Popular Posts

Thursday, July 9, 2020

कानपुर में 8 पुलिस कर्मियों को मारने वाला विकास दुबे गिरफ्तार।

उत्तर प्रदेश के कानपुर में आठ पुलिसकर्मियों के मारने वाला हिस्ट्रीशीटर अपराधी विकास दुबे को उज्जैन के महाकाल मंदिर में दर्शन करते हुए गिरफ्तार कर लिया गया है। उसपे 60 से ज्यादा मुकदमें दर्ज हैं। उसका आपराधिक इतिहास रहा है। उसकी हर राजनीतिक दलों में कड़ी पैठ रही है। वह अपने किले जैसे घर में बैठकर बड़ी-बड़ी वारदातें करवा देता था। 

शातिर अपराधी विकास दुबे को पकड़ने गई पुलिस पर ताबड़तोड़ गोलियां चलाई गईं। इस घटना में 8 पुलिसकर्मी शहीद हो गए। सीओ बिल्हौर देवेंद्र मिश्र, एसओ शिवराजपुर महेश यादव समेत एक सब इंस्पेक्टर और 5 सिपाही मुठभेड़ में शहीद हुए। इस घटना ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया। अब तक पुलिस हुए हमलों में यह सबसे बड़ी घटना बताई जा रही है। विकास दुबे का आपराधिक इतिहास ही नहीं रहा बल्कि उनके खिलाफ कई गंभीर मामले दर्ज हैं। विकास दुबे की पैठ हर राजनीतिक दल पर होती थी। इसी वजह से अब तक भागता रहा। विकास दुबे कई राजनीतिक दलों में भी रहा है। बिठूर के शिवली थाना क्षेत्र के बिकरु गांव का रहने वाला है। उसने अपने घर को किले की तरह बना रखा है। यहां उसकी मर्जी के बिना घुस पाना बहुत ही मुश्किल है।
विकास दुबे इतना दबंग रहा है, कि उसे किसी कानून का डर नहीं है। 2001 में विकास ने थाने के अंदर घुसकर बीजेपी के दर्जा प्राप्त राज्यमंत्री संतोष शुक्ला की हत्या कर दी थी। संतोष शुक्ला हत्याकांड ने पूरे प्रदेश में हड़कंप मचा दिया था लेकिन पुलिस से लेकर कानून तक उसका कुछ नहीं बिगाड़ पाया।
अंततः गैंगस्टर विकास दुबे को उज्जैन के महाकाल मंदिर में दर्शन करते हुए गिरफ्तार कर लिया गया है। बता दें, बीते कई दिनों से फरार चल रहा था। जिसकी तलाश कई राज्यों में उत्तर प्रदेश की पुलिस कर रही थी।
अब विकास को जल्द ही उत्तर प्रदेश की पुलिस को सौंपा जाएगा। इसकी जानकारी खुद मध्य प्रदेश के मुख्य मंत्री शिवराज सिंह ने दी है। शिवराज ने कहा, 'मैं यूपी पुलिस के संपर्क में हूं, विकास को जल्द सौंपा जाएगा।
https://twitter.com/ChouhanShivraj/status/1281111929596059648?s=19

Wednesday, July 8, 2020

"तिरंगा लहराकर आऊंगा या तिरंगे में लिपटकर आऊंगा,लेकिन आऊंगा जरूर".विक्रमबत्रा जी को नमन।

