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Monday, August 17, 2020

आर्माडिलो एक ऐसा स्तनधारि जीव है जिसका कोई भी खूंखार जानवर कुछ नहीं बिगड़ सकता।

आर्माडिलो अमेरिकी महाद्वीप में पाया जाने वाला एक स्तनधारी जीव है। जो बहुत चालक और फुर्तीला जीव है। यह जीव किसी भी खतरे को आसानी से भाप लेता है। और खतरे के अनुसार अपने शरीर को बना लेता है। इसके शरीर के ऊपरी परत काफी मजबूत होता है।


आर्माडिलो साउथ अमेरिका का सबसे विचित्र जीवो में से एक है, जो विपत्ति के समय अपने आप को समेट कर काफी छोटा कर लेता है।


"आर्माडिलो" दुनिया का एक ऐसा जीव है, जिसकी बाहरी त्वचा बुलेप्रूफ जैकेट के सामान होती है। जो खूंखार जानवरो से उसकी रक्षा करता है। और कोई भी खूंखार जानवर उसकी कोई छती नहीं पहुंचता।


Sunday, August 16, 2020

एक एपिसोड का कितना चार्ज करते है, द कपिल शर्मा शो के हास्य कलाकार खजूर।

इंडिया बेस्ट ड्रामेबाज़’ सीजन 2 से अपने करियर की शुरुआत करने वाले कार्तिकेय राज आज किसी परिचय के मोहताज नहीं है। बिहार के पटना से आने वाले 12 साल के कॉमेडियन कार्तिक राज आपको तो याद ही होगा। टीवी चैनल के रियलिटी शो 'इंडिया बेस्ट ड्रामेबाज सीजन-2' के फाइनल में कार्तिक को कॉमिक रोल में बेस्ट एक्टर का अवॉर्ड मिला था। ये अवॉर्ड शो में मेहमान बनकर आए खुद कपिल शर्मा ने दिया था। कार्तिक की कॉमिक टाइमिंग को देखते हुए शो के जज साजिद खान और विवेक ऑबरॉय ने इनकी तुलना एक्टर गोविंदा तक से कर दी थी।

बिहार के पटना का रहने वाला 12 साल का वो लड़का जिसे ‘द कपिल शर्मा शो’ (The KapilSharma Show)ने नया नाम दिया था- खजूर। कपिल शर्मा शो का हिस्सा बनने से पहले खजूर को लोग उनके असल नाम कार्तिकेय राज (Kartikey Raj) से ही जानते थे। लेकिन साल 2016 में जब वे कपिल के नजरों में आए तो उनकी ना सिर्फ किस्मत बदली बल्कि टीवी की दुनिया में वो नन्हें हास्य कलाकार के रूप में भी ख्याति पाए।

 
मां है टेलर, पिता करते हैं 
जानकारी के मुताबिक, कार्तिक की मां कपड़े सिलतीं हैं जबकि पिता राजमिस्त्री (घर में बनाने वाले मजदूर) का काम करते हैं। मम्मी-पापा के अलावा कार्तिक की फैमिली में इनकी दो बहनें भी हैं, जो बिहार में पढ़ाई कर रही हैं।

आपको बता दें कि खजूर उर्फ कार्तिक राज की हर एक एपिसोड का चार्ज 1 से 2 लाख रुपया चार्ज करते है जो इस उम्र में आम लड़को की कमाई से कहीं ज्यादा है।

पारसी समुदाय के लोगों को नवरोज मंगलमय हो।

पारसी नववर्ष पारसी समुदाय में बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। पारसी धर्म में इसे खौरदाद साल के नाम से जाना जाता है। पारसियों में 1 साल 360 दिन का होता है और बाकी बचें 5 दिन गाथा के रूप में अपने पूर्वजों को याद करने के लिए रखा जाता है। साल के खत्म होने के ठीक 5 दिन पहले इसे मनाया जाता है।

दरअसल सातवीं शाताब्दी में जब ईरान में धर्म परिवर्तन की मुहिम चली तो वहां के कई पारसियों ने अपना धर्म परिवर्तित कर लिया, लेकिन कई पारसी जिन्हें यह धर्म परिवर्तन करना मंजूर नहीं था वे लोग ईरान को छोड़कर भारत आ गए। और इसी धरती पर अपने संस्कारों को सहेज कर रखना शुरू कर दिया।

