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Friday, August 27, 2021

तेजोमहालय (ताजमहल) का वह सच्चाई जो आम लोगो से छुपाई गई।

तेजोमहालय इतिहास में पढ़ाया जाता है कि ताजमहल का निर्माण कार्य 1632 में शुरू हुआ और लगभग 1653 में इसका निर्माण कार्य पूर्ण हुआ। अब सोचिए कि जब मुमताज का इंतकाल 1631 में हुआ तो फिर कैसे उन्हें 1631 में ही ताजमहल में दफना दिया गया, जबकि ताजमहल तो 1632 में बनना शुरू हुआ था। यह सब मनगढ़ंत बातें हैं जो अंग्रेज और मुस्लिम इतिहासकारों ने 18वीं सदी में लिखी थी। दरअसल 1632 में हिन्दू मंदिर को इस्लामिक लुक देने का कार्य शुरू हुआ। 1649 में इसका मुख्य द्वार बना जिस पर कुरान की आयतें तराशी गईं। इस मुख्य द्वार के ऊपर हिन्दू शैली का छोटे गुम्बद के आकार का मंडप है और अत्यंत भव्य प्रतीत होता है। आस पास मीनारें खड़ी की गई और फिर सामने स्थित फव्वारे को फिर से बनाया गया।

जे ए माॅण्डेलस्लो ने मुमताज की मृत्यु के 7 वर्ष पश्चात Voyages and Travels into the East Indies नाम से निजी पर्यटन के संस्मरणों में आगरे का तो उल्लेख किया गया है किंतु ताजमहल के निर्माण का कोई उल्लेख नहीं किया। टाॅम्हरनिए के कथन के अनुसार 20 हजार मजदूर यदि 22 वर्ष तक ताजमहल का निर्माण करते रहते तो माॅण्डेलस्लो भी उस विशाल निर्माण कार्य का उल्लेख अवश्य करता। ताज के नदी के तरफ के दरवाजे के लकड़ी के एक टुकड़े की एक अमेरिकन प्रयोगशाला में की गई कार्बन जांच से पता चला है कि लकड़ी का वो टुकड़ा शाहजहां के काल से 300 वर्ष पहले का है, क्योंकि ताज के दरवाजों को 11वीं सदी से ही मुस्लिम आक्रामकों द्वारा कई बार तोड़कर खोला गया है और फिर से बंद करने के लिए दूसरे दरवाजे भी लगाए गए हैं। ताज और भी पुराना हो सकता है। असल में ताज को सन् 1115 में अर्थात शाहजहां के समय से लगभग 500 वर्ष पूर्व बनवाया गया था।
ताजमहल के गुम्बद पर जो अष्टधातु का कलश खड़ा है वह त्रिशूल आकार का पूर्ण कुंभ है। उसके मध्य दंड के शिखर पर नारियल की आकृति बनी है। नारियल के तले दो झुके हुए आम के पत्ते और उसके नीचे कलश दर्शाया गया है। उस चंद्राकार के दो नोक और उनके बीचोबीच नारियल का शिखर मिलाकर त्रिशूल का आकार बना है। 

