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Friday, July 10, 2020

इस सावन ऎसे होगी बाबा अमरनाथ और वैष्णो देवी की यात्रा।

हर साल कि तरह इस साल धार्मिक स्थानों के दर्शन करना उतना आसान नहीं है। इस साल धार्मिक स्थानों पर जाने के लिए बहुत से सावधानियां बरतनी होगी।कोरोना महामारी (COVID-19)के चलते वैसे तो सभी धार्मिक आयोजनों पर रोक लगी हुई है, लेकिन अमरनाथ यात्रा को मंजूरी दी जा रही है। सरकार बहुत कम संख्या में श्रृद्धालुओं को बाबा अमरनाथ (Baba Amarnath) के दर्शन को मंजूरी दे रही है. अभी इस बारे में मंथन चल रहा है. अमरनाथ यात्रा को लेकर अंतिम निर्णय अगले सप्ताह लिया जा रहा है, की कितने श्रद्धालु को एक बार में दर्शन करने दी जा रही है


जम्मू-कश्मीर में स्थित अमरनाथ गुफा मंदिर और वैष्णोदेवी मंदिर में श्रद्धालुओं को दर्शन देने की अनुमति के बारे में एक हाई लेवल कमेटी में विचार-विमर्श किया गया। इस कमेटी में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री जी किशन रेड्डी, प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्यमंत्री जितेंद्र सिंह समेत गृह मंत्रालय और जम्मू कश्मीर प्रशासन के आला अधिकारियों ने भाग लिया. चर्चा है कि अमरनाथ यात्रा 21 जुलाई को शुरू हो सकती है। यात्रा को लेकर अंतिम फैसला लिया जाना बाकी है।

बैठक में इस बात पर चर्चा की गई कि इस बार अमरनाथ यात्रा में कोविड-19 के हालात की वजह से एक दिन में 500 से अधिक श्रद्धालुओं को जाने की इजाजत नहीं होगी। पहलगाम मार्ग पर बर्फ होने की वजह से यह रास्ता अभी तक साफ नहीं हो सका है। इसलिए इस साल केवल बालटाल मार्ग से यात्रा हो सकती है।वैष्णोदेवी मंदिर में श्रद्धालुओं के जाने पर 31 जुलाई तक रोक लगाई हुई है। बैठक में इस बात पर चर्चा हुई कि वैष्णोदेवी मंदिर को पहले लोकल लोगों के लिए खोला जाएगा। उसके बाद हालात की समीक्षा की जाएगी फिर दूसरे राज्यों के लोगों को मंदिर जाने की अनुमति दी जाएगी।


