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Monday, July 13, 2020

भारत-चीन तनाव के बीच आयी अच्छी खबर अमेरिका ने पूरा किया अपना अटैक हेलीकॉप्‍टर अपाचे, की डिलीवरी।

अमेरिकी एविएशन कंपनी बोइंग ने इंडियन एयरफोर्स (आईएएफ) को अटैक हेलीकॉप्‍टर अपाचे तय संख्‍या की डिलीवरी कर दी है। कंपनी की तरफ से रिलीज जारी कर इस बात की जानकारी दी गई है। अब आईएएफ के पास 22 अपाचे अटैक हैं। यह जानकारी ऐसे समय में आई है जब पूर्वी लद्दाख में चीन के साथ लाइन ऑफ एक्‍चुअल कंट्रोल (एलएसी) पर तनाव जारी है।
अमेरिका का दो टर्बोशाफ्ट इंजन और चार ब्लेड वाला अटैक हेलीकॉप्टर है। यह हेलीकॉप्टर अपने आगे लगे सेंसर की मदद से रात में उङान भर सकता है। इसकी पहली उड़ान 30 सितंबर 1975 में हुई थी। यह दुनिया में सबसे ज्यादा प्रयोग होने वाला अटैक हेलीकॉप्टर है।
  • विशेषता
  • 👉चालकदल: 2 पायलट और सह पायलट,गनर कि बैैैैठ 
  • 👉लंबाई: 17.73 मीटर
  • 👉रोटर व्यास: 48 मीटर
  • 👉ऊंचाई: 3.87 मीटर
  • 👉डिस्क क्षेत्र: 168.11 मीटर²
  • 👉खाली वजन: 5,165 किलोग्राम
  • 👉उपयोगी भार: 8,000 किलोग्राम 
  • 👉अधिकतम उड़ान वजन: 10,433 किलोग्राम
  • 👉धड़ की लंबाई: 15.06 मीटर
  • 👉रोटर प्रणाली: 4 ब्लेड मुख्य रोटर, 4 ब्लेड पूंछ रोटर
  • 👉पावर प्लांट: 2× जनरल इलेक्ट्रिक टी700   जीई 701 टर्बोसॉफ्ट, 1,690 अश्वशक्ति () प्रत्येक से
  • प्रदर्शन
  • 👉इससे अधिक गति कभी नहीं: 365 किमी/घंटा
  • 👉अधिकतम गति: 293 किमी/घंटा
  • 👉क्रूज गति: 265 किमी/घंटा
  • 👉रेंज: 476 किमी/घंटा धनुष रडार मस्तूल के साथ
  • 👉हमले की त्रिज्या: 480 किमी 
  • 👉फेरी रेंज: 1,900 किमी 
  • 👉अधिकतम सेवा सीमा: 6,400 मीटर न्यूनतम लोड
  • 👉आरोहन दर: 12.7 मीटर/सेकंड 
  • 👉डिस्क लोडिंग: 47.9 किलोग्राम/मीटर² 
  • 👉थ्रस्ट/वजन: 0.31 किलोवाट/किलोग्राम
  • अस्र-शस्र
  • 👉गन्स: 1× 30 मिमी एम 230 चेंेन गन 200 गोल के साथ
  • 👉हार्ड प्वाइंट: ठूंठ पंखों पर चार तोरण स्टेशन
  • 👉रॉकेट्स: हाइड्रा 70 70 मिमी, सीआरवी7 70 मिमी, तथा एपीकेडब्लूएस 70 मिमी हवा से जमीन रॉकेट
  • 👉मिसाइलें: आमतौर पर  एजीएम-114  हेलफायर वेरिएंट; एआईएम-92 स्टिंगर 

Sunday, July 12, 2020

गुजरात कांग्रेस का उत्तराधिकारी मिला हार्दिक पटेल को कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया।