हिन्दू और बौद्ध मंदिरों पर ऐसे ही कलश बने होते हैं। कब्र के ऊपर गुंबद के मध्य से अष्टधातु की एक जंजीर लटक रही है। शिवलिंग पर जल सिंचन करने वाला सुवर्ण कलश इसी जंजीर पर टंगा रहता था। उसे निकालकर जब शाहजहां के खजाने में जमा करा दिया गया तो वह जंजीर लटकी रह गई। उस पर लाॅर्ड कर्जन ने एक दीप लटकवा दिया, जो आज भी है।
कब्रगाह को महल क्यों कहा गया? मकबरे को महल क्यों कहा गया? क्या किसी ने इस पर कभी सोचा, क्योंकि पहले से ही निर्मित एक महल को कब्रगाह में बदल दिया गया। कब्रगाह में बदलते वक्त उसका नाम नहीं बदला गया। यहीं पर शाहजहां से गलती हो गई। उस काल के किसी भी सरकारी या शाही दस्तावेज एवं अखबार आदि में ‘ताजमहल’ शब्द का उल्लेख नहीं आया है। ताजमहल को ताज-ए-महल समझना हास्यास्पद है। ‘महल’ शब्द मुस्लिम शब्द नहीं है। अरब, ईरान, अफगानिस्तान आदि जगह पर एक भी ऐसी मस्जिद या कब्र नहीं है जिसके बाद महल लगाया गया हो। यह भी गलत है कि मुमताज के कारण इसका नाम मुमताज महल पड़ा, क्योंकि उनकी बेगम का नाम मुमता -उल-जमानी था। यदि मुमताज के नाम पर इसका नाम रखा होता तो ताजमहल के आगे से मुम को हटा देने का कोई औचित्य नजर नहीं आता। विंसेंट स्मिथ अपनी पुस्तक 'Akbar the Great Moghul' में लिखते हैं, बाबर ने सन् 1530 में आगरा के वाटिका वाले महल में अपने उपद्रवी जीवन से मुक्ति पाई। वाटिका वाला वो महल यही ताजमहल था। यह इतना विशाल और भव्य था कि इसके जितना दूसरा कोई भारत में महल नहीं था। बाबर की पुत्री गुलबदन ‘हुमायूंनामा’ नामक अपने ऐतिहासिक वृत्तांत में ताज का संदर्भ ‘रहस्य महल’ (Mystic House) के नाम से देती है।

ताजमहल का निर्माण राजा परमर्दिदेव के शासनकाल में 1155 अश्विन शुक्ल पंचमी, रविवार को हुआ था। अतः बाद में मुहम्मद गौरी सहित कई मुस्लिम आक्रांताओं ने ताजमहल के द्वार आदि को तोड़कर उसको लूटा। यह महल आज के ताजमहल से कई गुना ज्यादा बड़ा था और इसके तीन गुम्बद हुआ करते थे। हिन्दुओं ने उसे फिर से मरम्मत करके बनवाया, लेकिन वे ज्यादा समय तक इस महल की रक्षा नहीं कर सके। वास्तुकला के विश्वकर्मा वास्तुशास्त्र नामक प्रसिद्ध ग्रंथ में शिवलिंगों में ‘तेज-लिंग’ का वर्णन आता है। ताजमहल में ‘तेज-लिंग’ प्रतिष्ठित था इसीलिए उसका नाम ‘तेजोमहालय’ पड़ा था। शाहजहां के समय यूरोपीय देशों से आने वाले कई लोगों ने भवन का उल्लेख ‘ताज-ए-महल’ के नाम से किया है, जो कि उसके शिव मंदिर वाले परंपरागत संस्कृत नाम ‘तेजोमहालय’ से मेल खाता है। इसके विरुद्ध शाहजहां और औरंगजेब ने बड़ी सावधानी के साथ संस्कृत से मेल खाते इस शब्द का कहीं पर भी प्रयोग न करते हुए उसके स्थान पर पवित्र मकबरा शब्द का ही प्रयोग किया है। ओक के अनुसार अनुसार हुमायूं, अकबर, मुमताज, एतमातुद्दौला और सफदरजंग जैसे सारे शाही और दरबारी लोगों को हिन्दू महलों या मंदिरों में दफनाया गया है।

ताजमहल तेजोमहल शिव मंदिर है - इस बात को स्वीकारना ही होगा कि ताजमहल के पहले से बने ताज के भीतर मुमताज की लाश दफनाई गई न कि लाश दफनाने के बाद उसके ऊपर ताज का निर्माण किया गया। ‘ताजमहल’ शिव मंदिर को इंगित करने वाले शब्द ‘तेजोमहालय’ शब्द का अपभ्रंश है। तेजोमहालय मंदिर में अग्रेश्वरमहादेव प्रतिष्ठित थे। देखने वालों ने अवलोकन किया होगा कि तहखाने के अंदर कब्र वाले कमरे में केवल सफेद संगमरमर के पत्थर लगे हैं जबकि अटारी व कब्रों वाले कमरे में पुष्प लता आदि से चित्रित चित्रकारी की गई है। इससे साफ जाहिर होता है कि मुमताज के मकबरे वाला कमरा ही शिव मंदिर का गर्भगृह है। संगमरमर की जाली में 108 कलश चित्रित उसके ऊपर 108 कलश आरूढ़ हैं, हिन्दू मंदिर परंपरा में 108 की संख्या को पवित्र माना जाता है।