Thursday, July 9, 2020

जिसके माथे पर तिलक ना दिखे, उसका सर धड़ से अलग कर दो, पुष्यमित्र शुंग को नमन।

आज से 2100 साल पहले की है। एक किसान ब्राह्मण के घर एक पुत्र ने जन्म लिया, नाम रखा गया पुष्यमित्र। पूरा नाम पुष्यमित्र शुंग। और वो बना एक महान हिन्दू सम्राट जिसने भारत को बुद्ध देश बनने से बचाया। अगर ऐसा कोई राजा कम्बोडिया, मलेशिया या इंडोनेशिया में जन्म लेता तो आज भी यह देश हिन्दू होते। 
जब सिकन्दर ब्राह्मण राजा पोरस से मार खाकर अपना विश्व विजय का सपना तोड़ कर उत्तर भारत से शर्मिंदा होकर मगध की ओर गया था उसके साथ आये बहुत से यवन वहां बस गए। अशोक सम्राट के बुद्ध धर्म अपना लेने के बाद उनके वंशजों ने भारत में बुद्ध धर्म लागू करवा दिया। ब्राह्मणों के द्वारा इस बात का सबसे अधिक विरोध होने पर उनका सबसे अधिक कत्लेआम हुआ। हज़ारों मन्दिर गिरा दिए गए। इसी दौरान पुष्यमित्र के माता पिता को धर्म परिवर्तन से मना करने के कारण उनके पुत्र की आँखों के सामने काट दिया गया। बालक चिल्लाता रहा मेरे माता पिता को छोड़ दो। पर किसी ने नही सुनी। माँ बाप को मरा देखकर पुष्यमित्र की आँखों में रक्त उतर आया। उसे गाँव वालों की संवेदना से नफरत हो गयी। उसने कसम खाई की वो इसका बदला बौद्धों से जरूर लेगा और जंगल की तरफ भाग गया।
एक दिन मौर्य नरेश बृहद्रथ जंगल में घूमने को निकला। अचानक वहां उसके सामने शेर आ गया। शेर सम्राट की तरफ झपटा। शेर सम्राट तक पहुंचने ही वाला था की अचानक एक लम्बा चौड़ा बलशाली भीमसेन जैसा बलवान युवा शेर के सामने आ गया। उसने अपनी मजबूत भुजाओं में उस मौत को जकड़ लिया। शेर को बीच में से फाड़ दिया और सम्राट को कहा की अब आप सुरक्षित हैं। अशोक के बाद मगध साम्राज्य कायर हो चुका था। यवन लगातार मगध पर आक्रमण कर रहे थे। सम्राट ने ऐसा बहादुर जीवन में ना देखा था। सम्राट ने पूछा!
” कौन हो तुम”?
जवाब आया ” ब्राह्मण हूँ महाराज”। 
सम्राट ने कहा “सेनापति बनोगे”!

