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Friday, August 7, 2020

2 लाख रुपये लगाकर खड़ा किया बंधन बैंक, 20 पर्सेंट शेयर बेच कमाए 10,600 करोड़।

बंधन बैंक के संस्थापक चंद्र शेखर घोष ने अपनी हिस्सेदारी बेचकर 10,600 करोड़ रुपये की रकम हासिल की है। आरबीआई की ओर से दिए गए दिशानिर्देशों के तहत बैंक के सीईओ घोष ने यह हिस्सेदारी बेची है। बैंक में अब उनकी 60.95% की बजाय 40% हिस्सेदारी होगी। आरबीआई के नियमों के मुताबिक किसी भी वित्तीय संस्थान में किसी एक व्यक्ति की 40 फीसदी से ज्यादा हिस्सेदारी नहीं हो सकती। घोष की ओर से ऐसा न करने के चलते बीते साल आरबीआई ने बंधन बैंक की शाखाओं के विस्तार पर रोक लगा दी थी। बांग्लादेश के एक गरीब परिवार में जन्मे घोष का सफर फर्श से अर्श पर पहुंचने की कहानी है।

कभी साइकल पर चलने वाले घोष कैसे इस मुकाम तक पहुंचे…
चंद्रशेखर घोष का जन्म ग्रेटर त्रिपुरा में 1960 में हुआ था। छह भाई-बहनों में सबसे बड़े घोष के परिवार में कुल 15 सदस्य थे और पिता मिठाई की एक छोटी सी दुकान चलाते थे। परिवार में सबसे बड़े बेटे होने के चलते घोष ने पिता को आर्थिक तौर पर सहारा देने के लिए दूध बेचना शुरू किया था और बच्चों को ट्यूशन पढ़ाकर भी कुछ रुपये कमा लेते थे। हालांकि इस संघर्ष के बीच भी उनकी पढ़ाई जारी रही और स्टैटिस्टिक्स में ढाका यूनिवर्सिटी से उन्होंने एमए किया था। इसके बाद 1985 में वे ढाका स्थित एक BRAC से जुड़े जो बांग्लादेश के गांवों में गरीब महिलाओं को मदद करने वाला इंटरनेशनल ऑर्गनाइजेशन था।
कहते हैं कि यहीं से चंद्रशेखर घोष को बंधन बैंक जैसा कुछ शुरू करने की प्रेरणा मिली। बेहद गरीबी में गुजर कर रहीं महिलाओं को अकसर अपने पतियों की प्रताड़ना भी झेलनी पड़ती थी। घोष को महसूस हुआ कि यदि इन महिलाओं के हाथों में कुछ आर्थिक शक्ति हो तो वे अपने और परिवार के जीवन को तब्दील कर सकती हैं। विलेज वेलफेयर सोसायटी के साथ काम कर चुके घोष ने अपने अनुभव को आगे बढ़ाते हुए महिलाओं के लिए माइक्रोफाइनेंस की संस्था शुरू की। इसके बाद 2001 में उन्होंने महज 2 लाख रुपये से बंधन-कोननगर संस्था की शुरुआत की। यह रकम भी रिश्तेदारों से कर्ज के तौर पर ली गई थी। इसके जरिए वह गरीब महिलाओं को कम दर पर लोन दिया करते थे।
चंद्रशेखर घोष कहते हैं कि जुड़ाव को दर्शाने के लिए उन्होंने ‘बंधन’ शब्द को चुना और फिर इसी नाम से बैंक की स्थापना की। अपने शुरुआती दिनों के बारे में बताते हुए वह कहते हैं, ‘मैं पश्चिम बंगाल के हुगली जिले के छोटे-छोटे गांवों में यात्राएं करता था और महिलाओं को लोन लेने के लिए समझाता था ताकि वे अपने बच्चों को पढ़ा सकें। शुरुआत में महिलाएं संदेह की नजर से देखती थीं।’ इसके बाद 2009 में उन्होंने बंधन को नॉन-बैंकिंग फाइनेंस कंपनी के तौर पर स्थापित किया और 2014 में बैंकिंग का लाइसेंस हासिल किया।

