कभी साइकल पर चलने वाले घोष कैसे इस मुकाम तक पहुंचे…
चंद्रशेखर घोष का जन्म ग्रेटर त्रिपुरा में 1960 में हुआ था। छह भाई-बहनों में सबसे बड़े घोष के परिवार में कुल 15 सदस्य थे और पिता मिठाई की एक छोटी सी दुकान चलाते थे। परिवार में सबसे बड़े बेटे होने के चलते घोष ने पिता को आर्थिक तौर पर सहारा देने के लिए दूध बेचना शुरू किया था और बच्चों को ट्यूशन पढ़ाकर भी कुछ रुपये कमा लेते थे। हालांकि इस संघर्ष के बीच भी उनकी पढ़ाई जारी रही और स्टैटिस्टिक्स में ढाका यूनिवर्सिटी से उन्होंने एमए किया था। इसके बाद 1985 में वे ढाका स्थित एक BRAC से जुड़े जो बांग्लादेश के गांवों में गरीब महिलाओं को मदद करने वाला इंटरनेशनल ऑर्गनाइजेशन था।
कहते हैं कि यहीं से चंद्रशेखर घोष को बंधन बैंक जैसा कुछ शुरू करने की प्रेरणा मिली। बेहद गरीबी में गुजर कर रहीं महिलाओं को अकसर अपने पतियों की प्रताड़ना भी झेलनी पड़ती थी। घोष को महसूस हुआ कि यदि इन महिलाओं के हाथों में कुछ आर्थिक शक्ति हो तो वे अपने और परिवार के जीवन को तब्दील कर सकती हैं। विलेज वेलफेयर सोसायटी के साथ काम कर चुके घोष ने अपने अनुभव को आगे बढ़ाते हुए महिलाओं के लिए माइक्रोफाइनेंस की संस्था शुरू की। इसके बाद 2001 में उन्होंने महज 2 लाख रुपये से बंधन-कोननगर संस्था की शुरुआत की। यह रकम भी रिश्तेदारों से कर्ज के तौर पर ली गई थी। इसके जरिए वह गरीब महिलाओं को कम दर पर लोन दिया करते थे।
चंद्रशेखर घोष कहते हैं कि जुड़ाव को दर्शाने के लिए उन्होंने ‘बंधन’ शब्द को चुना और फिर इसी नाम से बैंक की स्थापना की। अपने शुरुआती दिनों के बारे में बताते हुए वह कहते हैं, ‘मैं पश्चिम बंगाल के हुगली जिले के छोटे-छोटे गांवों में यात्राएं करता था और महिलाओं को लोन लेने के लिए समझाता था ताकि वे अपने बच्चों को पढ़ा सकें। शुरुआत में महिलाएं संदेह की नजर से देखती थीं।’ इसके बाद 2009 में उन्होंने बंधन को नॉन-बैंकिंग फाइनेंस कंपनी के तौर पर स्थापित किया और 2014 में बैंकिंग का लाइसेंस हासिल किया।