ऐसे राजनितिक गलियारों में चर्चाएं तमाम होती है। किसी की कुर्सी जाती हैं तो किसी की कुर्सी आती हैं जैसा कि पहले से होता आ रहा है। आज भी ठीक वैसा ही हुआ गुजरात कांग्रेस ने गुजरात में पाटीदार आरक्षण आंदोलन से चर्चित हुए युवा नेता हार्दिक पटेल को शनिवार को प्रदेश कांग्रेस कमेटी का कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त किया। पार्टी के संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल की ओर से जारी बयान के मुताबिक कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने हार्दिक पटेल की तत्काल प्रभाव से नियुक्ति को स्वीकृति प्रदान की। 
इससे पहले कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने शनिवार को पार्टी के लोकसभा सदस्यों के साथ डिजिटल बैठक की जिसमें देश की वर्तमान राजनीतिक परिस्थिति एवं कोरोना महामारी के हालात पर चर्चा की गई। हालांकि इस दौरान कई सांसदों ने यह मांग की कि राहुल गांधी को फिर से पार्टी की कमान संभालनी चाहिए। सूत्रों के मुताबिक, इस बैठक में के. सुरेश, अब्दुल खालिक, गौरव गोगोई और कुछ अन्य सांसदों ने राहुल गांधी से आग्रह किया कि वह फिर से पार्टी की कमान संभालें।
दिग्विजय के मुताबिक, कांग्रेस नेतृत्व को संगठन के निर्माण की चुनौती हाथ में लेनी चाहिए। यहीं पर हमें राहुल और प्रियंका के बहुआयामी नेतृत्व की जरूरत है। मुझे भरोसा है कि दोनों में यह दम और साहस है कि वे ‘मोदी-शाह जोड़ी’ का मुकाबला कर सकें।

Saturday, July 11, 2020

World Population Day 11 July. बढ़ती जनसंख्या देश के लिए बड़ी मुसीबत।

दुनिया की लगभग 18 प्रतिशत जनसंख्या भारत में निवास करती है, जबकि दुनिया की केवल 2.4 फीसद जमीन, चार फी़सद पीने का पानी और 3.3 फीसद वन ही भारत में उपलब्ध हैं। इसलिए भारत में जनसंख्या-संसाधन अनुपात असंतुलित है, जो एक बहुत ही चिंता का विषय है। यह विषय तब और गंभीर हो जाता है, जब जनसंख्या लगातार बढ़ रही हो और संसाधन लगातार कम होते जा रहे हों। बेरोजगारी से लेकर गरीबी तक, अनाज की उपलब्धता से लेकर शिक्षा तक और स्वास्थ्य सुविधाओं से लेकर यातायात व्यवस्था के भार से संबंधित विभिन्न क्षेत्रों के तमाम आंकड़ों से यह आसानी से समझा जा सकता है कि आबादी की चुनौती कितनी बड़ी और गंभीर है।
विश्व जनसंख्या दिवस हर वर्ष 11 जुलाई को मनाया जाने वाला कार्यक्रम है। इसका उद्देश्य जनसंख्या  सम्बंधित समस्याओं पर वैश्विक चेतना जागृत करना है। यह आयोजन 1989 में संयुक्तत राष्ट्र विकास कार्यक्रम की गवर्निंग काउंसिल द्वारा स्थापित किया गया था । यह 11 जुलाई 1987 को पांच बिलियन दिवस में सार्वजनिक हित से प्रेरित था, जिसकी अनुमानित तारीख जिस पर दुनिया की आबादी पांच अरब लोगों तक पहुंच गई थी। विश्व जनसंख्या दिवस का उद्देश्य विभिन्न जनसंख्या मुद्दों पर लोगों की जागरूकता बढ़ाना है जैसे कि परिवार नियोजन, लिंग समानता , गरीबी , मातृ स्वास्थ्य और मानव अधिकारों का महत्व। विश्व की आबादी आज साढ़े सात अरब को पार कर चुकी है, लेकिन 11 जुलाई 1987 को जब यह आंकड़ा पांच अरब हुआ तो लोगों के बीच जनसंख्या संबंधी मुद्दों पर जागरूकता फैलाने के लिए विश्व जनसंख्या दिवस की नींव रखी गई।
 इसमें कोई संदेह नहीं कि आज बढ़ती जनसंख्या पूरे विश्व के लिए सबसे बड़ा खतरा है, लेकिन भारत की दृष्टि से यदि इस खतरे की बात करें तो यह बहुत गंभीर एवं चिंतनीय है। इस खतरे को भांपते हुए चीन जैसे देश दशकों पहले इसका समाधान जनसंख्या नियंत्रण कानून के रूप में निकालकर लाए जो आज विश्व की दूसरे नंबर की अर्थव्यवस्था के रूप में हम सभी के सामने है।
वर्तमान में भारत विश्व का दूसरा सर्वाधिक जनसंख्या वाला (लगभग 137 करोड) देश है। विश्व में चीन पहले स्थान पर है। आजादी के बाद 34 करोड़ से बढ़कर हम लगभग 137 करोड हो गए हैं। प्रतिवर्ष एक करोड़ साठ लाख लोग बढ़ रहे हैं। अगर इसी तरह बढ़ती रही जनसंख्या तो देश में भुखमरी और तरह-तरह की बीमारियां आर्थिक संकट आदि आने तय है। विश्व जनसंख्या दिवस पर सरकार को कोई सकारात्मक कदम उठाने चाहिए जिससे जनसंख्या को रोका जा सके और आने वाले समय में भुखमरी से मरने वालों की जान बचाई जा सके।

