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Saturday, July 4, 2020

हिंदुत्व और हिंदुस्तान के वास्तविक स्वरूप से विश्व को अवगत कराने वाले युग प्रवर्तक स्वामी विवेकानंद जी की पुण्यतिथि पर कोटि-कोटि नमन।

स्वामी विवेकानन्द(जन्म 12 जनवरी,1863 मृत्यु 4 जुलाई,1902) वेदांत के विख्यात और प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरु थे। उनका वास्तविक नाम नरेन्द्र नाथ दत्त था। उन्होंने अमेरिका स्थित शिकागो में सन् 1893 में आयोजित विश्व धर्म महासभा में भारत की ओर से सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व किया था भारत  का। आध्यात्मिकता से परिपूर्ण वेदान्त दर्शन   अमेरिका  और यूरोप के हर एक देश में स्वामी विवेकानन्द की वक्तृता के कारण ही पहुँचा। उन्होंने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की थी जो आज भी अपना काम कर रहा है। वे रामकृष्ण परमहंस के सुयोग्य शिष्य थे। उन्हें 2 मिनट का समय दिया गया था लेकिन उन्हें प्रमुख रूप से उनके भाषण की शुरुआत "मेरे अमरीकी भाइयो एवं बहनो" के साथ करने के लिये जाना जाता है। उनके संबोधन के इस प्रथम वाक्य ने सबका दिल जीत लिया था।

कोलकाता के एक कुलीन बंगाली कायस्थ परिवार  में जन्मे विवेकानंद आध्यात्मिकता की ओर झुके हुए थे। वे अपने गुरु रामकृष्ण देव से काफी प्रभावित थे जिनसे उन्होंने सीखा कि सारे जीवो मे स्वयं परमात्मा का ही अस्तित्व हैं; इसलिए मानव जाति अथेअथ जो मनुष्य दूसरे जरूरत मंदो मदद करता है या सेवा द्वारा परमात्मा की भी सेवा की जा सकती है। रामकृष्ण की मृत्यु के बाद विवेकानंद ने बड़े पैमाने पर भारतीय उपमहाद्वीप का दौरा किया और ब्रिटिश भारत में मौजूदा स्थितियों का प्रत्यक्ष ज्ञान हासिल किया। बाद में विश्व धर्म संसद 1893 में भारत का प्रतिनिधित्व करने, संयुक्त्त्त राज्य अमेरिका के लिए प्रस्थान किया। विवेकानंद ने संयुक्त राज्य अमेरिका, इंग्लैंड और यूरोप में हिंदू दर्शन के सिद्धांतों का प्रसार किया और कई सार्वजनिक और निजी व्याख्यानों का आयोजन किया। भारत में विवेकानंद को एक देशभक्त संन्यासी के रूप में माना जाता है और उनके जन्मदिन को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है। महान व्यक्तित्व के थे स्वामीजी।
 एक बार किसी शिष्य ने गुरुदेव की सेवा में घृणा और निष्क्रियता दिखाते हुए नाक-भौं सिकोड़ीं। यह देखकर विवेकानन्द को क्रोध आ गया। वे अपने उस गुरु भाई को सेवा का पाठ पढ़ाते और गुरुदेव की प्रत्येक वस्तु के प्रति प्रेम दर्शाते हुए उनके बिस्तर के पास रक्त, कफ आदि से भरी थूकदानी उठाकर फेंकते थे। गुरु के प्रति ऐसी अनन्य भक्ति और निष्ठा के प्रताप से ही वे अपने गुरु के शरीर और उनके दिव्यतम आदर्शों की उत्तम सेवा कर सके। गुरुदेव को समझ सके और स्वयं के अस्तित्व को गुरुदेव के स्वरूप में विलीन कर सके। और आगे चलकर समग्र विश्व में भारत के अमूल्य आध्यात्मिक भण्डार की महक फैला सके। ऐसी थी उनके इस महान व्यक्तित्व की नींव में गुरुभक्ति, गुरुसेवा और गुरु के प्रति अनन्य निष्ठा जिसका परिणाम सारे संसार ने देखा। स्वामी विवेकानन्द अपना जीवन अपने गुरुदेव रामकृष्ण परमहंस को समर्पित कर चुके थे। उनके गुरुदेव का शरीर अत्यन्त रुग्ण हो गया था। गुरुदेव के शरीर-त्याग के दिनों में अपने घर और कुटुम्ब की नाजुक हालत व स्वयं के भोजन की चिन्ता किये बिना वे गुरु की सेवा में सतत संलग्न रहे।
स्वामी विवेकानंद का दिमाग बाकी विद्यार्थियों की तुलना काफी तेज था।  वह मोटी मोटी किताबों को बहुत जल्दी पढ़ लेते थे, और उसे याद कर लेते थे ।

सम्मेलन में भाषण का कुछ अंश

मेरे अमरीकी भाइयो और बहनो!