Wednesday, August 5, 2020

जानिए राम मंदिर का डिजाइन किसने और कब बनाया था।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज अयोध्या के राम मंदिर निर्माण के भूमि पूजन की नींव रखी। भूमि पूजन से पहले पीएम मोदी हनुमानगढ़ी में हुनमान जी की पूजा और आरती की। उसके बाद तय मुहूर्त पर पीएम मोदी ने राम मंदिर की आधार शिला रखी। जिसके बाद अब मंदिर का निर्माण कार्य शुरू हो जाएगा। लेकिन क्या आप जानते हैं कि राम मंदिर का भव्य निर्माण कौन कर रहा है। ये वहीं आर्किटेक्ट हैं जिन्होंने 31 साल पहले 
इसकी नींव रखी थी।
दरअसल गुजरात के चंद्रकांत भाई सोमपुरा ने आज से 31 साल पहले राम मंदिर का डिजाइन तैयार किया था। गुजरात के आर्किटेक्ट चंद्रकांत भाई सोमपुरा ने बताया है कि अशोक सिंघल उन्हें अयोध्या लेकर गए थे और अशोक सिंघल ने उनसे मंदिर बनाने के लिए डिजाइन तैयार करने के लिए कहा था।
वीएचपी ने 31 साल पहले गुजरात के आर्किटेक्ट चंद्रकांत भाई सोमपुरा से राम मंदिर का मॉडल बनवाया था। चंद्रकांत भाई सोमपुरा ने एक न्यूज़ चैनल से बातचीत में बताया है कि उन्होंने जो डिजाइन बनाई है, वैसा मंदिर निर्माण होने में तकरीबन तीन साल का समय लग सकता है।
उन्होंने बताया है कि मंदिर नागर शैली का है। इसकी लंबाई 270 फीट है, मंदिर 145 फीट चौड़ा है और 145 फीट ऊंचा है। गर्भगृह, चौकी, सीता मंदिर, लक्ष्मण मंदिर, भरत मंदिर और गणेश मंदिर है। चार द्वार हैं। कथाकुंज, स्टाफ का रूम आदि भी बनाया गया है।
सोमपुरा का कहना है कि 31 साल पहले उन्होंने अपने पैर से जमीन मापी थी और उसी के आधार पर मंदिर का डिजाइन तैयार किया था। उनका कहना है कि मंदिर बनने में तीन साल लगेगा। यह मंदिर बाकी मंदिरों से अलग होगा। अष्टकोणीय मंदिर होगा।

Monday, August 3, 2020

हिंदू धर्म में रक्षाबन्धन का महत्व ।

किसी भी धार्मिक अनुष्ठान या पूजा पाठ में रक्षासूत्र बांधते समय सभी आचार्य एक श्लोक का उच्चारण करते हैं। जिसमें रक्षाबन्धन का सम्बन्ध राजा बलि से स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होता है। यह श्लोक रक्षाबंधन का अभीष्ट मंत्र है।
"येन बद्धो बलि: राजा दानवेन्द्रो महाबल:। तेन
त्वामभिबध्नामि रक्षे मा चल मा चल॥"
अर्थात - जिस रक्षासूत्र से महान शक्तिशाली दानवेन्द्र राजा बलि को बांधा गया था,उसी रक्षाबन्धन से मैं तुम्हें बांधता हूं जो तुम्हारी रक्षा करेगा। रक्षाबंधन का त्यौहार श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है।
रक्षाबंधन में राखी या रक्षासूत्र का सबसे अधिक महत्व है। राखी कच्चे सूत जैसे सस्ती वस्तु से लेकर रंगीन कलावे, रेशमी धागे, तथा सोने या चांदी जैसी मंहगी वस्तु तक की हो सकती है। राखी सामान्यतः बहनें भाई को बांधती हैं। परंतु पुत्री द्वारा पिता को, दादा को,चाचा को आथवा कोई भी किसी को भी सम्बन्ध मधुर बनाने की भावना से,सुरक्षा की कामना के साथ रक्षासूत्र बाँध सकता है | 
प्रकृति संरक्षण के लिए वृक्षों को राखी बांधने की परंपरा भी प्रारंभ हो गई है| सनातन परम्परा में किसी भी कर्मकांड व अनुष्ठान की पूर्णाहुति बिना रक्षा सूत्र बांधे पूरी नहीं होती |