कैप्टन विक्रम बत्रा (09 सितम्बर 1974 - 07 जुलाई 1999) अगर मैं युद्ध में मरता हूं तब भी तिरंगे में लिपटा आऊंगा और अगर जीतकर आता हूं, तब अपने ऊपर तिरंगा तपेटकर आऊंगा, देश सेवा का ऐसा मौका कम ही लोगों को मिल पाता है। पालमपुर निवासी जी.एल. बत्रा और कमलकांता बत्रा के घर 9 सितंबर 1974 को दो बेटियों के बाद दो जुड़वां बच्चों का जन्म हुआ। माता कमलकांता की श्रीरामचरितमानस में गहरी श्रद्धा थी तो उन्होंने दोनों का नाम लव और कुश रखा। लव यानी विक्रम और कुश यानी विशाल। पहले डीएवी स्कूल, फिर सेंट्रल स्कूल पालमपुर में दाखिल करवाया गया। सेना छावनी में स्कूल होने से सेना के अनुशासन को देख और पिता से देश प्रेम की कहानियां सुनने पर विक्रम में स्कूल के समय से ही देश प्रेम प्रबल हो उठा। स्कूल में विक्रम शिक्षा के क्षेत्र में ही अव्वल नहीं थे, बल्कि टेबल टेनिस में अव्वल दर्जे के खिलाड़ी होने के साथ उनमें सांस्कृतिक कार्यक्रमों में बढ़-चढ़कर भाग लेने का भी जज़्बा था।
जमा दो तक की पढ़ाई करने के बाद विक्रम चंडीगढ़ चले गए और डी ए वी कॉलेज चंडीगढ़ में विज्ञान विषय में स्नातक की पढ़ाई शुरू कर दी। इस दौरान वह एनसीसी के सर्वश्रेष्ठ कैडेट चुने गए और उन्होंने गणतंत्र दिवस की परेड में भी भाग लिया। विज्ञान विषय में स्नातक करने के बाद विक्रम का चयन सीडीएस के जरिए सेना में हो गया। जुलाई 1996 में उन्होंने भारतीय सैन्यअकादमी देहरादून में प्रवेश लिया। दिसंबर 1997 में प्रशिक्षण समाप्त होने पर उन्हें 6 दिसम्बर 1997 को जम्मू के सोपोर नामक स्थान पर सेना की 13 जम्मू-कश्मीर राइफल्स में लेफ्टिनेंट के पद पर नियुक्ति मिली।
उन्होंने 1999 में कमांडो ट्रेनिंग के साथ कई प्रशिक्षण भी लिए। पहली जून 1999 को उनकी टुकड़ी को कारगिल युद्ध में भेजा गया। हम्प व राकी नाब स्थानों को जीतने के बाद विक्रम को कैप्टन बना दिया गया। इसके बाद सेना ने चोटी 4875 को भी कब्ज़े में लेने का अभियान शुरू कर दिया और इसके लिए भी कैप्टन विक्रम और उनकी टुकड़ी को जिम्मेदारी दी गयी। उन्हें और उनकी टुकड़ी एक ऐसी संकरी चोटी से दुश्मन के सफ़ाए का कार्य सौंपा गया जिसके दोनों ओर खड़ी ढलान थी और जिसके एकमात्र रास्ते की शत्रु ने भारी संख्या में नाकाबंदी की हुई थी। कार्यवाई को शीग्र पूरा करने के लिए कैप्टन विक्रम बत्रा ने एक संर्कीण पठार के पास से शत्रु ठिकानों पर आक्रमण करने का निर्णय लिया। आक्रमण का नेतृत्व करते हुए आमने-सामने की भीषण गुत्थमगुत्था लड़ाई में अत्यन्त निकट से पांच शत्रु सैनिकों को मार गिराया। इस कार्यवाही के दौरान उन्हें गंभीर ज़ख्म लग गए। गंभीर ज़ख्म लग जाने के बावजूद वे रेंगते हुए शत्रु की ओर बड़े और ग्रेनेड फ़ेके जिससे उस स्थान पर शत्रु का सफ़ाया हो गया।
इस प्रकार कैप्टन विक्रम बत्रा ने शत्रु के सम्मुख अत्यन्त उतकृष्ट व्यक्तिगत वीरता तथा उच्चतम कोटि के नेतृत्व का प्रदर्शन करते हुए भारतीय सेना की सर्वोच्च परंपराओं के अनुरूप अपना सर्वोच्च बलिदान दिया। इस अदम्य साहस और पराक्रम के लिए कैप्टन विक्रम बत्रा को 15 अगस्त 1999 को भारत सरकार द्वारा मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया जो 7 जुलाई 1999 से प्रभावी हुआ।
(7 जुलाई को उनके पुण्यतिथि पे नमन)

