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Monday, September 7, 2020

कंगना को मिली Y श्रेणी की सुरक्षा, अमित शाह को किया धन्यवाद

शिवसेना से जारी तकरार के बीच कंगना रनौत के लिए राहत की खबर केंद्र सरकार ने हिमाचल सरकार की सिफारिश पर अभिनेत्री को Y कैटेगिरी की सुरक्षा को हरी झड़ी दे दी है। कंगना ने इस बात की खुद तस्दीक करते हुए कहा गृराज्यमंत्री अमित शाह को धन्यवाद दिया। उन्होंने ट्विटर पर लिखा कि ये प्रमाण है की अब किसी देशभक्त आवाज़ को कोई फ़ासीवादी नहीं कुचल सकेगा,मैं अमित शाह जी की आभारी हूँ वो चाहते तो हालातों के चलते मुझे कुछ दिन बाद मुंबई जाने की सलाह देते मगर उन्होंने भारत की एक बेटी के वचनों का मान रखा, हमारे स्वाभिमान और आत्मसम्मान की लाज रखी, जय हिंद
शिव सेना से मिल रही थी धमकियां!
मुंबई पुलिस और महाराष्ट्र सरकार के खिलाफ बयानबाजी के बाद शिवसेना के कई नेताओं द्वारा एक्ट्रेस कंगना रनौत को कथित तौर पर धमकी मिल रही थी, जिसके बाद उनकी सुरक्षा बढ़ाई गई है। बता दें, कंगना रनौत ने 9 सितंबर को मुंबई पहुंचने का ऐलान किया है, लेकिन शिवसेना से जारी तकरार के बीच केंद्र सरकार ने सुरक्षा बढ़ाने का फैसला लिया है।
हिमाचल सरकार भी चिंता जाहिर की थी!
हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने रविवार को कहा था कि राज्य सरकार बॉलीवुड अभिनेत्री कंगना रनौत को सुरक्षा उपलब्ध कराने पर विचार कर रही है। भाजपा विधायक दल की बैठक के बाद मुख्यमंत्री ने कहा था कि राज्य सरकार कंगना को नौ सितम्बर को उनकी मुंबई यात्रा के लिए सुरक्षा उपलब्ध कराने पर विचार कर रही है।
क्या था मामला
दरअसल पिछले दिनों शिवसेना सांसद संजय राउत ने कंगना को कथित तौर पर 'मुंबई नहीं आने' की धमकी दी थी, जिसके बाद कंगना रनौत ने संजय राउत पर एक के बाद एक कई हमले किए थे। कंगना को चुनौती देना संजय राउत के गले की फांस साबित हो रहा है, अभिनेत्री ने अपने ऊपर हमले को अभिव्यक्ति की आजादी से जोड़ दिया है। उन्होंने साफ कहा है कि इस तरह की बयानबाज़ी से देश की बेटियां उन्हें कभी 'माफ' नहीं करेगी। कंगना ने कुछ दिनों पहले ही मुंबई पुलिस की सुरक्षा पर सवाल उठाए थे, उन्होंने ये भी कहा था कि वो मुंबई पुलिस से सुरक्षा लेने की जगह केंद्र या फिर हिमाचल सरकार से इसकी फरियाद करेगी। 'क्वीन' अभिनेत्री सुशांत मामले में मुंबई पुलिस के रवैये पर लगातार सवाल उठाती रही हैं जिसके बाद से ही वो शिवसेना के निशाने पर हैं।

Sunday, September 6, 2020

क्या आप जानते हैं, इस्लाम के नुमाइश करता इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को लेकर क्या क्या तर्क दिया।