आपने जिस सौहार्द और स्नेह के साथ हम लोगों का स्वागत किया हैं उसके प्रति आभार प्रकट करने के निमित्त खड़े होते समय मेरा हृदय अवर्णनीय हर्ष से पूर्ण हो रहा हैं। संसार में संन्यासियों की सबसे प्राचीन परम्परा की ओर से मैं आपको धन्यवाद देता हूँ; धर्मों की माता की ओर से धन्यवाद देता हूँ; और सभी सम्प्रदायों एवं मतों के कोटि कोटि हिन्दुओं की ओर से भी धन्यवाद देता हूँ।


🤔 बहुमुखी प्रतिभा के धनी स्वामीजी का शैक्षिक प्रदर्शन औसत था। उनको यूनिवर्सिटी एंट्रेंस लेवल पर 47 फीसदी, एफए में 46 फीसदी और बीए में 56 फीसदी अंक मिले थे।
🤔 विवेकानंद चाय के शौकीन थे। उन दिनों जब हिंदू पंडित चाय के विरोधी थे, उन्होंने अपने मठ में चाय को प्रवेश दिया। एक बार बेलूर मठ में टैक्स बढ़ा दिया गया था। कारण बताया गया था कि यह एक प्राइवेट गार्डन हाउस है। बाद में ब्रिटिश मजिस्ट्रेट की जांच के बाद टैक्स हटा दिए गए।

🤔 एक बार विवेकानंद ने महान स्वतंत्रता सेनानी बाल गंगाधर तिलक को बेलूर मठ में चाय बनाने के लिए मनाया। गंगाधर तिलक अपने साथ जायफल, जावित्री, इलायची, लॉन्ग और केसर लाए और सभी के लिए मुगलई चाय बनाई।

🤔 उनके मठ में किसी महिला, उनकी मां तक, को जाने की अनुमति नहीं थी। एक बार जब उनको काफी बुखार था तो उनके शिष्य उनकी मां को बुला लाए। उनको देखकर विवेकानंद चिल्लाए, 'तुम लोगों ने एक महिला को अंदर आने की अनुमति कैसे दी? मैं ही हूं जिसने यह नियम बनाया और मेरे लिए ही इस नियम को तोड़ा जा रहा है।

🤔 बीए डिग्री होने के बावजूद नरेंद्रनाथ (विवेकानंद का असल नाम) को रोजगार की तलाश में घर-घर जाना पड़ता था। वह जोर से कहते, 'मैं बेरोजगार हूं।' नौकरी की तलाश में जब थक गए तो उनका भगवान से भरोसा उठ गया और लोगों से कहने लगते कि भगवान का अस्तित्व नहीं है।

🤔 पिता की मृत्यु के बाद उनके परिवार पर संकट आ गया था। गरीबी के उन दिनों में सुबह विवेकानंद अपनी माता से कहते थे कि उनको कहीं से दिन के खाने के लिए निमंत्रण मिला है और घर से बाहर चले जाते थे। असल में उनको कोई निमंत्रण नहीं मिलता था बल्कि वह ऐसा इसिलए करते थे ताकि घर के अन्य लोगों को खाने का ज्यादा हिस्सा मिल सके। वह लिखते हैं, 'कभी मेरे खाने के लिए बहुत कम बचता था और कभी तो कुछ भी नहीं बचता था। बीए डिग्री होने के बावजूद नरेंद्रनाथ (विवेकानंद का असल नाम) को रोजगार की तलाश में घर-घर जाना पड़ता था। वह जोर से कहते, 'मैं बेरोजगार हूं।' नौकरी की तलाश में जब थक गए तो उनका भगवान से भरोसा उठ गया और लोगों से कहने लगते कि भगवान का अस्तित्व नहीं है।
हिन्दू, हिंदुत्व और हिंदुस्तान के वास्तविक स्वरूप से विश्व को अवगत कराने वाले युग प्रवर्तक एवं युवाओं के प्रेरणास्रोत स्वामी विवेकानंद जी की पुण्यतिथि पर उनको कोटि-कोटि नमन।

Friday, July 3, 2020

प्रधानमंत्री के लेह दौरे के बाद आया कांग्रेस की प्रतिक्रिया।

भारत-चीन सीमा विवाद के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शुक्रवार को बिना किसी जानकारी के लेह पहुंचे। इस दौरे पर उनके साथ CDS बिपिन रावत भी मौजूद रहे। लेह पहुंचते ही जवानों ने PM का जोश के साथ स्वागत किया। प्रसार भारती ने एक वीडियो साझा किया। 
जिसमें पीएम मोदी सेना के जवानों के साथ चलते नजर आ रहे हैं और पीछे से वीर जवान 'भारत माता की जय' और 'वंदे मातरम' के नारे लगा रहे हैं। प्रधानमंत्री लेह में 24 मिनट का भाषण दिया। जिसमें चीन का बिना नाम लिए सब कुछ कह दिया। अपनी लद्दाख यात्रा के दौरान, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने लद्दाख में युद्ध स्मारक का भी दौरा किया जहां उन्होंने 16 बिहार के 20 शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित की, जो गालवान घाटी में भारत की संप्रभुता की रक्षा करते हुए मारे गए।  इससे पहले, पीएम ने लद्दाख में निमू चौकी का औचक दौरा किया जहां भारतीय सेना और आईटीबीपी के जवान तैनात हैं।  पीएम मोदी ने क्षेत्र में तैयारी का निरीक्षण किया और एक भाषण दिया जिसमें उन्होंने भारतीय सशस्त्र बलों की वीरता की प्रशंसा की।
जैसा उम्मीद था, ठीक वैसा ही हुआ प्रधानमंत्री दौरा के बाद कांग्रेस पार्टी का प्रतिक्रिया आ चुका है जिसको देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि कांग्रेस पार्टी भारत की जनता के साथ क्या देखना चाहती है क्यों उकसा रही है चीन को और क्यों आलोचना कर रही है प्रधानमंत्री मोदी की कांग्रेस का नियत साफ है भारत को लेकर। आखिर चीन कि कांग्रेस पार्टी क्यों कर रही हैं तरफदारी। कांग्रेस पार्टी के प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने ट्विट कर प्रधानमंत्री पे निसनासाधा हैं। जो निम्न है।