'जय जवान, जय किसान' का नारा देने वाले लाल बहादुर शास्त्री का योगदान।

लाल बहादुर शास्त्री एक दुर्लभ भारतीय राजनेता 
दो घंटे युद्ध और चलता, तो भारत की सेना ने लाहोर तक कब्जा कर लिया होता। लेकिन तभी पाकिस्तान को लगा कि जिस रफ्तार से भारत की सेना आगे बढ़ रही हमारा तो पूरा अस्तित्व ही खत्म हो जाएगा।
(भारत और पाकिस्तान के बीच 1965 का युद्ध
भारत पाक युद्ध का भाग
तिथि - अगस्त – सितम्बर 23, 1965
स्थान -भारतीय उपमहाद्वीप
परिणाम-संयुक्त राष्ट्र के घोषनापत्र के द्वारा युद्धविराम)

तभी पाकिस्तान ने अमेरिका से कहा कि वो किसी तरह से युद्ध रुकवा दे। अमेरिका जानता था कि शास्त्री जी इतनी जल्दी नहीं मानने वाले थे। क्यूँ कि वो पहले भी दो -तीन बार भारत को धमका चुका था। धमका कैसे चुका था?
अमेरिका से गेहूं आता था भारत के लिए PL 48 स्कीम के अंडर। PL मतलब Public Law 48। जैसे भारत मे सविधान मे धराए होती है, ऐसे अमेरिका मे PL होता है।तो बिलकुल लाल रंग का सड़ा हुआ गेंहू अमेरिका से भारत मे आता था। और ये समझोता पंडित नेहरू ने किया था। जिस गेंहू को अमेरिका मे जानवर भी नहीं खाते थे उसे भारत के लोगो के लिए आयात करवाया जाता था। आपके घर मे कोई बुजुर्ग हो आप उनसे पूछ सकते हैं। कितना घटिया गेहूं होता था वो। तो अमेरिका ने भारत को धमकी दी कि हम भारत को गेहूं देना बंद कर देंगे। तो शास्त्री जी ने कहा हाँ कर दो। 
फिर कुछ दिन बाद अमेरिका का ब्यान आया कि अगर भारत को हमने गेंहू देना बंद कर दिया। तो भारत के लोग भूखे मर जाएँगे। शास्त्री जी ने कहा हम बिना गेंहू के भूखे मारे या बहुत अधिक खा के मरे। तुम्हें क्या तकलीफ है? हमे भूखे मारना पसंद होगा बेशर्ते तुम्हारे देश का सड़ा हुआ गेंहू खाके। एक तो हम पैसे भी पूरे दे ऊपर से सड़ा हुआ गेहूं खाये। नहीं चाहीये तुम्हारा गेंहू। फिर शास्त्री ने दिल्ली मे एक रामलीला मैदान मे लाखो लोगो से निवेदन किया कि एक तरफ पाकिस्तान से युद्ध चल रहा है। ऐसे हालातो मे देश को पैसे कि बहुत जरूरत पड़ती है। सब लोग अपने फालतू खर्चे बंद करे। ताकि वो Domestic Saving से देश के काम आए। या आप सीधे सेना के लिए दान दे। और हर व्यति सप्ताह से एक दिन सोमवार का वर्त जरूर रखे। तो शास्त्री जी के कहने पर देश के लाखो लोगो ने सोमवार को व्रत रखना शुरू कर दिया।
हुआ ये कि हमारे देश मे ही गेहु बढ्ने लगा। और शास्त्री जी भी खुद सोमवार का व्रत रखा और आगे भी रखते थे। शास्त्री जी ने जो लोगो से कहा पहले उसका पालन खुद किया। उनके घर मे बाई आती थी। जो साफ सफाई और कपड़े धोती थी।तो शास्त्री जी उसको हटा दिया और बोला। देश हित के लिए मैं इतना खर्चा नहीं कर सकता। मैं खुद ही घर कि सारी सफाई करूंगा। क्योंकि पत्नी ललिता देवी बीमार रहा करती थी। और शास्त्री जी अपने कपड़े भी खुद धोते थे। उनके पास सिर्फ दो जोड़ी धोती कुरता ही थी। उनके घर मे एक ट्यूटर भी आया करता था जो उनके बच्चो को अँग्रेजी पढ़ाया करता
था। तो शास्त्री जी ने उसे भी हटा दिया। तो उसने शास्त्री जी ने कहा कि आपका बच्चा अँग्रेजी मे फेल हो जाएगा। तब शास्त्री जी ने कहा होने दो। देश के हजारो बच्चे अँग्रेजी मे ही फेल होते है तो इसे भी होने दो। अगर अंग्रेज़ हिन्दी मे फेल हो सकते है तो भारतीय अँग्रेजी मे फेल हो सकते हैं। ये तो स्व्भविक है क्योंकि अपनी भाषा ही नहीं है ये।
 एक दिन शास्त्री जी की पत्नी ने कहा कि आपकी धोती फट गई है। आप नई धोती ले आईये। शास्त्री जी ने कहा बेहतर होगा, कि सूई धागा लेकर तुम इसको सिल दो। मैं नई धोती लाने की कल्पना भी नहीं कर सकता। मैंने सब कुछ छोड़ दिया है पगार लेना भी बंद कर दिया है। और जितना हो सके कम से कम खर्चे मे घर का खर्च चलाओ। अंत मे शास्त्री जी युद्ध के बाद समझोता करने ताशकंद गए। और फिर जिंदा कभी वापिस नहीं लौट पाये। पूरे देश को बताया गया की उनकी मृत्यु हो गई। जब कि उनकी हत्या कि गई थी।
भारत मे शास्त्री जी जैसा सिर्फ एक मात्र प्रधानमंत्री हुआ। जिसने अपना पूरा जीवन आम आदमी की तरह व्यतीत किया। और पूरी ईमानदारी से देश के लिए अपना फर्ज अदा किया। जिसने जय जवान और जय किसान का नारा दिया। क्योंकि उनका मानना था देश के लिए अनाज पैदा करने वाला किसान और सीमा कि रक्षा करने वाला जवान दोनों देश ले लिए सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है। स्वदेशी की राह पर उन्होने देश को आगे बढ़ाया। विदेशी कंपनियो को देश मे घुसने नहीं दिया।अमेरिका का सड़ा गेंहू बंद करवाया। ऐसा प्रधानमंत्री भारत को शायद ही कभी मिले ! अंत मे जब उनकी Paas Book चेक की गई तो सिर्फ 365 रुपए 35 पैसे थे उनके बैंक एकाउंट मे। शायद आज कल्पना भी नहीं किया जा सकता हैं की ऐसा नेता भारत मे कभी हुआ था ना होगा।