लोक कथाओं के मुताबिक नबी जरथुश्त्र ने यह पर्व बनाया था और यह त्योहार आज भी महाराष्ट्र के अधिकांश हिस्सों में एक मुख्य त्योहार के रूप में मनाते हैं। वैसे तो पूरे विश्व के दूसरे पारसी समुदायों के बीच 21 मार्च को नवरोज का पर्व मनाया जाता है। नवरोज़, फारस के राजा जमशेद की याद में मनाते हैं, जिन्होंने पारसी कैलेंडर की स्थापना की थी। इस दिन पारसी परिवार के लोग नए कपड़े पहनकर अपने उपासना स्थल फायर टेंपल जाते हैं और प्रार्थना के बाद एक दूसरे को नए साल की मुबारकबाद देते हैं। साथ ही इस दिन घर की साफ-सफाई कर घर के बाहर रंगोली बनाई जाती है और कई तरह के पकवान भी बनते हैं।

भारत में पारसी समुदाय के लोग एक छोटे से अल्पसंख्यक समुदाय है, लेकिन दशकों में विभिन्न क्षेत्रों में प्रख्यात व्यक्तित्वों का उत्पादन किया है। पारसी नव वर्ष को नवरोज भी कहा जाता है। पारसी भाषा में नव का मतलब नया और रोज का मतलब दिन होता है, तो नवरोज को नया दिन कहा जाता है। इस दिन से नए पारसी कैलेंडर की शुरूआत की जाती है।




Saturday, August 15, 2020

भारत की बहू नेताजी सुभाष चंद्र बोस की धर्मपत्नी श्रीमती "एमिली शेंकल" जिनको भारत ने कभी नहीं स्वीकारा।

आज हम बात कर रहे हैं, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की धर्मपत्नी एमिली शेंकल की जिन्होंने अपनी सारी जिंदगी गुमनामी में बीता दिया। ये है भारत की असली बहू नेताजी सुभाष चंद्र बोस की धर्मपत्नी जिनका भारत ने कभी स्वागत नहीं किया। श्रीमती "एमिली शेंकल" ने 1937 में भारत मां के सबसे लाडले बेटे नेताजी सुभाष चन्द्र बोस से विवाह किया।
एक ऐसे देश को ससुराल के रूप में चुना जहां कभी इस "बहू" का स्वागत नहीं किया गया, न बहू के आगमन पर मंगल गीत गाये गये, न बेटी अनीता बोस के जन्म होने पर कोई सोहर ही गाया गया। यहां तक गुमनामी की इतनी मोटी चादर के नीचे उन्हें ढंक दिया गया कि कभी जनमानस में चर्चा भी नहीं हुआ। अपने 7 साल के कुल वैवाहिक जीवन में पति के साथ इन्हें केवल 3 साल रहने का मौका मिला, फिर इन्हें और नन्हीं सी बेटी को छोड़कर बोस जी देश के लिए लड़ने चले गये। अपनी पत्नी से इस वादे के साथ गये की पहले देश आजाद करा लूँ फिर हम साथ-साथ रहेंगे, पर अफसोस कि ऐसा नहीं हुआ क्योंकि कथित विमान दुर्घटना में बोस जी लापता हो गए।
उस समय "एमिली शेंकल" बेहद युवा थीं वो चाहती तो युरोपीय संस्कृति के अनुसार दूसरी शादी कर लेती पर नहीं की और बेहद कठिन तरीके से जीवन गुजारा।आपको जान कर बेहद दु:ख होगा कि एक तारघर में मामूली क्लर्क की नौकरी और बेहद कम वेतन के साथ वो अपनी बेटी को पालती रही। तब तक भारत आजाद हो गया था वो चाहती थी, उनका बहुत मन था, भारत आने का, की एक बार अपने पति के वतन की मिट्टी को हाथ से छू कर नेताजी को महसूस करूं, जिस वतन के लिए मेरे पति ने अपना पूरा जीवन बलिदान कर दिया। 
लेकिन ऐसा हो न सका क्योंकि कुछ लोग नहीं चाहते थे। जबकि उन्हें सम्मान-सहित बुलाकर भारत की नागरिकता देनी चाहिए थी। उस महान महिला का बड़प्पन देखिये कि उन्होंने इसकी कभी किसी से शिकायत भी नहीं की और गुमनामी में ही मार्च 1996 में जीवन त्याग दिया।

Friday, August 14, 2020

आखिर क्यों! पशु की लाश खाने से पाप लगता है तो अन्न खाने से पाप क्यों नही लगता। "वेदांत दर्शन"