Tuesday, July 7, 2020

39 वा जन्मदिन मना रहे महेंद्र सिंह धोनी को जन्मदिन की शुभकामनाएं।

महेंद्र सिंह धोनी का जन्म  07 जुलाई 1981 को बिहार के राची सहर में हुआ था। उनके पिता का नाम पान सिंह और माता का नाम देवकी है। धोनी के एक भाई नरेंद्र और एक बहन जयंती है। ऐसे तो धौनी का घर उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के लावली हैं। महेंद्र सिंह धोनी आज भले क्रिकेटर के रूप में जाने जाते हैं लेकिन उन्हें फुटबाल और बैडमिंटन खेलना बहुत पसंद था। फुटबॉल में वह गोल कीपिंग करते थे। फुटबॉल टीम के कोच ने उन्हें क्रिकेट खेलने के सलाह दी। धोनी छोटी उम्र में ही डिस्टिक और क्लब लेवल पर फुटबॉल खेलना स्टार्ट कर दिए थे। उनका फुटबॉल के गोलकीपिंग में अच्छा प्रदर्शन देख फुटबॉल के कोच ने उन्हें क्रिकेट खेलने को कहा। धोनी ने उससे पहले क्रिकेट नहीं खेले थे। क्रिकेट में धोनी ने विकेटकीपर से अपनी कैरियर की शुरुआत की। धोनी की विकेटकीपिंग काफी अच्छी रही। अपने विकेट कीपिंग योग्यता और जुझारूपन से कमांडो क्रिकेट क्लब के अस्थाई सदस्य बन गए। 1997 98 में वीनू  मनकद ट्रॉफी के लिए चुना गया। महेंद्र सिंह धोनी सचिन और एडम गिलक्रिस्ट गेम बहुत बड़े फैन है। 


महेंद्र सिंह धोनी विश्व क्रिकेट में एक अनूठा मुकाम हासिल किया है। उनकी सफलताओं को देखते हुये उन्हें पद्म भूषण, पद्म श्री और राजीव गाँधी खेल रत्न पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। माही के नाम से लोकप्रिय धोनी आईसीसी की तीनों विश्व प्रतियोगिताएं जीतने वाले इकलौते कप्तान है।

धोनी भारतीय और विश्व क्रिकेट दोनों के इतिहास में सर्वश्रेष्ठ कप्तानों में से एक हैं। वह सभी ICC स्पर्धाओं (वर्ल्ड T20 2007, ICC टेस्ट मेस 2009, विश्व कप 2011, और चैंपियंस ट्रॉफी 2013) जीतने वाले एकमात्र कप्तान हैं। उन्होंने 2010 और 2016 (T20I प्रारूप) में दो एशिया कप जीत के लिए 'मेन इन ब्लू' का नेतृत्व किया।महान क्रिकेटर को आखिरी बार पिछले साल जुलाई में न्यूजीलैंड के हाथों विश्व कप 2019 के सेमीफाइनल में हार के दौरान एक्शन में देखा गया था, जहां उन्होंने 72 गेंदों में 50 रन की तूफानी पारी खेली थी।