सोमनाथ मंदिर के उदघाटन के लिए डा. राजेंद्र प्रसाद को बड़ी कीमत चुकानी पड़ी।

सोमनाथ मंदिर के लिए डा. राजेंद्र प्रसाद को बड़ी कीमत चुकानी पड़ी, ये जगजाहिर है कि जवाहर  लाल नेहरू सोमनाथ मंदिर के पक्ष में नहीं थे, महात्मा गांधी जी की सहमति से सरदार पटेल ने सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण का काम शुरु किया था। पटेल की मौत के बाद मंदिर की जिम्मेदारी के एम मुंशी पर आ गई। मुंशी नेहरू की कैबिनेट के मंत्री थे। गांधी और पटेल की मौत के बाद नेहरू का विरोध और तीखा होने लगा था। एक मीटिंग में तो उन्होंने मुंशी की फटकार भी लगाई थी। उन पर हिंदू-रिवाइवलिज्म और हिंदुत्व को हवा देने का आरोप भी लगा दिया। लेकिन, मुंशी ने साफ साफ कह दिया था कि सरदार पटेल के काम को अधूरा नहीं छोड़ेगे।
के एम मुंशी भी गुजराती थे, इसलिए उन्होंने सोमनाथ मंदिर बनवा के ही दम लिया। फिर उन्होंने मंदिर के उद्घाटन के लिए देश के पहले राष्ट्रपति डा. राजेंद्र प्रसाद को न्यौता दे दिया। उन्होंने इस न्यौते को बड़े गर्व से स्वीकार किया लेकिन जब जवाहर लाल नेहरू की इसका पता चला तो वे नाराज हो गए। उन्होंने पत्र लिख कर डा. राजेंद्र प्रसाद को सोमनाथ जाने से मना कर दिया। राजेंद्र बाबू भी तन गए। नेहरू की बातों को दरकिनार कर वो सोमनाथ गए और जबरदस्त भाषण दिया था। जवाहर लाल नेहरू को इससे जबरदस्त झटका लगा। उनके इगो को ठेंस पहुंची। उन्होंने इसे अपनी हार मान ली। डा. राजेंद्र प्रसाद को सोमनाथ जाना बड़ा महंगा पड़ा क्योंकि इसके बाद नेहरू ने जो इनके साथ सलूक किया वो हैरान करने वाला है।
सोमनाथ मंदिर की वजह से डा. राजेंद्र प्रसाद और जवाहर लाल नेहरू के रिश्ते में इतनी कड़वाहट आ गई कि जब राजेंद्र बाबू राष्ट्रपति पद से मुक्त हुए तो नेहरू ने उन्हें दिल्ली में घर तक नहीं दिया। राजेंद्र बाबू दिल्ली में रह कर किताबें लिखना चाहते थे। लेकिन, नेहरू ने उनके साथ अन्याय किया। एक पूर्व राष्ट्रपति को सम्मान मिलना चाहिए, उनका जो अधिकार था उससे उन्हें वंचित कर दिया गया. आखिरकार, डा. राजेंद्र प्रसाद को पटना लौटना पड़ा. पटना में भी उनके पास अपना मकान नहीं था। पैसे नहीं थे। नेहरू ने पटना में भी उन्हें कोई घर नहीं दिया जबकि वहां सरकारी बंगलो और घरों की भरमार है।
डा. राजेंद्र प्रसाद आखिरकार पटना के सदाकत आश्रम के एक सीलन भरे कमरे में रहने लगे। न कोई देखभाल करने वाला और न ही डाक्टर। उनकी तबीयत खराब होने लगी। उन्हें दमा की बीमारी ने जकड़ लिया। दिन भर वो खांसते रहते थे। अब एक पूर्व राष्ट्रपति की ये भी तो दुविधा होती है कि वो मदद के लिए गिरगिरा भी नहीं सकता। लेकिन, राजेंद्र बाबू के पटना आने के बाद नेहरू ने कभी ये सुध लेने की कोशिश भी नहीं कि देश का पहला राष्ट्रपति किस हाल में जी रहा है?
 