1. रेलगाड़ी:- जब रेलगाड़ी आई तो मौलानाओ ने फरमाया कि हमारे नबी ने दुनिया के सर्वनाश की एक निशानी यह बताई थी कि जब लोहा लोहे पर चलेगा तो कयामत आएगी लेकिन आज माशा-अल्लाह उलेमा इसी लोहे के बर्थ पर नमाज़ें अदा करते नजर आते हैं।
2. लाउडस्पीकर:- जब लाउडस्पीकर आया तो उसकी आवाज़ को गधे की आवाज़ से तुलना कर उसे शैतानी यंत्र करार दे दिया गया लेकिन आज हर मस्जिद और आलिम मजलिस में सुवरचिघ्घाड़ के लिए ये जरूरी है।
3. हवाईजहाज:- जब हवाईजहाज की चर्चा आम हुई तो उलेमाओं ने कहा कि जो इस लोहे में उड़ेगा उसका निकाह खत्म हो जाएगा लेकिन जाहिर है कि आज अल्हमदुलिल्लाह
इसी लोहे पर उड़ कर मुसलमान हज व उमरा की नेकियां बटोर रहे हैं।
4. मुर्गी:- मुर्गी पर भी फतवे लगे ऐसी घरेलू मुर्गी जो बाहर से दाना चुग कर आई हो उसे हलाल नहीं किया जा सकता पहले उसे तीस दिनों तक दड़वे में रखा जाए फिर हलाल किया जाए।
5.पोल्ट्री फार्म:- जब पोल्ट्री फार्म की मुर्गी आई थी तो उसके अंडों पर फतवा लगा क्योंकि उन अंडों का कोई बाप नहीं था।
6. प्रिंटिंग प्रेस:- युरोप में जब प्रिंटिंग प्रेस का आविष्कार हुआ तो उसे इस्लाम में हराम करार दे दिया गया क्योंकि उससे पहले मुस्लिम उलेमा वज़ू करके कुरान व हदीस की किताबों को हाथों से लिखते थे।
उलेमाओं का मानना था कि ये नापाक मशीन है जिस पर अल्लाह और रसूल का कलाम छापना हराम है लेकिन अब ये पूरी तरह हलाल हो गई है।
7. अंग्रेजी चिकित्सा पद्धति:- अंग्रेजों ने जब नई चिकित्सा पद्धति अपनाया तो टीके पर भी फतवा लगा उसपर ऐसी लम्बी लम्बी बहसें हुईं कि अगर उन्हें एक जगह जमा करके पढ़ा जाए तो आदमी हंसते हंसते लोट पोट हो जाए।
8. रक्तदान:- रक्तदान भी इस्लाम मे हराम कर दिया गया इनके अनुसार रक्तदान करना हराम है पर अपने जिस्म पर किसी और का खून चढ़वाना हराम नही है।
लेकिन आज देश में ऐसा कौन सा अस्पताल है जहां ये सहूलियत मौजूद न हो अब तो रक्तदान नेकी का काम है।
9. फोटो सेल्फी:- फोटो खिंचाना हराम है, लेकिन आज कौन सा ऐसा मुसलमान है जो इससे इनकार करता हो सऊदी अरब जैसा कट्टर मुस्लिम देश भी नहीं करता।
10. टेलीविजन:- टेलीविजन को हराम ही नहीं बल्कि उसे शैतानी डिब्बा कहा गया. जमाअतुत दावा के एक मासिक पत्रिका में उसके खिलाफ लगातार लेख छपते रहे लेकिन आज उसी के बड़े रहनुमा इसी शैतानी डिब्बा में अपनी ईमान से भरी तकरीर से उम्मत को नवाजते रहते है और भी बड़े बड़े उलेमा तो ज्यादा समय इसी डिब्बे में गुजारते हैं।
11. एटीएम मशीन:- इसी तरह एटीएम मशीन को लेकर भी अफवाह फैलाई गई कि इस्लाम में एटीएम मशीन का उपयोग हराम है। इस मुद्दे पे कुछ दिन पहले आप मुस्लमान के कुछ ठेकेदारों ने टीवी पे अपनी ब्यान भी दिया था। मगर भोली भाली जनता को गुमराह कर ये बुद्धिजीवी लोग हर इलेक्ट्रोनिक मीडिया का इस्तेमाल बहुत अच्छे से करते अा रहे है।
सवाल ये है कि मुस्लमान के ठेकेदारों सरदार मौलाना किनके इशारे पर अपने इरादों और फतवों में बदलाव करते है। पहले हराम फिर उसी में आराम।

जाने अपने विष्णू स्तम्भ को जो अब मुस्लिम आक्रनता कुतुबुद्दीन ऐबक ने क़ुतुबमीनार बना दिया।