तेजोमहालय को नागनाथेश्वर के नाम से जाना जाता था, क्योंकि उसके जलहरी को नाग के द्वारा लपेटा हुआ जैसा बनाया गया था। यह मंदिर विशालकाय महल क्षेत्र में था। आगरा को प्राचीनकाल में अंगिरा कहते थे, क्योंकि यह ऋषि अंगिरा की तपोभूमि थी। अंगिरा ऋषि भगवान शिव के उपासक थे। बहुत प्राचीन काल से ही आगरा में 5 शिव मंदिर बने थे। यहां के निवासी सदियों से इन 5 शिव मंदिरों में जाकर दर्शन व पूजन करते थे। लेकिन अब कुछ सदियों से बालकेश्वर, पृथ्वीनाथ, कैलाश और राजराजेश्वर नामक केवल 4 ही शिव मंदिर शेष हैं। 5 वें शिव मंदिर को सदियों पूर्व कब्र में बदल दिया गया। स्पष्टतः वह 5 वां शिव मंदिर आगरा के इष्टदेव नागराज अग्रेश्वर महादेव नागनाथेश्वर ही हैं, जो कि तेजोमहालय मंदिर उर्फ ताजमहल में प्रतिष्ठित थे।

Thursday, August 12, 2021

IAS टीना और अतहर आमिर की लव स्‍टोरी हुई खत्‍म, तलाक के बाद डाबी ने इंस्‍टाग्राम पर लिखा- 'कुछ ऐसा..!

सबसे चर्चित IAS जोड़ी टूट गई है। आईएएस टीना डाबी और आईएएस अतहर आमिर खान के बीच तलाक हो गया है। दोनों ने अलग होने के लिए जयपुर के पारिवारिक न्‍यायालय में तलाक की अर्जी डाली थी जिसपर मंगलवार को सुनवाई हुई। कोर्ट ने तलाक पर मुहर लगा दी और इसी के साथ दोनों की प्रेम कहानी का अंत हो गया।

बता दें कि 20 मार्च 2018 को टीना और अहतर शादी के बंधन में बंधे थे। इस शादी ने देशभर में खूब सुर्खियां बटोरी थीं। दरअसल, टीना और अतहर 2016 बैच के टॉपर आईएएस हैं। बताया जा रहा है कि शादी के दो साल बाद ही दोनों के वैवाहिक जिंदगी में काफी खटास आ गए थे, जिसके बाद टीना और अतहर ने तलाक के लिए कोर्ट का रुख किया था।

कोर्ट द्वारा तलाक की मंजूरी के बाद टीना डाबी ने अपने इंस्‍टाग्राम अकाउंट पर एक पोस्‍ट शेयर किया है। उन्‍होंने अपने पोस्‍ट में लिखा- 'आप कुछ भी करिए, लोग आपके बारे में बात करेंगे। लिहाजा अच्छा है कि आप भी कुछ भी करिए जिससे आपको खुशी मिलती है और आप अपनी जिंदगी बेहतर तरह से जी सकते हैं।'

ट्रेनिंग के दौरान शुरू हुई थी टीना और अतहर की लव स्‍टोरी।
राजस्थान कैडर की आईएएस अधिकारी टीना डाबी और अतहर आमिर खान की लव स्टोरी ट्रेनिंग के दौरान ही शुरू हुई थी। 11 मई 2015 को नॉर्थ ब्लॉक में एक कार्यक्रम के दौरान कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग के ऑफिस में टीना पहली बार अतहर से मिलीं और दोनों ने एक दूसरे को पंसद कर लिया। अपनी लव स्टोरी के बारे में बात करते हुए टीना ने खुद एक बार बताया था, 'उसके लिए पहली नजर में प्यार हो गया'। टीना ने आगे बताया कि सुबह हम दोनों की मुलाकात हुई और शाम को अतहर ने उन्हें प्रपोज कर दिया।