28 मई, 2020 - 
“मन की बात” में चीन का नाम नहीं।

30 मई, 2020 -
“राष्ट्र के नाम” संदेश में चीन का नाम नहीं।

3 जुलाई, 2020 -
“सैनिकों से बात” में चीन का नाम नहीं।

मज़बूत भारत के प्रधानमंत्री इतने कमजोर क्यों?
चीन का नाम तक लेने से गुरेज़ क्यों?
चीन से आँख में आँख डाल कब बात होगी?

https://twitter.com/rssurjewala/status/1279011428486139904?s=19

रणदीप सुरजेवाला के ट्वीट से अंदाजा लगाया जा सकता है कि कांग्रेस पार्टी भारत की जनता के साथ क्या देखना चाहती है। कांग्रेस पार्टी के प्रवक्ता को इसबात की अंदाजा बिल्कुल भी नहीं है कि भारत के सामने कोई कमजोर देश नहीं है। जिससे आसानी से युद्ध जीता जा सकता है। भारत के सामने चीन है। जिसके पास हर एक आधुनिक हथियार और आधुनिक तकनीक है जिससे युद्ध जितना बहुत आसान नहीं है। इसके बावजूद कांग्रेस पार्टी ना जाने ऎसॉ सवाल क्यों पूछती हैं।
ठीक है प्रधानमंत्री चीन का नाम नहीं लिया लेकिन चीन के दरवाजे से ललकारा तो है। की अब विस्तारवाद का युग नहीं रहा अब विकासवाद का युग है। विस्तारवाद की नीति किसकी है कोई बताएगा हमें। चीन एक ऐसा देश है जो अपने विस्तारवाद के नीतियों पे काम कर रहा है। चीन से सटा हर देश में ड्रेगन अपनी सीमा बढ़ाने के लिए जाना जाता है। ये ठीक तरह से चीन को चेतावनी है कि हमें बात करना भी आता है और जबाब देना भी आता है।

परधानमन्त्री नरेंद्र मोदी लेह दौरा अब चीन का खैर नहीं।

भारत-चीन सीमा विवाद के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शुक्रवार को लेह पहुंचे। इस दौरे पर उनके साथ CDS बिपिन रावत भी मौजूद रहे। लेह पहुंचते ही जवानों ने PM का जोश के साथ स्वागत किया। प्रसार भारती ने एक वीडियो साझा किया। जिसमें पीएम मोदी सेना के जवानों के साथ चलते नजर आ रहे हैं और पीछे से वीर जवान 'भारत माता की जय' और 'वंदे मातरम' के नारे लगा रहे हैं।
यहां उन्होंने थलसेना, वायुसेना और आईटीबीपी के जवानों से बातचीत की। पीएम मोदी ने गलवान में शहीद हुए जवानों की वीरता को याद किया और उन्हें श्रद्धांजलि दी। इसके साथ ही उन्होंने इशारों इशारों में चीन को जवाब दिया। पीएम मोदी ने विस्तारवादी नीति का जिक्र करके हुए कहा कि विस्तारवादी ताकतें दुनिया के लिए खतरा है। अब विस्तारवाद का युग समाप्त हो चुका है, अब विकासवाद का युग है।

उन्होंने आगे जवानों से कहा-"आपने जो वीरता हाल ही में दिखाई उससे विश्व में भारत की ताकत को लेकर एक संदेश गया है। आपके और आपके मजबूत संकल्प के कारण 'आत्मनिर्भर भारत' बनने का हमारा संकल्प और मजबूत हुआ है। आपकी इच्छाशक्ति हिमालय की तरह मजबूत और अटल है, देश को आप पर गर्व है।"


"हमने हमेशा मानवता की सुरक्षा के लिए काम किया है। आप सभी भारत की इस परंपरा को स्थापित करने वाले अगुआ हो। हम सशस्त्र बलों की जरूरतों पर पूरा ध्यान दे रहे हैं। वीरता शांति की एक पूर्वशर्त है।"

 
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चीन का नाम लिए बिना सब कुछ कह दिया। उन्होंने कहा कि हम कृष्ण के दोनों रूपों को पूजते हैं। बांसुरी वाले कृष्ण की दूसरा सुदर्शन चक्र वाले कृष्ण की। दुश्मन जिस भाषा में समझना चाहता है हमारी सेना उस भाषा में समझाने के लिए तैयार हैं। उन्होंने आगे यह भी कहा कि अब विस्तार वाद नहीं चलेगा अब युग है विकासवाद की।

भारत मां का टुकड़ा और पाकिस्तान की उत्पत्ति का इतिहास!