आज वह अपना 39 वां जन्मदिन मना रहे हैं, उनके जन्मदिन पर ढेर सारी शुभकामनाएं।

Monday, July 6, 2020

गलवान घाटी में भारत की हुई जीत चीन हुआ पीछे।

गलवान घाटी में भारत चीन के टकराव के बाद भारत चीन सीमा से आई एक अच्छी ख़बर। चीन के विदेश मंत्री वांग यी और भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार NSA अजीत डोभाल के बीच हुई, घंटे की वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिया बातचीत के बाद चीन की सेना 3 जगहों से पीछे हटने को मजबूर हो गई है। जो अब चीनी सेना 3 जगहों पर लगे कैंप गोला बारूद और गाड़ियों को पीछे हटाने को मजबूर है। इस बात की चीन का विदेश मंत्रालय द्वारा जारी चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता जाओ लीनजियान ने कहा है कि दोनों देशोंं के बीच हुई बातचीत में बनी सहमति को अमल में लाएंगे और सीमा पर पूर्व की भांति शांति कायम रहेगी। 
चीन के बयान के बाद चीन की सीमा पर तैनात टुकड़िया वापस लौटना शुरू कर दी है। अभी इसका भारती जवान के जांच के बाद पता चलेगा की चीन की सेना वापस गई है कि नहीं। चीन की सेना को वापस लौटना देखकर भारत की सेना को और भारत की जनता को खुश, होने की जरूरत नहीं है चीन अपने समान की तरह ही अपने बातों पर टिकता नहीं है। चीन घात लगाकर पीछे से वार करता आया है। जब तक यह तय ना हो जाए की चीन अपने निरधारित सीमा से पीछे नहीं हटा है तब तक भारत की सेना को चीन पे भरोसा नहीं करना चाहिए।
गौरतलब है कि लद्दाख सीमा पर हुई झड़प के बाद से ही डोभाल सक्रिय हैं और चीन की हर हरकत पर उनकी नजर भी है। बताया जाता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जो लद्दाख जाने का अचानक प्लान बना वह डोभाल की रणनीति का हिस्सा था। डोभाल के प्लान की वजह से ही किसी को भी इसकी भनक नहीं लगी थी। दूसरी तरफ चीनी घुसपैठ की कोशिश के बाद जिस तरह भारत ने आक्रमक तरीके से उसका जवाब दिया उसे भी डोभाल की रणनीति बताया जाता है। चीन पैट्रोलिंग प्वाइंट 14 (गलवन घाटी), पीपी -15, हॉट स्प्रिंग्स और फिंगर एरिया से चीन पीछे हटना सुरु कर दिया है। 
चीन का पीछे हटना भारतीय जवान के मनोबल को काफी बढ़ा देता है इससे स्पष्ट होता है कि भारत 1962 का नहीं रहा अब नया भारत है जो आंख में आंख डालकर बात कर सकता है और लड़ता है।
भारत सरकार द्वारा लिया गया फैसला चीनी ऐप्स कॉल को बंद कर उसे आर्थिक रूप से कमजोर करना और उसको पीछे हटने पर मजबूर करना भी उनमें से एक हैं।
चीन के पीछे हटने के पीछे भारत का अंतरराष्ट्रीय कूटनीति भी काफी कारगर हुई जिससे चीन पूरे देश में लज्जित हुआ और कोई भी देश उसकी मदद के लिए सामने नहीं आया उसका नया दोस्त रूस भी उसका मदद नहीं कर सका वहीं भारत का अमेरिका जैसे देश का पूरा सहयोग मिला।
चीन के पीछे हटने के पीछे सबसे महत्वपूर्ण वजह प्रधानमंत्री का अचानक लद्दाख दौरा जो सीधे चीन को सोचने पर  मजबूर किया की भारत अब 1962 जैसा नहीं रहा। अब कोई भी हरकत चीन के लिए अच्छा नहीं होगा। चीन मानसिक रूप से बीमार हो चुका है जो हमेशा विस्तार वाद का चाल चलता है जो अब संभव नहीं है। उसे पीछे हटना ही होगा।
चीन का पीछे हटना पूरे विश्व में भारत की सबसे बड़ी कूटनीतिक जीत है। यह जीत उन तमाम लोगों के लिए भी है जो नरेंद्र मोदी का लद्दाख दौरा को गलत बताने में अब तक लगे थे।


Sunday, July 5, 2020

पर्व गुरु पूर्णिमा क्यों मनाई जाती है, आइए जानते हैं इसका रहस्य।

जीवन में हम जो कुछ भी प्राप्त करते हैं कहीं न कहीं गुरु की कृपा का ही फल है। गुरु का मतलब शिक्षक से नहीं बल्कि गुरु माता-पिता, भाई, दोस्त किसी के रूप में हो सकते हैं। जिनका नाम सुनते ही हृदय में सम्मान का भाव जगता है। सम्मान प्रकट करने के लिए किसी दिन का नहीं बल्कि प्रत्येक दिन गुरु वंदनीय होते हैं। हालांकि, जीवन में भौतिक रूप से जीवन निर्माता के प्रति कृतज्ञता जाहिर करने का मौका नहीं मिलता है। ऐसे में गुरु पूर्णिमा वो खास दिन होता है जहां हम भौतिक एवं मन दोनों ही रूप से गुरु की वंदना, सम्मान करते हैं।
इस साल गुरु पूर्णिमा 5 जुलाई को है। इसे व्यास पूर्णिमा भी कहते हैं क्योंकि इस दिन वेद व्यास जी का जन्म हुआ था। गुरु पूर्णिमा वह दिन है जब पहले गुरु का जन्म हुआ था। हमारे देश में गुरुओं का स्थान सबसे ऊंचा है। एक गुरू ही अपने शिष्य को अंधकार से निकालकर और उसे सही मार्ग पर लाता है। गुरु के मार्गदर्शन के बिना शिष्य कभी सफल नहीं हो सकता। इसी वजह से अपने गुरुओं को सम्मान देने के लिए गुरू पूर्णिमा मनाया जाता है। 