अगर आप दिल्ली घुमने गए है तो आपने कभी विष्णू स्तम्भ (क़ुतुबमीनार) को भी अवश्य देखा होगा. जिसके बारे में हमारे इतिहास के पन्नों में बताया गया है कि उसे कुतुबुद्दीन ऐबक ने बनबाया था। हम कभी जानने की कोशिश भी नहीं करते हैं कि कुतुबुद्दीन कौन था, उसने कितने बर्ष दिल्ली पर शासन किया, उसने कब विष्णू स्तम्भ (क़ुतुबमीनार) को बनवाया या विष्णू स्तम्भ (कुतूबमीनार) से पहले वो और क्या क्या बनवा चुका था। कुतुबुद्दीन ऐबक, मोहम्मद गौरी का खरीदा हुआ गुलाम था। मोहम्मद गौरी भारत पर कई हमले कर चुका था।मगर हर बार उसे हारकर वापस जाना पडा था। ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की जासूसी और कुतुबुद्दीन की रणनीति के कारण मोहम्मद गौरी, तराइन की लड़ाई में पृथ्वीराज चौहान को हराने में कामयाब रहा और अजमेर/दिल्ली पर उसका कब्जा हो गया।
अजमेर पर कब्जा होने के बाद मोहम्मद गौरी ने चिश्ती से इनाम मांगने को कहा। तब चिश्ती ने अपनी जासूसी का इनाम मांगते हुए, एक भव्य मंदिर की तरफ इशारा करके गौरी से कहा कि तीन दिन में इस मंदिर को तोड़कर मस्जिद बना कर दो। तब कुतुबुद्दीन ने कहा आप तीन दिन कह रहे हैं। मैं यह काम ढाई दिन में कर के आपको दूंगा। कुतुबुद्दीन ने ढाई दिन में उस मंदिर को तोड़कर मस्जिद में बदल दिया। आज भी यह जगह "अढाई दिन का झोपड़ा" के नाम से जानी जाती है। जीत के बाद मोहम्मद गौरी, पश्चिमी भारत की जिम्मेदारी "कुतुबुद्दीन" को और पूर्वी भारत की जिम्मेदारी अपने दुसरे सेनापति "बख्तियार खिलजी" (जिसने नालंदा को जलाया था) को सौंप कर वापस चला गय था ।
कुतुबुद्दीन कुल चार साल ( 1206 से 1210 तक) दिल्ली का शासक रहा। इन चार साल में वो अपने राज्य का विस्तार, इस्लाम के प्रचार और बुतपरस्ती का खात्मा करने में लगा रहा। हांसी, कन्नौज, बदायूं, मेरठ, अलीगढ़, कालिंजर, महोबा, आदि को उसने जीता। अजमेर के विद्रोह को दबाने के साथ राजस्थान के भी कई इलाकों में उसने काफी आतंक मचाय।
विष्णु स्तम्भ 
जिसे क़ुतुबमीनार कहते हैं वो महाराजा वीर विक्रमादित्य की वेदशाला थी। जहा बैठकर खगोलशास्त्री वराहमिहर ने ग्रहों, नक्षत्रों, तारों का अध्ययन कर, भारतीय कैलेण्डर "विक्रम संवत" का आविष्कार किया था। यहाँ पर 27 छोटे छोटे भवन (मंदिर) थे जो 27 नक्षत्रों के प्रतीक थे। और मध्य में विष्णू स्तम्भ था, जिसको ध्रुव स्तम्भ भी कहा जाता था। दिल्ली पर कब्जा करने के बाद उसने उन 27 मंदिरों को तोड दिया। विशाल विष्णु स्तम्भ को तोड़ने का तरीका समझ न आने पर उसने उसको तोड़ने के बजाय अपना नाम दे दिया। तब से उसे क़ुतुबमीनार कहा जाने लगा। कालान्तर में यह सब झूठ प्रचारित किया गया कि क़ुतुब मीनार को कुतुबुद्दीन ने बनबाया था। जबकि वो एक विध्वंशक सासक था न कि कोई निर्माता।