इतना ही नहीं, जब डा. राजेंद्र प्रसाद की तबीयत खराब रहने लगी, तब भी किसी ने ये जहमत नहीं उठाई कि उनका अच्छा इलाज करा सके। बिहार में उस दौरान कांग्रेस पार्टी की सरकार थी। आखिर तक डा. राजेन्द्र बाबू को अच्छी स्वास्थ्य सुविधाएं नहीं मिलीं। उनके साथ बेहद बेरुखी वाला व्यवहार होता रहा। मानो ये किसी के निर्देश पर हो रहा हो। उन्हें कफ की खासी शिकायत रहती थी. उनकी कफ की शिकायत को दूर करने के लिए पटना मेडिकल कालेज में एक मशीन थी। उसे भी दिल्ली भेज दिया गया। यानी राजेन्द्र बाबू को मारने का पूरा और पुख्ता इंतजाम किया गया।
एक बार जय प्रकाश नारायण उनसे मिलने सदाकत आश्रम पहुंचे। वो देखना चाहते थे कि देश पहले राष्ट्रपति और संविधान सभा के अध्यक्ष आखिर रहते कैसे हैं। जेपी ने जब उनकी हालत देखी तो उनका दिमाग सन्न रह गया। आंखें नम हो गईं। उन्हें समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर वो क्या कहें। जेपी ने फौरन अपने सहयोगियों से कहकर रहने लायक बनवाया। लेकिन, उसी कमरे में रहते हुए राजेन्द्र बाबू की 28 फरवरी,1963 को मौत हो गई. 
डा. राजेंद्र प्रसाद की मौत के बाद भी नेहरू का कलेजा नहीं पसीजा। उनकी बेरुखी खत्म नहीं हुई। नेहरू ने उनकी अंत्येष्टि में शामिल तक नहीं हुए। जिस दिन उनकी आखरी यात्रा थी उस दिन नेहरू जयपुर चले गए।इतना ही नहीं, राजस्थान के राज्यपाल डां. संपूर्णानंद पटना जाना चाह रहे थे, लेकिन नेहरू ने उन्हें वहां जाने से मना कर दिया। जब नेहरु को मालूम चला कि संपूर्णानंद जी पटना जाना चाहते हैं, तो उन्होंने संपूर्णानंद से कहा कि ये कैसे मुमकिन है कि देश का प्रधानमंत्री किसी राज्य में आए और उसका राज्यपाल वहां से गायब हो। इसके बाद डा. संपूर्णानंद ने अपना पटना जाने का कार्यक्रम रद्द किया। 
यही नहीं, नेहरु ने राजेन्द्र बाबू के उतराधिकारी डा. एस. राधाकृष्णन को भी पटना न जाने की सलाह दी। लेकिन, राधाकृष्णन ने नेहरू की बात नहीं मानी और वो राजेन्द्र बाबू के अंतिम संस्कार में भाग लेने पटना पहुंचे। जब भी दिल्ली के राजघाट से गुजरता हूं तो डा. राजेंद्र प्रसाद के साथ नेहरू के रवैये को याद करता हूं। अजीब देश है, महात्मा गांधी के बगल में संजय गांधी को जगह मिल सकती है लेकिन देश के पहले राष्ट्रपति के लिए इस देश में कोई इज्जत ही नहीं है। ऐसा लगता है कि इस देश में महानता और बलिदान की कॉपी राइट सिर्फ नेहरू-गांधी परिवार के पास है।