Sunday, August 2, 2020

रक्षाबंधन पर्व का धार्मिक और पौराणिक महत्व।

श्रावण मास की पूर्णिमा को रक्षाबंधन का त्योहार मनाया जाता है। इस साल यह त्योहार 3 अगस्त को पड़ रहा है। इस दिन बहनें सज-संवरकर मेहंदी रचे हाथों से भाइयों को तिलक कर दाहिनी कलाई पर राखी बांधती हैं। 
धार्मिक और पौराणिक कथाओं के अनुसार !
द्रौपदी और भगवान श्री कृष्ण की कथा
महाभारत काल के दौरान, शिशुपाल के वध के समय भगवान कृष्ण की कलाई पर चोट लग गई, जहां से उनका खून बहने लगा। भगवान श्री कृष्ण की कलाई से यूं रक्त बहता देख पांडवों की पत्नी द्रौपदी ने तुरंत अपनी साड़ी का एक किनारा फाड़कर उसे भगवान कृष्ण की कलाई पर बांध दिया, जिससे उनका खून बहना बंद हो गया। इसी समय श्री कृष्ण ने द्रौपदी को अपनी बहन स्वीकार कर, उसकी रक्षा करते हुए उसके आंचल के एक-एक सूत का कर्ज उतारने का वचन दिया। माना जाता है कि भगवान कृष्ण ने जरूरत पड़ने पर अपना वचन निभाया भी और जिस समय पांडव द्रौपदी को जुए में हार गए थे और भरी सभा में उनका चीरहरण हो रहा था तब वह स्वयं श्रीकृष्ण ही थे जिन्होंने द्रौपदी की लाज बचाई थी। मान्यता अनुसार तभी रक्षाबंधन का पर्व मनाने की शुरुआत हुई। उस दिन से आज तक यह पर्व मनया जाता है।
रक्षाबंधन मनाने की सही विधि
👉रक्षाबंधन के दिन सुबह भोर में उठकर स्नान आदि कर स्वच्छ कपड़े पहनें।
👉फिर चावल, कच्चे सूत का कपड़ा, सरसों, रोली को एक साथ मिलाकर, पूजा की थाली तैयार करें।
👉पूजा की थाली में शुद्ध देसी घी का एक दीप जलाएं, साथ ही थाली में कुछ मिठाई भी रखें।
👉इसके बाद यदि आपका भाई आपके साथ है तो, उसे एक पीढ़े पर बिठाएं. वहीं यदि भाई किसी कारणवश आप से दूर है तो, आप उसके स्थान पर उसकी कोई तस्वीर भी रख सकते हैं।
👉इसके बाद शुभ मुहूर्त अनुसार भाई को रक्षा सूत्र बांधते वक्त, उसको पूर्व दिशा की ओर मुंह करके बिठाएं।
👉इसके साथ ही ध्यान रहे कि भाई को तिलक लगाते समय, बहन का मुख भी पश्चिम दिशा की ओर होना चाहिए।
👉इसके बाद भाई के माथ पर टीका लगाकर, उसके दाहिने हाथ पर रक्षा सूत्र बांधें।
👉इसके पश्चात भाई की आरती उतारें और उसे मिठाई खिलाएं।
👉अब यदि बहन बड़ी हो तो छोटे भाई को उसके पैर छूकर आशीर्वाद लेना चाहिए और छोटी हो तो उसे बड़े भाई को प्रणाम करते हुए उसका आशीर्वाद लेना चाहिए।
रक्षाबंधन पर्व का धार्मिक और पौराणिक महत्व

देवताओं और इंद्राणी की कथा रक्षाबंधन पर्व के मनाने को लेकर भी कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। उन्हीं कहानियों में से एक का उल्लेख भविष्य पुराण में किया गया है। इस कथा के अनुसार पौराणिक काल में, देवों और दानवों के बीच जब भयंकर युद्ध हुआ तो उस दौरान देवता असुरों से हारने लगे। तब सभी देव अपने राजा इंद्र के पास उनकी सहायता के लिए गए। असुरों से भयभीत देवताओं को देवराज इंद्र की सभा में देखकर, देवइंद्र की पत्नी इंद्राणी ने सभी देवताओं के हाथों पर एक रक्षा सूत्र बांधा। माना जाता है कि इसी रक्षा सूत्र ने देवताओं का आत्मविश्वास बढ़ाया जिसके कारण वो बाद में दानवों पर विजय प्राप्त करने में सफल रहे। कहा जाता है कि तभी से राखी बांधने की प्रथा प्रारम्भ हुई।

Saturday, August 1, 2020

"स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर ही रहूँगा" लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक कि जयंती।

 महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक (Bal Gangadhar Tilak) की आज जयंती है। उनका जन्म 23 जुलाई, 1856 को महाराष्ट्र के कोंकण प्रदेश (रत्नागिरी) के चिखली गांव में हुआ था। बाल गंगाधर तिलक को लोकमान्य तिलक के नाम से भी जाना जाता है। लोकमान्य का शीर्षक भी इन्हीं को दिया गया था। स्वतंत्रता सेनानी के अलावा उनको समाज सुधारक, दार्शनिक, प्रखर चिंतक, शिक्षक और पत्रकार के तौर पर भी जाना जाता है।
'स्वराज यह मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर ही रहूंगा'
बचपन से ही मेधावी छात्र बाल गंगाधर तिलक रत्नागिरी गांव से निकलकर आधुनिक कालेज में शिक्षा पाने वाले ये भारतीय पीढ़ी के पहले पढ़े लिखे नेता थे। कुछ समय तक उन्होंने स्कूल और कॉलेज के छात्रों को गणित की भी शिक्षा दी। उन्होंने देश में शिक्षा के स्तर को सुधारने के लिए काफी काम किया, इसके लिए उन्होंने दक्कन शिक्षा सोसायटी की भी स्थापना की थी।
राजनीतिक सफर
ब्रिटिश सरकार की नीतियों के विरोध चलते एक समय उन्हें मुकदमे और उत्पीड़न का सामना करना पड़ा। उन्होंने कांग्रेस पार्टी ज्वाइन करके काफी समय तक काम किया, लेकिन बाद में पार्टी नरमपंथी रवैये को देखते हुए वो अलग हो गए। इसके बाद पार्टी के दो हिस्से हो गए, और बाल गंगाधर तिलक के साथ लाला लाजपत राय और बिपिन चन्द्र पाल, अलग हिस्से में शामिल हो गए। 1908 में तिलक ने क्रान्तिकारी प्रफुल्ल चाकी और खुदीराम बोस के बम हमले का समर्थन किया जिसकी वजह से उन्हें बर्मा (अब म्यांमार) स्थित मांडले की जेल भेज दिया गया। जेल से छूटकर वे फिर कांग्रेस में शामिल हो गए और 1916 में एनी बेसेंट और मुहम्मद अली जिन्ना के साथ अखिल भारतीय होम रूल लीग की स्थापना की। इसके अलावा ब्रिटिश सरकार की नीतियों की आलोचना करने और भारतीयों को पूर्ण स्वराज देने की मांग के चलते उन्हें कई बार जेल भी जाना पड़ा। उन्होंने अपने अखबारों के जरिए भी ब्रिटिश शासन की क्रूरता और भारतीय संस्कृति के प्रति हीन भावना की बहुत आलोचना की। वो अपने मराठी अखबार 'केसरी' में अंग्रेजों के खिलाफ काफी आक्रामक लेख लिखते थे। इन्हीं लेखों की वजह से उनको कई बार जेल भेजा गया।
जिंदगी का अंतिम सफर
ब्रिटिश सरकार ने बाल गंगाधर तिलक को 6 साल की जेल की सजा सुनाई थी और इसी दौरान उनकी पत्नी की मृत्यु हो गई थी। इस कारण वो अपनी मृतक पत्नी के अंतिम दर्शन भी नहीं कर पाए थे। इसके बाद 1 अगस्त, 1920 को मुंबई में उनकी मृत्यु हो गई थी। उनके निधन पर श्रद्धांजलि देते हुए महात्मा गांधी ने उन्हें आधुनिक भारत का निर्माता कहा और जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें भारतीय क्रान्ति का जनक कहा था।

01 अगस्त आज ही के दिन महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन की शुरुआत की थी। क्या थे कारण!