सोशल मीडिया पर किया था अनफॉलो, खान सरनेम भी हटाया।
टीना के पति अतहर ने कुछ महीनों पहले टीना को अपने सोशल मीडिया प्लेटफार्म (Social media Plateform) पर अनफॉलो कर दिया था। इसके बाद टीना ने भी अपने पति अतहर को अपने ट्वीटर (Twitter) से अनफॉलो कर दिया था। इसके अलावा शादी के बाद अपने नाम के आगे खान सरनेम लिखने वाली टीना ने कुछ दिनों पहले खान सरनेम हटाने के साथ ही अपने इंस्टाग्राम (Instagram) बायो से कश्मीरी बहु शब्द भी हटा दिया था।

Monday, August 9, 2021

स्वर्ण पदक जीतते ही रातों रात करोड़पति बन गए नीरज चोपड़ा,जाने कितना मिला इनाम।

टोक्यो ओलंपिक में भारत के भालाफेंक नीरज चोपड़ा ने जीत हासिल कर नया इतिहास रच दिया है। भारत के लिए ये बहुत गर्व की बात है ओलंपिक में भारत को काफी लंबे समय के बाद जीत मिली है लगभग 13 साल के बाद भारत को ये जीत हासिल हुई है जैवलिन थ्रो में ये भारत का अब तक का सबसे पहला मेडल है। नीरज ने भाले को 87.58 की सर्वश्रेष्ठ दूरी तक फेंका और स्वर्ण पदक अपने नाम कर लिया। गोल्ड मैडल जीतते ही पुरे देश की शुभकामनाये नीरज को मिलने लगी और अब उन पर इनामो की बारिश हो रही है। चलिए जानते है इस जीत पर उन्हें क्या क्या इनाम मिले है।

हरियाणा सरकार देगी बड़ी रकम।
ओलंपिक में गोल्ड जीतने वाले नीरज चोपड़ा को अब हरियाणा सरकार ने एक बड़ी रकम इनाम में देने की घोषणा की है। हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने ओलंपिक में देश का झंडा लहराने वाले नीरज चोपड़ा को 6 करोड़ रुपये नकद इनाम देने की घोषणा की है। इतना ही नहीं पंजाब के मुख्ममंत्री अमरिंदर सिंह ने भी नीरज को दो करोड़ रुपये के नकद पुरस्कार देने की घोषणा की। इसके अलावा आज कुश्ती में ब्रॉन्ज मेडल जीतने वाले बजरंग पुनिया को हरियाणा सरकार 2.5 करोड़ रुपये देगी।

आनंद महिंद्रा देंगे गाड़ी।
इसके अलावा महिंद्रा समूह के चेयरमैन आनंद महिंद्रा ने भी ओलंपिक में भाला फेंक में देश के लिए गोल्ड मेडल जीतने वाले खिलाड़ी नीरज चोपड़ा को कंपनी की आगामी कार XUV700 उपहार में देने का वादा कर दिया है। बता दें कि जैसे ही ओलंपिक में नीरज ने गोल्ड जीता तभी लोग सोशल मीडिया पर आनंद महिंद्रा से नीरज को इनाम देने की बात करने लगे। उन्होंने लोगों को जवाब देते हुए एक ट्वीट कर नीरज के इनाम की घोषणा की।

बीसीसीआई और सीएसके भी देंगे बड़ी राशि।
नीरज को मिलने वाले इनामों की संख्या यहीं खत्म नहीं होती। उन्हें भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) और इंडियन प्रीमियर लीग फ्रेंचाइजी चेन्नई सुपर किंग्स ने भी एक-एक करोड़ रुपये का पुरस्कार देने की घोषणा की। इस हिसाब से ओलंपिक गोल्ड जीतने वाले नीरज को अबतक कुल 10 करोड़ रुपये इनाम में दिए जाने की बात हो चुकी है।

नीरज ने रचा इतिहास।
टोक्यो ओलंपिक के जैवलिन थ्रो फाइनल में नीरज चोपड़ा शुरुआत से ही सबसे आगे रहे। उन्होंने अपनी पहली ही कोशिश में 87.03 मीटर की दूरी तय की है। वहीं दूसरी बार में उन्होंने 87.58 की दूरी तय करी। इसी के साथ उन्होंने अपने क्वालिफिकेशन रिकॉर्ड से भी ज्यादा दूर भाला फेंका है। जैवलिन थ्रो में ये भारत का अब तक का सबसे पहला मेडल है। इतना ही नहीं एथलेटिक्स में भी ये भारत का पहला ही मेडल है।