अखंड मंडलाकारं व्याप्तं येन चराचरं, तत्पदंदर्शितं एनं तस्मै श्री गुरुवे नम:

अर्थात यह श्रृष्टि अखंड मंडलाकार है। बिंदु से लेकर सारी सृष्टि को चलाने वाली अनंत शक्ति का, जो परमेश्वर तत्व है, वहां तक सहज संबंध है।  इस संबंध को जिनके चरणों में बैठ कर समझने की अनुभूति पाने का प्रयास करते हैं, वही गुरु है। जैसे सूर्य के ताप से तपती भूमि को वर्षा से शीतलता और फसल पैदा करने की ताकत मिलती है, वैसे ही गुरु-चरणों में शिष्यों को ज्ञान, शान्ति, भक्ति और योग शक्ति प्राप्त करने की शक्ति मिलती है।

आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा कहते हैं। इस दिन सनातन धर्म में गुरु पूजा का विधान है। गुरु पूर्णिमा वर्षा ऋतु के आरंभ में आती है। इस दिन से चार महीने तक साधु-सन्त एक ही स्थान पर रहकर ज्ञान की गंगा बहाते हैं।अध्ययन के लिए अगले चार महीने उपयुक्त माने गए हैं। पिछले वर्षों के मुकाबले इस वर्ष गुरु पूर्णिमा का स्वरूप बहुत कुछ बदला हुआ है। कोरोना संक्रमण के कारण गुरु वंदना भी ऑनलाइन हो रही है। समाज के अलग-अलग क्षेत्रों में सफलता के शीर्ष पर बैठे लोग अपने-अपने तरीके से गुरु को याद कर रहे हैं।

भारतीय संस्कृति में गुरु का स्थान देवताओं से भी ऊपर माना गया है। संत कबीर अपने दोहे 
"गुरु गोविंद दोनों खड़े, काके लागू पाय। बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो बताय।।"
 इस दोहे के माध्यम से व्यक्ति के जीवन में गुरु के महत्व को दर्शाया गया है। संत कबीर कहते हैं गुरु व्यक्ति के जीवन से अंधकार को दूर कर परमात्मा से मिलाता है। ईश्वर की महिमा गुरु के माध्यम से ही जान पाते हैं। अत: गुरु का स्थान देवताओं से भी श्रेयकर है। गुरु पूर्णिमा के दिन विभिन्न सामाजिक व धार्मिक संगठनों की ओर से विशेष आयोजन कर गुरुओं के प्रति सम्मान प्रकट किया जाता है। कोरोना वायरस के कारण इस बार सभी जगहों पर सामूहिक कार्यक्रम को स्थगित कर अपने-अपने घरों में ही गुरु का पूजन करने को कहा जा रहा है। अधिकतर जगहों पर लोग ऑनलाइन गुरु पूजन कार्यक्रम में शामिल होंगे।

"इस गुुुुुुरू पूर्णिमा के अवसर पर हम उन सब गुरु को नमन करते हैं, जिन्होंने हमें अंधकार से प्रकाशमय की ओर अग्रसर किया !"

Saturday, July 4, 2020

हिंदुत्व और हिंदुस्तान के वास्तविक स्वरूप से विश्व को अवगत कराने वाले युग प्रवर्तक स्वामी विवेकानंद जी की पुण्यतिथि पर कोटि-कोटि नमन।