भारत पाकिस्तान एक ऐसा देश है, जो आजाद तो एकसाथ हुआ आजादी का जश्न एक साथ मनाया। लेकिन बटवारा जश्न के बाद हुआ। और आज भारत पाकिस्तान दो देश है जिसका आजादी का सालगिरह 2 बार मनाया जाता हैं। पाकिस्तान में आजादी का दिन एक दिन पहले और भारत में एक दिन बाद में मनाया जाता है। पाकिस्तान के आजादी का दिन 14 अगस्त 1947 को तय हुआ वहीं भारत का 15 अगस्त 1947 के दिन आजादी मिली। बहुत से विद्वानों का मत है कि ब्रिटिश सरकार ने विभाजन की प्रक्रिया को ठीक से नहीं संभाला। क्योंकि स्वतंत्रता की घोषणा पहले और विभाजन की घोषणा बाद में की गयी, देश में शांति कायम रखने की जिम्मेवारी भारत और पाकिस्तान की नयी सरकारों के सर पर आई। किसी ने यह नहीं सोचा था कि बहुत से लोग इधर से उधर जाएंगे। लोगों का विचार था कि दोनों देशों में अल्पमत संप्रदाय के लोगों के लिए सुरक्षा का इंतज़ाम किया जाएगा। लेकिन दोनों देशों की नयी सरकारों के पास हिंसा और अपराध से निपटने के लिए आवश्यक इंतज़ाम नहीं था। फलस्वरूप दंगा फ़साद हुआ और बहुत से लोगों की जाने गईं और बहुत से लोगों को घर छोड़कर भागना पड़ा। अंदाज़ा लगाया जाता है कि इस दौरान लगभग 5 लाख से 30 लाख लोग मारे गये, कुछ दंगों में, तो कुछ यात्रा की मुश्किलों से।

आलोचकों का मत है कि आजादी के समय हुए नरसंहार व अशांति के लिये अंग्रेजों द्वारा समय पूर्व सत्ता हस्तान्तरण करने की शीघ्रता व तात्कालिक नेतृत्व की अदूरदर्शिता उत्तरदायी थी।

भारत के विभाजन के ढांचे को '3 जून प्लान' या माउंटबैटन योजना का नाम दिया गया। भारत और पाकिस्तान के बीच की सीमारेखा लंदन के वकील सर सिरिल रैडक्लिफ ने तय की। हिन्दू बहुमत वाले इलाके भारत में और मुस्लिम बहुमत वाले इलाके पाकिस्तान में शामिल किए गए। 18 जुलाई 1947 को ब्रिटिश संसद ने भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम पारित किया जिसमें विभाजन की प्रक्रिया को अंतिम रूप दिया गया। इस समय ब्रिटिश भारत में बहुत से राज्य थे जिनके राजाओं के साथ ब्रिटिश सरकार ने तरह-तरह के समझौते कर रखे थे। इन 565 राज्यों को आज़ादी दी गयी कि वे चुनें कि वे भारत या पाकिस्तान किस में शामिल होना चाहेंगे। अधिकतर राज्यों ने बहुमत धर्म के आधार पर देश चुना। जिन राज्यों के शासकों ने बहुमत धर्म के अनुकूल देश चुना उनके एकीकरण में काफ़ी विवाद हुआ। विभाजन के बाद पाकिस्तान को संयुक्त राष्ट्र में नए सदस्य के रूप में शामिल किया गया और भारत ने ब्रिटिश भारत की कुर्सी संभाली।