01 अगस्त 1920 को महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन की शुरुआत की। आंदोलन के दौरान विद्यार्थियों ने सरकारी स्कूलों और कॉलेजों में जाना छोड़ दिया। वकीलों ने अदालत में जाने से मना कर दिया। कई कस्बों और नगरों में श्रमिक हड़ताल पर चले गए। अंग्रेज हुक्मरानों की बढ़ती ज्यादतियों का विरोध करने के लिए यह आंदोलन की शुरुआत की। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 1921 में 396 हड़तालें हुई जिनमें छह लाख श्रमिक शामिल थे और इससे 70 लाख कार्य दिवसों का नुकसान हुआ। 
शहरों से लेकर गांव देहात में इस आंदोलन का असर दिखाई देने लगा और सन 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के बाद असहयोग आंदोलन से पहली बार अंग्रेजी राज की नींव हिल गई। 5 फ़रवरी 1922 में किसानों के एक समूह ने संयुक्त प्रांत के गोरखपुर जिले के चौरी-चौरा पुरवा में एक पुलिस स्टेशन पर आक्रमण कर उसमें आग लगा दी।इस अग्निकांड में कई पुलिस वालों की जान चली गई। हिंसा की इस कार्यवाही से गाँधी जी को यह आंदोलन तत्काल वापस लेना पड़ा।
उन्होंने जोर दिया कि, ‘किसी भी तरह की उत्तेजना को निहत्थे और एक तरह से भीड़ की दया पर निर्भर व्यक्तियों की घृणित हत्या के आधार पर उचित नहीं ठहराया जा सकता है’। 12 फ़रवरी 1922 को बारदोली में हुई कांग्रेस की बैठक में असहयोग आन्दोलन को समाप्त करने के निर्णय के बारे में गांधी जी ने यंग इण्डिया में लिखा था कि, "आन्दोलन को हिंसक होने से बचाने के लिए मैं हर एक अपमान, हर एक यातनापूर्ण बहिष्कार, यहाँ तक की मौत भी सहने को तैयार हूँ।" अब गांधी जी ने रचनात्मक कार्यों पर ज़ोर दिया।
असहयोग आंदोलन (1920-21)के प्रमुख कारण थे
  • सभी वयस्कों को काँग्रेस का सदस्य बनाना
  • तीन सौ सदस्यों की अखिल भारतीय काँग्रेस समिति का गठन
  • भाषायी आधार पर प्रांतीय काँग्रेस समितियों का पुनर्गठन
  • स्वदेशी मुख्यतः हाथ की कताई-बुनाई को प्रोत्साहन
  • यथासंभव हिन्दी का प्रयोग आदि

इस्लाम धर्म में बकरीद (Eid-ul-Adha) का त्योहार जिसका मतलब है कुर्बानी की ईद, क्यों मनाई जाती है।

रमजान के पवित्र महीने की समाप्ति के लगभग 70 दिनों बाद इसे मनाया जाता है। बकरीद (Eid-ul-Adha)। जिसका मतलब है कुर्बानी की ईद। इस्लाम धर्म में विश्वास रखने वाले लोगों का एक प्रमुख त्यौहार है। रमजान के पवित्र महीने की समाप्ति के लगभग 70 दिनों बाद इसे मनाया जाता है। कहा जाता है अल्लाह ने हजरत इब्राहिम से सपने में उनकी सबसे प्रिय चीज की कुर्बानी मांगी थी। हजरत इब्राहिम अपने बेटे से बहुत प्यार करते थे, लिहाजा उन्होंने अपने बेटे की कुर्बानी देने का फैसला किया। अल्लाह के हुक्म की फरमानी करते हुए हजरत इब्राहिम ने अपने बेटे की कुर्बानी दे दिया। 

कहते हैं तभी से बकरीद का त्योहार मनाया जाने लगा। लेकिन मुस्लिम समाज कभी अपने बच्चों का बलि नहीं दे सकता। इसलिए वह निर्दोष असहाय जानवरों का बली देता है। बकरीद का त्यौहार हिजरी के आखिरी महीने जुल हिज्ज में मनाया जाता है। पूरी दुनिया के मुसलमान इस महीने में मक्का सऊदी अरब में एकत्रित होकर हज मनाते है। ईद उल अजहा भी इसी दिन मनाई जाती है। वास्तव में यह हज की एक अंशीय अदायगी और मुसलमानों के भाव का दिन है। दुनिया भर के मुसलमानों का एक समूह मक्का में हज करता है बाकी मुसलमानों के अंतरराष्ट्रीय भाव का दिन बन जाता है।


इन जानवरों की दी जाती है कुर्बानी 
बकरीद के दिन मुस्लिम बकरा, भेड़, ऊंट जैसे निर्दोष किसी जानवर की कुर्बानी देते हैं। इसमें उस पशु की कुर्बानी नहीं दी जा सकती है जिसके शरीर का कोई हिस्सा टूटा हुआ हो, भैंगापन हो या जानवर बीमार हो बकरीद के दिन कुर्बानी के गोश्त को तीन हिस्सों में बांटा जाता है। एक खुद के लिए, दूसरा सगे-संबंधियों के लिए और तीसरे हिस्से को गरीब लोगों में बांटे जाता है।

मैं तो इंसानियत से मजबूर था तुम्हे बीच मे नही डुबोया" मगर तुमने मुझे क्यों काट लिया!

नदी में बाढ़ आती है छोटे से टापू में पानी भर जाता है वहां रहने वाला सीधा साधा1चूहा कछुवे  से कहता है मित्र  "क्या तुम मुझे नदी पार करा ...