स्वामी विवेकानन्द(जन्म 12 जनवरी,1863 मृत्यु 4 जुलाई,1902) वेदांत के विख्यात और प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरु थे। उनका वास्तविक नाम नरेन्द्र नाथ दत्त था। उन्होंने अमेरिका स्थित शिकागो में सन् 1893 में आयोजित विश्व धर्म महासभा में भारत की ओर से सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व किया था भारत  का। आध्यात्मिकता से परिपूर्ण वेदान्त दर्शन   अमेरिका  और यूरोप के हर एक देश में स्वामी विवेकानन्द की वक्तृता के कारण ही पहुँचा। उन्होंने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की थी जो आज भी अपना काम कर रहा है। वे रामकृष्ण परमहंस के सुयोग्य शिष्य थे। उन्हें 2 मिनट का समय दिया गया था लेकिन उन्हें प्रमुख रूप से उनके भाषण की शुरुआत "मेरे अमरीकी भाइयो एवं बहनो" के साथ करने के लिये जाना जाता है। उनके संबोधन के इस प्रथम वाक्य ने सबका दिल जीत लिया था।

कोलकाता के एक कुलीन बंगाली कायस्थ परिवार  में जन्मे विवेकानंद आध्यात्मिकता की ओर झुके हुए थे। वे अपने गुरु रामकृष्ण देव से काफी प्रभावित थे जिनसे उन्होंने सीखा कि सारे जीवो मे स्वयं परमात्मा का ही अस्तित्व हैं; इसलिए मानव जाति अथेअथ जो मनुष्य दूसरे जरूरत मंदो मदद करता है या सेवा द्वारा परमात्मा की भी सेवा की जा सकती है। रामकृष्ण की मृत्यु के बाद विवेकानंद ने बड़े पैमाने पर भारतीय उपमहाद्वीप का दौरा किया और ब्रिटिश भारत में मौजूदा स्थितियों का प्रत्यक्ष ज्ञान हासिल किया। बाद में विश्व धर्म संसद 1893 में भारत का प्रतिनिधित्व करने, संयुक्त्त्त राज्य अमेरिका के लिए प्रस्थान किया। विवेकानंद ने संयुक्त राज्य अमेरिका, इंग्लैंड और यूरोप में हिंदू दर्शन के सिद्धांतों का प्रसार किया और कई सार्वजनिक और निजी व्याख्यानों का आयोजन किया। भारत में विवेकानंद को एक देशभक्त संन्यासी के रूप में माना जाता है और उनके जन्मदिन को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है। महान व्यक्तित्व के थे स्वामीजी।
 एक बार किसी शिष्य ने गुरुदेव की सेवा में घृणा और निष्क्रियता दिखाते हुए नाक-भौं सिकोड़ीं। यह देखकर विवेकानन्द को क्रोध आ गया। वे अपने उस गुरु भाई को सेवा का पाठ पढ़ाते और गुरुदेव की प्रत्येक वस्तु के प्रति प्रेम दर्शाते हुए उनके बिस्तर के पास रक्त, कफ आदि से भरी थूकदानी उठाकर फेंकते थे। गुरु के प्रति ऐसी अनन्य भक्ति और निष्ठा के प्रताप से ही वे अपने गुरु के शरीर और उनके दिव्यतम आदर्शों की उत्तम सेवा कर सके। गुरुदेव को समझ सके और स्वयं के अस्तित्व को गुरुदेव के स्वरूप में विलीन कर सके। और आगे चलकर समग्र विश्व में भारत के अमूल्य आध्यात्मिक भण्डार की महक फैला सके। ऐसी थी उनके इस महान व्यक्तित्व की नींव में गुरुभक्ति, गुरुसेवा और गुरु के प्रति अनन्य निष्ठा जिसका परिणाम सारे संसार ने देखा। स्वामी विवेकानन्द अपना जीवन अपने गुरुदेव रामकृष्ण परमहंस को समर्पित कर चुके थे। उनके गुरुदेव का शरीर अत्यन्त रुग्ण हो गया था। गुरुदेव के शरीर-त्याग के दिनों में अपने घर और कुटुम्ब की नाजुक हालत व स्वयं के भोजन की चिन्ता किये बिना वे गुरु की सेवा में सतत संलग्न रहे।
स्वामी विवेकानंद का दिमाग बाकी विद्यार्थियों की तुलना काफी तेज था।  वह मोटी मोटी किताबों को बहुत जल्दी पढ़ लेते थे, और उसे याद कर लेते थे ।

सम्मेलन में भाषण का कुछ अंश

मेरे अमरीकी भाइयो और बहनो!