कुतुबुद्दीन ऐबक की मौत का सच
अब बात करते हैं, कुतुबुद्दीन की मौत की। इतिहास की किताबो में लिखा है, कि उसकी मौत पोलो खेलते समय घोड़े से गिरने से हुई। ये अफगान / तुर्क लोग "पोलो" नहीं खेलते थे। पोलो खेल अंग्रेजों ने शुरू किया। अफगान/तुर्क लोग बुजकशी खेलते हैं जिसमे एक बकरे को मारकर उसे लेकर घोड़े पर भागते है, जो उसे लेकर मंजिल तक पहुंचता है, वो जीतता है। कुतबुद्दीन ने अजमेर के विद्रोह को कुचलने के बाद राजस्थान के अनेकों इलाकों में कहर बरपाया था। उसका सबसे कडा विरोध उदयपुर के राजा ने किया। परन्तु कुतुबद्दीन उनको हराने में कामयाब रहा। उसने धोखे से राजकुंवर कर्णसिंह को बंदी बनाकर और उनको जान से मारने की धमकी देकर, राजकुंवर और उनके घोड़े शुभ्रक को पकड कर लाहौर ले आया।
एक दिन राजकुंवर ने कैद से भागने की कोशिश की, लेकिन पकड़ा गया। इस पर क्रोधित होकर कुतुबुद्दीन ने उसका सर काटने का हुकुम दिया। दरिंदगी दिखाने के लिए उसने कहा कि बुजकशी खेला जाएगा लेकिन इसमें बकरे की जगह राजकुंवर का कटा हुआ सर इस्तेमाल होगा। कुतुबुद्दीन ने इस काम के लिए, अपने लिए घोड़ा भी राजकुंवर का "शुभ्रक" चुना। कुतुबुद्दीन "शुभ्रक" घोडे पर सवार होकर अपनी टोली के साथ जन्नत बाग में पहुंचा। राजकुंवर को भी जंजीरों में बांधकर वहां लाया गया। राजकुंवर का सर काटने के लिए जैसे ही उनकी जंजीरों को खोला गया, शुभ्रक घोडे ने उछलकर कुतुबुद्दीन को अपनी पीठ से नीचे गिरा दिया और अपने पैरों से उसकी छाती पर कई बार वार किये, जिससे कुतुबुद्दीन वहीं पर मर गया।
शुभ्रत मरकर भी अमर हो गया
इससे पहले कि सिपाही कुछ समझ पाते राजकुवर शुभ्रक घोडे पर सवार होकर वहां से निकल गए। कुतुबुदीन के सैनिको ने उनका पीछा किया मगर वो उनको पकड न सके। शुभ्रक कई दिन और कई रात दौड़ता रहा और अपने स्वामी को लेकर उदयपुर के महल के सामने आ कर रुका। वहां पहुंचकर जब राजकुंवर ने उतर कर पुचकारा तो वो मूर्ति की तरह शांत खडा हो गया था। वो मर चुका था, सर पर हाथ फेरते ही उसका निष्प्राण शरीर लुढ़क गया। कुतुबुद्दीन की मौत और शुभ्रक की स्वामिभक्ति की इस घटना के बारे में हमारे स्कूलों में नहीं पढ़ाया जाता है। लेकिन इस घटना के बारे में फारसी के प्राचीन लेखकों ने काफी लिखा है।धन्य है भारत की भूमि जहाँ इंसान तो क्या जानवर भी अपनी स्वामी भक्ति के लिए प्राण दांव पर लगा देते हैं।