"वेदांत सूत्र" को वेदों का निचोड़ कहा जाता है। ये जितना कठिन है, समझने में उतना ही गज़ब का ग्रंथ है। इसमें लगभग सभी प्रश्नों का उत्तर है। ये वेद व्यास की रचना है। यानी ईश्वरीय रचना है। वेदांत सूत्र में प्रश्न ये है की अगर पशु की लाश खाने से पाप लगता है तो अन्न खाने से पाप क्यों नही लगता, वेद (विज्ञान) के अनुसार अन्न भी जीव है।
वेदांत सूत्र उत्तर देता है कि "पशु में प्राण एवम चेतना दोनों होती है,वो दर्द महसूस करते है। जबकि अन्न या फल इत्यादि में चेतना नही होती सिर्फ प्राण होते है। उन्हें तकलीफ महसूस नही होती इसीलिए उन्हें खाना पाप नही,और ईश्वर ने उन्हें खाने के लिए ही बनाया इसीलिए अन्न या फल में चेतना नही डाली"
बहुत ही शानदार एवम आम बुद्धि से समझ मे आने वाला उत्तर है।
फिर भगवद गीता ,जो ईश्वरीय ज्ञान है उसमें स्वयं भगवान कह रहे है कि मांसाहार असुर या दैत्यों का आहार है। ये चार पाप के स्तम्भो में से एक है।

1.) जब राजा वेन ने यज्ञ में पशु बलि दे देकर अति कर दी थी तब उन्हें नरक की प्राप्ति हुई थी।

2.) राजा शिवि ने कबूतर के प्राण बचाने हेतु खुद के शरीर का मांस दान किया था। क्योंकि वो किसी भी पशु पक्षी की हत्या के सख्त खिलाफ थे।

3.) भक्तमाल में जिक्र मिलता है कि जब कर्णप्पा ने हिरण का शिकार किया और बाद में शूलपाणि शंकर प्रकट हुए तो शिव ने उपदेश दिया कि "किसी पशु की हत्या भोजन के उद्देश्य से करना पाप है वत्स"

4.) नाथ सम्प्रदाय की स्थापना करने वाले मत्स्येंद्रनाथ ने अपने माता पिता का त्याग महज 5 वर्ष की आयु में कर दिया था क्योंकि उनके माता पिता मछली खाते थे।

5.) पशु बलि मांगने पर शिव अवतारी गुरु गोरक्षनाथ ने देवी काली को बंदी बना लिया था।

ये है ऐतिहासिक दृष्टिकोण...
बाकी राम, कृष्ण, बुद्ध, महावीर, गुरु नानक इत्यादि सभी ने एक स्वर में इसे पाप कहा है। यही भारतीय दर्शन है।

फिर सड़क 2 के माध्यम से हिंदू धर्म को बदनाम करने की कोशिश।

हम जानते हैं कि हिंदी सिनेमा में भारतीय संस्कृती और पौराणिक, धर्मिक, हिदू सनातन धर्म को तोड़ मडोड कर हिंदू देवी देवताओं को गलत तरीके से दिखने कि रिवाज दशकों से चला आ रहा है। और आज भी येसा ही हो रहा है। बात कर रहे है 12 अगस्त को रिलीज हुआ ट्रेलर सड़क 2 कि जो अब तक का पूरा इतिहास पीछे छोड़ चुका है जिसे लोग नापसंद कर रहे है। अब तक 87 लाख से भी ज्यादा लोग नापसंद कर चुके हैं।

अक्सर पंडितों और साधु-संतों को धोखेबाज और बलात्कारी दिखाया जाता रहा है जबकि मुस्लिम किरदारों को ईमानदार और देश के लिए मर-मिटने वाला प्रदर्शित किया जाता रहा है। इसी तरह ‘सड़क-2’ में भी महेश भट्ट एक ऐसी कहानी लेकर आ रहे हैं, जिसमें एक साधु को बुरा दिखाया गया है और उसके काले कृत्यों का खुलासा किया जाएगा।
इस फिल्म में आलिया भट्ट का किरदार एक ऐसी महिला का होगा, जो एक ‘फेक बाबा’ से पंगा लेती है। दिखाया जाएगा कि दुनिया के सामने अच्छा बना रहे वाला गुरु कितना बड़ा अपराधी है और उसका असली चेहरा कुछ और है। ये आलिया बनाम एक आश्रम चलाने वाले बाबा की कहानी है। संजय दत्त का किरदार बाबा को ‘एक्सपोज’ करने में आलिया की मदद करेगा।
ऐसे सिनेमा का बहिष्कार होना भी चाहिए चाहो आे किसी धर्म को लेकर क्यों ना दिखाया गया हो।
लेगों को इसका पुरनजोर विरोध करना चाहिए जिससे ऐसा करने के लिए कोई साहस ना करे। इन सब गतिविधियों के पीछे किसका हाथ है और ये सब कौन और क्यों किया जा रहा है इसका मतलब साफ है हिंदू धर्म को बदनाम करना और मुस्लिम धर्म को आगे बढ़ाना है। लेकिन अब ऐसा होना संभव नहीं है। भारत की जनता को जागना चाहिए और इसका पूर्ण जोर विरोध करना चाहिए।