आपने जिस सौहार्द और स्नेह के साथ हम लोगों का स्वागत किया हैं उसके प्रति आभार प्रकट करने के निमित्त खड़े होते समय मेरा हृदय अवर्णनीय हर्ष से पूर्ण हो रहा हैं। संसार में संन्यासियों की सबसे प्राचीन परम्परा की ओर से मैं आपको धन्यवाद देता हूँ; धर्मों की माता की ओर से धन्यवाद देता हूँ; और सभी सम्प्रदायों एवं मतों के कोटि कोटि हिन्दुओं की ओर से भी धन्यवाद देता हूँ।


🤔 बहुमुखी प्रतिभा के धनी स्वामीजी का शैक्षिक प्रदर्शन औसत था। उनको यूनिवर्सिटी एंट्रेंस लेवल पर 47 फीसदी, एफए में 46 फीसदी और बीए में 56 फीसदी अंक मिले थे।
🤔 विवेकानंद चाय के शौकीन थे। उन दिनों जब हिंदू पंडित चाय के विरोधी थे, उन्होंने अपने मठ में चाय को प्रवेश दिया। एक बार बेलूर मठ में टैक्स बढ़ा दिया गया था। कारण बताया गया था कि यह एक प्राइवेट गार्डन हाउस है। बाद में ब्रिटिश मजिस्ट्रेट की जांच के बाद टैक्स हटा दिए गए।

🤔 एक बार विवेकानंद ने महान स्वतंत्रता सेनानी बाल गंगाधर तिलक को बेलूर मठ में चाय बनाने के लिए मनाया। गंगाधर तिलक अपने साथ जायफल, जावित्री, इलायची, लॉन्ग और केसर लाए और सभी के लिए मुगलई चाय बनाई।

🤔 उनके मठ में किसी महिला, उनकी मां तक, को जाने की अनुमति नहीं थी। एक बार जब उनको काफी बुखार था तो उनके शिष्य उनकी मां को बुला लाए। उनको देखकर विवेकानंद चिल्लाए, 'तुम लोगों ने एक महिला को अंदर आने की अनुमति कैसे दी? मैं ही हूं जिसने यह नियम बनाया और मेरे लिए ही इस नियम को तोड़ा जा रहा है।

🤔 बीए डिग्री होने के बावजूद नरेंद्रनाथ (विवेकानंद का असल नाम) को रोजगार की तलाश में घर-घर जाना पड़ता था। वह जोर से कहते, 'मैं बेरोजगार हूं।' नौकरी की तलाश में जब थक गए तो उनका भगवान से भरोसा उठ गया और लोगों से कहने लगते कि भगवान का अस्तित्व नहीं है।

🤔 पिता की मृत्यु के बाद उनके परिवार पर संकट आ गया था। गरीबी के उन दिनों में सुबह विवेकानंद अपनी माता से कहते थे कि उनको कहीं से दिन के खाने के लिए निमंत्रण मिला है और घर से बाहर चले जाते थे। असल में उनको कोई निमंत्रण नहीं मिलता था बल्कि वह ऐसा इसिलए करते थे ताकि घर के अन्य लोगों को खाने का ज्यादा हिस्सा मिल सके। वह लिखते हैं, 'कभी मेरे खाने के लिए बहुत कम बचता था और कभी तो कुछ भी नहीं बचता था। बीए डिग्री होने के बावजूद नरेंद्रनाथ (विवेकानंद का असल नाम) को रोजगार की तलाश में घर-घर जाना पड़ता था। वह जोर से कहते, 'मैं बेरोजगार हूं।' नौकरी की तलाश में जब थक गए तो उनका भगवान से भरोसा उठ गया और लोगों से कहने लगते कि भगवान का अस्तित्व नहीं है।
हिन्दू, हिंदुत्व और हिंदुस्तान के वास्तविक स्वरूप से विश्व को अवगत कराने वाले युग प्रवर्तक एवं युवाओं के प्रेरणास्रोत स्वामी विवेकानंद जी की पुण्यतिथि पर उनको कोटि-कोटि नमन।