मै सच्चाई बयां करने की कोशिश की है। इसमें लिखे सारी जानकारियां तथ्यों के साथ आप स्वयं भी प्राप्त कर सकते है।

Saturday, September 5, 2020

भारत और रूस के बीच AK 203 रायफल की खरीद को मंजूरी। जाने क्या है खास।

भारत और रूस के बीच AK 203 रायफल की खरीद का समझौता पर दोनों देशों की मंजूरी की मुहर लग गई हैं। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के मॉस्को दौरे पर इस डील पर मुहर लग गई है। AK 203 रायफल AK-47 का एडवांस्ड वर्जन है। भारतीय सेना के लिए 7 लाख 70 हज़ार AK 203 रायफल की ज़रूरत है। इनमें से 1 लाख AK 203 रायफल रूस से आयात की जाएंगी।

दुनिया की सबसे खतरनाक रायफल
पिछले 70 वर्षों से एके 47 यानी ऑटोमैटिक Kalashnikov (कलाश्निकोव) दुनिया का सबसे जाना पहचाना हथियार है। भारतीय सेनाओं को और घातक बनाने के लिए अब इसे नए हथियारों से लैस किया जा रहा है। इसके लिए एके 47 रायफलों को रिप्लेस कर ज्यादा आधुनिक एके 203 रायफल दिए जाने पर काम चल रहा है।
AK-47 का Advance वर्जन है AK-203
Kalashnikov कंपनी के तकनीकी विशेषज्ञ मिखाइल बताते हैं कि ये पहले से कहीं ज्यादा आधुनिक और नए जमाने के मुताबिक बनाई गई रायफल है। AK-203 रायफल 60 गोलियों वाली मैगजीन लगाई जा सकती है
उन्होंने कहा कि एके 203 में 30 के बदले 60 गोलियों वाली मैगज़ीन लगाई जा सकती है। इससे ये पहले से ज्यादा देर तक दुश्मनों का मुकाबला करेगी। मौसम चाहे कितना भी खराब हो. बर्फबारी हो रही हो या धूल भरी आंधी हो। एके 203 हर मौसम में काम करेगी। दावा है कि एके 203 पुरानी गन के मुकाबले 30 प्रतिशत ज्यादा सटीक निशाना लगाती है।
अमेठी में तैयार होगा 6.7 लाख AK-203 रायफल
समझौते के तहत भारत और रूस मिलकर उत्तर प्रदेश के अमेठी में एके सीरीज़ की सबसे आधुनिक राइफल बनाएंगे। Make In India के तहत यहां साढ़े सात लाख राइफलें बनाई जाएंगी। रूस के फेडरल मिलिट्री Cooperation के डायरेक्टर दिमित्री सुगायेव कहते हैं कि AK-203 से हमें ज्यादा सफलता मिलेगी। यह दूसरी रायफलों से अलग है। भारत ऐसा पहला देश है जिसके साथ मिलकर Kalashnikov रायफल बनाई जाएंगी।
रूस की स्पेशल फोर्सेज अपने मिशन में AK-203 पर भरोसा करती हैं
मिखाइल कलाश्निकोव ने किया था डिजाइन
AK 203 पुरानी AK 47 का नया अवतार है। AK 47 का पूरा नाम Automatic Kalashnikov (कलाश्निकोव) 47 है, इस राइफल का निर्माण वर्ष 1947 में शुरु हुआ था। और इसका नाम Mikhail (मिखाइल) Kalashnikov (कलाश्निकोव) के नाम पर पड़ा था, जिन्होंने इस रायफल को डिज़ाइन किया था।
हर मौसम में काम करना भी AK 203 की बड़ी खूबी है। ये रायफल सियाचिन की माइनस 35 डिग्री की ठंड, थार रेगिस्तान की धूल भरी हवा और North East की Non Stop बारिश वाले मौसम में भी बिना रूके काम करेगी। AK 203 की गोलियां फायर करने की रफ्तार भी काफी तेज है। ये रायफल 60 सेकेंड में 600 गोलियां दाग सकती है। यानी एक सेकेंड में 10 गोलियां। ऐसी घातक क्षमता का मुकाबला करना किसी के लिए भी आसान नहीं है।
नाइट विजन कैमरे भी लगाए जा सकते हैं। भारतीय सैनिक चौबीसों घंटे आतंकवादियों से लड़ने के लिए तैयार रहते हैं। इसलिए AK 203 रायफल में Night Vision यानी रात में देखने में मदद करने वाले उपकरण भी लगाए जा सकते हैं। दुनिया के 100 से ज्यादा देशों में AK सीरीज की रायफल इस्तेमाल की जाती है।

शिक्षक दिवस की शुभकामनाएं! उन सभी शिक्षक गण को नमन जिन्होंने हमें आगे बढ़ाने में मदद की।

विश्व के तमाम देशों में शिक्षक दिवस को भिन्न भिन्न रूपो में मनाया जाता है। किसी देश में छुट्टी घोषित कर मनाया जाता हैं तो कहीं कार्य को करते हुए मनाया जाता हैं। भारत में शिक्षक दिवस को बहुत ही खूबसूरत ढ़ंग से मनाया जाता हैं। जिनमें स्कूली बच्चे अपना तरह तरह के कार्यक्रम नृत्य नाटक आदि कर के मानते है। भारत में शिक्षक दिवस 5 सितंबर को प्रत्येक वर्ष मनाया जाता है। भारत के भूतपूर्व राष्ट्रपति डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिन के अवसर पर मनाया जाता है।