योगी आदित्यनाथ का गृहत्याग और राजनैतिक जीवन का कुछ अंश।

गढवाल में पैदा हुए आदित्यनाथ उत्तराखंड के गढ़वाल के एक गांव से आए अजय सिंह बिष्ट के योगी आदित्यनाथ बनने के पहले के जीवन के बारे में लोगों को ज़्यादा कुछ नहीं मालूम, सिवा इसके कि वह हेमवतीनंदन बहुगुणा विश्वविद्यालय, गढ़वाल से विज्ञान स्नातक हैं और उनके परिवार के लोग ट्रांसपोर्ट बिज़नेस में हैं। महंत अवैद्यनाथ भी उत्तराखंड के ही थे। 
गोरखनाथ मंदिर में लोगों की बहुत आस्था है। मकर संक्राति पर हर धर्म और वर्ग के लोग बाबा गोरखनाथ को खिचड़ी चढ़ाने आते हैं। महंत दिग्विजयनाथ ने इस मंदिर को 52 एकड़ में फैलाया था।
उन्हीं के समय गोरखनाथ मंदिर हिंदू राजनीति के महत्वपूर्ण केंद्र में बदला, जिसे बाद में महंत अवैद्यनाथ ने और आगे बढ़ाया। गोरखनाथ मंदिर के महंत की गद्दी का उत्तराधिकारी बनाने के चार साल बाद ही महंत अवैद्यनाथ ने योगी को अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी भी बना दिया। जिस गोरखपुर से महंत अवैद्यनाथ चार बार सांसद रहे, उसी सीट से योगी 1998 में 26 वर्ष की उम्र में लोकसभा पहुँच गए।पहला चुनाव वह 26 हज़ार के अंतर से जीते, पर 1999 के चुनाव में जीत-हार का यह अंतर 7,322 तक सिमट गया। मंडल राजनीति के उभार ने उनके सामने गंभीर चुनौती पेश की।
दो दशक पहले की है, गोरखपुर शहर के मुख्य बाज़ार गोलघर में गोरखनाथ मंदिर से संचालित इंटर कॉलेज में पढ़ने वाले कुछ छात्र एक दुकान पर कपड़ा ख़रीदने आए और उनका दुकानदार से विवाद हो गया। दुकानदार पर हमला हुआ, तो उसने रिवॉल्वर निकाल ली। दो दिन बाद दुकानदार के ख़िलाफ़ कार्रवाई की मांग को लेकर एक युवा योगी की अगुवाई में छात्रों ने उग्र प्रदर्शन किया और वे एसएसपी आवास की दीवार पर भी चढ़ गए। यह योगी आदित्यनाथ थे, जिन्होंने कुछ समय पहले ही 15 फरवरी 1994 को नाथ संप्रदाय के सबसे प्रमुख मठ गोरखनाथ मंदिर के उत्तराधिकारी के रूप में अपने गुरु महंत अवैद्यनाथ से दीक्षा ली थी। 
गोरखपुर की राजनीति में एक 'एंग्री यंग मैन' की यह धमाकेदार एंट्री थी। यह वही दौर था, जब गोरखपुर की राजनीति पर दो बाहुबली नेताओं हरिशंकर तिवारी और वीरेंद्र प्रताप शाही की पकड़ कमज़ोर हो रही थी। युवाओं ख़ासकर गोरखपुर विश्वविद्यालय के सवर्ण छात्र नेताओं को इस 'एंग्री यंग मैन' में हिंदू महासभा के अध्यक्ष रहे महंत दिग्विजयनाथ की 'छवि' दिखी और वो उनके साथ जुड़ते गए। अब यह योगी 'हिंदुत्व के सबसे बड़े फ़ायरब्रांड नेता' के रूप में स्थापित हो चुका है। दिल्ली के बाद बिहार में करारी हार से यूपी में अपने प्रदर्शन को लेकर चिंतित भाजपा में पिछले ही साल उन्हें मुख्यमंत्री पद के चेहरे के रूप में पेश करने की चर्चा हो रही थी। 2016 मार्च में गोरखनाथ मंदिर में हुई भारतीय संत सभा की चिंतन बैठक में आरएसएस के बड़े नेताओं की मौजूदगी में योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनाने का संकल्प लिया गया। तब संतों ने कहा, "हम 1992 में एक हुए तो 'ढांचा' तोड़ दिया। अब केंद्र में अपनी सरकार है। सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला हमारे पक्ष में आ जाए, तो भी प्रदेश में मुलायम या मायावती की सरकार रहते रामजन्मभूमि मंदिर नहीं बन पाएगा। इसके लिए हमें योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनाना होगा"।