आइए जानें, नवाबों का शहर लखनऊ में क्या है खास।

पहले लखनऊ को ‘नवाबों के शहर’ के नाम से जाना जाता है, क्योंकि इस शहर का इतिहास इस शहर को सबसे अलग बनाता है। यहां का रहन सहन, खाना-पानी, तौर तरीके, भाषा, इमारतें-पार्क, पहनावा आदि। सब कुछ में राजसी जीवन की झलक दिखाई देती है। यहां की बोली की मिठास, मिठाई से ज्यादा मीठी हैं। इसलिए उत्तर प्रदेश का जिला और उत्तर प्रदेश की राजधानी ‘लखनऊ’ इस शहर को खास बनाता है। अगर आप भी लखनऊ घूमने की चाहत रखते है, तो इस शहर की नवाबी झलक को इन इमारतों में देख सकते हैं।

बड़ा इमामबाड़ा लखनऊ में भूलभुलैया नाम से भी मशहूर बड़े इमामबाड़े का निर्माण नवाब आसिफ उद्दौला ने करवाया था। लखनऊ के इस प्रसिद्ध इमामबाड़े का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व है। ये इमामबाड़ा एक नवाब के परोपकारी कदम का प्रतीक है जो अपनी प्रजा के हित को ध्‍यान में रख कर उठाया गया था। साल 1784 में नवाब ने अकाल राहत परियोजना के अन्तर्गत इसे बनवाया बड़ा इमामबाड़ा लखनऊ की एक ऐतिहासिक धरोहर है। मस्जिद परिसर के आंगन में दो ऊंची मीनारें हैं।इमामबाड़े की इमारत एक विशाल गुम्बदनुमा हॉल की तरह है, जो 50 मीटर लंबा और 15 मीटर ऊंचा है। एक अनुमान के अनुसार इसे बनाने में उस दौर में पांच से दस लाख रुपए का खर्च हुआ था। कहा तो ये भी जाता है कि इस इमारत के पूरा होने के बाद भी नवाब इसकी साज सज्जा पर चार से पांच लाख रुपए सालाना खर्च करते थे। इमामबाड़े के परिसर में एक अस़फी मस्जिद भी है, जहां मुस्लिम समाज के लोग ही जा सकते हैं। मस्जिद के आंगन में दो ऊंची मीनारें हैं।


इमामबाड़े से जुड़ी कहानियां इस इमामबाड़े से कई कहानिया भी जुड़ी हुई हैं। कहते हैं कि इस इमामबाड़े के अंदर अंडरग्राउंड कई रास्‍ते हैं। इनमें से एक गोमती नदी के तट पर खुलता है तो एक फैजाबाद तक जाता है। वहीं कुछ रास्‍ते इलाहाबाद और दिल्‍ली तक भी पहुंचते थे। ये भी कहा गया कि ये रास्‍ते वाकई अब भी मौजूद है पर दुर्घटनाओं के डर से उन्‍हें सील कर दिया गया है ताकि कोई उनके भीतर ना जा सके।