ओलंपिक में स्वर्ण पदक विजेता नीरज चोपडा कितने करोड़ के मालिक है।

भारतीय एथलीट नीरज चोपड़ा एक ट्रैक और फील्ड एथलीट है जो भाला फेंकने में बहुत ही माहिर है। एशियाई खेलों में नीरज का साल 2018 में भारत के लिए उद्घाटन समारोह में हाथ में झंडा लेकर भारत का प्रतिनिधित्व करने के लिए भी चुनाव किया गया था। नीरज ने 88.07 मीटर भाला फेंककर ये रिकॉर्ड बनाया है और भाला फेंकने में राष्ट्रीय रिकॉर्ड नीरज के नाम पर है।

नीरज ने पिछले कुछ वर्षों में जबरदस्त सुधार दिखाया है और टोक्यो ओलंपिक 2020 में भारत को गोल्ड मेडल भी जीते हैं। भारत ने पिछली बार 1900 में एथलेटिक्स में पदक जीता था। हालाँकि इस बार नीरज टोक्यो में 121 साल का सुखा खत्म कर दिये हैं। और भारत के लिए स्वर्ण पदक जीत कर आए हैं।

नीरज चोपड़ा की नेट वर्थ।
नीरज की अनुमानित कुल संपत्ति 1से 3 मिलियन यूएस डॉलर है। यह स्पष्ट है कि उनकी आय का मुख्य स्रोत भाला फेंकने वाले के रूप में उनका सफल करियर है। इसके अलावा, उन्हें JSW स्पोर्ट्स एंड स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया (SAI) से बहुत समर्थन मिलता है, जिसने उनके उज्जवल भविष्य में काफी मदद की है। 31 मार्च 2020 को उन्होंने COVID-19 महामारी के लिए PM केयर्स फंड में 2 लाख रूपए दान किए थे।

नीरज चोपड़ा की उपलब्धियां।
नीरज न केवल सीनियर स्तर पर राष्ट्रमंडल और एशियाई चैंपियन हैं, बल्कि उन्होंने जूनियर सर्किट में भी काफी नाम कमाया है। वह 2016 के विश्व U20 चैंपियन थे और उन्होंने 86.48 मीटर का विश्व अंडर-20 रिकॉर्ड बनाया था, जो अभी भी बरकरार है। इसके अलावा, वह अंडर -20 श्रेणी में ट्रैक और फील्ड में विश्व खिताब जीतने वाले पहले भारतीय एथलीट हैं।

नीरज का परिवार।
नीरज चोपड़ा रोर (क्षत्रिय) समुदाय से हैं और हरियाणा के पानीपत जिले के खंडरा गांव से आते हैं। उनकी शिक्षा डीएवी कॉलेज, चंडीगढ़ से हुई। 2016 में, उन्हें नायब सूबेदार के पद के साथ भारतीय सेना में एक जूनियर कमीशंड अधिकारी नियुक्त किया गया था।

Friday, August 6, 2021

रामानंद सागर के श्री राम अरुण गोविल इतनी सम्पत्ति के मालिक हैं।

अरुण गोविल फ़िल्मी जगत और दूरदर्शन के अभिनेता है। अरुण का जन्म 12 जनवरी 1952 को राम नगर उत्तर प्रदेश में हुआ। अरुण ने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा उत्तर प्रदेश से ही पूरी की और उसी दौरान अरुण ने नाटक में अभिनय करना आरम्भ किया। इनके पिता की इच्छा थी कि अरुण सरकारी नौकरी करे। लेकिन अरुण का सपना कुछ ऐसा कर दिखने का था कि सब उसे याद करे और अपने सपनो को सच करने के लिए अरुण मुम्बई आ गये। मुंबई आकर उन्हें बहुत संघर्ष करना पड़ा। शुरुआत में उन्होंने कई पारिवारिक फिल्मो में कम किया उसके बाद उन्हें रामानंद सागर-निर्देशित रामायण में भगवान राम का किरदार मिला। इस किरदार को निभा कर उनका बहुत नाम हुआ लोगो ने उनके अभिनय को बहुत सराहा। और सभी अरुण के अभिनय के फैन हो गये।