हिंदू युवा वाहिनी
इसके बाद उन्होंने निजी सेना के रूप में हिंदू युवा वाहिनी (हियुवा) का गठन किया, जिसे वह 'सांस्कृतिक संगठन' कहते हैं और जो 'ग्राम रक्षा दल के रूप में हिंदू विरोधी, राष्ट्र विरोधी और माओवादी विरोधी गतिविधियों' को नियंत्रित करता है। हिंदू युवा वाहिनी के खाते में गोरखपुर, देवरिया, महाराजगंज, कुशीनगर, सिद्धार्थनगर से लेकर मउ, आज़मगढ़ तक मुसलमानों पर हमले और सांप्रदायिक हिंसा भड़काने के दर्जनों मामले दर्ज हैं। हिंदू युवा वाहिनी के इन कामों से गोरखपुर में उनकी जीत का अंतर बढ़ने लगा और साल 2014 का चुनाव वह तीन लाख से भी अधिक वोट से जीते।
बढ़ता हुआ दबदबा नेपाल में राजतंत्र की समाप्ति और उसके सेकुलर होने पर दुख जताते हैं और नेपाल की एकता के लिए राजशाही की वकालत करते हैं। मंदिर द्वारा चलाए जाने वाली तीन दर्जन से अधिक शिक्षण-स्वास्थ्य संस्थाओं के वह अध्यक्ष या सचिव हैं। वह एक मेडिकल इंस्टीट्यूट बनाने में भी जुटे हैं। मंदिर की सम्पत्तियां गोरखपुर, तुलसीपुर, महराजगंज और नेपाल में भी हैं।
उनकी दिनचर्या सुबह मंदिर में लगने वाले दरबार से होती है, जिसमें वह लोगों की समस्याएं सुनते हैं और उसके समाधान के लिए अफ़सरों को आदेश देते हैं. इसके बाद क्षेत्र में शिलान्यास, लोकार्पण के कार्यक्रमों और बैठकों में व्यस्त हो जाते हैं.योगी के मीडिया प्रभारी और उनके द्वारा निकाले जाने वाले साप्ताहिक अख़बार 'हिंदवी' जो तीन वर्ष बाद बंद हो गया, के सम्पादक रहे डॉक्टर प्रदीप राव इससे सहमत नहीं हैं कि हियुवा के इस इलाक़े में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के कारण योगी को राजनीतिक सफलता मिली।
जनता से सीधा संपर्क 
वह कहते हैं कि योगी आदित्यनाथ की सबसे बड़ी ख़ासियत जनता से सीधा संवाद और संपर्क है। लोग उनमें महंत दिग्विजयनाथ के तेवर और महंत अवैद्यनाथ का सामाजिक सेवा कार्य का जोग देखते हैं। वह कहते हैं कि गोरखनाथ मंदिर के सामाजिक कार्यों का जनता पर काफ़ी असर है। योगी ने हिंदू युवा वाहिनी के अलावा विश्व हिंदू महासंघ से अपने लोगों को जोड़ रखा है।

मैं तो इंसानियत से मजबूर था तुम्हे बीच मे नही डुबोया" मगर तुमने मुझे क्यों काट लिया!

नदी में बाढ़ आती है छोटे से टापू में पानी भर जाता है वहां रहने वाला सीधा साधा1चूहा कछुवे  से कहता है मित्र  "क्या तुम मुझे नदी पार करा ...