हम सभी आज जो भी हैं अपने शिक्षकों के प्रयासों और नेक मार्गदर्शन के कारण ही हैं। भारतीय जीवन-दर्शन में गुरुओं को ईश्वर से भी बढ़कर बताया गया है। भिन्न भिन्न कवी, लेखकों ने गुरु की महिमा को अपने अपने विचारों को भिन्न भिन्न तरीको से व्यक्त किया है।
कबीर दास जी कहते हैं...
गुरु गोविन्द दोऊ खड़े काके लागै पाएं ।
बलिहारी गुरु आपने गोविन्द दिओ बताए।।

शिक्षक दिवस की शुरुआत और इसके इतिहास के बारे में बात करें तो द्वितीय राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म 5 सितंबर 1888 को तमिलनाडु में हुआ था। उन्हीं के सम्मान में इस दिन को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। डॉ. राधाकृष्णन देश के द्वितीय राष्ट्रपति थे और उन्हें भारतीय संस्कृति के संवाहक, प्रख्यात शिक्षाविद्, महान दार्शनिक और एक आस्थावान हिन्दू विचारक के तौर पर याद किया जाता है। पूरे देश को अपनी विद्वता से अभिभूत करने वाले डा. राधाकृष्णन को भारत सरकार ने सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से अलंकृत किया था।
गुरुर्ब्रह्मा ग्रुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः ।
गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः ॥

इस शिक्षक दिवस के अवसर पर हम उन तमाम गुरुओं को नमन वंदन करते।

Friday, September 4, 2020

जाने जनेऊ क्यों कराया जाता हैं। क्या जनेऊ के लिए ब्राम्हण होना अनिवार्य है। Part 1

जनेऊ का नाम सुनते ही सबसे पहले जो चीज़ मन मे आती है वो है धागा दूसरी चीज है ब्राम्हण। जनेऊ का संबंध क्या सिर्फ ब्राम्हण से है , ये जनेऊ पहनाए क्यों जाते है। जनेऊ को उपवीत, यज्ञसूत्र, व्रतबन्ध, बलबन्ध, मोनीबन्ध और ब्रह्मसूत्र के नाम से भी जाना जाता है। हिन्दू धर्म के 24 संस्कार होता है। (आप सभी को 16 संस्कार पता होंगे लेकिन वो प्रधान संस्कार है। 8 उप संस्कार होता है।) उनमें से एक ‘उपनयन संस्कार’ के अंतर्गत ही जनेऊ पहनई जाती है। जिसे ‘यज्ञोपवीतधारण करने वाले व्यक्ति को सभी नियमों का पालन करना अनिवार्य होता है। उपनयन का शाब्दिक अर्थ है "सन्निकट ले जाना" और उपनयन संस्कार का अर्थ है "ब्रह्म (ईश्वर) और ज्ञान के पास ले जाना"
हिन्दू धर्म में प्रत्येक हिन्दू का कर्तव्य है जनेऊ पहनना और उसके नियमों का पालन करना। हर हिन्दू जनेऊ पहन सकता है। परंतु उसको कुछ नियमों का पालन करना होता है। ब्राह्मण ही नहीं समाज का हर वर्ग जनेऊ धारण कर सकता है। जनेऊ धारण करने के बाद ही द्विज बालक को यज्ञ तथा स्वाध्याय करने का अधिकार प्राप्त होता था। द्विज का अर्थ होता है दूसरा जन्म। मतलब सीधा है जनेऊ संस्कार के बाद ही शिक्षा का अधिकार मिलता था। और जो शिक्षा नही ग्रहण करता था उसे शूद्र की श्रेणी में रखा जाता था (वर्ण व्यवस्था)। लड़की जिसे आजीवन ब्रह्मचर्य का पालन करना हो, वह जनेऊ धारण कर सकती है। ब्रह्मचारी तीन और विवाहित छह धागों की जनेऊ पहनता है। यज्ञोपवीत के छह धागों में से तीन धागे स्वयं के और तीन धागे पत्नी के बतलाए गए हैं।