रामायण के बाद अरुण गोविल की प्रसिद्धी उन ऊँचाइयों पर पहुँच गई थी, जिसकी शायद उन्होंने भी कभी कल्पना नहीं की होगी। अपने निर्मल मुख, शान्त भाव और मनमोहक अदाकारी से, अरुण गोविल ने सिर्फ शौहरत ही नहीं कमाई, बल्कि उससे कई ज्यादा करोड़ों हिंदुस्तानियों का प्यार और सम्मान भी कमाया हैं। अरुण गोविल 1975 में मुंबई आए तो थे अपने भाई का बिजनेस में हाथ बटाने, पर यह काम उनको कुछ रास नहीं आया। आता भी कैसे, उनकी किस्मत में तो कुछ और ही लिखा था। फिल्म ‘पहेली’ के जरिए, 1977 में उन्हें बड़े पर्दे पर पहला मौका मिल गया। इसके बाद उन्होंने बॉलीवुड की कई फिल्मों में काम किया।

टीवी के श्रीराम ने, राम के किरदार से पहले – ‘सावन को आने दो’, ‘राधा और गीता’, ‘जियो तो ऐसे जियो’, और ‘सांच को आंच नहीं’ जैसी फिल्मों में काम किया हैं। ये फिल्मे अपने समय की हिट फिल्मों में शुमार हैं। इसके अलावा भी वे 80s और 90s की कई फिल्मों में नजर आए हैं। रामायण से पहले अरुण जी ने रामानंद सागर के ही ‘विक्रम बैताल’ में एक किरदार निभाया था, जिसके बाद ही उन्हें रामायण का सबसे अहम किरदार मिला। राम का किरदार निभा पाना इतना आसन नहीं था, और ये हर किसी कलाकार के बस की बात भी नहीं थी। पर अरुण गोविल ने जिस तरह ये किरदार निभाया, लोगों ने मान लिया की यहीं राम हैं। रामायण के बाद तो अरूण गोविल की पहचान एक देवपुरुष की ही बन गई थी। जिसके चलते उन्होंने ‘लव-कुश’, ‘हरीशचंद्र’ और ‘बुद्ध’ जैसे सीरियल में भी कार्य किया हैं।

2010 में अरुण गोविल की नेट वर्थ 38 करोड़ ($5 मिलियन) थी। वे अब काफी समय से अभिनय से दूर हैं, पर टीवी शोस और सोशल मीडिया पर वे काफी नजर आते हैं। पिछले साल ही वे ‘दी कपिल शर्मा शो’ में रामायण के अपने सह – कलाकार, दीपिका चिखलिया(सीता) और सुनील लहरी(लक्ष्मण) के साथ नजर आए थे, जहाँ उन्होंने अपने करियर और रामायण से जुड़े कई मजेदार किस्से साझा किये थे। अरुण गोविल, राजनैतिक तौर पर भारतीय जनता पार्टी से भी जुड़े हुए हैं।

अरुण, मुंबई में अपने खूबसूरत घर में अपने पूरे परिवार के साथ रहते हैं। उनके परिवार में उनकी पत्नी श्रीलेखा उनके दोनों बच्चे (एक बेटा और एक बेटी) बहु और पोता साथ रहते हैं। पिछले साल अरुण गोविल ने अपने पूरे परिवार के साथ रामायण देखते हुए एक तस्वीर साझा की थी, जिसे लोगों ने खूब पसंद किया था। इस फोटो को देखकर, लोगों ने यह भी कहा कि जो संस्कार, अरूण ने राम बनकर रामायण के जरिए सिखाए हैं, उनका वे खुद भी पालन करते हैं।

मैं तो इंसानियत से मजबूर था तुम्हे बीच मे नही डुबोया" मगर तुमने मुझे क्यों काट लिया!

नदी में बाढ़ आती है छोटे से टापू में पानी भर जाता है वहां रहने वाला सीधा साधा1चूहा कछुवे  से कहता है मित्र  "क्या तुम मुझे नदी पार करा ...