ब्रिटिश भारत की संपत्ति को दोनों देशों के बीच बाँटा गया। लेकिन यह प्रक्रिया बहुत लंबी खिंचने लगी। गांधीजी ने भारत सरकार पर दबाव डाला कि वह पाकिस्तान को धन जल्दी भेजे जबकि इस समय तक भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध शुरु हो चुका था और दबाव बढ़ाने के लिए अनशन शुरु कर दिया। भारत सरकार को इस दबाव के आगे झुकना पड़ा और पाकिस्तान को धन भेजना पड़ा। 22 अक्टूबर 1947 को पाकिस्तान ने कश्मीर पर आक्रमण कर दिया, उससे पूर्व माउण्टबैटन ने भारत सरकार से पाकिस्तान सरकार को 55 करोड़ रुपये की राशि देने का परामर्श दिया था। केन्द्रीय मन्त्रिमण्डल ने आक्रमण के दृष्टिगत यह राशि देने को टालने का निर्णय लिया किन्तु गांधी जी ने उसी समय यह राशि तुरन्त दिलवाने के लिए आमरण अनशन शुरू कर दिया जिसके परिणामस्वरूप यह राशि पाकिस्तान को भारत के हितों के विपरीत दे दी गयी। नाथूराम गोडसे ने महात्मा गांधी के इस काम को उनकी हत्या करने का एक कारण बताया। कश्मीर विवाद कश्मीर पर अधिकार को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच 1947 से जारी है। भारत में विलय के लिए विलय-पत्र पर दस्तखत किए थे। गवर्नर जनरल माउंटबेटन ने 27 अक्टूबर को इसे मंजूरी दी। विलय-पत्र का खाका हूबहू वही था जिसका भारत में शामिल हुए अन्य सैकड़ों रजवाड़ों ने अपनी-अपनी रियासत को भारत में शामिल करने के लिए उपयोग किया था। न इसमें कोई शर्त शुमार थी और न ही रियासत के लिए विशेष दर्जे जैसी कोई मांग। इस वैधानिक दस्तावेज पर दस्तखत होते ही समूचा जम्मू और कश्मीर, जिसमें पाकिस्तान के अवैध कब्जे वाला इलाका भी शामिल है, भारत का अभिन्न अंग बन गया। 
किस तरह आधे कश्मीर पर कब्जा किया गया पाकिस्तान अब हम बात करते हैं कि किस तरह आधे कश्मीर पर कब्जा किया गया। इसको लेकर पाकिस्तान ने भारत पर तीन बार हमला किया और तीनो बार उसे बुरी तरह से पराजय मिली! 1971 के युद्ध में तो भारत ने पलटवार करते हुए पाकिस्तानी सेना को इस्लामाबाद तक खदेड़ दिया था! और लगभग आधे पाकिस्तान पर कब्जा कर लिया परन्तु पाकिस्तान के आत्मसमर्पण संधि यहां हम बात करेंगे कश्मीर की, जम्मू और लद्दाख की। भारत के इस उत्तरी राज्य के 3 क्षेत्र हैं- जम्मू, कश्मीर और लद्दाख। दुर्भाग्य से भारतीय राजनेताओं ने इस क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति समझे बगैर इसे एक राज्य घोषित कर दिया, क्योंकि ये तीनों ही क्षे‍त्र एक ही राजा के अधीन थे। सवाल यह उठता है कि आजादी के बाद से ही जम्मू और लद्दाख भारत के साथ खुश हैं, लेकिन कश्मीर खुश क्यों नहीं? हालांकि विशेषज्ञ कहते हैं कि पाकिस्तान की चाल में फिलहाल 2 फीसदी कश्मीरी ही आए हैं बाकी सभी भारत से प्रेम करते हैं। यह बात महबूबा मुफ्ती अपने एक इंटरव्यू में कह चुकी हैं। लंदन के रिसर्चरों द्वारा पिछले साल राज्य के 6 जिलों में कराए गए सर्वे के अनुसार एक व्यक्ति ने भी पाकिस्तान के साथ खड़ा होने की वकालत नहीं की, जबकि कश्मीर में कट्टरपंथी अलगाववादी समय समय पर इसकी वकालत करते रहते हैं जब तक की उनको वहां से आर्थिक मदद मिलती रहती है।
 वहीं से हुक्म आता है बंद और पत्थरबाजी का और उस हुक्म की तामिल की जाती है। आतंकवाद, अलगाववाद, फसाद और दंगे- ये 4 शब्द हैं जिनके माध्यम से पाकिस्तान ने दुनिया के कई मुल्कों को परेशान कर रखा है। खासकर भारत उसके लिए सबसे अहम टारगेट है। क्यों? इस ‘क्यों’ के कई जावाब हैं। भारत के पास कोई स्पष्ट नीति नहीं है। भारतीय राजनेता निर्णय लेने से भी डरते हैं या उनमें शुतुरमुर्ग प्रवृत्ति विकसित हो गई है। अब वे आर या पार की लड़ाई के बारे में भी नहीं सोच सकते क्योंकि वे पूरे दिन आपस में ही लड़ते रहते हैं, बयानबाजी करते रहते हैं। सीमा पर सैनिक मर रहे हैं पूर्वोत्तर में जवान शहीद हो रहे हैं इसकी भारतीय राजनेताओं को कोई चिंता नहीं। इस पर भी उनको राजनीति करना आती है। कहते जरूर हैं कि देशहित के लिए सभी एकजुट हैं लेकिन लगता नहीं है।