Friday, July 3, 2020

प्रधानमंत्री के लेह दौरे के बाद आया कांग्रेस की प्रतिक्रिया।

भारत-चीन सीमा विवाद के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शुक्रवार को बिना किसी जानकारी के लेह पहुंचे। इस दौरे पर उनके साथ CDS बिपिन रावत भी मौजूद रहे। लेह पहुंचते ही जवानों ने PM का जोश के साथ स्वागत किया। प्रसार भारती ने एक वीडियो साझा किया। 
जिसमें पीएम मोदी सेना के जवानों के साथ चलते नजर आ रहे हैं और पीछे से वीर जवान 'भारत माता की जय' और 'वंदे मातरम' के नारे लगा रहे हैं। प्रधानमंत्री लेह में 24 मिनट का भाषण दिया। जिसमें चीन का बिना नाम लिए सब कुछ कह दिया। अपनी लद्दाख यात्रा के दौरान, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने लद्दाख में युद्ध स्मारक का भी दौरा किया जहां उन्होंने 16 बिहार के 20 शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित की, जो गालवान घाटी में भारत की संप्रभुता की रक्षा करते हुए मारे गए।  इससे पहले, पीएम ने लद्दाख में निमू चौकी का औचक दौरा किया जहां भारतीय सेना और आईटीबीपी के जवान तैनात हैं।  पीएम मोदी ने क्षेत्र में तैयारी का निरीक्षण किया और एक भाषण दिया जिसमें उन्होंने भारतीय सशस्त्र बलों की वीरता की प्रशंसा की।
जैसा उम्मीद था, ठीक वैसा ही हुआ प्रधानमंत्री दौरा के बाद कांग्रेस पार्टी का प्रतिक्रिया आ चुका है जिसको देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि कांग्रेस पार्टी भारत की जनता के साथ क्या देखना चाहती है क्यों उकसा रही है चीन को और क्यों आलोचना कर रही है प्रधानमंत्री मोदी की कांग्रेस का नियत साफ है भारत को लेकर। आखिर चीन कि कांग्रेस पार्टी क्यों कर रही हैं तरफदारी। कांग्रेस पार्टी के प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने ट्विट कर प्रधानमंत्री पे निसनासाधा हैं। जो निम्न है।

28 मई, 2020 - 
“मन की बात” में चीन का नाम नहीं।

30 मई, 2020 -
“राष्ट्र के नाम” संदेश में चीन का नाम नहीं।

3 जुलाई, 2020 -
“सैनिकों से बात” में चीन का नाम नहीं।

मज़बूत भारत के प्रधानमंत्री इतने कमजोर क्यों?
चीन का नाम तक लेने से गुरेज़ क्यों?
चीन से आँख में आँख डाल कब बात होगी?

https://twitter.com/rssurjewala/status/1279011428486139904?s=19

रणदीप सुरजेवाला के ट्वीट से अंदाजा लगाया जा सकता है कि कांग्रेस पार्टी भारत की जनता के साथ क्या देखना चाहती है। कांग्रेस पार्टी के प्रवक्ता को इसबात की अंदाजा बिल्कुल भी नहीं है कि भारत के सामने कोई कमजोर देश नहीं है। जिससे आसानी से युद्ध जीता जा सकता है। भारत के सामने चीन है। जिसके पास हर एक आधुनिक हथियार और आधुनिक तकनीक है जिससे युद्ध जितना बहुत आसान नहीं है। इसके बावजूद कांग्रेस पार्टी ना जाने ऎसॉ सवाल क्यों पूछती हैं।
ठीक है प्रधानमंत्री चीन का नाम नहीं लिया लेकिन चीन के दरवाजे से ललकारा तो है। की अब विस्तारवाद का युग नहीं रहा अब विकासवाद का युग है। विस्तारवाद की नीति किसकी है कोई बताएगा हमें। चीन एक ऐसा देश है जो अपने विस्तारवाद के नीतियों पे काम कर रहा है। चीन से सटा हर देश में ड्रेगन अपनी सीमा बढ़ाने के लिए जाना जाता है। ये ठीक तरह से चीन को चेतावनी है कि हमें बात करना भी आता है और जबाब देना भी आता है।

मैं तो इंसानियत से मजबूर था तुम्हे बीच मे नही डुबोया" मगर तुमने मुझे क्यों काट लिया!

नदी में बाढ़ आती है छोटे से टापू में पानी भर जाता है वहां रहने वाला सीधा साधा1चूहा कछुवे  से कहता है मित्र  "क्या तुम मुझे नदी पार करा ...