पुष्यमित्र ने आकाश की तरफ देखा, माथे पर रक्त तिलक करते हुए बोला “मातृभूमि को जीवन समर्पित है”। उसी वक्त सम्राट ने उसे मगध का उपसेनापति घोषित कर दिया। जल्दी ही अपने शौर्य और बहादुरी के बल पर वो सेनापति बन गया। शांति का पाठ अधिक पढ़ने के कारण मगध साम्राज्य कायर ही हो चूका था। पुष्यमित्र के अंदर की ज्वाला अभी भी जल रही थी। वो रक्त से स्नान करने और तलवार से बात करने में यकीन रखता था। पुष्यमित्र एक निष्ठावान हिन्दू था और भारत को फिर से हिन्दू देश बनाना उसका स्वपन था।
आखिर वो दिन भी आ गया। यवनों की लाखों की फ़ौज ने मगध पर आक्रमण कर दिया। पुष्यमित्र समझ गया की अब मगध विदेशी शासकों का गुलाम बनने जा रहा है। बौद्ध राजा युद्ध के पक्ष में नही था। पर पुष्यमित्र ने बिना सम्राट की आज्ञा लिए सेना को जंग के लिए तैयारी करने का आदेश दिया। उसने कहा की इससे पहले दुश्मन के पाँव हमारी मातृभूमि पर पड़ें हम उसका शीश उड़ा देंगे। यह नीति तत्कालीन मौर्य साम्राज्य के धार्मिक विचारों के खिलाफ थी। सम्राट पुष्यमित्र के पास गया। गुस्से से बोला ” यह किसके आदेश से सेना को तैयार कर रहे हो”। पुष्यमित्र का पारा चढ़ गया। उसका हाथ उसके तलवार की मुठ पर था। तलवार निकालते ही बिजली की गति से सम्राट बृहद्रथ का सर धड़ से अलग कर दिया और बोला ” 
"ब्राह्मण किसी की आज्ञा नही लेता”।
हज़ारों की सेना सब देख रही थी। पुष्यमित्र ने लाल आँखों से सम्राट के रक्त से तिलक किया और सेना की तरफ देखा और बोला “ना बृहद्रथ महत्वपूर्ण था, ना पुष्यमित्र, महत्वपूर्ण है तो मगध, महत्वपूर्ण है तो मातृभूमि, क्या तुम रक्त बहाने को तैयार हो?
उसकी शेर सी गरजती आवाज़ से सेना जोश में आ गयी। सेनानायक आगे बढ़ कर बोला “हाँ सम्राट पुष्यमित्र । हम तैयार हैं”। पुष्यमित्र ने कहा” आज मैं सेनापति ही हूँ।चलो काट दो यवनों को। जो यवन मगध पर अपनी पताका फहराने का सपना पाले थे वो युद्ध में गाजर मूली की तरह काट दिए गए। एक सेना जो कल तक दबी रहती थी आज युद्ध में जय महाकाल के नारों से दुश्मन को थर्रा रही है। मगध तो दूर यवनों ने अपना राज्य भी खो दिया। पुष्यमित्र ने हर यवन को कह दिया की अब तुम्हे भारत भूमि से वफादारी करनी होगी नही तो काट दिए जाओगे। इसके बाद पुष्यमित्र का राज्यभिषेक हुआ। उसने सम्राट बनने के बाद घोषणा की अब कोई मगध में बुद्ध धर्म को नही मानेगा। हिन्दू ही राज धर्म होगा। उसने साथ ही कहा,
“जिसके माथे पर तिलक ना दिखा वो सर धड़ से अलग कर दिया जायेगा”। 
उसके बाद पुष्यमित्र ने वो किया जिससे आज भारत कम्बोडिया नही है। उसने लाखों बौद्धों को मरवा दिया। बुद्ध मन्दिर जो हिन्दू मन्दिर गिरा कर बनाये गए थे उन्हें ध्वस्त कर दिया। बुद्ध मठों को तबाह कर दिया। चाणक्य काल की वापसी की घोषणा हुई और तक्षिला विश्विद्यालय का सनातन शौर्य फिर से बहाल हुआ। शुंग वंशवली ने कई सदियों तक भारत पर हुकूमत की पुष्यमित्र ने उनका साम्राज्य पंजाब तक फैला लिया।
इनके पुत्र सम्राट अग्निमित्र शुंग ने अपना साम्राज्य तिब्बत तक फैला लिया और तिब्बत भारत का अंग बन गया। वो बौद्धों को भगाता चीन तक ले गया। वहां चीन के सम्राट ने अपनी बेटी की शादी अग्निमित्र से करके सन्धि की। उनके वंशज आज भी चीन में “शुंग” उपनाम ही लिखते हैं।
पंजाब- अफ़ग़ानिस्तान-सिंध की शाही ब्राह्मण वंशवली के बाद शुंग शायद सबसे बेहतरीन ब्राह्मण साम्राज्य था। शायद पेशवा से भी महान।

हमें अपने इतिहास के राजाआे के बारे में पढ़ना और लिखना बहुत पसंद है, आपको भी पसंद हो तो लाइक और शेयर करें कमेंट करना ना भूलें।  

कानपुर में 8 पुलिस कर्मियों को मारने वाला विकास दुबे गिरफ्तार।

उत्तर प्रदेश के कानपुर में आठ पुलिसकर्मियों के मारने वाला हिस्ट्रीशीटर अपराधी विकास दुबे को उज्जैन के महाकाल मंदिर में दर्शन करते हुए गिरफ्तार कर लिया गया है। उसपे 60 से ज्यादा मुकदमें दर्ज हैं। उसका आपराधिक इतिहास रहा है। उसकी हर राजनीतिक दलों में कड़ी पैठ रही है। वह अपने किले जैसे घर में बैठकर बड़ी-बड़ी वारदातें करवा देता था। 