चाय बेचने वाला एक साधारण परिवार का लड़का मुख्यमत्री और प्रधानंत्री कैसे बना।

आज हम बात कर रहे है दुनिया के सबसे लोकप्रिय नेता और भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द दामोदर दास मोदी की  मोदी का जन्म तत्कालीन बॉम्बे राज्य के महेसाना जिला स्थित वडनगर ग्राम में हीराबेन मोदी और दामोदरदास मूलचन्द मोदी के एक मध्यम-वर्गीय परिवार में 17 सितम्बर 1950 को हुआ था। वह पैदा हुए छह बच्चों में तीसरे थे। मोदी का परिवार 'मोध-घांची-तेली समुदाय से था, जिसे भारत सरकार द्वारा अन्य पिछड़़ा वर्ग के रूप में वर्गीकृत किया जाता है। वह पूर्णत: शाकाहारी हैं। भारत पाकिस्तान के बीच द्वितीय विश्वयुद्ध के  दौरान अपने तरुणकाल में उन्होंने स्वेच्छा से रेलवे स्टेशनों पर सफ़र कर रहे सैनिकों की सेवा की। युवावस्था में वह छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में शामिल हुए | उन्होंने साथ ही साथ भ्रष्टाचार विरोधी नव निर्माण आन्दोलन में हिस्सा लिया। एक पूर्णकालिक आयोजक के रूप में कार्य करने के पश्चात् उन्हें भारतीय जनता पार्टी में संगठन का प्रतिनिधि मनोनीत किया गया।
किशोरावस्था में अपने भाई के साथ एक चाय की दुकान चला चुके मोदी ने अपनी स्कूली शिक्षा वडनगर में पूरी की। उन्होंने आरएसएस के प्रचारक रहते हुए 1980 में   गुजरात  विश्वविद्यालय  से  राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर परीक्षा दी और विज्ञान स्नातकोत्तर की डिग्री प्राप्त की। अपने माता-पिता की कुल छ: सन्तानों में तीसरे पुत्र नरेन्द्र ने बचपन में रेलवे स्टेशन पर चाय बेचने में अपने पिता का भी हाथ बँटाया। बड़नगर के ही एक स्कूल मास्टर के अनुसार नरेन्द्र हालाँकि एक औसत दर्ज़े का छात्र थे, लेकिन वाद-विवाद और नाटक प्रतियोगिताओं में उसकी बेहद रुचि थी। 
इसके अलावा उसकी रुचि राजनीतिक विषयों पर नयी-नयी परियोजनाएँ प्रारम्भ करने की भी थी। 13 वर्ष की आयु में नरेन्द्र की सगाई जसोदा बेन चमनलाल के साथ कर दी गयी और जब उनका विवाह हुआ, तब वह मात्र 17 वर्ष के थे। फाइनेंशियल एक्सप्रेस की एक खबर के अनुसार पति-पत्नी ने कुछ वर्ष साथ रहकर बिताये। परन्तु कुछ समय बाद वे दोनों एक दूसरे के लिये अजनबी हो गये क्योंकि नरेन्द्र मोदी ने उनसे कुछ ऐसी ही इच्छा व्यक्त की थी। जबकि नरेन्द्र मोदी के जीवनी-लेखक ऐसा नहीं मानते। उनका कहना है।
"उन दोनों की शादी जरूर हुई परन्तु वे दोनों एक साथ कभी नहीं रहे। शादी के कुछ बरसों बाद नरेन्द्र मोदी ने घर त्याग दिया और एक प्रकार से उनका वैवाहिक जीवन लगभग समाप्त-सा ही हो गया।"

पिछले चार विधान सभा चुनावों में अपनी वैवाहिक स्थिति पर खामोश रहने के बाद नरेन्द्र मोदी ने कहा कि अविवाहित रहने की जानकारी देकर उन्होंने कोई पाप नहीं किया। नरेन्द्र मोदी के मुताबिक एक शादीशुदा के मुकाबले अविवाहित व्यक्ति भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ जोरदार तरीके से लड़ सकता है क्योंकि उसे अपनी पत्नी, परिवार व बालबच्चों की कोई चिन्ता नहीं रहती।हालांकि नरेन्द्र मोदी ने शपथ पत्र प्रस्तुत कर जसोदाबेन को अपनी पत्नी स्वीकार किया है।


 आठ साल की उम्र में वे आरएसएस से जुड़े, जिसके साथ एक लंबे समय तक सम्बंधित रहे। स्नातक होने के बाद उन्होंने अपने घर छोड़ दिया। मोदी ने दो साल तक भारत भर में यात्रा की, और कई धार्मिक केन्द्रों का दौरा किया। 1969 या 1970 वे गुजरात लौटे और अहमदाबाद चले गए। 1971 में वह आरएसएस के लिए पूर्णकालिक कार्यकर्ता बन गए। 1975 में देश भर में आपातकाल की स्थिति के दौरान उन्हें कुछ समय के लिए छिपना पड़ा। 1985 में वे बीजेपी से जुड़े और 2001 तक पार्टी पदानुक्रम के भीतर कई पदों पर कार्य किया, जहाँ से वे धीरे धीरे भाजपा में सचिव के पद पर पहुँचे।

