते हैं। इसके साथ ही इसका उपयोग यकृत व गुर्दों के अन्य रोगों में भी उपयोग किया जाता है।


सामान्यतः इसका प्रयोग गर्मी से होने वाले रोगों जैसे नकसीर, जलन, घमौरी, लू लगना आदि में किया जाता है। इसके साथ ही महिलाओं के मासिक धर्म सम्बन्धी विकारों में भी यह बहुत उपयोगी है। यह पेट के रोगों के लिए भी लाभदायक है।

आपके क्षेत्र में इसे किस नाम से जानते है इससे जुड़ी कोई भी जानकारी हो तो अवश्य साझा करें।

क्या आप जानते हैं, अकबर महान को जीवनदान देने वाली, महाराणा प्रताप की भतीजी बाईसा किरणदेवी की महानता।

अकबर की महानता का गुणगान तो कई इतिहासकारों ने किया है, लेकिन अकबर की ओछी हरकतों का वर्णन बहुत कम इतिहासकारों ने किया है। अकबर अपने गंदे इरादों से प्रतिवर्ष दिल्ली में नौरोज़ का मेला आयोजित करवाता था। नौरोज़ का शाब्दिक अर्थ होता है "नया दिन" ईरानी नववर्ष का नाम है, जिसे फारसी नया साल भी कहा जाता है। और मुख्यतः ईरानियों द्वारा दुनिया भर में मनाया जाता है। लेकिन अकबर हर रोज अपना नया साल मानता था। अकबर का नौरोज़ का मेला आप सब में से लगभग हर एक लोगों  को पता है। इसमें पुरुषों का प्रवेश निषेध था।

अकबर इस मेले में महिला की वेष-भूषा में जाता था। और जो महिला उसे मंत्र मुग्ध कर देती थी। उसे दासियाँ छल कपट से अकबर के सम्मुख ले जाती थी। एक दिन नौरोज़ के मेले में महाराणा प्रताप सिंह की भतीजी, छोटे भाई महाराज शक्तिसिंह की पुत्री मेले की सजावट देखने के लिए आई। जिनका नाम बाईसा किरणदेवी था।
उनका विवाह बीकानेर के राजा पृथ्वीराज जी से हुआ था। बाईसा किरणदेवी की सुंदरता को देखकर अकबर अपने आप पर क़ाबू नहीं रख पाया। और उसने बिना सोचे समझे दासियों के माध्यम से धोखे से ज़नाना महल में बुला लिया। जैसे ही अकबर ने बाईसा किरणदेवी को स्पर्श करने की कोशिश की। किरणदेवी ने कमर से कटार निकाली और अकबर को ऩीचे पटक कर उसकी छाती पर पैर रखकर कटार गर्दन पर लगा दी। और कहा 
नींच अधर्मी, तुझे पता नहीं मैं उन महाराणा प्रताप की भतीजी हूँ। जिनके नाम से तेरी नींद उड़ जाती है। बोल तेरी आख़िरी इच्छा क्या है। अकबर का ख़ून सूख गया।


कभी सोचा नहीं होगा कि सम्राट कहलाने वाला अकबर आज एक राजपूत बाईसा के चरणों में होगा। अकबर बोला: मुझसे पहचानने में भूल हो गई। मुझे माफ़ कर दो देवी। इस पर किरण देवी ने कहा। आज के बाद दिल्ली में नौरोज़ का मेला नहीं लगेगा।और किसी भी नारी को तुम परेशान नहीं करोगे। अकबर ने हाथ जोड़कर कहा आज के बाद कभी मेला नहीं लगेगा। उस दिन के बाद कभी मेला नहीं लगा। इस घटना का वर्णन गिरधर आसिया द्वारा रचित सगत रासो में 632 पृष्ठ संख्या पर दिया गया है। बीकानेर संग्रहालय में लगी एक पेटिंग में भी इस घटना को एक दोहे के माध्यम से बताया गया है।

किरण सिंहणी सी चढ़ी उर पर खींच कटार !
भीख मांगता प्राण की अकबर हाथ पसार !!