शातिर अपराधी विकास दुबे को पकड़ने गई पुलिस पर ताबड़तोड़ गोलियां चलाई गईं। इस घटना में 8 पुलिसकर्मी शहीद हो गए। सीओ बिल्हौर देवेंद्र मिश्र, एसओ शिवराजपुर महेश यादव समेत एक सब इंस्पेक्टर और 5 सिपाही मुठभेड़ में शहीद हुए। इस घटना ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया। अब तक पुलिस हुए हमलों में यह सबसे बड़ी घटना बताई जा रही है। विकास दुबे का आपराधिक इतिहास ही नहीं रहा बल्कि उनके खिलाफ कई गंभीर मामले दर्ज हैं। विकास दुबे की पैठ हर राजनीतिक दल पर होती थी। इसी वजह से अब तक भागता रहा। विकास दुबे कई राजनीतिक दलों में भी रहा है। बिठूर के शिवली थाना क्षेत्र के बिकरु गांव का रहने वाला है। उसने अपने घर को किले की तरह बना रखा है। यहां उसकी मर्जी के बिना घुस पाना बहुत ही मुश्किल है।
विकास दुबे इतना दबंग रहा है, कि उसे किसी कानून का डर नहीं है। 2001 में विकास ने थाने के अंदर घुसकर बीजेपी के दर्जा प्राप्त राज्यमंत्री संतोष शुक्ला की हत्या कर दी थी। संतोष शुक्ला हत्याकांड ने पूरे प्रदेश में हड़कंप मचा दिया था लेकिन पुलिस से लेकर कानून तक उसका कुछ नहीं बिगाड़ पाया।
अंततः गैंगस्टर विकास दुबे को उज्जैन के महाकाल मंदिर में दर्शन करते हुए गिरफ्तार कर लिया गया है। बता दें, बीते कई दिनों से फरार चल रहा था। जिसकी तलाश कई राज्यों में उत्तर प्रदेश की पुलिस कर रही थी।
अब विकास को जल्द ही उत्तर प्रदेश की पुलिस को सौंपा जाएगा। इसकी जानकारी खुद मध्य प्रदेश के मुख्य मंत्री शिवराज सिंह ने दी है। शिवराज ने कहा, 'मैं यूपी पुलिस के संपर्क में हूं, विकास को जल्द सौंपा जाएगा।
https://twitter.com/ChouhanShivraj/status/1281111929596059648?s=19

Wednesday, July 8, 2020

"तिरंगा लहराकर आऊंगा या तिरंगे में लिपटकर आऊंगा,लेकिन आऊंगा जरूर".विक्रमबत्रा जी को नमन।