जनेऊ का आध्यात्मिक महत्व
जनेऊ में तीन-सूत्र:- त्रिमूर्ति ब्रह्मा, विष्णु और महेश के प्रतीक। देवऋण, पितृऋण और ऋषिऋण के प्रतीक।सत्व, रज और तम के प्रतीक होते है। साथ ही ये तीन सूत्र गायत्री मंत्र के तीन चरणों के प्रतीक है तो तीन आश्रमों के प्रतीक भी। जनेऊ के एक-एक तार में तीन-तीन तार होते हैं। अत: कुल तारों की संख्‍या नौ होती है। इनमे एक मुख, दो नासिका, दो आंख, दो कान, मल और मूत्र के दो द्वारा मिलाकर कुल नौ होते हैं। इनका मतलब है, हम मुख से अच्छा बोले और खाएं, आंखों से अच्छा देंखे और कानों से अच्छा सुने। जनेऊ में पांच गांठ लगाई जाती है, जो ब्रह्म, धर्म, अर्ध, काम और मोक्ष का प्रतीक है। ये पांच यज्ञों, पांच ज्ञानेद्रियों और पंच कर्मों के भी प्रतीक है।
जनेऊ की लंबाई:- जनेऊ की लंबाई 96 अंगुल होती है क्यूंकि जनेऊ धारण करने वाले को 64 कलाओं और 32 विद्याओं को सीखने का प्रयास करना चाहिए। 32 विद्याएं चार वेद, चार उपवेद, छह अंग, छह दर्शन, तीन सूत्रग्रंथ, नौ अरण्यक मिलाकर होती है। 64 कलाओं में वास्तु निर्माण, व्यंजन कला, चित्रकारी, साहित्य कला, दस्तकारी, भाषा, यंत्र निर्माण, सिलाई, कढ़ाई, बुनाई, दस्तकारी, आभूषण निर्माण, कृषि ज्ञान आदि आती हैं।
जनेऊ पहनने का नियम:- 
"जनेऊ बाएं कंधे से दाये कमर पर पहनना चाहिये"
मल-मूत्र विसर्जन के दौरान जनेऊ को दाहिने कान पर चढ़ा लेना चाहिए। और हाथ स्वच्छ करके ही उतारना चाहिए। इसका मूल भाव यह है कि जनेऊ कमर से ऊंचा हो जाए और अपवित्र न हो। यह बेहद जरूरी होता है।
मतलब साफ है कि जनेऊ पहनने वाला व्यक्ति ये ध्यान रखता है कि मलमूत्र करने के बाद खुद को साफ करना है। इससे उसको इंफेक्शन का खतरा कम से कम हो जाता है।

Thursday, September 3, 2020

जाने डॉ. भीमराव अम्बेडकर की कुछ सच्चाई जो मीडिया नहीं बताया।

आज हम आपको बताने जा रहे है डॉ. बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर की कुछ सच्चाइयां। जो आज तक कोई पत्रकार ने सामने लाने की कोशिश नहीं की ओर ना ही सामने अा पाया। और आम जनता वही जान पाई जो उससमय कि सरकार और बुद्धिजीवियों ने बताना चाहा।

1 मिथक:- अंबेडकर बहुत मेधावी थे।
सच्चाई:- अंबेडकर ने अपनी सारी शैक्षणिक डिग्रीयां तीसरी श्रेणी में पास की।

2 मिथक:- अंबेडकर बहुत गरीब थे।
सच्चाई:- जिस जमाने में लोग फोटो नहीं खींचा पाते थे उस जमाने में अंबेडकर की बचपन की बहुत सी फोटो है वह भी कोट पैंट में।

3 मिथक:- अंबेडकर ने शूद्रों को पढ़ने का अधिकार दिया।
सच्चाई:- अंबेडकर के पिता जी खुद उस ज़माने में आर्मी में सूबेदार मेजर थे।

4 मिथक:- अंबेडकर को पढ़ने नहीं दिया गया।
सच्चाई:- उस जमाने में अंबेडकर को गुजरात बढ़ोदरा के क्षत्रिय राजा सीयाजी गायकवाड़ ने स्कॉलरशिप दी और विदेश पढ़ने तक भेजा और ब्राह्मण गुरु जी ने अपना नाम अंबेडकर दिया।

5 मिथक:- अंबेडकर ने नारियों को पढ़ने का अधिकार दिया।
सच्चाई:- अंबेडकर के समय ही 20 पढ़ी लिखी औरतों ने संविधान लिखने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
6 मिथक:- अंबेडकर स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे।
सच्चाई:- अंबेडकर ने सदैव अंग्रेजों का साथ दिया भारत छोड़ो आंदोलन की जम कर खिलाफत की अंग्रेजो को पत्र लिखकर बोला कि आप और दिन तक देश में राज करिए उन्होंने जीवन भर हर जगह आजादी की लड़ाई का विरोध किया।