गुजरात भूकंप 2001,
(भुज में भूकंप) के बाद गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल असफल स्वास्थ्य और ख़राब सार्वजनिक छवि के कारण नरेंद्र मोदी को 2001 में गुजरात के मुख्यमंत्री नियुक्त किया गया। मोदी जल्द ही विधायी विधानसभा के लिए चुने गए। 2002 के गुजरात दंगों में उनके प्रशासन को कठोर माना गया है, इस दौरान उनके संचालन की आलोचना भी हुई। हालांकि सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त विशेष जांच दल (एसआईटी) को अभियोजन पक्ष की कार्यवाही शुरू करने के लिए कोई सबूत नहीं मिला। मुख्यमंत्री के तौर पर उनकी नीतियों को आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करने के लिए श्रेय दिया गया। उनके नेतृत्व में भारत की प्रमुख विपक्षी पार्टी भारतीय जनता पार्टी ने 2014 का लोकसभा चुनाव लड़ा और 282 सीटें जीतकर अभूतपूर्व सफलता प्राप्त की। एक सांसद के रूप में उन्होंने उत्तर प्रदेश की सांस्कृतिक नगरी वाराणसी एवं अपने गृहराज्य गुजरात के वडोदरा संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़ा और दोनों जगह से जीत दर्ज़ की। उनके राज में भारत का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश एवं बुनियादी सुविधाओं पर खर्च तेज़ी से बढ़ा। उन्होंने अफसरशाही में कई सुधार किये तथा योजना आयोग को हटाकर नीति आयोग का गठन किया। 
इसके बाद वर्ष 2019 में भारतीय जनता पार्टी ने उनके नेतृत्त्व में दोबारा चुनाव लड़ा और इस बार पहले से भी ज्यादा बड़ी जीत हासिल हुई। पार्टी ने कुल 303 सीटों पर जीत हासिल की। भाजपा के समर्थक दलों यानी एनडीए को कुल 352 सीटें प्राप्त हुईं। 30 मई 2019 को शपथ ग्रहण कर नरेंद्र मोदी लगातार दूसरी बार प्रधानमंत्री बने। इससे पूर्व वे गुजरात राज्य के 14 वें मुख्यमंत्री रहे। उन्हें उनके काम के कारण गुजरात की जनता ने लगातार 4 बार (2001 से 2014 तक) मुख्यमन्त्री चुना। गुजरात विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर डिग्री प्राप्त नरेन्द्र मोदी विकास पुरुष के नाम से जाने जाते हैं और वर्तमान समय में देश के सबसे लोकप्रिय नेताओं में से हैं। माइक्रो-ब्लॉगिंग साइट ट्विटर पर भी वे सबसे ज्यादा फॉलोअर (4.5करोड़+, जनवरी 2019) वाले भारतीय नेता हैं। उन्हें 'नमो' नाम से भी जाना जाता है। टाइम पत्रिका ने मोदी को पर्सन ऑफ़ द ईयर 2013 के 42 उम्मीदवारों की सूची में शामिल किया है
नरेन्द्र मोदी एक राजनेता और कवि हैं। वे गुजरती भाषा के अलावा हिन्दी में भी देशप्रेम से ओतप्रोत कविताएँ लिखते हैं।
नरेंद्र मोदी अपने मुख्यमंत्री के कार्यकाल से लेकर अब तक छुट्टी लेना उचित नही समझते है। ओ अब तक के ऎशे प्रधानमंत्री है जिनके विदेश दौरे में बाकी के प्रधानन्त्री से बहुत कम खर्च आया है। ये अब तक के सबसे पसंदीदा राजनेता भी है जो अपने कार्यकाल में अपने से पूर्व प्रधानमंत्री के हटने के बाद अपना स्टाफ नहीं बदले । अब तक जो भी नए प्रधानमंत्री बना ओ अपना स्टाफ बदल देता था लेकिन मोदी सरकार में ऎसा कुछ भी नहीं देखने को मिला।
प्रधान मंत्री मोदी त्यौहारो में अक्सर सरहद पर सक्रिय सैनिकों के साथ बिताते हैं।

चीनी App को सरकार द्वारा प्रतिबंध लगाने के बाद आया चीनी कम्पनी का प्रतिक्रिया।

लंबे समय के इंतजार के बाद आखिरकार वह दिन आ गया। जिसका पूरा देश बेसब्री से इंतज़ार कर रहा था। सोमवार के दिन देश में डेटा सेफ्टी और प्राइवेसी के नाम पर भारत सरकार ने एक बहुत बड़ा फैसला लिया है। इस फैसले से देश में इंटरनेट, सोशल मीडिया के अलग-अलग प्लेटफॉर्म्स सहित कई दूसरे मोबाइल ऐप्स के यूजर्स के लिए बहुत कुछ बदल गया। यह बदलाव देश में डेवलप किए गए मोबाइल ऐप्स को बढ़ावा देने की ओर भी बड़ा कदम साबित हो रहा हैं। दरअसल, सरकार ने सोमवार को एक बड़ी घोषणा करते हुए IT Act, 2000 की धारा 69(A) के तहत पॉपुलर वीडियो कंटेंट प्लेटफॉर्म TikTok सहित एंड्रॉयड और iOS पर कुल 59 चीनी मोबाइल ऐप्लीकेशन्स को बैन कर दिया है. इस लिस्ट में TikTok के अलावा, Vigo Video, Shareit, UC Browser, Helo और Likee जैसे कई प्रसिद्ध ऐप्स शामिल हैं। जिनका भारत में बड़ी संख्या में यूजर्स हैं।
ऐसे में इन यूजर्स के सामने यह सवाल खड़ा है कि अब वो अपने ऐप्स और अपने डेटा के साथ क्या करें. खासकर, वो यूजर्स जो इन प्लेटफॉर्म्स पर कंटेंट क्रिएट करते हैं, जैसे कि #TikTokers. यहां तक कि TikTok को Apple के ऐप स्टोर से भी हटा दिया गया है।
भारत सरकार के तरफ से आई प्रतिक्रिया के बाद
कंपनी ने एक बयान में कहा, "हम भारत सरकार के आदेश का सम्मान करते हैं और गूगल प्ले और ऐप स्टोर से लाइक को अस्थायी रूप से हटा दिया है और भारत में सेवा को निलंबित कर दिया है।"
सिंगापुर स्थित बीआईजीओ टेक्नोलॉजी पीटीई लिमिटेड के तहत काम करते हुए, लाइके ने कहा कि यह "सभी स्थानीय कानूनों के साथ-साथ उपयोगकर्ताओं की गोपनीयता और डेटा सुरक्षा का पालन करने के लिए अत्यंत प्राथमिकता" है।  2017 में पहली बार जारी इस प्लेटफॉर्म के दुनिया भर में 15 मिलियन से अधिक उपयोगकर्ता हैं।
इसी कंपनी के एक अन्य उत्पाद बिगो लाइव ने भी कहा कि वे सरकार के आदेश का सम्मान करते हैं और Google और Apple दोनों स्टोर से ऐप को हटा दिया है।
इस बीच, चीन स्थित बाइटडांस के एक अन्य लघु-वीडियो मेकिंग प्लेटफॉर्म टिक्कॉक ने कहा कि वे सरकार के निर्देश के बारे में कानूनी कार्रवाई नहीं कर रहे हैं जैसा कि मीडिया के एक हिस्से में बताया गया है।
इस बीच, चीन स्थित बाइटडांस के एक अन्य लघु-वीडियो मेकिंग प्लेटफॉर्म टिक्कॉक ने कहा कि वे सरकार के निर्देश के बारे में कानूनी कार्रवाई नहीं कर रहे हैं जैसा कि मीडिया के एक हिस्से में बताया गया है।