कैप्टन विक्रम बत्रा (09 सितम्बर 1974 - 07 जुलाई 1999) अगर मैं युद्ध में मरता हूं तब भी तिरंगे में लिपटा आऊंगा और अगर जीतकर आता हूं, तब अपने ऊपर तिरंगा तपेटकर आऊंगा, देश सेवा का ऐसा मौका कम ही लोगों को मिल पाता है। पालमपुर निवासी जी.एल. बत्रा और कमलकांता बत्रा के घर 9 सितंबर 1974 को दो बेटियों के बाद दो जुड़वां बच्चों का जन्म हुआ। माता कमलकांता की श्रीरामचरितमानस में गहरी श्रद्धा थी तो उन्होंने दोनों का नाम लव और कुश रखा। लव यानी विक्रम और कुश यानी विशाल। पहले डीएवी स्कूल, फिर सेंट्रल स्कूल पालमपुर में दाखिल करवाया गया। सेना छावनी में स्कूल होने से सेना के अनुशासन को देख और पिता से देश प्रेम की कहानियां सुनने पर विक्रम में स्कूल के समय से ही देश प्रेम प्रबल हो उठा। स्कूल में विक्रम शिक्षा के क्षेत्र में ही अव्वल नहीं थे, बल्कि टेबल टेनिस में अव्वल दर्जे के खिलाड़ी होने के साथ उनमें सांस्कृतिक कार्यक्रमों में बढ़-चढ़कर भाग लेने का भी जज़्बा था।
जमा दो तक की पढ़ाई करने के बाद विक्रम चंडीगढ़ चले गए और डी ए वी कॉलेज चंडीगढ़ में विज्ञान विषय में स्नातक की पढ़ाई शुरू कर दी। इस दौरान वह एनसीसी के सर्वश्रेष्ठ कैडेट चुने गए और उन्होंने गणतंत्र दिवस की परेड में भी भाग लिया। विज्ञान विषय में स्नातक करने के बाद विक्रम का चयन सीडीएस के जरिए सेना में हो गया। जुलाई 1996 में उन्होंने भारतीय सैन्यअकादमी देहरादून में प्रवेश लिया। दिसंबर 1997 में प्रशिक्षण समाप्त होने पर उन्हें 6 दिसम्बर 1997 को जम्मू के सोपोर नामक स्थान पर सेना की 13 जम्मू-कश्मीर राइफल्स में लेफ्टिनेंट के पद पर नियुक्ति मिली।
उन्होंने 1999 में कमांडो ट्रेनिंग के साथ कई प्रशिक्षण भी लिए। पहली जून 1999 को उनकी टुकड़ी को कारगिल युद्ध में भेजा गया। हम्प व राकी नाब स्थानों को जीतने के बाद विक्रम को कैप्टन बना दिया गया। इसके बाद सेना ने चोटी 4875 को भी कब्ज़े में लेने का अभियान शुरू कर दिया और इसके लिए भी कैप्टन विक्रम और उनकी टुकड़ी को जिम्मेदारी दी गयी। उन्हें और उनकी टुकड़ी एक ऐसी संकरी चोटी से दुश्मन के सफ़ाए का कार्य सौंपा गया जिसके दोनों ओर खड़ी ढलान थी और जिसके एकमात्र रास्ते की शत्रु ने भारी संख्या में नाकाबंदी की हुई थी। कार्यवाई को शीग्र पूरा करने के लिए कैप्टन विक्रम बत्रा ने एक संर्कीण पठार के पास से शत्रु ठिकानों पर आक्रमण करने का निर्णय लिया। आक्रमण का नेतृत्व करते हुए आमने-सामने की भीषण गुत्थमगुत्था लड़ाई में अत्यन्त निकट से पांच शत्रु सैनिकों को मार गिराया। इस कार्यवाही के दौरान उन्हें गंभीर ज़ख्म लग गए। गंभीर ज़ख्म लग जाने के बावजूद वे रेंगते हुए शत्रु की ओर बड़े और ग्रेनेड फ़ेके जिससे उस स्थान पर शत्रु का सफ़ाया हो गया।
इस प्रकार कैप्टन विक्रम बत्रा ने शत्रु के सम्मुख अत्यन्त उतकृष्ट व्यक्तिगत वीरता तथा उच्चतम कोटि के नेतृत्व का प्रदर्शन करते हुए भारतीय सेना की सर्वोच्च परंपराओं के अनुरूप अपना सर्वोच्च बलिदान दिया। इस अदम्य साहस और पराक्रम के लिए कैप्टन विक्रम बत्रा को 15 अगस्त 1999 को भारत सरकार द्वारा मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया जो 7 जुलाई 1999 से प्रभावी हुआ।
(7 जुलाई को उनके पुण्यतिथि पे नमन)