7 मिथक:- अम्बेडकर बड़े शक्तिशाली थे।
सच्चाई:- 1946 के चुनाव में पूरे भारत भर में अंबेडकर की पार्टी की जमानत जप्त हुई थी।

8 मिथक:- अंबेडकर ने अकेले आरक्षण दिया।
सच्चाई:- आरक्षण संविधान सभा ने दिया जिसमे कुल 389 लोग थे अंबेडकर का उसमें सिर्फ एक वोट था आरक्षण सब के वोट से दिया गया था।

9 मिथक:- अंबेडकर बहुत विद्वान था।
सच्चाई:- अंबेडकर संविधान के प्रारूप समिति के अध्यक्ष थे। स्थाई समीति के अध्यक्ष परम् विद्वान डाक्टर राजेंद्र प्रसाद जी थे।

10 मिथक:- अंबेडकर राष्ट्रवादी थे।
सच्चाई:- 1931मे गोलमेज सम्मेलन में गांधी जी भारत के टुकड़े करने की बात कर दलितों के लिए अलग दलिस्तान की मांग की थी।
11 मिथक:- अंबेडकर ने भारत का संविधान लिखा।
सच्चाई:- जो संविधान अंग्रेजों के1935 के मैग्नाकार्टा से लिया गया हो और विश्व के 12 देशों से चुराया गया है उसे आप मौलिक संविधान कैसें कह सकते है? अभी भी सोसायटी एक्ट में 1860 लिखा जाता है।

12 मिथक:- आरक्षण को लेकर संविधान सभा के सभी सदस्य सहमत थे।
सच्चाई:- इसी आरक्षण को लेकर सरदार पटेल से अंबेडकर की कहा सुनी हो गई थी। पटेल जी संविधान सभा की मीटिंग छोड़कर बाहर चले गये थे बाद में नेहरू के कहने पर पटेल जी वापस आये थे। सरदार पटेल ने कहा कि जिस भारत को अखण्ड भारत बनाने के लिए भारतीय देशी राजाओं, महराजाओं, रियासतदारों, तालुकेदारों ने अपनी 546 रियासतों को भारत में विलय कर दिया जिसमें 513 रियासतें क्षत्रिय राजाओं की थी।इस आरक्षण के विष से भारत भविष्य में खण्डित होने के कगार पर पहुंच जाएगा।

13 मिथक:- अंबेडकर स्वेदशी थे।
सच्चाई:- देश के सभी नेताओं का तत्कालीन पहनावा भारतीय पोशाक धोती -कुर्ता, पैजामा-कुर्ता, सदरी व टोपी,पगड़ी, साफा, आदि हुआ करता था।गांधी जी ने विदेशी पहनावा व वस्तुओं की होली जलवाई थी। यद्यपि कि नेहरू, गाधीं व अन्य नेता विदेशी विश्वविद्यालय व विदेशों में रहे भी थे फिर भी स्वदेशी आंदोलन से जुड़े रहे। अंबेडकर की कोई भी तस्वीर भारतीय पहनावा में नही है। अंबेडकर अंग्रेजिएत का हिमायती थे।
अंत में कहना चाहता हूं कि अंग्रेज जब भारत छोड़ कर जा रहे थे तो अपने नापाक इरादों को जिससे भविष्य में भारत खंडित हो सके के रुप में अंग्रेजियत शख्सियत अंबेडकर की खोज कर लिए थे।



मेरा उद्देश्य किसी की भावनाओं को ठेस पहुचाना नही बल्कि सच्चाई बयां करने की कोशिश करना है। तथ्यों की जानकारी आप स्वयं भी प्राप्त कर सकते है।

मैं तो इंसानियत से मजबूर था तुम्हे बीच मे नही डुबोया" मगर तुमने मुझे क्यों काट लिया!

नदी में बाढ़ आती है छोटे से टापू में पानी भर जाता है वहां रहने वाला सीधा साधा1चूहा कछुवे  से कहता है मित्र  "क्या तुम मुझे नदी पार करा ...