मोती महल लखनऊ में गोमती नदी के किनारे पर बना मोती महल। इसकी तीन इमारतें इस महल को खास बनाती हैं। इसे सआदत अली खां ने बनवाया था। मुबारक मंजिल और शाह मंजिल अन्य दो इमारतें हैं। बालकनी से जानवरों की लड़ाई और उड़ते पक्षियों को देखने हेतु नवाबों के लिए इन इमारतों को बनवाया गया था। राणा प्रताप मार्ग पर स्थित मोती महल में मुहब्बत और जंग की कहानी है। इसे यूं ही मोती महल नहीं कहते हैं। दरअसल 18वीं सदी में नवाब सआदत अली खां ने गोमती नदी के दायें किनारे पर एक आलीशान महल बनवाया था। इसके गुंबद की सूरत और चमक मोती जैसी थी इसलिए यह मोती महल कहलाया। इससे जुड़ी एक और कहानी भी है। जिसके अनुसार उनकी पत्नी मोती बेगम इसमें रहती थीं। पहले बेगम का नाम टाट महल था जिसे नवाब ने बदल दिया था। आसफुद्दौला के बनवाए शीशमहल की स्पर्धा में मोती महल की नींव पड़ी थी। नवाब की कई शादियां बनारस में हो चुकी थीं। उन सब में सआदत अली खां को टाट महल बेहद अजीज थीं। सआदत अली खां ने मोती महल इन्हीं के लिए बनवाया था। मोतीमहल में रहने से पहले टाट महल दौलत सराय में रहती थीं। उन्हें मोती के जेवरों के प्रति विशेष आकर्षण था। इस कारण बेगम के लिए नवाब ने मोतीमहल के गुंबद पर सीप की चमक से मोती की आब पैदा कर दी थी। 1866 में मिस्टर ब्रूस इंजीनियर के नक्शे पर मोती महल बनवाया गया था, जो अब तोड़ा जा चुका है। इस पुल के किनारे के सब घाट मोती महल घाट नाम से मशहूर हैं। इन घाटों के पूरब में एक महल की मरम्मत करवा कर जैकसन साहब बैरिस्टर रहा करते थे। अब उस महल को राजा ओयल ने ले लिया है। इसके सामने की ग्राउंड, मोती महल ग्राउंड कहलाती थी जहां अब स्टेडियम बन चुका है।

मौजूदा समय में स्थिति अब मोती महल में मोतीलाल नेहरू मेमोरियल सोसाइटी, भारत सेवा संस्थान, शिक्षा समिति और उप्र बाल कल्याण परिषद आदि के कार्यालय खुल गए हैं। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और पूर्व मुख्यमंत्री चंद्रभानु गुप्त की समाधि भी इसी क्षेत्र में बनी है।

हजरतगंज मार्केट हजरतगंज मार्केट, लखनऊ का केंद्र है, जो शहर के परिवर्तन चौक क्षेत्र में स्थित है और लखनऊ का सबसे प्रमुख शॉपिंग कॉम्लेक्स है। इसे 1810 में अमजद अली शाह ने बनवाया था यह मार्केट पहले क्वींरस मार्ग पर स्थित था जहां अंग्रेज अपनी गाडि़यां और बग्घी चलाने जाया करते थे।लखनऊ का सबसे प्रमुख चौराहा हजरतगंज चौराहा अब अटल चौराहे के नाम से जाना जनेलगा हैं। आठ सितंबर को नगर निगम की बैठक में इस प्रस्ताव पर महापौर संयुक्ता भाटिया ने मुहर लगा दी है। 

अंबेडकर पार्क उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के तौर मायावती ने लखनऊ के पॉश इलाके में अंबेडकर पार्क बनवाया था। अम्बेडकर उद्यान लखनऊ में स्थित एक दर्शनीय उद्यान वाला स्मारक है।

 यह भीमराव अम्बेडकर की याद में समर्पित है। अंबेडकर पार्क एक सार्वजनिक पार्क है और गोमती नगर, लखनऊ, उत्तर प्रदेश, में स्मारक है। यह अधिक औपचारिक रूप से डॉ. भीमराव अम्बेडकर सामाजिक परिवर्तन प्रांत स्थल के नाम से जाना जाता है और इसे "अम्बेडकर पार्क" के रूप में भी जाना जाता है।

 पार्क ज्योतिराव फुले, नारायण गुरू, बिरसा मुंडा, शाहूजी महाराज, भीमराव अम्बेडकर, कांशीराम के जीवन और यादों का सम्मान करते हैं और जिन्होंने मानवता, समानता और सामाजिक न्याय के लिए अपना जीवन समर्पित किया है। यह स्मारक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री मायावती ने अपने प्रशासन के दौरान बनाया था। बहुजन समाज पार्टी के नेतृत्व में।स्मारक की आधार शिला पहली बार 1995 में रखी गई थी। इससे पहले पार्क का नाम डॉ. भीमराव अम्बेडकर उद्यान था। सन् 2007 में पार्क के आगे नवीकरण और विकास किया। इसे शुरू में 14 मार्च 2008 को मुख्यमंत्री मायावती ने जनता के लिए खोल दिया था। पूरे स्मारक राजस्थान से लाए गए। यह पार्क लाल बलुआ पत्थर का उपयोग करके बनाया गया है।