Tuesday, July 7, 2020

39 वा जन्मदिन मना रहे महेंद्र सिंह धोनी को जन्मदिन की शुभकामनाएं।

महेंद्र सिंह धोनी का जन्म  07 जुलाई 1981 को बिहार के राची सहर में हुआ था। उनके पिता का नाम पान सिंह और माता का नाम देवकी है। धोनी के एक भाई नरेंद्र और एक बहन जयंती है। ऐसे तो धौनी का घर उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के लावली हैं। महेंद्र सिंह धोनी आज भले क्रिकेटर के रूप में जाने जाते हैं लेकिन उन्हें फुटबाल और बैडमिंटन खेलना बहुत पसंद था। फुटबॉल में वह गोल कीपिंग करते थे। फुटबॉल टीम के कोच ने उन्हें क्रिकेट खेलने के सलाह दी। धोनी छोटी उम्र में ही डिस्टिक और क्लब लेवल पर फुटबॉल खेलना स्टार्ट कर दिए थे। उनका फुटबॉल के गोलकीपिंग में अच्छा प्रदर्शन देख फुटबॉल के कोच ने उन्हें क्रिकेट खेलने को कहा। धोनी ने उससे पहले क्रिकेट नहीं खेले थे। क्रिकेट में धोनी ने विकेटकीपर से अपनी कैरियर की शुरुआत की। धोनी की विकेटकीपिंग काफी अच्छी रही। अपने विकेट कीपिंग योग्यता और जुझारूपन से कमांडो क्रिकेट क्लब के अस्थाई सदस्य बन गए। 1997 98 में वीनू  मनकद ट्रॉफी के लिए चुना गया। महेंद्र सिंह धोनी सचिन और एडम गिलक्रिस्ट गेम बहुत बड़े फैन है। 


महेंद्र सिंह धोनी विश्व क्रिकेट में एक अनूठा मुकाम हासिल किया है। उनकी सफलताओं को देखते हुये उन्हें पद्म भूषण, पद्म श्री और राजीव गाँधी खेल रत्न पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। माही के नाम से लोकप्रिय धोनी आईसीसी की तीनों विश्व प्रतियोगिताएं जीतने वाले इकलौते कप्तान है।

धोनी भारतीय और विश्व क्रिकेट दोनों के इतिहास में सर्वश्रेष्ठ कप्तानों में से एक हैं। वह सभी ICC स्पर्धाओं (वर्ल्ड T20 2007, ICC टेस्ट मेस 2009, विश्व कप 2011, और चैंपियंस ट्रॉफी 2013) जीतने वाले एकमात्र कप्तान हैं। उन्होंने 2010 और 2016 (T20I प्रारूप) में दो एशिया कप जीत के लिए 'मेन इन ब्लू' का नेतृत्व किया।महान क्रिकेटर को आखिरी बार पिछले साल जुलाई में न्यूजीलैंड के हाथों विश्व कप 2019 के सेमीफाइनल में हार के दौरान एक्शन में देखा गया था, जहां उन्होंने 72 गेंदों में 50 रन की तूफानी पारी खेली थी।