Wednesday, July 1, 2020

ISRO Chief के सिवन की किसानी से ISRO Chief तक की सफर।

इसरो प्रमुख के सिवन का पूरा नाम डॉ. कैलाशवडिवू सिवन (K Sivan) है। 14 अप्रैल 1957 को तमिलनाडु के कन्याकुमारी जिले के सराक्कलविलाई गांव में एक किसान के घर उनका जन्म हुआ था। सिवन ने एक सरकारी स्कूल में तमिल माध्यम से पढ़ाई की। नागेरकोयल के एसटी हिंदू कॉलेज से उन्होंने स्नातक किया। के सिवन स्नातक करने वाले अपने परिवार के पहले सदस्य थे। उनके भाई और बहन गरीबी के कारण अपनी उच्च शिक्षा पूरी नहीं कर पाए। के सिवन के अनुसार, बचपन में उनके पास पहनने के लिए जूते-चप्पल भी नहीं थे। वे अक्सर नंगे पैर ही रहा करते। कॉलेज तक धोती पहनते थे। एमआईटी में दाखिला लेने के बाद उन्होंने पहली बार पैंट पहनी। वह कभी ट्यूशन या कोचिंग क्लास भी नहीं गए।

 के. सिवन के अनुसार, जब वह कॉलेज में थे तो खेतों में अपने पिता की मदद भी करते थे। इस कारण स्नातक में उनका दाखिला घर के पास के कॉलेज में ही करा दिया गया था। लेकिन जब उन्हें बीएससी में मैथ्स में 100 फीसदी अंक मिले, तो उन्होंने पढ़ाई पर पूरा ध्यान देने का मन बना लिया। 
लेकिन सिवन का सफर यहीं नहीं रुका। 1980 में उन्होंने मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (MIT) से एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की। इसके बाद इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंसेज (IISc) से इंजीनियरिंग में पीजी की पढ़ाई की। फिर 2006 में उन्होंने आईआईटी बॉम्बे से एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में पीएचडी की डिग्री प्राप्त की। 
साल 2018 में सिवन को इसरो का चेयरमैन नियुक्त किया गया। उनसे पहले इस पद पर ए. एस. किरण कुमार थे।


सिवन ने साल 1982 में इसरो ज्वाइन किया था। यहां उन्होंने लगभग हर रॉकेट कार्यक्रम में काम किया है। इसरो प्रमुख बनने से पहले वह रॉकेट बनाने वाले विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर (VSSC) के निदेशक भी थे।

सिवन ने साइक्रोजेनिक इंजन, पीएसएलवी, जीएसएलवी और रियूजेबल लॉन्च व्हीकल कार्यक्रमों में योगदान दिया है। इस कारण उन्हें इसरो का 'रॉकेट मैन' भी कहा जाता है।  15 फरवरी 2017 को भारत द्वारा एकसाथ 104 उपग्रहों को प्रक्षेपित किया गया था। सिवन ने इस मिशन में अहम भूमिका निभाई थी। यह इसरो का विश्व रिकॉर्ड भी है।  उन्हें इन पुरस्कारों से नवाजा गया है 1999 - श्री हरि ओम आश्रम प्रेरित डॉ. विक्रम साराभाई रिसर्च अवॉर्ड 2007 - इसरो मेरिट अवॉर्ड 2014 - सत्यभामा यूनिवर्सिटी, चेन्नई से डॉ. ऑफ साइंस की उपाधि।
रॉकेट विशेषज्ञ के सिवन को खाली समय में तमिल क्लासिकल गाने सुनना और गार्डनिंग करना पसंद है। उनकी पसंदीदा फिल्म 1969 में आई राजेश खन्ना की 'आराधना' है।

उनके जिंदगी की सबसे बड़ी असफलताओं में से एक चंद्रयान 2 के विक्रम लैंडर से संपर्क टूट जाना है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO - Indian Space Reseach Organisation) के कई वैज्ञानिकों के साथ-साथ उनके प्रमुख डॉ. के सिवन भी भावुक हो गए। खुद को संभालते-संभालते आखिरकार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने वह रो पड़े। उन्हें निराश देखकर प्रधानमंत्री ने उन्हें गले लगाकर ढांढस भी बंधाया। 

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मैं तो इंसानियत से मजबूर था तुम्हे बीच मे नही डुबोया" मगर तुमने मुझे क्यों काट लिया!

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