राम मनोहर लोहिया पार्क  उत्तर प्रदेश के लखनऊ ज्वालानगर पूर्व में स्थित डॉ राम मनोहर लोहिया पार्क का निर्माण मुख्यमंत्री मायावती के कार्यकाल के दौरान करोड़ों रुपये खर्च कर सपा ने राजधानी में बने डॉ. राम मनोहर लोहिया पार्क को प्रदेश का सबसे खूबसूरत उद्यान बनााया राजधानी में गोमती नगर क्षेत्र में बने लोहिया पार्क का निर्माण कार्य बहुुत ही कुशलता पूर्वक किया गया है। इसे देखने के लिए पूरे देश प्रदेेश से लोग आते हैं। इसमें लगे हरे पेड़ पौधे लखनऊ की सुंदरता मेंंं चार चांद लगाते हैं।


जनेश्वर मिश्र पार्क
लखनऊ और एशिया का सबसे बड़ा पार्क यानि जनेश्वर पार्क हैं। लखनऊ में वर्ष 2014 में जनेश्वर मिश्र पार्क का अनावरण हुआ। इस पार्क में पेड़-पौधे,जोगिंग ट्रक, गोल्फ कोर्स, ओपन जिम साथ ही बच्चों के लिए शानदार झूले मौजूद हैं। इस पार्क में सब कुछ इतना भव्य है कि, आप एक बार आने के बाद इस पार्क में बार बार आना पसंद करेंगे।

यह पार्क लखनऊ शहर के गोमतीनगर एक्सटेंशन में लगभग 376 एकड़ में स्थित है...इस पार्क में आप गंडोला नाव का भी मजा ले सकते हैं। पर्यटक इस पार्क में इस पार्क में मिग 21 को देख सकते हैं साथ ही 40 एकड़ की झील में गंडोला नाव का मजा भी ले सकते हैं।यह बोट इटली की अहम विरासत में से एक मानी जाती है जिस जेनेश्वर मिश्रा पार्क में स्थापित किया गया है।
इतना ही नहीं पर्यटक इस झूले में पार्टी भी मना सकते हैं और साथ ही कैंडल लाईट डिनर का आनन्द भी लिया जा सकेगा। ये अपना पूरा एक चक्कर करीब 50 मिनट में पूरा करे सकता है।

Friday, July 10, 2020

कॉमेडियन जगदीप सूरमा भोपाली की अब तक की सफर!

जगदीप का जन्म 29 मार्च, 1939 को दतिया, मध्य प्रदेश में हुआ था। उनका असली नाम सैयद इश्तियाक अहमद जाफरी है। बॉलीवुड में इन्हें शोले फ़िल्म में प्रसिद्ध हुए किरदार की वजह से सूरमा भोपाली भी कहा जाता है।1975 में आयी फ़िल्म शोले में इन्हें सुरमा भोपाली का किरदार मिला था। जिसने इन्हें खूब प्रसिद्धि दिलाई।


बॉलीवुड के फेमस एक्टर और कॉमेडियन जगदीप का बुधवार, 8 जुलाई को निधन हो गया। बढ़ती उम्र की दिक्कतों के चलते जगदीप ने अपने मुंबई वाले घर में अंतिम सांस ली. वे 81 साल के थे। 


मुंबई में उनका अंतिम संस्कार किया गया। जगदीप के बेटे जावेद जाफरी और उनके करीबी जगदीप के अंतिम संस्कार में शामिल हुए. जगदीप का अंतिम संस्कार मुंबई में परिवारवालों और करीबियों की मौजूदगी में किया गया। इन्होंने अपने अभिनय से लाखो दिलों पे राज किया। 


इन्होंने 1953 से लेकर 2004 तक 400 से ज्यादा फिल्मों में अभिनय किया ओर लोगों के दिलो पे राज किया। 1953 में फिल्म आई पापी ओर दो बीघा जमीन से लेकर 2004 में फिल्म किस किस कि किस्मत तक 400 से ज्यादा फिल्मों में काम किया। इन सब फिल्मों में से एक फिल्म शोले जिसमें उनका किरदार सूरमा भोपाली का सबसे खास रहा। जो कि लोग आज भी सूरमा भोपाली के नाम से जानते है।


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