आज वह अपना 39 वां जन्मदिन मना रहे हैं, उनके जन्मदिन पर ढेर सारी शुभकामनाएं।

Monday, July 6, 2020

गलवान घाटी में भारत की हुई जीत चीन हुआ पीछे।

गलवान घाटी में भारत चीन के टकराव के बाद भारत चीन सीमा से आई एक अच्छी ख़बर। चीन के विदेश मंत्री वांग यी और भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार NSA अजीत डोभाल के बीच हुई, घंटे की वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिया बातचीत के बाद चीन की सेना 3 जगहों से पीछे हटने को मजबूर हो गई है। जो अब चीनी सेना 3 जगहों पर लगे कैंप गोला बारूद और गाड़ियों को पीछे हटाने को मजबूर है। इस बात की चीन का विदेश मंत्रालय द्वारा जारी चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता जाओ लीनजियान ने कहा है कि दोनों देशोंं के बीच हुई बातचीत में बनी सहमति को अमल में लाएंगे और सीमा पर पूर्व की भांति शांति कायम रहेगी। 
चीन के बयान के बाद चीन की सीमा पर तैनात टुकड़िया वापस लौटना शुरू कर दी है। अभी इसका भारती जवान के जांच के बाद पता चलेगा की चीन की सेना वापस गई है कि नहीं। चीन की सेना को वापस लौटना देखकर भारत की सेना को और भारत की जनता को खुश, होने की जरूरत नहीं है चीन अपने समान की तरह ही अपने बातों पर टिकता नहीं है। चीन घात लगाकर पीछे से वार करता आया है। जब तक यह तय ना हो जाए की चीन अपने निरधारित सीमा से पीछे नहीं हटा है तब तक भारत की सेना को चीन पे भरोसा नहीं करना चाहिए।
गौरतलब है कि लद्दाख सीमा पर हुई झड़प के बाद से ही डोभाल सक्रिय हैं और चीन की हर हरकत पर उनकी नजर भी है। बताया जाता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जो लद्दाख जाने का अचानक प्लान बना वह डोभाल की रणनीति का हिस्सा था। डोभाल के प्लान की वजह से ही किसी को भी इसकी भनक नहीं लगी थी। दूसरी तरफ चीनी घुसपैठ की कोशिश के बाद जिस तरह भारत ने आक्रमक तरीके से उसका जवाब दिया उसे भी डोभाल की रणनीति बताया जाता है। चीन पैट्रोलिंग प्वाइंट 14 (गलवन घाटी), पीपी -15, हॉट स्प्रिंग्स और फिंगर एरिया से चीन पीछे हटना सुरु कर दिया है। 
चीन का पीछे हटना भारतीय जवान के मनोबल को काफी बढ़ा देता है इससे स्पष्ट होता है कि भारत 1962 का नहीं रहा अब नया भारत है जो आंख में आंख डालकर बात कर सकता है और लड़ता है।
भारत सरकार द्वारा लिया गया फैसला चीनी ऐप्स कॉल को बंद कर उसे आर्थिक रूप से कमजोर करना और उसको पीछे हटने पर मजबूर करना भी उनमें से एक हैं।
चीन के पीछे हटने के पीछे भारत का अंतरराष्ट्रीय कूटनीति भी काफी कारगर हुई जिससे चीन पूरे देश में लज्जित हुआ और कोई भी देश उसकी मदद के लिए सामने नहीं आया उसका नया दोस्त रूस भी उसका मदद नहीं कर सका वहीं भारत का अमेरिका जैसे देश का पूरा सहयोग मिला।
चीन के पीछे हटने के पीछे सबसे महत्वपूर्ण वजह प्रधानमंत्री का अचानक लद्दाख दौरा जो सीधे चीन को सोचने पर  मजबूर किया की भारत अब 1962 जैसा नहीं रहा। अब कोई भी हरकत चीन के लिए अच्छा नहीं होगा। चीन मानसिक रूप से बीमार हो चुका है जो हमेशा विस्तार वाद का चाल चलता है जो अब संभव नहीं है। उसे पीछे हटना ही होगा।
चीन का पीछे हटना पूरे विश्व में भारत की सबसे बड़ी कूटनीतिक जीत है। यह जीत उन तमाम लोगों के लिए भी है जो नरेंद्र मोदी का लद्दाख दौरा को गलत बताने में अब तक लगे थे।


Sunday, July 5, 2020

पर्व गुरु पूर्णिमा क्यों मनाई जाती है, आइए जानते हैं इसका रहस्य।

जीवन में हम जो कुछ भी प्राप्त करते हैं कहीं न कहीं गुरु की कृपा का ही फल है। गुरु का मतलब शिक्षक से नहीं बल्कि गुरु माता-पिता, भाई, दोस्त किसी के रूप में हो सकते हैं। जिनका नाम सुनते ही हृदय में सम्मान का भाव जगता है। सम्मान प्रकट करने के लिए किसी दिन का नहीं बल्कि प्रत्येक दिन गुरु वंदनीय होते हैं। हालांकि, जीवन में भौतिक रूप से जीवन निर्माता के प्रति कृतज्ञता जाहिर करने का मौका नहीं मिलता है। ऐसे में गुरु पूर्णिमा वो खास दिन होता है जहां हम भौतिक एवं मन दोनों ही रूप से गुरु की वंदना, सम्मान करते हैं।
इस साल गुरु पूर्णिमा 5 जुलाई को है। इसे व्यास पूर्णिमा भी कहते हैं क्योंकि इस दिन वेद व्यास जी का जन्म हुआ था। गुरु पूर्णिमा वह दिन है जब पहले गुरु का जन्म हुआ था। हमारे देश में गुरुओं का स्थान सबसे ऊंचा है। एक गुरू ही अपने शिष्य को अंधकार से निकालकर और उसे सही मार्ग पर लाता है। गुरु के मार्गदर्शन के बिना शिष्य कभी सफल नहीं हो सकता। इसी वजह से अपने गुरुओं को सम्मान देने के लिए गुरू पूर्णिमा मनाया जाता है। 