अकबर की छाती पर पैर रखकर खड़ी वीर बाला किरन का चित्र आज भी जयपुर के संग्रहालय में सुरक्षित रखा गया है। आप सब जा के देख सकते है। अब ऐसे इतिहासकार के बारे में क्या कहा जा सकता हैं। जो राजा महाराणा प्रताप के नाम से काप जाता हो। उनकी भतीजी ने उसे जीवनदान दिए हो ऐसे राजा को महान बता कर देश को मूर्ख बनाया जा सकता है। लेकिन झूठ कभी सच नहीं हो सकता।

Tuesday, August 18, 2020

बारिश की पूर्व सूचना देता है, कानपुर का जगन्नाथ मंदिर। जाने क्या है रहस्य।

आपको ताजमहल अजूबा लगता है, तो यह जानकर आश्चर्य होगा कि हमारे उत्तर प्रदेश के कानपुर में एक ऐसा मंदिर है बारिश की पूर्व सूचना देता है। और बारिश के पूर्व ही मंदिर के छत टपकाने लगता है जो अवदात कराता है कि अब बारिश आने वाली है। जिसको देखकर किसान अपने हल को लेकर खेत में निकाल जाता है खेत की जुताई करने के लिए जिससे बारिश होने के बाद खेती की जा सके। हम बात कर रहे है कानपुर का जगन्नाथ मंदिर की। क्या आप कल्पना कर सकते हैं किसी ऐसे भवन की जिसकी छत चिलचिलाती धूप में टपकने लगे बारिश की शुरुआत होते ही जिसकी छत से पानी टपकना बंद हो जाए।
ये घटना है तो हैरान कर देने वाली लेकिन सच है। उत्तर प्रदेश की औद्योगिक नगरी कहे जाने वाले कानपुर जनपद के भीतरगांव विकास खंड से ठीक तीन किलोमीटर की दूरी पर एक गांव है बेहटा यहीं पर है धूप में छत से पानी की बूंदों के टपकने और बारिश में छत के रिसाव के बंद होने का रहस्य यह घटनाक्रम किसी आम ईमारत या भवन में नहीं बल्कि यह होता है, भगवान जगन्नाथ के अति प्राचीन मंदिर में। छत टपकने से हो जाती है बारिश की आभास ग्रामीण बताते हैं, कि बारिश होने के छह-सात दिन पहले मंदिर की छत से पानी की बूंदे टपकने लगती हैं, इतना ही नहीं जिस आकार की बूंदे टपकती हैं उसी आधार पर बारिश होती है।

अब तो लोग मंदिर की छत टपकने के संदेश को समझकर जमीनों को जोतने के लिए निकल पड़ते हैं।हैरानी में डालने वाली बात यह भी है कि जैसे ही बारिश शुरु होती है छत अंदर से पूरी तरह सूख जाती है।
वैज्ञानिक भी नहीं जान पाए रहस्य -
मंदिर की प्राचीनता व छत टपकने के रहस्य के बारे में मंदिर के पुजारी बताते हैं, कि पुरातत्व विशेषज्ञ एवं वैज्ञानिक कई दफा आए लेकिन इसके रहस्य को नहीं जान पाए हैं अभी तक बस इतना पता चल पाया है कि मंदिर के जीर्णोद्धार का कार्य 11वीं सदी में किया गया
मंदिर की बनावट बौद्ध मठ की तरह है। इसकी दिवारें 14 फीट मोटी हैं, जिससे इसके सम्राट अशोक के शासन काल में बनाए जाने के अनुमान लगाए जा रहे हैं। वहीं मंदिर के बाहर मोर का निशान व चक्र बने होने से चक्रवर्ती सम्राट हर्षवर्धन के कार्यकाल में बने होने के कयास भी लगाए जाते हैं। लेकिन इसके निर्माण का ठीक-ठीक अनुमान अभी तक कोई भी नहीं लगा पाया है।

भगवान जगन्नाथ का यह मंदिर अति प्राचीन है। मंदिर में भगवान जगन्नाथ बलदाऊ व सुभद्रा की काले चिकने पत्थरों की मूर्तियां विराजमान हैं प्रांगण में सूर्यदेव और पद्मनाभम की मूर्तियां भी हैं। जगन्नाथ पुरी की तरह यहां भी स्थानीय लोगों द्वारा भगवान जगन्नाथ की यात्रा निकाली जाती है। लोगों की आस्था मंदिर के साथ गहरे से जुड़ी है लोग दर्शन करने के लिए दूर दूर से आते रहते हैं।

मैं तो इंसानियत से मजबूर था तुम्हे बीच मे नही डुबोया" मगर तुमने मुझे क्यों काट लिया!

नदी में बाढ़ आती है छोटे से टापू में पानी भर जाता है वहां रहने वाला सीधा साधा1चूहा कछुवे  से कहता है मित्र  "क्या तुम मुझे नदी पार करा ...