अखंड मंडलाकारं व्याप्तं येन चराचरं, तत्पदंदर्शितं एनं तस्मै श्री गुरुवे नम:

अर्थात यह श्रृष्टि अखंड मंडलाकार है। बिंदु से लेकर सारी सृष्टि को चलाने वाली अनंत शक्ति का, जो परमेश्वर तत्व है, वहां तक सहज संबंध है।  इस संबंध को जिनके चरणों में बैठ कर समझने की अनुभूति पाने का प्रयास करते हैं, वही गुरु है। जैसे सूर्य के ताप से तपती भूमि को वर्षा से शीतलता और फसल पैदा करने की ताकत मिलती है, वैसे ही गुरु-चरणों में शिष्यों को ज्ञान, शान्ति, भक्ति और योग शक्ति प्राप्त करने की शक्ति मिलती है।

आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा कहते हैं। इस दिन सनातन धर्म में गुरु पूजा का विधान है। गुरु पूर्णिमा वर्षा ऋतु के आरंभ में आती है। इस दिन से चार महीने तक साधु-सन्त एक ही स्थान पर रहकर ज्ञान की गंगा बहाते हैं।अध्ययन के लिए अगले चार महीने उपयुक्त माने गए हैं। पिछले वर्षों के मुकाबले इस वर्ष गुरु पूर्णिमा का स्वरूप बहुत कुछ बदला हुआ है। कोरोना संक्रमण के कारण गुरु वंदना भी ऑनलाइन हो रही है। समाज के अलग-अलग क्षेत्रों में सफलता के शीर्ष पर बैठे लोग अपने-अपने तरीके से गुरु को याद कर रहे हैं।

भारतीय संस्कृति में गुरु का स्थान देवताओं से भी ऊपर माना गया है। संत कबीर अपने दोहे 
"गुरु गोविंद दोनों खड़े, काके लागू पाय। बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो बताय।।"
 इस दोहे के माध्यम से व्यक्ति के जीवन में गुरु के महत्व को दर्शाया गया है। संत कबीर कहते हैं गुरु व्यक्ति के जीवन से अंधकार को दूर कर परमात्मा से मिलाता है। ईश्वर की महिमा गुरु के माध्यम से ही जान पाते हैं। अत: गुरु का स्थान देवताओं से भी श्रेयकर है। गुरु पूर्णिमा के दिन विभिन्न सामाजिक व धार्मिक संगठनों की ओर से विशेष आयोजन कर गुरुओं के प्रति सम्मान प्रकट किया जाता है। कोरोना वायरस के कारण इस बार सभी जगहों पर सामूहिक कार्यक्रम को स्थगित कर अपने-अपने घरों में ही गुरु का पूजन करने को कहा जा रहा है। अधिकतर जगहों पर लोग ऑनलाइन गुरु पूजन कार्यक्रम में शामिल होंगे।

"इस गुुुुुुरू पूर्णिमा के अवसर पर हम उन सब गुरु को नमन करते हैं, जिन्होंने हमें अंधकार से प्रकाशमय की ओर अग्रसर किया !"

मैं तो इंसानियत से मजबूर था तुम्हे बीच मे नही डुबोया" मगर तुमने मुझे क्यों काट लिया!

नदी में बाढ़ आती है छोटे से टापू में पानी भर जाता है वहां रहने वाला सीधा साधा1चूहा कछुवे  से कहता है मित्र  "क्या तुम मुझे नदी पार करा ...